गुरुवार, 31 मार्च 2011

सेहत बनानी है तो पिंड खजूर खाएं

पिंड खजूर एक पका मीठा सूखा फल है जो मेवा की श्रेणी में आता है। यह ग्लूकोज, आयरन, कैल्शियम एवं ऊर्जा से भरपूर स्वादिष्ट फल है। यह तेज ताप में मरूस्थलीय क्षेत्रों में ज्यादा होता है। यह सेहत के लिए सभी दृष्टि से लाभकारी है। इसका गुड़ भी बनाया जाता है। इसका सूखा रूप छुहारा कहलाता है। दोनों रूप में इसका गुण समान होता है। इसमें आयरन खून को बढ़ाता है जबकि कैल्शियम हड्डियों को मजबूत करता है।
यह शरीर में रक्त संचार को सही रखता है। इसको खाने से सर्दी जुकाम, खांसी, बुखार जैसी समस्याएं कम होती हैं। मस्तिष्क की कार्य क्षमता बढ़ती है। इसमें मौजूद कार्बोज एवं कैलोरी के कारण यह वजन बढ़ाने में सहायक है। यह पेट साफ रखता है, कब्ज दूर करता है एवं थकान मिटाता है। इसमें प्रोटीन, खनिज, कार्बोज, आयरन, कैल्शियम, पोटेशियम मौजूद हैं।

दिल को दुरुस्त रखें सब्जियां


हमारे खानपान में शामिल अनेक वस्तुएं ऐसी हैं जो शरीर के राजा हृदय को अपने गुणों के कारण दुरुस्त रखती हैं। प्रतिदिन खाली पेट लहसुन की दो कलियां सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल संतुलित रहता है। मेथी के दाने व भाजी से भी यही लाभ मिलता है। प्याज सलाद में शामिल होकर रक्त प्रवाह ठीक रखता है। यह कमजोर हृदय की स्थिति में घबराहट या दिल की धड़कन बढ़ने पर लाभ दिलाता है। गाजर की सब्जी, सलाद या रस दिल की बढ़ी हुई धड़कन ठीक करता है। लौकी की सब्जी या रस कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य अवस्था में लाता है। टमाटर में मौजूद तत्व सलाद व सब्जी के माध्यम से दिल की बीमारी का खतरा कम करते हैं अतएव सुविधा के अनुसार इन्हें सेवन कर दिल को दुरूस्त रखें।

कैसे करें योगासन?

नियमित योगासन से व्यक्ति अपने आपको लम्बे समय तक चुस्त-दुरूस्त बनाये रख सकता है। योग बीमारियों से बचे रहने का सबसे बेहतर उपाय है, लेकिन योगासन यूं ही नहीं किये जा सकते। योग कैसे करना चाहिए तथा इसे करने से पहले और बाद में क्या करना चाहिए और क्या नहीं, यहां हम इस बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं :- योगासन प्रातःकाल शौच आदि से निवृत्त होने के बाद ही करना चाहिए। यदि स्ान करने के बाद योगासन किया जाये तो और भी अच्छा है, क्योंकि स्ान करने से हमारा शरीर हल्का-फुल्का और स्फूर्तियुक्त बन जाता है। संध्या काल में भोजन से पूर्व आसन किये जा सकते हैं। प आसन करने की जगह समतल, स्वच्छ और शांत होनी चाहिए। भूमि पर मोटी दरी या कालीन आदि बिछाकर योगासन करें। प आसन करते समय बातचीत न करें। यदि आसन एकाग्रता से किये जायें तो शारीरिक और मानसिक लाभ अधिक होते हैं। प अभ्यास करते समय छड़ी, चश्मा या आभूषण न पहनें। प योगासन झटके के साथ या बलपूर्वक नहीं करें। इससे शरीर में पीड़ा हो सकती है। प योगासन करते समय ढीले कपड़े पहनने चाहिए। प जटिल रोगों में या अधिक ज्वर में आसन न करें। महिलाओं को गर्भधारण के चार महीनों के बाद, प्रसूति के तीन महीनाेंं और मासिक धर्म के समय आसन नहीं करने चाहिए। प आसनों की संख्या और उनकी अवधि धीरे-धीरे ही बढ़ानी चाहिए। पहले ही दिन अधिक आसन कर डालने का प्रयास ठीक नहीं है। प यदि आसन करते समय शरीर के किसी भाग में अधिक दर्द होता हो तो उस आसन का अभ्यास तुरन्त बन्द कर दें। प आसन करते समय व्यक्ति को यथासंभव हल्का भोजन करना चाहिए ताकि शरीर हल्का-फुल्का रहे। प योगासन करते समय शरीर को हवा का सीधा झोंका न लगे, यह ध्यान रखें। योगासन करते समय शरीर के किसी भी जोड़ को उसके कुदरती मोड़ के अनुसार ही मोड़ना चाहिए। कभी भी उल्टे या तिरछे होने का प्रयत्न न करें। प योगासन के अभ्यास के क्रम का भी ध्यान अवश्य रखें, फिर प्राणायम और अंत में ध्यान करें।

महिलाओं के रोग और बायोकैमिक दवाएं

यह तो आप जानते ही होंगे कि बायोकैमिक चिकित्सा पध्दति हानि रहित व लवण चिकित्सा पध्दति है। इस पध्दति में मात्र 12 लवणीय दवाएं है, जो शरीर के लिए आवश्यक है। इन दवाओं की और विशेषता यह है कि ये अधिक मात्रा में दे देने या सभी 12 दवाएं एक साथ दे देने पर भी शरीर को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचती। यहां हम आपकी जानकारी के लिए सभी 12 दवाओं का महिलाओं से संबंधित विभिन्न रोगों से जुड़ा महत्व बता रहे हैं।

* कल्केरिया फ्लोर : यह दवा गर्म अवस्था में गर्भाशय की संकुचन स्थिति ठीक करती हैष गर्भाशय को मजबूती प्रदान करती है तथा मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव को सही स्थिति प्रदान करती है।

* कल्केरिया फॉस : यह प्रसव कमजोरी, मासिक धर्म, स्तन पीड़ा, कमर दर्द, श्वेत प्रदर को ठीक करती है। इससे कैल्शियम की कमी को भी दूर किया जा सकता है।
कल्केरिया सल्फ : योनि में खुजली, स्तनों में दर्द, मासिक धर्म की अनियमित स्थिति को ठीक करने के लिए यह दवा उत्तम है।

* फेरम फॉस : यह लवण मासिक धर्म विकृति, शुष्क योनि आदि रोगों में बहुत लाभप्रद है।

* काली मयूर : यह एक तरह से कीटाणुनाशक है। गर्भाशय के घाव, प्रसूति ज्वर में तो बहुत फायदेमंद है।

* काली सल्फ : मासिक धर्म में देरी अथवा अनियमितता सूजाक में बहुत फायदेमंद है।
मैग्नीशिया फॉस : मासिक धर्म के प्रारंभ के समय के कष्ट में डिम्ब ग्रंथियों के दर्द में यह दवा देनी चाहिए।

* नेट्रम मयूर : बांझपन, योनि में जलन, योनि की भीतरी जलन, मैथुन क्रिया के प्रति उदासीनता या उत्तेजना की कमी अथवा स्तनों में दूध की कमी हो तो इस साल्ट का सेवन करना चाहिए।

* नेट्रम फॉस : तिथि से पूर्व मासिक धर्म आना, बदबूदार श्वेत प्रदर, योनि से बदबू आए अथवा बांझपन की स्थिति हो तो इस दवा का सेवन लाभप्रद रहता है।

* नेट्रम सल्फ : मासिक धर्म के दिनों में अपच, पेट दर्द, योनि के छिलने से उत्पन्न पीड़ा हो तो इस दवा का सेवन करें।

* काली फॉस : मासिक धर्म में काम इच्छा, शरीर में पीड़ा, अत्यधिक रक्तस्राव हो तो काली फॉस का सेवन करें।
* साइलीशिया : दुर्गन्धयुक्त मासिक धर्म, स्तन के घाव, स्तनों में गांठ होने या कड़े हो जाने पर, योनि के घाव, मासिक धर्म के दिनों में कब्ज हो तो यह लवण दे सकते हैं।
जहर करेगा स्वर संबंधी विकारों का उपचार सर्वाधिक असरदार और प्राकृतिक विष माने जाने वाले बोटलिनम यया बोटॉक्स का प्रयोग अब तक आंख की एठी हुई मांसपेशियों को ढीला करने और चेहरे की झुर्रिया व झाईयां दूर करने के लिए उसकी मांसपेशियां शिथिल करने में ही किया जाता रहा है किन्तु अब गले की सर्जरी में आवाज गंवा चुके मरीजों की आवाज वापस लाने में भी बोटाक्स नामक यह अत्यन्त तीव्र विष प्रभावी दवा का काम कर रहा है। गले के कैंसर या ऐसे ही अन्य मुख व कंठ विकारों में प्राय: रोगियों का स्वरयंत्र निकाल दिया जाता है और उन्हें अपने कंठ की मांसपेशियां स्वत: ही नियंत्रित करनी पड़ती है जबकि आमतौर पर स्वरयंत्र ही हवा के जरिये आवाज का नियंत्रण करता है। ऐसे में आपरेशन के बाद सामान्य रूप से अपनी प्राकृतिक आवाज पुन: पाना बहुत मुश्किल होता है। कंठ की मांसपेशियों का नियंत्रण स्वयं करते हुए कई बार वे एेंठने लगती हैं और आवाज ठीक से नहीं आ पाती।

टैक्सास विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार स्वरयंत्र के अभाव में कंठ की मांसपेशियों पर बोटाक्स विष का प्रयोग उन्हें शिथिल कर देता है, जिससे उनमें ऐठन नहीं हो पाती और आवाज लगातार ठीक से आती रहती है। वैज्ञानिक दल ने करीब 23 रोगियों पर बोटाक्स का प्रयोग किया, जिनमें से 15 रोगियों की आवाज में फर्क पहले ही इंजेक्शन में आ गया जबकि दूसरा एंजेक्शन देने पर चार अन्य रोगियों की आवाज वापस आ गयी और शेष चार में से एक रोगी की आवाज तीसरा इंजेक्शन देने पर वापस आ गयी। इस महत्वपूर्ण शोध से उत्साहित टैक्सास विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का मानना है कि स्वर संबंधी विकारों के उपचार में बोटाक्स विष बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

दवाई खाएं, मगर अन्धाधुन्ध नहीं

यदि व्यक्ति बीमार पड़ जाता है तो उसे किसी न किसी दवा का सहारा तो लेना ही पड़ता है। फिर भी दवा सीमित खानी चाहिए, अन्धाधुंध नहीं। वह भी तब जब जरूरी है।

* जरा सी तकलीफ हुई नहीं कि हम पहुंच जाते हैं डाक्टर के पास। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। उस कारणों को अपने व्यवहार से निकाल फेंकना चाहिए, जिनसे रोग हुआ। डाक्टर तक पहुंचने की नौबत गंभीर अवस्था में हो।
* यह बात मान लेनी चाहिए कि हम प्रयत्न कर, अपने आहार में जरूरी सुधार व परिवर्तन कर, उपयुक्त व्यायाम का सहारा लेकर अपने रोग को उखाड़ सकते हैं। इस प्रकार के प्रयत्न से यदि रोग मुक्त हो जाएंगे तो फिर से यह नहीं उभर सकेगा। इसे जड़ से उखाड़ फेंकना लक्ष्य हो आपका।
* यह भी पता चला है कि बहुत से रोगों का मुख्य कारण अधिक कब्ज होना या पाचन शक्ति में गड़बड़ हो जाना या फिर पेट में कोई विकार घर कर जाना। यदि इस ओर हम सदा ध्यान देते रहें तो रोग होंगे ही नहीं।

बुधवार, 30 मार्च 2011

दस्त और डीहाईड्रेशन में सावधानियां

दस्त या अतिसार स्वयं तो रोग है ही, यदि ये बने रहें तो शरीर में पानी की कमी हो जाना लाजमी है। यह शरीर में पानी की कमी ही डीहाईड्रेशन है, जो कि दस्तों से भी अधिक खतरनाक है। अत: दस्तों का सही, तुरंत इलाज करना जरूरी है। बार-बार शौच जाना बहुत कमजोरी भी ला देता है।

कारण : 1. अशुध्द दूषित पानी पीना, 2. अंतड़ियों में भोजन का सड़ना, 3. आवश्यकता से अधिक खाना, 4. किसी अन्य रोग के कारण एन्टीबायोटिक दवाएं खाना, 5. ऐसी दवाएं खाना जो दस्त लगाती हों, 6. भोजन की किसी प्रकार से एलर्जी हो जाना, 7. बासी भोजन खाने से, 8. फल से जो गल-सड़ गये हों, 9. पुरानी मिठाई से, 10. गंदे, मक्खियों वाले, धूल वाले कटे फल आदि खाने से भी, 11. घबराहट, मानसिक दबाव, भय तथा तनाव भी दस्त लगा देते हैं।
उपचार : दस्तों से बचने के लिए निम्नलिखित उपचार कर सकते हैं-
जीरा तथा सौंफ से- एक चम्मच जीरा, एक चम्मच सौंफ लेकर तवे पर भून लें। फिर चकला-बेलना पर या सिल पर पीसें। इसे खाकर ताजा पानी पी लें। ऐसी तीन खुराक एक दिन में लेनी है। कुल चार दिन उपचार करना है। यह चूर्ण इकट्ठा, एक बार बनाकर भी रख सकते हैं।
ईसबगोल की भूसी से- ईसबगोल की भूसी के दो चम्मच लें। एक डिश प्लेट दही में मिलाकर खाएं। ऐसी तीन खुराक दिन में लें। तीन दिनों तक लेते रहें। आराम मिलेगा।
अदरक का रस- एक प्याला उबला हुआ पानी लें। इसमें अदरक का ताजा रस एक चम्मच डालें। कुछ देर रखा रहने दें। जब गुनगुना हो जाए तो पी लें। ऐसी चार खुराक हर घंटे-डेढ़ घंटे के बाद लें। दो ही दिनों में आराम मिल जायेगा।
डीहाईड्रेशन से बचें- इस रोग में डीहाईड्रेशन का बहुत डर रहता है। इससे बचने का प्रयत्न करना जरूरी है।
1. उबाल कर, ठंडा करके पानी पीने की आदत डाले।
2. इलेक्ट्राल को घोलकर पीते रहें।
3. गुनगुने पानी में चीनी, नमक और नींबू स्वाद के अनुसार मात्रा में डालें और पी लें। दिन भर पीते रहें जब तक दस्त परेशान कर रहे हों। ऐसा करने से पानी की कमी नहीं होती और रोग भी जल्दी शांत होता है। इस रोग से कमजोरी भी आ जाती है। अत: जल्दी से जल्दी इलाज कर अपना बचाव करें।

दो सेब खाने से भाग जाएगा आपका गुस्सा

आजकल हर व्यक्ति के ऊपर जरूरत से ज्यादा काम का बोझ और जिम्मेदारियां आ गई हैं। इन्हीं कारणों को लेकर आज ज्यादातर लोगों का स्वभाव चिढ़चिढ़ा हो गया है।कई कोशिशों के बाद भी वे अपने गुस्से पर कन्ट्रोल नहीं कर पाते हैं।

कई बार उनका यही गुस्सा कई मुसीबतों का कारण भी बन जाता है। लेकिन अब आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है नीचे एक कारगर घरेलू नुस्खा बताया जा रहा है जिसको आजमा कर आप अपने गुस्से को हमेशा के लिए दूर कर सकते है।

- दो पके हुए सेब बिना छीले ही सुबह सुबह खाली पेट खूब चबा चबाकर खाएं। लगातार पन्द्रह दिन सेब खाने से किसी भी तरह का गुस्सा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।

विशेष- जिन लोगों का दिमाग कमजोर हो या जिन स्टूडेण्टस को याद न रहने की समस्या हो वे इस नुस्खे को जरूर आजमाएं। इस नुस्खे को आजमाने से मेमोरी शार्प होती है।

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