बच्चे को स्तनपान (फीडिंग) कराना शुरू करवाना चाहिये कारण डिलिवरी कनाम काहारमोन निकलता है जो मां का पहला दूध कहलाता है यह बहुत गाढा होता है शिशु केलिये बहुत लाभकारी होता है। इम्यून पावर बढाता है तथा तमाक लड़ने की क्षमता बढाता है।दिन में हर चार घंटे बाद तथा रात में छ: घंटे पर शिशु को दूध पिलाना चाहिये। लोग शिशु को हर थोडी दिर में दूध पिलाने लगते हैं ये सोचकर कि शायद उसका पेट नहीं भरा होगा।जल्दी जल्दी दूध पिलाने से बच्चे को भूख लगने का मौका आप नहीं देते बल्कि इससे उसका पेट खराब हो सकताहै। पाचन क्रिया बिगड़ सकती है दस्त लग सकते हैं डिहाईड्रेशन हो सकता है।इतने छोटे शिशु को अलग से पानी नहीं दिया जाता कारण मां के दूध से सारी जरूरतें पूरी हो जाती है। शिशु को मां के दूध के अलावा और कुछ नहीं देना चाहिये करीब तीन-चार माह तक।जितने दिन तक शिशु मां का दूध पीता है उतने तक मां को कोई ऐसी चीज नहीं खानी चाहिये जिससे मां को गैस या ठंड चढ़ जाये कारण इसका पूरा पूरा असर बच्चे के पेट पर पड़ता है यानि पेट दर्द,दस्त ,पेट में तनाव इत्यादि हो सकता है।कम से एक साल तक।इतने दिन तक मां का दूध अवश्य दें।छ माह पर उपर की चीजें खिलाना जैसे पतली खिचड़ी,साबुदाने का पानी,फल का जूस इत्यादि दें।इसके बाद वेजीटेबल खिचड़ी दे सकते हैं मिक्सी में ग्राइंड करके ताकि गले में न फंसे तथा आसानी से हजम भी हो जाय
सोमवार, 22 सितंबर 2014
शिशु को स्तनपान(फीडिंग) कराने का तरीका
बच्चे को स्तनपान (फीडिंग) कराना शुरू करवाना चाहिये कारण डिलिवरी कनाम काहारमोन निकलता है जो मां का पहला दूध कहलाता है यह बहुत गाढा होता है शिशु केलिये बहुत लाभकारी होता है। इम्यून पावर बढाता है तथा तमाक लड़ने की क्षमता बढाता है।दिन में हर चार घंटे बाद तथा रात में छ: घंटे पर शिशु को दूध पिलाना चाहिये। लोग शिशु को हर थोडी दिर में दूध पिलाने लगते हैं ये सोचकर कि शायद उसका पेट नहीं भरा होगा।जल्दी जल्दी दूध पिलाने से बच्चे को भूख लगने का मौका आप नहीं देते बल्कि इससे उसका पेट खराब हो सकताहै। पाचन क्रिया बिगड़ सकती है दस्त लग सकते हैं डिहाईड्रेशन हो सकता है।इतने छोटे शिशु को अलग से पानी नहीं दिया जाता कारण मां के दूध से सारी जरूरतें पूरी हो जाती है। शिशु को मां के दूध के अलावा और कुछ नहीं देना चाहिये करीब तीन-चार माह तक।जितने दिन तक शिशु मां का दूध पीता है उतने तक मां को कोई ऐसी चीज नहीं खानी चाहिये जिससे मां को गैस या ठंड चढ़ जाये कारण इसका पूरा पूरा असर बच्चे के पेट पर पड़ता है यानि पेट दर्द,दस्त ,पेट में तनाव इत्यादि हो सकता है।कम से एक साल तक।इतने दिन तक मां का दूध अवश्य दें।छ माह पर उपर की चीजें खिलाना जैसे पतली खिचड़ी,साबुदाने का पानी,फल का जूस इत्यादि दें।इसके बाद वेजीटेबल खिचड़ी दे सकते हैं मिक्सी में ग्राइंड करके ताकि गले में न फंसे तथा आसानी से हजम भी हो जाय
नारियल पानी पीने के स्वास्थवर्धक गुण
गर्मियों में नारियल पानी के सेवन से, आपको दिव्य आनंद प्राप्त होगा। यह केवल आपको ताजगी ही नहीं, बल्कि इस में कई सारे स्वास्थवर्धक गुण भी छुपे हैं। नारियल पानी में विटामिन, मिनरल, इलेक्ट्रोलाइट्स, एंजाइमस्, एमिनो एसिड और साइटोकाइन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। आपको यह जान कर हैरानी होगी कि नारियल पानी महिलाओं के स्वािस्य्ना के लिये बहुत ही अच्छाय माना गया है। यदि पेशाब में जलन हो रही हो, डीहाड्रेशन हो गया हो, त्वयचा में निखार चाहिये हो या फिर मोटापा घटाना हो तो नारियल पानी पीजिये। नारियल की तासीर ठंडी होती है इसलिए नारियल का पानी हल्का, प्यास बुझाने वाला, अग्निप्रदीपक, वीर्यवर्धक तथा मूत्र संस्थान के लिए बहुत उपयोगी होता है। इसमें स्वास्थवर्धक गुण तो है ही, साथ ही इसकी ताजगी से भरा स्वाद इसे पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाता है। आइये जानते हैं नारियल पानी के बारे में कुछ स्वागस्य्िश वर्धक बातें।
1. दस्तम मिटाए अगर आप दस्त से परेशान है, तो नारियल पानी का सेवन आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा, यह आपके शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है। नारियल पानी में एमिनो एसिड, एंजाइमस्, डाइटेरी फाइबर, विटामिन सी और कई मिनरल जैसे पोटेशियम, मैग्नीशियम और मैंगनीज पाए जाते हैं। साथ ही, इसका सेवन आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल और क्लोराइड को भी कम करता है।
2.पानी की कमी पूरी करे देश में, आज भी कई ऐसे प्रांत मौजूद है, जहाँ चिकित्सा की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है। यहाँ, हाइड्रेशन के कारण गंभीर रुप से बीमार हुए मरीजों को नारियल पानी पीलाया जाए, तो यह उनके शरीर में पानी की कमी को पूरा करने में लाभदायक साबित होगा।
3.मोटापा न बढाए क्योंकि इस में फैटस की मात्रा बहुत कम है, जिसके कारण यह आपका मोटापा भी कम कर सकता है और तृप्त महसूस कराता है। इसका सेवन, खाना खाने की इच्छा को भी कम करता है।
4. मधुमेह के लिये नारियल पानी का सेवन मधुमेह के रोगियों के लिये बहुत लाभदायक है। इस में मौजूद पोषक तत्व, शरीर में शक्कधर के स्तर को नियंत्रित रखते हैं। जो मधुमेह के रोगियों के लिये बहुत जरुरी है।
5. फ्लू में लाभकारी फ्लू और दाद, दोनों शरीर में वायरल इन्फेक्शन से होने वाली बीमारियाँ हैं। अगर कोई व्यक्ति इन बीमारियों की चपेट में आ गया है, तो नारियल पानी में मौजूद एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरियल गुण इस बीमारी से लडने में मदद करेंगे।
6. हाइपर्टेंशन और स्ट्रोक से बचाए पोटेशियम से भरपूर नारियल पानी आपको सेहतमंद बनाता है। साथ ही, इसका सेवन हाइपर्टेंशन और स्ट्रोक के खतरे को कम करने में मदद करता है।
7. किडनी स्टोनन से बचाए नारियल पानी में मौजूद मिनरल, पोटेशियम और मैग्नीशियम गुर्दे में होने वाली पथरी के खतरे को कम करते हैं।
8. झुर्रियों और मुंहासों के दाग मिटाए अगर आप हर रात, दो से तीन हफ्तों के लिये, अपने मुँहासों, धब्बों, झुर्रियों, स्ट्रैच माक्स, सेल्युलाईट और एक्जिमा पर नारियल पानी लगाएँगे, तो आपकी त्वचा बहुत साफ हो जाएगी।
9. एंटी एजिंग का काम करे कुछ अनुसंधानों अनुसार, नारियल पानी में मौजूद साइटोकिन्स, एंटी ऐजिंग, एंटी कासीनजन और एंटी थौंबौटिक्स से लडने में काफी फायदेमंद साबित हुए हैं।
10. कैंसर से लड़े कई प्रयोगशालाओं में यह भी पाया गया है कि नारियल पानी के कुछ संयुक्त पदार्थ जैसे सेलनियम में एंटी आॉक्सीडेंट गुण मौजूद है, जो कैंसर से लडने में मदद करते हैं।
11. पाचन में मददगार स्वाभाविक रुप से नारियल पानी में कई बायोएक्टिव एन्जाइमस् जैसे एसिड फॉस्फेट, कटालेस, डिहाइड्रोजनेज, डायस्टेज, पेरोक्सडेस, आर एन ए पोलिमेरासेस् आदि पाए जाते हैं। ये एनेजाइमस् पाचन और चयापचय क्रिया में मदद करते हैं।
12. बी कॉम्लयक्स से भरा नारियल पानी में बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन के राइबोफ्लेविन, नियासिन, थियामिन, पैरिडोक्सिन और फोलेट्स जैसे तत्व मौजूद है। मानव शरीर को इन विटामिन की आवश्कता होती है और इन्हें पूरा करने के लिए उसे अन्य पदार्थों पर निर्भर होना पडता है।
13. इलेक्ट्रो लाइट से भरपूर नारियल पानी में भरपूर मात्रा में इलेक्ट्रोलाइट पोटेशियम पाया जाता है। 100 मिलीलीटक नारियल पानी में 250 मिलीग्राम पोटेशियम और 105 मिलीग्राम सोडियम होता है। कुल मिलाकर ये इलेक्ट्रोलाइट्स, दस्त के दौरान शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी को पूरा करने में मदद करते हैं।
14. विटामिन सी ताजे नारियल पानी में कम मात्रा में विटामिन सी (ऐस्कोरबिक एसिड) होती है। इस में 4% या 2.5 मिलीग्राम आर डी ए होता है। विटामिन सी पानी में घुल जाने वाला एटीआॉक्सीडेंट है।
दूध पीने के नियम
सुबह के समय दूध कभी ना पीये+ जर्सी गाय के दूध कभी भी ना पीये
बोर्नविटा , होर्लिक्स के विज्ञापनों के चलते माताओं के मन में यह बैठ जाता है की बच्चों को ये सब डाल के दो कप दूध पिला दिया बस हो गया . चाहे बच्चे दूध पसंद करे ना करे , उलटी करे , वे किसी तरह ये पिला के ही दम लेती है . फिर भी बच्चों में केशियम की कमी , लम्बाई ना बढना , इत्यादि समस्याएँ देखने में आती है .आयुर्वेद के अनुसार दूध पिने के कुछ नियम है ---
- दोपहर में छाछ पीना चाहिए . दही की प्रकृति गर्म होती है ; जबकि छाछ की ठंडी .
- रात में दूध पीना चाहिए पर बिना शकर के ; हो सके तो गाय का घी १- २ चम्मच दाल के ले . दूध की अपनी प्राकृतिक मिठास होती है वो हम शकर डाल देने के कारण अनुभव ही नहीं कर पाते .
- एक बार बच्चें अन्य भोजन लेना शुरू कर दे जैसे रोटी , चावल , सब्जियां तब उन्हें गेंहूँ , चावल और सब्जियों में मौजूद केल्शियम प्राप्त होने लगता है . अब वे केल्शियम के लिए सिर्फ दूध पर निर्भर नहीं .
- बोर्नविटा , कॉम्प्लान या होर्लिक्स किसी भी प्राकृतिक आहार से अच्छे नहीं हो सकते . इनके लुभावने विज्ञापनों का कभी भरोसा मत करिए . बच्चों को खूब चने , दाने , सत्तू , मिक्स्ड आटे के लड्डू खिलाइए
- प्रयत्न करे की देशी गाय का दूध ले .
- जर्सी या दोगली गाय से भैंस का दूध बेहतर है .
- दही अगर खट्टा हो गया हो तो भी दूध और दही ना मिलाये , खीर और कढ़ी एक साथ ना खाए . खीर के साथ नामकी पदार्थ ना खाए .
- अधजमे दही का सेवन ना करे .
- चावल में दूध के साथ नमक ना डाले .
- सूप में ,आटा भिगोने के लिए , दूध इस्तेमाल ना करे .
- द्विदल यानी की दालों के साथ दही का सेवन विरुद्ध आहार माना जाता है . अगर करना ही पड़े तो दही को हिंग जीरा की बघार दे कर उसकी प्रकृति बदल लें .
- रात में दही या छाछ का सेवन ना करे .
शनिवार, 20 सितंबर 2014
जीर्ण रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार
जब दूषित द्रव्य शरीर के बाहर नहीं निकलता है तो वह शरीर के किसी भाग में जमा होता रहता है और जिस भाग में जमा होता है वहां पर कई प्रकार के रोग हो जाते हैं और रोग के अनुसार ही बीमारियों का नाम दे दिया जाता है जैसे- क्षय (टी.बी.), कैंसर आदि।
जीर्ण रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-
•रोगी व्यक्ति को जीर्ण रोग होने के कारणों को सबसे पहले दूर करना चाहिए फिर इसके बाद इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए।
•जीर्ण रोगों का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक लगातार फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए तथा इसके बाद कुछ दिनों तक फलों का सेवन करते रहना चाहिए। रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट की सफाई करनी चाहिए ताकि शरीर की गंदगी बाहर निकल सके।
•प्राकृतिक चिकित्सा से सभी प्रकार के जीर्ण रोग ठीक हो सकते हैं, लेकिन रोगी व्यक्ति को उपचार कराने के साथ-साथ कुछ खाने-पीने की चीजों का परहेज भी करना चाहिए तथा उपचार पर विश्वास रखना चाहिए तभी यह रोग ठीक हो सकता है।
तीव्र तथा जीर्ण रोगों का उपचार कराते समय रोगी व्यक्ति को कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए-
•रोगी व्यक्ति को कोई भी ठंडा उपचार करने से पहले अपनी हथेलियों को रगड़-रगड़ कर गर्म कर लेना चाहिए और फिर इसके बाद उपचार करना चाहिए।
•रोगी व्यक्ति को ठंडा उपचार करने के बाद खुली हवा में टहलकर या हल्का व्यायाम करके अपने शरीर को गर्म करना चाहिए।
•रोगी व्यक्ति को गर्म उपचार करने से पहले पानी पीना चाहिए और सिर पर गीला तौलिया रखना चाहिए।
•रोगी व्यक्ति को अधिक लाभ लेने के लिए कभी भी ज्यादा उपचार नहीं कराना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति को हानि पहुंचती है।
•जब रोगी व्यक्ति ठंडे पानी से उपचार कराता है तो उसे आधे घण्टे के बाद स्नान कर लेना चाहिए।
•रोगी व्यक्ति को भोजन करने के कम से कम ढाई घण्टे के बाद ही उपचार करना चाहिए।
•रोगी व्यक्ति को उपचार करने के बाद यदि कुछ खाना है तो उसे कम से कम आधा घण्टा रुककर ही उपचार करना चाहिए।
तृषा रोग के (तेज प्यास) लक्षण
तेज प्यास
यह एक प्रकार का ऐसा रोग है जिसमें रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक प्यास लगती है। रोगी व्यक्ति जितना भी पानी पीता है उसे ऐसा लगता है कि उसने बहुत ही कम पानी पिया है और वह बार-बार पानी पीता रहता है।
तृषा रोग के (तेज प्यास) लक्षण-
इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक प्यास लगती है तथा रोगी को अपना गला हर समय सूखा-सूखा सा लगता है।
तृषा रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
•तृषा (तेज प्यास) रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को एनिमा द्वारा अपना पेट साफ करना चाहिए और इसके बाद दिन में 2 बार कटिस्नान करना चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को रात को सोते समय अपनी कमर पर कुछ समय के लिए भीगी पट्टी लगाकर सोना चाहिए। इससे तृषा रोग (तेज प्यास) ठीक हो जाता है।
•तृषा रोग (तेज प्यास) का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करने के लिए सबसे पहले रोगी को कुछ दिनों तक रसाहार तथा फलाहार भोजन करना चाहिए और इसके बाद धीरे-धीरे पानी पीना चाहिए।
•तृषा रोग को ठीक करने के लिए आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल को लगभग 50 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन 8 बार रोगी को सेवन करना चाहिए। इससे रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ही ठीक हो जाता है।
यह एक प्रकार का ऐसा रोग है जिसमें रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक प्यास लगती है। रोगी व्यक्ति जितना भी पानी पीता है उसे ऐसा लगता है कि उसने बहुत ही कम पानी पिया है और वह बार-बार पानी पीता रहता है।
तृषा रोग के (तेज प्यास) लक्षण-
इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक प्यास लगती है तथा रोगी को अपना गला हर समय सूखा-सूखा सा लगता है।
तृषा रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
•तृषा (तेज प्यास) रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को एनिमा द्वारा अपना पेट साफ करना चाहिए और इसके बाद दिन में 2 बार कटिस्नान करना चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को रात को सोते समय अपनी कमर पर कुछ समय के लिए भीगी पट्टी लगाकर सोना चाहिए। इससे तृषा रोग (तेज प्यास) ठीक हो जाता है।
•तृषा रोग (तेज प्यास) का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करने के लिए सबसे पहले रोगी को कुछ दिनों तक रसाहार तथा फलाहार भोजन करना चाहिए और इसके बाद धीरे-धीरे पानी पीना चाहिए।
•तृषा रोग को ठीक करने के लिए आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल को लगभग 50 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन 8 बार रोगी को सेवन करना चाहिए। इससे रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ही ठीक हो जाता है।
तीव्र रोग होने के कारण
वैसे देखा जाए तो तीव्र रोग हमारे मित्र हैं शत्रु नहीं क्योंकि इनसे शरीर की अन्दरूनी सफाई हो जाती है जो कि जीर्ण रोगों से हमें बचाती है।
तीव्र रोग होने के कारण -
यह रोग उन व्यक्तियों को होता है जिन व्यक्तियों के शरीर में दूषित द्रव्य जमा हो जाता है और असाधारण ढंग से शरीर से बाहर निकलने लगता है।
तीव्र रोग होने के लक्षण -
•तीव्र रोग से पीड़ित रोगी को भूख नहीं लगती है और यदि लगती भी है तो बहुत ही कम।
•तीव्र रोग से पीड़ित रोगी के मुंह का स्वाद कड़वा हो जाता है और रोगी व्यक्ति को कुछ भी चीज खानी में अच्छी नहीं लगती है।
•इस रोग से पीड़ित रोगी की जीभ गंदी रहती है।
•तीव्र रोग से पीड़ित रोगी के मुंह में छाले हो जाते हैं।
•इस रोग से पीड़ित रोगी का गला खराब रहता है तथा उसको बोलने में परेशानी होने लगती है।
•तीव्र रोग से पीड़ित रोगी के सिर में दर्द होता रहता है।
तीव्र रोग निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
•बुखार होना
•उल्टी आना
•खांसी हो जाना
•जुकाम होना आदि कई प्रकार के रोग।
तीव्र रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार -
•तीव्र रोग से ग्रस्त रोगी को कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए। इसके बाद रोगी व्यक्ति को एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए ताकि शरीर के अन्दर से दूषित द्रव्य बाहर निकल सकें।
•इन रोगों को दवाइयों से दबाना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने से रोगी व्यक्ति को दूसरे कई रोग भी हो सकते हैं।
शुक्रवार, 19 सितंबर 2014
संगीत से रोग भगाये
आजकल संगीत द्वारा बहुत सी बीमारियो का इलाज किया जाने लगा हैं | चिकित्सा विज्ञान भी यह मानने लगा हैं की प्रतिदिन 20 मिनट अपनी पसंद का संगीत सुनने से रोज़मर्रा की होने वाली बहुत सी बीमारियो से निजात पायी जा सकती हैं जिस प्रकार हर रोग का संबंध किसी ना किसी ग्रह विशेष से होता हैं उसी प्रकार संगीत के हर सुर व राग का संबंध किसी ना किसी ग्रह से अवश्य होता हैं यदि किसी जातक को किसी ग्रह विशेष से संबन्धित रोग हो और उसे उस ग्रह से संबन्धित राग,सुर अथवा गीत सुनाये जाये तो जातक विशेष जल्दी ही स्वस्थ हो जाता हैं प्रस्तुत लेख मे हमने इसी विषय को आधार बनाकर ऐसे बहुत से रोगो व उनसे राहत देने वाले रागो के विषय मे जानकारी देने का प्रयास किया हैं जिन शास्त्रीय रागो का उल्लेख किया किया गया हैं उन रागो मे कोई भी गीत,संगीत,भजन या वाद्य यंत्र बजा कर लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं | यहाँ हमने उनसे संबन्धित फिल्मी गीतो के उदाहरण देने का प्रयास भी किया हैं |
1)हृदय रोग –इस रोग मे राग दरबारी व राग सारंग से संबन्धित संगीत सुनना लाभदायक हैं इनसे संबन्धित फिल्मी गीत निम्न हैं- तोरा मन दर्पण कहलाए (काजल),राधिके तूने बंसरी चुराई (बेटी बेटे ),झनक झनक तोरी बाजे पायलिया ( मेरे हुज़ूर ),बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम (साजन),जादूगर साइया छोड़ो मोरी (फाल्गुन),ओ दुनिया के रखवाले (बैजु बावरा ),मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये (मुगले आजम )
2)अनिद्रा –यह रोग हमारे जीवन मे होने वाले सबसे साधारण रोगो मे से एक हैं इस रोग के होने पर राग भैरवी व राग सोहनी सुनना लाभकारी होता हैं जिनके प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं 1)रात भर उनकी याद आती रही(गमन),2)नाचे मन मोरा (कोहिनूर),3)मीठे बोल बोले बोले पायलिया(सितारा),4)तू गंगा की मौज मैं यमुना (बैजु बावरा),5)ऋतु बसंत आई पवन(झनक झनक पायल बाजे),6)सावरे सावरे(अंनुराधा),7)चिंगारी कोई भड़के (अमर प्रेम),छम छम बजे रे पायलिया (घूँघट ),झूमती चली हवा (संगीत सम्राट तानसेन ),कुहु कुहु बोले कोयलिया (सुवर्ण सुंदरी )
3)एसिडिटी –इस रोग के होने पर राग खमाज सुनने से लाभ मिलता हैं इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं 1)ओ रब्बा कोई तो बताए प्यार (संगीत),2)आयो कहाँ से घनश्याम(बुड्ढा मिल गया),3)छूकर मेरे मन को (याराना),4)कैसे बीते दिन कैसे बीती रतिया (ठुमरी-अनुराधा),5)तकदीर का फसाना गाकर किसे सुनाये ( सेहरा ),रहते थे कभी जिनके दिल मे (ममता ),हमने तुमसे प्यार किया हैं इतना (दूल्हा दुल्हन ),तुम कमसिन हो नादां हो (आई मिलन की बेला)
4)कमजोरी –यह रोग शारीरिक शक्तिहीनता से संबन्धित हैं इस रोग से पीड़ित व्यक्ति कुछ भी काम कर पाने मे खुद को असमर्थ महसूस करता हैं इस रोग के होने पर राग जय जयवंती सुनना या गाना लाभदायक होता हैं इस राग के प्रमुख गीत निम्न हैं मनमोहना बड़े झूठे(सीमा),2)बैरन नींद ना आए (चाचा ज़िंदाबाद),3)मोहब्बत की राहों मे चलना संभलके (उड़न खटोला ),4)साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं (चन्द्रगुप्त ),5)ज़िंदगी आज मेरे नाम से शर्माती हैं (दिल दिया दर्द लिया ),तुम्हें जो भी देख लेगा किसी का ना (बीस साल बाद )
5)याददाश्त –जिन लोगो की याददाश्त कम हो या कम हो रही हो उन्हे राग शिवरंजनी सुनने से बहुत लाभ मिलता हैं इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं,ना किसी की आँख का नूर हूँ(लालकिला),2)मेरे नैना(महबूबा),3)दिल के झरोखे मे तुझको(ब्रह्मचारी),4)ओ मरे सनम ओ मरे सनम(संगम ),5)जीता था जिसके (दिलवाले),6)जाने कहाँ गए वो दिन(मेरा नाम जोकर )
6)खून की कमी –इस रोग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का चेहरा निस्तेज व सूखा सा रहता हैं स्वभाव मे भी चिड़चिड़ापन होता हैं ऐसे मे राग पीलू से संबन्धित गीत सुनने से लाभ पाया जा सकता हैं | 1)आज सोचा तो आँसू भर आए (हँसते जख्म),2)नदिया किनारे घिर आए बदरा(अभिमान),3)खाली हाथ शाम आई हैं (इजाजत),4)तेरे बिन सुने नयन हमारे (लता रफी),5)मैंने रंग ली आज चुनरिया (दुल्हन एक रात की),6)मोरे सैयाजी उतरेंगे पार(उड़न खटोला),
7)मनोरोग अथवा डिप्रेसन –इस रोग मे राग बिहाग व राग मधुवंती सुनना लाभदायक होता हैं इन रागो के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं | 1)तुझे देने को मेरे पास कुछ नहीं(कुदरत नई),2)तेरे प्यार मे दिलदार(मेरे महबूब),3)पिया बावरी(खूबसूरत पुरानी),4)दिल जो ना कह सका (भीगी रात),तुम तो प्यार हो(सेहरा),मेरे सुर और तेरे गीत (गूंज उठी शहनाई ),मतवारी नार ठुमक ठुमक चली जाये(आम्रपाली),सखी रे मेरा तन उलझे मन डोले (चित्रलेखा)
8)रक्तचाप-ऊंच रक्तचाप मे धीमी गति और निम्न रक्तचाप मे तीव्र गति का गीत संगीत लाभ देता हैं ऊंच रक्तचाप मे “चल उडजा रे पंछी की अब ये देश ( भाभी ),ज्योति कलश छलके ( भाभी की चूड़ियाँ ),चलो दिलदार चलो ( पाकीजा ),नीले गगन के तले (हमराज़) जैसे गीत व निम्न रक्तचाप मे “ओ नींद ना मुझको आए (पोस्ट बॉक्स न॰ 909),बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दीवाना (जिस देश मे गंगा बहती हैं ),जहां डाल डाल पर ( सिकंदरे आजम ),पंख होती तो उड़ आती रे (सेहरा ) | शास्त्रीय रागो मे राग भूपाली को विलंबित व तीव्र गति से सुना या गाया जा सकता हैं |
9)अस्थमा –इस रोग मे आस्था–भक्ति पर आधारित गीत संगीत सुनने व गाने से लाभ होता हैं राग मालकोंस व राग ललित से संबन्धित गीत इस रोग मे सुने जा सकते हैं जिनमे प्रमुख गीत निम्न हैं तू छुपी हैं कहाँ (नवरंग),तू हैं मेरा प्रेम देवता(कल्पना),एक शहँशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल (लीडर),मन तड़पत हरी दर्शन को आज (बैजु बावरा ),आधा हैं चंद्रमा ( नवरंग )
10)सिरदर्द –इस रोग के होने पर राग भैरव सुनना लाभदायक होता हैं इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं मोहे भूल गए सावरियाँ (बैजु बावरा),राम तेरी गंगा मैली (शीर्षक),पूंछों ना कैसे मैंने रैन बिताई(तेरी सूरत मेरी आँखें),सोलह बरस की बाली उम्र को सलाम (एक दूजे के लिए )
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