मंगलवार, 15 जनवरी 2019

व्यापार में हो रहा है नुकसान तो करें यह उपाय


अपरिहार्य परिस्थितिवश यदि ऋण लेना ही है तो बुद्धवार को बुद्ध की होरा में ले सकते हैं. बहुत ही जल्दी उतर भी जायेगा.

किसी भी मंगलवार से मंगल की होरा में अपने कर्ज़े उतारने के शुरुआत कीजिये. आपको पता भी नहीं चलेगा कि कैसे और कब आप ऋणमुक्त हो भी गये.

गुरु अकेला द्वितीय, पंचम और सप्तम भावस्थ हो तो धन, पुत्र और स्त्री के लिए सर्वदा अनिष्टकारक होता है. जिस भाव का जो ग्रह माना गया है, यदि वह अकेला उस भाव में हो तो उस भाव को बिगाड़ता है.

निवासकर्ता की नाम राशि से गांव की राशि यदि 2, 5, 9, 10, 11वीं हो तो उत्तम तथा 1, 3, 4, 7वीं हो तो सम तथा 6, 8 व 12वीं हो तो निषिद्ध समझना चाहिए। इसी तरह काकिणी, नराकृति आदि विचारों के द्वारा भी शुभकारक गांव का चयन करना चाहिए।

यदि किसी व्यक्ति का व्यापार न चल रहा हो, या घाटे-नुकसान में घिसट रहा हो, तो यह उपाय शुक्लपक्ष के किसी भी शुक्रवार को सूर्योदय से दो घन्टे चौबीस मिनट के भीतर कर सकते हैं. प्रातः स्नान से निवृत होकर अपने इष्ट्देव अथवा देवी माँ की विधिवत पूजा करे और खोये के पेड़ों का भोग लगाये. इसके पश्चात् खोये के पेड़ों का प्रसाद स्वयं न खाकर, अपने कर्मचारिओं को एक रूपए के सिक्के सहित बांटे. प्रसाद, व्यक्ति की धर्मपत्नी अथवा माता जी बांटे. इस दिन घर के अन्य सदस्य अपना आहार-विहार पूर्णतयः सात्विक रखें. कैसा और कितना जल्द काया-कल्प होगा।

लग्न में राहु और सप्तम भाव में केतु हो और अन्य ग्रह इन दोनों के मध्य भावस्थ हों तो इसके कारण व्यक्ति निरन्तर मानसिक रूप से अशान्त रहता है. जीवन में अस्थिरता, कपट-बुद्धि, प्रतिष्ठा-हानि, वैवाहिक जीवन का दुःखमय होना, इत्यादि प्रभाव देखने को मिलते हैं. व्यक्ति को कामयाबी हासिल करने के लिए काफी स्ट्रगल करना पड़ता है.
उपाय : गले में हमेशा चांदी का चौकोर टुकड़ा अपने क्षेम नक्षत्रानुसार पूर्ण विधि-विधान एवं अनुकूल मुहूर्त में अपने दैवज्ञ ज्योतिषी के निर्देशानुसार धारण करें. समय तो लगेगा, लेकिन इन दुश्वारियों से छुटकारा निश्चित ही मिल जायेगा.

जान जोखिम में न डालें तो बेहतर

इस बात का हमेशा ख्याल रखें कि नवमी और चतुर्दशी (कृष्ण और शुक्ल - दोनों पक्ष की) तिथि को, अमावस्या और पूर्णिमा को, सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण वाले दिन से एक दिन पूर्व और एक दिन बाद तक के तीन दिवस, मंगल जिस दिन राशि-परिवर्तन कर रहे हों, शनि जिस दिन वक्री हो रहे हों अथवा मार्गी हो रहे हों, जिस दिन मंगल-शनि की युति हो रही हो अथवा एक-दूजे को सप्तम दृष्टि से देख रहे हों, चन्द्र्मा अष्टम भावस्थ हो - इन दिनों को हमेशा के लिये किसी भी प्रकार की यात्रा हेतु ब्लैक-लिस्टेड कर दीजिये.



यह लेख विश्वजीत बब्बल वैदिक काउंसलर के फेसबुक पोस्ट से लिया गया है. वे वास्तु और ज्योतिष की बहुत अच्छी जानकारी रखते हैं. उन्होंने अपनी जानकारी के आधार पर कई लोगों के परेशानिया दूर की है. यह अपने अनुभव को भी समय समय पर लोगों से शेयर करते हैं. आप इनसे सशुल्क परामर्श ले. सकते हैं. आप उनसे फेसबुक के द्वारा सम्पर्क कर सकते हैं. इस सेवा का लाभ जरुर लें. 
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कौन सा शहर आपको लाभ देगा या हानि जाने ऐसे

जिस गांव या नगर में हम बसने जा रहे हैं उसके पहले यह जान लेना आवश्यक है कि वह गांव या नगर वास्तु शास्त्र के अनुरूप प्रतिष्ठित है या नहीं। अर्थात उपयुक्त दिशा व उपयुक्त स्थानों में उस गांव में देव मंदिरों की स्थिति, विभिन्न जाति वर्णों के अनुसार वासव्यवस्था तथा जलाशय आदि की व्यवस्था वास्तु के अनुरूप है या नहीं। जो गांव वास्तुशास्त्र के अनुरूप है वहीं बसने के लिए भूमि का चयन करना चाहिए। इसके बाद वह गांव किसके लिए अनुकूल है और किसके लिए प्रतिकूल यह भी जान लेना चाहिए। निवासकर्ता की नाम राशि से गांव की राशि यदि 2, 5, 9, 10, 11वीं हो तो उत्तम तथा 1, 3, 4, 7वीं हो तो सम तथा 6, 8 व 12वीं हो तो निषिद्ध समझना चाहिए। इसी तरह काकिणी, नराकृति आदि विचारों के द्वारा भी शुभकारक गांव का चयन करना चाहिए।

जानिए धन-ऋण संबंधी कांकणी विचार---

इस सूत्र द्वारा भूमि चयन करने के लिए सर्वप्रथम उपर्युक्त द्वितीय विधि से अपने नाम और वांछित नगर के नाम का वर्ग जान लेना चाहिये।इसके बाद धन-ऋण का विचार करना चाहिये।
यथा- नागेश का नाम-वर्गांक हुआ- ५ एवं पटना का ग्राम वर्गांक हुआ- ६
अब इन दो अंकों से क्रमशः दो बार क्रिया करके धन-ऋण की जानकारी करेंगे।
यथा- १. (नाम × २ + ग्राम) ÷ ८ = नाम कांकणी
२. (ग्राम × २ + नाम) ÷ ८ = ग्राम कांकणी
अब, (नागेश- ५ × २ + पटना- ६) ÷ ८ = शेष 0 नाम कांकणी
(पटना- ६ × २ + नागेश- ५) ÷ ८ = शेष १ ग्राम कांकणी
यहाँ हम देखते हैं कि नाम की काकिणी कम है, ग्राम की कांकणी से।परिणाम यह होगा कि पटना नगर नागेश के लिये हमेशा आर्थिक दृष्टि से हानिकारक होगा। इसी सूत्र से विचार करने का एक और तरीका ऋषियों ने सुझाया है,जिसमें संख्यायें तो वे ही होंगी, किन्तु गणना भिन्न रीति से करना है।
अंकस्य वामागति - गणितीय सूत्रानुसार नाम-ग्राम,और ग्राम-नाम की स्थापना करे।पूर्व रीति से आठ का भाग देकर शेष का फल विचार करे।यथा-
नाम-ग्राम- ६५ ÷ ८ = शेष १ नाम काकिणी अथवा नाम ऋण
ग्राम-नाम- ५६ ÷ ८ = शेष ० ग्राम काकिणी अथवा नाम धन
इस तरह से धन-ऋण की अधिकता का विचार करेंगे।उपर के उदाहरण में नाम का धन ० है,और ऋण १ है।अतः नागेश के लिये पटना में रहना आर्थिक रूप से हानिकारक होगा।
उक्त दोनों उदाहरण मूलतः एक ही सूत्र की, अलग-अलग ऋषियों की व्याख्यायें हैं।अतः किसी संशय की बात नहीं।

जानिए की कैसे करे काकिणी विचार या प्रयोग ???

अवर्ग, कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, यवर्ग व शवर्ग ये आठ वर्ग हैं। यहां अवर्ग आदि गणना क्रम से वासकर्ता के नाम की संख्या जो हो उसे दो गुना कर गांव वर्ग संख्या को उसमें जोड़ दें और उसमें आठ का भाग देने पर जो शेष बचता है वह गांव की काकिणी होती है। इसके बाद वासकर्ता और गांव के काकिणी का अंतर करने पर जिसकी काकिणी अधिक बचती है वह अर्थदायक होता है।
नराकृतिचक्र विचार: ---

यहां सर्वप्रथम एक नराकार ग्राम शुभाशुभ ज्ञानबोधक चक्र लिखना चाहिए। इसके पश्चात ग्राम नक्षत्र से व्यावहारिक नाम नक्षत्र तक गिने। अब नराकृति चक्र से मस्तक में पांच नक्षत्र लिखें। यहां यदि गृह स्वामी का नाम नक्षत्र हो तो वह ग्राम धनादि लाभकर होता है।

उसके बाद तीन नक्षत्र मुख में लिखें, मुख में नाम नक्षत्र के होने से वासकर्ता की धनहानि होती है। इसी तरह कुक्षि आदि में नक्षत्रों का न्यास कर फल का विचार करना चाहिए।

इस तरह वास्तुशास्त्रानुसार ग्राम का चयन कर उसमें किस दिशा में वास्तु का चयन करें, यह विचार करना चाहिए। जैसे गृहपति का नाम वर्गांक, ग्रामवर्गांक तथा दिशावर्गांक इन तीनों वर्गांकों का योग कर नौ से भाग देकर जो एक आदि शेष बचे उसका निम्प्रकार से उद्वेग आदि फल समझना चाहिए-

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