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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

अचूक उपाय: न होगा आपरेशन न दर्द आसानी से हो जाएगी डिलेवरी

 मां होने का एहसास हर औरत के लिए बहुत खास होता है। लेकिन डिलेवरी के समय होने वाला दर्द बहुत अधिक होता है अगर ये दर्द कम हो जाए तो मां बनने का दर्द और भी अधिक सुखद हो सकता है। इसीलिए डिलेवरी  से पहले यानी गर्भावस्था के दौरान बद्धकोणासन करें। इस आसन से प्रसव पीड़ा कम होती है। साथ ही यह आसन पुरुष भी कर सकते हैं जिससे शरीर के कई रोग दूर होते हैं।



बद्धकोणासन की विधि-



समतल स्थान पर कंबल या अन्य कोई कपड़ा बिछाकर दोनों पैरों को सामने की ओर करके बैठ जाएं। फिर दोनों घुटनों को मोड़ते हुए पैरों के पास ले आएं और दोनों पैरों के तलवें आपस में मिलाएं। दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में जोड़ लें। पैरों की उंगुलियों को दोनों हाथों से पकड़ लें और रीढ़ को सीधा रखें जैसे तितली आसन में बैठा जाता है। बाजू को सीधा करें और पैरों को ज्यादा से ज्यादा पास लाने का प्रयास करें जिससे आपका शरीर तन जाए।



यह इस आसन की प्रारंभिक स्थिति है। गहरी सांस भरें और सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे कमर से आगे इस प्रकार झुकें कि रीढ़ और पीठ की माँसपेशियों में खिंचाव बना रहे। प्रयास करें की आपका सिर जमीन से स्पर्श हो जाए। अगर ये संभव ना हो तो अपनी ठुड्डी को पैरों के अंगूठे से सांस को सामान्य कर लें। अंत में सांस भरते हुए वापस प्रारंभिक स्थिति में आ जाएं. दो या तीन बार इस आसन का अभ्यास करें।



बद्ध कोणासन की प्रारंभिक स्थिति तितली आसन जैसी ही है। गर्भवती महिलाएं इन दोनो आसनों का अभ्यास योग शिक्षक की सलाह लेकर पहले 6 महीने तक कर सकती है।



गर्भवती महिलाएं विशेष ध्यान रखें कि वे बद्ध कोणासन में आगे की तरफ ना मुड़ें। उन्हें केवल बैठने का अभ्यास ही करना है और रीढ़ को सीधा रखना है ठीक उसी तरह जिस तरह तितली आसन में बैठा जाता है।



इसके अतिरिक्त पद्मासन में बैठकर पर्वतासन का अभ्यास करना भी सरल है। वैसे सभी वर्ग के लोग पर्वतासन का अभ्यास कर सकते हैं।



बद्ध कोणासन के लाभ-



जो बद्ध कोणासन का अभ्यास करते हैं उन्हें किडनी, यूरीनरी ब्लैडर और प्रोस्टेट की समस्या नहीं होती।बद्ध कोणासन श्याटिका के दर्द को दूर करने में सहायक है। जो इस आसन का नियमित अभ्यास करते हैं उन्हें भविष्य में हर्निया की समस्या भी नहीं होती। गर्भवती महिलाएं भी बद्ध कोणासन को नियमित रूप से एक या दो मिनट तक बैठने का अभ्यास कर सकती हैं। गर्भवती महिलाएं सिर्फ बैठने का ही अभ्यास करेंगी, आगे की ओर बिल्कुल नहीं झुकेंगी। इस आसन के अभ्यास से प्रसव के दौरान कम से कम पीड़ा होगी।

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

थकान और वर्कलोड से परेशान लोग एक बार जरूर करें ये अनोखा काम


काम के बहुत अधिक बोझ व सही समय पर संतुलित खाना न होने से। अधिकांश लोगों के साथ थकान की समस्या बनी रहती है।ऑफिस कार्य ज्यादातर बैठे रहने वाला होता है ऐसे में बैठे-बैठे भी थकावट महसूस होने लगती है। थकान से कई अन्य समस्याएं शुरू हो जाती है शरीर की रोगप्रतिरोधी क्षमता घटती जाती है। इन सभी से बचने के लिए जरूरी है कुछ व्यायाम जरूरी है। थकान से बचने के लिए सबसे सरल और कारगर उपाय है भूनमनासन। इस आसन से कुछ ही दिनों में आपकी थकान दूर हो जाएगी और हर कार्य पूरी स्फूर्ति के साथ कर सकेंगे।यह आसन कमर और रीढ़ के लिए काफी लाभदायक है। इसमें हम शरीर को पीछे या आगे की ओर न झुकाकर दाएं या बाएं घुमाते हैं। इससे लंबे समय तक बैठने या खड़े होने से आई थकावट दूर होती है। भूनमनासन की विधि- समतल स्थान पर कंबल आदि बिछाकर बैठ जाएं। दोनों पैर सामने रखें। शरीर को सीधा रखकर सांस भरिए। कमर से ऊपर के भाग को सीधे हाथ की ओर मोड़ें और दोनों हथेलियों को जमीन पर दाहिनी तरफ रखें। अब सांस छोड़ते हुए अपने सिर को जमीन से छूने का प्रयास करें। इस स्थिति में कुछ क्षण रुके। सांस सामान्य रखें। इसके बाद सांस भरते हुए शरीर को ऊपर की ओर लाएं और सांस को छोड़ते हुए शरीर को सीधा कर लें। ऐसे ही दूसरी और से इस प्रक्रिया को करें। 
भूनमनासन के लिए सावधानियां

- इस आसन को सभी आसनों के अंत में करें।

- भू-नमनासन करते समय अपना ध्यान पीठ और कंधे की मांसपेशियों पर लगाकर रखें।

- आसन के दौरान कोशिश करें कि रीढ़ की हड्डी सीधी रहे और शरीर का वजन हाथों पर आए।

- इससे रीढ़ की हड्डी और कमर के निचले हिस्से का तनाव कम होता है।

- गर्भवती महिलाएं शुरूआत के तीन महीनों तक इस आसन का अभ्यास कर सकती हैं। इसके बाद इस आसन को न करें।

- जिन लोगों को हार्नियां और अल्सर की परेशानी हो वे भी इस आसन को न करें।

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

एक आसान उपाय: इससे कब्ज दूर होगी और खुलकर भूख लगने लगेगी


शरीर में पर्याप्त ऊर्जा के लिए सही समय पर पर्याप्त संतुलित आहार लेना जरूरी है। अगर आपके साथ ये समस्या है कि कार्य की अधिकता के चलते खाना-पीना कुछ याद नहीं रहता। ऐसे में खाने का सही समय निर्धारित न होने पर कुछ ही दिनों कम खाने की आदत पड़ जाती है, ठीक से भुख नहीं लगती। यदि आप फिर से अपनी भूख को बढ़ाने चाहते हैं तो धनुरासन आपके लिए सर्वोत्तम उपाय है।
धनुरासन की विधि- किसी समतल और शुद्ध वातावरण वाले स्थान पर कंबल या अन्य को सुविधाजनक आसन बिछा लें। अब मुंह के बल या पेट के बल लेट जाएं। इसके बाद अपने दोनों हाथों को बगल में सटाकर पूरे शरीर के नसों को बिल्कुल ढीला छोड़ दें। इसके बाद अपने दोनों एड़ी व पंजों को आपस में मिलाते हुए घुटनों के बीच फासला रखते हुए पैरों को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाते हुए सिर की तरफ मोड़ें तथा दोनों पैरों को एड़ी के पास से दोनो हाथों से पकड़ लें। हाथों पर जोर देकर पैरों को खिचंते हुए अपने सिर, छाती तथा जांघों को जितना संभव हो उतना ऊपर की ओर उठाने का प्रयास करें और दोनों हाथों को बिल्कुल सीधा रखें। इस स्थिति में तब तक रहें, जब तक आप रह सकें और सांस कुछ देर रोककर रखें। फिर धीरे-धीरे सांसों को छोड़ते हुए सामान्य स्थिति में आ जाएं।
धनुरासन के लाभ- यह आसन सभी योगासनों में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस आसन के कई लाभ हैं। धनुरासन से शलभासन और भुजंगासन का लाभ भी मिलता है। यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है, जिससे व्यक्ति का जवानी अधिक समय तक रहता है। यह शरीर की जोड़ों को मजबूत करता है। इस आसन को करने से टली हुई नाभि सामान्य स्थिति में आ जाती है। यह कमर दर्द व गर्दन के दर्द के लिए भी लाभकारी है। यह आसन गर्दन, छाती व फेफड़े को शक्तिशाली व क्रियाशील बनाता है। कंधे को मजबूत व छाती को चौड़ा व ताकतवर बनाता है। यह आसन पेट की अधिक चर्बी को कम करता है। इससे पेट के विकार दूर कर पेट से सम्बन्धित रोगों को खत्म करता है और हमसे दूर रखता है। पाचन शक्ति को बढ़ाता है और भूख को बढ़ाता है। यह आसन श्वास की बीमारियों के लिए भी लाभकारी है। यह सांसों की क्षमता को बढ़ाता है। इस आसन को करने से कब्ज दूर होता है। मधुमेह के रोगी को धनुरासन का अभ्यास करना अधिक लाभकारी होता है। यह कब्ज को दूर करता है और भूख को बढ़ाता है। यह गठिया, मर्दाग्नि, अजीर्ण, जिगर की कमजोरी आदि को खत्म करता है। यह आतों के सभी रोग, गला, छाती व पसली आदि सभी रोगों को दूर करता है। यह रक्त प्रवाह को तेज करता है और खून को शुद्ध करता हैं।
स्त्रियों के लिए भी लाभकारी -  धनुरासन स्त्रियों से संबंधित बीमारियों के लिए कारगर उपाय है। इससे प्रसव के बाद पेट पर पडऩे वाली झुर्रियों दूर होती है। यह मासिक धर्म, गर्भाशय रोग, तथा डिम्ब ग्रन्थियों के रोगों को खत्म करता है।

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

सरल इलाज: परेशान नहीं करेगा सिरदर्द, बिना दवा के ही ठीक हो जाएगा

सिरदर्द एक आम समस्या है जिसके कई कारण हो सकते हैं। थोड़े समय तक या हल्का सिरदर्द तो किसी को भी हो सकता है। लेकिन अगर सिरदर्द बार-बार होता है तो आगे चलकर यह कई बीमारियों का कारण बन जाता है। अगर आप भी बार-बार होने वाले सिरदर्द से परेशान हैं तो नीचे लिखे आसनों को नियमित रूप से करें।

 विधि

ध्यान-  इस आसन में सबसे पहले पद्मासन की मुद्रा में बैठें। दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा में होंगे। आंखें बंद, गर्दन बिल्कुल सीधी रखें। चित्त बिल्कुल शांत करें और श्वास, प्रश्वास और प्रश्वसन आसन में बैठ जाएं।

योग मुद्रा- दोनों पैरों को एक-दूसरे के ऊपर रखकर पद्मासन की मुद्रा में आ जाएं। दोनों हाथों को  पीछे ले जाकर कलाइयां पकड़ लें। उसके बाद धीरे-धीरे कमर को आगे की ओर झुकाते हुए अपनी ठोड़ी को जमीन पर लगाने की कोशिश करें। 

चन्द्रभेदी प्राणायाम- पद्मासन में बैठें। गर्दन, कमर बिल्कुल सीधी रखें। दायें हाथ के अंगूठे से दाहिनी नाक को बंद करें। फिर नाक के बाएं छिद्र से सांस भरें और दाएं हाथ की उंगलियों से नाक को बंद करते हुए दाईं और से श्वास बाहर निकालें। इस प्राणायाम को 12-15 बार करें। 

पवनमुक्त आसन- सबसे पहले पीठ के बल लेट जाइए। उसके बाद दायीं टांग को घुटनों से मोड़ते हुए अपनी छाती से लगाने का प्रयास करें। दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में मिला लें और ठोड़ी को घुटनों से मिलाने की कोशिश करें। बायीं टांग जमीन पर सीधी रहेगी। कुछ देर इसी मुद्रा में रहें। इसी प्रकार इस आसन को बायीं टांग से करें। इस आसन को कम से कम पांच बार दोहराएं। 

वज्रासन- घुटनों को मोड़कर अपने शरीर का पूरा भार अपने दोनों पैरों की एडिय़ों पर रखकर बैठ जाएं। दोनों पैरों के पंजे आपस में मिले हों और दोनों एडिय़ां आपस में जुड़ी नहीं हों। दोनों हाथ घुटनों पर रखें। गर्दन, कमर और कंधे बिल्कुल सीधे और आंखें खुली रखें। इस आसन में कम-से-कम पांच मिनट तक बैठें।

शवासन-  इसमें पीठ के बल लेट जाएं। दोनों पैरों के बीच एक से दो फुट का फासला रखें। दोनों हाथ जांघों के पास और दोनों हथेलियां ऊपर की ओर हों। इस आसन में हम अपने पूरे शरीर को आराम देते हैं और अपना सारा ध्यान सांस लेने और छोडऩे में लगाते हैं। इससे हम अपने अंतर्मन से शरीर के एक-एक अंग का अवलोकन करते हैं।



सावधानी-दमा, ब्रॉन्काइटिस, निम्न रक्तचाप के रोगी व गर्भवती महिलाएं ये आसन ना करें।

सोमवार, 30 जनवरी 2012

खराब फिगर को परफेक्ट बनाना है तो अपनाएं ये प्रयोग

महिला हो या पुरुष सुडौल शरीर किसी के भी सौन्दर्य को और अधिक बड़ा देता है। कई बार परफेक्ट फिगर न होना भी कान्फिडेन्स में कमी का कारण बन जाता है विशेषकर महिलाओं में । इसी कारण से कई बार उनमें हीन भावना विकसित हो जाती है। सही योगासन और मुद्राओं के आदि नियमित अभ्यास से महिलाएं अपना पूर्ण सौंदर्य प्राप्त कर सकती हैं। यहां हम एक मुद्रा जिसे हस्तपाद मुद्रा कहते हैं की जानकारी दे रहे हैं। इस मुद्रा के नियमित प्रयोग से स्त्रियों का शारीरिक सौंदर्य पूर्ण विकसित हो जाता है। शरीर के अंगों में कसावट आ जाती है।





हस्तपाद मुद्रा बनाने का तरीका



इस मुद्रा के अभ्यास के लिए किसी आरामदायक स्थान पर बैठ जाएं। अब दोनो हाथों की हथेलियों को पीछे की ओर से आपस में जोड़ लें। हाथों की सभी उंगलियां आपस में मिल जाती है इसे हस्तपात मुद्रा कहा जाता है।



हस्तपाद मुद्रा के लाभ



इस मुद्रा से सांस के रोग, गले के रोग जैसे- दर्द, सूजन या टॉन्सिल आदि में काफी आराम मिलता है। इसके नियमित अभ्यास से ये रोग आपसे दूर ही रहेंगे।



हस्तपाद मुद्रा स्त्रियों के लिए बहुत ही ज्यादा लाभकारी है। जिन स्त्रियों का शरीर ठीक से विकसित नहीं हुआ है या शरीर ढीला पड़ गया है उनके लिए यह मुद्रा बेहद लाभदायक है। इसके नियमित इस्तेमाल से स्त्रियां सुंदर सुड़ौल और स्वस्थ हो जाती हैं। स्त्रियों का फिगर आकर्षक हो जाता है।



इस मुद्रा से क्यों बढ़ती है सुंदरता



हस्तपाद मुद्रा से स्त्रियां की सुंदरता बढ़ती हैं क्योंकि हमारी कलाइयों के पीछे की मांसपेशियों का संबंध शरीर के कई अंगों से होता है। इस मुद्रा के माध्यम से वे मांसपेशियां एक्टिव हो जाती है और शरीर के अंगों में कसावट लाती है।

रविवार, 29 जनवरी 2012

खाने के बाद बस कुछ देर ऐसे बैठें तो पेट की सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी

अगर आप गैस, एसीडिटी या पेट से जुड़ी अन्य किसी समस्या से परेशान हैं? पाचनतंत्र से जुड़ी इन समस्याओं के कारण आपको पेट का दर्द आए दिन परेशान करता रहता है तो नीचे लिखी विधि से बताया गया योगासन दस मिनट करें। पेट से जुड़ी सारी समस्याएं अपने आप दूर हो जाएंगी।

वज्रासन के अतिरिक्त अन्य सभी योगासन खाने के पूर्व ही किए जाते हैं वज्रासन ही एक मात्र ऐसा आसन हैं जो खाने के बाद किया जाता है। वज्रासन हमारा पाचन तंत्र व्यवस्थित रखता है। इसी लिए प्रतिदिन खाने के बाद कुछ समय वज्रासन अवश्य करें।



वज्रासन करने की विधि



खाने के कुछ पश्चात समतल स्थान पर कंबल आदि बिछाकर घुटनों को मोड़कर इस तरह से बैठें कि नितंब दोनों एडिय़ों के बीच में आ जाएं, दोनों पैरों के अंगूठे आपस में मिले रहें और एडिय़ों में अंतर भी बना रहे। दोनों हाथों को घुटनों पर रखें। पीछे की ओर न झुकें और शरीर को सीधा रखें। हाथों और शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ दें और कुछ देर के लिए अपनी आंखें बंद कर लें। अपना ध्यान सांस की तरफ बनाए रखें। धीरे-धीरे आपका मन भी शांत हो जाएगा। इस आसन में पाँच मिनट तक बैठना चाहिए।



वज्रासन के लिए सावधानियां



वज्रासान में अगर पैरों या टखनों में अधिक खिंचाव और तनाव हो रहा हो तो दोनों पैरों को सामने की ओर फैलाकर बैठें और पैरों को बारी-बारी से घुटने से ऊपर नीचे हिलाएं। वे लोग वज्रासन न करें जिनके घुटने कमजोर हैं जिन्हें गठिया है या फिर जिन्हें हड्डियों से संबंधित कोई बीमारी हो।



वज्रासन के लाभ



- इस आसन से रक्त का संचार नाभि केंद्र की ओर रहता है जिससे पाचन तंत्र व्यवस्थित होता है और पेट की कई छोटी-बड़ी बीमारियां दूर रहती हैं।



- यह आसन महिलाओं के लिए काफी फायदेमंद है। इस आसन से महिलाओं की मासिक धर्म की अनियमितता से संबंधित समस्याएं दूर होती हैं।

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

सिर्फ दस मिनट का प्रयोग और सर्दी में घूम सकेंगे बिना स्वेटर


ठंड का मौसम चरम पर है। सर्दी की बढ़ती ठिठूरन और घटते टेम्परेचर से लोग परेशान हैं। ऐसे में ठंड से बचने के लिए स्वेटर, शॉल, टोपी स्कार्फ व मोजे इन सभी चीजों का इस्तेमाल किया जा रहा है। आखिर करें भी तो क्या और कोई तरीका भी तो नहीं इस ठंड से बचने का? अगर आप भी कुछ ऐसा ही सोचते हैं तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं, एक ऐसे प्राणायाम के बारे में जिसे रोजाना करने से आपको ठंड में भी स्वेटर की जरुरत ही महसूस नहीं होगी। इस प्राणायाम को उज्जायी प्राणायाम कहा जाता है।

उज्जायी प्राणायाम विधि - सुविधाजनक स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर बैठ जाएं। अब गहरी सांस लें। कोशिश करें कि पेट की मांसपेशियां प्रभावित न हो। गला, छाती, हृदय से सांस अंदर खींचे। जब सांस पूरी भर जाएं तो जालंधर बंध लगाकर कुंभक करें। (जालंधर बंध और कुंभक के संबंध में लेख पूर्व में प्रकाशित किया जा चुका है।) अब बाएं नासिका के छिद्र को खोलकर सांस धीरे-धीरे बाहर निकालें।

सांस भरते समय श्वांस नली का मार्ग हाथ से दबाकर रखें। जिससे सांस अंदर लेते समय सिसकने का स्वर सुनाई दे। उसी प्रकार सांस छोड़ते समय भी करें।उज्जायी प्राणायाम को बैठकर या खड़े होकर भी किया जा सकता है। कुंभक के बाद नासिका के दोनों छिद्रों से सांस छोड़ी जाती है। प्रारंभ में इस प्राणायाम को एक मिनिटि में चार बार करें। अभ्यास के साथ ही इस प्राणायाम की संख्या बढ़ाई जाना चाहिए।



प्राणायाम के लाभ



यह प्राणायाम सर्दी में काफी लाभदायक सिद्ध होता है। इस प्राणायाम के अभ्यास कफ रोग, अजीर्ण, गैस की समस्या दूर होती है। साथ ही हृदय संबंधी बीमारियों में यह आसन बेहद फायदेमंद है। इस प्राणायम को नियमित करने से ठंड के मौसम का भी ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है।
 

बुधवार, 11 जनवरी 2012

बिना पैसे की ये दवा खूबसूरती को कर देगी सौ-गुना

हर व्यक्ति चाहता है कि उसका व्यक्तित्व आकर्षक हो, कोई भी उससे मिले तो प्रभावित हो। इसके जरूरी है कि आप हर पल ऊर्जावान और जोश से भरपूर दिखाई दें आपके चेहरे पर हमेशा चमक बनी रहे।मुरझाया हुआ चेहरा किसी को आकर्षित नहीं सकता। परंतु आजकल की दौड़भाग भरे जीवन में खुद को हमेशा ऊर्जावान बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है। तो आकर्षक व्यक्तित्व के लिए प्रतिदिन कुछ समय ध्यान अवश्य करें साथ ही नटराज आसन व हंसासन करें। 



नटराज आसन-

समतल स्थान पर कंबल आदि बिछाकर दोनों पैर मिलाकर खड़े हो जाएं। इसके बाद बाएं पैर पर संतुलन बनाते हुए दाएं पैर को पीछे की ओर जितना अधिक से अधिक संभव हो ऊपर उठाएं। अब दाएं हाथ को पीछे करके ऊपर उठे दाएं पैर के टखनों को पकड़ लें। सिर को सीधा करके दाएं हाथों को ऊपर की ओर नाक के सीध में रखें। सांस सामान्य रखें। आसन की इस स्थिति में शरीर का संतुलन जितने देर तक बनाकर रखना सम्भव हो बनाकर रखें और सामान्य स्थिति में आ जाएं। इसके बाद सीधे होकर यह क्रिया दूसरे पैर से भी करें। इस क्रिया को दोनो पैरों से बदल-बदल कर करें।



 हंसासन- समतल स्थान पर कंबल आदि बिछाकर घुटनों के बल बैठ जाएं। अब दोनों हाथों को फर्श पर टिकाकर रखें। अंगुलियों को आगे की ओर करके व अंगुलियों को खोलकर रखें। दोनों हाथों के बीच 10 इंच की दूरी रखें। अब घुटनों को मोड़कर आगे की ओर और कोहनियों को मोड़कर पीछे की ओर करें। इसके बाद धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए दोनों हथेलियों पर जोर देकर अपने शरीर के पिछले भाग को ऊपर उठाएं तथा शरीर का पूरा भाग हथेलियों पर रखकर संतुलन बनाएं। अब गर्दन को आगे की ओर झुकाकर शरीर का आकार पक्षी की तरह बनाएं। इस स्थिति में 10 से 30 सैकेण्ड तक रहें और इस क्रिया को 2 से 3 बार करें। शुरु में यह अभ्यास कठिन होता है, परन्तु प्रतिदिन अभ्यास करने से यह सरल हो जाता है। आसन करते समय रखें सावधानी: इस आसन का अभ्यास शुरु में करना कठिन होता है। इस आसन की सभी क्रिया धीरे-धीरे करें तथा सांस लेने व छोडऩे की क्रिया सामान्य रुप से करें। आसन के लाभ: इस आसन से हाथ व पैरों की मांसपेशियां मजबूत होती है तथा गर्दन का मोटापा कम होता है। इस से छाती मजबूत, तथा शरीर शक्तिशाली बनता है। इस आसन से चेहरे पर तेज, चमक तथा शरीर में स्फूर्ति व ताजगी आती है। नाड़ी-तंत्र (स्नायु तंत्र) सही रुप से काम करने लगता है, जिससे रक्त संचार (खून का बहाव) तेज हो जाता है।



सीत्कारी प्राणायाम-

सीत्कारी प्राणायाम में सीत्कार का शब्द करते हुए सांस लेने की क्रिया होती है। इस प्राणायम में नासिका से सांस नहीं ली जाती है बल्कि मुंह के होठों को गोलाकार बना लेते हैं और जीभ के दाएं और बाएं के दोनों किनारों को इस प्रकार मोड़ते हैं कि जीभ का का आकार गोलाकार हो जाए। इस गोलाकार जीभ को गोल किए गए होठों से मिलाकर इसके छोर को तालू से लगा लिया जाता है। अब सीत्कार के समान आवाज करते हुए मुख से सांस लें। फिर कुंभक करके नासिका के दोनों छिद्रों से सांस छोड़ी जाती है। पुन: इस क्रिया को दोहराएं। इसे बैठकर या खड़े होकर भी किया जा सकता है।इस प्राणायाम से चेहरे पर तेज, चमक आती है।

सोमवार, 9 जनवरी 2012

आसान उपाय: कमर दर्द से मिलेगा छुटकारा, नहीं रहेगी दवा की दरकार

महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कमर दर्द अधिक परेशान करता र्है। वैसे तो कमर दर्द के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन अधिकांशत: मांसपेशियों में खिंचाव और रीढ़ की हड्डी में दर्द के चलते कमर दर्द होता है। लेकिन इस दर्द के कारण कई अन्य दिक्कतें भी हो सकती हैं। लेकिन दवाओं से हमेशा के लिए कमर दर्द से  छुटकारा पाना संभव नहीं है। अगर आपके साथ भी कमर दर्द की समस्या है, तो नीचे लिखे योगासनों को नियमित रूप से करें जल्द ही कमर दर्द से छुटकारा मिल जाएगा।

पवन मुक्तासन 

कमर के बल लेटें। दाएं घुटने को हाथों से पकड़ कर जंघा को पेट पर दबाते, सांस छोड़ते हुए घुटने को सीने के पास ले आएं। ठोड़ी को घुटने से छूने का प्रयास करें। बायां पैर जमीन पर सीधा टिका रहे। श्वास भरते हुए पैर व सिर को वापस जमीन पर लाएं। ऐसे ही बाएं पैर से करें व फिर दोनों पैरों से। इसे पांच बार दोहराएं। यह क्रियाएं रीढ़ की हड्डी को लचीला व मजबूत बनाएंगी।

तानासन 

जमीन पर आसन बिछाएं व कमर के बल उस पर लेट जाएं। एड़ी-पंजे मिले रहें व हथेलियां जमीन पर जंघाओं की बगल में टिकी रहें। श्वास भरते हुए हाथों को सिर के ऊपर ले जाएं और हथेलियां आपस में जोड़ लें। पूरे शरीर में खिंचाव महसूस करें। कमर से ऊपर का भाग ऊपर की ओर खींचें व नीचे का नीचे की ओर। फिर धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए हाथों को वापस ले आएं। 

सर्पासन 

पेट के बल लेट जाएं। पैरों को पीछे की ओर खींचें व एड़ी-पंजे मिलाए रखें। सांप की पूंछ की तरह। हथेलियों व कोहनियों को पसलियों के पास लाएं। ऐसे कि हथेलियां कंधों के नीचे आ जाएं और सिर जमीन को छुए। आंखें बंद रखें। चेहरा व सीना ऊंचा उठाएं, कमर के वजन पर सांप की तरह। इस स्थिति में जब तक हो सके, बनी रहें। फिर धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए जमीन पर वापस आ जाएं। विश्राम करें, हथेलियां सिर के नीचे टिका दें।

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

दस मिनट का सरल प्रयोग: इससे दिमाग चलने नहीं दौडऩे लगेगा


शरीर को सुंदर बनाए रखने के लिए हम सब क्या कुछ नहीं करते हैं। लेकिन बिना स्वस्थ मस्तिष्क के सुंदरता का कोई महत्व नहीं रह जाता है। इसलिए सुंदरता को सम्मान तभी मिलता है, जब उसके साथ तेज दिमाग भी होता है। जब हम सुंदरता के लिए इतने जतन करते हैं, तो दिमाग के साथ बेरुखी क्यों? हम सभी जानते हैं कि शरीर को फिट रखने के लिए योगा या एक्सरसाइज बहुत जरूरी है। ऐसे ही अगर आप अपने दिमाग को हमेशा फिट और तेजतर्रार बनाएं रखना चाहते हैं, तो रोज दस मिनट तक नीचे लिखा योगासन कर सकते हैं।

  भद्रासन विधि- आसन बिछाकर बैठ जाएं। दाहिना पैर घुटने से मोड़कर एड़ी उपस्थ और गुदा के मध्य के दाहिने भाग में और बायां पैर मोड़कर एड़ी सीवन के बायें भाग में इस प्रकार रखें कि दोनों पैर के तलवे एक दूसरे को लगकर रहें। इस स्थिति को रेचक कहते हैं। रेचक करके दोनों हाथ सामने जमीन पर रखें। धीरे-धीरे शरीर को ऊपर उठाएं और दोनों पैर के पंजों पर इस प्रकार बैठें कि शरीर का वजन एड़ी के मध्य भाग पर आए। ध्यान रहे अंगुलियों वाला भाग छूटा रहे।

लाभ- इस आसन से शरीर फूर्तिला और फिट रहता है। बुद्धि तीक्ष्ण होती है। कल्पनाशक्ति का भी विकास होता है। चंचलता कम होती है। पाचन शक्ति बढ़ती है। शरीर शुद्धि होने लगती है। स्नायु मजबूत होता है। धातुक्षय, गैस, मधुप्रमेह, स्वप्नदोष, अजीर्ण, कमर का दर्द, गर्दन की दुर्बलता, बन्धकोष, मन्दाग्नि, सिरदर्द, क्षय, हृदयरोग, अनिद्रा, दमा, मूर्छारोग, बवासीर, उल्टी, हिचकी, अतिसार,उदररोग, नेत्रविकार आदि असंख्य रोगों में इस आसन से लाभ होता है।

सोमवार, 2 जनवरी 2012

देसी फंडा: इसे अपनाएं तो भूख खुलकर लगने लगेगी

सुबह-शाम ठीक से पेट साफ होना व जमकर भूख लगना स्वास्थ्य के लिए एक अच्छा संकेत माना जाता है। ऐसा न होने पर यानी कब्ज व गैस, एसीडिटी की शिकायत होने पर शरीर में कई दूसरी व्याधियां भी होने लगती है। जिन लोगों को खुलकर भूख नहीं लगती घुटनों का दर्द और पाचन क्रिया से परेशानियां महसूस करते हैं,तो उनके लिए योग ही एक मात्र सही उपचार है। सुप्त पवन मुक्तासन को इन समस्याओं से मुक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस आसन के नियमित अभ्यास से इन समस्याओं के साथ-साथ अन्य बहुत सारी बीमारियां दूर हो जाएंगी।



सुप्त पवन मुक्तासन आसन की विधि:कंबल या दरी बिछाकर पीठ के बल लेट जाएं। फिर दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर छाती पर ले आएं। अब घुटने से थोड़ा नीचे पिंडली पर उंगलियां आपस में फंसा कर, दोनों हाथों का पंजा कसें। यही क्रिया बाएं पैर से करें। दो मिनिट तक प्रतिदिन यह आसन करें।



आसन के लाभ:सुप्त पवन मुक्तासन के नियमित अभ्यास से अपच और गैस की समस्या दूर होती है। साथ ही घुटनों और कमर के दर्द में भी राहत मिलती है। इस आसन से नितंब सुंदर और पुष्ट बनते हैं। 

रविवार, 1 जनवरी 2012

मैजिकल तरीका: बिना दवाई और झंझट के ऐसे करें हर बीमारी का इलाज

कहते हैं अगर स्वस्थ शरीर की चाहत है, तो पर्याप्त मात्रा में पानी पीना जरुरी है। शरीर की आवश्यकता से कम पानी कई बीमारियों का कारण बन सकता है। दरअसल पानी की कमी से कोशिकाएं शुष्क  हो जाती हैं। पानी को वरुण भी कहा जाता है। विज्ञान के अनुसार भी जल तत्व हमारे शरीर के लिए बहुत आवश्यक माने गए हैं। इसलिए शरीर में तरलता बढ़ाने के लिए एक मुद्रा बताई गई है जिसे वरुण मुद्रा कहते हैं। इस मुद्रा को करने के एक नहीं अनेक फायदे

हैं, तो आइए जानते हैं कैसे बनाएं वरुण मुद्रा।



विधि- कनिष्ठा हाथ की सबसे छोटी अंगुली को कहा जाता है। कनिष्टा जल तत्व का प्रतीक है। जल तत्व और अग्रि तत्व को मिलाने से परिवर्तन घटित होता

है। कनिष्ठा अंगुली का अग्रभाग और अंगुष्ठ के अग्रभाग को मिलाने से वरुण मुद्रा बनती है।



आसान- सर्दी के समय में इनका सीमित प्रयोग करें। अन्य मौसम में कम से कम 24 मिनट करें। पूरा समय 48 मिनट है।



परिणाम- 

- शरीर का रूखापन दूर होता है। 

- शरीर की कांति व स्निग्धता बढ़ती है।

- त्वचा चमकीली व मुलायम बनती है।

-  चर्र्म रोग दूर होते हैं।

-  रक्त विकार दूर होते हैं।

- समय तक बना रहता है।

- बुढ़ापा जल्दी नहीं आता है।

- यह मुद्रा प्यास को बुझाती है।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

कुदरती फंडा: जवानी कायम रहेगी और छोटी-मोटी बीमारियां पास भी नहीं आएगी


हमेशा स्वस्थ और जवान रहना तो सभी चाहते हैं और इसके लिए कई औषधीयां और नुस्खे भी अपनाते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसा योगासन बताने जा रहे हैं, जिसे अपनाने से छोटी- मोटी बीमारियां आपके पास भी नहीं फटकेगी। इस आसन से हमारे शरीर की आंतरिक और बाह्य शक्ति में गुणोत्तर वृद्धि होती है। कुछ ही दिनों में इस आसन के लाभ नजर आने लगते हैं।



बकासन की विधि



समतल पर स्थान पर कंबल आदि बिछाकर बैठ जाएं। अब दोनों हाथों को अपने सामने भूमि पर रखें। सांस सामान्य रखें। दोनों घुटनों को हाथों की कोहनियों पर स्थिर कीजिएं। सांस अंदर की ओर लेते हुए शरीर का पूरा भार धीरे-धीरे हथेलियों पर आने दें और अपना शरीर ऊपर की ओर उठा लें। यह आसन काफी कठिन है परंतु निरंतर अभ्यास होने पर आसन की पूर्ण अवस्था प्राप्त की जा सकती है। परंतु ध्यान रखें यदि आपके हाथों में कोई परेशानी या बीमारी हो तो यह आसन ना करें।



बकासन के लाभ



बकासन में हमारे शरीर का पूरा भार हाथों पर होता है अत: इस आसन से हमारे हाथों के स्नायुओं को विशेष बल एवं आरोग्य मिलता है। मुख की कान्ति बढ़ती है। सुंदरता में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी होती है। जवानी बनी रहती है। शरीर हष्ट-पुष्ट बना रहता है। इस आसन को निरंतर करने से शरीर की कई छोटी-छोटी बीमारियां हमेशा दूर रहती है।

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

एक नहीं अनेक रोग दूर हो सकते हैं इस एक तरीके से

 स्वस्थ शरीर सभी चाहते हैं लेकिन स्वस्थ शरीर के लिए रोजाना योग व नियमित दिनचर्या इसके लिए आवश्यक है। कुछ योगासन ऐसे हैं जिन्हें नियमित रुप से करने से शरीर न सिर्फ स्वस्थ रहता है बल्कि एनर्जी भी मिलती है।

सिद्धासन की विधि-

समतल स्थान पर कंबल आदि आसन पर बैठकर पैर खुले छोड़ दें। अब बायें पैर की एड़ी को गुदा और जननेन्द्रिय के बीच रखें। दाहिने पैर की एड़ी को जननेन्द्रिय के ऊपर इस प्रकार रखें जिससे जननेन्द्रिय और अण्डकोष के ऊपर दबाव न पड़े। पैरों का क्रम बदल भी सकते हैं। दोनों पैरों के तलवे जंघा के मध्य भाग में रखें। हथेली ऊपर की ओर रहे इस प्रकार दोनों हाथ एक दूसरे के ऊपर गोद में रखें। अथवा दोनों हाथों को दोनो घुटनों के ऊपर ज्ञानमुद्रा में रखें। आंखें खुली अथवा बंद रखें। श्वास सामान्य रखें और ध्यान केन्द्रित करें। पांच मिनट तक इस आसन का अभ्यास कर सकते हैं। ध्यान की उच्च कक्षा आने पर शरीर पर से मन की पकड़ छूट जाती है।

सिद्धासन के लाभ-

सिद्धासन से शरीर की समस्त नाडिय़ों का शुद्धिकरण होता है। ध्यान लगाना सरल हो जाता है। पाचनक्रिया नियमित होती है। श्वास के रोग, हृदय रोग, जीर्णज्वर, अजीर्ण, अतिसार, शुक्रदोष आदि दूर होते हैं। मंदाग्नि, मरोड़ा, संग्रहणी, वातविकार, क्षय, दमा, मधुप्रमेह, प्लीहा की वृद्धि आदि अनेक रोगों दूर होते है। ब्रह्मचर्य-पालन में यह आसन विशेष रूप से सहायक होता है। विचार पवित्र बनते हैं। सिद्धासन का अभ्यासी भोग-विलास से बच सकता है। वीर्य की रक्षा होती है। स्वप्नदोष के रोगी को यह आसन अवश्य करना चाहिए। मानसिक शक्तियों का विकास होता है। कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने के लिए यह आसन प्रथम सोपान है।

रविवार, 25 दिसंबर 2011

भूख नहीं लगती तो आजमाएं ये देसी तरीका

खाना ठीक से न पचने पर गैस, कब्ज या एसीडिटी जैसी समस्याएं हो ही जाती है। माना जाता है कि हर बड़ी बीमारी की शुरुआत पेट से ही होती है। इसीलिए सही पाचन न होने की स्थिति में कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इनसे बचने के लिए प्रतिदिन योग करना चाहिए। स्वस्थ पाचनतंत्र के लिए नौकासन श्रेष्ठ उपाय है। इसके नियमित अभ्यास से पेट से जुड़ी सभी समस्याएं दूर होती हैं। इस आसन में हमारा शरीर नौका के समान दिखाई देता है, इसी कारण इसे नौकासन कहते है।



नौकासन करने की विधि- समतल स्थान पर दरी या कबंल आदि बिछाकर उस पर पीठ के बल लेट जाएं। अब दोनों हाथों, पैरों और सिर को ऊपर की ओर उठाएं। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। इसी अवस्था को नौकासन कहते हैं। कुछ देर इसी पोजीशन में रहें और फिर पुन: धीरे-धीरे हाथ, पैर और सिर को जमीन पर ले आएं।



नौकासन के लाभ: इस आसन से आपका पाचन तंत्र स्वस्थ रहेगा, भूख बढ़ेगी, भोजन का पाचन ठीक से होगा, हर्निया की समस्या में राहत मिलेगी। अंगूठे से अंगुलियों तक खिंचाव होने के कारण शुद्ध रक्त तीव्र गति से प्रवाहित होता है, जिससे शरीर निरोगी बना रहता है। यदि आपको नींद अधिक आती है तो उसे नियंत्रित करने में ये नौका आसन सहायक है। इस आसन में अपने इष्ट देव के मंत्रों का जप करने से त्वरित लाभ प्राप्त होता है।

बिना फेशियल ही दमकने लगेगा चेहरा इस नेचुरल तरीके से

किसी को भी आकर्षित करने के लिए अच्छे व्यवहार के साथ आपकी सुंदरता काफी महत्व रखती है। सुंदरता के लिए जरूरी है कि आपकी त्वचा स्वस्थ और चमकदार हो। चेहरा आकर्षक बनाने के लिए हंसासन श्रेष्ठ उपाय है।



हंसासन की विधि



किसी साफ-स्वच्छ वातावरण वाले स्थान पर कंबल बिछाकर घुटनों के बल बैठ जाएं। फिर दोनों हाथों को सामने जमीन पर टिकाकर रखें। अंगुलियों को आगे की ओर करके खोलकर रखें। दोनों हाथों के बीच दूरी रखें। घुटनों को तथा कोहनियों को मोड़कर पीछे की ओर ले जाएं। इसके बाद धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए दोनों हथेलियों पर जोड़ देकर अपने शरीर के पिछले भाग को ऊपर उठाएं तथा शरीर का पूरा भार हथेलियों पर रखकर संतुलन बनाएं। अब गर्दन को आगे की ओर झुकाकर शरीर का आकार पक्षी की तरह बनाएं। इस स्थिति में कुछ देर रुके। इस आसन को 2-3 बार करें। यह आसन कठिन होता है परंतु कुछ दिन नियमित करने के बाद यह सहज हो जाएगा। सांस सामान्य रखें।



हंसासन के लाभ-



इस आसन से हाथ व पैरों की मांसपेशियां मजबूत होती है तथा गर्दन का मोटापा कम होता है। इससे छाती मजबूत, पुष्ट व चौड़ा होता है तथा शरीर शक्तिशाली बनता है। इस आसन से चेहरे पर तेज, चमक तथा शरीर में स्फूर्ति व ताजगी आती है। नाड़ी-तंत्र सही रूप से काम करने लगता है, जिससे रक्त संचार तेज हो जाता है।  यह पेट की चर्बी को कम कर मोटापे को घटाता है। इससे फेफड़े स्वच्छ एवं अधिक सक्रिय बने रहते हैं। हंसासन पेट दर्द, पीठ दर्द, कमर दर्द, पसली का दर्द जैसे कई रोगों में राहत प्रदान करता है।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

इस एक फंडे को अपना ले तो दिनभर नहीं महसूस होगी थकान

ज्यादा वर्कलोड करने के लिए अधिकांश लोगों के साथ थकान की समस्या बनी रहती है। ऑफिस कार्य ज्यादातर बैठे रहने वाला होता है ऐसे में बैठे-बैठे भी थकावट महसूस होने लगती है। ऐसे में कई अन्य समस्याएं शुरू हो जाती है  शरीर की रोगप्रतिरोधी क्षमता घटती जाती है। इन सभी से बचने के लिए जरूरी है कुछ व्यायाम जरूरी है।थकान से बचने के लिए सबसे सरल और कारगर उपाय है भूनमनासन। इस आसन से कुछ ही दिनों में आपकी थकान दूर हो जाएगी और हर कार्य पूरी स्फूर्ति के साथ कर सकेंगे। यह आसन कमर और रीढ़ के लिए काफी लाभदायक है। इसमें हम शरीर को पीछे या आगे की ओर न झुकाकर दाएं या बाएं घुमाते हैं। इससे लंबे समय तक बैठने या खड़े होने से आई थकावट दूर होती है।



भूनमनासन की विधि-

समतल स्थान पर कंबल आदि बिछाकर बैठ जाएं। दोनों पैर सामने रखें। शरीर को सीधा रखकर सांस भरिए। कमर से ऊपर के भाग को सीधे हाथ की ओर मोड़ें और दोनों हथेलियों को जमीन पर दाहिनी तरफ रखें। अब सांस छोड़ते हुए अपने सिर को जमीन से छूने का प्रयास करें। इस स्थिति में कुछ क्षण रुके। सांस सामान्य रखें। इसके बाद सांस भरते हुए शरीर को ऊपर की ओर लाएं और सांस को छोड़ते हुए शरीर को सीधा कर लें। ऐसे ही दूसरी और से इस प्रक्रिया को करें।



भूनमनासन के लिए सावधानियां



- इस आसन को सभी आसनों के अंत में करें।



- भू-नमनासन करते समय अपना ध्यान पीठ और कंधे की मांसपेशियों पर लगाकर रखें।



- आसन के दौरान कोशिश करें कि रीढ़ की हड्डी सीधी रहे और शरीर का वजन हाथों पर आए।



- इससे रीढ़ की हड्डी और कमर के निचले हिस्से का तनाव कम होता है।



- गर्भवती महिलाएं शुरूआत के तीन महीनों तक इस आसन का अभ्यास कर सकती हैं। इसके बाद इस आसन को न करें।



- जिन लोगों को हार्नियां और अल्सर की परेशानी हो वे भी इस आसन को न करें।

ये है हर तरह की कमजोरी का आसान इलाज

यदि किसी वजह से कोई अपने आप को शारीरिक रूप से कमजोर महसूस करता है और पर्याप्त सावधानी के बाद भी निर्बलता दूर नहीं हो रही है, तो उन्हें भृंगासन की मदद लेना चाहिए। इस आसन की पूर्ण अवस्था मेंढक के समान हो जाती है इसीलिए इसे भृंगासन कहा जाता है। 



भृंगासन की विधि



किसी साफ एवं समतल स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर बैठ जाएं। अब अपने दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर पीछे की ओर ले जाएं। दाएं एड़ी को दाएं नितम्ब (हिप्प) से सटाकर और बाईं एड़ी को बाएं नितम्ब (हिप्प) से सटाकर रखें। दोनों पंजे व एडिय़ां आपस में मिलाकर रखें तथा दोनों घुटनों के बीच थोड़ी दूरी रखें। अब गहरी सांस लेते हुए आगे की ओर झुके और अपने हाथों को कोहनियों से मोड़कर घुटनों के बीच रखकर कोहनी से हथेलियों तक के भाग को नीचे फर्श पर टिकाकर रखें। दोनों हाथों के बीच थोड़ी दूरी रखें तथा अंगुलियों को आपस में मिलाकर रखें। सिर को उठाकर रखें और नजरें सामने रखें। आसन की इस स्थिति में सांस को रोककर कुछ देर रुके। फिर सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे ऊपर उठकर सामान्य स्थिति में एडिय़ों पर बैठ जाएं। कुछ क्षण रूके और फिर इस आसन को दोबारा करें। भृंगासन को कम से कम 5 से 10 बार करें।



भृंगासन के लाभ



भृंगासन करने से पाचनशक्ति मजबूत होती है तथा यह भूख को बढ़ाता है। यह आसन पेट के भारीपन को दूर करता है तथा पेट की गैस, कब्ज एवं अन्य पेट के सभी विकार को खत्म करता हैं। इस आसन को करने से कन्धों, हाथ व पैर आदि की कमजोरी दूर होती है। साथी शरीर स्वस्थ और निरोगी बनता है।

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

दस मिनट का ये प्रयोग कर लेंगे तो चेहरा चमकने लगेगा

यदि आप मानसिक तनाव महसूस करते हैं। निराशा, हताशा एवं चिंताएं आदि समस्याएं सताती रहती हैं, तो प्रतिदिन योगासन करें। योगासन मन को शांति देता और स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक रहता है। साथ ही योग से आंखों की रोशनी और चेहरे की चमक भी बढ़ती है। सर्वांगासन आंखों और चेहरे के लिए काफी फायदेमंद है। 



सर्वांगासन की विधि - कसी सुविधाजनक स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर शवासन में लेट जाएं। अपने दोनों हाथों को जांघों की बगल में तथा हथेलियों को जमीन पर रखें। पैरों को घुटनों से मोड़कर ऊपर उठाइएं तथा पीठ को कंधों तक उठाइएं। दोनों हाथ कमर के नीचे रखकर शरीर के उठे हुए भाग को सहारा दीजिएं। इस तरह ठुड्डी को छाती से लगाए रखें। अब सांस को रोके नहीं स्वाभाविक रूप से चलने दें। यथाशक्ति पैर और धड़ को एक सीध में रखें। इस स्थिति में रुकने के बादए पैरों को जमीन पर वापस ले आएं। पैरों को घुटनों से मोड़ते हुए घुटनों को माथे के पास ले आएं। हाथों को जमीन रखते हुये शरीर और पैरों को धीरे.धीरे वापस शवासन में आ जाएं। अब शवासन में शरीर को शिथिल अवस्था में आ जाएं। आसन करते समय आंखों को खुला रखें।



सावधानियां- जल्दबाजी एवं हड़बड़ाहट में यह आसन न करें। इस आसन का अभ्यास पीठ दर्दए कमर दर्दए नेत्र रोगी और उच्च रक्तचाप के रोगी ने करें।



लाभ-  इसके नियमित अभ्यास से मानसिक तनावए निराशाए हताशा एवं चिंताएं आदि रोगों का नाश होता है। इससे आंखों का तेज बढ़ता है और चेहरा कांतिमय बनता है। स्त्रियों के स्वास्थ में इस आसन से विशेष लाभ होता है । स्त्रियों की मासिक धर्म से जुड़ी बीमारियों में राहत मिलती है। सर्वांगासन से शरीर के उन अंगों से रक्त संचार होने लगता है जहां रक्त संचार कम होता है। शरीर का प्रत्येक अंग स्वस्थ हो जाता है। इस आसन के प्रभाव से चेहरे पर झाइयां नहीं पड़ती हैं। लम्बी उम्र तक चेहरे पर चमक बनी रहती है। समय से पूर्व बाल सफेद नहीं होते हैं। नेत्र ज्योति अंत तक बनी रहती है। इस आसन के करने से मानसिक तनाव दूर होता है। क्रोध और चिड़चिडा़पन दूर होता है। बच्चों के बौद्धिक विकास में यह आसन विशेष लाभदायक है। इसके करने से मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियां जाग्रत होती हैं तथा सतोगुण की वृद्धि होती है। 

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

अस्सी की उम्र में भी दिखेंगे अठारह के आजमाएं ये देसी फंडा

वर्तमान समय में अनियमित खानपान व दिनचर्या के कारण समय से पहले बाल सफेद होना, कम उम्र में झुर्रियां आ जाना या अन्य ऐजिंग साइन एक आम समस्या है। ऐसे में दवाईयां या एंटीएंजिंग क्रीम युज करना काफी नहीं होगा। अगर आप वाकई लंबे समय तक जवान बने रहना चाहते हैं।अगर चाहते है कि अस्सी की उम्र में भी आपके शरीर में अठारह सी फूर्ति रहे तो नीचे लिखे योगासन को नियमित रूप से करें।

हलासन विधि - समतल जमीन पर आसन बिछाएं। आसन पर शवासन में लेट जाएं। श्वांस को अंदर भरकर दोनों पैरों को एक साथ ऊपर की और उठाना प्रारंभ करें। पैरों को ऊपर उठाते हुए सर्वांगासन में आइये, फिर पैरों को सिर के पीछे तक झुकाते हुए जमीन से स्पर्श कराइये। दोनों पैरों को घुटनों से न मुडऩे दें। पैरों को सीधा रखें। दोनों हाथों से पैरों के अंगूठों को पकड़ लें। हाथों की कोहनी को सीधा रखें। कुछ क्षण इसी तरह रुकने के बाद, सामान्य रूप से शवासन में आ जाइये। शरीर के तनाव को मिटाने के लिये आसन के अंत में कुछ देर शवासन में रहें।

लाभ - यह आसन थायराइड ग्रन्थि को प्रभावित करता है। इस आसन के करने से कण्ठकूपों पर दवाब पड़ता है जिससे थाइराइड़ संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। भावनात्मक संतुलन और तनाव निवारण के लिये यह आसन लाभप्रद है। इससे मेरुदण्ड लचीला बनता है जिससे आप लंबे समय तक जवान बने रहेंगे। इस आसन से पाचन तंत्र और मांसपेशियों को शक्ति मिलती है। इसके अभ्यास से पाचन तंत्र ठीक रहता है। इस आसन के नियमित अभ्यास से विशुद्ध चक्र जाग्रत होता है। गले और वाणी से संबंधित बीमारियां दूर होती हैं। 

हलासन के अभ्यास से मन शांत और स्थिर होता है, तनाव दूर होता है। इसके नियमित अभ्यास से प्राण सूक्ष्म होकर सुषुम्ना नाड़ी में प्रवाहित होने लगता है।इसे करने से मन, आनंद और उत्साह से भरा रहता है तथा शरीर में स्फूर्ति और ताजगी बनी रहती है। साथ ही प्रतिदिन सुबह उठने के बाद खाली पेट एक चम्मच च्यवनप्राश लेना चाहिए। इसके बाद दूध पीएं। इसी तरह रात को सोने से पहले एक चम्मच च्यवनप्राश लें और फिर दूध पीएं। रोज अनार व चुकंदर का भी सेवन करें। खूब पानी पीएं। छ: से आठ घंटे गहरी नींद लें। घृतकुमारी के ज्यूस का नियमित रूप से सेवन करें। सदा जवान बने रहने के लिए आयुर्वेद में हरड़ को भी वरदान माना गया है।

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