कहते हैं अगर स्वस्थ शरीर की चाहत है, तो पर्याप्त मात्रा में पानी पीना जरुरी है। शरीर की आवश्यकता से कम पानी कई बीमारियों का कारण बन सकता है। दरअसल पानी की कमी से कोशिकाएं शुष्क हो जाती हैं। पानी को वरुण भी कहा जाता है। विज्ञान के अनुसार भी जल तत्व हमारे शरीर के लिए बहुत आवश्यक माने गए हैं। इसलिए शरीर में तरलता बढ़ाने के लिए एक मुद्रा बताई गई है जिसे वरुण मुद्रा कहते हैं। इस मुद्रा को करने के एक नहीं अनेक फायदे
हैं, तो आइए जानते हैं कैसे बनाएं वरुण मुद्रा।
विधि- कनिष्ठा हाथ की सबसे छोटी अंगुली को कहा जाता है। कनिष्टा जल तत्व का प्रतीक है। जल तत्व और अग्रि तत्व को मिलाने से परिवर्तन घटित होता
है। कनिष्ठा अंगुली का अग्रभाग और अंगुष्ठ के अग्रभाग को मिलाने से वरुण मुद्रा बनती है।
आसान- सर्दी के समय में इनका सीमित प्रयोग करें। अन्य मौसम में कम से कम 24 मिनट करें। पूरा समय 48 मिनट है।
परिणाम-
- शरीर का रूखापन दूर होता है।
- शरीर की कांति व स्निग्धता बढ़ती है।
- त्वचा चमकीली व मुलायम बनती है।
- चर्र्म रोग दूर होते हैं।
- रक्त विकार दूर होते हैं।
- समय तक बना रहता है।
- बुढ़ापा जल्दी नहीं आता है।
- यह मुद्रा प्यास को बुझाती है।
हैं, तो आइए जानते हैं कैसे बनाएं वरुण मुद्रा।
विधि- कनिष्ठा हाथ की सबसे छोटी अंगुली को कहा जाता है। कनिष्टा जल तत्व का प्रतीक है। जल तत्व और अग्रि तत्व को मिलाने से परिवर्तन घटित होता
है। कनिष्ठा अंगुली का अग्रभाग और अंगुष्ठ के अग्रभाग को मिलाने से वरुण मुद्रा बनती है।
आसान- सर्दी के समय में इनका सीमित प्रयोग करें। अन्य मौसम में कम से कम 24 मिनट करें। पूरा समय 48 मिनट है।
परिणाम-
- शरीर का रूखापन दूर होता है।
- शरीर की कांति व स्निग्धता बढ़ती है।
- त्वचा चमकीली व मुलायम बनती है।
- चर्र्म रोग दूर होते हैं।
- रक्त विकार दूर होते हैं।
- समय तक बना रहता है।
- बुढ़ापा जल्दी नहीं आता है।
- यह मुद्रा प्यास को बुझाती है।
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