गुरुवार, 11 नवंबर 2010
गर्भाशय की सूजन
कारण:
ऋतुकालीन (माहवारी) असावधानियों का कुप्रभाव यदि गर्भाशय को प्रभावित करता है तो उसमें शोथ (सूजन) उत्पन्न हो जाती है। इसमें रोगी महिला को बहुत अधिक कष्ट उठाना पड़ता है।
लक्षण:
गर्भाशय की सूजन होने पर महिला को पेडू में दर्द और जलन होना सामान्य लक्षण हैं, किसी-किसी को दस्त भी लग सकते हैं तो किसी को दस्त की हाजत जैसी प्रतीत होती है किन्तु दस्त नहीं होता है। किसी को बार-बार मूत्र त्यागने की इच्छा होती है। किसी को बुखार और बुखार के साथ खांसी भी हो जाती है। यदि इस रोग की उत्पन्न होने का कारण शीत लगना हो तो इससे बुखार की तीव्रता बढ़ जाती है।
नीम
नीम, सम्भालू के पत्ते और सोंठ सभी का काढ़ा बनाकर योनि मार्ग (जननांग) में लगाने से गर्भाशय की सूजन नष्ट हो जाती है।
नीम
नीम, सम्भालू के पत्ते और सोंठ सभी का काढ़ा बनाकर योनि मार्ग (जननांग) में लगाने से गर्भाशय की सूजन नष्ट हो जाती है।
बादाम रोगन
बादाम रोगन एक चम्मच, शर्बत बनफ्सा 3 चम्मच और खाण्ड पानी में मिलाकर सुबह के समय पीएं तथा बादाम रोगन का एक फोया गर्भाशय के मुंह पर रखें इससे गर्मी के कारण उत्पन्न गर्भाशय की सूजन ठीक हो जाती है।
बजूरी शर्बत या दीनार
बजूरी या दीनार को दो चम्मच की मात्रा में एक कप पानी में सोते समय सेवन करना चाहिए। इससे गर्भाशय की सूजन मिट जाती है।
अशोक
अशोक की छाल 120 ग्राम, वरजटा, काली सारिवा, लाल चन्दन, दारूहल्दी, मंजीठ प्रत्येक को 100-100 ग्राम मात्रा, छोटी इलायची के दाने और चन्द्रपुटी प्रवाल भस्म 50-50 ग्राम, सहस्त्रपुटी अभ्रक भस्म 40 ग्राम, वंग भस्म और लौह भस्म 30-30 ग्राम तथा मकरध्वज गंधक जारित 10 ग्राम की मात्रा में लेकर सभी औषधियों को कूटछानकर चूर्ण तैयार कर लेते हैं। फिर इसमें क्रमश: खिरेंटी, सेमल की छाल तथा गूलर की छाल के काढ़े में 3-3 दिन खरल करके 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लेते हैं। इसे एक या दो गोली की मात्रा में मिश्रीयुक्त गाय के दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इसे लगभग एक महीने तक सेवन कराने से स्त्रियों के अनेक रोगों में लाभ मिलता है। इससे गर्भाशय की सूजन, जलन, रक्तप्रदर, माहवारी के विभिन्न विकार या प्रसव के बाद होने वाली दुर्बलता इससे नष्ट हो जाती है।
पानी
गर्भाशय की सूजन होने पर पेडू़ (नाभि) पर गर्म पानी की बोतल को रखने से लाभ मिलता है।
एरण्ड
एरण्ड के पत्तों का रस छानकर रूई भिगोकर गर्भाशय के मुंह पर 3-4 दिनों तक रखने से गर्भाशय की सूजन मिट जाती है।
चिरायता
चिरायते के काढ़े से योनि को धोएं और चिरायता को पानी में पीसकर पेडू़ और योनि पर इसका लेप करें इससे सर्दी की वजह से होने वाली गर्भाशय की सूजन नष्ट हो जाती है।
रेवन्दचीनी
रेवन्दचीनी को 15 ग्राम की मात्रा में पीसकर आधा-आधा ग्राम पानी से दिन में तीन बार लेना चाहिए। इससे गर्भाशय की सूजन मिट जाती है।
कासनी
कासनी की जड़, गुलबनफ्सा और वरियादी 6-6 ग्राम की मात्रा में, गावजवां और तुख्म कसुम 5-5 ग्राम, तथा मुनक्का 6 या 7 को एक साथ बारीक पीसकर उन्हें 250 ग्राम पानी के साथ सुबह-शाम को छानकर पिला देते हैं। यह उपयोग नियमित रूप से आठ-दस दिनों तक करना चाहिए। इससे गर्भाशय की सूजन, रक्तस्राव, श्लैष्मिक स्राव (बलगम, पीव) आदि में पर्याप्त लाभ मिलता है।
सोमवार, 8 नवंबर 2010
बांझपन (Sterility)
परिचय:-
इस रोग के कारण रोगी स्त्री को बच्चा नहीं होता हैं, इसलिए इस रोग को बांझपन कहते है। इस रोग के कारण रोगी स्त्री में गर्भधारण करने की असमर्थता रहती है। यदि औरत को बच्चा नहीं होता है तो उसे परिवार तथा समाज में बहुत से मानसिक कष्ट मिलते हैं। इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार किया जा सकता है।
कारण-
1. स्त्रियों के प्रजन्न अंग का सही तरह से विकसित न होना।
2. किसी दुर्घटना या चोट के कारण प्रजन्न अंग में कुछ खराबी आना।
3. पुरुषों के वीर्य में शुक्राणु का न होना क्योंकि ऐसे पुरुष जब स्त्रियों से संभोग क्रिया करते हैं तो इनके वीर्य में शुक्राणु न होने के कारण स्त्रियों के डिम्ब में शुक्राणु नहीं पहुंचता है। इसलिए स्त्री गर्भवती नहीं हो पाती है।
4. स्त्रियों को अनियमित मासिकधर्म का रोग होने के कारण भी स्त्री गर्भवती नहीं हो पाती है।
5. चिंता, तनाव तथा डर आदि के कारण भी स्त्री गर्भवती नहीं हो पाती है।
बांझपन से पीड़ित स्त्री का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
1. स्त्री को गर्भधारण कराने के लिए उसकी योनि के स्नायु स्वस्थ हो इसके लिए स्त्री का सही आहार, उचित श्रम एवं तनाव रहित होना जरूरी है तभी स्त्री गर्भवती हो सकती है इसलिए स्त्री को इस पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
2. स्त्री को गर्भधारण करने के लिए यह भी आवश्यक है कि योनिस्राव क्षारीय होना चाहिए इसलिए स्त्री का भोजन क्षारप्रधान होना चाहिए। इसलिए उसे अधिक मात्रा में अपक्वाहार तथा भिगोई हुई मेवा खानी चाहिए।
3. इस रोग से पीड़ित स्त्रियों को अपने इस रोग का इलाज करने के लिए सबसे पहले अपने शरीर से विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालना चाहिए इसके लिए स्त्री को उपवास रखना चाहिए। इसके बाद उसे 1-2 दिन के बाद कुछ अंतराल पर उपवास करते रहना चाहिए।
4. इस रोग से पीड़ित स्त्रियों को दूध की बजाए दही का इस्तेमाल करना चाहिए।
5. स्त्री को गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद एवं नींबू का रस मिलाकर पीना चाहिए।
6. इस रोग से पीड़ित स्त्रियों को ज्यादा नमक, मिर्च-मसाले, तले-भुने खाने वाले पदार्थ, चीनी, चाय, काफी मैदा आदि चींजों का सेवन नहीं खानी चाहिए।
7. इस रोग से पीड़ित स्त्रियों को यदि कब्ज हो तो इसका इलाज तुरंत कराना चाहिए।
8. बांझपन को दूर करने के लिए स्त्रियों को विटामिन `सी´ तथा `ई´ की मात्रा वाली चीजें जैसे नींबू, संतरा, आंवला, अंकुरित, गेहूं आदि का भोजन में सेवन अधिक करना चाहिए।
9. स्त्रियों को सर्दियों में प्रतिदिन 5-6 कली लहसुन चबाकर दूध पीना चाहिए, इससे स्त्रियों का बांझपन जल्दी ही दूर हो जाता है।
10. जामुन के पत्तों का काढ़ा बनाकर फिर इसको शहद में मिलाकर प्रतिदिन पीने से स्त्रियों को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
11. बड़ (बरगद) के पेड़ की जड़ों को छाया में सुखाकर कूट कर छानकर पाउडर बना लें। फिर इसे स्त्रियों के माहवारी समाप्त होने के बाद तीन दिन लगातार रात को दूध के साथ लें। इस क्रिया को तब तक करते रहना चाहिए जब तक की स्त्री गर्भवती न हो जाए।
12. स्त्री के बांझपन के रोग को ठीक करने के लिए 6 ग्राम सौंफ का चूर्ण घी के साथ तीन महीने तक लेते रहने से स्त्री गर्भधारण करने योग्य हो जाती है।
13. स्त्री के बांझपन के रोग को ठीक करने के लिए उसके पेड़ू पर मिट्टी की गीली पट्टी करनी चाहिए तथा इसके बाद उसे कटिस्नान कराना चाहिए और कुछ दिनों तक उसे कटि लपेट देना चहिए। इसके बाद स्त्री को गर्म पानी का एनिमा देना चाहिए।
14. रूई के फाये को फिटकरी में लपेटकर तथा पानी में भिगोकर रात को जब स्त्री सो रही हो तब उसकी योनि में रखें। सुबह के समय में जब इस रूई को निकालेंगे तो इसके चारों ओर दूध की खुरचन की तरह पपड़ी सी जमा होगी। जब तक पपड़ी आनी बंद न हो तब तक इस इस क्रिया को प्रतिदिन को दोहराते रहना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से स्त्री गर्भ धारण करने योग्य हो जाती है फिर इसके बाद स्त्री को पुरुष के साथ संभोग क्रिया करनी चाहिए।
15. स्त्री को सहवास करने के लिए कम से कम 6 महीने का समय रखना चाहिए इससे उसके प्रजनन अंगों को आराम मिलेगा और स्त्रियों की योनि की क्रिया सही से होगी। इससे प स्त्रियों के बांझपन का रोग कुछ ही समय में दूर हो जाता है।
16. स्त्रियों के बांझपन की समस्या को दूर करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार कई प्रकार के आसन भी है जिनको करने से उसकी बांझपन की समस्या कुछ ही दिनों में दूर हो सकती है।
17. बांझपन को दूर करने के आसन निम्न हैं- सर्वांगासन, मत्स्यासन, अर्ध मतेन्द्रासन, पश्चिमोत्तानासन, शलभासन आदि।
18. स्त्री में बांझपन का रोग उसके पति के कारण भी हो सकता है इसलिए स्त्रियों को चाहिए कि वह अपने पति का चेकअप कराके उनका इलाज भी कराएं और फिर अपना भी उपचार कराएं।
19. यदि स्त्री-पुरुष दोनों में से किसी के भी प्रजनन अंगों में कोई खराबी हो तो उसका तुरंत ही इलाज कराना चाहिए।
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
आंत कृमि
आंत कृमि (Intestinal Worms)
परिचय :
    आंतों में कई तरह के कीड़े पैदा होते हैं। जिनमें सूत्रकृमि, केंचुए और फीता कृमि खास हैं। आंतों में इसके होने से गुदा में खुजली, भूख न लगना, कब्ज, सिर दर्द आदि लक्षण भी प्रकट होते हैं। कभी-कभी पतले दस्त भी आने लगते हैं। इसे दूर करने के लिए लीवर का स्वस्थ होना जरूरी है। इन कृमियों के अलावा भी कुछ कृमि होते हैं जो अनाज वगैरह को भी खत्म करते हैं।
एरंड का तेल :
काला जीरा, अजवाइन और पलाश को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और सोते समय खा लें। दूसरे दिन सुबह के समय एरंड का तेल लें। इससे आंतों के कीडे़ मर जाते हैं।
सोया :
 सोया का काढ़ा 40 ग्राम सुबह-शाम पीने पेट में होने वाले कीड़े खत्म हो जाते हैं।
बांस :
बांस के पत्तों को पीसकर रस निकालकर बच्चों को बस्ति (एनिमा क्रिया) दी जाये तो सूत्रकृमि खत्म होते हैं।
सागौन :
 सागौन की छाल या लकड़ी का चूर्ण यदि 3 से 12 ग्राम सुबह-शाम खाये तो आंतों के कीड़े खत्म हो जाते हैं।
नारियल :
आंतों के चिपटे कीड़ों को खत्म करने के लिए पीड़ित रोगी को रात में एक नारियल की गरी खिलाकर सवेरे दस्त आने के लिए कोई औषधी खिला दें। इससे आंतों के कीड़े मरकर बाहर निकल आते हैं।
शहतूत :
 शहतूत के पेड़ की छाल का काढ़ा 50 से 100 ग्राम की मात्रा में खाने से आंत के कीड़े मरकर बाहर निकल आते हैं।
सेब :
 सेब के पेड़ की जड़ 10 ग्राम से 20 ग्राम पीसकर सुबह शाम खाने से कीड़े मरकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं। 
बिजौरा नींबू :
बिजौरा नींबू की जड़ 10 ग्राम पीसकर रोज सवेरे 2-4 दिनों तक पिलाने से कीड़े खत्म होते हैं।
करेले :
आंतों के कीड़े खत्म करने के लिए करेले का रस गरम पानी में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर खाने से पूरा फायदा होता है और कीड़े खत्म होते हैं।
कच्चे अनानास :
कच्चे अनानास का रस नियमित रूप से खाने से आंतों के कीड़े खत्म होते हैं।
अजवायन :
किरमानी अजवायन का चूर्ण डेढ़ ग्राम से 3 ग्राम सुबह-शाम खाने से आंत के कीड़े खत्म होते हैं।
पुदीना :
पुदीना के पत्तों को खाने से आंतों के दर्द और कीड़े दूर होते हैं।
टमाटर :
टमाटर के रस में कालीमिर्च और कालानमक मिलाकर नियमित सुबह खाली पेट खाने से एक हफ्ते में ही कीड़े खत्म हो जाते हैं। 
हींग :
पानी में हींग घोलकर नाभि के नीचे लगाने से आंतों के कीड़े मल के साथ बाहर आ जाते हैं।
गाजर :
गाजर को कद्दूकस कर नियमित खिलाने से आंतों के कीड़े मर जाते हैं।
बथुआ :
आंतों में कीड़े होने पर बथुआ का साग खाना लाभदायक होता है।
अखरोट :
अखरोट के पत्तों का रस 10 से 20 ग्राम खाने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं।
अखरोट का तेल बताशे में 15 से 20 बूंद डालकर या दूध में मिलाकर सुबह-शाम खाने से आंत के कीड़े खत्म होते हैं।
अनार :
 अनार के जड़ की छाल 1 से 2 ग्राम खाने से आंतों के कीड़े खत्म हो जाते हैं। इसे नियमित सुबह-शाम दें। अनार के फल का छिलका भी इसी मात्रा में लेने से कीड़ नष्ट होते हैं। 
अनार का रस आंतों के कीडे़ और दस्तों में लाभकारी होता है। लीवर की कार्यक्षमता को बढ़ाता है और पाचन में सहायता करता है।
लहसुन :
लहसुन का रस 10 से 30 बूंद को दूध में मिलाकर सुबह-शाम खाने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं।
लहसुन के रस में शहद मिलाकर खाने से आंत के कीड़े खत्म हो जाते हैं।
लहसुन को बायविडंग के चूर्ण के साथ खाने से आंत के कीडे़ समाप्त हो जाते हैं।
नमक :
बच्चों के पेट में कीड़े होने पर नमक मिलाकर गुनगुना पानी पिला दें। नाभि पर हल्दी पीसकर लगा दें। दो से तीन दिनों तक ऐसा करने से बच्चों के पेट के सारे कीड़े खत्म हो जाते हैं। 
बच्चों के आंतों के कीड़ों में नमक मिलाकर हल्का गरम पानी मिलाकर पिला दें। नाभि पर हल्दी पीसकर लगा दें। ऐसा रोज करने से तीन दिनों में आंतों के सारे कीड़े खत्म हो जाते हैं।
सूत्रकृमि में नमक के लेप को नाभि के नीचे लगाने से लाभ होता है।
केला :
केला शहद में भिगोकर रात के समय खायें। अगले दिन सुबह के समय एरण्डी का तेल लें। इससे कीड़े मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
आंत्रवृद्धि (आंत का उतरना)
परिचय : आंत का अपने स्थान से हट जाना ही आंत का उतरना कहलाता है। यह कभी अंडकोष में उतर जाती है तो कभी पेडु या नाभि के नीचे खिसक जाती है। यह स्थान के हिसाब से कई तरह की होती है जैसे स्ट्रैगुलेटेड, अम्बेलिकन आदि। जब आंत अपने स्थान से अलग होती है तो रोगी को काफी दर्द व कष्ट का अनुभव होता है।
लाल चंदन :
लाल चंदन, मुलहठी, खस, कमल और नीलकमल इन्हें दूध में पीसकर लेप करने से पित्तज आंत्रवृद्धि की सूजन, जलन और दर्द दूर हो जाता है।
पारा :
पारे की भस्म को तेल और सेंधानमक में मिलाकर अंडकोषों पर लेप करने से ताड़फल जैसी अंडवृद्धि भी ठीक हो जाती है।
गुग्गुल:
गुग्गुल एलुआ, कुन्दुरू, गोंद, लोध, फिटकरी और बैरोजा को पानी में पीसकर लेप करने से अंत्रवृद्धि खत्म होती है।
तम्बाकू :
तम्बाकू के पत्ते पर एरंडी का तेल चुपड़कर आग पर गरम कर सेंक करने और गरम-गरम पत्ते को अंडकोषों पर बांधने से अंत्रवृद्धि और दर्द में आराम होता है।
छोटी हरड़ :
छोटी हरड़ को गाय के मूत्र में उबालकर फिर एरंडी का तेल लें। इन हरड़ों का पाउडर बनाकर कालानमक, अजवायन और हींग मिलाकर 5 ग्राम मात्रा मे सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ खाने से या 10 ग्राम पाउडर का काढ़ा बनाकर खाने से आंत्रवृद्धि की विकृति खत्म होती है।
त्रिफला :
इस रोग में मल के रुकने की विकृति ज्यादा होती है। इसलिए कब्ज को खत्म करने के लिए त्रिफला का पाउडर 5 ग्राम रात में हल्के गर्म दूध के साथ लेना चाहिए।
दूध :
उबाले हुए हल्के गर्म दूध में गाय का मूत्र और शक्कर 25-25 ग्राम मिलाकर खाने से अंडकोष में उतरी आंत्र अपने आप ऊपर चली जाती है।
हरड़ :
हरड़, मुलहठी, सोंठ 1-1 ग्राम पाउडर रात को पानी के साथ खाने से लाभ होता है।
बकरी का दूध :
आंखों के लाल होने पर मोथा या नागरमोथा के फल को साफ करके बकरी के दूध में घिसकर आंखों में लगाने से आराम आता है।
भिंडी :
बुधवार को भिंडी की जड़ कमर में बांधे। हार्निया रोग ठीक हो जायेगा।
एरंड :
एक कप दूध में दो चम्मच एरंड का तेल डालकर एक महीने तक पीने से अंत्रवृद्धि ठीक हो जाती है।
खरैटी के मिश्रण के साथ अरण्डी का तेल गर्मकर पीने से आध्यमान, दर्द, आंत्रवृद्धि व गुल्म खत्म होती है।
रास्ना, मुलहठी, गर्च, एरंड के पेड की जड़, खरैटी, अमलतास का गूदा, गोखरू, पखल और अडूसे के काढ़े में एरंडी का तेल डालकर पीने से अंत्रवृद्धि खत्म होती है।
इन्द्रायण की जड़ का पाउडर, एरंडी के तेल या दूध में मिलाकर पीने से अंत्रवृद्धि खत्म हो जाएगी।
लगभग 250 ग्राम गरम दूध में 20 ग्राम एरंड का तेल मिलाकर एक महीने तक पीयें इससे वातज अंत्रवृद्धि ठीक हो जाती है।
एरंडी के तेल को दूध में मिलाकर पीने से मलावरोध खत्म होता है।
दो चम्मच एरंड का तेल और बच का काढ़ा बनाकर उसमें दो चम्मच एरंड का तेल मिलाकर खाने से लाभ होता है।
कॉफी :
बार-बार काफी पीने से और हार्निया वाले स्थान को काफी से धोने से हार्निया के गुब्बारे की वायु निकलकर फुलाव ठीक हो जाता है।
बार-बार काफी पीने और हार्निया वाले स्थान को काफी से धोने से हार्नियां के गुब्बारे की वायु निकलकर फुलाव ठीक हो जाता है। मृत्यु के मुंह के पास पहुंची हुई हार्नियां की अवस्था में भी लाभ होता है।
मुलहठी :
मुलहठी, रास्ना, बरना, एरंड की जड़ और गोक्षुर को बराबर मात्रा में लेकर, थोड़ा सा कूटकर काढ़ा बनायें। इस काढ़े में एरंड का तेल डालकर पीने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।
बुधवार, 3 नवंबर 2010
बहु उपयोगी सलाह घरेलू उपायों की
बहु उपयोगी सलाह घरेलू उपायों की
भूख न लगे या कुछ खाने की इच्छा न होने पर अजवायन में स्वादानुसार काला नमक मिलाकर, पीस कर, चुटकी भर काली मिर्च, पिसा पोदीना, सब गर्म पानी से फंकी लेने पर अरुचि की शिकायत दूर हो जाती है।
* पेट में रूकी हुई गैस दूर करने के लिए दो लहसुन मुनक्का में लपेट कर भोजन के बाद चबाकर निगलने पर गैस बाहर निकल जाएगी।
* दानेदार मेथी की फंकी गर्म पानी में लेने से पेट दर्द दूर हो जाता है।
* सुबह-शाम दो भाग दही और एक भाग शहद मिलाकर चाटने से कीड़े मर जाते हैं।
* सरसों के तेल की मालिश पेट पर करने से कब्ज में आराम होता है।
* दो लौंग गर्म पानी से लेने पर जी मिचलाना, हिचकी, मुख का बिगड़ा स्वाद, चक्कर, उबकाई आना सब ठीक हो जाता है।
* अदरक के लच्छे पर नमक छिड़क कर भोजन के साथ सेवन करने पर दस्त में आराम मिलता है।
* पेचिश में भिंडी की सब्जी खाना लाभदायक है।
* पीलिया होने पर 1 कप पानी में 1 चम्मच ग्लूकोच डाल कर दिन में 5-5 बार लें।
* ताजे अदरक के छोटे-छोटे टुकडे करके चूसने से पुरानी नई सब तरह की हिचकी बंद हो जाती है।
* अदरक को घोलकर एक टुकड़ा मुख में रखकर चूसने से कफ आसानी से निकल जाती है।
* हफ्ते में दो बार लहसुन की 4 फली लेने पर सर्दी नहीं लगती।
* अजवायन को गर्म पानी के साथ लेने पर खांसी में आराम मिलता है।
* भोजन में हींग का प्रयोग अवश्य ही करें। दुर्बल हृदय को शक्ति मिलती है। रक्त संचार सरलता से होता है।
* दिल के दौरे पड़ने की संभावना होने पर 5 कलियां लहसुन तुरंत चबाकर निगल लें। दौरा पड़ने के चांस निर्मूल सिध्द होते हैं फिर लहसुन को दूध में उबाल कर लेते रहना चाहिए।
मोच
चने
मोच के स्थान पर चने बांधकर उन्हें पानी से भिगोते रहें। जैसे-जैसे चने फूलेंगे वैसे-वैसे मोच दूर होती जाएगी।
शहद
मोच वाले अंग पर शहद और चूना मिलाकर हल्की मालिश करने से आराम होता है।
तिल
तिलों की खली को पानी में कूटकर और पकाकर मोच के ऊपर गरम-गरम बांध देने से मोच जल्दी ही ठीक हो जाती है।
50 ग्राम तिल के तेल में 2 ग्राम अफीम को मिलाकर मोच से ग्रस्त अंग पर मालिश करने से लाभ मिलता है।
फिटकरी
फिटकरी के 3 ग्राम चूर्ण को आधा किलो दूध के साथ लेने से मोच और भीतरी चोट ठीक हो जाती है।
नौसादर
10-10 ग्राम नौसादर और कलमी शोरा को पीसकर 200 ग्राम पानी में मिलाकर इसमें कपड़ा भिगोकर बार-बार मोच पर लगाने से लाभ होता है।
सरसो
सरसो और हल्दी को गर्म करके लगाकर मोच वाले स्थान पर लगायें और एरण्ड के पत्ते को उस पर रखकर पट्टी बांध दें।
पान
पान के पत्ते पर सरसों का तेल लगाकर, पत्ते को गर्म करके मोच से ग्रस्त अंग पर बांध दें।
तेजपत्ता
मोच वाले स्थान पर तेजपत्ता और लौंग को पीसकर लेप लगायें। इससे धीरे-धीरे मोच के कारण आने वाली सूजन दूर हो जाती है।
तुलसी
तुलसी के पत्तों के रस तथा सरसों के तेल को एक साथ मिलाकर थोड़ी-थोड़ी देर बाद मोच वाले अंग पर लगाना लाभकारी रहता है।
ग्वारपाठा
मोच व सूजन पर ग्वारपाठे का रस लगाने से काफी आराम मिलता है।
धनिया
ऊंची नीची जगहों पर पैर पड़ जाने या शक्ति से अधिक सामान उठाने के कारण मोच आ जाती है। उस समय नस अकड़ जाती है और एक प्रकार का खिंचाव आ जाता है। रोगी को किसी भी करवट चैन नहीं पड़ता है। ऐसी दशा में 10 ग्राम पिसा हुआ धनिया, 5 ग्राम हल्दी 5 ग्राम और जीरा को एकसाथ मिलाकर तिली के तेल में अच्छी तरह से पका लेना चाहिए। इस तेल से कुछ देर तक धीरे-धीरे मालिश करने से मोच में आराम मिलता है।
ग्वारफली
जिस व्यक्ति को मोच या चोट लगी हो उसे तिल और ग्वार बराबर मात्रा में लेकर व पीसकर और पानी डालकर पिलाएं। फिर मोच या चोट वाली जगह पर इसे बांध दें। इस प्रयोग से मोच का दर्द दूर हो जाता है।
नमक
नमक को धीमी आग पर सेंककर गर्म-गर्म ही मोटे कपड़े में बांधकर मोच से पीड़ित अंग पर सिंकाई करने से आराम मिलता है।
नमक और सरसों के तेल को एकसाथ मिलाकर गर्म करके मोच पर लगाने से लाभ मिलता है।
सेंधानमक और बूरा को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 चम्मच सुबह और शाम पानी के साथ सेवन करने से मोच में लाभ मिलता है।
नमक और हल्दी को बारीक पीसकर लगाने से मोच या चोट के कारण होने वाले दर्द में आराम मिलता है।
इमली
किसी अंग में मोच आ जाने पर इमली की पत्तियों को पीसकर गुनगुना करके लेप लगाने से तुरंत ही आराम हो जाता है।
मरुआ
मरुआ के तेल की मालिश से मोच और रगड़पर आश्चर्यजनक लाभ होता है।
फोड़े-फुंसियां (फुरुन्क्ले)
दही
अगर फोड़े में सूजन, दर्द और जलन आदि हो तो उस पर पानी निकाले हुए दही को लगाकर पट्टी बांध देते हैं। एक दिन में 3 बार इस पट्टी को बदलने से लाभ होता है।
गाजर का रस
300 मिलीलीटर गाजर के रस और 112 मिलीलीटर पालक के रस को एकसाथ मिलाकर पीने से फोड़े-फुंसी, कैंसर, सांस की नली की सूजन, मोतियाबिन्द, जुकाम, कब्ज, आंखों के रोग, गलगण्ड, बवासीर, हर्निया, फ्लू, गुर्दे के रोग, पीलिया, हृदयशूल, और वात रोग ठीक हो जाते हैं।
280 मिलीलीटर गाजर का रस और लगभग 170 मिलीलीटर पालक का रस एकसाथ मिलाकर पीने से मुंहासे, कण्ठलूशाक, सफेद पदार्थ निकलना, दमा, मधुमेह, सिरदर्द, अनिद्रा, लीवर के रोग, आधे सिर का दर्द, बुखार आदि ठीक हो जाते हैं।
गाजर की गर्म पुल्टिश (पोटली) बांधने से फोड़े-फुन्सियों में लाभ होता है। यह फोड़े-फुन्सियों के जमे हुए खून को भी पिघला देती है।
मसूर की दाल
मसूर के आटे की पुल्टिश (पोटली) लगाने से फोड़े शीघ्र ही फूट जाते है और उसकी मवाद सूख जाती है। मसूर की दाल को पीसकर उसकी पुल्टिस (पोटली) को फोड़ों पर बांधने से वो ठीक हो जाते हैं।
मुलहठी
फोड़े पर मुलहठी का लेप लगाने से फोड़ा जल्दी पककर फूट जाता है।
अड़ूसा (वासा)
फोड़े-फुंसियों की प्रारंभिक अवस्था में ही अड़ूसा के पत्तों को पीसकर बनाया गया गाढ़ा लेप लगाकर बांध देने से वह बैठ जाते हैं। यदि फोड़े पक गए हो तो वह शीघ्र ही फूट जाते हैं। फूटने के बाद इस लेप में थोड़ी सी पिसी हल्दी मिलाकर लगाने से घाव शीघ्र भर जाते हैं।
गेंदा
गेंदे के पत्तों को पीसकर फोड़े-फुंसियों पर 2-3 बार लगाने से लाभ मिलता है।
कनेर
कनेर के लाल फूलों को पीसकर लेप तैयार करें। इस लेप को फोड़े-फुन्सियों पर दिन में 2 से 3 बार नियमित रूप से लगाने से लाभ मिलता है।
कनेर की जड़ की छाल को पीसकर पके हुए फोड़े पर लेप करने से फोड़ा 3 से 4 घंटे में ही फूट जाता है।
इमली
फोड़े होने पर 30 ग्राम इमली को 1 गिलास पानी में मसलकर मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।
इमली के 10 ग्राम पत्तों को गर्म करके उसकी पुल्टिश (पोटली) बनाकर बांधने से फोड़ा पककर जल्दी फूट जाता है।
इमली के बीजों की पुल्टिश (पोटली) बांधने से फुंसियां मिट जाती हैं।
अजवाइन
नींबू के रस में अजवाइन को पीसकर फोड़ों पर लेप करना चाहिए।
सूजन आने पर अजवाइन को पीसकर उसमें थोड़ा-सा नींबू निचोड़कर फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
प्याज
प्याज को कूटकर पीस लें। फिर उसमें हल्दी, गेंहू का आटा, पानी और शुद्ध घी मिलाकर थोड़ी देर आग पर रखकर पकाकर पोटली बनाकर फोड़े पर बांधने से फोड़ा फूट जाता है और आराम मिलता है।
फोड़े, गांठ, मुंहासे, नारू, कंठमाला (गले की गिल्टी) आदि रोगों पर प्याज को घी में तलकर बांधने से या प्याज के रस को लगाने से लाभ पहुंचता है।
प्याज को पीसकर उसकी पोटली बनाकर फोड़े पर बांधने से फोड़ा फूट जाता है और उसकी मवाद निकलने के बाद फोड़ा सूख जाता है।
अलसी
एक चौथाई अलसी के बीजों को बराबर मात्रा में सरसों के साथ पीसकर गर्म करके लेप बना लें। फोड़े पर 2-3 बार यह लेप करने से फोड़ा बैठ जाता है या पककर फूट जाता है।
अलसी को पानी में पीसकर उसमें थोड़ा जौ का सत्तू मिलाकर खट्टे दही के साथ फोड़े पर लेप करने से फोड़ा पक जाता है।
वात प्रधान फोड़े में अगर जलन और वेदना हो तो तिल और अलसी को भूनकर गाय के दूध में उबालकर, ठंडा होने पर उसी दूध में उन्हें पीसकर फोड़े पर लेप करने से लाभ होता है।
अगर फोड़े को पकाकर उसका मवाद निकालना हो तो अलसी की पुल्टिस (पोटली) में 2 चुटकी हल्दी मिलाकर फोड़े पर बांध दें।
अमरूद
4 सप्ताह तक रोजाना दोपहर में 250 ग्राम अमरूद खाने से पेट साफ होता है, बढ़ी हुई गर्मी दूर होती है, खून साफ होता है और फोड़े-फुन्सी तथा खाज-खुजली ठीक हो जाते हैं।
अमरूद की थोड़ी सी पत्तियों को लेकर पानी में उबालकर पीस लें। इस लेप को फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
अनानास
अनानास का गूदा फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
लालमिर्च
बरसात के मौसम में होने वाले फोड़े-फुंसियों और खुजली आदि में लालमिर्च के तेल को सेवन करने से फोड़े-फुंसी जल्दी ठीक जाते हैं।
गर्मी के मौसम में शरीर पर दाने या फुंसियां हो जाती है उन्हें खत्म करने के लिए मिर्ची के तेल को लगाने से राहत मिलती है और फोडे़-फुंसियां भी ठीक हो जाती हैं।
नीम
नीम की 6 से 10 पकी निंबौली को 2 से 3 बार पानी के साथ सेवन करने से फुन्सियां कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाती है।
नीम, तुलसी और पोदीने की पत्तियों को पीसकर उसमें मुलतानी मिट्टी और चन्दन का चूर्ण मिलाकर बनें मिश्रण को चेहरे पर लगाने से चेहरे के मुंहासे समाप्त होकर त्वचा निखर जाती है।
नीम की पत्तियों का रस पानी में मिलाकर नहाने से खाज-खुजली नष्ट हो जाती है।
नीम की पत्तियों को पीसकर फोडे़-फुन्सियों पर लगाने से लाभ होता हैं।
नीम के पत्ते, छाल और निंबौली को बराबर मात्रा में पीसकर बने लेप को दिन में 3 बार लगाने से फोड़े-फुन्सी और घाव जल्दी ठीक हो जाते हैं।
नीम की पत्तियों को गर्म करके या नीम की छाल को घिसकर फोड़े-फुन्सी और बिच्छू के काटे भाग पर लगाकर सेंकने से लाभ पहुंचता है।
नीम के पत्ते को पीसकर शहद के साथ मिलाकर लेप करने से फूटे हुए फोड़े जल्दी ठीक हो जाते हैं।
नीम के पत्ते को पीसकर दही और बेसन में मिलाकर चेहरे व दूसरे अंगों में लगाने से और कुछ देर बाद पानी से साफ कर देने से चेहरे की फुंसियां और मुंहासे समाप्त होकर त्वचा निखर उठती हैं।
175 ग्राम नीम के पत्तों को बिना पानी डाले पीसकर लुगदी बना लें। तांबे के बर्तन में इसका आघा हिस्सा सरसों का तेल डालकर गर्म करें, तेल में धुंआ आने पर इसमें बनी हुई लुगदी डाल दें। लुगदी तेल में जलकर काली पड़ने पर उतारकर ठंडा कर दें। फिर इसमें कपूर और जरा-सा मोम डालकर पीस लें। इस बने लेप को लगाने से फोड़े-फुंसियों में लाभ होता है।
मार्च-अप्रैल के महीने में जब नीम की नयी-नयी कोंपलें (मुलायम पत्तियां) खिलती है तब 21 दिन तक युवा लोगों को नीम की ताजी 15 कोंपले (मुलायम पत्तियां) और बच्चों को 7 पत्तियां रोजाना गोली बनाकर दातुन-कुल्ला करने के बाद पानी के साथ खाने से या पीसकर लगाने से पूरे साल तक फोड़े-फुंसिया नहीं निकलती है।
एरण्ड
एरण्ड की जड़ को पीसकर घी या तेल में मिलाकर कुछ गर्म करके गाढ़ा लेप करने से विद्रधि (फोड़ा) मिट जाती है।
तिल
8 ग्राम काले तिल, 2 ग्राम सोंठ और 4 ग्राम गुड़ के मिश्रण को गर्म दूध के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से लाभ होता है।
100 ग्राम तिल के तेल में भिलावे को जलाकर उसमें 30 ग्राम सेलखड़ी को पीसकर मिला दें। यह हर प्रकार के जख्म को अच्छा कर देती है। मगर जब जख्म पर लगाएं तो मुर्गी के पंख से ही लगाएं।
बेर
बेर के पत्तों को पीसकर गर्म करके उसकी पट्टी बांधने से और बार-बार उसको बदलते रहने से फोड़े जल्दी पककर फूट जाते हैं।
नारियल
100 ग्राम नारियल का तेल, 10 ग्राम मुहार की मिक्खयों का मोम और 2 चम्मच तुलसी के पत्तों के रस को मिलाकर थोड़ी देर के लिये आग पर पकाने के लिए रख दें। फिर इसे आग पर से उतारकर ठंडा करके इस लेप को कुछ दिनों तक फोड़े-फुंसियां पर लगाने से वो ठीक हो जाती है।
नींबू
नींबू के रस में चन्दन का चूर्ण डालकर फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
जामुन
जामुन की गुठलियों को पीसकर फुंसियों पर लगाने से फुंसियां जल्दी ठीक हो जाती है।
मेहन्दी
शरीर में जहां पर फोड़े-फुंसिया हो उस जगह को मेहन्दी के पानी से धोने से लाभ होता है।
मोम
मौलसिरी की छाल को लेकर सुखा लें। फिर उसे पीसकर मोम या वैसलीन में मिला लें। इसे दिन में 3 से 4 बार लगाने से फोड़े और फुंसिया ठीक हो जाती है।
कपूर
20 ग्राम राल, 20 ग्राम कपूर, 10 ग्राम नीला थोथा, 20 ग्राम मोम और 20 ग्राम सिन्दूर को पीसकर घी में मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को फोड़े-फुंसियों पर लगाने से आराम मिलता है।
कटहल
कटहल की लकड़ी को घिसकर उसके अन्दर कबूतर की बीट मिला लें। उसके बाद उसमें लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग चूना मिलाकर इसका लेप करने से लाभ होता है।
तुलसी
तुलसी के पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से फोड़े को धो लेते हैं। तुलसी के ताजा पत्तों को पीसकर फोड़ों पर लगाना चाहिए। इससे फोड़ों में लाभ मिलता है।
तुलसी और पीपल के नये कोमल पत्तों को बराबर मात्रा में पीसकर फोड़ों पर प्रतिदिन 3 बार लगाना चाहिए। इससे फोड़े जल्दी नष्ट हो जाते हैं।
गर्मी या वर्षा ऋतु में होने वाली फुंसियों पर तुलसी की लकड़ी को घिसकर लगाने से लाभ मिलता है।
हल्दी
भृंगराज (भंगारा), हल्दी, सेंधानमक और धतूरे के पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और गर्म करके फोड़े-फुंसियों पर लेप करें या आंबाहल्दी, प्याज और घी को गर्म करके बांध लें।
पानी
रोजाना रात को फुंसियों पर गर्म पानी से सिंकाई करने से लाभ होता है।
करेला
फुंसियों पर थोड़े दिन तक करेले का रस लगाने से फुंसिया सूख जाती है।
बरगद
बरगद के दूध को फोड़े पर लगाने से फोड़ा जल्दी पककर फूट जाता है।
बरगद के नये पत्तों को आग के ऊपर से ही हल्का सा गर्म करके उसके ऊपर थोड़ा सा तेल लगाकर बांधने से लाभ होता है।
घी
अगर फोड़े को पकाना हो तो पान के पत्ते पर थोड़ा सा घी गर्म करके फोड़े पर लगाकर बांध दें।
बैंगन
फोड़े, फुन्सी होने पर बैंगन की पट्टी बांधने से फोड़े जल्दी पक जाते हैं।
बेल
खून के विकार से उत्पन्न फोड़े-फुंसियों पर बेल के पेड़ की जड़ या लकड़ी को पानी में पीसकर लगाने से लाभ पहुंचता है।
बथुआ
बथुए को कूटकर सोंठ और नमक के साथ मिलाकर गीले कपड़े में बांधकर कपड़े पर गीली मिट्टी लगाकर आग में सेंकें। सेकने के बाद बांध लें, इस प्रयोग से फोड़ा बैठ जायेगा अथवा पककर जल्दी फूट जायेगा।
परवल
कड़वे परवल और कड़वे नीम के काढ़े से फोड़ों को धोने से फोड़े साफ हो जाते हैं।
पीपल
पीपल के कोमल पत्ते को घी लगाकर गर्म करके फुंसी-फोड़े पर बांधने से लाभ होता है।
पीपल की छाल को पानी में घिसकर फोड़े-फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
फोड़ों को पकाने के लिए पीपल की छाल की पुल्टिश (पोटली) बनाकर फोड़े पर बांधने से लाभ मिलता है।
पीपल के पत्ते को गर्म करकें पत्ते की सीधी तरफ थोड़ा सा असली शहद या सरसों का तेल लगाकर फोड़े पर बांधने से लाभ होता है।
पीपल की छाल का चूर्ण जख्म पर छिड़कने से भी लाभ मिलता है।
विशेष
नीम की नई-नई कोंपलों को सुबह खाली पेट खाना चाहिए और उसके बाद 2 घंटे तक कुछ नहीं खाना चाहिए। इससे खून की खराबी, खुजली, त्वचा के रोग, वात (गैस), पित्त (शरीर की गर्मी) और कफ (बलगम) के रोग जड़ से खत्म हो जाते हैं। इसको लगातार खाने से मधुमेह (डायबटिज) की बीमारी भी दूर हो जाती है। इससे मलेरिया और भयंकर बुखार के पैदा होने की संभावना भी नहीं रहती पर ध्यान रखना चाहिए कि बड़ों को 15 कोंपलें (मुलायम पत्तों) और बच्चों को 7 कोपलों से ज्यादा नहीं देनी चाहिए और ज्यादा समय तक भी नहीं खाना चाहिए। नहीं तो मर्दाना शक्ति भी कमजोर हो जाती है।
शीशम
शीशम के पत्तों का 50 से 100 मिलीलीटर काढ़ा सुबह-शाम पीने से फोड़े-फुन्सी नष्ट हो जाते हैं। कोढ़ होने पर इसके पत्तों का काढ़ा रोगी को पिलाना लाभकारी रहता है।
अखरोट
यदि फुंसियां अधिक निकलती हो तो 1 वर्ष तक रोजाना सुबह के समय 5 अखरोट सेवन करते रहने से लाभ होता है।
मेथी
दाना मेथी को थोड़े-से पानी में भिगोकर, पीसकर उसमे थोड़ा-सा घी या तेल डालकर गर्म करके पुल्टिश बनाकर बांधने से फोड़े-फुंसी, सूजन और दर्द में लाभ मिलता है।
मेथी के पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से कोष्ठबद्धता (कब्ज) नष्ट होती है, खून शुद्ध होता है और फोडे़-फुंसियों की विकृति भी नष्ट हो जाती है।
काजू
काजू की कच्ची गिरी और तीवर के फल को ठंडे पानी में घिसकर लेप करने से फोड़ा जल्दी मिट जाता है।
दूब
पके फोड़े पर प्रतिदिन दूब को पीसकर लेप करने से फोड़ा जल्दी फूट जाता है।
चावल
सरसों के तेल में पिसे हुए चावलों की पुल्टिश बनाकर बांधने से फोड़ा फूट जाता है एवं पस निकल जाती है।
मिट्टी
सूजन, फोड़ा, उंगुली की विषहरी हो (उंगुली में जहर चढ़ने पर), तो गीली मिट्टी का लेप हर आधे घण्टे तक करते रहने से लाभ होता है। फोड़ा बड़ा तथा कठोर हो, फूट न रहा हो तो उस पर गीली मिट्टी का लेप करें। इससे फोड़ा फूटकर मवाद बाहर आ जाती है। बाद में गीली मिट्टी की पट्टी बांधते रहें। मिट्टी की पट्टी या लेप फोड़ों को बाहर खींच निकालता है।
शरीर पर अगर फोड़े-फुंसी निकल रहे हो और फूट नहीं रहे हो तो उन पर काली मिट्टी का लेप करना चाहिए।
चन्दन
चन्दन को पानी में घिसकर लगाने से फोडे़-फुन्सी और घाव नष्ट हो जाते हैं।
राई
राई का लेप सदा ठंडे पानी में बनायें। राई का लेप सीधे त्वचा पर न लगाये इसका लेप लगाने से पहले त्वचा पर घी या तेल लगा लें क्योंकि इसका लेप सीधे लगाने से फोड़े-फुंसी आदि होने का डर रहता है। राई को ताजे पानी के साथ बारीक पीसकर लेप बनाकर साफ मलमल के कपड़े पर पतला-पतला लेप करके इस कपड़े को रोगी के फोड़े-फुंसी से पीड़ित अंग पर रख दें।
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