शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

एसीडिटी को जड़ से उखाड़ फेंकेगा यह देसी नुस्खा


अच्छा और स्वादिष्ट खाना मिले तो खाने वाले को ध्यान ही नहीं रहता कि वह कितना रहा है इसीलिए कभी-कभी ज्यादा खा लेने पर एसीडिटी हो जाती है। इसके विपरित ज्यादा समय तक भुखे रहने पर भी  एसीडिटी हो जाती है।





ऐलोपेथिक दवाई लेने पर एसीडिटी से थोड़े समय के लिए निजात तो जरूर मिल जाती है लेकिन पूरी तरह छुटकारा नहीं मिलता है। इसीलिए एसीडिटी मिटाने के लिए आयुर्वेदिक देसी नुस्खे सबसे अधिक कारगर होते है।

आयुर्वेद और यूनानी पद्धति में तो शहद एक शक्तिवर्धक औषधी के रूप में लंबे समय से प्रयुक्त किया  जा रहा है। इसके विभिन्न गुण अब दुनिया भर में किए जा रहे शोधों से उजागर हो रहे हैं।




दालचीनी और शहद का योग पेट रोगों में भी लाभकारी है। पेट यदि गड़बड़ है तो इसके लेने से पेट दर्द ठीक हो जाता है और पेट के छाले भी खत्म हो जाते हैं। खाने से पहले दो चम्मच शहद पर थोड़ा-सा दालचीनी पावडर बुरककर चाटने से एसिडिटी में राहत मिलती है और खाना अच्छे से पचता है।

आयुर्वेद से जुड़ी ये बाते हैं अजीब लेकिन सच!

आयुर्वेद एक संपूर्ण विज्ञान है, जिसके कई पहलूओं को जानना आज के विज्ञान के लिए चुनौती है। आयुर्वेद के ग्रन्थ चरक संहिता के इन्द्रिय स्थान में किसी रोगी के ठीक होने के लक्षणों तथा मृत्यु सूचक लक्षणों को देखकर पहचानने का वर्णन है,जो बड़ा रोचक है ऐसे ही कुछ रोचक पहलूओं को आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है:-

-यदि रोगी दही ,अक्षत,अग्नि,लड्डू ,बंधे हुए पशु, बछडे  के साथ गाय ,बच्चे के साथ स्त्री,सारस ,हंस,घी.सैंधा नमक ,पीली सरसों ,गोरोचन,मनुष्यों से भरी गाडी आदि देखता हो तो आरोग्य प्राप्त  करता है।

-रोगी द्वारा अच्छी सफ़ेद वस्तुओं को देखना,मधुर रस ,शंख ध्वनि सुनना आदि भी शीघ्र ठीक होने के लक्षण बताये गए हैं ।

 -ऐसे ही आयुर्वेद में स्वप्न से सम्बंधित अरिष्ट लक्षणों को भी बताया गया है-जैसे यदि व्यक्ति सपने में स्नान और चन्दन का लेप किया हुआ दिखे तहा मक्खियाँ उसके शरीर पर बैठी हों तो वह व्यक्ति मधुमेह से पीडि़त होकर मृत्यु को प्राप्त होगा ऐसा वर्णित है।

-ऐसे ही जो व्यक्ति स्वयं को सपने में नग्न देखता है,तथा संपूर्ण शरीर में घृत लगाया हुआ ,तथा जिस अग्नि में  ज्वाला नहीं है उसमें हवन करता हुआ देखता है वैसे व्यक्ति के असाध्य त्वचा रोगों से पीडि़त होकर मृत्यु क ी संभावना बतायी गयी है।

-जो व्यक्ति हमेशा ध्यान में रहे तथा श्रम न करने पर भी थकान महसूस करे ,बिना कारण बैचैन हो,जहां मोह नहीं करना चाहिए वहां मोह करे,पूर्व में क्रोधी न हो पर अचानक क्रोधी स्वभाव का हो जाय,मूर्छा एवं प्यास से पीडि़त हो तो समझें वह मानसिक रोग से पीडि़त हो जाएगा।

-यदि रोगी व्यक्ति स्वप्न में कुत्ते ,ऊंट क़ी  सवारी करता हुआ दक्षिण दिशा क़ी ओर जाता हो तथा विचित्र प्रकार की आकृतियों  के साथ मदिरा पान करता हुआ स्वयं को देखता हो तो वह रोगों के समूह यक्ष्मा से पीडि़त होगा ,ऐसा वर्णित है।

-यदि व्यक्ति किसी जल भरे तालाब या नदी में जहां जाल नहीं बिछाया गया है जाल देखता है तो उसकी मृत्यु निश्चित है, ऐसा जानें।

-यदि रोगी के उदर पर सांवली,ताम्बे के रंग क़ी ,लाल,नीली ,हल्दी के तरह क़ी रेखाएं उभर जाएँ तो रोगी का जीवन खतरे में है, ऐसा बताया गया है।

-यदि व्यक्ति अपने केश एवं रोम को पकड़कर खींचे और वे उखड जाएँ तथा उसे वेदना न हो तो रोगी क़ी आयु पूर्ण हो गयी है, ऐसा मानना चाहिए।

 - व्यक्ति  स्वप्न में अपने शरीर पर लताएं उत्पन्न देखे  और पछी  उसपर घोंसले बनाकर रहे हुए दिखें तो उसके जीवन में संदेह है इसी प्रकार यदि स्वप्न में व्यक्ति यदि अपना बाल उतरा हुआ देखे तो भी वह रोगी होगा  ऐसा उल्लेखित है।

-जिस व्यक्ति का श्वांस छोटा चल रहा हो तथा उसे कैसे भी शान्ति न मिल रही हो तो उसका बचना मुश्किल है।

-यदि रोगी व्यक्ति स्वप्न में पर्वत ,हाथी घोड़े पर स्वयं को या अपने हितैषियों को चढ़ते हुए देखता है,साथ ही समुद्र या नदी में तैरते हुए उसको पार करता हुआ देखता है ,चन्द्रमा,सूर्य एवं अग्नि  को प्रकाशित देखता है  तो वह आरोग्य को प्राप्त होगा।

-इसी प्रकार व्यक्ति का थूक या मल पानी में डूब जाय तो आयुर्वेद के ऋषियों केअनुसार उसकी मृत्यु निश्चित मानना चाहिए।

संभवत: आयुर्वेद के मनीषियों द्वारा व्यापक अनुभव के आधार पर एकत्रित यह ज्ञान, चिकित्सकों एवं रोगी के परिवारजनों की जानकारी के लिए रोगी के ठीक होने और न होने की संभावना को व्यक्त करने के उद्देश्य से बताये गए हों,जो आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। 

आसान घरेलू फंडे से दूर भगाएं गले की खिच-खिच

गले में खिच-खिच, हल्का और भारी खिंचाव, गले में दर्द, कुछ खाने व निगलने में परेशानी होना ये सब अक्सर गले में खराश होने के कारण होता है। गले में खराश की समस्या सामान्य रूप से वाइरस या बैक्टिरिया के सक्रमण के कारण होती है। कभी - कभी एंटिबायोटिक्स लेने पर भी खराश पीछा नहीं छोड़ती है। माना जाता है ऐसा पेट के एसिड में अनैसर्गिक कमी होने का कारण हो सकता है। ऐसे में घरेलु उपचार ही सबसे कारगर होते हैं। अगर लंबे समय से गले की खराश से परेशान हैं तो नीचे लिखे उपाय जरूर अपनाएं।

- 1-2 लहसुन की कलियाँ और 2लोंग ले कर उसका पेस्ट बनाये और उसे 1 कप मधु के साथ मिलाएं। इस घोल का 1 चम्मच सुबह शाम सेवन करें।

- गरम दूध में जरा सा हल्दी पावडर मिला के सोने से पहले सेवन करने पर भी आराम मिलता है।

- एक पूरा प्याज को थोड़े से पानी में उबालें।उसके बाद उसे पीस कर उसमे थोडा मक्खन नमक मिला ले और इस पेस्ट का सेवन करें।एक बार में ही आराम मिल जायेगा।

- शहद में अदरक का रस मिलाकर सेवन करें।

- सौंफ चबाने से भी गले की खराश दूर होती है।

- तुलसी की पत्तियों को उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है।

शुभंगकरण प्रकरण




श्लोक-3. रूपं गुणो वयस्त्याग इति सुभंगकरणम्।।3।।
अर्थ- रूप, गुण, उम्र तथा त्याग- ये चार चीजें ऐसी होती हैं जो मनुष्य को सौभाग्यशाली बना देती हैं।
श्लोक-4. तगरकुष्ठतालीसपत्रकांनलेपनं सुभगंकरणम्।।4।।
अर्थ- तगर, कूट, तीलीश पत्र का लेप लगाने से सौभाग्य और शारीरिक सौन्दर्यता में वृद्धि होती है।
श्लोक-5. एतैरेव सुपिष्टैर्वर्तिमालिप्याक्षतैलेन नरकपाले साधितमञ्जनं च।।5।।
अर्थ- उपर्युक्त दी गयी औषधियों को कूट-पीसकर, रूई की बत्ती में उस चूर्ण को लपेटकर बहेड़े के तेल में जलाकर मनुष्य की खोपड़ी में काजल पार कर लें।
श्लोक-6. पुनर्नवासहदेवीसारिवाकुरण्टोत्पलपत्रैश्च सिद्धं तैलमभ्यञजनम्।।6।।
अर्थ- पुनर्नवा (पथरचटा-गदहपुरैना), सहदेई, सारिवा (छितवन), अनंतमूल, कुरंट (लाल फूल का पिया बासां) तथा उत्पल (नीलकमल) इन सभी का तेल बनाकर लगाने से सौभाग्य और सुंदरता में वृद्धि होती है।
श्लोक-7. तद्युक्ता एव स्त्रजश्च।।7।।
अर्थ- उपरोक्त वस्तुओं की माला बनाकर पहनना।
श्लोक-8. पद्योत्पलनागकेराणां शोषितानां चूर्ण मधुघृताम्यामवलिह्य सुभगो भवति।।8।।
अर्थ- सूखे कमल, नीलकमल के फूल के तथा नागकेसर के चूर्ण को शहद तथा घी के साथ मिलाकर सेवन करने से सौभाग्य और सुंदरता में वृद्धि होती है।
श्लोक-9. तान्येव तगरतालीसतमालपत्रयुक्तान्यनुलिप्य।।9।।
अर्थ- इन वस्तुओं में तगर, तालीसपत्र, तमालपत्र मिलाकर सौभाग्य और सुंदरतावर्धक लेप भी तैयार किया जाता है।
श्लोक-10. मयूरस्याक्षि तरक्षोर्वा सुवर्णेनावलिप्य दक्षिणहस्तेन धारयेदिति सुभगंकरणम्।।10।।
अर्थ- मोर तथा चीते की आंखे सोने के ताबीज में भरकर दाहिने हाथ में बांधने से सुंदरता तथा सौभाग्य में वृद्धि होती है।
श्लोक-11. तथा बादरमणिं शंखमणिं च तथैव तेषु चाथर्वणान्योगान् गमयेत्।।11।।
अर्थ- इसी तरह बादरमणि तथा शंखमणि भी हैं, अथर्वेद में लिखे हुए इनके प्रयोग को समझ लेना चाहिए।
श्लोक-12. विद्यातंत्रच्च विद्यायोगात्प्राप्तयौवनां परिचारिकां स्वामी संवत्सरमात्रमन्यतो वारयेत्। ततो वारितां बालां वामात्वाललालसीभूतेषु गम्येषु योऽस्यै संघर्षेण बहु दद्यात्तस्मै विसृजेदिति सौभाग्यवर्धनम्।।12।।
अर्थ- विद्यातंत्र तथा विद्यायोग से यौवन प्राप्त नौकरानी को उसका मालिक साल भर तक दूसरे यौन संबंध बनाने से रक्षा करें। इस प्रकार से रक्षित परिचारिका को दूसरे लोग बाला समझकर उससे सेक्स करने तथा शादी करने की इच्छा प्रकट करेंगे। इस तरह की प्रतियोगिता में जो व्यक्ति सबसे अधिक धन दे, मालिक को उसी के साथ परिचारिका की शादी करनी चाहिए।
श्लोक-13. गणिका प्राप्तयौवनां स्वां दुहितरं तस्यां विज्ञानशीलरूपानुरूप्येण तानभिनिमन्त्रय सारेण योऽस्या प्राप्तयौवनां स्वां दुहितरं तस्या विज्ञानशीलरूपानुरूप्येण तानभिनिमन्त्र्य सारेण योऽस्या इदमिदं च दद्यात्य पार्णिगृहणीयादिति संभाष्य रक्षयेदित।।13।।
अर्थ- गणिका की पुत्री जब युवा हो जाए तो उसकी मां को अपनी तरुणी पुत्री के समान सुंदर, रूप, गुण, शील तथा यौवन संपन्न युवकों को आमंत्रित करके यह घोषणा करे कि जो व्यक्ति कि जो युवक उसकी पुत्री को जरूरत की सभी वस्तुएं उपलब्ध करायेगा उसके साथ मैं अपनी पुत्री की शादी कर दूंगी। इस तरह अपनी लड़की की शादी करके गणिका उसके चरित्र को बचा सकती है।
श्लोक-14. सा च मातुरविदिता नाम नागरिकपुत्रैर्धनिभिरत्यर्थ प्रीतेत।।14।।
अर्थ- उस युवा वेश्या पुत्री को आये हुए प्रेमियों के साथ इस तरीके का प्रेम-व्यवहार प्रदर्शित करे मानो उसकी मां को इसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं है।
श्लोक-15. तेषां कलाग्रहणे गंधर्वशालायां भिक्षुकीभवने तत्र तत्र च संदर्शनयोगाः।।15।।
अर्थ-  धनी लोगों, राजाओं या उच्च परिवार के युवक जब कला की शिक्षा लेने के लिए वेश्या के घर आये तो उनसे मिलने का अवसर अपनी तरुणी पुत्री को दे तथा वह लड़की अपने घर में मिलने के बाद गंधर्व शाला, भिक्षुकों के घर जहां कहीं अवसर प्राप्त हो, उनसे भेंट प्रेम करती है।
श्लोक-16. तेषां यथोक्तदायिनां माता पाणिं ग्राहयेत्।।16।।
अर्थतरुणी वेश्या पुत्री का मां जिन चीजों की मांग करती है तथा जिससे वे वस्तुएं प्राप्त हों, उसी के साथ अपनी पुत्री की शादी करें।
श्लोक-17. तावदर्थमलभमाना तु स्वेनाप्येकदेशेन दुहित्र एतद्दत्तमनेनेति ख्यापयेत्।।17।।
अर्थ- घोषित चीजें यदि निश्चित मात्रा में कोई न दे सके तो अपने ही धन को दिखाकर वेश्यापुत्री की मां कहे कि यह पूरा धन मेरी बेटी को इसी व्यक्ति ने दिया है।
श्लोक-18. ऊढाया वा कन्याभावं विमोचयेत्।।18।।
अर्थ- वेश्या को चाहिए कि जब उसकी कन्या बड़ी हो जाए तब उपर्युक्त विधि से युवकों को फंसाकर उनसे अपनी तरुणी कन्या को सेक्स कराकर उसका कौमार्य भंग कराना चाहिए।
श्लोक-19. प्रच्छन्न वा तैः संयोज्य स्वयमजानती भूत्वा ततो विदितेष्वेतं धर्मस्थेषु निवेदयेत्।।19।।
अर्थ- प्रच्छन्न रूप से उन तरुणों से मिलकर उनके प्रेम की खबर राज्याधिकारी तक पहुंचा दे तथा फिर वह मां उन प्रेमियों के खिलाफ अदालत में फरियाद भी करती है।
श्लोक-20. सख्यैव तु दास्या वा मोचितकन्याभावां सुगृहातकामसूत्रामाभ्यासिकेषु योगेषु प्रतिष्ठितां प्रतिष्ठते वयसि सौभाग्ये च दुहितरमवसृजंति गणिका इति प्राच्योपचाराः।।20।।
अर्थ- सबसे पहले प्रदेश की कन्याएं अपनी लड़की की सहेली तथा दासी के द्वारा लड़की का कौमार्य भंग कराकर सेक्स क्रिया के रहस्यों तथा योगों का अभ्यास कराती हैं। उन अभ्यासों, कलाओं में पूरी कुशलता प्राप्त कर लेने पर वेश्या की लड़की का भाग्य युवावस्था के साथ ही चमक जाता है। तब वे अपनी पुत्री को वेश्याचरित्र में निपुण जानकर आजाद कर देती हैं।
श्लोक-21. पाणिग्रहश्च संवत्सरमव्यभिचार्यस्ततो यथा कामिनी स्यात्।।21।।
अर्थ- जिस व्यक्ति ने वेश्या की पुत्री के साथ शादी की है, उसके साथ वेश्या-पुत्री को एक साल तक रहना चाहिए। इसके बाद जहां वह चाहे या जो उससे सेक्स करने की इच्छा करे वहां उसके साथ वह स्वेच्छा से सेक्स करे।
श्लोक-22. ऊर्ध्वमपि संवत्सरात्परिणीतेन निमन्त्र्यमाणा लाभामप्युत्सृज्य तां रात्रिं तस्यागच्छेदिति वेश्यायाः पाणिग्रहणविधिः सौभाग्यवर्धनं।।22।।
अर्थ- एक साल के बाद जब विवाहित वेश्या-पुत्री का पति बुलाए तो वह अर्थलाभ को छोड़कर उस रात उसके साथ सेक्स करने के लिए जाए। वेश्या की शादी तथा सौभाग्यवर्धन के बारे में किया गया उल्लेख यही समाप्त होता है।
श्लोक-23. एतेन रंगोपजीविनां कन्या व्याख्याताः।।23।।
अर्थ- थियेटर पर डांस और नाटकों में काम करने वाली लड़कियों की शादी इसी प्रकार से होती है।
श्लोक-24. तस्मै तु तां दद्युर्य एषां तूर्ये विशिष्टमुपकुर्यात्। इति सुभंगकरणम्।।24।।
अर्थ- लेकिन अभिनय करने वाली तथा नाचने वाली की पुत्री की शादी उसी के साथ की जानी चाहिए जिसकी रुचि उसके कैरियर को आगे ले जाने में हो।
श्लोक-25. धत्रूरकमरिचपिप्पलीचूर्णैर्मधुमिश्रैर्लिप्तलिंगस्य सम्प्रयोगो वशीकरणम्।।25।।
अर्थ- धतूरा, कालीमिर्च तथा छोटी पीपल के चूर्ण में शहद मिलाकर लिंग पर लेप करके जिस स्त्री से सेक्स किया जाए, वह वशीभूत हो जाती है।
श्लोक-26. वतोद्भान्तपत्रं मृतकनिर्माल्यं मयूरास्थिचू्र्णावचूर्ण वशीकरणम्।।26।।
अर्थहवा में उड़े हुए पत्ते, शव पर चढ़ाया गया चंदन, मोर की हड्डी के चूर्ण का लेप बनाकर लिंग पर लेप करें तथा सेक्स करें तो वह स्त्री वशीभूत हो जाती है।
श्लोक-27. स्वयं मृताया मण्डलकारिकायाश्चूर्णं मधुसंयुक्तं सहामलकैः स्त्रान वशीकरणम्।।27।।
अर्थ- अपने आप मरे हुए गिद्ध के चूर्ण में शहद मिलाकर आंवले के रस के साथ लेप लगाकर स्नान करें। इसके बाद सेक्स करने से स्त्री वश में हो जाती है।
श्लोक-28. वज्रस्नुहीगण्डकानि खण्डशः कृतानि मनःशिलागंधपाषाणचूर्णनाभ्यज्य सप्तकृत्वः शोषितानि चूर्णयित्वा मधुना लिप्त लिंगस्य संप्रोयोगो वशीकरणम्।।28।।
अर्थ- थूहर की गांठे टुकड़े-टुकड़े करके उसमें मैनसिल तथा गंधक को लपेटकर सात बार सुखा लें। फिर उसका चूर्ण बनाकर शहद के साथ लिंग पर लेप करके जिस स्त्री के साथ सेक्स करेंगे। वह वशीभूत हो जाती है।
श्लोक-29. एतेनैव रात्रौ धूमं कृत्वा तद्धमतिरस्कृतं सौवर्णं चन्द्रमसं दर्शयति।।29।।
अर्थ- उपर्युक्त चीजों के चूर्ण को रात के समय धुंआ कर देने पर धुंएं से ढका हुआ चांद सोने के समान दिखाई देता है।
श्लोक-30. एतेरैव चूर्णितैर्वानरपुरीषमिश्रितैर्या कन्यामकिरत्साऽन्यस्मै न दीयते।।30।।
अर्थ- अथवा इन्हीं वस्तुओं के चूर्ण में मनुष्य या बंदर की विष्ठा (मल) मिलाकर जिस लड़की के ऊपर छिड़क देंगे। वह लड़की वशीभूत हो जाती है।
श्लोक-31. वचागण्डकानि सहकारतैललिप्तानि शिंशपावृक्षस्कन्धमुत्कीर्य षण्मासं निदध्यात् ततः षडभिर्मासैरपनीतानि देवकांतमनुलेपनं वशीकरणं चेत्याचक्षते।।31।।
अर्थ- वच की गांठों को आम के तेल से गीला करके, शीशम के तने खोदकर उसमें 6 महीने तक बंद रखें। 6 महीने बाद फिर उसका लेप शरीर में लगायें तो स्त्री वशीभूत हो जाती है। इस लेप को देवकांत कहा जाता है। इस लेप को लगाने से उसके शरीर की चमक बढ़ जाती है।
श्लोक-32. तथा खदिरसारजानि शकलानि तनूनि यं वृक्षमुत्कीर्य षण्मासं निदघ्यात्तत्पुष्पगंधानि भवन्ति गंधर्वकान्तमनुलेपनं वशीकरणं चेत्याचक्षते।।32।।
अर्थ- इसी प्रकार खादिरसार (कत्था) की लकड़ी के टुकड़ों को पतला करके आम के तेल से भिगोकर जिस पेड़ के तने में 6 महीने तक गाड़े रखें तथा फिर उसका लेप करें तो उसी पेड़ के समान सुगंध शरीर में व्याप्त रहती है। इस वशीकरण अवलेप को गंधर्वकांत अनुलेप के नाम से जाना जाता है।
श्लोक-33. प्रियंगवस्तगरमिश्राः सहकारतैलदिग्धा नागवृक्षमुत्कीर्य षण्मासं निहिता नागकांतमनुलेपनं वशीकरणमित्याचक्षते।।33।।
अर्थ- तगर तथा काकुन (कांगुनी) को एक में मिलाकर आम के तेल से भिगोकर उपरोक्त तरीके से नागकेसर के तने में गाड़कर, 6 महीने बाद उसका लेप करने से स्त्री वशीभूत हो जाती है। इस लेप को नागकांत लेप के नाम से जाना जाता है।
श्लोक-34. उष्ट्रास्थि भृंगराजरसेन भावितं दग्धमञ्जनं नलिकायां निहितमुष्ट्रास्थिशलाकयैव स्त्रोतोऽञ्जनसहितं पुण्यं चक्षुष्यं वशीकरणं चेत्याचक्षते।।34।।
अर्थ- ऊंट की हड्डियां भृंगराज के रस में उबालकर सुरमा के साथ पुटष्पाक द्वारा जलाकर ऊंट की हड्डी से बनी हुई सुरमेदानी में उस सुरमा को रखें, तथा ऊंट की सलाई से ही आंखों में लगाएं। यह सुरमा आंखों के लिए बहुत लाभकारी होता है। इसके प्रयोग से स्त्रियां वश में हो जाती हैं।
श्लोक-35. एतेन श्येनभासमयूरास्थिमयान्यञ्जनानि व्याख्यातानि।।35।।
अर्थ- इसी प्रकार श्येन, भास, मयूर, पक्षियों की हड्डियों से भी सुरमा बनाया जा सकता है।
श्लोक-36. उश्चटाकंदश्चव्या यष्टीमधुकं च सशर्करेण पयसा पीत्वा वृषीभवति।।36।।
अर्थ- बीजबंद, सफेद मूसली, मुलहठी के चूर्ण में शहद व शक्कर मिलाकर दूध के साथ पीने से शक्ति प्राप्त होती है तथा बल और वीर्य की वृद्धि होती है।
श्लोक-37. मेषवस्तुमुष्कसिद्धस्य पयसः सशर्करस्य पानं वृषत्वयोग।।37।।
अर्थ- भेड़ या बकरा के अंडकोषों को दूध में पकाकर, चीनी डालकर पीने से बल-वीर्य की वृद्धि होती है।
श्लोक-38. तथा विदार्य़ाः क्षीरकायाः स्वयगुप्तायाश्च क्षीरेण पानम्।।38।।
अर्थ- विदारीकंद, वंशलोचन तथा केवांच के बीजों का चूर्ण बनाकर दूध के साथ पीने से बल-वीर्य की वृद्धि होती है।
श्लोक-39. तथा प्रियालबीजानां मोरटाविदार्योश्च क्षीरणैव।।39।।
अर्थ- चिरौंजी, मुरहरी, दुधिया, बिदारीकंद का चूर्ण दूध के साथ पीने से बलवीर्य की वृद्धि होती है और शरीर शक्तिशाली होता है।
श्लोक-40. श्रंगाटककसेरुकामधूलिकानि क्षीरकाकोल्या सह पिष्टानि सशर्करेण पयसा घृतेन मंदाग्निनोत्करिकां पक्तवा यावदर्थं भक्षितवानन्ताः स्त्रियो गच्छीतीत्याचार्याः प्रचक्षते।।40।।
अर्थ- आचार्यों का मानना है कि सिंघाड़ा, कसेरू तथा महुआ के फूलों को क्षीरकाकोली के साथ पीसकर उसमें दूध तथा शक्कर मिला दें। फिर घी में धीमी आंच से हलवा बनाकर प्रतिदिन सेवन करने से शरीर में इतनी अधिक ताकत बढ़ती है कि वह व्यक्ति सैकड़ों स्त्री के साथ सेक्स कर सकता है।
श्लोक-41. माषकमलिनीं पयसा धौतामुष्णेन घृतेन मृदकृत्योदधतां वृद्धवत्सायाः गोः पयः पायसं मधुसर्पिर्भ्यामशित्वाऽनन्ताः स्त्रियो गच्छतीत्याचार्याः प्रचक्षते।।41।।
अर्थ- आचार्यों का मानना है कि दूध में भिगोई हुई उड़द की दाल की भूसी को पानी से धोकर साफ कर लें, फिर उसे पीसकर घी में भून लें। जब यह भूनकर लाल हो जाए तो बकायन, गाय या बकरी का दूध मिलाकर हलवा बना लें। इसके बाद विषम मात्रा में शहद तथा घी छोड़कर रोजाना खाने से असंख्य औरतों से सेक्स करने की शक्ति प्राप्त होती है।
श्लोक-42. विदारी स्वयंगुप्ता शर्करा मधुसजर्पिर्भ्या गोधूमचूर्णेन पोलिकां कृत्वा यावदर्थं भ
अर्थ- आचार्यों के अनुसार विदारीकंद, कौंच के बीज के चूर्ण में गेहूं का आटा, शहद तथा शक्कर मिलाकर घी में डालकर पकौड़ियां बना लें। इन पकौड़ियों को प्रतिदिन खाने से इतना अधिक बल-वीर्य बढ़ता है कि एक व्यक्ति सैकड़ों स्त्रियों के साथ सेक्स कर सकता है।
श्लोक-43. चटकाण्डरसभावितैस्तणडुलैः पायसं सिद्धं मधुसर्पिभ्या पावितं यावदर्थमिति समानं पूर्वेण।।43।।
अर्थ- गोरैया चिड़िया के अंडों के रस को चावलों के साथ उबालकर उसकी खीर दूध के साथ बनायें। इस खीर को घी तथा शहद के साथ खाने से सेक्स क्षमता में बहुत अधिक वृद्धि होती है।
श्लोक-44. चटकाण्डरसभावितानपगतत्वचस्तलाञ् श्रृंगाटककसेरुस्वयंगुप्ताफलानि गोधूममाषचूर्णैः सशर्करेण पायसा सर्पिया च पक्कं संयावं यावदर्थ प्राशितवानिति समानं पूर्वेण।।44।।
अर्थ- काले तिलों को भिगोकर उनका छिलका निकाल लें। इसके बाद इन छिलकों को गोरैया के अंडों के रस में उबाल लें, फिर सिंघाड़ा, कसेरू तथा केवांच के बीज का चूर्ण कर लें, और उड़द की पीठी, गेहूं का आटा इन सभी को एक में मिलाकर घी में भूनकर दूध-शक्कर मिलाकर लस्सी बना लें। इस लस्सी को प्रतिदिन खाने से सेक्स क्षमता में बहुत अधिक वृद्धि होती है।
श्लोक-45. सर्पिषो मधुनः शर्कराया मधुकस्य च द्वे द्वे पले मधुरसायाः कर्षः प्रस्थं पयसं इति षडंगम्मृतं मेध्यं वृश्यमायुष्यं युक्तरसमित्याचार्याः प्रचक्षते।।45।।
अर्थ- आचार्यों का मानना है कि शहद, शक्कर तथा महुआ के दो फूल, मुलहठी, कर्ष, दूध इन सभी को एक साथ मिलाकर रख लें। इस मिश्रण के सेवन से आयु में वृद्धि होती है। यह बाजीकारण तथा आयुवर्धक है। इस मिश्रण को युक्तरस के नाम से जाना जाता है।
श्लोक-46. शतावरीश्चदंष्ट्रागुडकषाये पिप्पलीमधुकल्के गोक्षीरच्छागघृते पक्के तस्य पुष्यारम्भेणान्वहं प्राशनं मेध्यं वृष्यमायुष्यं युक्तरसमित्याचार्यः प्रचक्षते।।46।।
अर्थ- सतावर, पहाड़ी गोखरू इन दोनों वस्तुओं के बारीक चूर्ण में छोटी पीपल और शहद की लुगदी मिला लें। फिर इसे गाय के घी में भूनकर दूध में पका लें। इसे पुष्यनक्षत्र से शुरू करके नियमित रूप से चाटने से बुद्धि तथा आयु में वृद्धि होती है। यह बाजीकारण भी होता है। इसे घी युक्त रस के नाम से जाना जाता है।
श्लोक-47. शतावर्याःश्र्वगृदंषट्रायाः श्रीपर्णीफलानां च क्षुण्णानां चतुर्गुणितजलेन पाक आप्रकृत्यवस्थानात् तस्य पुष्यारम्भेण प्रातः प्राशनं मेध्यं वृष्ण्मायुष्यं युक्तरसमित्याचार्याः प्रचछते।।47।।
अर्थ- शतावर, पहाड़ी गोखरू, श्रीपर्णी (कसेरू) के फल इनको यवकूट करके जितनी दवा हो उससे चौगुने पानी में इन दवाओं को छोड़कर आग पर चढ़ा दें। जब पानी पूरी तरह से जल जाए तो उसे आग पर से उतार कर रख लें। इसे पुष्यनक्षत्र से शुरू करके नियमित रूप से चाटने से बुद्धि तथा आयु में वृद्धि होती है। यह बाजीकारण भी होता है। इसे युक्तरस के नाम से जाना जाता है।
श्लोक-48. श्र्वदंष्ट्राचूर्णसमन्वितं तत्समेव यवचूर्णं प्रातरुत्थाय द्विपलकमनुदिनं प्राश्रीयान्मेध्यं वृष्यं युक्तरसमित्याचार्याः प्रचक्षते।।48।।
अर्थ- पहाड़ी गोखरू का चूर्ण तथा जौ का आटा बराबर मात्रा में लेकर दोनों को मिला लें। इसे सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से मेधाशक्ति बढ़ती है, शारीरिक शक्ति, चमक तथा आयु में भी वृद्धि होती है। इसे भी यक्तरस कहा जाता है।
श्लोक-49. आयुर्वेदाच्च विद्यातंत्रेभ्य एव च। आप्तेभ्यश्रावबोद्धव्या योगा ये प्रीतिकारकः।।49।।
अर्थ- उपर्युक्त बाजीकरण योगों से बताकर वात्स्यायन कहते हैं कि इन योगों के अतिरिक्त आयुर्वेद, वेद तथा अन्य शास्त्र, अधिकारी, विद्वानों, अनुभवी वैद्यों से रागरति बढ़ाने वाले भोगों को सीखना चाहिए।
श्लोक-50. न प्रयुञ्जीत संदिग्धात्र शरीरात्ययावहान्। न जीवघातसंबद्धात्राशुचिद्रव्यसंयुतान्।।50
अर्थ- संदिग्ध शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले, जीवों को मारकर बनाये जाने वाले योग या जिनमें अपवित्र चीजें मिलायी जाएं- ऐसे बाजीकारक योगों का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए।
श्लोक-51. तपोयुक्तः प्रयुञ्जीत शिष्टैरनुगतान् विधीन्। ब्राह्मणैश्च सुहृद्भिश्च मंगलैरभिनंदितान्।।51।।
अर्थ- सिर्फ उन्हीं औषधियों को सेवन सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए जो शिष्ट लोगों के प्रयोग में आती हों, तथा शुभचिंतक ब्राह्मण, विद्वान तथा दोस्त लोग उसकी तारीफ लिखें। वशीकरण योग 61वां प्रकरण समाप्त होता है।
            कामसूत्र की दृष्टि से तंत्र तथा आवाप इन दो भागों में बांटा गया है। वात्स्यायन ने पहले अधिकरण में यह जानकारी दी है कि यदि आप तंत्र संप्रयोग तथा अंग सम्प्रयोग को प्राप्त करने में और रोगोत्पादक उपाय आलिंगन चुंबन से स्त्री में रति भाव उत्पन्न करने में असफल हों. तो इस मौके पर औपनिषदिक प्रकरण में बताई गयी विधियों का उपयोग किया जाए।
            इस सातवें अधिकरण में दो अध्याय दिये गये हैं। पहले अध्याय में सौन्दर्य वृद्धि के उपाय, वशीकरण के उपयोग तथा बाजीकरण के प्रयोगों की जानकारी दी गयी है। धर्म, अर्थ तथा काम- इस त्रिवर्ग की सिद्धि ही मानव जीवन का लक्ष्य है। इनकी जब तक तक प्राप्त नहीं होती, तब तक चरम लक्ष्य-मोक्ष कभी भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है। कामसूत्र की रचना का मूल उद्देश्य इसी लक्ष्य पर आधारित है।
            इस अध्याय में सौभाग्यवृद्धि, आयुवृद्धि, स्त्री-वशीकरण तथा बाजीकरण के जो प्रयोग दिये गये हैं वे आयुर्वेदिक तथा तांत्रिक प्रयोग हैं। शास्त्र का विषय होने के कारण से वात्स्यायन ने इन प्रयोगों को स्थान दिया है। न कि कामियों की सेक्स शक्ति अधिक बढ़ाने, घोड़ा बनने अथवा दूसरों की बहू-बेटियों को वशीभूत करने के लिए। कभी धर्म-संकट आ जाए, आत्मसम्मान की रक्षा का प्रश्न उपस्थित हो जाए तो इन प्रयोगों को व्यवहार में लाना आवश्यक होता है। लेकिन विशेषज्ञों, अनुभवी लोगों से पूछकर, उनसे समझकर ही प्रयोग करना सही रहता है। वात्स्यायन ने इसी कारण से अंत में स्पष्ट उपदेश करते हुए कहा है कि आयुर्वेदिक ग्रंथों से, वैदिक ग्रंथों से, अन्य शास्त्रों से, तंत्रग्रंथों से तथा अनुभवी और योग्य विद्वानों से समझकर ही इन योगों का प्रयोग करना चाहिए। अन्यथा इसका बुरा परिणाम भी हो सकता है जैसे- एक बाजीकारक प्रयोग के अंतर्गत कामसूत्रकार ने लिखा है कि-
    सर्पिषो मधुना शर्कराया मधूकस्य च द्वे द्वे पले।
            यहां पर घी तथा शहद दोनों को समान मात्रा में खाने को बताया गया है। आयुर्वेद का सिद्धांत है कि घी तथा शहद को यदि बिल्कुल समान मात्रा में ले तो यह विष बन जाती है। किताबों में लिखे गये मंत्रों तथा उनकी विधियों को पढ़कर उन्हें सिद्ध करना अज्ञानता होती है। किसी जानकार से समझकर ही प्रयोग करना चाहिए।
इति श्री वात्स्यायनीये कामसूत्रे औपनिषदिके सप्तमेऽधिकरणे सुभंगकरणं वशीकरणं वृष्ययोगाः प्रथमोऽध्यायः।

नष्टरागप्रत्यानयन प्रकरण





श्लोक-1. चण्डवेगां रञ्जयितुमशक्नुवन्योगानाचरेत्।।1।।
अर्थ- प्रचंड वेग वाली स्त्री को अनुरक्त तथा खुश करने में असमर्थ पुरुषों की योगों (औषधि-साधन) का प्रयोग करना चाहिए।
श्लोक-2. रतस्योपक्रमे संबाधस्य करेणोपमर्दनं तस्या रसप्राप्तिकाले च रतयोजनमिति रागप्रत्यानयनम्।।2।।
अर्थ- सेक्स के दौरान स्त्री से पहले स्खलित हो जाने वाला पुरुष यदि स्त्री से खोए हुए अनुराग को फिर से प्राप्त करना चाहता है तो सेक्स करने से पहले उसे स्त्री की योनि में अंगुली डालना चाहिए। फिर सेक्स करना चाहिए ऐसा करने के बाद ही संभोग करें।
श्लोक-3. औपरिष्टकं मंदवेगस्य गतवयसो व्यायतस्य रतश्रान्तस्य च रागप्रत्यानयनम्।।3।।
अर्थ- यदि किसी व्यक्ति की सेक्स इन्द्रिय बिल्कुल ही शिथिल पड़ गयी हो, वृद्धावस्था अथवा अधिक मोटापन आ गया हो। या सेक्स करते-करते वह थक गया हो, तो उसे चाहिए कि साम्प्रयोगिक अधिकरण में बताई गयी औपरिष्टक विधि से वह उत्तेजना प्राप्त करे।
श्लोक-4. अपद्रव्याणि वा योजयेत्।।4।।
अर्थ- या वह रबड़, लकड़ी आदि के बने हुए कृत्रिम साधनों का प्रयोग करे।
श्लोक-5. तानि सुवर्णारजतताम्रकलायसगजदंतगवद्रव्यमयाणि।।5।।
अर्थ- इस तरह के कृत्रिम साधन सोना, चांदी, तांबा, लोहा, हाथीदांत तथा सींग से बनाये जाते हैं।
श्लोक-6. त्रापुषाणि सैसकानि च मृदून शीतवीर्याणि कर्मणि च धृष्णूनि भवन्तीत बाभ्रवीया योगाः।।6।।
अर्थ- वाभ्रवीय आचार्यों का कहना है कि सीसा और रांग से बने हुए कृत्रिम साधन (लिंग), कोमल, ठंडे तथा संघर्षशील होते हैं।
श्लोक-7. दारुमयानि साभ्यतश्रेति वात्स्यायनः।।7।।
अर्थ- आचार्य वात्स्यायन कहते हैं कि यदि किसी स्त्री लकड़ी के बने हुए कृत्रिम साधन (कृत्रिम लिंग) का भी प्रयोग किया जा सकता है।
श्लोक-8. लिंगप्रमाणान्तरं बिन्दुभिः कर्कशपर्यंत बहुलं स्यात्।।8।।
अर्थ- पुरुष के लिंग के नाप का ही कृत्रिम साधन (कृत्रिम लिंग) होना चाहिए। स्त्री की योनि की खुजलाहट मिटाने के लिए उस कृत्रिम साधन का आगे वाला खूब गोदवा लेना चाहिए।
श्लोक-9. एते एव द्वे संघाटी।।9।।
अर्थ- कृत्रिम साधनों में जोड़ या फिर उतार-चढ़ाव होना आवश्यक होता है।
श्लोक-10. त्रिप्रभृति यावत्प्रमाणं वा चूडकः।।10।।
अर्थ- पुरुष को लिंग के आयाम खरगोश से लेकर घोड़े तक के बताये गये हैं। उसी के समान कृत्रिम साधन ,चूड़क, कहा जाता है।
श्लोक-11. एकामेव लतिकां प्रमाणवशेन वेष्टयेदित्येकचूडकः।।11।।
अर्थ- जो अपने आयाम के अनुसार शीशा आदि की बनी हुई एक ही लता को लपेट सके। वह कृत्रिम साधन, एकचूड़क, कहलाता है।
श्लोक-12. उभयतोमुखच्छिद्रः स्थूलकर्कशवृषमगुटिकायुक्तः प्रमाणवशयोगी कटय्यां बद्धं कञ्जको जालकं वा।।12।।
अर्थ- जिस कृत्रिम साधन (कृत्रिम लिंग) में अंडकोष भी लगे हो, जिसमें दोनों ओर छेद किये गये हों जो कमर से बांधा जा सके तथा जिसकी लंबाई और मोटाई अनुपात के अनुसार हो उसे कंचुक अथवा जालक कहते हैं।
श्लोक-13. तदभावेऽलाबूनालकं वेणुश्च तैलकषायैः सुभावितः सूत्रेण कटयां बद्घः लक्षणा काष्ठमाला वा ग्रथिता बहुभिरामलकास्थिभिः संयुक्तेत्यपविद्धयोगाः।।13।।
अर्थ- यदि इस तरह के कृत्रिम साधन (कृत्रिम लिंग) न मिल सके तो
श्लोक-14. न त्वविद्धस्य कस्यचिद्वयवहृतिरस्तीति।।14।।
अर्थ- इस प्रकार कृत्रिम लिंगों का संबंध किसी सेक्स से नहीं है। ये सभी नपुंसकों के लिए योग हैं।
श्लोक-15. दाखिणात्यानां लिंगस्य कर्णयोरिव व्यधनं बालस्य।।15।।
अर्थ- दक्षिण भारतीय लोगों में बचपन में ही कान की तरह लिंग का भी छेद होता है।
श्लोक-16. युवा तु शस्त्रेण च्छेदयित्वा यावद्रुधिकरस्यागमनं तावदुदके तिष्ठेत्।।16।।
अर्थ- युवा व्यक्ति यदि अपने लिंग में छेद करना हो तो उसे लिंग के ऊपर का चमड़ा सरकाकर नसों को बचाकर किसी तेज हथियार से कुशलतापूर्वक तिरछा छेद करें तथा जब तक खून बहे तब तक लिंग को पानी में डुबोयें रखें।
श्लोक-17. वैशद्यार्थ च तस्यां रात्रौ निर्बन्धाद्वयवायः।।17।।
अर्थ- यदि लिंग के छेद को अधिक बड़ा बनाना हो तो उसी रात कई बार सेक्स करना चाहिए।
श्लोक-18. ततः कषायैरेकदिनारितं शोधनम्।।18।।
अर्थ- इसके बाद पंचकषायों (अमलतास, ब्राह्मी, कनेर, मालवी, शंखपुष्पी) के रस से एक-एक दिन करके लिंग को धोना चाहिए।
श्लोक-19. वेतसकुटजसंकभिः क्रमेण वर्धमानस्य वर्धनैर्बन्धनम्।।19।।
अर्थ- वेष तथा केसरया के कीलों द्वारा धीरे-धीरे करके लिंग के छेद के आकार को बढ़ाना चाहिए।
श्लोक-20. यष्टीमधुकेन मधुयुक्तेन शोधनम्।।20।।
अर्थ- घावों को भरने के लिए मुलहठी के चूर्ण में शहद मिलाकर लेप करें।
श्लोक-21. ततः सीसकपत्रकर्णिकया वर्धयेत्।।21।।
अर्थ- फिर शीशम की पत्तियां लिंग के छेद पर बांधनी चाहिए। इससे छेद का आकार बड़ा हो जाता है।
श्लोक-22. म्रक्षेयद्भल्लातकतैलेनेति व्यधनयोगा।।22।।
अर्थ- शीशम की पत्तियां बांधने के बाद इसे भिलावां के तेल से भिगोते रहने से लिंग के छेद का आकार बड़ा हो जाता है। व्यवधन योग पूरे होते हैं।
श्लोक-23. तस्मिन्ननेकाकृतिविकल्पान्यपद्रव्याणि योजयेत्।।23।।
अर्थ- जब लिंग का आकार बड़ा हो जाए तो, घाव भी भर जाए, पीड़ा भी बाकी न रहे तब उसमें हड्डी, लकड़ी मिट्टी पत्थर आदि के लम्बे अभवा गोल अपद्रव्य पहना देना चाहिए।
श्लोक-24. वृत्तमेकतो वृत्तमुद्खलकं कुसुमके कण्टकितं कंकास्थि गजकरमष्टमणडलकं भ्रमरकं शृंगाटकमन्यानि वोपायतः कर्मतश्च बहुकर्मसहता चैषां मृदुकर्कशता यथासात्यमित नष्टरागप्रत्यानयनं द्विषष्टितमं प्रकरणम्।।24।।
अर्थ- जिस प्रकरा का अपद्रव्य जिसे अनुकूल पड़े, उस तरह का गोल, चपटा, ओखली जैसा, कमल, करेला जैसा कांटेदार, हौज के समान, हाथी की सूंड़ की तरह चक्करदार सिंघाड़ें के आकार का कोमल अथवा कठोर बनाया जा सकता है। नष्ट हुए रोग को सिर से लाने की विधियां 62वां प्रकरण समाप्त हुआ।
श्लोक-25. एवं वृक्षजानां जन्तूनां शूकेरुपहितं लिंगं दशरात्रं तैलेन मृदितं पुनरुपतृहितं पुनः प्रमृदितमिति जातशोफं खट्वायामधोमुखस्तदंते लम्बयेत।।25।।
अर्थ- इस प्रकार पेड़ों में उत्पन्न होने वाले जन्तुओं का रोम लिंग पर लेप करें तथा तेल की मालिश करें। यही प्रक्रिया लगातार 10 रात तक करने के बाद जब लिंग में सूजन आ जाए तो चारपाई के छेद में लिंग को डालकर पेट के बल सो जाएं।
श्लोक-26. तत्र शीतैः कषायैः कृतवेदनानिग्रहं सोपक्रमेण निष्पादयेत्।।26।।
अर्थ- इसके बाद उन्हें लेप लगाकर पीड़ा तथा जलन मिटाना चाहिए।
श्लोक-27. स यावज्जीवं शूकजो नाम शोफो विटानाम्।।27।।
अर्थ- इस प्रकार कामुक विलासियों के लिंग की मोटाई उनके पूरे जीवन भर बनी रहती है।
श्लोक-28. अश्वगंधाशबरकंदजलशू कबृ हतीफलमाहिष नवनीतहस्तिकर्णवज्रवल्लीरसैरेकैकेन परिमर्दनं मासिक वर्धनम्।।28।।
अर्थ- असगंध, बड़े लोध की जड़ जलशंकु (एक जंतु), बड़ी भटकटैया (कटेरी) के पके हुए फल, मक्खन, छिउल (ढाक) के पत्ते तथा हरजोर का रस- इनमें से किसी एक को लगाने से एक महीने तक लिंग मोटा बना रहता है।  
श्लोक-29. एतैरेव कषायैः पक्वेन तैलेन परिमर्दनं पाषाणमास्यम्।।29।।
अर्थ- असगंध आदि की लुगदी से साबित हुए तेल की मालिश करने से 6 महीने तक लिंग के आकार में वृद्धि रहती है।
श्लोक-30. दाड़िमत्रापुषवीजानि बालुका बृहतीफलरस्त्रेति मृद्वग्निना पक्वेन तैलेन परिमर्दनं परिषेको वा।।30।।
अर्थ- अनार बालमखीरा के बीज, एडबालुक (एलवा) तथा भटकटैया के फलों के रस का धीमी आंच से तेल निकालकर लिंग में मालिश करने से 6 महाने तक लिंग के आकार में वृद्धि होती रहती है।
श्लोक-31. तास्तांत्र योगानाप्तेभ्यो बुध्येतेति वर्धनयोगाः।।31।।
अर्थ- इनके अलावा लिंग वृद्धि के अन्य योग जो हैं, उन्हें इस विषय में प्रामाणिक व्यक्तियों को समझना चाहिए। वर्द्धन योग नाम का 63वां प्रकरण समाप्त।
श्लोक-32. अथस्नूहीकण्टकचूर्णेः पुनर्नवावानरपूरीषलांगलिका-मूलामिश्रैर्यामवकिरेत्सा नान्यं कामयेत्।।32।।
अर्थ- थूहर के कांटों का चूर्ण, पुनर्नवा (पथरचटा या गदापुन्ना), बंदर की बीट, करिहारी (इन्द्रायन) की जड़- सभी को पीसकर चूर्ण बना लें तथा फिर उस चूर्ण को जिस भी स्त्री के सिर पर डाल दें। वह स्त्री वशीभूत हो जाती है।
श्लोक-33. तथा सेमलताऽवल्गुजाभृंगलोहोपजिह्वकाचूर्णैर्व्याधिघातक जम्बूफलरसनिर्यासेन घनीकृतेन च लिप्तसंबाधां गच्छतो रागो नश्यति।।33।।
अर्थ- उसी तरह सोमलता बकुची, भंगरैया, लौह भस्म, उपजिह्वका (गराज- जो बरसात में बाबी के आस-पास उत्पन्न होती है) का चूर्ण और अमलतास तथा जामुन के फल की गुठली खरल करके योनि में लेप करने से भी जो पुरुष उस स्त्री से सेक्स करता है। उसकी आसक्ति समाप्त हो जाती है या उस पुरुष की इन्द्रिय की उत्तेजना समाप्त हो जाती है।
श्लोक-34. गोपालिका बहू पादिकाजिह्वकाचूर्णैर्माहिषतक्रयुक्तैः स्त्रातां गच्छतो रागो नश्यति।।34।।
अर्थ- गोपालिका, बहुपालिका तथा जिह्विका का चूर्ण भैंस के मट्ठे में मिलाकर स्नान करने वाली स्त्री से जो पुरुष सेक्स करता है। वह राग हो जाता है।
श्लोक-35. नीपाम्रातकजम्बूकूसुमयुक्तमनुलेपनं दौर्भाग्यकरं स्त्रजश्च।।35।।
अर्थ- कदम्ब, आंवड़ा तथा जामुन के फूलों को घिसकर चंदन लगाना अथवा इन फूलों की माला पहनना दुर्भाग्य का वर्धक होता है।
श्लोक-36. कोकिलाक्षप्रलेपो हस्तिन्याः संहतमेकरात्रे करोति।।36।।
अर्थ- तालमखाना को पानी में पीसकर योनि में लेप करने से हस्तिनी स्त्री की योनि सिकुड़कर मृगी स्त्री की तरह छोटे आकार की बन जाती है।
श्लोक-37. पद्योत्पलकदम्बसर्जकसुगंधचूर्णानि मधुना पिष्टानि लेपो मृगया विशालीकरणम्।।37।।
अर्थ- कमलगट्टा, नीलोफल, कदम्ब, विजयसार तथा नेत्रबाला का चूर्ण शहद के साथ घोटकर उसका लेप बनाया जाए तो, फिर उस लेप को योनि में लगायें, इससे छोटी सी छोटी आकार की योनि गहरी तथा विशाल बन जाती है।
श्लोक-38. स्नूहीसोमार्कक्षारवल्गुजाफलैर्भावितान्यामलकानि केशानां श्र्तीकरणम्।।38।।
अर्थ- थूहर, पुतली तथा मदार के पत्तों को जलाकर राख बना लें। फिर उस राख के साथ गुरुची के बीज तथा आंवलों को उबालकर उसे बालों में लगाने से काले से काले बाल सफेद हो जाते हैं।
श्लोक-39. मदयन्तिकाकुटजकाञ्जनिकागिरिकर्णिकालक्ष्यपर्णीमूलैः स्नानं केशानां प्रत्यानयनम्।।39।।
अर्थ- मेंहदी, केसरिया, पहाड़ी, चमेली, माषपर्णी की जड़ का चूर्ण सिर पर मलकर नहाने से सिर से सफेद बाल जड़ से काले हो जाते हैं।
श्लोक-40. एतैरेव सुपक्केन तैलेनाभ्यांगत्कृष्णीकरणात् क्रमेणास्य प्रत्यानयनम्।।40।।
अर्थ- इन्हीं से बनाये गये तेल से भी उपरोक्त बाल काले हो जाते हैं।
श्लोक-41. श्रेताश्रस्य मुषकस्वेदैः सप्तकृत्वो भावितेनालक्तकेनरोऽघरः श्र्वेतो भवति।।41।।
अर्थ- सफेद घोड़े के अंडकोष के पसीने की इन्हीं दवाओं के साथ सात बार उबालने पर जो योग प्राप्त होता है, वह सफेद होंठों को शीघ्र ही लाल बना देता है।
श्लोक-42. मदयन्तिकादीन्येव प्रत्यानयनम्।।42।।
अर्थ- इन्हीं दवाओं को पीसकर फिर होंठों में लगाने से लाल होंठ सफेद हो जाते हैं।
श्लोक-43. बहुपादिकाकुष्ठतगरतालीसदेवदारुवज्रकंदकैरुपलिप्तं। वंशं वादयतो या शब्दं श्रृणोति या वश्या भवति।।43।।
अर्थ- बहुपादिका, कुण्ठ, तगर, लाली शपत्र, देवदारू तथा वूजकंद का लेप बाहों पर करके उस बांस की बांसुरी बनाकर बजाने से जो स्त्री उसकी ध्वनि सुनती है वह बजाने वाले पर मोहित हो जाती है।
श्लोक-44. धत्तूरफलयुक्तोऽभ्यवहार उन्मादकः।।44।।
अर्थ- पेय पदार्थों में धतूरे के बीजों को मिलाकर जिसे भी पिला दें अथवा खिला दें वह पागल हो जाता है।
श्लोक-45. गुड़ो जीर्णतश्च प्रत्यानयनम्।।45।।
अर्थ- पुराना गुड़ खिला देने से धतूरे का विष उतर जाता है।
श्लोक-46. हरितालमनः शिलाभक्षिणो मयूरस्य पुरीषेण लिप्तहस्तो यद्द्रव्यं स्पृशति नत्र दृश्यते।।46।।
अर्थ- हरताल तथा मैनसिल खाने वाले मोर के बीट को हाथों में लेकर जिस भी चीज को छू लेंगे। वह वस्तु दूसरों को नहीं दिखाई देती है।
श्लोक-47. अंगारतृणभस्कमना तैलेन विमिश्रमुदकं क्षीरवर्ण भवति।।47।।
अर्थ- खस की राख तेल में मिलाकर पानी में डालने से पानी दूध के समान सफेद रंग का हो जाता है।
श्लोक-48. हरीतकाम्रातकयोः श्रवणप्रियंगकाभिश्च पिष्टाभिर्लिप्तानि लोहभाण्डानि ताम्रीभवन्ति।।48।।
अर्थ- हरड़ तथा आंवला को मालकांगनी के साथ पीसकर लोहे के बर्तन पर लेप करने से वह तांबे के रंग का हो जाता है।
श्लोक-49. श्रवणप्रियंगुकातैलेन दुकूलसर्पनिर्मोकेण वर्त्त्या दीपं प्रज्वाल्य पार्श्वे दीर्घीकृतानि काष्ठानि सर्पवद् दृश्यंते।।49।।
अर्थ- सांप की केंचुली से मालकांगुनी पीसकर लेप करें और उसमें कपड़ा लपेटकर बत्ती बना लें, फिर यदि उसे जलाएं तो आसपास की लकडि़या उसकी रोशनी से सांप के समान प्रतीत होती हैं।
श्लोक-50. श्र्वेतायाः श्र्वेतवत्सायाः गोः क्षीरस्य पानं यशस्यमायुष्यम्।।50।।
अर्थ- सफेद बछड़े वाली गाय का दूध पीने से यश तथा आयु की वृद्धि होती है। चित्रयोग नाम का 64वां प्रकरण समाप्त होता है।
श्लोक-51. ब्राह्मणानां प्रशस्तानामाशिषः।।51।।
अर्थ- प्रशस्त ब्राह्मणों के आशिर्वाद से भी आयु तथा यश में वृद्धि होती है।
श्लोक-52. पूर्वशास्त्राणि संदृश्य प्रयोगाननुसृत्य च। कामसूत्रमिदं यत्नात्संक्षेपेण निवेदितम्।।52।।
अर्थ- पूर्व आचार्यों के शास्त्रों को एकत्र करके, उनका अध्ययन और उनके प्रयोगों का परीक्षण करके बड़े प्रयत्न से सारांश में कामसूत्र को कहा गया है।
श्लोक-53. धर्ममर्थं च कामं च प्रत्ययं लोकमेव च। पश्यत्येतस्य तत्तज्ञो न च रागात्प्रवर्तते।।53।।  
अर्थ- कामसूत्र के तत्व को भली प्रकार समझने वाले लोग धर्म, काम, आत्मविश्वास तथा लोकाचार को देखते हुए प्रवृत्त होते हैं न कि प्रेम अथवा मुक्ता से
श्लोक-54. अधिकारवशादुक्ता ये चित्रा रागवर्द्धनाः। चदन्तरमत्रैव ते यत्नाद्विनिवारिताः।।54।।
अर्थ- इस शास्त्र में अच्छी तथा सभी बुरी बातें दी गयी हैं तथा अंत में यह बता दिया गया है, कौन-सी बात की जाए तथा कौन-सी न की जाए।  
श्लोक-55. न शास्त्रमस्तीत्येतेन प्रयोगो हि समीक्ष्यते। शास्त्रार्थान्व्यापिनो विद्यात्प्रयोगांस्त्वैकदेशिकान्।।55।।
अर्थ- जितनी बातें शास्त्रों में बताई गयी हैं वे सभी प्रयोग के लिए नहीं हैं, शास्त्र का व्यापक सार्वभौम होता है लेकिन इसके प्रयोग एकदेशी होते हैं।
Dvitiy adhayay nashtharagapratyanayan prakaran

प्रकृति के दोहे



 

ले वानस्पतिक औषधि, रहिये सदा प्रसन्न।
जड़ी-बूटियों की फसल, करती धन-संपन्न।।

पादप-औषध के बिना, जीवन रुग्ण-विपन्न।
दूर प्रकृति से यदि 'सलिल', लगे मौत आसन्न।।

पाल केंचुआ बना ले, उत्तम जैविक खाद।
हरी-भरी वसुधा रहे, भूले मनुज विषाद।।

सेवन ईसबगोल का, करे कब्ज़ को दूर।
नित्य परत जल पीजिये, चेहरे पर हो नूर।।

जवाइन से दूर हो, उदर शूल, कृमि-पित्त।
मिटता वायु-विकार भी, खुश रहता है चित्त।।

ब्राम्ही तुलसी पिचौली, लौंग नीम जासौन।
जहाँ रहें आरोग्य दें, मिटता रोग न कौन?

मधुमक्खी पालें 'सलिल', है उत्तम उद्योग।
शहद मिटाता व्याधियाँ, करता बदन निरोग।।

सदा सुहागन मोहती, मन फूलों से मीत।
हर कैंसर मधुमेह को, कहे गाइए गीत।।

कस्तूरी भिन्डी फले, चहके लैमनग्रास।
अदरक हल्दी धतूरा, लाये समृद्धि पास।।
बंजर भी फूले-फले, दें यदि बर्मी खाद।
पाल केंचुए, धन कमा, हों किसान आबाद।।

भवन कहता घर 'सलिल', पौधें हों दो-चार।
नीम आँवला बेल संग, अमलतास कचनार।।

मधुमक्खी काटे अगर, चुभे डंक दे पीर।
गेंदा की पाती मलें, धरकर मन में धीर।।

पथरचटा का रस पियें, पथरी से हो मुक्ति।
'सलिल' आजमा देखिये, अद्भुत है यह युक्ति।।

घमरा-रस सिर पर मलें, उगें-घनें हों केश।
गंजापन भी दूर हो, मन में रहे न क्लेश।।

प्रकृति-पुत्र बनकर 'सलिल', पायें-दें आनंद।
श्वास-श्वास मधुमास हो, पल-पल गायें छंद।


गुरुवार, 25 अगस्त 2011

चुटकियों में फुर्ररर हो जाएगी सब टेंशन, बस झपकी लें कुछ इस तरह!

वर्तमान समय में कोई भी क्षेत्र हो काम्पीटिशन बहुत बढ़ गया है। ऐसे में टेंशन यानी तनावग्रस्त हो जाना या छोटी सी असफलता से डिप्रेस्ड हो जाना भी आम है। इसका एक मुख्य कारण दिनभर की भागदौड़ के कारण अपने हर काम में शत-प्रतिशत न दे पाना भी है। तनाव का एक कारण अत्याधिक काम का दबाव और चंचल मन के कारण एकाग्रता की कमी भी है। यह समस्या ऐसी है कि जिससे दवाईयों से निजात नहीं मिल सकती। इस समस्या को सिर्फ योग की मदद से ही जड़ से मिटाया जा सकता है। टेंशन को मिटाने के लिए योगनिद्रा सबसे अच्छा उपाय है। कहा जाता है योग निद्रा से दिल और दिमाग दोनों तरोताजा हो जाते हैं। इसका एकमात्र उपाय योगनिद्रा युवा मन को तरोताजा और तेज बनाए रखने के लिए कारगर सिद्ध हो सकती है। योगनिद्रा से आप कम समय नींद लेकर भी तरोताजा रह सकते हैं।

 कैसे लें योग निद्रा- शरीर को ढिला छोड़कर शवासन में लेट जाएं। गहरी सांस ले।  फिर अपने मन को दाहिने पैर के अँगूठे पर ले जाइए। पाँव की सभी अँगुलियाँ कम से कम पाँव का तलवा, एड़ी, पिंडली, घुटना, जाँघ, नितंब, कमर, कंधा शिथिल होता जा रहा है। इसी तरह बायां पैर भी शिथिल करें। सहज साँस लें व छोड़ें। अब लेटे-लेटे पांच बार पूरी साँस लें व छोड़ें। इसमें पेट व छाती चलेगी। पेट ऊपर-नीचे होगा। योगनिद्रा का प्रयोग अनिद्रा ,रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, सिरदर्द, तनाव, पेट में घाव, दमे की बीमारी, गर्दन दर्द, कमर दर्द, घुटनों, जोड़ों का दर्द, साइटिका, थकान आदि दूर करने के लिए किया जाता है।

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