शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011

ऐसे रोगों के इलाज जिनके लिए आप सोचते हैं डॉक्टर के पास क्या जाना?


कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं। जिन्हें हम रोग होते हुए भी ये सोच के लापरवाह हो जाते हैं कि इतनी सी समस्या के लिए डॉक्टर के पास क्या जाना? दरअसल इसके पीछे कारण यही होता है कि ये समस्याएं ऐसी होती है कि अक्सर हम सोच लेते हैं कि घर पर ही दवाई लेकर इस समस्या को ठीक किया जा सकता है या छोटी-छोटी परेशानियों के कारण बार-बार डॉक्टर के क्लिनिक के चक्कर लगाना भी ठीक नहीं।

ऐसी ही कुछ समस्याओं के बारे में हम बात कर रहे हैं। जो सामान्य रूप से किसी के भी साथ हो सकती है। हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे ही छोटे आसान और बेहद काम के सरल घरेलू उपायों के विषय में जो कई समस्याओं से छुटकारा दिलाने में बड़े अचूक होते हैं-


 हिचकी चलती हो तो 1-2 चम्मच ताजा शुद्ध घी, गरम कर सेवन करें।
- ताजा हरा धनिया मसलकर सूंघने से छींके आना बंद हो जाती हैं।

- प्याज का रस लगाने से मस्सो के छोटे-छोटे टुकड़े होकर जड़ से गिर जाते हैं।

- गैस की तकलीफ से तुरंत राहत पाने के लिए लहसुन की 2 कली छीलकर 2 चम्मच शुद्ध घी के साथ चबाकर खाएं फौरन आराम होगा।


- प्याज के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से उल्टियां आना तत्काल बंद हो जाती हैं।


- सूखे तेजपान के पत्तों को बारीक पीसकर हर तीसरे दिन एक बार मंजन करने से दांत चमकने लगते हैं।

इतनी बीमारियों की दुश्मन है लौकी ये जानकर आप चौंक जाएंगे!

हमारे देश मे कुछ सब्जियां लोग बड़े ही चाव से खाते और खिलाते हैं ,अर्थात खुद तो फायदे लेते ही हैं ,औरों के स्वास्थ्य का ध्यान भी रखते हैं। अगर आए कोई मेहमान आपके घर में, तो आप इसकी सब्जी बनाना न भूलें, बड़ा सरल नाम है ,लौकी। अंग्रेजी में बाटल गार्ड के नाम से प्रचलित इसके बारे में कहा जाता है, कि मनुष्य द्वारा सबसे पहले उगाई गयी सब्जी लौकी ही थी। प्रोटीन,फाइबर ,मिनरल,कार्बोहाइड्रेट से भरपूर इसके औषधीय गुणों का बखान हम आपको सरलता से बतलाते हैं -

-इसे उबाल कर कम मसालों के साथ सब्जी बनाकर खाने पर  यह मूत्रल (डायूरेटीक), तनावमुक्त करनेवाली (सेडेटिव) और पित्त को बाहर निकालनेवाली औषधि है।

-अगर इसका जूस निकालकर नींबू के रस में मिलाकर एक गिलास की मात्रा में सुबह सुबह पीने से यह प्राकृतिक एल्कलाएजर का काम करता है ,और  कैसी भी पेशाब की  जलन चंद पलों में ठीक हो जाती  है।

-अगर डायरिया के मरीज को केवल लौकी का जूस हल्के नमक और चीनी के साथ मिलकर पिला दिया जाय तो यह प्राकृतिक जीवन रक्षक घोल बन जाता है।

-लौकी के रस को सीसम के तेल के साथ मिलाकर तलवों पर हल्की मालिश सुखपूर्वक नींद लाती है।

-लौकी का रस मिर्गी और अन्य तंत्रिका तंत्र से सम्बंधित बीमारियों में भी फायदेमंद है।

-अगर आप एसिडीटी,पेट क़ी बीमारियों  एवं अल्सर से हों परेशान, तो न घबराएं बस लौकी का रस है इसका समाधान।

- केवल पर्याप्त मात्रा में लौकी क़ी सब्जी का सेवन पुराने से पुराने कब्ज को भी दूर कर देता है।

तो ऐसी लौकी ,जिसके औषधीय प्रयोग के बाद भी संगीत प्रेमियों द्वारा  वाद्ययंत्र के रूप में और साधुओं द्वारा  कमंडल के रूप में किया जानेवाला प्रयोग ,इसकी महत्ता का एहसास दिलाते है। तो लौकी इस नाम क़ी  सब्जी को इसके नाम से हल्का न समझें, इसके गुण बड़े भारी हैं ,लेकिन शरीर पर प्रभाव बड़ा ही हल्का और सुखदाई है।

प्याज का जादू: ऐसा करें तो हो जाएंगे पथरी के टुकड़े- टुकड़े

हमारे भारत में खाने को मसालेदार और स्वादिष्ट बनाने के लिए अनेक तरह के मसालों के साथ ही प्याज, लहसुन, अदरक, हरीमिर्च और धनिया आदि डालकर खाने को जायकेदार बनाया जाता है। स्वाद बढ़ाने वाली इन चीजों में कई ऐसे रासायनिक तत्व होते हैं, जो सेहत के लिये वरदान से कम नहीं। क्योंकि ये वस्तुएं शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को इतना अधिक बढ़ा देती हैं कि उस पर बीमारियां का असर होता ही नहीं। कहते हैं प्याज का तड़का खाने का स्वाद कई गुना बढ़ा देता है।

लेकिन प्याज सिर्फ खाने के स्वाद को ही नहीं बढ़ाता यह बहुत अधिक गुणकारी भी है। आइए आज हम आपको बताते हैं प्याज के कुछ ऐसे प्रयोग जिन्हें अपनाकर आप भी कई गंभीर समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं।प्याज को काटकर सूंघने से भी सिर का दर्द ठीक होता है।  जो खाली पेट रोज सुबह प्याज खाते हैं उन्हें किसी प्रकार की पाचन समस्यायें नहीं होती और दिनभर ताजगी महसूस करते हैं। मासिक धर्म की अनियमितता या दर्द में प्याज के रस के साथ शहद लेने से काफी लाभ मिलता है। इसमें प्याज का रस 3-4 चम्मच तथा शहद की मात्रा एक चम्मच होनी चाहिए।  गर्मियों में प्याज रोज खाना चाहिए। यह आपको लू लगने से बचाएगा। प्याज का रस और सरसों का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर मालिश करने से गठिया के दर्द में आराम मिलता है।

प्याज के 3-4 चम्मच रस में घी मिलाकर पीने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है। प्याज के रस में चीनी मिलाकर शर्बत बनाएं और पथरी से पीडि़त व्यक्ति को पिलाएं। इसे प्रात: खाली पेट ही पिएं। मूत्राशय की पथरी छोटे-छोटे कणों के रूप में बाहर निकल जाएगी। लेकिन ध्यान रहे, एक बार में इसका बहुत अधिक सेवन न करें। बवासीर में प्याज के 4-5 चम्मच रस में मिश्री और पानी मिलाकर नियमित रूप से कुछ दिन तक सेवन करने से खून आना बंद हो जाता है। घाव में नीम के पत्ते का रस और प्याज का रस समान मात्रा में मिलाकर लगाने से शीघ्र ही घाव भर जाता है। प्याज के रस में दही, तुलसी का रस तथा नींबू का रस मिलाकर बालों में लगाएं। इससे बालों का गिरना बंद हो जाता है और रूसी की समस्या से भी निजात मिलती है।

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011

सुरमई आंखों के लिए हैं ये अचूक औषधियां...

ईश्वर ने दुनिया को अनेक रंगों से मिलकर बनाया है, चाहे सूर्य क़ी सतरंगी किरणें हों या समुद्र क़ी गहराइयों के नज़ारे। हर रंग में कुछ न कुछ नयापन है, जो ब्रह्माण्ड के हर कोने में मिलता है। इन सबको देखने के लिए जो अद्भुत इन्द्रिय है, उसका नाम है 'नेत्र'। ज्ञानेन्द्रिय के रूप में यह हमें तात्कालिक रूप से दुनिया के हर रंग से रु-ब-रु क़राती है।

जाहिर है, इसका अपना महत्व है, तभी तो नयनों की गहराइयों को कवियों और शायरों ने अपनी रचनाओं में कई बार दुहराया है। इसकी देखभाल करने क़ी भी सदियों से परम्परा रही है, जो कभी सूरमा के नाम से तो कभी काजल के नाम से प्रचलित रही है। भारतीय चिकित्सा  पद्धति आयुर्वेद भी इस मामले में पीछे नहीं रही है।

1798 में डाक्टर ग्लीन डेविसन अमेरिका क़ी ईलेनीयास विश्वविद्यालय से भारत आये थे, उन्होंने भारतीय जडी - बूटियों से विश्व को परिचित कराया था, ग्यारहवीं शताब्दी में कानानेली द्वारा लिखी गई रसायन विज्ञान क़ी पान्डुलिपियों में कई बार "औषधिशाला" शब्द का प्रयोग हुआ है, जो स्वयं औषधियों के प्रयोग का प्रमाण है। आइए, आज हम ऐसी ही कुछ जड़ी-बूटियों का प्रयोग आपको नेत्र रोगों के सम्बन्ध में बताते हैं :-

- सडकों एवं खेतों के किनारे मिलने वाला पीलाधतूरा, जिसका तेल खाने में जहरीला होता है एवं इसी से मिलता हुआ पौधा रसोंत इनकी जड़ को छान कर उबालकर एक द्रव्य बनाते हैं, इसे साफ़ पानी में मिलाकर,आँखों में टपकाने से संक्रमण कम करने में मदद मिलती है।

-नीलगिरी, हिमालय, भूटान आदि में मिलने वाला 'ममीरा' जिसकी पत्तियाँ चवन्नी के समान होने के कारण इसे 'चवन्नी गच्छ' भी कहते हैं, इसकी जड़ को 'रसवंती' नाम से जाना जाता है, इसके सूरमे या काजल का प्रयोग आँखों क़ी ज्योति को बढाने में वर्षों से होता आ रहा है।

- नीलगिरी क़ी पहाड़ियों में मिलनेवाली झाड़ीनुमा वनस्पति जिसे 'पिंजारी' नाम से जाना जाता है, इसके पंचांग का प्रयोग द्रव्य रूप में नेत्रशूल में किया जाता रहा है।

- मालाबार एवं उत्तरी ट्रावन्कोर के इलाकों में मिलनेवाली जंगली कालीमिर्च क़ी लकड़ी को तेल में उबालकर आखों एवं कान क़ी बीमारियोँ में वर्षों से प्रयोग कराया जाता रहा है।

- लघुपाठा नामक लता के पत्तियों के रस को भी नेत्र रोगों में प्रयोग कराने का विधान है।

इन सभी वनस्पतियों का प्रयोग देशी दवाओं के जानकार, वैद्य सदियों से नेत्र रोगों में करते आ रहे हैं, इन वनस्पतियों पर नेत्र विशेषज्ञ वैज्ञानिकों के अध्ययन से यह बात सामने आयी है क़ि इनमें बार्बेरीन नामक रसायन विद्यमान है, जिसका प्रयोग प्राचीन काल से ही लोग सूरमें या काजल के रूप में करते आ रहे हैं।

अचूक नुस्खे: जब कोई जहरीला कीड़ा डंक मार दे तो

बदलते मौसम में कीड़े, उड़ते रहते है और कभी कभी काट भी लेते है। विभिन्न प्रकार की चींटियॉ भी काट खाती है। इनके काटने से काफी जलन होता है। आक्रांत स्थान पर काफी सूजन हो जाती है। मधुमक्खियाँ भी बड़े जोर से काट खाती है और यह कभी कभी खतरनाक भी होता है। कुछ कीड़ों का डंक सूजन के साथ साथ काफी जलन और बेचैनी पैदा करने वाला होता है जिसका सही समय पर इलाज आवश्यक है।

बाजार मे मिलने बाली कीड़ों के काटने की दवा से तुरंत आराम नही मिल पाता है, कभी कभी डाक्टर से सलाह लेना आवशयक हो जाता है।लेकिन तुरंत आराम के लिए कुछ घरेलु उपाय भी अपनाएं जा सकते हैं।

 - दंश के स्थान पर नीबू का रस लगाएं।

-  आम की गुठली पानी के साथ घिसकर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।

-  दंश स्थान पर आक के दूध का लेप करने से राहत मिलती है।

-  अनार के पत्तों को पीस कर लगाने से लाभ होता है।

- विषैले कीड़े के काटने पर प्याज पीसकर शहद में मिलाकर काटे हुए स्थान पर लगाएं।

-  जहरीले जन्तु के काट लेने पर दंश स्थान पर लगाने से विष शमन होने लगता है।

-  विषैले दंश के स्थाप पर पमक का पानी डालकर रगड़ें।

 - तुलसी के पत्तों को शरीर पर लगाएं और पत्तों को पीसकर इसका रस रोगी को पिलाएं।

- विषैले कीड़े, मधुमक्खी या बिच्छु के काटने पर नीम की पत्तियों को पीस कर लेप करें। नीम के पत्तों को चबाएं।

- मिट्टी की गीली पट्टी बांधे।

- दिलासलाई का मसाला पानी में घिसकर लगाएं।

- पुदीने की पत्ती चबाएं।

ऐसे खाएं खाना तो दिल से जुड़ी हर बीमारी से महफूज रहेंगे...

बदलते दौर में आदतों के साथ-साथ कई नई समस्याएं भी अलग-अलग रूप धारण कर लेती हैं। दिल की बीमारी कुछ इन्हीं समस्याओं में से एक है। वर्तमान में जो भी परिस्थितियां हों, लेकिन आने वाला समय सेहत के लिए और भी खतरनाक होने वाला है। जानकारों की मानें तो कम हो रही शारीरिक भाग-दौड़ और बढ़ते मानसिक भार के कारण आने वाले समय में लगभग हर व्यक्ति को रक्तचाप और दिल की बीमारी हो सकती है।

ऐसे में दवाओं का बोझ कहां तक आप बरदाश्त कर पाते हैं, ये आपके इम्यून सिस्टम पर भी निर्भर करता है। इससे बचने के लिए भोजन से जुड़ी कुछ चीजों को शामिल करना जरूरी है। कहते हैं अगर रोजाना संतुलित रूप से भोजन लिया जाए तो अनेक बीमारियों से बचा जा सकता है। भोजन में कुछ चीजें शामिल करके हृदयरोग से बचा जा सकता है तो आइये जानते हैं खाने से जुड़ी कुछ ऐसी ही घरेलू चीजों के विषय में जिनका सही तरीके से नियमित प्रयोग आपको दिल से जुड़े हर खतरे से महफूज रखता है-



 टमाटर - इसमें विटामिन सी, बीटाकेरोटीन, लाइकोपीन, विटामिन ए व पोटेशियम प्रचूर मात्रा में पाया जाता है जिससे दिल की बीमारी का खतरा कम हो जाता है।

 गाजर - बढ़ी हुई धड़कन को कम करने के लिए गाजर बहुत ही लाभदायक है। गाजर का रस पीएं, सब्जी खाएं व सलाद के रूप में प्रयोग करें

लहसुन - भोजन में इसका प्रयोग करें। खाली पेट सुबह के समय दो कलियां पानी के साथ भी निगलने से फायदा मिलता है।

प्याज- इसका प्रयोग सलाद के रूप में कर सकते हैं। इसके प्रयोग से रक्त का प्रवाह ठीक रहता है। कमजोर हृदय होने पर जिनको घबराहट होती है या हृदय की धड़कन बढ़ जाती है उनके लिए प्याज बहुत ही लाभदायक है।

सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

जब खाना खाने का मन ही न करे तो आजमाएं ये अचूक फंडे

कहते हैं भूखे पेट भजन ना होय - यह उक्ति अक्षरश:  सत्य है, और भूख न लगना अनेक रोगों में एक लक्षण भी होता है।

-अगर भूख लगी हो और भोजन भी स्वादिष्ट हो ,फिऱ भी भोजन अच्छा न लग रहा हो तो -अरुचि ,

भोजन का नाम सुनने ,स्मरण करने ,देखने या स्पर्श करने से या गंध से ही अनिच्छा ,उद्वेग और द्वेष होना -भक्त्द्वेश,

क्रोध के कारण ,डर जाने से या द्वेष  के कारण मन के अनुकूल भोजन रहने पर भी भोजन ग्रहण करने क़ी इच्छा न होना -

अभक्तछंद के नाम से जाना जाता है।

आयुर्वेद इन सभी के पीछे शारीरिक और मानसिक कारण मानता है, आधुनिक विज्ञान भी गेस्ट्राइटीस,गेस्ट्रिककैंसर ,एनीमिया ,हाईपोक्लोरोहाईड्रीया आदि कारणों से इसे उत्पन्न होना मानता है। मानसिक कारणों में शोक,लोभ, क्रोध तथा मन के लिए अरुचि उत्पन्न करने वाले कारणों से इसकी उत्पत्ति  माना गया है।

आइये आपको हम कुछ साधारण आयुर्वेदिक नुस्खे बताते हैं जिससे इसे दूर किया जा सकता है ,लेकिन इनका सेवन आयुर्वेदिक चिकित्सक  के परामर्श से हो तो बेहतर होगा।

-भूना सफेद जीरा -250 मिलीग्राम ,सैंधा नमक -125 मिलीग्राम ,भूनी हींग -500 मिलीग्राम ,चीनी - 250मिलीग्राम ,काली मिर्च -125 मिलीग्राम ,पीपर-250 मिलीग्राम इन सबको सुबह- शाम  देने से रोगी में लाभ मिलता है।

-काली मिर्च-250मिलीग्राम ,सौंफ-250मिलीग्राम ,सैंधा नमक -250 मिलीग्राम ,जीरा -250 मिलीग्राम ,चीनी -2.5 ग्राम एवं भूनी हींग 500मिलीग्राम को चूर्ण के रूप में सुबह शाम गुनगुने पानी से लेना फायदेमंद रहता है।

-एक ही  प्रकार के भोजन को लगातार लेने से बचना चाहिए।

-रोगी को मनोनकूल  सादा एवं हल्का भोजन देना चाहिए।

-भोजन से पूर्व अदरख  या सौंठ  का प्रयोग  भी भूख बढाता है।

-कई बार मानसिक तनाव के कारण भी भूख नहीं लगती है,ऐसे में तनाव मुक्त होने मात्र से भूख लगने लगती है।

अत: हमें अपनी अग्नि का खय़ाल रखते हुए सात्विक,हल्का एवं स्वच्छ एवं पौष्टिक व् संतुलित आहार लेना चाहिए ,कहा भी गया है 'जैसा खाओगे अन्न वैसा रहेगा मन।

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