बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

medicine plant tips सेहत टिप्स

 गंभारी (verbenaceae)

गंभारी के वृक्ष पहाडी इलाकों में बहुतायत से पाए जाते हैं . इसे मधुपर्णिका भी कहते हैं . इसके पत्ते चबाने के पश्चात पानी मीठा लगता है . यह दशमूल के द्रव्यों में से एक है . प्रसव के बाद इसका प्रयोग अवश्य करना चाहिए . मुंह सूखता हो तो , इसके एक या दो फल खा लें , प्यास नहीं लगेगी . भयानक acidity में इसके दो फल खाकर पानी  पी लें .
                                            कहीं भी अल्सर हो गये हों तो , इसके सूखे फल का पावडर , सवेरे शाम पानी के साथ लें . इसका फल अपने आप में ही टानिक का कार्य करता है . प्रमेह या यौन संबंधी रोग हों तो इसके फल के पावडर में बराबर मात्रा में आंवला मिला लें . अब इसमें मिश्री मिलाकर पानी या दूध के साथ सवेरे शाम प्रयोग करें . आंव की बीमारी हो तो मुलेठी +गंभारी की छाल +गंभारी का फल ; इन सबका पावडर बराबर मात्रा में मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . आमवात या गठिया हो या जोड़ों का दर्द हो तो इसी पावडर का काढ़ा सवेरे शाम लें .
                                           शीतपित्त होने पर गंभारी के फल का पावडर मिश्री मिलाकर सवेरे शाम लें . सिरदर्द होने पर इसके पत्ते पीसकर माथे पर लेप करें . गर्भधारण  न होता हो तो , मुलेठी और गंभारी की छाल मिलाकर 5 ग्राम लें . इसे 200 ग्राम पानी में मिलाकर काढ़ा सवेरे शाम लें . कील मुहासे हो ,त्वचा की समस्या हो या फिर रक्त विकार हो तो , गंभारी की छाल और नीम की छाल का काढ़ा सुबह शाम पीयें . यह diabetes की बीमारी में भी लाभदायक है .
                                                      आँतों में infections हों या अन्य कहीं पर भी infections होने पर इसके फल का पावडर सवेरे शाम लें . यह म्रदु विरेचक भी है . इसलिए इसको लेते रहने से constipation की समस्या भी नहीं होती . इसके पत्तों की चाय भी बहुत लाभदायक है . यह त्रिदोषनाशक है , इसीलिए बिलकुल निरापद है . 

शिरीष



शिरीष को शुकपुष्प भी कहा जाता है . आम भाषा में इसे सिरस भी  कहते हैं .इसके वृक्ष सब जगह पाए जाते हैं . इसके सुन्दर पुष्पों की भीनी भीनी महक मन को मोह लेती है . यह विषनाशक होता है . सर्प आदि के काटने पर अगर नीम और शिरीष के पत्तों के पानी में नमक डालकर झराई करें तो कहते हैं कि चेतना लौट आती है . इसके फलियों के बीजों को बकरी के दूध में पीसकर नाक में सुंघाने से मूर्छा खत्म हो जाती है .
                           अगर काँटा निकल न रहा हो इसके पत्ते पीसकर पुल्टिस बाँध दें .   उन्माद की बीमारी में मुलेठी +सौंफ +अश्वगंधा +वचा +शिरीष के बीज ;  इन सबको मिलाकर 1-1 चम्मच सुबह शाम दें . आँख में लाली या अन्य कोई समस्या हो तो इसके पत्तों की लुगदी बनाकर उसकी टिकिया बंद आँखों पर कुछ समय के लिए रखें . कान में समस्या होने पर इसकी पत्तियां गर्म करके उसका रस दो बूँद कान में ड़ाल सकते हैं . खांसी होने पर इसके पुराने पीले पत्तों को देसी घी में भूनकर शहद के साथ लें . दस्त लगने पर इसके बीजों का पावडर आधा ग्राम की मात्रा में लें . पेट फूल जाए या लीवर का  infection हो तो इसी छल का पावडर या काढ़ा लें .
                                      psoriasis या eczema होने पर इसके पत्ते सुखाकर मिटटी की हंडिया में जलाकर राख कर लें . इसे छानकर सरसों के तेल में मिलाकर या देसी घी में मिलाकर प्रभावित त्वचा पर लगायें . इसके अतिरिक्त चर्म रोगों में , इसकी 10 ग्राम छाल 200 ग्राम पानी में कुचलकर , रात को मिट्टी के बर्तन में भिगोयें और सवेरे छानकर पीयें . Piles में इसके बीज पीसकर लगायें . मस्से सूख जायेंगे . सूजाक होने पर इसके पत्तों के के साथ नीम के पत्तों का रस भी मिला लें और धोएं .

                                                पस cells बढ़ने , या बार बार urine के आने की समस्या हो तो , इसकी कोमल पत्तियां पीसकर मिश्री मिलाकर पीयें या इसका काढ़ा पीयें . periods में बहुत दर्द हो तो period शुरू होने के चार दिन पहले इसकी 10 ग्राम छाल का 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें . इसे period होने पर लेना बंद कर दें . किसी भी तरह की सूजन होने पर पत्तों को पानी में उबालकर सिकाई करें . कमजोरी महसूस होती हो तो इसके एक भाग बीजों में दो भाग अश्वगंधा मिलाकर मिश्री मिला लें . इस पावडर को सवेरे शाम लें . चोट लगने पर पत्तों और छाल को उबालकर धोएं . छाल को घिसकर घाव  पर लगायें .


क्षीर काकोली (lilium polyphyllum)

क्षीर काकोली भी च्यवनप्राश में डाले जाने वाला मुख्य घटक है . यह भी मेदा महामेदा की तरह अष्टवर्ग का एक हिस्सा है . यह हिमालय पर बहुत ऊंचाई पर पाया जाता है . यह बहुत दुर्लभ पौधा है . पर्वतों पर रहने वाले
लोग इसे सालम गंठा कहते हैं . इस पर सुन्दर सफ़ेद रंग के फूल आते हैं . इसे अंग्रेजी में white lily भी कहते हैं . इसका कंद बाहर से सफेद लहसुन की तरह लगता है और अन्दर से प्याज की तरह परतें होती हैं . इसका कंद सुखाकर इसका पावडर कर लिया जाता है .
                                              इसे कायाकल्प रसायन भी कहा गया है . हजारों सालों से हिमालय पर रहने वाले संत महात्मा इसका प्रयोग करते रहे हैं और आज भी करते हैं . इसका थोड़ा सा ही पावडर दूध के साथ लेने से कफ , बलगम खत्म हो जाता है . लीवर ठीक हो जाता है . यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है . यह कमजोर और रोगियों को स्वस्थ करता है . शीतकाल में इसके प्रयोग से ठण्ड कम लगती है . इसको लेने से ताकत आती है . खाना कम भी मिले ; तब भी ताकत बनी रहती है . पहाड़ों पर ऊपर चढ़ते समय सांस नहीं फूलता. यह बुढ़ापे को रोकने में मदद करती है .
                                            च्यवन ऋषि ने इस पौधे का प्रयोग भी किया था और तरुणाई वापिस पाई थी . यह वास्तव में जीवनी शक्ति प्रदान करने वाली एक दुर्लभ जड़ी बूटियों में से एक है . 

मेदा, महामेदा
मेदा महामेदा पहाड़ों पर पाने वाली शक्तिवर्धक जड़ी बूटी हैं  . ये हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में पाई जाती हैं .  मेदा की बिनामुड़ी सीधी सीधी पत्तियां होती हैं , जबकि महामेदा की पीछे की और मुडी हुई पत्तियाँ होती हैं . इसके अदरक जैसे कंद होते हैं . मेदा के बड़े कांड होते हैं और महामेदा के पतले कंद होते हैं .  यह जीवन बढ़ाने वाली और बुढ़ापा रोकने वाली औषधि है . इसके कंद को सुखाकर इसका पावडर लिया जाता है . यह शक्तिवर्धक होती है और कमजोरी को दूर भगाती है . इससे खांसी भी दूर होती है . च्यवनप्राश में डाले जाने वाले अष्टवर्ग में यह भी शामिल है . च्यवन ऋषि भी इस औषधि को खाकर जवान हुए थे . यह यौनजनित विकृतियाँ भी दूर करती है . इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढती है . इसके कंद को सुखाकर , बराबर की मिश्री मिलाकर , 2-3 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ लिया जा सकता है . इसको लेने से बुढापे के रोग नहीं होते .

बबूल

बबूल या कीकर के फूल ग्रीष्म ऋतु में आते हैं और फल शरद ऋतु में आते हैं . दांतों को स्वस्थ रखने के लिए इसकी दातुन बहुत अच्छी मानी जाती है . मसूड़े फूल गये हों तो इसकी पत्तियां चबाकर मालिश करने के बाद थूक दें . इससे मुंह के छाले भी ठीक होते हैं .
                        प्रमेह रोगों में इसकी कोमल पत्तियां प्रात:काल चबाकर निगल लें . ऊपर से पानी पी लें . इसकी फलियों को पकने से पहले सुखाकर पावडर बनाकर रख लें . इस पावडर का नियमित रूप से सेवन करने से सभी तरह की कमजोरी दूर होती हैं . टांसिल बढ़े हुए हों , या गायन में परेशानी हो रही हो तो इसकी पत्तियां +छाल उबालकर उसमें नमक मिलाकर गरारे करें .   कफ , बलगम ,एलर्जी की समस्या हो तो इसकी छाल +लौंग +काली मिर्च +तुलसी को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें .
                                         lever की समस्या है तो इसकी फलियों का पावडर +मुलेठी +आंवला मिलाकर , काढ़ा बनाकर पीयें .  Colitis या amoebisis होने पर कुटज +बबूल की छाल का काढ़ा लें . Periods की समस्या हो तो कीकर की छाल का काढ़ा पीयें .


सत्यानाशी (argemone, maxican prickly poppy)

सत्यानाशी को पीतदुग्धा और स्वर्णक्षीरी भी कहा जाता है .इसके कोमल हल्के पीले रंग के फूल होते है . इसके पत्ते कांटेदार होते हैं . इसके कभी कभी सफेद रंग के फूल भी हो सकते हैं . यह आमतौर पर सर्वत्र पाया जाने वाला पौधा है . इसे देखभाल की आवश्यकता बिलकुल नहीं है . किसी भी बेकार पडी जगह पर यह उग जाता है . इसके बीज कुछ कुछ सरसों से मिलते जुलते होते हैं . इनसे निकला हुआ तेल कुछ बेईमान सरसों के तेल में मिलाकर बेचते हैं ; जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकर हो सकता है . लेकिन इस पौधे को विवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग में लाया जाए तो यह रक्त शोधक , प्रमेह और कमजोरी को दूर करने वाला पौधा है .
                               नेत्र रोगों के लिए इसके पौधे के पीले दूध (डाली तोड़ने पर पीला सा दूध निकलता है ) को संग्रहित कर लें. इसमें दो तीन बार रुई भिगोकर सुखाएं .उसे सुखाकर गाय के शुद्ध घी में बत्ती बनाकर काजल बनायें . कहते हैं कि इससे नेत्र ज्योति भी बढती है .  अगर शक्ति का ह्रास महसूस होता हो तो इसकी जड़ का पावडर मिश्री के साथ लें . नपुंसकता के लिए इसके जड़ के टुकड़े को बड़ के रस की एक भावना (भिगोकर सुखाना)  दें . पान के पत्तों के रस की दो भावनाएं दें . फिर चने जितना भाग सुबह शाम दूध के साथ लें . 
                                     जलोदर ascites का रोग हो या urine कम आता हो तो इसके पंचांग को छाया में सुखाकर 10 ग्राम की मात्रा में लें . इसका 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाएं . सवेरे शाम लें . चर्म रोग या psoriasis को ठीक करने के लिए ताज़ी सत्यानाशी के पंचांग का रस एक किलो लें . इसे आधा किलो सरसों के तेल में धीमी आंच पर पकाएं . जब केवल तेल रह जाए तो इसे शीशी में भरकर रख लें और प्रभावित जगह पर लगाएँ. खाज खुजली होने पर इसके पत्ते उबालकर उस पानी से नहाएँ

बहेड़ा (bellaric myrobalan)

 
त्रिफला के तीन घटकों (हरड, बहेड़ा, आंवला ) में बहेड़ा एक महत्वपूर्ण घटक है . इसका विशाल वृक्ष होता है . इसके फल का अक्सर छिलका ही प्रयोग में लाया जाता है . आँतों में संक्रमण हो या acidity की समस्या हो ; इसे त्रिफला के रूप में लिया जा सकता है . यह निरापद है . पुरानी से पुरानी खांसी में इसके साफ़ टुकड़े को मुंह में रखकर चूसते रहें . खांसी बलगम सब खत्म हो जाएगा . श्वास संबंधी किसी भी समस्या के लिए इसके फल के छिलके या पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर पीयें . मुंह में लार कम बनती हो या फिर आवाज़ स्पष्ट न हो तो इसके फल के छिलके का चूर्ण शहद के साथ चाटें . 
                        हृदय रोग में अर्जुन की छाल और बहेड़े के फल के छिलके का चूर्ण मिलाकर या तो ऐसे ही ले लें या फिर काढ़ा बनाकर पीयें . पुराने से पुराने बुखार में बहेड़ा और गिलोय को उबालकर , छानकर पीयें . White discharge की समस्या हो अथवा kidney में समस्या हो दोनों ही के लिए ,इसका पावडर और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाएं और एक -एक चम्मच सवेरे शाम लें .Thyroid की समस्या में भी यह लाभ करता है .
                           नेत्र रोग में इसके तने के छिलके को शहद में घिसकर आँखों में अंजन कर सकते हैं . इसके फल की गिरी की बारीक पेस्ट बनाकर बालों में लगाई जाए तो बाल मजबूत होते हैं और उनमें कोई रोग भी नहीं होते . बहेड़े के फल के छिलके का नियमित रूप से सेवन करने से मोटापा भी कम होता है .  खुजली की समस्या के लिए इसकी मींगी (फल का बीज ) का तेल +मीठा तेल (तिल का तेल ) मिलाकर मालिश करनी चाहिए . 

द्रोणपुष्पी

 
द्रोणपुष्पी का पौधा पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है . यह एक से डेढ़ फुट तक का होता है . द्रोण का अर्थ है दोना . इसके पुष्प दोने के आकार के होते हैं . इसको गुम्मा भी कहते हैं . देखने में ऐसा लगता है मानो पौधे के ऊपर नन्हा गुम्बद रखा हो और गुम्बद में से नन्हें पुष्प निकल रहे हों . यह विषहर है . हर प्रकार के जहर का असर खत्म करता है . ऐसा माना जाता है कि सांप के काटने से बेहोश हुए व्यक्ति की नाक में अगर इसकी पत्तियों का रस डाला जाए , तो उसकी बेहोशी टूट जाती है . 
                                  Eczema , एलर्जी या किसी भी त्वचा की समस्या के लिए यह बहुत उपयोगी है . यह रक्तशोधक माना जाता है . अगर त्वचा की कोई परेशानी है , सांप के जहर का असर है , कोई विषैला कीड़ा काट गया है , या skin पर allopathy की दवाइयों का reaction हो गया है ; तो इसके 5  ग्राम पंचांग में 3 ग्राम नीम के पत्ते मिलाकर , दो गिलास पानी में उबाल लें . जब आधा गिलास बच जाए तो पी लें . ये कुछ दिन सुबह शाम लें . 
                                 Sinus या पुराना सिरदर्द है तो इसके रस में दो गुना पानी मिलाकर चार चार बूँद नाक में डालें . यह केवल 3-4 दिन करने से ही आराम आ जाता है और जमा हुआ कफ भी बाहर आ जाता है . पुराना बुखार हो तो इसकी दो तीन टहनियों में गिलोय और नीम मिलाकर काढ़ा बनाकर कुछ दिन पीयें .  लीवर ठीक न हो ,SGOT , SGPT आदि बाधा हुआ हो तो इसके काढ़े में मुनक्का डालकर मसलकर छानकर पीयें .
                        Infection या कैंसर जैसी समस्याओं के लिए ताज़ी द्रोणपुष्पी +भृंगराज +देसी बबूल की पत्तियों का रस या काढ़ा पीयें . डाक्टरों के निर्देशन में आनी दवाइयों के साथ भी इसे ले सकते हैं . इससे चिकित्सा में जटिलता कम होंगी . शरीर में chemicals का जहर हो , toxins  हों या एलर्जी हो तो इसके पंचांग का 2-3 ग्राम का काढ़ा ले सकते हैं . विभिन्न एलर्जी और बीमारियों को दूर करने के लिए द्रोणपुष्पी का सत भी लिया जा सकता है . 
             इसका सत बनाने के लिए , इसके रस में दो गुना पानी मिलाकर एक बर्तन में 24 घंटों के लिए रख दें . इसके बाद ऊपर का पानी निथारकर फेंक दें और नीचे बचे हुए residue को किसी चौड़े बर्तन में फैलाकर छाया में सुखा लें . तीन चार दिन बाद यह सूखकर पावडर बन जाएगा . इसे द्रोणपुष्पी का सत कहते हैं . इसे प्रतिदिन आधा ग्राम की मात्र में लेने से सब प्रकार की व्याधियां समाप्त हो जाती हैं . और अगर कोई व्याधि नहीं है तब भी यह लेने से व्याधियों से बचे रहते हैं , प्रदूषणजन्य बीमारियों से भी बचाव होता है .
     
     

लौकी (bottle gourd)

 
लौकी को घीया और दूधी भी कहा जाता है . ताज़ी लौकी का छिलका चमकदार होता है . इसे गरम पानी से अच्छी तरह धोकर इसका जूस निकालना चाहिए . इसके जूस में सेब का जूस मिला लें तो यह स्वादिष्ट हो जाता है . इसके जूस को सवेरे खाली पेट काली मिर्च मिलाकर और थोड़ा गुनगुना करके लेना चाहिए . इसका जूस acidity  को कम करता है और indigestion की समस्या को खत्म करता है . इसके जूस में तुलसी या पोदीना भी मिलाया जा सकता है . 
                      इसका जूस हृदय रोग , high B P,  खांसी , रुककर पेशाब आना , प्रमेह , जी मिचलाना जैसी अनेक बीमारियों में लाभदायक है . अगर anaemia या थैलेसीमिया जैसी बीमारी है तो इसके जूस में wheat grass और गिलोय का रस भी मिलाना चाहिए . Kidney की समस्या में या फिर urea बढ़ा हुआ हो तो इसके पत्तियों की सब्जी खाएं . इसके डंठलों की सब्जी भी खाई जा सकती है .  त्वचा की समस्या हो तो इसके पत्तों का रस पीयें . अगर पथरी की समस्या है तो इसकी जड़ उबालकर पीयें .  लौकी कडवी नहीं होनी चाहिए ;  इसका जूस हानिकारक  हो सकता है 


अतीस

 
अतीस को अतिविषा और शुक्लकंदा के नाम से भी जाना जाता है . यह हिमालय में ऊँचाई पर पाया जाता  है. इसका पौधा 2-3 फुट तक ऊंचा होता है. इसके नीले रंग के फूल होते हैं . यह विषनाशक माना गया है . यह काफी मंहगा होता है . अतीस दो प्रकार की होती है . सफ़ेद रंग की मीठी अतीस ज्यादा प्रयोग में लाई जाती है. दूसरी तरह की अतीस भूरे रंग की होती है .यह कडवी होती है . अगर कमजोरी है तो यह बहुत लाभदायक रहती है . बुखार होने पर आधा ग्राम पावडर शहद के साथ लें . बाद में पानी पी लें . अतीस गिलोय के साथ ले ली जाए तो बुखार बहुत जल्द ठीक होता है . यह दिन में दो तीन बार लेना चाहिए . वास्तव में अतीस जिस भी प्रकार की औषधि में मिलाकर ली जाए , उसी की कार्यक्षमता को बढ़ा देती है . 
                                पेचिश , colitis संग्रहणी या अतिसार होने पर इसका पावडर दही या पानी के साथ लेना चाहिए . Irritable bowel syndrome होने पर , अतीस +बिल्वादी चूर्ण +अविपत्तिकर चूर्ण और मुक्ताशुक्ति भस्म बराबर मात्रा में मिलाकर 3-4 ग्राम की मात्रा में लेना चाहिए . कमजोरी और शिथिलता हो तो इसका पावडर 1-1 ग्राम सवेरे शाम लेना चाहिए. 
                  बच्चों की मानसिक व शारीरिक कोई भी समस्या हो या रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाना हो तो अतीस घिसकर शहद के साथ चटाएं. बच्चों को अतीस का एक ग्राम का आठवां अंश यानी एक रत्ती अतीस दिन में 2-3 बार दिया जा सकता है . दो तीन मास के बच्चे को एक ग्राम का दसवां अंश ही शहद में मिलाकर या फिर दूध में मिलाकर देना चाहिए .  इससे बच्चों की एलर्जी की समस्या तो हल होती ही है ; साथ ही यह खांसी में भी लाभकारी है . इससे बच्चों के हरे पीले दस्त भी ठीक होते हैं और दांत निकलते समय जो परेशानियां होती हैं ; उनसे भी छुटकारा होता है . अतीस बच्चों के मस्तिष्क को भी शक्ती प्रदान करता है और शरीर को भी .  त्वचा और मांसपेशियाँ भी इसको लेने से स्वस्थ रहती हैं . 
                     

रुद्रवंती(RUDRAVANTI)

रुद्रवंती को रुदंती भी कहते हैं . संस्कृत में इसे संजीवनी भी कहा जाता है . इसकी पत्तियां की पत्तियों जैसी होती हैं . इस पर हमेशा ओस की बूँदें होती हैं . कहते हैं की यह पौधा रात को चमकता है . यह हिमालय क्षेत्र में पाया जाता है . इसे रसायन माना जाता है ; अर्थात जीवनी शक्ति का पोषण करने वाला .  पहले यह धारणा थी कि इससे पारे को सोने में परिवर्तित कर सकते हैं . लेकिन यह सच है कि इसके रस को बार बार तांबे पर लगाकर गर्म करें ; लगभग 5-7 बार ; तो तांबा पीला हो जाता है और दमकने लगता है . इसकी जड़ पहाडी कठोर भूमि में 5-6 फुट तक गहरी जाती है . इसे घर में रखने मात्र से वातावरण शुद्ध रहता है . बुखार हो तो थोड़ी सी रुद्रवंती गिलोय के काढ़े में मिला लें . त्वचा की परेशानी हो तो नमक का सेवन बंद कर दें और कायाकल्प क्वाथ में थोड़ी रुद्रवंती मिला लें . किसी भी प्रकार की औषधि में इसे थोडा सा मिलाने पर औषधि की क्षमता बढ़ जाती है . दमा इत्यादि हर प्रकार की बीमारी में यह लाभ करती है . 
   

ममीरा (gold thread cypress)

 ममीरा हिमालय के क्षेत्र में पाया जाता है इसकी पीली रंग की जड़ होती है . इसे वचनागा भी कहते हैं .इसके फूल मेथी के फूलों जैसे होते हैं . आँखों में लाली हो या कम दीखता हो या फिर infection हो गया हो तो शुद्ध ममीरे की जड़ घिसकर आँख में अंजन कर सकते हैं . कमजोरी हो तो इसके साथ शतावर , मूसली और अश्वगंधा मिलाकर लें .आँतों में या पेट में infection हो तो इसकी जड़ कूटकर रस या काढ़ा लें .
                                                            दांत दर्द हो या मुंह में घाव और छाले हो गये हों तो इसकी पत्तियां चबाएं . इससे मसूढ़े भी मजबूत होंगे . कहीं पर घाव हो तो इसकी पत्तियां कूटकर घाव को धोएं . घाव में कुटी हुए पत्तियां लगा भी दें . बार बार बुखार आता हो तो इसकी जड़ , 1-2 काली मिर्च , तुलसी और लौंग मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें . Lever की समस्या में सुबह शाम इसकी जड़ का काढ़ा लें . चेहरे पर मुहासे हों तो जड़ घिसकर लगायें 
              

निर्गुन्डी (vitex negundo )


 
 
निर्गुन्डी को हिन्दी में सम्हालू और मेउडी भी कहा जाता है . यह हिमालय की तलहटी में पाया जाता है . इसके पत्ते एक टहनी पर एक विशेष तरीके से पांच की संख्या में होते हैं . इसलिए इसे अंग्रेजी में five leaved chastle भी कहा जाता है . यह बहुत ही अमृतदाई पौधा है . अगर छाले हो हए हैं तो इसके पत्ते उबालकर गरारे और कुल्ले करें .  इससे मुख की बदबू भी खत्म होती है . Periods में दर्द होता हो तो इसकी 4-5 पत्तियों को छाया में सुखाकर 600 ग्राम पानी में उबालें . जब रह जाए 150 ग्राम तो पीयें . यह सवेरे शाम कुछ दिन पी लें . अगर अधिक परेशानी है तो इसके बीजों का पावडर 2-2 ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लें . कमर दर्द में इसके पत्तों का काढ़ा लें . गण्डमाला , tonsil या गले में सूजन हो तो इसके पत्ते उबालकर सवेरे शाम गरारे  करें और इसकी जड़ के छिलके को पीसकर गले में लेप करें . टांसिल की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जायेगी . ज़ुकाम , खांसी , sinus या एलर्जी  की समस्या हो तो इसके पत्ते उबालकर चाय की तरह पीते रहें . अपच हो गया हो तो इसके पत्ते और अदरक उबालकर चाय की तरह पीयें . इससे अफारा भी ठीक होगा .
                                   Lips फट जाएँ , उँगलियों में cuts पड़ जाएँ या नाखून की पास की खाल फटें तो इसके पत्तों का रस निकालकर नाभि पर लगा लें . जलोदर या ascites होने पर नाभि के आसपास इसका रस मलें . वातज रोग हों , arthritis हो और सूजन आई हुई हो तो इसके पत्ते उबालकर सिकाई करें . बहुत जल्द आराम आएगा . सूजन होने पर इसके पत्ते उबालकर पीयें और इसके पत्तों को कूटकर , सरसों के तेल में गर्म करके पेस्ट बनाएं और उसे रुई में रखकर घुटनों पर बांधें . अगर फुंसी हो गई है या घाव हो गया है तो पत्ते उबालकर , पानी से धोएं . Tetanus होने की सम्भावना हो तो इसके पत्तों का 2-2 चम्मच रस सुबह शाम लें . कुछ दिन लेने से tetanus होने की सम्भावना शत प्रतिशत समाप्त हो जाती है . और घाव भी जल्द भर जाता है . पोलियो या paralysis होने पर इसके पत्तों का काढ़ा पीयें . Sciatica की समस्या हो तो निर्गुन्डी का तेल मलें . तेल बनाने के लिए इसके पत्तों का एक किलो रस लें , या इसके सूखे पत्तों के पावडर को 4 किलो पानी में उबालें . जब रह जाए एक किलो तो आधा किलो सरसों का तेल मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं . केवल तेल बचने पर छान लें . इस तेल से polio  और paralysis में भी लाभ होता है . 
                    आयु में वृद्धि करनी है और दुर्बलता दूर करनी हो तो इसके पत्तों के पावडर में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें और एक एक चम्मच सवेरे शाम खाली पेट लें . Elephant leg की बीमारी में इसके पत्तों के रस में तेल मिलाकर 15-20 दिन पैरों की मालिश करें . अवश्य लाभ होगा . 

दूधी

दूधी दो प्रकार की होती है छोटी और बड़ी . किसी भी दीवार के किनारे , खाली बेकार पडी जगह पर नन्हे लालिमा लिए हुए छोटे छोटे पत्तों वाली दूधी नज़र आ जाती है . यह यूं ही उग जाती है ; बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है . और बड़ी दूधी के पत्ते हल्के हरे रंग के होते हैं . यह भी खाली जगह दीवारों के पास या बेकार पडी जगह पर दिख जाती है . इसका पौधा और पत्ते छोटी दूधी से थोड़े बड़े होते हैं .
                           अगर शौच बार बार आ रहा हो या colitis की समस्या हो तो दूधी चबाएं या फिर इसका सूखा पावडर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . पेचिश हो तो ताज़ी दूधी पीसकर जरा सी फिटकरी मिलाकर लें . नकसीर आती हो तो सूखी दूधी पीसकर मिश्री मिलाकर लें . बच्चों के पेट में कीड़े हों तो इसका रस एक दो चम्मच दें. इससे पेट के कीड़े तो मरेंगे ही शक्ति में भी वृद्धि होगी .आदिवासी ग्रामीणों का तो यहाँ तक मानना है कि दूधी को कान पर लटकाने भर से ही पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं . हरे पीले दस्त भी इसके रस से ठीक हो जाते हैं . 
                   मधुमेह की बीमारी हो या कमजोरी अधिक हो तो इसका एक -एक चम्मच रस सवेरे शाम लें .    बाल झड़ते हों तो दूधी के रस के साथ कनेर के पत्तों का रस मलकर बालों की जड़ में लगायें . अकेला दूधी का रस भी लगा सकते हैं . लिकोरिया की समस्या हो या गर्भधारण में समस्या आ रही हो तो इसका पावडर नियमित रूप से लें या इसका काढ़ा बनाकर लें . खांसी होने पर दूधी +काली मिर्च +तुलसी लें .

नागदोन

नागदोन को नागदमनी भी कहते हैं . यह घरों में आमतौर पर पाया जाने वाला पौधा है . यह बहुत गहरे हरे रंग की डंडियों और पत्तों वाला पौधा है .हर मौसम में हर भरा होता है पर कभी फूल या फल नहीं आते .  इसकी डंडी या पत्ता तोड़ें तो दूध जैसे द्रव का स्राव होता है . अगर piles की समस्या है तो इसके तीन छोटे पत्ते काली मिर्च के साथ सवेरे सवेरे पांच दिन तक खा लें या फिर एक चम्मच रस सवेरे खाली पेट लें . मासिक रक्तस्राव अधिक हो तब भी यह प्रयोग किया जा सकता है . सूजन या फोड़ा हो तो इसके पत्ते गर्म करके बाँध लें . 
                           कब्ज़ हो या पेट में अल्सर हों तो इसके दो पत्ते या उनका रस काली मिर्च के साथ खाली पेट लें . Amoebisis या colitis हो तो दूधी और इसके दो पत्ते लें . पेट में अफारा हो या urine रुक रुककर आता हो तो इसके दो पत्तों का शर्बत खाली पेट लें .

तुम्बरू (toothache tree)


Toothache tree 
तुम्बरू को नेपाली धनिया भी कहा जाता है . यह पहाड़ों पर होता है . यह वृक्ष इतने कम हो गये हैं कि लुप्त होने की कगार पर हैं . अगर कोई रक्त विकार है , त्वचा की समस्या है , त्वचा काली हो गई है , या eczema हो गया है तो इसकी पत्तियों का काढ़ा पीयें . फोड़े फुंसी या मुहासे हो गये हों तो इसकी जड या कांटे घिसकर लगा लें .इससे निशान भी मिट जायेंगे . अगर जोड़ों का दर्द होता है तो इस वृक्ष की छड़ी हाथ में लेकर चलने से ही लाभ होना प्रारम्भ हो जाता है . दमा या कफ रोगों में इसके बीज और तुलसी मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें . 
                इसके दातुन से दांत साफ़ करते रहने से लारग्रंथियों का स्राव बढ़ जाता है . इसके दो चार बीजों को मुंह में रखने से भी लार का स्राव बढ़ जाता है जो कि दांतों को भी स्वस्थ रखता है और पाचन में भी सहायक है . दांतों में दर्द हो ,पायरिया हो या मसूढ़े ठीक न हों तो तुम्बरू के बीजों का पावडर लिया जा सकता है . Indigestion की समस्या रहती हो तो इसका मसले की तरह प्रयोग करें . अगर पेट में कीड़े हों तो चटनी में तुम्बरू मिलकर लें . इससे पाचन भी बढ़ेगा . 
                         Arthritis या sciatica की समस्या हो तो इसकी पत्तियों के साथ सूखी जड़ 5 ग्राम मिलाकर 400 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें . अगर ताज़ी जड़ हो तो 10 ग्राम लेनी चाहिए . अगर सूजन हो गई है तो इसकी पत्तियां उबालकर सिकाई करें .

महानिम्ब (bead tree)

महानिम्ब या बकायन के पेड़ के पत्ते नीम के पत्तों से मिलते जुलते होते हैं ; लेकिन इसके फल निम्बौरी की तरह न होकर कुछ कुछ रुद्राक्ष की तरह होते हैं . सर्दियों के दिनों में तो केवल गोल गोल फल गुच्छों में लगे हुए  ही पेड़ पर रह जाते हैं और लगभग सारे पत्ते झड़ जाते हैं . तब ऐसा लगता है कि पूरा वृक्ष गहरे पीले भूरे रंग के beads से लद गया हो . इसलिए इसे bead tree भी कहते हैं.  रक्तशुद्धि और त्वचा के रोगों में यह बहुत लाभकारी है . त्वचा के रोगों के लिए इसकी 10 ग्राम छाल को 200 ग्राम पानी में पकाएं जब रह जाए 50 ग्राम ; तो इसे पी लें . यह सवेरे शाम खाली पेट लें . खुजली हो तो इसके पत्तों के रस की मालिश करें . सिर में dandruff हो तो इसकी पत्तियों का रस बालों की जड़ में लगायें . 
                   अगर constipation हो और piles की शिकायत हो तो इसके सूखे बीजों का 3 ग्राम पावडर खाली पेट ताज़े पानी या छाछ के साथ सवेरे शाम लें . मुंह में छाले हों , मसूढ़ों में सूजन हो और दुर्गन्ध आती हो तो इसकी छाल पानी में उबालकर , फिटकरी मिलाकर , कुल्ले करें . White discharge की समस्या हो तो इसके बीज का पावडर +आंवला +मुलेठी मिलाकर 1-1 ग्राम सवेरे शाम ले लें . इसके पत्तों का रस घोटकर , सुखाकर अंजन करने से आँखों के रोग समाप्त होते हैं . आँखों और बालों को स्वस्थ रखना हो तो बकायन के फल +सौंठ +आंवला +भृंगराज बराबर मात्रा में मिलाकर एक -एक चम्मच सवेरे शाम लें . गले में गण्डमाला हो ,goiter हो या शरीर में कहीं भी गांठें हों या excess fats deposition हो गया हो, तो इसकी पत्तियां +छाल +इसके बीज बराबर मात्रा में मिलाकर , एक -एक चम्मच सवेरे शाम लें . 
                             अगर पेट में कीड़े हों तो इसके फल का पावडर 2-2 ग्राम सवेरे शाम लें . गर्भाशय की कोई भी समस्या हो तो इसके पत्तों का रस 4-5 ग्राम सवेरे शाम लें . Infection होने पर पत्तों को पानी में उबालकर , फिटकरी मिलाकर धो लें . Sciatica की समस्या होने पर इसकी जड़ की छाल 10 ग्राम +5-7 निर्गुन्डी के पत्ते का काढ़ा बनाकर सवेरे शाम लें . गठिया होने पर इसकी पत्त्यां उबालकर बाँध लें . बुखार होने पर इसकी 4-5 ग्राम छाल में तुलसी के पत्ते डालकर काढ़ा बनाकर पीयें . किडनी की समस्या हो तो इसकी छाल उबालकर सवेरे शाम लें . बकायन का प्रयोग बहुत अधिक नहीं करना चाहिए , इससे lever पर जोर पड़ सकता है .
             कहते हैं कि इसके फलों की माला पहनने से या खिड़की में बाँधने से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है

पंवाड ( foetid cassia)



पंवाड या चक्रमर्द का पौधा त्वचा संबंधी बीमारियों के लिए बहुत अच्छा है . कुछ दिन इसकी सब्जी मेथी के साग की तरह खाने से रक्तदोष , त्वचा के विकार , शीतपित्त , psoriasis , दाद खाज आदि से छुटकारा मिलता है . यह पौधा हर जगह पाया जाता है . सिरदर्द हो तो इसका बीज पीसकर माथे पर लेप कर लें . इसकी पत्तियों की लुगदी बाँधने से गाँठ , फोड़े फुंसी और सूजन खत्म होते हैं . खांसी होने पर इसके बीजों के एक ग्राम पावडर का सेवन सवेरे शाम करें . प्रदर रोग में इसकी जड़ का पावडर चावल के धोवन के साथ लें और इसके पत्तों का साग खाएं .
                           शुगर की बीमारी में इसके बीज मेथी के बीज और आंवला बराबर मात्रा में लेकर एक चम्मच प्रात: साँय खाएं . इससे kidney भी ठीक होती  है . Psoriasis , eczema या खाज खुजली होने पर इसके पत्ते पानी में उबालकर नहायें .

गुल बकावली (ginger lily)


गुल बकावली के सफ़ेद फूल खिले हुए ऐसे प्रतीत होते हैं , मानो पूरा गुलदस्ता पौधे पर सजा दिया गया हो . इसका मुख्य गुण है कि यह मस्तिष्क को शांत करता है और अशांत मनोदिशा को बदल देता है . इसको देखने से, सूंघने से और आस पास रखने मात्र से चित्तवृत्तियाँ बदलती हैं . इसके फूलों को गुलदस्ते में रखा जाए तो कई दिन तक तरो ताज़ा रहते हैं . ये मौसमी फूल घरों में या आफिस में ; कहीं पर भी लगाये जा सकते हैं . यह पौधा कंद या कहें कि bulb द्वारा उगाया जाता है . इनके फूलों की माला पहनने से भी मन शांत रहता है . इसके आस पास रहने से तामसिक और राजसिक प्रभाव कम होकर , सात्विक प्रभाव बढ़ता है . घबराहट दूर होती है ; शरीर के toxins कम होते हैं और बैक्टीरिया और वायरस भी समाप्त होते हैं . ये सौम्य पुष्प दिमाग की उग्रता समाप्त कर , शान्ति प्रदान करते हैं और घर के वातावरण को खुशनुमा बनाते हैं . इन्हें आस पास रखने से बेचैनी और भय समाप्त होते हैं .
                                अगर मानसिक तनाव या अनिंद्रा की बीमारी है तो इसके फूल या पौधे को शयन कक्ष में रखें . सिरदर्द है तो इसके फूल पीसकर माथे पर लेप करें . आँखों की रोशनी चली गई है या आँखों से संबंधित कोई बीमारी है तो इसके फूलों का अर्क आँख में ड़ाल सकते हैं . अमरकंटक में ये फूल बहुतायत से पाए जाते हैं . पुरातन समय में अगर किसी ऋषि को आँख की समस्या होती थी , तो वे अमरकंटक जाया करते थे . और आँख ठीक होने पर वापिस लौटते थे . अगर कहीं पर सूजन या दर्द है तो इसके पत्तों को थोडा गर्म करके बाँध सकते हैं .
           आजकल के तनावपूर्ण वातावरण में यह पौधा अवश्य ही अपने आस पास लगाना चाहिए .

धातकी (woodfordia)


 
धातकी के फूल लालिमा लिए हुए होता है .धातकी या धाय के पौधे के अधिकतर फूल ही प्रयोग में लाये जाते हैं . औषधि निर्माण में तरल औषधियों में(आरिष्ट और आसव )में  इसके फूल को अवश्य ही डाला जाता है . पेट के रोगों के लिए यह बहुत ही अच्छा है . थोड़ी सी कोमल पत्तियों को कूटकर  रस निकालकर दस्त या आंव होने पर ले सकते हैं. नकसीर के लिए इसकी कोमल पत्तियों के रस की बूँदें नाक में ड़ाल दें . इसकी पत्तियों के रस में मिश्री मिलाकर लेने से हर प्रकार की bleeding बंद हो जाती है . नकसीर की समस्या तो इस रस  के शर्बत को लेने से हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है .
              दांतों के लिए इसके फूल और पत्ते लेकर उनका काढ़ा बनाकर कुल्ले करें . lever या spleen के लिए फूल और पत्तियों को काढ़ा बनाकर ले लें . थोडा कुटकी का पावडर भी थोडा मिला लें . मिश्री या शहद भी मिला सकते हैं . अतिसार में या अधिक मरोड़े और ऐंठन हो तो , इसके फूलों का 2 ग्राम पावडर प्रात: सायं छाछ के साथ ले लें . पेट के रोगों के लिए इसका प्रयोग अवश्य होता है .  नील कमल का फूल और धाय का फूल बराबर मात्रा में मिलाकर मिश्री के साथ कुछ समय लेने से गर्भस्थापन  होने में आसानी रहती है . रक्त प्रदर या श्वेत प्रदर के लिए पठानी लोद. धाय के फूल और चन्दन बराबर मात्रा में मिलाकर उसमें मिश्री मिलाकर लें .  अगर हाथ पैरों में जलन हो तो इसकी 2-3 ग्राम पत्तियों का रस ले लें . गुलाबजल में इसके फूलों को पीसकर लगायें .
                                अगर बुखार हो तो इसका फूल +2-3 पत्ते नीम +पित्तपापडा (धनिए से कुछ बारीक पत्तों वाला पौधा ) ; इन सबका काढ़ा बनाकर पीयें . या फिर कुछ दिन इसके ताज़े फूलों का शरबत पीयें . Ascites या जलोदर होने पर इसके फूल व् पत्तियों का काढ़ा लें , या केवल फूलों का शर्बत लें . इसके सूखे फूलों का पावडर भी लिया जा सकता है . इससे पेट के रोग ठीक होते हैं और दिमाग को ताकत मिलती है . यह पौष्टिक तो होता ही है . अगर कहीं जल जाएँ तो , इसके पत्ते पीसकर लेप कर लें . इससे दाह तो खत्म होगी ही , फफोले या निशान भी नहीं पड़ेंगे .
                     घाव होने पर इसकी टहनी की छाल चन्दन की तरह घिसकर लगा दें . इससे खून का बहना रुकेगा और जख्म जल्दी भरेगा . फोड़ा या नासूर होने पर भी , इसी पेस्ट को फोड़े पर लगा लें . फोड़ा जल्दी ठीक होगा . बच्चों के नये दांत निकलते समय इसके फूलों में सुहागे की खील शहद के साथ मिलाकर मसूढ़ों पर मालिश की जाए तो बच्चों को दर्द भी नहीं होगा और दस्त भी नहीं लगेंगे .
                            पहाड़ों की तलहटी में पाया जाने वाले इस पौधे का फूल वास्तव में अनेक बीमारियों के लिए रामबाण है .

जलजमनी (broom creeper) श्वेत प्रदर हो या रक्त प्रदर


जलजमनी को गारुडी और पातालगरुडी भी कहते हैं . इसके पत्ते चिकने और शीतल होते हैं . इन्हें पीसकर रात को पानी में डालें तो सवेरे पानी को जमा हुआ पाएंगे . श्वेत प्रदर हो या रक्त प्रदर हो तो इसकी 5-7 gram पत्तियों को पीसकर रस निकालें और एक कप पानी में मिश्री और काली मिर्च के साथ सुबह शाम लें . दो तीन दिन में ही असर दिखाई देगा . periods जल्दी आते हों , overbleeding हो पेशाब में जलन हो , गर्मीजन्य बीमारी हो , स्वप्नदोष हो या फिर धातुक्षीणता हो तो इस रस को 10-15 दिन तक भी लिया जा सकता है . इसके अतिरिक्त टहनियों समेत इसे सुखाकर , कूटकर 2-2 ग्राम पावडर मिश्री मिलाकर दूध के साथ लिया जा सकता है .
                             कमजोरी हो तो , शतावर , मूसली , अश्वगंधा और जलजमनी बराबर मिलाकर एक -एक चम्मच सवेरे शाम लें . नकसीर आती हो तो , दाह या जलन हो तो, इसकी पत्तियों के रस का शर्बत या सूखा पावडर एक एक ग्राम पानी के साथ लें . शीत प्रकृति के व्यक्तियों को इसका अधिक सेवन नहीं करना चाहिए . यह कहीं भी आसानी से उगाई जा सकती है .

Medicinal Plants tips सेहत टिप्स


चित्रक (leadwort)

चित्रक को चीता या चितावर भी कहते हैं . पूरे भारत में यह झाडी पाई जाती है . इसके तीन रंगों के फूल हो सकते हैं ; लाल , नीले और सफ़ेद . इससे चित्रकादी वटी बनाई जाती है. इसे अजीर्ण और वातज रोगों में प्रयोग में लाया जाता है . इसमें ख़ास तौर पर चित्रक की जड़ का प्रयोग होता है .  अगर नकसीर की समस्या हो तो बच्चे को आधा ग्राम और बड़े व्यक्ति को एक ग्राम जड़ का पावडर दें . तुरंत लाभ होगा . यह विषैला तो नहीं होता ; फिर भी अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए .
                        गले के रोगों में इसकी जड़ , मुलेटी और 2 -3 तुलसी के पत्ते का काढ़ा पीयें . कफ रोगों में पंचकोल (चित्रक , चव्य, पीपल ,पीपलामूल , सौंठ ) की 2-3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाटें . बुखार या ज़ुकाम हो तो पंचकोल का काढ़ा सवेरे शाम पीयें . अगर किसी को दूध हजम न होता हो तो भी सवेरे शाम पंचकोल का काढ़ा पीयें ; दूध हजम होना शुरू हो जाएगा .
                   पेट की बीमारी हो , पेट का अफारा हो या पेट फूलता हो तो , सवेरे खाली पेट इसकी जड़ का काढ़ा लें या पंचकोल का काढ़ा लें . मासिक धर्म अनियमित हों या देर से आते हों तो दशमूल 200 ग्राम और पंचकोल 100 ग्राम मिलाकर रख दें . इस मिश्रण का 7-8 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम पीयें . प्राणायाम करें . रज:प्रवर्तिनी वटी भी सवेरे शाम लें . इससे अवश्य लाभ होता है .

खस (grass)

खस की घास शीतल और गुणकारी होती है . खस -खस अफीम का पावडर होता है ; लेकिन खस की घास बिलकुल अलग है . इसकी जड़ में भीनी-भीनी खुशबू आती है . इसीलिए इसका इत्र बनाकर प्रयोग में लाया जाता है . बुखार हो तो इसकी जड़ का काढ़ा पीयें . उसमें गिलोय और तुलसी मिला लें तो और भी अच्छा रहेगा . Low temp. हो या रह रह कर बुखार आये , बुखार टूट न रहा हो तो यह काढ़ा बहुत लाभदायक रहता है .
                  पित्त acidity या घबराहट हो तो इसकी जड़ कूटकर काढ़ा बनाएं और मिश्री मिलाकर पीयें . चर्म रोग या eczema या allergy हो तो इसकी 3-4 ग्राम जड़ में 2-3 ग्राम नीम मिलाकर काढ़ा बनाएं और सवेरे शाम पीयें .
                              दिल संबंधी कोई परेशानी हो तो इसकी जड़ में मुनक्का मिलाकर काढ़ा बनाकर मसलकर छानकर पीयें .इससे hormones भी ठीक रहेंगे और heart rate भी ठीक रहेगा . Kidney की परेशानी में खस और गिलोय का काढ़ा सवेरे सवेरे  पीयें . B.P. high हो या angina की समस्या हो तो इसकी जड़ और अर्जुन की छाल  का काढ़ा पीयें .
             प्यास बहुत अधिक लगती हो तो इसकी जड़ कूटकर पानी में ड़ाल दें . बाद में छानकर पानी पी लें . यह शीतल अवश्य है ; परन्तु इसे लेने से arthritis बढ़ता नहीं है

भृंगराज

भृंगराज केश तेल का नाम आम तौर पर सुना जाता है . आखिर है क्या ये भृंगराज ? यह छोटा सा मौसमी पौधा है , जो की यत्र तत्र सर्वत्र देखने को मिल जाता है . इसके फूल छोटे छोटे सफ़ेद से होते हैं जो की बाद में काले काले नजर आते हैं . इसके पत्ते को अँगुलियों के बीच में दबाकर रगडो तो उनमें से काला गहरा हरा रंग आ जाता है . ये इस पौधे की पहचान में लाभदायक रहता है . इस पौधे को आम भाषा में भांगरा या भंगरैया भी कहा जाता है . संस्कृत भाषा में इसे केशराज या केशरंजन कहते हैं .
                                    बालों को घने , काले और सुंदर बनाना है तो आंवला ,शिकाकाई ,रीठा और भृंगराज के पावडर में पानी मिलाकर लोहे की कढ़ाई में गर्म करते हुए पेस्ट बनाएँ . इसे सिर पर लगाकर कुछ देर के लिए छोड़ दें . फिर सिर धो लें . इसके पत्तों का रस निकालकर बराबर का तेल लें और धीमी आंच पर रखें . जब केवल तेल रह जाए,  तो बन जाता है ; भृंगराज केश तेल ! अगर धीमी आंच पर रखने से पहले आंवले का रस मिला  लिया जाए तो और भी अच्छा तेल बनेगा . बालों में रूसी हो या फिर बाल झड़ते हों, तो इसके पत्तों का रस 15-20 ग्राम लें +थोडा सुहागे की खील+दही मिलाकर बालों की जड़ में लगाकर एक घंटे के लिए छोड़ दें . बाद में धो लें . नियमित रूप से ऐसा करने पर बाल सुंदर घने और मजबूत हो जाते हैं .
        अस्थमा की बीमारी में आंवला भृंगराज और मुलेटी का काढ़ा लें .   B .P. बढ़ा हुआ हो , चक्कर आते हों या नींद कम आती हो तो इसका दो चम्मच रस पानी मिलाकर सवेरे शाम लें .  बिच्छू काट ले तो इसके पत्तों के काटे हुए हिस्से पर मल लें . हाथी पाँव हो गया हो तो इसके पत्ते पीसकर सरसों का तेल मिलाकर लगायें  और इसके पंचांग का काढ़ा पीयें .पेट दर्द या पेट में सूजन हो तो इसके पत्ते पीसकर लेप लगाएं औत इसके पत्तों का रस पिलायें . ताज़ा न मिले तो सूखे पत्तों का पावडर भी दिया जा सकता है .
                    पीलिया होने पर इसके पत्तों का 10 ग्राम रस दिन में 2-3 बार लें . 3-4 दिन में ही आराम आ जाता है . चर्म रोग में भी इसका रस लाभ करता है . कैंसर में भी अन्य दवाओं के साथ इसे लेने से फायदा होता है . इसका 2-3 चम्मच रस और मिश्री मिलाकर शर्बत कुछ दिन लेने से गर्भपात के समस्या हल हो जाती है . Migraine या sinus की समस्या में इसकी साफ़ पत्तियों और कोमल टहनियों का रस 4-4 बूँद नाक में डालें .
                                        अगर पानी लग लग कर कहीं पर गलन हो गई है , घाव या पस हो गई है तो इसके पत्तों को पीसकर उसका रस लगाओ . तुरंत फर्क पड़ेगा . अगर शुगर की बीमारी के कारण घाव नहीं हर रहा तो ताज़ी पत्तियों का रस रुई में भिगोकर भी लगाया जा सकता है . गुम चोट हो सूजन या दर्द हो तो पत्तों को पीसकर गर्म करके रुई में लगाकर बाँध लें . आँखों में दुखन हो रोशनी कम हो तो साफ़ जगह पर उगे हुए पत्तों का रस एक दो बूँद आँख में डाला जा सकता है .  अगर जाड में दर्द है तो चार बूँद रस विपरीत कान में डालने से तुरंत लाभ होता है .
               कान में दर्द या पस है तो भी इसके पत्तों के रस की बूँदें डाली जा सकती हैं . Piles की समस्या हो या anus पर सूजन हो तो भृंगराज के पत्ते और डंठल मिलाकर 50 ग्राम लें +20 ग्राम काली मिर्च लें . अब इनको मिलाकर काले चने जितनी गोलियां बना लें . एक एक गोली सवेरे शाम लें .
              इस पौधे को गमले में भी लगाया जा सकता है .

भारंगी (Turk's Turban Moon)
आगे की तरफ दिखने वाली फूलों की डाल और साथ में दिखाई देने वाले पाँच छ: पत्ते भारंगी के हैं .
भारंगी का पौधा 12 से 16 फुट तक ऊंचा हो सकता है . इसके फूल कभी लम्बे और सफ़ेद दिखते हैं तो बाद में चौड़े और लाल नज़र आते हैं . कारण है कि फूलों की सफेद लम्बी और पतली  पंखुड़ियाँ झड़ जाती हैं और लाल रंग के sepals रह जाते हैं .  इसे संस्कृत में ब्राह्मण यष्टिका (डंडा ) भी कहा जाता है . कहते हैं कि इसका डंडा हाथ में लेकर चलने मात्र से asthma से छुटकारा मिलता है . भारंगी श्वास रोगों के लिए सबसे उपयुक्त इलाज है . इसे श्वसारी क्वाथ में भी डाला जाता है .
           राजयक्ष्मा (T. B.) होने पर इसके पंचांग का काढ़ा प्रात: सांय लें .  सिरदर्द होने पर इसकी जड़ पीसकर माथे पर 5-6 घंटे के लिए लगायें . उसके बाद धो दें . आँखों में परेशानी हो तो इसके पत्तों कि लुगदी की पट्टी आँखों पर बांधें . Goitre की समस्या हो तो इसके पत्तों का काढ़ा सवेरे शाम लें . Thyroid की परेशानी तो यह जड़ से खत्म कर देता है . इसके लिए 3 ग्राम भारंगी के जड़ का पावडर +3 ग्राम त्रिकटु(सौंठ+पिप्पल +काली मिर्च ) का पावडर प्रात: सांय गर्म पानी से लें .
                            मोटापा खत्म करने की मेदोहर वटी में भी भारंगी को डाला जाता है . Fibroid या cyst खत्म करनी हो तो , 3 ग्राम भारंगी के पंचांग में थोडा तेल मिलाकर लें . Food poisoning या पेट का संक्रमण खत्म करना हो तो इसके पंचांग का या फिर पत्तियों का काढ़ा लें . कब्ज़ हो  या हिचकी आती हों ,तब भी इसके पंचांग का काढ़ा लिया जा सकता है . यह चर्मदोष और रक्तदोष को भी दूर करता है .
                                 मांसपेशियों में दर्द हो तो इसका तेल लगाकर मालिश करें . तेल बनाना आसान है . इसके पत्तों का 800 ग्राम रस लेकर धीमी आंच पर रखें . जब 400 ग्राम रह जाए तो इसमें 200 ग्राम सरसों का तेल मिला लें . जब केवल तेल रह जाए तो छानकर शीशी में भर लें . हर्पीज़ की बीमारी में पत्ते पीसकर लगा दें और पत्तों का काढ़ा पीयें . फोड़े हो गए हों तो पत्ते पीसकर गर्म करके पुल्टिस बांधें .
                     इसके बीज का पावडर थोड़ी मात्रा में लेने से पेट दर्द व अन्य रोगों में लाभ होता है .
                           

सर्पगंधा
                                                                      सर्पगंधा के पौधे को सांप के काटने पर दवा की तरह प्रयोग किया जाता रहा है . शायद इसीलिये इसका नाम सर्पगंधा  है. यह जितना सुन्दर पौधा है , उतना गुणवान भी है .
सर्पगंधा का पौधा उच्च रक्तचाप को ठीक करता है . इसके लिए 10 gram सर्पगंधा +10 ग्राम ब्राह्मी +3 ग्राम श्वेत पर्पटी ; इन तीनो को मिलाकर 3 ग्राम  की  मात्रा में सवेरे सवेरे लें . नींद ठीक से न आये तो रात को  1-2 ग्राम सर्पगंधा की सूखी पत्तियां दूध या पानी के साथ लें . अगर नींद न आती हो तो सर्पगंधा और जटामासी बराबर मात्रा में मिलाकर 1-2 ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लें . जब ठीक नींद आने लगे तो यह लेना बंद कर दें .  उन्माद हो या hyper activeness हो तो इसकी जड़ का पावडर आधा ग्राम से एक ग्राम तक पानी के साथ दोनों समय लें .  लेकिन ठीक होते ही यह लेना बंद कर दें . ज्यादा लम्बे समय तक इसका सेवन नहीं करना चाहिए .
                                Epilepsy की बीमारी में सर्पगंधा +जटामासी +अश्वगंधा +गाजवान+सौंफ को बराबर मात्रा में मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें .

शरपुन्खा

                
शरपुन्खा को सर्पमुखा भी कहते हैं . इसके पत्ते को अगर दोनों तरफ से खींच कर तोडा जाए तो , टूटे हुए पत्ते का आकार हमेशा सर्पमुख जैसा होता है . इसे प्लीहा शत्रु भी कहते है क्योंकि  यह spleen को ठीक करती है . इसके पंचांग को मोटा मोटा कूटकर 5-10 ग्राम लें और 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें . इस काढ़े से जिगर या लीवर भी ठीक होता है . यह काढ़ा खून की कमी को भी दूर करता है ।
                                             Kidney भी इसी काढ़े से ठीक होती है ।यह मूत्रल होता है । शरपुन्खा के साथ पाषाण भेद और गोखरू मिलकर काढ़ा लेने से Kidney संबंधी सभी तरह की समस्याएँ ठीक हो जाती हैं ।
\ यह शरपुन्खा का काढ़ा बिल्कुल निरापद होता है । इससे किसी भी तरह का नुक्सान नहीं होता ।

                                               पेट दर्द या अफारा हो या फिर acidity की समस्या ;या फिर डकार आती हों । सब तरह की दिक्कत शरपुन्खा का काढ़ा ठीक कर देता है .
            Abnormal periods की समस्या भी इसके काढ़े को लेने से ठीक होती है ।
                         हृदयशूल हो या हृदय की शक्ति बढानी हो तो 5 gram शरपुन्खा +5 ग्राम अर्जुन +2-3 लौंग लेकर काढ़ा बनाएं और पीयें . कफ या बलगम ठीक करना हो तो 5 ग्राम शरपुन्खा +3-4 तुलसी के पत्ते +सौंठ का काढ़ा प्रात: सांय लें ।
                                         मलेरिया बुखार होने पर 3-4 ग्राम गिलोय और 4-5 ग्राम शरपुन्खा को 200 ग्राम पानी में पकाकर काढ़ा बनाकर सवेरे शाम पीयें ।
                       यह रक्तशोधक भी है . इसके पंचांग में नीम की पत्ते डालकर काढ़ा पीया जाये तो फोड़े-फुंसियाँ ठीक हो जाती हैं . अगर घाव हो गये हों तो इसके पत्ते और नीम के पत्ते मिलाकर पानी में उबालें और उस पानी से घाव धोएं . अगर  कहीं पर सूजन है तो इसके पत्तों को हल्का उबालकर पीसकर पुल्टिस बांधें .
                                           वैसे तो यह हिमालय क्षेत्र में पाई जाती है, लेकिन तराई के क्षेत्रों में भी इसे देखा गया है । . इसके जामुनी फूल भी होते हैं और सफ़ेद फूल भी होते हैं . ये बहुत सुंदर लगते हैं .             


गुलदाऊदी (chrysanthemum)


गुलदाऊदी या सेवती के फूल बहुत सुन्दर होते हैं . छोटे फूलों वाली गुलदाऊदी के औषधीय गुण अधिक होते हैं . इससे घर का वातावरण भी अच्छा होता है . घर में इसके दो तीन पत्तों पर देसी घी लगाकर कच्चे कोयले पर जलाएं तो नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है . हृदय रोग के लिए गर्म पानी में इसकी पत्तियां डालकर दो मिनट बाद निकाल  लें  . फिर उस पानी को पीयें . मासिक धर्म अनियमित हो या दर्द रहता हो तो इसके फूलों व पत्तियों का काढ़ा पीयें .
               पेट दर्द होने पर इसके फूलों का रस शहद या पानी के साथ लें . कहीं पर गाँठ हो गयी हो तो इसकी जड़ घिसकर लगायें . kidney stone हों तो इसके फूलों को सुखाकर उनकी चाय पीयें . Urine रुककर आता हो तो इसकी चार पांच छोटी छोटी पत्तियों में काली मिर्च मिलाकर ,  काढ़ा बनाकर पीयें .

अकरकरा (pellitory root)

अकरकरा का पौधा भारत में सब जगह मिलता है . दांत के दर्द में इसके फूल को तोडकर चबाएं . दांत की सफाई भी हो जायेगी . सुबह उठकर इसके फूल चबाकर दांत साफ करने से दांत स्वस्थ रहते हैं . इसका पंचांग सुखाकर उसमें फिटकरी और लौंग मिलाकर मंजन बना लें . इस मंजन से दांत साफ़ करने से मसूढ़े भी स्वस्थ रहते हैं . सिरदर्द में इसके फूल पीसकर माथे पर लेप करें . मिर्गी के दौरे पड़ते हों तो , इसके फूलों का पावडर और वचा का पावडर मिलाकर लें .
                  गले में तकलीफ हो तो इसके 4-5 फूल +आम के पत्ते +जामुन के पत्ते उबालकर उसके काढ़े से गरारे करें . दंतशूल हो तो इसके फूल दांतों के बीच दबाकर रखें . मुख से दुर्गन्ध आती हो तो , इसके फूल चबाकर लार बाहर निकालें , इसके पंचांग का काढ़ा पीयें और उससे गरारे करें . हिचकी आती हो तो इसका एक फूल चबाकर कुल्ला करें या इसकी आधा ग्राम जड़ को शहद में मिलाकर 2-3 बार चाटें . कमजोरी हो तो इसकी जड़ शतावर और मूसली मिलाकर दूध के साथ लें . श्वास की तकलीफ हो तो फूल का पावडर सूंघ लें , अवरोध खुल जाएगा .  जुकाम हो तो फूल का पावडर पीसकर नाक के चारों तरफ लगायें .
                                           खांसी हो तो इसके फूल , काली मिर्च और तुलसी की चाय पीयें . मासिक धर्म की समस्या हो या हारमोन का असंतुलन हो तो अकरकरा . गाजर , शिवलिंगी और पुत्रजीवक के बीज बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1 ग्राम सवेरे शाम लें . Arthritis की समस्या में हल्दी ,मेथी ,सौंठ ,अजवायन और अकरकरा बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच लें .
                       हृदय रोग में एक गिलास पानी में एक चम्मच अर्जुन की छाल और एक अकरकरा का फूल डालकर काढ़ा बनाएं और पीयें . इससे हृदय की कार्यक्षमता बढ़ेगी . इसके अतिरिक्त इसके 2-3 फूल ,1-2 ग्राम कुलंजन की जड़ , 4-5 ग्राम अर्जुन की छाल ; इन सबका काढ़ा 200 ग्राम पानी में बनाकर पीने से भी हृदय रोगों में लाभ होता है . इस पौधे से कोई हानि नहीं होती , वरन लाभ ही लाभ हैं . मौसम में  इसके फूल इकट्ठे कर के सुखा कर भी रख सकते हैं .

शतावर (Asparagus)

                                                                                                                              इसकी जड़ में शतश: कन्द होते हैं ; तभी तो यह शतावर है .
शतावर का पौधा शारीरिक दुर्बलता को दूर करता है . बहुत पौष्टिक होता है . अगर किसी को किसी भी तरह ताकत नहीं आ पाती तो  यह  पौधा बहुत मददगार है . इसकी जड़ के पावडर में मिश्री मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . पतली दुबली कन्याओं को तो यह अवश्य ही लेना चाहिए . इससे शरीर स्वस्थ और सुन्दर होता है .
               अनिंद्रा की बीमारी में इसकी जड़ का 10 ग्राम पावडर दूध में खीर की तरह पकाएं . फिर थोडा सा देसी घी डालकर रात को सोते समय ले लें . अच्छी नींद आयेगी . रतौंधी की बीमारी में इसकी कोमल पत्तियों और कोमल टहनियों की सब्जी खाएं . स्वर भंग हो गया है तो बला (खरैटी) के बीजों के पावडर के साथ मिलाकर शहद के साथ चाटें . खांसी हो गई है तो शतावर और पीपली का काढ़ा पीयें .
               Blood dysentery है या piles है तो ताज़े शतावर की जड़ और मिश्री पीसकर लें . रुक कर पेशाब आ रहा है या जलन है या kidney में  पथरी  है तो शतावर में गोखरू के बीज मिलाकर डेढ़ चम्मच पावडर का काढ़ा बनाकर पीयें . हाथ पैर में जलन होती हो तब भी शतावर और मिश्री मिलाकर लें .
                      अगर किसी माता को दूध नहीं आ पा रहा और नन्हा बच्चा भूखा रह जाता है तो माँ एक एक चम्मच शतावर सवेरे शाम दूध के साथ ले . 5-7 दिन में ही भरपूर दूध आने लगेगा . गायों को भी 50-60 ग्राम शतावर कुछ दिन हर रोज़ दी जाये तो उनके दूध की मात्रा बढ़ जाती है और थनैला नाम के रोग से भी मुक्ति मिलती है .
                 आयुर्वेद में शक्ति प्रदान करने वाली लगभग सभी दवाइयों में इसका प्रयोग होता है . विदेशों में इसकी मोटी टहनियों का सूप पीते हैं और टहनियाँ भी बड़े शौक से खाते है . वह प्रजाति देसी प्रजाति से कुछ अलग होती है . शतावर का पौधा बहुत सुंदर लगता  है . यह गमले में भी आराम से लगाया जा सकता है .

विधारा (elephant creeper)

विधारा को घाव बेल भी कहते हैं . यह बेल सर्दी में भी हरी भरी रहती है . वर्षा ऋतु में इसके फूल आते हैं . इसके अन्दर एक बड़ा ही अनोखा गुण है . यह मांस को जल्दी भर देता है या कहें कि जोड़ देता है . आदिवासी लोग विधारा के पत्तों में मांस के टुकड़ों को रख देते थे कि अगले दिन पकाएंगे . अगले दिन वे पाते थे कि मांस के टुकड़े जुड़ गए हैं . यह बड़ी  ही रहस्यभरी घटना है . यह सच है कि किसी भी प्रकार के घाव पर इसके ताज़े पत्तों को गर्म करके बांधें तो घाव बहुत जल्दी भर जाता है .
                 सबसे अधिक मदद ये gangrene में करता है . शुगर की बीमारी में कोई भी घाव आराम से नहीं भरता है . gangrene होने पर तो पैर गल जाते हैं और अंगुलियाँ भी गल जाती हैं . अगर pus  भी पड़ जाए तो भी चिंता न करें . इसकी पत्तियों को कूटकर उसके रस में रुई डुबोकर घावों पर अच्छी तरह लगायें . उसके बाद ताज़े विधारा के पत्ते गर्म करके घावों पर रखें और पत्ते बाँधें . हर 12 घंटे में पत्ते बदलते रहें . बहुत जल्द घाव ठीक हो जायेंगे . ये बहुत पुराने घाव भी भर देता है. Varicose veins की बीमारी भी इससे ठीक होती है .
                                 Bedsore हो गए हों तो रुई से इसका रस लगायें .  किसी भी तरह की ब्लीडिंग हो ; periods की, अल्सर की , आँतों के घाव हों , बाहर या अंदर के कोई भी घाव हों तो इसके 2-3 पत्तों का रस एक कप पानी में मिलाकर प्रात:काल पी लें . हर  तरह का रक्तस्राव रुक जाएगा . कहीं भी सूजन या दर्द हो तो इसका पत्ता बाँधें .
                   इसके बीज भूनकर उसका पावडर गर्म पानी या शहद के साथ लें तो बलगम और खांसी खत्म होती है . लक्ष्मी विलास रस में भी इसे डालते हैं . लक्ष्मी  विलास रस  की दो-दो गोली सवेरे शाम लेने से सर्दी दूर होती है . शरीर में दर्द हो या arthritis की समस्या हो तो इसकी 10 ग्राम जड़ का काढा पीयें .



मालती (rangoon creeper)

मालती या मधुमालती के फूल बहुत सुन्दर होते हैं . ऐसा लगता है कि फूलों के गुच्छे के गुच्छे बड़ी सी लता पर हर जगह बाँध दिए गए हों . इसकी लता जमीन से चौमंजिली इमारत तक भी चढ़ जाती है . इसके फूल और पत्तियां औषधि होते हैं . इसके फूलों से आयुर्वेद में वसंत कुसुमाकर रस नाम की दवाई बनाई जाती है .  इसकी 2-5 ग्राम की मात्रा लेने से कमजोरी दूर होती है और हारमोन ठीक हो जाते है . प्रमेह , प्रदर , पेट दर्द , सर्दी-जुकाम और मासिक धर्म आदि सभी समस्याओं का यह समाधान है .
                                                                   प्रमेह या प्रदर में इसके 3-4 ग्राम फूलों का रस मिश्री के साथ लें . शुगर की बीमारी में करेला , खीरा, टमाटर के साथ मालती के फूल डालकर जूस निकालें और सवेरे खाली पेट लें . या केवल इसकी 5-7 पत्तियों का रस ही ले लें . वह भी लाभ करेगा . कमजोरी में भी इसकी पत्तियों और फूलों का रस ले सकते हैं . पेट दर्द में इसके फूल और पत्तियों का रस लेने से पाचक रस बनने लगते हैं . यह बच्चे भी आराम से ले सकते हैं . सर्दी ज़ुकाम के लिए इसकी एक ग्राम फूल पत्ती और एक ग्राम तुलसी का काढ़ा बनाकर पीयें . यह किसी भी तरह का नुकसान नहीं करता . यह बहुत सौम्य प्रकृति का पौधा है .

दमबेल (tylophora indica)

दमबेल या दमबूटी , दमा की बीमारी का अचूक इलाज है . इसका एक पत्ता गोली की तरह बना कर खाएं और ऊपर से गर्म पानी पी लें . यह खाली पेट तीन दिन तक करने मात्र से दमा की बीमारी में आराम आता है . श्वास रोग हो या कफ हो ; यह सभी में लाभदायक है . बच्चे को कफ या खांसी की बीमारी हो तो इसका एक चौथाई पत्ता पीसकर शहद में मिलाकर चटायें . इसमें तुलसी का रस भी मिलाया जा सकता है । अगर ताज़ा पत्ते न मिलें तो 250 mg पत्तों का सूखा पावडर शहद में चटायें . बड़े व्यक्ति आधा ग्राम पावडर शहद के साथ ले सकते हैं ।
                                              सर्दी या जमा हुआ कफ हो तो तुलसी ,अदरक ,लौंग और दमबेल के 2 पत्ते डालकर काढ़ा बनाकर पीयें । Sinus की बीमारी में भी यह बहुत मददगार है . इसकी बेल गमले में भी लगा सकते हैं . दमा और एलर्जी की की समस्या को जड़ से खत्म करने वाली यह बेल सुंदर भी बहुत  लगती है ।

ज्योतिष्मति (celastrus)

ज्योतिष्मति का नाम शायद आपने सुना हो . इसे हिन्दी में मालकांगनी कहते हैं . पंसारी की दुकान पर इसके बीज आसानी से प्राप्त हो जाते हैं . इसकी लता काफी ऊपर तक चढ़ जाती है . दो तीन साल बाद लाल छोटे - छोटे फल आते हैं . इन्ही फलों से निकले हुए बीजों से सात्विक बुद्धि बढ़ती है , एकाग्रता बढ़ती है और memory बढ़ती है . स्वामी दयानन्द सरस्वती भी इसका एक बीज प्रतिदिन लेते थे .
                                      माइग्रेन , या सिरदर्द हो या भयंकर दौरे पड़ते हों ; तो इसके 2-3 बीज तक ले सकते हैं . सवेरे सवेरे खाली पेट बीज कहकर दूध या पानी पी लें . मिर्गी में इसके बीज लेने के साथ साथ इसके बीजों के तेल की सिर में और माथे पर मालिश करें . स्मृति बढानी है तो , इसके तेल की 2-4 बूँद दूध में डालकर पीयें . नींद कम हो , तनाव रहता हो तो , इसके तेल की सिर में मालिश करें . केश तेल में इसका भी तेल मिला लें .छोटे बच्चों के सिर और माथे पर इसके तेल की मालिश करनी चाहिए।
                     Arthritis ,सूजन या मांसपेशियों में दर्द हो तो इसका 4-4 बूँद तेल सवेरे लें ;या फिर बीज ले लें . शरीर में शक्ति और स्फूर्ति लानी है तो इसके 2 -3 बीज चबाकर सवेरे दूध या पानी के साथ कुछ दिन ले लें . यह कुछ गर्म होती है अत: एक साथ बहुत अधिक सेवन नहीं करना चाहिए.  60-70 वर्ष की अवस्था के पश्चात याददाश्त कुछ कम होनी प्रारम्भ हो जाती है । तब तो इसके एक या दो बीजों का सेवन अवश्य ही शुरू क्र देना चाहिए । ब्राह्मी , शंखपुष्पी आदि के साथ इसे भी मेधावटी में डाला जाता है . वैसे तो यह पहाड़ी क्षेत्र की लता है ; परन्तु इसे बीज डालकर कहीं भी उगा सकते हैं

बथुआ (chenopodium)

बथुआ संस्कृत भाषा में वास्तुक और क्षारपत्र के नाम से जाना जाता है . इसमें क्षार होता है , इसलिए यह पथरी के रोग के लिए बहुत अच्छी औषधि है . इसके लिए इसका 10-15 ग्राम रस सवेरे शाम लिया जा सकता है . यह  कृमिनाशक मूत्रशोधक और बुद्धिवर्धक है . किडनी की समस्या हो जोड़ों में दर्द या सूजन हो ; तो इसके बीजों का काढ़ा लिया जा सकता है . इसका साग भी लिया जा सकता है . सूजन है, तो इसके पत्तों का पुल्टिस गर्म करके बाँधा जा सकता है . यह वायुशामक होता है .
                  Uric acid बढ़ा हुआ हो, arthritis की समस्या हो , कहीं पर सूजन हो लीवर की समस्या हो , आँतों में infections या सूजन हो तो इसका साग बहुत लाभकारी है . पीलिया होने पर बथुआ +गिलोय का रस 25-30 ml तक ले सकते हैं .
                       गर्भवती महिलाओं को बथुआ नहीं खाना चाहिए . Periods रुके हुए हों और दर्द होता हो तो इसके 15-20 ग्राम बीजों का काढ़ा सौंठ मिलाकर दिन में दो तीन बार लें . Delivery के बाद infections न हों और uterus की गंदगी पूर्णतया निकल जाए ; इसके लिए 20-25 ग्राम बथुआ और 3-4 ग्राम अजवायन को ओटा कर पिलायें. या फिर बथुए के 10 ग्राम बीज +मेथी के बीज +गुड मिलाकर काढ़ा बनायें और 10-15 दिन तक पिलायें . एनीमिया होने पर इसके पत्तों के 25 ग्राम रस में पानी मिलाकर पिलायें .
                               अगर लीवर की समस्या है , या शरीर में गांठें हो गई हैं तो , पूरे पौधे को सुखाकर 10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पिलायें . White discharge के निदान के लिए इसके रस में पानी और मिश्री मिलाकर पीयें . यौनदुर्बलता हो तो 20 ग्राम बीजों का काढ़ा शहद के साथ लें . या फिर 5 ग्राम बीज सवेरे दूध के साथ लें . पेट के कीड़े नष्ट करने हों या रक्त शुद्ध करना हो तो इसके पत्तों के रस के साथ नीम के पत्तों का रस मिलाकर लें . शीतपित्त की परेशानी हो , तब भी इसका रस पीना लाभदायक रहता है . .


खेत का हर्बल कीटनाशक और खाद !
कृत्रिम खाद और कीटनाशक जहाँ खेतों को बंजर बना रहे हैं , वहीं कैंसर जैसी भयानक  बीमारियों का कारण भी बन रहें हैं . इन खाद और कीटनाशकों का प्रयोग करने में किसान की भी बहुत अधिक लागत बढ़ जाती है . लेकिन देसी तरीके से खाद और कीटनाशक प्रयोग करने से लागत तो कम होती ही है ; इसके अलावा स्वास्थ्य की भी सुरक्षा होती है .
 कीटनाशक -----------  5 किलो  नीम  या  भाँग  या आक या  धतूरे या अरंड  के पत्ते कूटकर  + एक  किलो  लहसुन + 3 किलो तीखी  हरी  मिर्च + 5 किलो  गोमूत्र (या भैंसमूत्र );  ये सभी मिलाकर कूटकर  दो बार उबाला दें . फिर ठंडा करके  120 लिटर पानी मिला दें . इसका खेत पर season में तीन चार बार  स्प्रे  कर दें . एक एकड़ खेत के लिए यह काफी है . और किसी कीटनाशक की जरूरत नहीं है .
खाद -------------------   5-7 किलो गोबर +5-7 लिटर पशुओं का मूत्र +2 किलो पुराना गुड+2 किलो चना या मसर या अरहर की दाल या मटर की दाल का पावडर  ; ये सब मिलाकर 48 घंटों के लिए रख दें . ये खाद तैयार हो जायेगी . इसे पानी में मिलाकर एक एकड़ में लगा सकते हैं .
नमी बनाये रखने के लिए ---  खेत में कम पानी लगाना पड़े , इसके लिए खेत की मिट्टी को  बेकार घास फूस या  अन्य खेत के कचरे से अच्छी तरह ढांप दें . इससे नमी भी बनी रहेगी और खेती के लिए लाभदायक कीट जैसे केंचुए ; भी मिट्टी में उत्पन्न होंगे . अधिक पानी खेत में नहीं खड़ा रहना चाहिए .
                                         एक गाय या एक भैंस से एक दिन में एक एकड़ की खाद या कीटनाशक बनाने का प्रावधान हो जाता है . इसलिए 30 एकड़ खेत के लिए एक ही पशु पर्याप्त है .

सेमल (silk cotton tree )

सेमल की रुई तकियों में भरी जाती है . इसकी रुई के तकिए से अच्छी नींद आने में मदद मिलती है . चेहरे पर फोड़े फुंसी हों तो इसकी छाल या काँटों को घिसकर लगा लो . इसके फूल के डोडों की सब्जी खाने से आंव (colitis) की बीमारी ठीक होती है .  अगर शरीर में कमजोरी है तो इसके डोडों का पावडर एक-एक चम्मच घी के साथ सवेरे शाम लें और साथ में दूध पीयें . अगर माताओं को दूध कम आता हो तो इसकी जड़ की छाल का पावडर लें . स्तन में शिथिलता हो तो  इसके काँटो पर बनने वाली गांठों को घिसकर लगायें . गर्मी की परेशानी हो , या प्रदर की शिकायत हो तो इसकी छाल को कूटकर शहद के साथ लें .
                                      जलने पर इसकी छाल को घिसकर लगाया जा सकता है . सेमल का गोंद रात को भिगोकर सवेरे मिश्री मिलाकर खाने से शरीर की गर्मी दूर होती है और ताकत आती है . अगर खांसी हो तो सेमल की जड़ का पावडर काली मिर्च और सौंठ मिलाकर लें .
                                सेमल के विशाल वृक्ष के नीचे जब ढेर से रुई से भरे हुए फल गिरते हैं ; तो उन्हें इकट्ठा कर मुलायम सी रुई निकलना बड़ा अच्छा लगता है .

नागफनी (prickly pear)
नागफनी को संस्कृत भाषा में वज्रकंटका कहा जाता है . इसका कारण शायद यह है कि इसके कांटे बहुत मजबूत होते हैं . पहले समय में इसी का काँटा तोडकर कर्णछेदन कर दिया जाता था .इसके  Antiseptic होने के कारण न तो कान पकता था और न ही उसमें पस पड़ती थी . कर्णछेदन से hydrocele की समस्या भी नहीं होती।
     .           इसमें विरेचन की भी क्षमता है . पेट साफ़ न होता हो तो इसके ताज़े दूध की 1-2 बूँद बताशे में डालकर खा लें ; ऊपर से पानी पी लें . इसका दूध आँख में नहीं गिरना चाहिए . यह अंधापन ला सकता है . लेकिन आँखों की लाली ठीक करनी हो तो इसके बड़े पत्ते के कांटे साफ करके उसको बीच में से फाड़ लें . गूदे वाले हिस्से को कपडे पर रखकर आँख पर बाँधने से आँख की लाली ठीक हो जाती है .
                         अगर सूजन है , जोड़ों का दर्द है , गुम चोट के कारण चल नहीं पाते हैं तो , पत्ते को बीच में काटकर गूदे वाले हिस्से पर हल्दी और सरसों का तेल लगाकर गर्म करकर बांधें . 4-6 घंटे में ही सूजन उतर जायेगी . Hydrocele की समस्या में इसी को लंगोटी में बांधें . कान में परेशानी हो तो इक्का पत्ता गर्म करके दो-दो बूँद रस डालें . इसके लाल और पीले रंग के फूल होते हैं . फूल के नीचे के फल को गर्म करके या उबालकर खाया जा सकता है . यह फल स्वादिष्ट होता है ।यह पित्तनाशक और ज्वरनाशक होता है . अगर दमा कीबीमारी ठीक करनी है तो इसके फल को टुकड़े कर के , सुखाकर ,उसका काढ़ा पीयें . इस काढ़े से साधारण खांसी भी ठीक होती है ।
                          ऐसा माना जाता है की अगर इसके पत्तों के 2 से 5 ग्राम तक रस का सेवन प्रतिदिन किया जाए तो कैंसर को रोका जा सकता है . लीवर , spleen बढ़ने पर , कम भूख लगने पर या ascites होने पर इसके 4-5 ग्राम रस में 10 ग्राम गोमूत्र , सौंठ और काली मिर्च मिलाएं . इसे नियमित रूप से लेते रहने से ये सभी बीमारियाँ ठीक होती हैं . श्वास या कफ के रोग हैं तो एक भाग इसका रस और तीन भाग अदरक का रस मिलाकर लें .
                              इसके पंचाग के टुकड़े सुखाकर , मिटटी की हंडिया में बंद करके फूंकें . जलने के बाद हंडिया में राख रह जाएगी । इसे नागफनी का क्षार  कहा जाता है । इसकी 1-2 ग्राम राख शहद के साथ चाटने से या गर्म पानी के साथ लेने से हृदय रोग व सांस फूलने की बीमारी ठीक होती है . घबराहट दूर होती है । इससे मूत्र रोगों में भी लाभ मिलता है . श्वास रोगों में भी फायदा होता है .
                सामान्य सूजन हो ,सूजन से दर्द हो , uric acid बढ़ा हुआ हो , या arthritis की बीमारी हो . इन सब के लिए नागफनी की 3-4 ग्राम जड़ + 1gm मेथी +1 gm अजवायन +1gm सौंठ लेकर इनका काढ़ा बना लें और पीयें .
                               नागफनी का पौधा पशुओं से खेतों की रक्षा ही नहीं करता बल्कि रोगों से हमारे शरीर की भी रक्षा करता है .

थूहर (milk bush)
थूहर का पौधा राजस्तान में खेतों की बाड़ की तरह लगाया जाता है , जिससे की पशु खेत में न आ सकें . यह कांटेदार होता है . इसे सभी जगह उगाया जा सकता है . इसकी डंडी तोड़ने पर सफ़ेद दूध सा निकलता है . यह आँख में नहीं पड़ना चाहिए ; नहीं तो अंधापन आ सकता है . लेकिन इसके दूध में रुई भिगोकर सुखाई जाए और उसकी बत्ती बनाकर सरसों के तेल में जलाई जाए . उससे जो काजल बनाया जाएगा , वह आँखों के लिए सर्वोत्तम है . यह काजल आँख के infections खत्म करता है और नेत्रज्योति बढ़ाता है .
                           इसके दूध में छोटी हरड भिगोकर सुखा दें . इस सूखी हुई हरड को घिसकर थोडा सा रात को लिया जाए तो कब्ज़ दूर होता है और पुराने से पुराना मल निकल जाता है . अगर कर्ण रोग है तो इसके पीले पड़े हुए पत्तों को गर्म करके कान में दो दो बूँद रस ड़ाल सकते हैं . फोड़े होने पर या सूजन होने पर इसके पत्ते गरम करके बांधे जा सकते हैं .
            अगर खाज खुजली या चमला की बीमारी है तो 1-2 चम्मच सरसों के तेल में इसके दूध की 4-5 बूँदें अच्छी तरह मिलाकर लगायें . अगर eczema या psoriasis की बीमारी है तो इसका तेल बनाकर लगाएँ. इसे किसी बोरे में कूटकर दो लिटर रस निकालें.  इसे आधा लिटर सरसों के तेल में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएँ . जब केवल तेल रह जाए तो इसे शीशी में भरकर रख लें और त्वचा पर लगाएँ .

सहदेवी


सहदेवी का छोटा सा पौधा हर जगह खरपतवार की तरह पाया जाता है . इसके नन्हें नन्हें जामुनी रंग के फूल होते हैं .इसका पौधा अधिक से अधिक एक मीटर तक ऊंचा हो सकता है . सहदेवी का पौधा नींद न आने वाले मरीजों के लिए सबसे अच्छा है . इसे सुखाकर तकिये के नीचे रखने से अच्छी नींद आती है . इसके नन्हे पौधे गमले में लगाकर सोने के कमरे में रख दें . बहुत अच्छी नींद आएगी .
                   यह बड़ी कोमल प्रकृति का होता है . बुखार होने पर यह बच्चों को भी दिया जा सकता है . इसका 1-3 ग्राम पंचांग और 3-7 काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बना कर सवेरे शाम लें . यह लीवर के लिए भी बहुत अच्छा है .
                अगर रक्तदोष है , खाज खुजली है , त्वचा की सुन्दरता चाहिए तो 2 ग्राम सहदेवी का पावडर खाली पेट लें . अगर आँतों में संक्रमण है , अल्सर है या फ़ूड poisoning हो गई है , तो 2 ग्राम सहदेवी और 2 ग्राम मुलेटी को मिलाकर लें . केवल मुलेटी भी पेट के अल्सर ठीक करती है . अगर मूत्र संबंधी कोई समस्या है तो एक ग्राम सहदेवी का काढ़ा लिया जा सकता है .


अपराजिता
अपराजिता की बेल बहुत सुन्दर होती है . इसके या तो नीले रंग के छोटे छोटे फूल होते हैं या फिर सफ़ेद रंग के . इसे अश्वखुरा भी कहते हैं . इसको रोग पराजित नहीं कर सकते . ऐसा माना जाता है की तंत्र मन्त्र में भी इसका प्रयोग होता है . अगर migraine या अधसीसी का दर्द रहता है तो इसकी जड़ की रस की 4-4 बूँदें नाक में ड़ाल लें. इसकी जड़ पीसकर माथे पर लेप भी करें .
                बार -बार बुखार आता हो तो इसके जड़ के टुकड़े लाल धागे में माला की तरह पहनें ; इसकी जड़ का काढ़ा पीयें . पीलिया होने पर भी ऐसा ही करें . खांसी होने पर इसकी जड़ के साथ 4-5 काली मिर्च लें और उसमें 2-3 पत्ते तुलसी के डालकर काढ़ा बनाकर पीयें . टांसिल बढ़ जाने पर इसके और अमरुद के पत्ते पानी में उबालकर , उसके गरारे करें .  इसकी पत्तियों को पीसकर गले पर लेप करें . बच्चों को खांसी हो तो इसके बीज का पावडर 250 mg शहद के साथ चटायें . Hydrocele की समस्या हो तो इसकी पत्तियां पीसकर बांधें . गर्भाशय बाहर आता हो तो इसके पत्ते +चांगेरी घास (खट्टा मीठा) +फिटकरी उबालकर , उस पानी से धोएं .
                 Overbleeding  हो या जल्दी जल्दी periods आते हों , तो इसकी 4-5 पत्तियों का रस लेते रहें . Delivery होने वाली हो तो इसकी जड़ धागे में बांधकर कमर में बाँध लें और बाद में तुरंत हटा दें . सूजाक या संक्रमण हो तो इसके पत्ते उबालकर धोएं . कम पेशाब आता हो तो इसके पत्ते पीसकर पानी में मिश्री के साथ लें . Elephant Leg हो गया हो तो इसकी जड़ और बीज का पावडर 1-1 चम्मच गर्म पानी से लें .अगर  घाव हो तो इसके पत्ते उबालकर उस पानी से धोएं . यह विरेचक भी होता है और कब्ज़ दूर करता है . इसे गमले में आराम से लगा सकते हैं .

गोखरू

गोखरू का पौधा ज़मीन पर घास के साथ साथ ही उगा हुआ दिख जाता है . इसके नन्हे नन्हे पीले फूल होते हैं . इसे गोक्षुर भी कहते हैं . शायद इसलिए , क्योंकि गाय चलती है तो उसके खुर इस पर पड़ते हैं . यह kidney के लिए सर्वोत्तम है . इसके पंचांग या केवल फल का काढ़ा लेने से किडनी ठीक हो जाती है . Uric acid बढ़ गया है और इसकी वजह से पैरों में सूजन है ,तो गोखरू +सौंठ+मेथी+अश्वगंधा बराबर मात्रा में लेकर 5 ग्राम मिश्रण का काढ़ा सवेरे शाम पीयें . खांसी है तो गोखरू +तुलसी +सौंठ का काढ़ा लें .
                         बार बार पेशाब आता है , या रुक रुक कर आता है या फिर prostrate glands की समस्या है तो गोखरू और काला तिल बराबर मात्रा में मिलाकर प्रात: सांय लें . शरीर में शक्ति की कमी है तो यह रसायन का भी काम करता है . इसे भृंगराज ,मुलेटी, और आंवले के साथ मिलाकर सवेरे शाम लें .
              इसका काढ़ा लेने से पथरी निकल जाती है और दोबारा नहीं होती . इसका काढ़ा सिरदर्द ठीक करता है और गर्भाशय के विकारों को भी ठीक करता है . अगर 10 ग्राम गोखरू के बीज और 2 ग्राम अजवायन मिलाकर काढ़ा पीया जाए तो delivery के बाद जहाँ गर्भाशय को शुद्ध करता है ; वहीँ पाचन को भी अच्छा करता है .

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