शनिवार, 18 अप्रैल 2015

सरवाईकल स्पोंडीलाईटीस के लिए कुछ आयुर्वेदिक नुस्खे


उठने,बैठने ,खाने,पीने और सोने के ढंग न होने के कारण जीवनशैली से संबंधित समस्याएं आम हो चली हैं। इनमें ही एक समस्या जो अक्सर लोगों को परेशान करती है नाम है 'सरवाईकल स्पोंडीलाईटीस 'आयुर्वेद में ग्रीवाशूल के अंतर्गत इसका उपचार प्रचलित है। इसमें कुछ अनुभूत योग काफी लाभदायक हैं जिनका चिकित्सक के मार्गदर्शन में प्रयोग किया जाना उचित है।
1. धतूरे के बीज 10 ग्राम + रेवंदचीनी 8 ग्राम + सोंठ 7 ग्राम + गर्म तवे पर फ़ुलाई हुई सफ़ेद फिटकरी 6 ग्राम + इसी तरह फ़ुलाया हुआ सुहागा 6 ग्राम + बबूल का गोंद 6 ग्राम इन सब औषधियों को बारीक पीस लें और धतूरे के पत्तों के रस से गीला करके उड़द के दाने के (125मिलीग्राम यानी एक रत्ती ) बराबर गोलियां बना लें। इस गोली को दिन में केवल एक बार गर्म पानी से दोपहर का भोजन करने के बाद ही लेना चाहिए। ध्यान रहे खाली पेट दवा हरगिज न लें।
2. वातगजांकुश रस की 1 गोली दिन में दो बार सुबह-शाम दशमूल काढ़े के साथ दो चम्मच लेना भी लाभकारी होता है।
3. महामाष तेल की तीन-तीन बूंदे दोनो कानों व नाक में सुबह-शाम डालना भी लाभकारी होता है
4. आभादि गुग्गुल की एक एक गोली महारास्नादि काढ़े के साथ दस से पंद्रह मिली की मात्रा में खाली पेट लेना भी लाभदायक होता है। ये तो कुछ अनुभूत योग हैं इसके अलावा पंचकर्म चिकित्सा भी सरवाईकल स्पोंडीलाईटीस के रोगियों में काफी कारगर होती है।

नोट :उपरोक्त नुस्खे महज पाठकों की जानकारी हेतु अनुभूत योग के रूप में प्रकाशित किए गए हैं, जिनका चिकित्सक के निर्देशन में प्रयोग किया जाना नितांत आवश्यक है।

कटहल ना खाने वाले भी मुरीद हो जाएंगे, जब जान लेंगे ये गुुण


कटहल एक ऐसी सब्जी है जो कई औषधीय गुणों से भरपूर है, लेकिन फिर भी बहुत कम लोग हैं, जो इसका सेवन नियमित रूप से करते हैं। कटहल का वानस्पतिक नाम आर्टोकार्पस हेटेरोफिल्लस है। इसके फलों में कई महत्वपूर्ण कार्बोहाइड्रेट के अलावा कई विटामिन भी पाए जाते है। सब्जी के तौर पर खाने के अलावा कटहल का अचार और पापड़ भी बनाया जाता है। आदिवासी अंचलों में कटहल का उपयोग अनेक रोगों के इलाज में किया जाता है। चलिए आज जानते हैं कुछ ऐसे ही चुनिंदा हर्बल नुस्खों के बारे में...
अल्सर में है बेहतरीन दवा
कटहल की पत्तियों की राख अल्सर के इलाज के लिए बहुत उपयोगी होती है। हरी ताजा पत्तियों को साफ धोकर सुखा लें। सूखने के बाद पत्तियों का चूर्ण तैयार करें। पेट के अल्सर से ग्रस्त व्यक्ति को इस चूर्ण को खिलाएं। अल्सर में बहुत जल्दी आराम मिलेगा।
मुंह के छालों में असरदार
जिन लोगों को मुंह में बार-बार छाले होने की शिकायत हो, उन्हें कटहल की कच्ची पत्तियों को चबाकर थूकना चाहिए। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार, यह छालों को ठीक कर देता है।

खाना जल्दी पचा देता है
पके हुए कटहल के गूदे को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबाल लें। इस मिश्रण को ठंडा कर एक गिलास पीने से जबरदस्त स्फूर्ति आती है। यही मिश्रण यदि अपच के शिकार रोगी को दिया जाए तो उसे फायदा मिलता है।
डायबिटीज में लाभदायक
डांग- गुजरात के आदिवासी कटहल की पत्तियों के रस का सेवन करने की सलाह डायबिटीज के रोगियों को देते हैं। यही रस हाई ब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए भी उत्तम है।

सौंफ खाने के इन खास तरीकों से दूर हो जाती हैं ये हेल्थ प्रॉब्लम्स


भारतीय रसोई घर में सौंफ का महत्वपूर्ण स्थान है। सौंफ का उपयोग न सिर्फ कुछ खास व्यंजनों में किया जाता है, बल्कि भोजन के बाद भी सौंफ बहुत शौक से खाई जाती है। खाने के बाद थोड़ी सी सौंफ खाने से कैल्शियम, सोडियम, फास्फोरस, आयरन और पोटेशियम जैसे तत्व हमारे शरीर को प्राप्त होते हैं। पेट से संबंधित कुछ बीमारियों में भी सौंफ के कुछ घरेलू नुस्खे बहुत कारगर साबित होते हैं। आज हम आपको सौंफ के कुछ खास टिप्स बता रहे हैं-
1. प्रतिदिन 5-6 ग्राम सौंफ खाना लिवर और आंखों के लिए फायदेमंद होता है। अपच संबंधी विकारों में भी सौंफ का सेवन बेहद उपयोगी है। सौंफ को तवे पर थोड़ा-सा सेंक कर खाने से पेट के रोगों में आराम मिलता है।
2. गुड़ के साथ सौंफ खाने से महिलाओं का मासिक धर्म नियमित होता है। यदि गले में खराश हो जाए तो सौंफ चबाना चाहिए। सौंफ चबाने से बैठा हुआ गला साफ हो जाता है।
3. रोजाना सौंफ खाने से खून साफ होता है व रक्त से संबंधित बीमारियों में लाभ होता है। खून साफ होने से त्वचा में भी चमक आ जाती है।
4. सौंफ के अर्क में 10 ग्राम शहद मिला कर इसका सेवन करें। खांसी में तत्काल आराम मिलेगा।
5. बेल का गूदा 10 ग्राम और 5 ग्राम सौंफ सुबह-शाम चबाकर खाने से अजीर्ण मिटता है और अतिसार में लाभ होता है।
6. सौंफ और मिश्री समान भाग में लेकर पीस लें। इसकी एक चम्मच मात्रा सुबह-शाम पानी के साथ दो माह तक लें। इससे आंखों की कमजोरी दूर होती है तथा नेत्र ज्योति में वृद्धि होती है।


सोमवार, 13 अप्रैल 2015

घमौरियां या प्रिकली हीट Gmurian or Prikli Heat



गर्मी के मौसम में पसीना आना स्वाभाविक है | इस पसीने को यदि साफ़ न किया जाए तो यह शरीर में ही सूख जाता है और इसकी वजह से शरीर में छोटे -छोटे दाने निकल आते हैं जिन्हें हम घमौरियां या प्रिकली हीट कहते हैं | घमौरी एक प्रकार का चर्म रोग है जो गर्मियों तथा बरसात में त्वचा पर हो जाता है | इसमें त्वचा पर छोटे -छोटे दाने निकल आते हैं ,जिनमें हर समय खुजली होती रहती है | घमौरियों से निजात पाने के लिए हम आपको कुछ सरल उपाय बताते हैं -

१- मेंहदी के पत्तों को पीसकर नहाने के पानी में मिला लें | इस पानी से नहाने से घमौरियां ठीक हो जाती हैं |

२- देसी घी की पूरे शरीर पर मालिश करने से घमौरियां मिटती हैं|

३- शरीर पर मुल्तानी मिटटी का लेप करने से घमौरियां मिटती हैं और इनसे होने वाली जलन और खुजली में भी राहत मिलती है |

४- नारियल के तेल में कपूर मिला लें | इस तेल से रोज़ पूरे शरीर की मालिश करने से घमौरियां दूर हो जाती हैं |

५- नीम की पत्तियां पानी में उबाल लें | इस पानी से स्नान करने से घमौरियां मिटती हैं |

६- तुलसी की लकड़ी पीस लें | इसे पानी में मिलकर शरीर पर मलने से घमौरियां समाप्त हो जाती हैं |

सेहत के नुस्खे Health tips3

गर्भिणी स्त्री (गर्भावस्था) में बवासीर हेतु

गर्भ की अवस्था में स्त्री को शौच (पाखाना) साफ होता रहे यह ध्यान रखना चाहिए। इस हेतु मुनक्का (बड़ी दाख) बीजेें निकालकर २५० ग्राम जल में धीमी अग्नि से उबालो चौथाई शेष रहने पर उतार कर मसलकर छानकर मिला दो। इससे दस्त होता है। ताकतवर भी है। इससे गर्भवती को परेशानी नहीं होती है। अथवा १ चम्मच त्रिफलाचूर्ण गर्म जल से पिलाओ।
बवासीर नाशक मन्त्र

ॐ भिभिति द्वि: ऊँ ठ: निवासिनि गरलं विषं संभव मनार्श नाशय नाशय फट स्वाहा। विधि— इस मंंत्र से ७ बार कुशों के द्वारा जल पढ़कर पीने से ७ दिन में बवासीर नष्ट होती है इसके अतिरिक्त निम्न दवाएँ भी ले सकते हैं। मरचादि चूर्ण, पपर्टीरस व्यौवाय चूर्ण। ये सभी दवाएँ वैद्यनाथ डाबर आदि कम्पनी की ले सकते हैं। अन्तर फिसर बवासीर जब पखाना (लेटरीन) कड़ी उतरने के कारण गुदा बवासीर में मस्से अवश्य होते हैं एवं कड़ी टट्टी जाने से छिल जाती उससे खून गिरने लगता है तो है वह खून उससे भी गिरता है जब तक खून नहीं गिरता है वह बवासीर नहीं है। क्योंकि इसमें मस्से नहीं होते। वादी बवासीर खून गिरने पर खूनी बवासीर कहलाती है। अत:(लग्जेटिव) रेचक दवा लेना एवं मल्हम चिकित्सा पीछे अनुसार करें। लगाना चाहिए।
तीक्ष्ण अग्नि की चिकित्सा

दाख, हरड़, कुटकी, विदारीकन्द, चन्दन, बाँसा (अहूसा) नागरमोथा, परबल, चिरायता, पीपल, खरेंटी, गोरख, मुन्डी, अतीस, बाल छड़, लोंग, पदमाख, भाँगरा, धनिया, खजूरिया, सभी बराबर—बराबर लेकर १/२ चम्मच चूर्ण १ चम्मच बूरा मिला गरम दूध में १ चम्मच घीं मिलाकर पिलाओ। इसे तीक्षण अग्नि समान होती है। दुबला शरीर पुष्ट होता है, शेध (सूजन) दाह अय पाण्डू हलीमक और कामला रोग ठीक होता है।
भस्मक रोग

१. विदारी कन्द का रस, घी और दूध मिलाकर पीने से भस्मक रोग दूर होता है।

२. ओधा (चिरचिरे) के बीज और दूध की खीर खाने से घोर भस्मक रोग दूर होता है। नोट—भस्मक रोग में व्यक्ति की खुराक बहुत होती है। क्षुधा तृप्त नहीं होती है किन्तु बहुत खाने के बाद भोजन उदर में भस्म हो जाता है। १५—१५ दिन महीनों तक टट्टी (पखाना) नहीं जाता है। और खाता बराबर रहता है।

३. बेर की गुठली के अन्दर के बीजों का चूर्ण १/२ चम्मच पानी से लेने पर भस्मक रोग ठीक हो जाता है। ज्वालामुखी चूर्ण/ (क्षुद्यावर्धक)

१. भूख बढ़ाने हेतु— हींग, अमलवेल, त्रिकुटा (सौंट, पीपर, पीपलमूर) चितावर की जड़, जवारवार, पोहर—कयूर, त्रिफला, (हर्र, बहेड़ा आँवला) और अनार, इन सभी को समान भाग लेकर महीन पीसकर छान कर रखें चूर्ण के वजन के बराबर पुराना गुड़ मिला दो १० ग्राम चूर्ण सुबह—शाम पानी से सेवन करें भूख बढ़ती है। हाजमा होता है। नोट—हीं घी में भूनकर डालें।

२. हिग्वाष्टक चूर्ण— सौंठ, मिर्च, पीपल, सेंधानमक, सफेद जीरा, कालाजीरा, अजमोद, ये सातों बराबर—बराबर चूर्ण पीस छानकर इनके आँठवा भाग हींग घी में भूनकर मिला दो। विधि— १ चम्मच चूर्ण ५ (ग्रास) रोटी महीन मीड़कर उसमें १ चम्मच घी डालकर उसी में चूर्ण मिला दें। फिर उसे भोजन में सबसे पहले ५ कौर खाएँ बाद मेें भोजन करते रहें। सभी प्रकार उदर शूल, एवं मदाग्नि दूर कर देता है।

३. दवानल चूर्ण— सेंधानमक १० ग्राम पीपलामूर २० ग्राम पीपर ३० ग्राम चव्च ५० ग्राम चीतू की छाल (चितावर) ५० ग्राम सौंठ ६० ग्राम हरड़ ६० ग्राम इन सबको कूट पीस कर छान लें।

४. हर्र, पीपल, सौंठ, ५०—० ग्राम प्रत्येक लेकर चूर्ण छान लो इसे (त्रिसम) कहते हैं। १/२—१/२ चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करें भूख बढ़ती है। प्यास शान्त होती है। छाछ (मट्ठे) में मन्दाग्नि नष्ट करने की पूरी सामथ्र्य है इसे ऋतु अनुसार इस प्रकार सेवन करना चाहिए। सम्पूर्ण रोग नष्ट होते हैं। मट्ठे में सौंठ, कालीमिर्च, पीपल का चूर्ण मट्ठे की मात्रानुसार १ लीटर मट्ठे १० ग्राम चूर्ण एवं सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से सर्वरोग दूर होते हैं।

(१) पकी मीठी इमली के पने में सेंधानमक कालीमिर्च, और भुनी हींग थोड़ी डालकर पीने से मन्दाग्नि ठीक होती है। भूख बढ़ती है।

(२) चने का खार कुछ दिन सेवन करने से बिगड़ी पाचन शक्ति सुधर जाती है।
अजीर्ण (अपच) का उपचार

१. छोटी हरड़ सौंठ, नागकेशर, कालानमक, प्रत्येक, ५०—५० ग्राम लेकर चूर्ण कर लें। फिर ५ ग्राम में घी भूनी हींग मिला दें। १/२—१/२ चम्मच चूर्ण सुबह—दोहपर—शाम तीन बार पानी से सेवन करें हाजमा ठीक होगा।

२. भुना गटान का गटा, १० ग्राम भुनी पीपल १० ग्राम, अजवान १० ग्राम, सौंठ भुनी २० ग्राम, सेंधानमक २० ग्राम, सभी का चूर्ण बना लें। १—१ चम्मच चूर्ण सुबह—शाम पानी से सेवन से तीव्र भूख बढ़ती है एवं पाचन ठीक होता है।

३. भुनी हर्र का १—१ चम्मच चूर्ण गरम जल से लेने से मन्दाग्नि ठीक होती है।

४. कच्ची हर्र का चूर्ण गरम जल से लेने से दस्त साफ होता है।

५. पाचक पिप्पली— ्नाीबू के रस में सेंधानमक मिलाकर उसमें पीपले को डाल दो ४ दिन भीगी रहने दो बाद में निकालकर छाया में सुखा लो उसमें से उम्रानुसार १/२ या १ पीपल खाने से अजीर्ण नष्ट हो, स्वाद अच्छा हो, भूख बढ़ती है।

६. नीबू के रस में जायफल घिसकर पीने से दस्त साफ हो जाता है।

७. तारपीन के तेल में कपूर मिलाकर पेट पर मलने से वायु जनित पीड़ा ठीक होती है।
कृमि रोग (पेट के कीड़े नाशक) उपचार

१. ५ ग्राम खुरासानी अजवान पीसकर १० ग्राम गुड़ मिलाकर पीने से कोठें के सारे कृमि नष्ट हो जाते हैं।

२. अजवान और गुड़ खाने से कृमि नष्ट होते हैं।

३. ढाक (पलास) के बीजों का स्वरस पीने से कृमि नष्ट होते हैं।

४. ढाक के बीज ५ ग्राम पीस छाछ में पीने से कृमि नष्ट हों।

५. वायविंडग का चूर्ण गुड़ के साथ खाने से कीड़े नष्ट हो। सभी प्रयोगक अजमूदे हैं। अवश्य लाभ करते हैं।
गंजापन दूर हो / बाल जल्दी जमें

१. कड़वे परमल के पत्तों का रस लगाने से बाल जल्दी आ जाते हैं। अर्थात् गंजापन ठीक होता परीक्षित प्रयोग।

२. रीठे के पत्तों से सिर घोकर करंज का तेल नींबू का रस और कड़वे परवल के बीजों का तेल मिलाकर सिर पर लगाने से गंजापन ठीक होगा।
नींद (हेडिंग) आने की दवा

१. काक जंघा की जड़ सिर पर धारण करने से नींद आयेगी।

२. मकोय की जड़ को सूत में बाँधकर निरन्तर मस्तक पर धारण करने से नींद आएगी।

३. सर्पगन्धा जड़ी का चूर्ण २ १/२ ग्राम पानी के साथ सेवन से नींद आती है।

४. सर्पगन्धा घन बटी (डाबर/वैद्यनाथ वंâ) की २ गोली शाम को पानीसे लेने से नींद आएगी। हार्ट/बल्डप्रेसर को को भी आराम होता है।

५. आँग को बकरी के दूध में पीसकर पावों पर लेप करों नींद आएगी।

६. थूहर की जड़ को गुड के साथ खाने से अवश्य नींद आती है लगभग ५ ग्राम जड़ १० ग्राम गुड़ की १ खुराक पानी के साथ लेना।

७. अरण्डी का तेल और अलसी का तेल बराबर—बराबर लेकर काँसे की थाली में काँसे की कटोरी से घौंटकर आँखों में आँजो (लगाओ)। तत्काल नींद आवेगी आजमूदा प्रयोग है।

८. काली मिर्च और कस्तूरी बराबर—बराबर लेकर पानी में घिस कर नेत्रों में आँजने से ३ दिन से गई निद्रा भी आ जाती है। (कस्तूरी असली हो)
कान के रोग

१. कान का दर्द—अजवान के तेल की १० बूँद में शुद्ध सरसों का ३० बूँद तेल मिलाएँ, फिर उसे धीमी आग पर गुनगुना करके (ज्यादा गरम न हो) दर्द वाले कान में ४—४ बूँद तेल डालकर रूई का फाहा लगा दें। इसके पश्चात् बालू और अजवान मिलाकर पोटली बना लें। उसे हल्का गरम कर सिकाई करें (कान में आजू बाजू) तुरन्त आराम होगा।

२. बहरापन— नियमित रूप से कुछ दिनों तक दालचीनी का तेल टपकाते रहने (डालने) से बहरापन ठीक होगा।

३. सारिबादि वटी— (वैद्यनाथ कं.) २—२ गोली छोटे को १—१ गोली पानी के साथ सुबह शाम दें।

४. कान में डालने हेतु— ‘इयर सेफ’ ड्राफ्स।

५.गेंदा के पत्ते का रस २—२ बूँद में डालने दर्द ठीक होता है।

६ कान में आवाज होने पर — पीपल, हींग, बच और लहसुन समभाग लेकर सरसों के तेल में धीमी अग्नि पर पकाकर हल्का गरम गरम कान में डालने पर कान शब्द होना एवं तकलीफ मिल जाती है।

७. विल्वादि तेल— डाबर/ २ से ४ बूँद डालने से कान के रोग ठीक होते हैं। बहरापन ठीक होता है।

८. अदरख के रस की २—४ बूँद डालने से कान का दर्द ठीक होगा।
नेत्र रोग

१. आँखों की सुरक्षा बहुत ही आवश्यक हैं। नेत्र दृष्टि बिना सब संसार सूना प्रतीत होता है अत: नेत्रों की सुरक्षा हेतु— प्रात:काल ठन्डे जलसे आँखों को ८—१० बार धोना चाहिए।

२. त्रिफला (हर्र बहेड़ा, आँवला) के चूर्ण को १ चम्मच १० ग्राम लेकर ५०० ग्राम जल में मिट्टी के साफ बर्तन में जो पानी भरते भरते पुराना हो गया हो तो उसमें त्रिफला रात्रि में भिगों दें प्रात:काल उसके छने पानी से आँखे धोने से नेत्र के समस्त रोग दूर हो जाते हैं।

नोट—आईवास नाम से प्लास्टिक का छोटा गिलास भी आता है उससे आँख धोने में सुविधा रहती है। ३. अन्धा भी देखें — अर्थात् नेत्र शीध्र बढ़े चस्मा उतर जाएँ इस हेतु।

२० ग्राम त्रिफला चूर्ण को २५० ग्राम जल में धीरे—धीरे पकाएँ चौथाई शेष रहने पर उतार कर छान लें फिर उसमें २—१/२ ग्राम जल लौंह भस्म १०० पुटी की ३० पुड़िया बनाकर रख ले उसमें से १ पुडिया दवाई २ चम्मच देशी घी २ चम्मच चीनी (बूरा) मिलाकर प्रतिदिन पीने से नेत्र ज्योति शीध्र बढ़ जाती है। कम से कम २—३ माह करते रहे। अन्धा भी देखने लगें।

नोट— मिर्च, खटाई, कम खाएँ। ४. आईफ्लू— पर पाईरिमोन डालें।

बेटनीसोल आई ड्राप्प डालने से ठीक होती है। आँखों पर काला चस्मा लगाए रखें। ५. फुली— आँख फुली होने पर लाल चन्दन स्वच्छ पत्थर पर पानी (जल) से घिसकर लगाने से फुली कटा जाती है।

६. मोतियाबिन्द— आँखों में मोतियाबिन्द होने न पाए इसके लिए पूर्व से ही इलाज करें।

१. होम्योपेथी में Cineraria-Maritima Eye dropsप्रतिदिन पूर्व से डालते रहें (मोतियाबिन्द नहीं आने पाऐगी।)

२.‘‘आईटोन ड्राप्स सामान्य आँख के रोगी को डालते रहने से आँखों के रोग दूर रहते हैं।

३. मोतियाबिन्द आने पर छट जाएँ — ७—८ हल्दी की छोटी—छोटी गाँठें ७ दिन तक अमृत धारा में भिगोकर रखें। बाद में निकाल कर पत्थर पर घिसकर जल में लगाएँ।

४. आँख में पानी झरना— निर्मली के बीच को पानी या गुलाब जल में घिसकर आँखों में आजने से पानी का गिरना बन्द हो जाता है।

५. रतौंधी— सौंठ, कालीमिर्च, पीपल—समभाग शहद में पीसकर अंजन करनेसे रतौधी दूर हो जाती है।
नाक के रोग

अधिक दिनों तक (सर्दी जुकाम ) रहने से नाक में तरह—तरह के रोग हो जाते हैं। इस हेतु उपाय— १. यदि नाक में सर्दी के कारण फुन्सियाँ हो गई हों, तथा नाक में सूजन आ गई हो तो ‘षड्बिन्दु’ तेल (डाबर/वैद्यनाथ के) का लेकर २ से ४ बूँद सीधे लेटकर नाक में ३—४ बार डालते रहें एवं ऊपर से थोड़ी रूई लगा दें कम से कम ३० मिनट लेटे रहें। इस प्रकार करने से नाक की फुन्सियाँ ठीक हो जाती है। नाक से बदबू आना रूक जाती एवं नाक में हड्डी बढ़ने की सम्भावना रूक जाती है।

२. यदि नाक में बड़ी—बड़ी पुफुन्सी बिना सर्दी के अचानक हो जाए तो इतवार (रविवार) बुधवार की सुबह—सुबह से कोई पूफूल मँगाकर सूंघ कर रास्ते मेंफैक दो। फुन्सियाँ ठीक हो जाएगी यह तंत्र है आजमूदा है।

३. नाक से खून गिरना (नकसीर)— रात्रि में २० गा्रम मुल्तानी मिट्ठी २५० ग्राम पानी में भिगो दें खूब हिलाएँ २—३ बार हिला दें सुबह उसका ऊपर का जल पीने से नाम का खून बंद हो जाएगा। आजमूदा प्रयोग है।

४. अनार के फूलों का रस अथवा दूब के स्वरस की नस देने से नाम का खून गिरना बन्द हो जाता है।
हड्डी मजबूत बङ्का समान हो

बबूर के बीजो का चूर्ण तीन दिन तक ५—५ ग्राम सीरा से मिलाकर खाएँ तो हड्डी बङ्का की हो जाती है।
हड्डी जुड़े

लहसन, लाख, खांड़ शक्कर का सीरा का कल्फ में घी डालकर पिलाएँ जो छिन्न—भिन्न हड्डी बहुत शीघ्र जुड जाती है। खाएँ तो हड्डी वङ्का के हो जाती है। श्वेत कुष्ठ रोग (सपेद दाग) १. यह रोग पूर्व पाप एवं वर्तमान में किए गए पापों का फल है इसमें शरीर में मुख और हाथ पैर आदि स्थानों पर चमड़ीे का मूल भूत रंग बदल कर सफेद दाग हो जाते हैं। जो भद्दे लगते हैं। समाज में उसे घृणित मानते हैं।

२. दूसरा यह रोग अधिक समय तक ए.सी. में रहने वालों को भी हो जाता है।

३. अधिक शीत/उष्म पदार्थों के सेवन से प्रिज का अधिक ठन्डा पानी पीना विपरीत आहार लेने से भी श्वेत कुष्ठ हो सकता है।
सपेद उपचार (चिकित्सा)

१. पीली चमेली, गज पीपली, गज पीपली, कसीस, मैनसिल, गोरोचन, सैनाव सभी सम भाग पीसकर छान ले पश् चात् गोमूत्र में पीसकर लेप करने से श्वेत कुष्ठ ठीक होता है।

२. काक ढोढ़ी, फूट, पीपरी, सभी समभाग पीसकर बकरी के मूत्र में पीसकर लेप करने से श्वेत कुष्ठ ठीक होता है।

३. बकुची, अमलवेत, लाख कठगुलरी, पीपरी, रसौत, लौह चून, काले तिल सभी समभाग पीसकर, गौमूत्र में पीसकर लेप करने से श्वेत कुष्ठ ठीक होता है।

४. घुँघसी (श्वेत घुची की जड़) भी पानी में पीसकर लगाएँ। इससे ठीक होता है।

५. मैनसिल, चिरचिरा की राख पानी में पीस कर लगाएँ।

६ आँवलासारक गन्धक,कसीस, हरताल, त्रिफला को पीसकर गौमूत्र में पीसकर लेप से कुष्ठ रोग दूर होता है।

७. ९० ग्राम समुद्र फैन, मुन्डी २०० ग्राम पीस छान कर ५ से ६ ग्राम खुराक घी के साथ खाने से एवं चीत (चितावर) और कनेर की जड़ नीबू के साथ पीस श्वेत दाग पर लगाने से श्वेत दाग ठीक हो जाते हैं।
सपेâद खाज खुजली—उपचार

अधिकांश खून के खराब होने से चर्म रोग होते हैं अत: प्रथम रेचक औषधि से कुछ दस्त लेने के बाद खून शुद्ध की औषधि एवं लगाने की औषधि प्रयोग करना चाहिए। खाने की औषधि— राज बटी (गन्धक बटी) २—२ गोली बड़ी उम्र के १—१ गोली १० बर्ष से २० वर्ष तक पानी के साथ सेवन करेें इससे रक्त शुद्ध होता है। (डाबर/ वैद्यनाथ कम्पनी ) में आती है। लगाने की औषधि— १. हरड़ बावची, नीम के फल (निवोरी आँवला, एवं कनेर के पत्ते आँक के पत्तों का रस सभी पीसकर कड़वे तेल में खरल से घौंटे तब वह मरहम शीशी में रख लगाने से खाज शीघ्र ठीक होती है।

२. िंरगोझिन मलहम, वीटेक्स मलहम, स्किन मैनट, वेटनीवेट सी, आदि मलहम भी इसी खाज खुजली दाद में लाभकारी है।

३. खैर, सुहाग, अफीम, हल्दी पवाँड़, गेंदा की पत्ती, सभी बराबर नींबू के रस में घोंटे फिर शीशी में रखें एवं खाज में लगाएँ इसमे ९०० ग्राम सरसों का तेल डाल लें।

४. आँक (मदार, अकौआ) के दूध में में कालीमिर्च पीसकर छाजन पर मलने से (लगाने से) छाजन ठीक होती है।

५. पकी खाज (बड़ी फुन्सी जिसमें मवाद आती है।) उपचार गन्धक, मस्टर, नीलाथोथा, पमाड़ के बीज, अमर बेल ५०—५० ग्राम दवाएँ इन सबको पीसकर थोड़े से सरसों के तेल में पहले चमकदार कड़ाही में (घोटे) पश् चात् आवश्यकतानुसार तेल एवं कपूर १० ग्राम पीस मिलाकर मल्हम रख लें। एवं दो बार लगाएँ।
सिर दर्द

१. लवंग २७ बार णमोकार मंत्र पढ़कर २—२ लोंग खाने से सिर दर्द दूर होता है।

२. धृत कुमारी तेल को सिर में धीरे—धीरे मलें इससे आराम हो जाता है। किसी भी प्रकार का दर्द हो तो— पीपरामूर १०० ग्राम पीसकर उसे छानकर रख लें उम्रानुसार मात्रा १/४ एवं १/२ चम्मच से १ चम्मच तक गाय के दूध से सेवन कराना चाहिए।
आधा शीशी दर्द

लौंगन चन्दन लाल पुनि सहित आँवरे पीस। फूल डाल चम कुन्द के मिट हैं आधा शीशी।। अर्थांत्— लोंग लालचन्द आँवला, समभाग पीसकर मचकुन्द के फूल डाल के पानी पीसकर सिर में लगाएँ।
मुख से खून गिरने पर

अडूसा की पत्ती मिश्री के साथ (बाँसा, रूसो, अहूसा) इनकी हरी १५—२० पत्ती में मिश्री के साथ पीस कर खाने से मुँह से खून गिरना बन्द हो जाता है।
गले का काग बढ़ने पर

उपचार—चूल्हे की मिट्टी निकालकर उसमें थोड़ी कालीमिर्च पीसकर अपनी अंगुली में लगाकर चतुराई से (कहवा) पर लगा देवे ठीक हो जाता है।
हारनियाँ एवं गठिया वात (सन्धिवात रोग)

हारिनिया— १. केसुला के फूलों को उबालकर उससे बफारा दिया जाए, वही फूल हल्के गरम हारनिया पर बाँध दे तो हारनिया ठीक हो जाता है।

२. नूरानी तेल की हल्की मालिश करने से लाभ होता है।

३. हार श्रृंगार के पत्तों का काढ़ा पिलाएँ।

४. ‘‘वृद्धि वाटिका वटी’’ (वैद्यनाथ कं. की उम्रानुसार १ से २ गोली सुबह शाम देने से अण्डकोष वृद्धि एवं हारिनियाँ दोनों ठीक हो जाते है।
सन्धिवात (गठिया) (जोड़ो का दर्द)

५०० ग्राम तिल्ली का तेल कढ़ाही में अच्छा उबालो धीमी अग्नि से एवं ५० ग्राम हल्दी डाल दो ताकि तेल शान्त हो जाए फिर उसमें २० कच्चे कुचला को डाल दो, जब कुचला काला पड़ जाए तब तेल उतार लो,एवं ठन्डा होने पर कुचला निकालकर जमीन में गाड़ दो पुन: धतूरे के पत्ते का रस २०० ग्राम निकालकर फिर धीमी अग्नि पर चढ़ावैं इसके, बाद १० ग्राम अफीम बारीक कर डालकर तेल में हिलाकर मिलावें। इस तेल की मालिश से गठियावात शीघ्र ठीक होता है। परहेज— बादी चीजे, भिन्डी, उड़ददाल, सेम, बैंगन, अधिक ठण्डा पानी, मसूर दाल, आम इमली बन्द रखें। गठियाबात हेतु—सहजना, वकायन, अन्डा की जड़, धतूरा, अकौआ, शूहर सम्हालू, ये सभी बराबर जड़े कूटकर कल्प तिल का तेल में धीमी आँच से उबालकर तेल पका छान लें। सभी बात लकवा, गृहसी, कमर दर्द सभी प्रकार ठीक हो जाता है।
एडी में जलन, पाँव में थकान आने पर उपचार

१.इमली का पत्ता सूखा चाहे गीला हो पानी में उबालें और फिर नमक डालकर पानी हिलाकर हल्की सिकाई करें कम गरम में पैर डुबा लें।

२. फिटकरी एवं नमक को गरम जल में डाल हल्की सैंक करें।

३. सरसों के तेल में कपूर मिला मालिश करें।

४. पैर के तलवे में जलन होने पर एक पुरानी ईट को खूब लाल गरम करें फिर उसे नीचे रखकर उसके ऊपर थोड़ी—थोड़ी छॉछ (मट्ठा) छोड़ते जाएँ एवं उसकी वाष्प से ऐड़ी तलवा की सिकाई करें जलन ठीक होगी आजमूदा प्रयोग है।

५. चन्दनादि वटी १ से २ गोली पानी से खिलाएँ।

६. थकान के कारण जब गला सूख जाए आँखों और सिर में चक्कर आएँ। तो काँसे की थाली में घी और बारीक कपूर डालें, तब दोनों पाँव थाली में घिसते रहें उष्मता (गर्मी) निकलकर सिर हल्का हो जाएगा।

७. पैरों बिमाई फटी का इलाज— राल, कत्था, कालीमिर्च गाय का घृत चमेली का तेल इन्हें पीसकर घृत या तेल में मल्हम बना लगाएँ। एवं व्रेâकक्रीम लगाने से बिमाई ठीक होती है।
कैंसर रोग उपचार

१. दही के साथ तुलसी के ८ —१० पत्ते खाने से लाभ होता है।

२. गेहूँ के कोमल पत्ते पीसकर उसमें बूरा (शक्कर) मिला ठन्डाई पीने से लाभ होता है।

३.हरे मैनार की सब्जी खाने से शीघ्र लाभ होता है।
गुर्दा (किडनी) पेशाब की थैली का उपचार

१. गुर्दे की बीमारी हो तो चाँदी की छड़ (काम) को अग्नि मेें एकदम लाल करो, और पहले से एक भगौनी में १ लीटर पानी छना रख लो, उसमें उस गरम छड़ को छोड़ दो, एवं ढक दो। ठन्डा होने पर हल्का गुनागुना यही पानी दिन में ३—४ बार पिलाते रहें किड़नी ठीक हो जाएगी

२. असाध्य शूल (पेट दर्द पर)— पका कुम्हड़ा चीर कर धूप में सुखा लें इसे पीतल के बर्तन में रखकर जलाकर कोयला बना लें (राख न होने दें) फिर इस कुम्हड़ा के कोयला का चूर्ण बना उसमें बराबर की सौंठ मिला लें १—१ चम्मच दवा पानी से सेवन करें असाध्य सूल दर्द ठीक होवे।
गैस हरण चूर्ण

सौंठ १०० ग्राम, असगन्ध ५० ग्राम, शुद्ध सुहाग ५० ग्राम, सेंधानमक ५० ग्राम, हींगड़ा १० ग्राम (घी में भूल लें) पीपल २० ग्राम अजमोद ५० ग्राम, अजवान ५० ग्राम, सौंफ २० ग्राम, इलायची ५ ग्राम, शुद्ध औरासार गन्धक १०० ग्राम। विधि— इन सभी को एकत्र कर खरल से कूट पीसकर छान लें, पश्चात् सोजने एवं नींबू के रस को निचौड़ कर डुबो दें। दवा फूल जाने पर पत्थर की सिल पर घोंटे चिकनी होन पर जंगली बेर के बराबर गोलियाँ बना लें। सेवन विधि— २—२ गोली सुबह—शाम गर्म पानीसे बच्चों को १—१ गोली की है। परहेज—मिर्च, तेल, खटाई तली चीजें न लें।
सुगर, मधुमेह, (डाईविटीज) उपचार

वर्तमान में सुगर की बीमारी नवयुवकों को एवं वृद्धों को तीव्र गति से बढ़ रही है, इसका कारण दिमागी तनाव एवं गरिष्ठ आहार के बाद शारीरिक श्रम न करने से ऋतु विपरीत आहार के सेवन से अनेकों रोग उत्पन्न होते हैं। उनमें मधुमेह भी एक है। उपचार— १. गुड़मार की पत्ती— बिनोले की मिगी, जामुन की गुठली, नीम के पत्ते सूखे, सूखी बेल पत्ती, करेला के बीज, इन सबको बराबर बराबर लेकर कूट कपड़छन रखें १—१ चम्मच चूर्ण सुबह शाम पानी से सेवन करें। इसी का काढ़ा बनाकर पीएँ तो शीध्र लाभ होता है। २. करेले के रस (जूस) ५० ग्राम अथवा नीम की कोंपल प्रतिदिन साफ धोकर २०—३० पत्तियाँ खाली पेट खाने से सभी रोग ठीक होते हैं।

३. रेंवजा की फली (जिसमें बीज न पड़े हो) लाकर सुखा लें फिर पीसकर रखों। १/२ चाय चम्मच खुराक पानी से सेवन कराने से सुगर ठीक होती है।

४. मैंथी दाना १० ग्राम २५० ग्राम उबले पानी में रात्रि में भिगो दें। प्रात: खाली पेट वह पानी छानकर पीने से लाभ होगा। मैथी साग बनाकर लें।

५. नीम की निबौली की मिगी रख लो ८—१० निबोरी मिगी खाली पेट खायें। सुगर, ज्वर, पेट, के कृमि सभी रोग ठीक होते हैं।
दन्त रोग चिकित्सा

अधिकतर दांतों के रोग की परेशानी अहार की गड़बड़ी से होती है अधिक ठन्डा पानी पीना अधिक खटाई मिर्च लेना तथा गर्म चाय आदि के बाद तुरन्त ठन्डा पानी लेने से दाँत कमजोर होकर टूट जाते हैं।
दाँतों के रोग में निम्न चिकित्सा करें—

१. कूट, दारूहल्दी, धाय के फूल, पाठा, कुटकी, हल्दी, तेजबल, मोथा, लोघ सभी बराबर बराबर लेकर चूर्ण छान कर रख लें फिर जीभ, दाँत की जड़ों में मलने से दाँत का दर्द , रक्त गिरना, मसूड़ोंं की जलन ये सभी रोग दूर होते हैं।

२. त्रिफला (हर्र, बहेड़ा आँवला) त्रिकुटा (सौंठ पीपर पीपलामूर) तूतिया (शुद्ध नीलाथोथा) सौंद्या नमक माजूफल पतंग (अकोला की लकड़ी) इन सभी को पीसकर छानकर मंजन बना लें।

३. पाईरिया— असली सरसों का तेल में महीन कपड़े से छना सेंधानमक मिलाकर धीरे—धीरे दाँतो मसूड़ों एवं से मलते रहें एवं लार नीचे टपकाते रहें। कुछ ही दिनों में पाईरिया ठीक हो जाएगा।

४. दाँत चमवें बादाम छिलका, (पुंगीसुपाड़ी) दोनों पीस सेंधानमक मिलाकर मंजन बना लें। ‘‘छिलका ले बादाम का पुगी सहित जलाय। नमक महीन मिलाइए दाँत देय चमकाय।।

५. अजवान २०० ग्राम, नीम की छाल सूखी २०० ग्राम, बबूल छाल २०० ग्राम को जलाकर कोयला करें (राख न होवे) फिर पीसकर १०० ग्राम, सेंधानमक १२ ग्राम, पिपरमेंट ५ ग्राम मिलाकर पीस लें। इस मंजन से दाँत दर्द ठीक होकर चकमते हैं। बदबू दूर होती है।

६ बरगद की दातौन करने से हिलते दाँत ठीक हो जाते हैं।
स्त्री गुप्त रोग चिकित्सा

१. गमिर्णी का वमन (उल्टी)—चाँवल के धोवन का पानी, २५० ग्राम धनिया ५० ग्राम मिश्री पीसकर इस पानी को २—३ बार देते रहें। उल्टी बन्द होगी। किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं करता है। २. सरसों की जड़ कमर में बाँधने पर प्रसव शीध्र हो प्रसव होने पर तुरन्त छोड़ देना चाहिए। ३. हर्र की गुठली की मिगी (बिजी) में समुद्र फैन को पीस नित लगाने से योनी के पानी बहना रूक जाता है।
मासिक धर्म में अधिक रक्त आने पर—

कुड़ा की छाल मिश्री (बूरा) मिलाकर काड़ा बनाकर पीने से ठीक होता है। रक्त प्रदर— चिरौंजी ( आचार) के पेड़ के कोमल पत्तों का जूस (रस) २०—२० ग्राम पीने से रक्त प्रदर ठीक होता है। कुशा की जड़ चावल के धोवन के जल से पीसकर उसमें ५ ग्राम रसौंत पीसकर मिलाकर पीने से ठीक होता है।
रजोधर्म रूकने पर खोलने हेतु

१.पका पपीता खिलानें से स्तनों में दुग्ध वृद्धि होती है। २.शतावर ५—५ ग्राम दूध के साथ पीसकर पिलाने से दूध बढ़ता है। मासिक धर्म— अधिक खून आने पर (कष्टावर्त, अत्यावर्त) इमली के ३—४ बीजों को फूलों उसी पानी में पीसकर चासनी से खाने पर अधिक खून आना बन्द हो जाता है।
सर्प विष चिकित्सा

१. केले के पेड़ के छिलके का रस २० ग्राम १०—१२ कालीमिर्च के साथ पीसकर सर्प के काटे रोगी को पिलाने से लाभ होगा। १—१ घण्टे से दें एवं काटे स्थान पर छिलका पीसकर लगाए।

२. जामुन के पत्तों को पीसकर पीने से सर्प का जहर ठीक हो जाता है। (८—१० पत्ते लेना चाहिए।) नोट— आवश्यक होने पर डाक्टर को दिखाएँ। एलाल अचूक लिखे हैं विश्वास से करें। ध्यान दें— सर्प काट लेने पर घबराएँ नहीं सभी सर्प जहरीले नहीं होते रोगी को सोने न देें। पानी के छीटे डालकर साहिसक बातें करते रहें।

३. मदार (आँक) की जड़ पानी में घिसकर पिलानें से सर्प विष ठीक होता है।

४. रीठे के छिलका को पानी में पीसकर चने बराबर गोली २—२ दूध से पिलाएँ।

५. रीठे के छिलका को महीन पीस लें। सलाई से रोगी की आँख में लगाएँ। रोगी चिल्लाएगा आँख सूझ जाएगी पर चिन्ता न करें सर्प विष उतर जाएगा। बाद में आँख आईड्रोप्स डालते रहें।

६. कुचले को थोड़ा सा नींबू के रस में घोल कर चम्मच से गले में डाले फिर शरीर पर पारा मले तुरन्त ठीक होगा कब्र के लिए तैयार सर्प। वाला ठीक होगा। (कुचला थोड़ा धिसे अधिक नहीं)

७. रीठे का छिलका पीसकर जब तक खिलाएँ जब तक कड़वा न लगे रोगी बच जायेगा।
कुत्ता, शियार, बन्दर, काटने पर उपचार

१. सबसे सस्ता घरेलु, आजमूदा ईलाज काटे स्थान पर लाल मिर्च पानी में पीसकर लगा दें। ऐसा ३—३ बार करें।

२. ग्वार पाठे का (गूदा) में थोड़ा सेंधानमक मिलाकर काटे स्थान पर बाँधे ३ दिन बाँधने पर जहर ठीक हो जाता है।

३. शुद्ध हरताल ३ ग्राम २५० ग्राम दही में मिलाकर खाएँ।

४. शुद्ध कुचला २ नग या (५ ग्रामचूर्ण) २५ ग्राम कालीमिर्च दोनों को पानी में पीसकर १—१ रत्ती की गोली बना लें। १ गोली पानी से लेने पर कुत्ते/सियार/बन्दर सभी जहर पूर्ण नष्ट होते हैं।
बिच्छू काटने पर उपचार

१. बिच्छू काटने पर अपामार्ग (ओगा, अदिया झारों) की जड़ दिखाने से ही बिच्छू उतर जाता है यदि कम आराम हो तो उसी जड़ को पानी से धिसकर काटे स्थान पर लगा दें।

२. फिटकरी को तवे पर गरम करके उसे गरम—गरम काटे स्थान पर लगाएँ दर्द शान्त होगा।

३. पलास पापड़ा आँक के दूध में घिसकर लगाने से बिच्छू का जहर उतर जाता है।

४. इमली के बीज को छीलकर उसके सफेद भाग को पानी से पत्थर पर घिसकर काटे स्थान पर चिपका दें बिच्छू का जहर उतर जाएगा।

५. जायफल को नीबू के रस में घिसकर दंश स्थल पर लगाने से तुरन्त बिच्छू का दर्द ठीक होता है।
अफीम का विष

१. सुहागा १ ग्राम पानी में पीसकर पीने से अफीम का जहर उतर जाता है।

२. यह बेहोस हो तो (हिंगड़ा) हींग १ ग्राम तक पीसकर पिलाएँ तुरन्त ठीक हो जाएगा।
भाँग का नशा

उपचार— तुअर (अरहर) की दाल का धोवन जल पीने से भाँग उतर जाती है एवं खट्टे पदार्थ—आम इमली का आचार देने से ठीक हो जाता है
विष चिकित्सा

१. सर्प के काटने पर—तुरन्त काटे स्थान के आगे भाग पर अच्छे मोटी रस्सी से बाँध दें ताकि विष का असर सारे शरीर में पैâलने न पाए फिर काटे स्थान पर न्यूब्लेड धोकर वहाँ चीरा लगा कर खून निकालें वहाँ से काला खून जब तक निकलता रहे निकाल दें। विष का असर कम हो जाएगा। चिकित्सा— १. संजीवनी ४—४ गोली पानीसे खिलाएँ।

२. श्यामा तुलसी के पत् तों का २०—३० ग्राम रस निकाल २—४ बार पिलाएँ। ३. राई लहसुन, प्यास को एकत्र पीस जितना खा सके खिला दें।

४. शुभ नक्षत्र में अपमार्ग की जड़ लाकर व्यक्ति के दाएँ कान में बाँधने से सर्प—विच्छू का जहर उतर जाता है।

५. मयूर पुख साबूत चिलम में भरकरफूक देने से सर्प जहर दूर होता है। रोगी बेहोश है तो दूसरा, व्यक्ति चिलम फूक कर रोगी की नाक में जोर से धुवाँ पेâके उससे सर्प विष उतर जाता है।

६. सर्प नहीं काटेगा— बारसिंगा के सींग का एक ताबीज बना गले में बाँधे तो उसे सर्प नहीं काटेगा। (तंत्र से)
पेशाब (मूत्रावरोध) हेतु उपाय

१. मूत्रावरोध में रोगी की नाभि के चारों ओर ढाक (पलास, छेवला, टेसू) के फूल पानी में पीसकर नाभि के चारों और लेप कर दें। ४—५ मिनट में पेशाब हो जाएगी। २. केले के वृक्ष की छाल का रस ४० ग्राम घी २० ग्राम दोनों मिलाकर पिलाने से बन्द पेशाब खुल जाती है।
दाढ़ के कीढ़—

घुन्चु की जड़ कान में बाँधने से दाढ़ के कीड़े में ल निकल जाते हैं। काँटा निकल जाए— धतूरे के पत्ते को गुड़ में लपेट कर खिला देने से शरीर के किसी अंग में कांटा लगा है। पानी की तरह बह जाता है। काँच निकल जाए— इमली के बीजों की गिरी का चूर्ण मक्खन के साथ देने पर काँच निकल जाता है। कौढ़ी का दर्द— असली हींग २ ग्राम बीज निकल मुनक्का में लपेट कर १ घूँट पानी के साथ देने से कौड़ी के दर्द में आराम होगा। वर्थ कन्ट्रोल— केले के तने का रस ५० ग्राम ८ दिन निरन्तर पिलाने से बिना नशबन्दी के सन्तान नहीं होगी। बगल गन्ध (काँख की गन्ध) दूर हेतु— जामुन के पत्ती का पानी के साथ पीसकर लगाने से बगल गन्ध दूर होती है। एवं फुन्सियाँ भी नहीं होती।
मोतिया बिन्द हेतु

१. नौसादर को सुर्मे की भाँति बारीक घोंटकर अजंन करने से मोतिया बिन्द कट जाता है।

२. निमर्ली के बीज शक्कर के साथ पानी में घिसकर लगाने से मोतियाबिन्द कट जाता है।

३. ५—६ गाँठे हल्दी को अमृतधारा में डाल दें ७ दिन तक पड़ी रहने के बाद निकालकर इसे थोड़ी—थोड़ी पानी में या गुलाब जल में घिसकर लगाने से मोतिया बिन्द नहीं आता है। आया मोतियाबिन्द कट जाता है।

४. वच २ ग्राम हींग, १ ग्राम सौंठ १ ग्राम चासनी (सीरा) के साथ खाने से मोतिया बिन्द ठीक होता है।
मोटापा कम करने के लिए

१. प्रात:काल चावलों का मांड नमक मिलाकर पीसे से ठीक होता है।

२. गिलोय चूर्ण ± त्रिफला दोनों ३—३ ग्राम चासनी से सेवन करें।

३. भोजपत्र की पत्ती १० ग्राम की चाय उबालकर प्रतिदिन पीने से मोटापा कम होगा।

४. छाछ के साथ १/२ चम्मच त्रिफला चूर्ण लेते रहे मोटापा ठीक होगा।

५. पुनर्नवा १० ग्राम जड़ी, त्रिफला १० ग्राम दोनों का काड़ा बनाकर उसमें पुनर्नवा मण्डूर भस्म १/२ से १ ग्राम मिलाकर पीने से मोटाफा दूर होता है। सूजन ठीक होती है। रक्त वृद्धि होती है।
वायगोला (शूलपेट दर्द)

१. अरण्डी का तेल (कास्टर आईल) ६ ग्राम दही ६ ग्राम दोनों मिलाकर रोगी को पिलाएँ, चमत्कारिक लाभ होगा जीवन भर को ठीक हो जाएगा।

२. २५० ग्राम गाय के दूध में ५ लाल मिर्च बीजों सहित साबूत धीमी अग्नि पर पकाएँ दूध शेष रहने पर उतार कर मिर्चों को हल्के हाथ से मसल दें, फिर छन्नी से छान लें, उनमें थोड़ी सी मिश्री (या बूरा ) मिलाकर गर्म कर हल्का गर्म पिलाएँ। भयंकर वायुगोला दर्द के रोगी को तुरन्त आराम हो जाएगा।

३. अरंडी का तेल २० ग्राम अदरख रस २० ग्राम दोनों मिलाकर गर्म गर्म पिलाएँ आराम हो जाएगा।

४. ढ़ाक के पत्तों की ठुड़ी २० नग तोड़कर ताजे पानी में पीसकर रोगी को पिलाकर उसक चित्त लिटा दें आधा घन्टे में दर्द ठीक हो जाएगा।

नोट— अदरख न होने पर सौंठ उबाल लें। ५. चीते की जड़ (चितावर) इन्द्रजौं, पाठ की जड़ कुटकी, अतीस, हर्रे सभी सम भाग लेकर कूट पीस चूर्ण छान लें। २ से २ १/२ ग्राम (एक चाय चम्मच चूर्ण) गर्म पानी से १ माह तक पिलाएँ। यह अमोघ औषधि है। छाजन (चर्म रोग) का उपचार— आंक के दूध में कालीमिर्च पीसकर लगाने से छाजन ठीक हो जाती है।
शक्ति का खजाना

हल्दी की ५०० ग्राम गाँठे, अनबुझा (खड़ाहर्रा) चूना— एक किलो, पानी दो किलो, मिट्टी के साफ बर्तन में डाल दें फिर उसमेें पानी छोड़ दें। पानी ऊपर से डालने पर चूना पकने लगेगा। (उबाल सी उठेगी।) उस चूने में उक्त हल्दी २ माह तक पड़ी रहने दें। पश्चात् निकालकर गाँठों को सुख लें बाद में कूट छानकर बाटल में रख लें। सेवन विधी— इस दवा को १—१ चम्मच हल्दी चूर्ण २ चम्मच सीरा में मिलाकर खाएँ अपार शक्ति बढ़ती है।

सेहत के नुस्खे Health tips3

हकलाना या तुतलाना

१. कल्याणक चूर्ण— हल्दी, बालबच (मीठी बच) छोटी पीपल, सौंठ, जीरा, अजमोद, मलैठी, मीठा वूâठ, सम—भाग लेकर सभी पीसकर छानकर रखें। इसे घी अथवा सीरा के साथ एक आना भर की खुराक दिन में ३ बार खिलाएँ। (ऊपर से पानी न दें।)

२. कुलंजन (पान की जड़) को पीसकर गुड़ में मिलाकर खिलाएँ।

३. केवल कत्था एवं चूने (कम चूना हो) लगा पान पत्थर पर घिसकर पीसकर घूटी के रूप में देने से लाभ होता है। ४. श्यामा तुलसी के पत्तों का स्वरस सीरा से देना ऊपर से काली बकरी का दूध पिलाए।

५. स्वाइन फ्लू— (१) हल्दी एवं नीम पत्ती का काढ़ा में रूमाल भिगोकर मुँह पर फैरने से रोगाणु दूर रहते हैं।

(२) १५/२० लहसुन कली गले में पहने रोगाणु दूर हो जाते हैं।

(३) अदरख, तुलसी दल, गिलोय, कालीमिर्च के काढ़े को बनाकर सुबह शाम पीवें।
यकृत/प्लीहा/चिकित्सा

हृदय के नीचे दक्षिण भाग में यकृत (लीवर) स्थिति है। जिसमें अनेक प्रकार के दुख देने वाले रोग उत्पन्न होते हैं। १. सर्वाङ्ग सुन्दर रस (रसेन्द्रसार संग्रह) फार्मूला— शुद्ध गन्धक/ पारद की कज्जली १५—१५ ग्राम की पर्पटी बना लें। २—३ दिन की रखी कज् जली की पर्पटी बनाई जा सकती है। आगे बनाना ठीक नहीं। जायफल, दक्षिणी, जावित्री इलायची के बीज १५—१५ ग्राम लेकर सबको मिला चूर्ण छान लें। यह ५ वर्ष तक के बालकों की अमृत समान गुणकारी है। ज्वर, दूर कर अग्नि दीप्त होती है। बालक बढ़ता है। यकृत रोग में अदभुत कार्य करता है। सेवन विधि— ाqपप्पली चूर्ण १ से ३ मासा एवं सर्वाङ्ग सुन्दर रस १ से ६ रत् ती उम्र अनुसार इसमें घोलकर देना चाहिए। तंत्र— (१) ऊँट कटारा— की जड़ पुष्प नक्षत्र में लकड़ी की नोक से खोदकर लाएँ ७ शाखाओं वाली जड़ सर्वश्रेष्ठ होती है इसे सोने की ताबीज में गले में बाँधने से सब बाधाएँ दूर होती हैं। दरिद्रता दूर होती है।

(२) शोथ लोह— सौंठ मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा आँवला, मुनक्का, पोहकर मूल, सुगन्धवला, कचूर, लौह—भस्म, घुड़वच, लौंग, कड़कड़ासिग्गी, दालचीनी सौफ, बायविडंग,धाय की फूल, सम भाग १—१ तोणी चूर्णकर कपड़छन करें। पश्चात् मण्हूर भस्म १० ग्राम मिलाकर कम से कम ३ घण्टे पत्थर के खरल में घोंटे(घिसें) फिर कुड़े की छाल का स्वरस अथवा काढ़े में घोंटकर गोला बनाकर इस गोले का जामुन के कोमल पत्रे में लपेटकर ऊपर मिट्ठी का लेप कर सुखा लें पश्चात् जंगली उपले (कपड़े) की अग्नि में लघुपुट (कम आँच) से पकाएँ। पीसकर छानकर रखें। औषधि निकाल कर प्रयोग करें। प्रयोग— २ रत्ती की मात्रा दूध से लेना। गुण— सारे शरीर की सूजन, को नाश कर चमत्कारी लाभ कराती है। ३. ताप्यादि लौह— हर्र, बहेड़ा आँवला, सौंठ, मिर्च, पीपल, चित्रकमूल वायविडग, ५—५ ग्राम दारूहल्दी, दालचीनीऔर च्वय, १०—१० ग्राम शुद्ध शिलाजीत, स्वर्णमाक्षिक भस्म,तथा लौह भस्म प्रत्येक १० ग्राम मण्डूर भस्म २० ग्राम मण्डूर भस्म २० ग्राम मिश्री ३२ तोला। सभी चूर्ण कर छान लें पहले काष्टिक दवा अलग पीसे बाद में भस्म मिलावें।गुण— पाण्डू यकृत, बालकों का यकृत रोग ठीक होते हैं। बालकों के पक्षाधात में एवं पोलियों में भी गुणकारी है।
बालकों के पक्षाघात में एवं पोलियों में

कारण— सौंठ १ तोला, सम्भालु के पत्र १ तोला करंज की छाल १ तोला तीनो कूटकर ४८ तोला जल में धीमी अग्नि से पकाएँ ६ तोला शेष रहने पर छानकर शीशी में रख लें। १—१ चम्मच प्रतिदिन २—३ बार पिलाएँ। लाभ होगा। १. रस औषधि— बात गंजाकुश रस २ ग्राम शीतांसु रस २ ग्राम ताम्रभस्म १ भाग सभी को एकत्र कर पीसें फिर मिलाकर शीशी में रखें। खुराक— १/२ रत्ती से १ रत्ती खुराक दूध से देना चाहिए। दिन में सुबह—शाम दो बार।
मसूढ़ों के दर्द

१. अमरूद के पत्तों के काढ़े से कुल्ला करने से मसूढ़ों का दर्द एवं सूजन कम होती है।

२. नीम की छाल के काढ़े से कुल्ला करने से मसूढ़ों का असहाय दर्द ठीक होता है।

अतीस अति उत्तम मेहु अतीस उसे करि चूर्ण अनेकन रोग में दीजे।। ज्वर ताप घटे अतिसार हटे, अरू लावै पसीना न शक्तिहू छीजै।। कुइनाइन की समता इसमें, बहुबार परीक्षित है। यश तीजे। शिशु रोगन को तुलसी सो, यह नाशति शीघ्र न संशय कीजे।। मासिक धर्म की अनियमितता

कच्चा सुहागा ३ ग्राम केशर ३ ग्रेन (१ ग्राम) दोनों को खरल कर बारीक घोटकर प्रात: सायं ठंडे पानी के साथ दें। दूसरी मात्रा की जरूरत नहीं होती एक ही बार में ठीक हो जाता है।
मासिक धर्म खोलने हेतु

कलिहारी की जड़ पानी में पीसकर मस्तक पर लेप करने से स्त्रियों की महावारी खुलजाती है।
कर्ज मुक्ति उपाय

भूमि का ढलान ईशान दिशा की ओर रख दें। यदि पहले थोड़ा है तो कुछ और बढ़ा दें एवं किसी सुहागन को सुहाग सामग्री दें। अमावस्या को लोभान जलाकर पूरे घर में घुमाएँ। कर्ज की प्रथम किस्त शुक्ल पक्ष के मंगलवार को देना प्रांरभ करें। तो कर्ज मुक्ति अवश्य होगा।
टोने टोटके का असर खत्म हो

चंदन, कुमकुम, कूट लौंग नेत्रवाला, देवदारू, चासनी जायफनी, लोभान, जायपत्ती, गूगल, केशर को बराबर लेकर धीमी अग्नि से धूनी देवें तो असर खत्म होता है।
रतौंधी (आँख रोग)

ढांक (पलाश) वृक्ष के तने में संध्या समय कुल्हाड़ी तीक्ष्ण शस्त्र से गोदा मार दें। इस गोदे में रस चूने लगेगा। इस रस को रूई में भिगों ले और तुरन्त लाकर रतौंधी वाले रोगी की आँखों में २—४ बूँद टपका दें। रतौंधी २—३ दिन में ठीक होकर जीवन भर को ठीक हो जाएगी।
लकवा

१. औंक के पत्तों को तेल में पकाकर मालिश करने से लाभ होता है। २. उड़द को सौंठ के साथ काड़ा बनाकर पीने से आराम होता है।
स्त्रियों का रक्त स्त्राव

लज्जावन्ती का ३ ग्राम चूर्ण फंकाकर ऊपर से बताशों का शरबत पिलाने से स्त्रियों का रक्त प्रभाव श्राव बन्द हो जाता है। रजोदर्शन रज: प्रर्वाक—खुलना। इन्द्रायण के बीज ४ ग्राम कालीमिर्च ६ नग दोनों को कूटकर २०० ग्राम जल में औटाएँ ५० ग्राम रहने पर छान—कर पिला दें। रजो दर्शन होने लगेगा।
मृगी (अपस्मार)

१. छोटी कटेरी (पसर कटेली) के फल का रस निकालकर नस्य देने से मृगी शीघ्र दूर होती है।

२. बच का कपडछन चूर्ण २ ग्राम चासनी से लेने से मृगी/हिस्टीरिया दूर होता है। एक माह पिलाने से रोग दूर होता हैं।

३. दो ग्राम अधिक ठण्डे जल में पीसकर प्रतिदिन निरन्तर १ माह पिलाने से हिस्टिरीया दूर होता है।

४. करौंदे के पत्ते १० ग्राम दही या मट्ठे के साथ १०—१५ दिन सेवन करें।

५. ५० ग्राम नौसादर को १ लीटर केले के पत्ते के रस में डालकर रखें। मृगी आने पर नाक में टपकाएँ दौरा शान्त होगा।
मूत्रलयोग (पेशाब साफ लाने हेतु)

१. फिटकरी ५० ग्राम कलमी शोरा ५० ग्राम श्वेत चन्दन २५ ग्राम तीनों कूट पीस कपड़छन कर लें पानी से ३ ग्राम खुराक सेवन करें। २. जवारवार ४ ग्राम फिटकरी ३ ग्राम अकरकरा ३ ग्राम हल्दी ३ ग्राम सबको पीसकर कपड़छन कर गाय कीछाछ में मिलाकर पिलाने से मूत्र शीघ्र उतरता है। मुखमण्डल के सौन्दर्य के लिए चेहरे की खूबसूरती बढाने के लिए तगर और चिरोंजी पीसकर मक्खन मिलाकर चेहरे पर उबटन लगाएँ। मुहासे— मसूर की दाल का चूर्ण घी में मिलाकर दूध से पत्थर में घोटों फिर मुंह पर लेप करों। आधे घन्टे बाद धो डालें। नोट: प्रथक से सेना? ‘व्यापार में घाटा हो रहा हो तो— शुक्ल पक्ष में एक चुटकी आटा व १ चुटकी नमक लेकर दूकान के मुख्य द्वार के दोनों और स्वास्तिक बनाएँ। पाँच लौंग व एक जायफल पूजा स्थान में रखें तथा महावीर का जाप करें। १. मुकदमा— यदि मुकदमें में हार की उम्मीद हो तो— अथवा रोग मुक्त न हो रहा हो तो उस व्यक्ति के वजन के बराबर कोयला पानी में बहा दें। लाभ होगा।

२. अनिद्रा— सोते समय १ नींबू का रस एवं सीरा १ गिलास पानी से लेने से नींद आएगी।

३. हाथ पैरों का पसीना— कंडी की राख और पीली कोड़ी का राख पीसकर मालिश से लाभ होगा।

४. कारावास का भय हो तो— ७ नारियल या ४५ पुराने सिक्के जो चलन में न हों उन्हें बहते पानी में बहा दें तो और पार्श्वनाथ स्त्रोत का पाठ करें भय दूर होगा।

५. टोटके— घर में अशान्ति रहने पर— गाय के गोबर का छोटा सा दीपक बनाकर उसमें रूई की बत्ती तथा तिल का तेल भर दें एक छोटी सी गुड़ की खली डालकर घर के दरवाजे के बीच में रख दें।

६. धन हानि बन्द होवे— काले तिल परिवार के सभी सदस्यों के शिर पर से ७—७ बार उतारकर घर के उत्तर दिशा में फैक देें धनहानि बन्द होगी।


अतिसार (दस्त् डाईरिया)

कारण— बहुत भारी, चिकने रूखे, गरम, शीतल संयोग विरूद्ध, प्रकृति विरूद्ध, देश विरूद्ध, ऋतु विरूद्ध, पदार्थों के खाने पीने से, उदर विकार हो जाता है अठराग्नि कमजोर हो जाती है। जिससे पाचन संस्थान विगड़ कर अतिसार (दस्त ) होने लगते हैं।
अतिसार की सम्प्रति

ऊपर लिखे कारणों से रस जल रूधिर, मूत्र, पसीना, मेद, कफ और पित्त प्रकृति पतली धातुएँ कुपित होकर, जठराग्नि या पाचकाग्नि मन्द हो जाती है और स्वयं मल में लिप्त हो जाती हैं। पीछे गुद्दा में रहने वाली अपान वायु उनको नीचे ढकेलती है, तब नदी के वेग की तरह गुद्रा से निकलती है। इन सबके इस तरह निकलने को अतिसार कहते हैं।अतिसार के पूर्व लक्षण—जिनको अतिसार रोग होने वाला होता है, उसके हृदय, नाभि, गुदा, पेट, और कुख में तोड़ने जैसी वेदना होती है। शरीर दु:खी सा रहता है। खाना पीना नहीं पचता। तात्पर्य यह है कि अतिसार होने के पहले ये लक्षण (चिन्ह) नजर आते हैं। अनिसार के पूर्व लक्षण—जिनको अतिसार रोग होने वाला होता है, उसके हृदय नाभि, गुदा, पेट, और कूख में तोड़ने जैसी वेदना होती है। शरीर दु:खी सा रहता है। गुदा की हवा रुक जाती है। मलावरोध हो जाता है, पेट फूल जाता है। खाना पीना नहीं पचता। तात्पर्य यह है कि अतिसार होने के पहले ये लक्षण (चिन्ह) नजर आते हैं। अतिसार ६ प्रकार के (भेद) होते हैं। १. बातातिसार २. पित्तातिसार ३. कफातिसार ४. सन्नपातिसार ५.शोकतितार ६. आगातिसार। नोट— विशेष जानकारी चिकित्सा चन्द्रोदय भाग ३ देखें। अन्य आचार्यों ने ‘भयातिसार’ भी कहा है। शास्त्र में कहा है ‘‘रागद्वेष भयाच्चेव ते स्युरागन्वो गदा’’। अर्थात् राग द्वेष और भय से रोग होता है उसे ‘‘आगुन्तुज’’ कहते हैं।

नोट— अतिसार, संग्रहणी, विशूचिका (हैजा— कालरा) घोर अजीर्ण और कृमि रोग प्रभति में पतले दस्त होते हैं, पर इनके दस्तों में फर्वâ हैं। अन्तर १. अतिसार रोग में मल पानी जैसा पतला होता १. हैजा में भी दस्त पतले होते हैं।

२. अतिसार के दस्तों में मल होता है २. हैजा के दस्तों में मल नहीं होता।

३. अतिसार के दस्त, लाल—पीले, हरे, काले, ३. हैजा के दस्त चाँवल के धोबन जैसे ही होते हैं। धूमिल प्रभृति अनेक रंग के होते के होते हैं। इसमें मल का न होना मुख्य बात है।

४. हैजा में पैशाब आना बहुधा बन्द हो जाती है।

वात, पित्त, कफज आदि अतिसार रोगी को अधिक उबला ठन्डा करके देना चाहिए। ४ किलो जल का १ किलो बचे अति उत्तम है। रोगी को प्यास ज्यादा लगती है। तो उसी जल में उबारते समय ५० ग्राम सौंफ ५० ग्राम नागर मोथा वैंथ बेल १०० ग्राम सौंठ ५० ग्राम पीसकर डाले एवं उबलने पर छानकर पिलाए, रोगी को पूर्ण आराम मिलेगा। आहार में छाछ में कालानमक सौंठ डालकर पिलाएँ। यदि आवश्यक हो तो समा के चावल मठा में उबालकर खीर बनाकर खिलाएँ। परहेज पथ्य— गरिष्ठ, आहार, रोटी, दलिया न दें।
गभिर्णी स्त्री के दस्त का उपाय

सामान्य ऊपरी अचूक ईलाज १. केवल बकरी का दूध सेवन कराने से गर्मिणी स्त्री का अतिसार दूर होता है।

२. ३ ग्राम ईश्वगोल को २० ग्राम जल में भिगो दो भोजन के मध्य में देने से गभिर्णी के दस्त ठीक होते है।

३. आम की पुरानी गुठली कि के गोई (भीतर का दल बेलगिरी, लोध और धनिया, तथा इन चारों दवाईयों को बराबर—बराबर लेकर चूर्ण बनाकर छान लें।

प्रयोग विधि— १. चम्मच (चायचम्मच) दवाई का चूर्ण बनाकर बूरा या मिश्री के साथ थोड़ा दही मिलाकर खाने से गर्भावस्था का अतिसार ठीक हो जाता है। पथ्य— हर तरह के दस्तों में हल्का भोजन लाई के फूला, दही छाछ मट्ठा गुणकारी है। ४. सूखा आँवला का चूर्ण, रूमीमस्तंगी, धनिया और छोटी इलायची सबको बराबर—बराबर लेकर चूर्ण कर १ छोटी चम्मच दवा बेल के शर्वत से देना चाहिए।

५. आम की गुठली का आचार रखकर देते रहने से लम्बे समय के दस्त ठीक होते हैं।

६ सौंठ चूर्ण— १ पाव सौंठ के छोटे—छोटे टुकड़े कर लें फिर उसे १ किलो गाय के मुट्ठे छाँछ में २४ घन्टे के लिए ५० ग्राम सेंधानमक पीस डालकर पूâलने दें। २४ घन्टे बाद निकालकर धूप में सूखा लें। पश्चात तवे पर घी नमक डालकर भून लें एवं उसे डिब्बे में रखें। २—३ पीस सौंठ दिन में ३—४ बार सेवन से पाचक ठीक होता है। भूख बढ़ती है। जायकेदार है।
बालरोग

बालकों के अतिसार (डायरिया) की चिकित्सा १. कौरेया की जड़, अरण्ड की जड़ रतन जोत की जड़ सम्भाग पीसकर उम्रानुसार मात्रा, थोड़ी सी हींग मिलाकर देने से बालकों के भयंकर अतिसार दूर होता है। (परीक्षत प्रयोग है।)

२. यदि मरोड़ देकर दस्त हो तो (वैद्यनाथ कं.) की जन्मघुटी में मरोड़फली देने से लाभ होगा।

३. कड़कड़ा सिंग्गी का चूर्ण २—३ ग्राम सीरा में या छुहारा (खारक) में घोंटकर देने से लाभ होगा।

४. यदि बहुत छोटा बच्चा हो तो बाग में पैदा कपास के फूलों को गरम राख में भूनकर रस निकालो एवं ८— १० बूँद रस या ४—५ बूँद रस पिलाओ तुरन्त आराम होगा।

५. केशर, अफीम, हींग तीनों समान भाग मिलाकर पीसकर (पानी में पीसकर ) बाजरे के बराबर गोली बनालें। १—१ गोली माँ के दूध के साथ देने से बालक का पुराना अतिसार भी ठीक हो जाएगा।

६. छुहारे की गुठली, एवं जायफल और अतीश को लेकर छोटे पत्थर के उरसे पर माँ के दूध में घिसकर थोड़ा—थोड़ा पिलाने से अतिसार ठीक होगा।

नोट: डायरिया में बालक को माँ का दूध न पिलाएँ। ७. खसखस दानें को पानी में पीसकर थोड़ा सा दूध मिलाकर खीर खिलाने से दस्त बन्द होते हैं। ताकत भी बढ़ती है। नोट : ६ माह के कम उम्र को नहीं दें।

८. बेलगिरी और सपेâद कत्था बराबर पीसकर माँ के दूध के साथ देने बालक के दाँत निकलते समय के दस्त बन्द हो जाते हैं।

९. चूने का पानी अमृत— खड़े (डिगला) चूने को ५०० ग्राम लेकर मिट्ठी के धुले बर्तन में २—३ किलो गर्म पानी में बुझा दें पश्चात् थोड़ा लकड़ी से घोल दें। उसे १ सप्ताह रखा रहने दें पानी देखते रहे सूखने न पाएँ। फिर उसमें से ऊपर की पपड़ी सी धीरे से अलग कर उसका पानी बालक को १/२ चम्मच दिन में ३—४ बार पिलाएँ बड़े बच्चों को १—१ चम्मच पिलाएँ यह बालकों को अमृत के समान गुणकारी है। केल्सियम की पूर्ति करता है।
बिना औषधि पानी जैसे अतिसार की बाह्य चिकित्सा

१. ५० ग्राम या २५ ग्राम आँवला को महीन पीसो पीछ उस चूर्ण को घी में पीसकर चटनी सी बना लें। फिर दस्त बाल रोगी को चित्त (सीधा) सुलाकर उसकी नाभि के चारों ओर उसको एक घेरा सा बनाकर उस दीवार सी में अदरख का रस भर दो कम से कम आधा घन्टे लेटा रहने दो ताकि दवा रस गिरने न पाए। इस उपाय से नदी के प्रवाह जैसे दस्त भी बन्द हो जाते हैं। (आजमूदा नुक्सा है।) इरा आँवला लें। यदि ना हो तो सूखे छोटे आँवले लें। नोट: (जहाँ गीला ताजा आँवला हो तो उत्तम है।)

२. आम की छाल,दही के तोड़ के साथ पीसकर नाभि के चारों ओर लगाने से दस्त बन्द हो जाते हैं।

३. बरगद (बड़) का दूध नाभि में भर देने से चारो ओर लगाने दस्त बन्द होते हैं।

४. आँवलों को घी में सेंककर (भूनकर) पानी में पीसकर नाभि के चारों ओर लगा दो एवं २—३ बूँद नाक में टपका दो। तुरन्त आराम होगा।

५.ये साधन भी जल्दी न मिले तो विक्स (मरहम) नाभि में भर दो और थोड़ी मलकर पेट पर लगाओ एवं अमृतधारा भी भर सकते हो। शीघ्र आराम होगा। पीलिया (पाण्डु) (ज्यौन्डसी) उर्दू में (चरकान) (कामला) रोग सम्बन्धी पीलिया (कामला के लक्षण)इस रोग में नेत्र अत्यन्त पीले हो जाते हैं। चमड़ा नाखून मँुह भी पीला या हल्दी जैसे रंग का हो जाता है। मल—मूत्र का रंग भी पीला या लाल रंग हो जाता है। शरीर का रंग बरसाती मैढक जैसा हो जाता है। इन्द्रियों की सामथ्र्य जाती रहती है, हृदय में जलन होती है, भोजन नही पचता, शरीरा और शिथिल हो जाता है तथा अन्त में अरूचि हो जाती है।
पाण्डू रोग के पूर्व रूप

‘चरक’— में लिखा है— हृदय का फडकना, देह का रूखा सा होना, पसीना का न आना,एवं बिना मेहनत किए थकान सी होना ये पीलिया के पूर्व लक्षण हैें। ‘सुश्रुत’— ने लिखा है जब पाण्डु रोग होने वाला होता है तब चमड़े का फटना, मुँह से बारम्बार थूकना, अंगो का भड़कना मिट्टी खाने मे रूचि होना, आँखों पर सूजन आना, मल मूत्र पीला होना अन्न कान पचना— ये लक्षण नजर आते हैं। वाग्भट्ट’ ने भी इसी प्रकार मिलते जुलते लक्षण बताए हैं। ‘माधव निदान’ ग्रन्थ में पाण्डुरोग ५ प्रकार के बताए हैं।— (१) वात का (२) पित्त का (३) कफ का (४) सन्निपात का (५) मिट्ठी का। विशेष विवरण हेतु ग्रन्थों से देखें। रोग के कारण—अधिक मैथुन करने से अधिक मिर्च तेल खटाई खने से, शराब पीने से, मिट्टी खाने, दिन में अधिक सोने से। पाण्डु रोग की उत्पत्ति होती है। प्राय: कर अन्य सभी रोग इन्ही कारणों से होते हैं।
कामला के दो भेद

१.कोष्टाश्रय २. शाखाश्रय नोट— जो कोठे के आश्रय से होता है उसे कोष्ठाश्रय कहते हैं जो रक्तादि धातुओं के आश्रय से होता है। उसे शाखाश्रय कहते हैं। कोठे के आश्रय से होने से जिस तरह घड़े का पेट बड़ा और मुँह छोटा होता है उसी तरह रोगी का पेट बड़ा और मुख छोटा होता है तब उसे ‘कुम्भ कामला’ कहते हैं।
पाण्डु रोग के उपचार (चिकित्सा)

१. लोह भस्म, गोदन्ती भस्म, सौंठ, मिर्च पीपल ओर कंकोल ये सब १०—१० ग्राम लेकर कूट पीसकर कपड़े से या मैदा वाली छन्नी से छान लें। नोट : लोह भस्म अलग रखे इसे सब छनी दवा में बाद में मिला दें। इन सभी चूर्ण के बराबर ‘सोनामक्खी भस्म’ मिला दें। नोट : (यह कोई जीव नहीं है यह भस्म शुद्ध है जैसे—कई रोग जानकारी न होने से ‘गोदन्ती भस्म’ की (गाय के दाँत) भस्म मानकर लेने से मना कर देते हैं। यह भी एक पत्थर की भस्म है। सोना मक्खी को स्वर्णमाक्षिक भी कहते हैं। पूरी दवा एकत्र कर जल में पत्थर की सिल पर पानी मिला घोटें और १—१ रत्ती की गोली बना लें। सेवन विधि—१—१ गोली सीरा के साथ खाने से ऊपर से मट्ठा पीने से पाण्डु रोग शीघ्र ठीक हो जाता है (परीक्षित है) इससे सभी प्रकार के पाण्डु रोग ठीक होते हैं।

२. नवासय लौह— सौंठ, मिर्च, पीपल, हरड़, बहेड़ा आँवला, नागरमौथा, वायविंडग और चीते की छाल (चितावर) यह वृक्ष की छाल है। सभी द्रव्य एक एक तोला, वूâट पीसकर कपड़े से या झोल से छान लो फिर इसमें तीन तोला लोह भस्म मिला दो एवं सभी को एक शीशी या डिब्बे में रख लो। सेवन विधि—३—३ रत्ती दवा सीरा के साथ या घी के साथ (सुुबह—शाम दो बार) सेवन कराएँ।

३. पुनर्नवादि मण्डूर— पुनर्नवा (जड़ी) निशोध, सौंठ, कालीमिर्च, पीपल, वायविडंग देवदारू, चीता (चितावर) मीठा वूâट हल्दी, हर्र, बहेड़ा आँवला, दन्ती, चव्य, इन्द्रजो, कुटकी, पीपरामूल, नागरमोथा, कड़कड़ासिंग्गी, कालाजीरा, अजवाइन, कायफल इन सबको ५०—५० ग्राम लेकर चूर्ण कपड़छन कर लो। इनमें सबके बराबर या २५ ग्राम मण्डूर भस्म मिलाकर, पुराना गुड़ मिलाकर ३—३ रत्ती की गोली बना लें। फिर १से २ गोली उम्रानुसार सुबह शाम खिलाए। सभी प्रकार के पीलिया की रामबाण औषधि है।
अजीर्ण के दस्तों के चिकित्सा

१.१ तोला (१० ग्राम ) जायफल को पीसकर २५ ग्राम गुड़ में मिलाकर १/२ (आधा) ग्राम की गोलियाँ बनाकर १—१ घण्टे से १—१ गोली खिलाएँ ऊपर हल्का गरम जल पिलाएँ। इसे बच्चे आराम से खा लेते हैं। तुरन्त लाभ होता है।

२. चूने के पानी में बूरा (मिश्री) मिलाकर खिलाएँ।

३. २ से ४ बूँद अमृत धारा पानी में डालकर पिलाएँ। नाभि टलने पर हुए दस्तों की चिकित्सा

१. नकछिकनी की राख १ तोला, अजवान १ तोला, सौंठ १तोला तीनों कूटपीसकर छान लेवें इसमें ३ तोला पुरानागुड़ जंगली बेर बराबर छोटी—छोटी गोलियाँ बना लें। १ गोली थोड़े से घी के साथ खाने से तुरन्त आराम हो जाता है।

२. फिटकरी १ तोला, माजूफल १ तोला, दोनों महीन पीसकर सिरके में मिलाकर नाभि पर लगा, ऊपर से कपड़े की पट्टी कसकर बाँध दे तो नाभि टलने से दस्तों में आराम हो जाता है।

३. १० ग्राम सौंफ, २० ग्राम गुड़ के साथ खिलाने से नाल (नाभि) हटी हुई अपनी जगह आती है। अतिसार चिकित्सा १. सौंठ, अतीस, बेलगिरी, गिलोय, नागर मोथा, और इन्द्र जो समभाग का काढ़ा पिलाने से ज्वर, अतिसार सूजन सहित ज्वाररितसार नष्ट होता है।

२. दशमूल के काढ़े में १ तोला सोंठ का चूर्ण डालकर पीने से ज्वर अतिसार एवं सूजन युक्त संग्रहणी में आराम होता है।

३. इन्द्र जौ, देवदारु, कुटकी, और गजपीपल, समभाग लेकर काढ़ा पीने से ज्वर अतिसार दाह नष्ट होता है।

नोट— काढ़ा में ५०० ग्राम पानी डालकर धीमी—धीमी अग्नि पर पकाएँ चौथाई भाग शेष रहने पर छानकर पिलाएँ। ४. सौंठ, अतीस, नागरमोथा, गिलोय, चिरायता, इन्द्रजौ, समभाग लेकर काढ़ा बना लें इसे ‘नागरादि क्वांथ’ कहते हैं। यह भयानक अतिसार को नष्ट करता है।
मट्ठा (तक्र) के भेद एवं गुण

सुश्रुत आदि मुनियों ने मट्ठे (तक्र) के ४ भेद कहे हैं— १. तक्र २. घोल ३. मथित ४. उदश्वित १. जो मलाई युक्त दही बिना जल के मथा जाता है उसे ‘धोल’ कहते हैं। (यह भारी होता है।)

२. जो दही मलाई निकालकर, बिना जल के मथा जाता है उसे ‘मथित’ कहते हैं।

३. जो दही चौथाई भाग जल डालकर मथा जाता है उसे तक्र (मट्ठा) कहते हैं। यह गुणकारी होता है।

४. जो दही आधा जल डालकर मथा जाता है, उसे ‘उदश्वित’ कहते हैं।

गुण— मलरोधक, कषौला, खट्ठा, मधुर अग्नि दीपक, उष्णवीर्य, तृप्ति कारक, बात नाशक, दस्त (अतिसार) संग्रहणी रोग में अति गुणकारी है। नोट— जिसमें से सम्पूर्ण घी निकाल लिया हो वह मठ्ठा हल्का, पथ्य कारी होता है। जिसमें थोड़ा घी निकला हो वह भारी होता है। प्रयोग— वात रोग में— सेंधानमक मिलाकर। पित्त रोग में— मट्ठा बूरा मिलाकर प्रयोग करें। कफ रोग में — ज्वाखार, सौंठ कालीमिर्च पीपल का चूर्ण डालकर सेवन करना चाहिए। संग्रहणी अतिसार में— मट्ठे में हींग, जीरा, सेंधा नमक मिलाकर पीना चाहिए। श्वांस खाँसी में— औटाया (गर्म किया) प्रयोग करें। तक्र की प्रशंसा— १.तक्र सेवन करने वाला कभी रोगी नहीं होता। २. तक्र से नष्ट हुए रोग फिर कभी नहीं होते। जिस तरह स्वर्ग में देवों को अमृत सुखदायी हैं, उसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्यों को मट्ठा है। तक्र की मनाही— गर्मी के मौसम में घाव वाले रोगी को, दुर्बल को, मूर्छित को, भ्रमित को रक्त पित्त रोगी को को मट्ठा नहीं देना चाहिए।
अति तृषा (प्यास अधिक लगने) का उपचार

ग्रीष्म काल में या अन्य समय स्वाभाविक रूप से प्यास लगना अलग बात है किन्तु प्रकृति विरूद्ध बार—बार जल पीने की इच्छा अति तृषा के लक्षण हैं। जिसका उपचार निम्न है— १. सामान्य रूप से बिना दवा खिलाए हलके गीले निचुड़े हुए कपड़ों पर सुलाना। गीली पट्टी सिर एवं गले पर फैरते रहने से तृषा शान्त होती है। (अधिक समय न करें।)

२. १०० ग्राम सौंफ ५० ग्राम सूखा आँवला १० ग्राम बड़ी इलायची को पीसकर उसे २ किलो जल में धीमी अग्नि पर औटाएँ ५०० ग्राम शेष रहने पर उतारकर छान लें एवं ठण्डा करके रोगी को १००—१०० ग्राम बच्चों को २—२ चाय चम्मच पिलानें से अतितृषा, एवं वमन (उल्टी) में शीघ्र लाभ होता है।

३. विजौरा नीबू का रस १० ग्राम, घी, १/२ चम्मच, थोड़ा सेंधानमक मिलाकर पीसकर सिर पर लगा दो। जीभ, तालु, कंठ, सूखता हो तुरन्त आराम होगा। आजमुदा है।

४. अनार, बेल लोध, वैथ और बिजौरा नींबू, इनको महीन पीसकर माथे पर लगाने से प्यास की जलन ठीक होती है।

५. ५० ग्राम धनियाँ १ किलो पानी में डालकर धीमी अग्नि से उबालें। २५० ग्राम बचने पर उतार कर ठण्डा होने पर उसमें ५० ग्राम मिश्री एवं घीं १ चम्मच मिलाकर थोड़ा—थोड़ा पिलाएँ तुरन्त आराम होगा।

६. आमला, कमल की जड़ (मुरार) मीठा कूट, धान का छिलका एवं जड़ सझी खार सभी समान भाग लेकर पानी में पीस गोली छोटी—छोटी बनाकर मुँह से चूसने से शीघ्र आराम होता है।

७. सूखा आँवला २० ग्राम और दुधिया कत्था २० ग्राम पीसकर या छोटे—छोटे पीसकर बनाकर मुँह से चूसने से तृषा शान्त होती है। मँुह के छाले भी ठीक हो जाते हैं।

८. बड़ (बरगद) के अंकुर, पठानी लोघ, अनारदाना, मुलेठी, मिश्री बराबर लेकर पीसकर जल से छोटी—छोटी जंगली बेर के बराबर गोलियाँ बना लो, १—१ गोली मुँुह में रख कर चूसते रहें एवं ऊपर से चाँवलोें का धोवन पीने से तृषा शान्त होगी। परीक्षित प्रयोग है।

९. अक्सर गर्मी में बच्चों को (तौंस, प्यास) रोग हो जाता है। इस हेतु २० ग्राम कमलगट्ठे की (हरी पत्ती) निकालकर वूâटकर बालक के पीने के पानी में पीसकर डाल दो फिर वही पानी बारम्बार पिलाओं शीघ्रे आराम हो जाएगा।

१०. बड़े आदमी को बार—बार प्यास (तौंस) लगती हो तो जंगली कंडो को जलाकर उसकी राख एक काँसे के बर्तन में डालकर, ऊपर से उसमें ठन्डा जल भर दो और उस बर्तन को प्यासे की नाभि पर रख दें। इसके रखते ही जलन मिट जाएगी।

११. कमलगट्ठे को पानी में पीसकर तालू पर लेप करने से प्यास मिट जाती है।

१२. किसमिस को जल में पीसकर उसमें थोड़ी मिश्री (बूरा) मिलाकर पिलाने से प्यास शान्त हो जाती है।

नोट— तृषा मेें— गर्म पदार्थों का गर्मी करने वाले अनाज फल, मिर्च आदि न दें। ठन्डे पदार्थ मधुर रसवाले, गन्ना रस, अनार जूस, सेव, मुसम्मी का जूस आदि देना चाहिए।
बालकों या बड़ों का गुदा (काच) बाहर निकलने को उपचार

यदि अति दस्त लगने से कमजोरी के कारण रोगी वृद्ध, बालक के गुदा में दाह हो गुदा पक जाए, या काच (गुदा) बाहर निकलने लगे तो निम्न उपचार करें। १. पटोल पत्र और मुलेठी समभाग का काड़ा बनाकर ठन्डा करके उस पानी से गुुदा धोना एवं सीचने से लाभ होता है।

२. गुदा में दाह (जलन) हो पक गई हो तो बकरी के दूध में मिश्री मिलाकर पिलाना चाहिए।

३. गेहूँ के आटे में पानी मिलाकर उसे पकाएँ फिर हल्की गरम गरम गुदा की सैंक करें।

४. कमलनी की कौंपले लाकर सुखा ले फिर कूटकर १/२—१/२ चम्मच खिलाएँ ऊपर से दूध या पानी पिलाएँ।

५. यदि किसी स्त्री की काँच (गुदा) निकल आए तों हुरहुज केफूल (सूरजमुखी) का रस निकाल लें। फिर उसे हाथों में मलकर, गुदा के मुख पर वही हाथ रखें ऐसा ३—४ बार रस लगाएँ अवश्य आराम होगा।

६. अपनी पेशाब (मूत्र) एक बर्तन में रख लो पीछे पखाना जाने के बाद उसी पेशाब से गुदा धोवे और उसके बाद पानी से धोएँ ऐसा करने से ३—४ दिन में गुदा का बाहर निकलना बन्द हो जाती है।

७. यदि गुदा सूज गई हो भीतर न जाती हो तो गुलरोगन को गुदा पर मलो एवं रोगी को हलके गर्म गर्म पानी पर बैठा दो लाभ होगा।

८. गुलरोगन (इत्र बेचने वालों के यहाँ मिलेगा) आम के पत्ते, जामुन के पत्ते, और दोनों की छाल को जो वूâटकर, काढ़ा बनाओं उससे गुदा को धोए ठीक होगा।

९. बबूल के पत्ते एवं फली धाय के फूल का काढ़ा बना हलके गरम काड़े को चौड़े बर्तन में रख रोगी को बैठाओ २—३ दिन में गुदा बाहर निकलनी बन्द हो जायेगी।
अर्श (बवासीर, पाईल्स)

वर्तमान युग में लगभग दो दशक दौरान अर्श रोग (बवासीर) का रोग बहुतायत से हो रहा है इससे अधिकांश स्त्री/पुरूष परेशान है। इस रोग का प्रमुख कारण— आहार, विहार, संयम, नियम, का पालन न करने से प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने पर प्रकृति आपके विरूद्ध अपना डालती है। वातादिक दोष—वात, पित्त, कफ, चमड़ा मांस ओर भेद को दूषित करके गुदा में जो माँस के अंकुर (मस्से ) उत्पन्न हो। उनको ही अर्श (बवासीर) कहते हैं। गुदा की बवासीर ही प्रसिद्ध मानी जाती है किन्तु लिंग की सुपाड़ी इन्हें लिङ्गर्श एवं नाक में होने वाली को नासर्श कहते हैं किन्तु चिकित्सक गुदा के मस्सोें को ही बवासीर मानते हैं। नोट— मनुष्य की गुदा मेें तीन आँटे होती है उन्हीं को संस्कृत में आवर्त कहते हैं। या बलि भी कहते हैं। एक आंटा ऊपर, दूसरा नीचे, तीसरा बीच में होता है, ऊपर के आँटे को ‘प्रवाहनी’ कहते हैं। उसका काम मल और हवा को बाहर निकालना है बीच के आँटे या (बलि) का नाम सर्जनी है। उसका काम मल और पवन को बाहर पटकना अर्थात् बाहर फैक देता है। तीसरे आँटे का नाम ग्रहिणी या सँवरणी है। उसका काम मल और हवा को बाहर निकालकर, गुदा को ज्यों का त्यों कर देना है। पहली दूसरी बलियों का परिमाण १ १/२ अंगुल और तीसरी ग्रहणी का एक अंगुल प्रमाण है। बाकी १/२ अंगुल में गुदा द्वार का जो हिस्सा है उसे गुदा का औंठ कहते हैं इन्हीं तीनों में मस्से (अर्श) होती है। बवासीर के साथ मलावरोध या कब्ज की शिकायत लगी हुई रहती है और बवासीर रोग मन्दाग्नि की ही बजह से होता है। जब अन्न अच्छी तरह नहीं पचता है और उसका प्रथक्करण नहीं होता, तभी बवासीर होती है। अत: कुशल बैद्य को बवासीर वाले रोगी को दस्त साफ (पखाना) होने की दवा देनी चाहिए अगर इसका उपाय न करेगा तो रोग ठीक नहीं होगा। बवासीर की चिकित्सा चार प्रकार की होती है— १. औषधि २.क्षार ३. शस्त्र (आपरेशन) ४. अग्नि लेप, स्वेदन, बत्ती से बाहर के आँटे की बवासीर को नष्ट करना चाहिए। अन्तिम आंटे वाली को यानि भीतर वाली बवासीर को दवाओें से नष्ट करना चाहिए।
मस्से

१. अगर मस्से बाहर दिखते हों, तो सेहुड़ के दूध में हल्दी का चूर्ण मिलाकर १—२ बूँद मस्से पर लगाना चाहिए। रोग ठीक होने पर न लगाएँ।

२. औंक (मदार, अकौआ) का दूध पत्ते तोड़ने पर दूध निकलता है उसे मस्से बिना आपरेश के कट जाते हैं। कुछ समय जलन दर्द होगा सो उसमें गरी के तेल में कपूर पीसकर मिलाकर लगाएँ अथवा हेन्डसा, पाईलेक्स, मल्हम लगाते रहें। मस्से जीवन भर को ठीक हो जाएँगे परीक्षित प्रयोग हैं।

३. तौरई की जड़ पीसकर मस्सों पर लेप करें।

४. रूई के डोरे (सूती धागा) पर हल्दी का चूर्ण लगाकर उसक पर सेंहूड का दूध बारम्बार लगाना चाहिए। इसके बाद उसी डोरे (धागे) को मस्सों पर अलग बाँधते जाओ क्रम क्रम से मस्से कट कर गिर जाएँगे।

५. कासीसादि तेल मस्से पर लगाने से मस्से कट जाते हैं।

नोट— कोई भी दवा शौच (पखाना) के बाद लगाना चाहिए ताकि देर तक दवा लगी रह सके। डॉक्टर पूर्व एवं वैद्यक ग्रन्थों में जौंक लगाने को लिखते हैं पर यह आज वर्तमान में प्रयोग कोई नहीं करता है। न कराना चाहिए। विशेष— वबासीर की चिकित्सा करने के पूर्व रोगी को हल्का रेडी तेल (कास्टर आयल) देते हैं। बाद में चिकित्सा करना चाहिए इससे शीघ्र लाभ होता है। अलसी का तेल ५०—५० ग्राम पिलाने से दस्त साफ होता है। मस्से मुरझा जाते हैं। नोट— बवासीर से खून गिरता है तो उसे तुरन्त बन्द नहीं करें खराब खून निकल जाने दें नहीं तो गुदा में रक्त विकार हो जाएगा। इसके बाद खून बंद की चिकित्सा करें।

६. खून बन्द एवं बवासीर की उत्तम चिकित्सा— फिटकरी को पीसकर तवे पर भूने उसमें से पानी—पानी सा निकलेगा तब फिटकरी सूखी हो जाएँ तो उसे उतार कर पीसकर डिब्बे में रख लें। इसी फिटकरी को मस्सों पर लगाएँ एवं १ १/२ ग्राम फिटकरी सीरा से सुबह शाम खाएँ।

७. कल्याण लवण— शुद्ध भिलमा (भिलमा, भल्लातक) त्रिफला, दन्ती की जड़ सभी को बराबर लेकर (समभाग) इन सबके वजन से दूना सेंधानमक लेकर रखो। इन सबको कूट पीसकर नारियल के खप्पतर में भर दो और जंगली कंडो की आग में मन्दाग्नि (धीमी आग) से पकाओ। पक जाने पर उतार कर रख लो। यह नमक बवासीर रोगियों को बहुत हितकारी है।

८. समर्शकर चूण— सौंठ ७ तोले, पीपर ६ तोले, कालीमिर्च ५ तौले (प्रत्येक ग्राम के तौल से ले सकते हैं।) नागकेशर ४ तोले तेजपात ३ तोले इलायची १ तोला मिश्री २० तोले।सभी चूर्ण बनाकर १/२ चम्मच पानी से सेवन करें।
खूनी बवासीर के परीक्षित नुख्से

१. इन्द्र जौ, कुड़े की छाल, नाग केशर, नीलकमल, लौध और धाय के फूल—इनके कल्क द्वारा घी पकाकर ( सभी दवाएँ समभाग लेकर कुटे बराबर गरम जल में १२ घण्टे भिगो दें जब वह पूर्ण फूल जाएगी तो चौगुना शुद्ध घीं में धीमी अग्नि से उबालें जलने न पाएँ। घी शेष रहने पर उतार लें इसे २—२ चाय चम्मच सेवन करें खूनी बवासीर चली जाएगी।

२. लालचन्दन, चिरायता, छमासा और सौंठ इनको बराबर लेकर काढ़ा धीमी आँच से पकाएँ और रोज पीने से खूनी बवासीर का नाश करता है।

३. ढाक हल्दी, खस, नीम की छाल का काढ़ा खूनी बवासीर का नाश करता है।

४. लाजवन्ती, कमलगट्ठा, मोचरस, लोघ, चन्दन समभाग लेकर बकरी के दूध में औंटकर पीने से खूनी बवासीर जाती है। खून गिरना बन्द हो जाता है परीक्षत प्रयोग।

५. नीम की निबौलियाँ, रसौल, हरड़ तीनों का समभाग कूट पीसकर छानकर गुलाब जल में घोंटकर छोटे बेर बराबर गोली बनाकर सुखा लो। २—२ गोली सुबह—दोपहर शाम पानी के साथ सेवन करने से बवासीर निश्चित शान्त हो जाती है परीक्षित है।

६ .पकी नीम की निबौली— पीसकर पुराने गुड़ में मिलाकर गोली खाने से बवासीर ठीक होगी।

७. नीम के मद को पिचकारी में भरकर गुदा को ३—४ बार धोने से भी बवासीर ठीक होती है।

८. हरड़ में घी में भूनकर, उसमें गुड़ और पीपल का चूर्ण मिलाकर (गुड़ दो गुना) हरड़ पीपल बराबर १ तोला दवा गरम जल से सेवन करने से दस्त साफ होता है। बवासीर ठीक होती है।

९. हुलहुल (सूरजमुखी) के बीज २ तोला शक्कर ४ तोला मिलाकर पीसकर भर खुराक सुबह—शाम लेने से खूनी वादी दोनों बवासीर ठीक हो जाती है।

१०. रसौत १०० ग्राम, अनार की छाल, २०० ग्राम गुड़ ४०० ग्राम पहले रसौत एवं अनार की छाल को महीन पीसकर छानकर फिर गुड़ में मिलकर गोलियाँ जंगली बेर बराबर सेवन करें दोनोें तरह की बवासीर नष्ट होगी।

११. अद्भुत प्रयोग— गाय दूध ५०० ग्राम कटोरे में लेकर मँुह के पास रखें और एक घूँट पीए। उसी समय कोई दूसरा आदमी तुरन्त एक या आधा नींबू (कागजी नींबू) का रस दूध में ठपका दें और रोगी झट से पी जाएँ, (एक सेकेण्ड भी देर न करें।) इससे ३ दिन मे ही चमत्कारिक लाभ होता है।

१२. बबूल की पतली फलियाँ जिसमें बीज न पड़े हो, छाया में सुखा लो, फिर कूट पीसकर छान लो, १५ दिन तक चाय चम्मच चूर्ण जल के साथ खाने से सब तरह की बवासीर ठीक होती है।

१३. निमर्ली के फल को जलाकर राख कर लो, १ चम्मच चूर्ण १ चम्मच बूरा (शक्कर) मिलाकर १५ दिन तक खाने से बवासीर ठीक हो जाती है।
मस्से नाशक लेप

१. पिसी हल्दी और कड़वी तुरई दोनों मिलाकर लेप करने से सब तरह के मस्से नष्ट करता है।

२. आँक के पत्ते और सहजन (सौजना, मुनगा) के पत्तों को पीसकर लेप भी मस्सों को नष्ट करता है।

३. नीम और कनेर के पत्तों को पीसकर लेप करने से मस्से नष्ट होते हैं।

४. सेहुंड के दूध में हल्दी का चूर्ण मिलाकर एक बूँद मस्से पर लगाने से मस्सा नष्ट होता है ।

नोट—सभी प्रयोग परीक्षित हैं शौच (परवाना) के बाद लगाएँ ताकि लेप/दक्ष देर तक लगी रह सके।

५. थूहर का दूध मस्सों पर लगाने से मस्से नष्ट होते हैं।

६. हरी कनेर की जड़ पानी में पीसकर शौचालय में ले जाओ पखाने करते समय मसे बाहर निकल आते हैं। तुरन्त लगा दो। दो दिन में मस्से नष्ट हो जाएँगे।

नोट— कोई दवा लगाने पर मस्से फूटने पर पीड़ा करती है डरे नहीं बाद में कोई भी (सौफा रामाईसीन आदि टयूब लगा लें। धीरे—धीरे दर्द शान्त हो जाएगा। जो अंग्रेजी दवा खाते हैं। वे दर्द नाशक १—१ गोली सुबह/शाम दूध से ले सकते है।

७. कड़वी नीम का तेल १ ग्राम में ३ ग्राम नीलाथोथा पीसकर मिलाकर मस्सों पर थोड़ा—थोड़ा लगाएँ सभी मस्से गलकर नष्ट हो जाते हैं।
सूत बाँधकर मस्से काटने की विधि

दो तोले महीन हल्दी पीसकर थूहर के दूध की भावना देकर अच्छा बटा सूती मजबूत सूत उसमें डुबो दो तीन दिन तक डूबा रहने के बाद चौथे दिन, उसे छाया में सुखा लो। फिर उस धागे को बवासीर के मस्सों पर कसकर बाँध दो। सभी मस्से कटकर क्रमश: गिर जाएँगे। भगन्दर की गाँठ भी ठीक हो जाती है।

२५ बिच्छू (एक काँटेदार फल) पंसारी के यहाँ मिलता है सरसों के तेल में डालकर ४० दिन तक धूप में रखो बाद में इस तेल को मस्सों पर लगाओ पीड़ा सहित बवासीर ठीक होती है।

और भी काले तिल (तिली) बल के अनुसार २० ग्राम से ५० ग्राम तक नित्य सबेरे खाकर जल पीने से बवासीर नष्ट होती है। दाँत मजबूत होते हैं। और शरीर पुष्ट होता है। काले तिल २—१/२ ग्राम नागकेशर २—१/२ ग्राम और मिश्री ५ ग्राम पीसकर १ खुराक हैं। प्रतिदिन सुबह—शाम से खूनी बवासीर में लाभ होगा।

सेहत के नुस्खे Health tips2


कच्ची हर्र—

१.कच्ची हर्र बहुत ही उपयोगी है। इसका एक चम्मच चूर्ण गर्म जल के साथ लेने से पाखाना (शौच) साफ होता है।

२. भुनी हुई हर्र के एक चम्मच चूर्ण में थोड़ा सेंधानमक और अजवान मिलाकर लेने से पाचन शक्ति बढ़ती है।पेट के कीटाणु नष्ट होते हैं।

३. हर्र को साफ पत्थर पर धिसकर आँख में लगाने से आँख में कीचड़ का आना, आँख से आँसू निकलना ठीक हो जाता है
बहेड़ा :

१. इसका छिलका खाँसी पर लाभकारी है एवं यह त्रिफला का एक अँग है।

२. नाभि के टलने पर बहेड़ा का प्रयोग—इसे (घन्न—चली—जाना) अथवा पेट टरना आदि कहते हैं। इसमें आँत की गुठली थोड़ी सी खिसक जाती है। पेट में पीड़ादायी दर्द होता है। इस रोग में बहेड़े फल की ५० ग्राम मात्रा लेकर उसे पीस कर एक किलो पानी में डालकर मिट्टी के बर्तन में धीमी आँच में पकाकर काड़ा बनायें। १०० ग्राम शेष रहने पर इसकी लगभग २५—२५ ग्राम मात्रा दिन में तीन—चार बार पिलाने से नाभि स्वयं अपने स्थान पर आ जाती है।

३. कुष्ठ रोग पर बहेड़े की गिरी का तेल एवं बकुची का तेल मिलाकर लगाने से कुष्ठ रोग ठीक होता है।
अमृत धारा :

१. पिपरमेन्ट गर्म २. कपूर तरगरम ३. अजवायन का फूल गरम नोट — पिपरमेन्ट, कपूर, अजवायन का फूल तीनों को बराबर—बराबर मात्रा में लेकर उनके मिश्रण से अमृतधारा बन जाती है। यह वै, दस्त उल्टी, जी मिचलाना, कफ खाँसी में गुणकारी है।
त्रिकुटी :

सौंठ, मिर्च, पीपल को त्रिकुटी कहते हैं। नोट— इसका समभाग में लेकर आधा चम्मच सीरा के साथ लेने पर श् वांस, खांसी त्वचा के रोग, जुल्म दूर होता है। अश्वगँध—यह दो प्रकार का होता है। १.सादा अश्वगँधा २. नागौरी अश्वगँधा १.यह बादी नाशक है। वदन के दर्द होने पर इसके चूर्ण को दूध में उबालकर पीने से बदन का दर्द ठीक हो जाता है। २.यह एक पौष्टिक, वाजीकरण, बलवर्धक औषधि हैं। इसका चूर्ण एक चम्मच लेकर उसमें बूरा और दूध के साथ लगातार लेने से नुपंसकता दूर होकर वीर्यक्षमता बढ़ती है। ३. इसके चूर्ण को बदन में सूख अथवा तेल में उबालकर मलिश करने से बदन दर्द दूर होता है। नोट— इसकी तासरी गर्म हैै। अत: दूध चीनाी के साथ लेना श्रेष्ठ है।

विधार : यह विशेष रूप से कमर के दर्द में लाभकारी है। अन्य दर्द भी ठीक होते हैं। इसका एक चम्मच चूर्ण पानी अथवा दूध के साथ लेना चाहिए।
नीम : यह एक बहुउपयोगी वृक्ष है।

१.इसकी कौपल के २५—३० पत्ते प्रतिदिन खाने वाले को कभी ज्वर नहीं आता और स्वास्थ्य हमेशा ठीक रहता है। पेट के कृमि नष्ट हो जाते हैं ब्लड में सुगर (मधुमेह) की रोकथाम करती है।

२.इसकी जड़ के नीचे का काला हिस्सा लेकर महीन पीसकर किसी प्रकार के घाव पर लगाते रहने से सभी प्रकार के घाव पर लगाते रहने से सभी प्रकार के घाव भर जाते हैं। क्योेंकि यह एण्टीबायोटिक और एण्टीसेप्टिक गुण वाला होता है।

३. इसकी छाल को पीसकर नमक मिलाकर मंजन करने से दांत के कीड़े दूर हो जाते हैं। मुँह की बदबू दूर हो जाती है। इसकी दातौन भी लाभकारी है।

४. इसके पत्तों को गर्म पानी में साफ करके, उबालकर उस पानी से नहाने से चर्म रोग ठीक हो जाता है।प्रसूत के पश्चात् महिलाओं को अमृत के समान गुणकारी है। ग्रामों में इसी के गर्म पानी से प्रथम स्नान कराते हैं।

५. इसका तेल भी चर्म रोग नाशक है। इसका साबुन भी बनता है।

६. इसका अर्क भी बुखार आदि में लाभकारी है।
पलास के गुण : (ढाक, छेवला)

१. पलास की जड़ का ढोलायँत्र से अर्व निकालकर उसे काँच की शीशी में रखें अर्क को आँख में ५—५ बूँद डालने से आँखों की समस्त बीमारियों दूर होती हैं। नेत्र ज्योति बढ़ जाती है। आँखों की जलन खुजलाहट, आँसू, कीचढ़ आना आदि सभी रोगों में लाभकारी है। नोट— ढोलायँत्र विधी के अभाव में इसकी ५०० ग्राम जड़ को धो—पीसकर दो किसलो जल में धीमी में इसका काढ़ा बनाएँ। १०० ग्राम शेष रहने पर काँच की शीशी में रखकर उक्तानुसार उपयोग में लें। अधिक दिन नहीं ठहराता ।

२.तेज दोपहरी में, लू लपट गर्मी में पलास के पत्ते माथे नेत्रों के ऊपर बाँध कर बाहर निकलने पर लू नहीं लगती।(वैंप के नीचे अथवा अँगोछे से बाँध लें।

३.५० ग्राम पलास के फूलों को ५०० ग्राम ठण्डे जल में दो घण्टे भिगोकर रखने के पश्चात् उसके छने जल को बदन में लेप करने से भयंकर लू भी हो जाती है।

४.पलास के फल १० ग्राम, अजवान १० ग्राम ढाई ग्राम सेंधा नमक (स्वादानुसार) मिलाकर, छानपीसकर १० पुड़िया प्रतिदिन पानी के साथ लेने से पेट से कृमि नष्ट हो जाती है। आगे कृमि उत्पन्न नहीं होते । खाज खुजली आदि रोग दूर रहते हैं।
ऑक के वृक्ष का महत्व— (अकौआ, मदार)

यह दो प्रकार का होता है— १.श्वेत पुष्प वाला २.लाल पुष्प काला प्राय: सभी जगह पाया जाता है। १. आँक की जड़— इसकी जड़ वात व्याधि नाशक है। इसकी जड़ को विष गर्भ बात तेल में डाला जाता है। तेल में उबाल कर कान में दो बूंद तेल डालने से कान दर्द में लाभ होता है।

२. आँक के पत्ते — इसके पत्ते को हल्का गर्म करके अण्डकोष की सूजन बढ़ जाने पर सरसों के तेल के साथ लगाने से सूजन घट जाती है। फूलापन ठीक हो जाता है।

३. आँक के पत्ते का दूध— आँक का दूध बहुत उपयोगी है। किन्तु इसको सावधानी से निकालना चाहिए।इसका दूध आँख में नहीं लगाना चाहिए।

१. बवासीर के मस्से— आँक का दूध बवासीर के मस्सों पर १०—१२ बूँदे रात्रि में मस्सों में लगाने पर समस्त मस्से कट जाते हैं। एक बार ही लगने के बाद पुन: लगाने की आवश्यकता नहीं रहती है अचूक औषधि है।

२. घटसर्प (हिफ्थीरिया)— जस रोगी का कफ बहुत चिकना हो जाए एवं गले में अटका रहें, ऐसे रोगी को घट सफ (हिपथीरिया) कहते हैं। आँक के दूध की ४—६ बूँदे दूध में मिलाकर रोगी को पिलाने को बमन होती है। जिससे सारा कफ बाहर निकल आता हैं। रोगी को तुरंत राहत मिल जाती है। इसकी मात्रा ज्यादा नही चाहिए।

३. आँक के फूल— आँक के फूलों को सुखाकर रख लें। इसकी दो तीन फूलों को पीस सीरा के साथ खाने से खाँसी, श्वाँस रोग में लाभ हो जाता है।

४. काँटा गहरा लग जाने पर— इसके दूध की ५—७ बूँदे काँटे लगे स्थान पर थोड़ा कुरेदकर भर दो। काँटा अपने ऊपर आ जाएगा। फिर बाहर निकाल लें।
मट्ठा (छाछ) :

नोट— मट्ठे का सेवन करने वाला व्यक्ति कभी व्यथित नहीं होता। मट्ठे के सेवन से नष्ट रोग पुन: उत्पन्न नहीं होते। जैसे देवताओं को अमृत सुखदायी है। उसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्यों को मट्ठा सुखदायी है। गाय मट्ठा बहुत अच्छा होता है।


ईसबगोल एवं ईसबगोल की भूसी :

१. ईसबगोल यह पाचक है। बच्चों के दस्त आने पर घोलकर देने से लाभ होता है।

२. ईसबगोल की भूसी : यह ताकतबर होती है। एक चम्मच भूसी को दूध में घोलकर लेने से अमाशय ठीक होता है। शौच साफ होता है।
मेंथी :

१. मेंथी के ५ ग्राम दानों को एक गिलास पानी में रात्रि को भिगोकर सुबह पानी पीने से सुगर में आराम होता है।

२. मेंथी २० ग्राम लेकर १०० ग्राम सरसों के तेल में उबालकर छानकर शरीर में मालिश करने से बदन का दर्द ठीक हो जाता है।

३. मेथी की सब्जी (पत्तों की भी) बादी नाशक है। पाचन शक्ति वर्धक है।

४. मेथी में जीरा, नमक मिलाकर खाने से भोजन पचता है। रूचि बढ़ती है।

५. मेथी में जीरा, नमक मिलाकर खाने से भोजन पचता है। रुचि बढ़ती है।
आयुर्वेद में तुलसी :

तुलसी श्यामाा एवं रामा दो प्रकार की होती है। १. श्यामा तुलसी के पत्ते श्यामले रंग के होते हैं, इसके २५—३० पत्तों का रस सर्प काटै पर लाभ करता है।

२. श्यामा तुलसी के बीजों का आधा चम्मच चूर्ण प्रतिदिन सीरे के साथ देने पर वैंसर रोग में लाभकारी है।

३. दोनों ही प्रकार की तुलसी बहुत उपयोगी है। इसको चाय में ८—१० पत्ते डालकर पीने से सर्दी, जुकाम ठीक होता है। बल्गम साफ हो जाता है।


आयुर्वेद में आँवला— (च्वन औरा) :

१. आँवला का अचार कभी नुकसान नहीं करता एवं अनेक रोगों में लाभकारी है।यह खटाई की श्रेणी में नहीं माना जाता।

२. चमन ऋषि ने आँवला के रस को मुख्य लेकर उसमें अष्टवर्गादि औषधियों के मिश्रण से च्यवनप्रास अवलेह निर्माण किया था। जिससे ६० वर्ष के बुढ़ापे में ऋषि में २० वर्ष जैसी ताकत आ गई थी।

३. इसके हरा फल के रस का सेवन करने से हार्ट अटैक की बीमारी नहीं होती।

४. इसके अकेले चूर्ण के एक चम्मच प्रतिदिन खाने से सुगर/बी.पी. की शिकायत शान्त होती है। हार्ट के दौरा की सम्भावना नहीं रहती।

५. इसको लोहे के एक गिलास में २० ग्राम रात्रि में भिगोकर सुबह शिर में आधा घण्टा तक लगाए रखें।इससे सिर के बाल सपेद नहीं पड़ते। सिर दर्द दूर रहता है।

६. आँवले की चटनी में जीरा, मेथी, धनिया, नमक (मिर्च नहीं) खाने से अजीर्ण दूर होता है। भोजन शीघ्र पचता है।

७. आँवला के दो चम्मच जूस को लगातार पीते रहने से हकलाने का रोग दूर होता है। गला खुल जाता है।आवाज साफ होती है।
चुटकी :

नोट— यह बहुत कड़वी और दस्तावर होती है। अत: सावधानी से शीघ्र निगल लेना चाहिए। और एक या दो खुराक से अधिक नहीं लेना चाहिए। ३. चार नग छोटी इलायची को छिलका सहित ६०० ग्राम पानी में धीरे—धीरे उबालें। एक तिहाई शेष रहने पर छान लेवें। यह दवा रोगी को हल्का गर्म (गुनेगुनें) पिलावें। इससे उल्टी बन्द हो जाती है। ४.हिचकी आने पर दानों में अँगुलियाँ डाल कर बन्द रखें। हिचकी आना बन्द हो जायेगी। (इसमें एक विशेष नस पर दबाब पड़ने से लाभ होता है।)
बुखार में अति तृषा लगना :

(लू लगने और अति गर्मी से ऐसा होता है।)
औषधि :

१. एक डौड़ा (बड़ी इलायची) भूनकर उसके दाने २० ग्राम एवं सौंप २० ग्राम, आँवला का चूर्ण २० ग्राम तीनों पीसकर रखें। आधा—एक चम्मच दवा सीरा या पानी के साथ लेना चाहिए। जी मिचलाना बन्द होता है, भी बन्द होता है, तृषा शान्त होती है।

२. २० ग्राम सौंफ और १० ग्राम बड़ी इलायची लेकर ५ किलो पानी में उबालें। १/४ किलो शेष रहने पर छान लें एवं ठण्डा करके पानी पीएँ साधु को आहार में दें। पीसकर रखें। आधी चम्मच दवा सीरा या पानी के साथ लेना चाहिए। जी मिचलाना बन्द होता है, भी बन्द होता है, तृषा शान्त होती है। पीसकर रखें। आधी चम्मच दवा सीरा या पानी के साथ लेना चाहिए। जी मिचलाना बन्द होता है, भी बन्द होता है, तृषा शान्त होती है।

३. २० ग्राम सौंफ और १० ग्राम बड़ी इलायची लेकर ५ किलो पानी में उबालें। १/४ किलो शेष रहने पर छान लें एवं ठण्डा करके पानी पीएँ साधु को आहार में दें।


अधिक प्यास लगने पर :

पेय— १. लवंग की जड़ चिड़चिड़ी की जड़, दोनों को २०—२० ग्राम लेकर एक गिलास जल में उबालें। आधा शेष रहने पर पिलाने से लाभ होगा। २. बेरी की गुठली की मिगी (बिजी) एवं लवंग दोनों को बराबर पीसकर सीरा के साथ खिलाने पर बुखार की बार—बार लगने वाली प्यास शान्त होती है। ३. कपूर ५ ग्राम, केला की जड़ का रस १० ग्राम, पुदीना के पत्ते का रस १० ग्राम, सौंफ १० ग्राम। सभी को पीसकर ५०० ग्राम पानी में उबालें। चौथाई शेष रहने पर छानकर पिलावें। इससे उल्टी में भी आराम होता है।


अधिक पसीना आना :

उपचार— नाौसादर को पानी में घोलकर वदन में लगायें बाद में पौंछ ले। पसीना आना कम हो जाएगा
कौड़ी का दर्द :

(वह स्थान जहाँ—जहाँ छाती में दोनो तरफ की पसलियाँ आपस में मिलती हैं।) औषधि : १. थोड़ी हींग (हिंगड़ा) को मुनक्का के भीतर लपेटकर पानी से पीले। इससे इस दर्द में शीघ्र आराम हो जाता है। तीन घण्टे पश्चात् दूसरी खुराक भी लें सकते हैं। इससे वायु विकास—गैस ठीक होता है एवं हिचकी भी बन्द हो जाती है। परहेज— मट्ठा, दही खट्टी चाँवल न लें। पथ्य— छिलका वाली मूँग की दाल, गेहूँ की रोटी, दलिया। शिशु रोग —धनवन्तरि विशेषाज्र्क (रोगाज्र्क) १९६२ पत्रिका शिशु रोग परीक्षा हेतु : १.चिकित्सक : बालक को घूरकर नहीं देंखे। २.तुरन्त नग्न न करें इससे डर जाता है। ३.बड़े प्रेस प्यार से मित्र की तरह जाँच करना चाहिए। पूर्व (इतिवृत्त) चूँकि शिशु बोलता नहीं अत: माता से निम्न प्रश्न पूँछे— १. आपके कितने और बच्चे हैं। २. किसी की मृत्यु तो नहीं हुई—हुई तो किस कारण से हुई? ३. यह रोग परिवार में कैसे आया? ४. शिशु के माता/पिता को उपदेश उष्णवात रोग तो नहीं है। ५. कभी कोई गर्भपात तो नहीं हुआ या कराया है? ६. गर्भावस्था में माता का स्वास्थ्य कैसा था। विदेश के प्रसद्धि डा. बालरोग विशेषज्ञ (हघिंसन वार्ट) ७. क्या बालक पूरे माह में उत्पन्न हुआ या कम माह में? ८. प्रसन में कोई परेशानी अथवा ऑपरेशन से हुआ। ९. क्या बालक का रोना उत्साह जनक था या श्वांस में परेशानी थी? १०.दूध ठीक तरह चूसता था या नहीं? ११.कोई मृत बालक उत्पन्न तो नहीं हुआ? बालक सिर का माप आयु विस्तार इन्च में जन्म के समय १३’’ ६ माह में १६’’ १ वर्ष में १८’’ ३ वर्ष में १९’’ ७ वर्ष में २०’’ १२ वर्ष में २१’’ बालकों में विकास एवं भार (वेट) प्रसव के बाद से आयु भार पौन्ड में ऊँचाई इन्चों में प्रसव पश्चात् ७ २०’’ ९ वर्ष में २१ २९’’ २ वर्ष में २८ ३३’’ ३ वर्ष में ३३ ३७’’ ४ वर्ष में ३६ ४०’‘ ५ वर्ष में ४९ ४२’’ ६ वर्ष ४६ ४४’’ ७ वर्ष में ४९ ४६’’ ८.वर्ष में ५५ ४८’’ ९.वर्ष में ६९ ५०’’ १०.वर्ष में ६७ ५२’’ ११.वर्ष में ७३ ५४ १२.वर्ष में ७९ ५६ नोट— स्वभाविक माप है इससे कम होने पर बालक रोग की स्थिति समझी जाती है। विकास क्रम यह है। वास्तविक नाड़ी तालिका १.जन्म के समय नाड़ी सदन १३० २.द्वितीय वर्ष में ११० ३.पाँच वर्ष में १०० ४.आठ वर्ष में ९० ५.बारह वर्ष में ८० तापमान बालकों का तापमान थर्मामीटर से गुदा, कक्षा, वक्षण लेते हैं बड़े बालकों का मुख में से लेना चाहिए। यदि बालक अधिक रोता है तो क्या करें— नम्न जाँच करें— कहीं बालक जो वस्त्र चड्डी, स्वेटर, मोजे आदि पहिने है वह इतने ज्यादा चुस्त तो नहीं है जिससे बालक को तकलीफ होती है। इससे रोता रहता है तो दवा क्या काम करेगी अत: बालकों को लूज (ढ़ीले) वस्त्रादि पहिनाएँ।
बालकों के रूदन निवारण यंत्र

१. इस यंत्र को वृह्मवर्ण भोज पत्र पर लिखना (अष्ट गन्ध से) बालक के गले में बाँधने से लाभ होता है। २. उपरोक्त विधि ही है।
बालकों को भूत बाधा उपचार :

१. नीम की पत्ती, दुर्वा कुटकी को जल में पीसकर उबटन लगाएँ। हल्का गर्म कर स्नान भी कराएँ। २. बाँस का वक्कल, लहसुन, अगर, नीम के पत्ते गौघृत/ शिव पर चढ़े हुए पूâल, मनुष्य के शिर के बाल, राई, अगर, लाख गौघृत से इनको मिलाकर उपले की अग्नि से धूप देवें। ३. अपस्मार—बैहोसी में निम्न उपचार करें— (१) घुड़बच का चूर्ण कपडछन कर ३ से ६ रत्ती शीरा के साथ के साथ देने के लाभ होता है। (२) भूना शुद्ध सुहागा २—२ रत्ती ३—३ घण्टे में सीरा से देने पर लाभ होता है। (३) धूप—आँक के फल, राई, खस मनुष्य के बाल और बिल्ली के बाल और नीम के पत्ते अन्दाज से मिला गाय घीं में मिलाकर धूनी देने से बालग्रह दूर होते हैं। नोट—आगे शिव के पुत्र कार्तिकेय का पौराणिक उदाहरण इसलिए दिया गया है कि जैनागम के सिद्धान्तों के अनुसार सभी धर्मों में धर्म सिद्धान्तों को मान्यता एवं धर्म आचरण न करने से सभी रोग संकट आते हैं। अत: धर्माचरण करना माता/पिता/गुरूओं की सेवा करने से सर्व संकटों से मुक्त होता है पूर्व पाप कर्म झड़ जाते है।
बालग्रह ओर उसके उपचार

(वैद्य नवनीत दास वैष्णव) प्राचीन समय में शिव ने अपने पुत्र कार्तिकेय की रक्षा के लिए बालग्रहों को उत्पन्न किया था। इनकी समस्या सम्बन्ध में शास्त्रगारों मे मत भेद है। भाव प्रकाश में बागभट्ट ने १२ नाम— स्कंद, स्कंदपरमार, शकुनी, रेवती, पूतना (अन्धपूतना शीत पूतना) मुख मण्डिका, नैम्मेय आदि। लक्षण— इससे (१) बच्चा डर जाता है। (२) रोता ही रहता है (३) मुख से झाग आ जाता है। (४) ऊपर की ओर दृष्टि रखता है। (५) दाँतों से ओठों को चबाता है। (६) दूध नहीं पीता है। (७) आवाज बैठ जाती है। (८) नखों से चारों तरफ जमीन कुरेदता है।
ग्रह क्यों पकड़ते हैं।

बालग्रहों की उत्पत्ति के बाद ही उनकी भोजन व्यवस्था की समस्या सामने आई तो इन ग्रहों से शिव ने कहा कि— १. जिस घर में भगवान की पूजन अर्चन वंदन न होता हो, भगवान का कीर्तन न होता हो।

२. देवता, माता, पिता, गुरू, अतिथि का अनादर होता है।

३. जिस घर में प्राणियों की हिंसा होती हो।

४. जहाँ प्राणियों को मनसा, वाचा, कर्मणा, से दु:ख दिया जाता हो।

५. घर में बूड़े माता—पिता, सास, ससुर, से बोलचाल भोजन में भेदभाव किया जाता हो, दुव्र्यवहार किया जाता हो।

६. जिस घर में अपवित्रता रहती हो। उसके घर के बच्चों का भक्षण किया करो, यही तुम्हारी भोजन व्यवस्था है।



नजर लगना (दृष्टि दोष)

विज्ञान बताता है कि प्राणियों में एक विद्य ुतशक्ति विद्यमान है जो अपना प्रभाव दूसरों पर डालकर आश्चर्य जनक चमत्कार दिखाने में समर्थ है यह विद्युत एक प्रकार का आत्म तेज है। -‘‘जिसका आधार स्थूल शरीर और मन है।’’ यह विद्युत प्रभाव जब नेत्रों के माध्यम से प्रयुक्त होता है तो अनेक आश्चर्यजनक प्रभाव दृष्टिगत होते हैं। (१) भेड़ियों की दृष्टि से भेड़ का निचेष्ट हो जाना हैं—

(२) भाग सकने में असमर्थ हो जाना।

(३) बिल्ली की दृष्टि से कबूतर का भागना उड़ने की शक्ति भूल जाना। बिल्ली बाल भी आया है देख उड़ने की शक्ति भूल जाता है।

(४) अजगर की दृष्टि से शिकार का उसके समीप आ जाना।

(५) ‘‘यही मनोविद्युत जब बच्चों पर दूषित मनोभावों के साथ पड़ जाती है एवं अपना प्रभाव दिखाती है तो कहा जाता है है कि नजर लग गई।

(६) नजर का लग जाना दूषित मनोविचारों के साथ मानसिक विद्युत का अहितकर प्रभाव पड़ना ही है।
नजर कैसे लगती है?

मनुष्य जब एकाग्र होकर अधिक ध्यानपूर्वक किसी की ओर दृष्टिपात करता है तो उसको विद्युत का एक भी कारण होकर उसमें प्रभावोत्पादक शक्ति का प्रर्दुभाव हो जाता है उस समय द्रष्टा के शुभा—शुभ भाव दृश्य वस्तु पर गम्भीरता के साथ पड़कर अपना प्रभाव दिखाते हैं। रीठा के छिलकों को अग्नि पर (जलाकर) धूनी देने से नजर एवं भूत बाधा दूर होगी। हँसते खेलते बच्चे पर अब कोई व्यक्ति अधिक मुग्ध होकर या लालायित होकर हसरत भरी निगाह से देखता है तो उस बच्चे पर दूषित प्रभाव पड़ता है बच्चे बीमार पड़ जाते हैं।
लक्षण :

१. नजर लगे बच्चे का तापमान घट जाता है।

२. एक विशेष प्रकार की सुस्ती घेर लेती है।

३. बच्चे आँख बन्द कर निद्रा सी हालत मेें पड़े रहते हैं।

४. दुग्ध पान से अरूचि हो वमन होने लगती है।
विशेष—

१. महात्माओं की जो बच्चों की चाह नहीं रखते उनकी दृष्टि का हितकर प्रभाव बच्चों के लिए होता है। २. नजर उनकी लगती है जो बच्चों के लिए तरसते हैं उनकी दृष्टि (कुदृष्टि मय) होती है। उससे नजर लगती है।
नजर से बचने के उपाय—

नाोट— यह अन्ध विश्वास नहीं इसमें वैज्ञानिक रहस्य भरा है। १. बच्चे के मस्तक पर काजल की बिन्दी लगाना।

२. गले में बाँह में काला धागा बाँधना (काला कड़ा)

३. यह दृष्टि दोष से बचने का सरल उपाय है।
वैज्ञानिक कारण :

१. काली वस्तु में विद्युत को ग्रहण करने की शक्ति सर्व विदित है।

२. आकाशीय विद्युत भी काले आदमी, काले साँप, काले जानवर, काला लोहा (जंग) पर अपना प्रहार करती है।

३. महलों, ऊँची इमारतों, मन्दिर में ऊपर लगी हुई विशेष प्रकार की छड़ (तड़ित चालक) आकाशीय विद्युत से रक्षा करती है।
चिकित्सा—

१. गाय पुच्छ से बच्चे के शरीर का मार्जन करना एवं काली बकरी का दूर पिलाना। (महामंत्र—णमोकार ९ बार पढ़ते हुए गाय की पूँछ से बालक झाड़ते जाओ।)

मंत्र— णमों अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आईरियाणं, णमों उत्तझायाणं, णमो लोऐ सव्व साहूणं।।

(गाय खड़ी रहे इससे कुछ खाने को डाल दें)

२. रीठा को काले धागे में बाँध गले में बाँधने से नजर नहीं लगती।

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