शनिवार, 21 मई 2016

टॉन्सिल (Tonsils)




  टॉन्सिल्स (गलतुण्डिकाएं) लसीकाभ ऊतक के पिण्ड होते हैं और संयोजी ऊतक के एक कैप्सूल में बन्द रहते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं-

1. फेरेन्जियल टॉन्सिल (Pharyngeal tonsil)- यह टॉन्सिल नाक के पीछे ग्रसनी की ऊपरी पश्च भित्ति में स्थित रहता है। इसे लुस्चकाज़ (Luschka’s) टॉन्सिल एवं एडीनॉयड्स (adenoids) भी कहा जाता है।

2. पैलाटाइन टॉन्सिल (Palatine tonsil)- यह टॉन्सिल ग्रसनी के दोनों ओर गलतोरणिका (fauces) के स्तम्भों के बीच (टॉन्सिलर फोसा) में स्थित रहते हैं।

3. लिंग्वल टॉन्सिल (Lingual tonsil)- यह टॉन्सिल जीभ की जड़ पर स्थित रहते हैं।

        टॉन्सिल्स में अभिवाही (afferent) लसीकीय वाहिकाएं नहीं रहती हैं, जिसके कारण यह लिम्फ नोड्स से अलग रहते हैं। टॉन्सिल्स की अपवाही लिम्फेटिक्स (efferent lymphatics) लसीका में अनेकों लसीका कोशिकाओं (लिम्फोसाइट्स) पहुंचाती है। ये कोशिकाएं टॉन्सिल्स को छोड़ने तथा शरीर के दूसरे भागों में हमला करने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं को नष्ट करने में समर्थ होती हैं। टॉन्सिल्स के साथ मिलकर ये लसीकाभ ऊतक का एक बेण्ड बनाती हैं। यह बेण्ड पाचन एवं श्वसन सस्थानों के ऊपरी प्रवेश स्थलों पर स्थित रहता है। यहां ये बाह्य पदार्थ आसानी से प्रवेश कर सकते हैं। ज्यादातर संक्रामक सूक्ष्म जीवाणु ग्रसनी की परत पर लसीका कोशिकाओं (लिम्फोसाइट्स) द्वारा नष्ट कर दिए जाते हैं। टॉन्सिल्स के अंदर प्लाज्मा कोशिकाओं का मौजूद होना एन्टीबॉडीज़ के निर्माण की तरफ इशारा करती है।

        टॉन्सिल्स वैसे तो अक्सर संक्रमण रोकने का कार्य करते हैं, लेकिन ये खुद भी संक्रमित हो सकते हैं। ऐसे मामलों में, कुछ चिकित्सक इनके उच्छेदन (removal) यानि निकलवाने की सलाह देते हैं।

आ रहा है नया मिड डे अखबार, रिपोर्टर-कैमरामैन की है जरूरत

उत्तर प्रदेश के लखनऊ से जल्द ही एक सांध्य दैनिक अखबार शुरू होने जा रहा है, जिसका नाम है ‘द डेली ग्राफ’ (The daily Graph)। बताया जा रहा है कि यह अखबार पहले हिंदी भाषा में लॉन्च किया जाएगा, लेकिन बाद में इसका अंग्रेजी एडिशन भी शुरू होगा। इस अखबार के लॉन्चिंग की तैयारी लगभग पूरी कर ली गई और इसे आगामी 22 मई को लॉन्च किया जा सकता है। अखबार के मैनेजिंग एडिटर मनोज गौतम ने समाचार4मीडिया को ये जानकारी दी।

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शुक्रवार, 13 मई 2016

जानें सेहत के लिए कितना फायदेमंद है चांगेरी का पत्‍ता




    चांगेरी के पत्‍तों को अम्‍लपत्रिका भी कहा जाता है। इसके अलावा इसे त्रिपत्रिका और खट्टी बूटी भी कहा जाता है। इसके पत्‍ते का स्‍वाद खट्टापन लिये होता है। यह बारहमास पाई जाने वाली बूटी है। बड़ी और छोटी दोनों प्रकार की यह घास खेतों में खरपतवार की तरह उगती है। इसके पीले रंग के छोटे छोटे फूल होते हैं। चांगेरी बहुत से औषधीय गुणों से परिपूर्ण होती है। इसका आयुर्वेद में कई बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके पत्तों में कैरोटीन, कैल्शियम और ओक्सालेट्स जैसे तत्‍व भरपूर मात्रा में होते हैं। साथ ही यह विटामिन सी का भी अच्‍छा स्रोत है। लेकिन ध्‍यान रहें अगर आप गठिया और गाउट से संबंधित किसी भी बीमारी से ग्रस्‍त है तो इसके पत्‍तों के सेवन से बचें। आइए इसके स्‍वास्‍थ्‍य लाभों के बारे में जानकारी लेते हैं।

    मस्‍से दूर करने में मददगार

    चांगेरी के पत्तों को मस्से दूर करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। इन पत्तों के एंटी-फंगल, एंटी माइक्रोबियल, और हीलिंग गुणों के कारण यह मस्‍से को आसानी से दूर करता है। मस्‍से होने पर चांगेरी के पत्तों का पेस्ट बनाकर, उसमें पानी की कुछ बूंदें मिला लें। पेस्ट को प्रभावित हिस्से पर लगायें, कुछ मिनटों तक रगड़ें। इस उपाय को दिन में दो बार दोहरायें। अच्छे परिणाम के लिए आप इस पेस्ट में घी भी मिला सकते हैं।

    पेट की समस्‍याओं में लाभकारी

    अपने उत्‍तेजित और एस्ट्रिंजेंट गुणों के कारण यह आहार के प्रति अरुचि में सुधार करता है। चांगेरी के 8-10 पत्तों की कढ़ी बनाकर लेने से पाचनशक्ति (भोजन पचाने की क्रिया) ठीक होकर भूख बढ़ जाती है। पेचिश रोग में चांगेरी के पंचांग के रस में पीपल और उसके रस से चार गुना दही मिलाकर घी डालकर पका लेना चाहिए यह मिश्रण पेचिश के लिए लाभकारी होता है। इसके अलावा 40 से 60 ग्राम चांगेरी के पत्तों के काढ़े में भुनी हुई हींग और मुरब्बा मिलाकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से पेट दर्द ठीक हो जाता है।

    सिरदर्द में फायदेमंद

    अगर आप सिरदर्द की समस्‍या से परेशान है तो चांगेरी के पत्‍ते के दर्द दूर करने वाले गुण आपकी इस समस्‍या को दूर कर सकते हैं। समस्‍या होने पर चांगेरी के रस और प्याज के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर सिर पर लेप करने से सिरदर्द दूर हो जाता है।

    दांतों को मजबूत बनाये

    दांतों के मजबूती के लिए आप चांगेरी, लौंग, हल्‍दी, सेंधा नमक और फिटकरी को बराबर मात्रा में मिलाकर बारीक पाउडर बना लें। फिर इससे नियमित रूप से मंजन करें। इससे मसूड़े मजबूत होंगे। अगर आपके मसूड़ों से पस आ रहा है तो चांगेरी के पत्तों के रस से मसूड़ों की मालिश करें या फिर इसके पत्तों के रस में फिटकरी मिलाकर कुल्ले करें। इसके अलावा चांगेरी के 2-3 पत्तों को मुंह में पान की तरह रखने से मुंह की दुर्गंध मिट जाती है।

    त्‍वचा के लिए भी फायदेमंद

    चांगेरी के पत्‍ते त्‍वचा के लिए भी बहुत लाभकारी है। अगर आप चेहरे पर आने वाली झुर्रियों को दूर करना चाहती हैं तो चांगेरी के पत्‍तों के रस में सफेद चंदन घिसकर नियमित रूप से चेहरे पर लगाये। इस उपाय से झुर्रियां दूर और आपकी त्‍वचा स्‍वस्‍थ हो जायेगी।
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बार-बार डकार आ रही है तो हो सकती ये गंभीर बीमारी



    डकार लेना एक प्राकृति क्रिया है और आमतौर पर ऐसा माना जाता है की हमारे द्वारा खाया गया भोजन हजम हो जाने का डाकार एक संकेत होता है। लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है, दरअसल जब खाना खाते समय या उसके बाद बार-बार डकार लेने का मतलब है कि खाने के साथ ज्यादा मात्रा में हवा निगल ली गई है। जब हम हवा निगल लेते हैं तो उसी तरह वो बाहर भी निकलती है, जिसे हम डकार कहते हैं। यह पेट से गैस के बाहर निकलने का एक प्राकृतिक तरीका है, और अगर पेट से हवा बाहर न निकले तो यह पेट से संबंधित कई समस्याओं को जन्म दे सकती है, जैसे पेट में तेज दर्द या पेट में अफारा आदि। लेकिन अगर  डकार ज्याद आए तो ये कई बार कुछ बीमारियों का संकेत भी हो सकता है। तो चलिये जानें कि कैसे ज्यादा डकार आना हो सकता है किसी गंभीर बीमारी का इशारा -

    ऐरोफेजिया (Aerophagia) होने पर



    अकसर ऐसा होता है कि हम खाना खाते समय ज्यादा हवा पेट में निगल जाते हैं और फिर डकारें आने लगती हैं। इस स्थिति को ही ऐरोफेजिया की स्थिति कहते हैं। कुछ खाते या पीते समय हवा पेट में चले जाने से अकसर ऐरोफेजिया की स्थिति पैदा हो जाती है। इससे समस्या से बचने के लिए छोटे निवाले लें और मुंह बंद करके धीरे-धीरे खाने को चबा कर निगलें।

    पुरानी कब्ज या बदहज़मी की समस्या


    की अध्ययन इस बात को बता चुके हैं कि जिन लोगों को बहुत ज्यादा डकार आती हैं, उनमें से लगभग 30 प्रतिशत लोगों को कब्ज की समस्या होती है। इस समस्या के होने पर खाने में उपयुक्त मात्रा में फाइबर शामिल करें और ईसबगोल का भी सेवन करें। इसके अलावा हाज़मा खराब होना, जिसे हम बदहज़मी कहते हैं, की वजह से भी ज्यादा डकार आने की समस्या होती है। ऐसे में डकार आने के साथ पेट में दर्द भी हो सकता है।

    डिप्रेशन का संकेत


    तनाव कई समस्याओं का अकेला कराण होता है। तनाव या किसी बड़े भावनात्मक परिवर्तन का प्रभाव हमारे पेट पर भी पड़ता है। कई अध्ययनों में भी ये बात सामने आई है कि लगभग 65 प्रतिशत मामलों में मूड में त्वरित व बड़ा बदलाव या तनाव का बढ़ना ज्यादा डकार आने का कारण बनता है।

    गैस्ट्रोसोफेजिअल रिफ्लक्स डिज़ीज़



    कई बार गैस्ट्रोसोफेजिअल रिफ्लक्स डिज़ीज़ (जीइआरडी) या सीने में तेजड जलन के कारण भी ज्यादा डकार आती हैं। इस बीमारी में आंतों में जलन होने लगती है और आहार नलिका (फूड पाइप) में एसिड बनने लगता है। इसमेंबचाव के लिए खानपान और जीवनशैली में कई सकारात्मक व स्वस्थ बदलाव करने की जरूरत होती है।

    इरिटेबल बाउल सिंड्रोम या पेप्टिक अल्सर

    इरिटेबल बाउल सिंड्रोम होने पर रोगी को कब्ज, पेट दर्द, मरोड़ व दस्त आदि हो सकते हैं। साथ ही इस रोग का एक बड़ा लक्षण बहुत ज्यादा डकारआना भी होता है। दुर्भाग्यवश इरिटेबल बाउल सिंड्रोम का कोई पक्का इलाज अभी तक मौजूद नहीं है। इस समस्या के अलावा पेप्टिक अल्सर के कारण भी ज्यादा डकारे आ सकती हैँ। दरअसल जब आपके पाचन तंत्र को पेट की गैस से और एच.पायलोरी नामक बैक्टीरिया से क्षति पहुंचती है तो डकार आने लगती हैं।
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पैर का सोना why are our legs sleep



पैर का सोना, हममें से लगभग सभी ने कभी न कभी जरूर अनुभव किया होगा। पैर का सोना बड़ा ही कष्टदायक होता है क्योंकि ऐसे में फिर आपका कहीं मन नहीं लगता। लेकिन क्‍या आप पैर के सोने के असली कारण के बारे में जानते हैं, अगर नहीं तो यह आर्टिकल आपके लिए मददगार हो सकता है।
पैर सोने के कारण
    कुछ लोगों का मानना है कि पैरे‍स्‍थेसिया में पैरों के सोने से उसमें भारी, सुस्‍त, झुनझुनाहट और अजीब सी पिन या सुई चुभने जैसा महसूस होता है- ऐसा पैरों में पर्याप्‍त रूप से ब्‍लड के न पहुंचने के कारण होता है। वास्‍तव में, आपके पैर तंत्रिकाओं (नर्वस) के कारण सोते हैं। नर्वस आपके शरीर में चलने वाले छोटे तारों की तरह होते है। नर्वस आगे ओर पीछे आपके ब्रेन और शरीर के कई हिस्‍सों के बीच संदेश ले जाने का काम करता है।
    अगर आप लंबे समय के लिए अपने पैर के सहारे बैठते हैं तो उस हिस्‍से की नर्वस पर दबाव पड़ता हैं। ऐसा शरीर के अन्‍य भागों में भी हो सकता है। लोग समय-समय पर पैर, हाथ और बाजू ऐसा अनुभव करते हैं। यानी शरीर का कोई अंग यदि किसी दबाव में ज्यादा समय तक रहता है, तो वह सुन्न हो जाता है। वस्तुतः यह दबाव हाथ या पैर की नर्वस पर पड़ता है।
    ये नर्वस कोशीय फाइबर से बनी होती है और प्रत्येक एक कोशीय फाइबर अलग-अलग संवेदनाओं को मस्तिष्क तक पहुंचाने का कार्य करता है। इन फाइबरों की मोटाई भी कम-ज्यादा होती है। इसका कारण माइलिन नामक श्वेत रंग के पदार्थ द्वारा बनाई गई झिल्ली है। इन पर दबाव पड़ने से ब्रेन तक नसों द्वारा पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन और रक्त का संचरण नहीं हो पाता है और ब्रेन तक उस अंग के बारे में पहुंचने वाली जानकारी रक्त और आक्सीजन के अभाव में अवरूद्ध हो जाती है। इस कारण वहां संवेदना महसूस नहीं हो पाती और वह अंग सो हो जाता है। जब उस अंग से दबाव हट जाता है तो रक्त और आक्सीजन का संचरण नियमित हो जाने से वह अंग पुनः संवेदनशील हो जाता है।
प्रत्येक व्यक्ति को समय-समय पर इन भावनाओं का अनुभव होता है, और ये पूरी तरह से सामान्य हैं। इससे आपके शरीर को चोट नहीं पहुंचती, लेकिन यकीनन कुछ समय के लिए आपको अजीब महसूस हो सकता है, जब तक कि आपका ब्रेन और शरीर दोबारा बातचीत शुरू नहीं कर देता।

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