सोमवार, 30 मई 2016

गर्मियों में सौंदर्य के लिए इन्हें आजमाएं herbal Beauty health tips


गर्मियों में सौंदर्य के लिए इन्हें आजमाएं

 डॉ दीपक आचार्य        



सौंदर्य प्रसाधन के तौर पर जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल को सदियों से सराहा गया है और परंपरागत रूप से अनेक हर्बल-नुस्खों के जरिए कई तरह के सौंदर्य प्रसाधनों को तैयार कर हम सब अपनी सेहत की सुरक्षा बेहतर तरीके से कर सकते हैं। तपतपाती गर्मी के आने की खनक हो चुकी है और इन गर्मियों में त्वचा का झुलसना, बेरंग होना और सन टैन जैसी समस्याएं आपका इंतज़ार करेंगी। घातक कृत्रिम रसायनोंयुक्त दवाओं और क्रीम की तरफ कूच करने के बजाए इस सीजन में जरा इन देशी नुस्खों को आजमाकर देखें। हवा में तैरते हुए प्रदूषक कणों और तपतपाती धूप की मार चेहरे की त्वचा को झुलसा के रख देती है और यह चेहरे पर झुर्रियां बनने की वजहें बन सकती है लेकिन कुछ पारंपरिक हर्बल नुस्खों को अपनाकर इस समस्या से काफी हद तक छुटकारा मिल सकता है।

    सेब को कुचल लिया जाए और इसमें कुछ मात्रा कच्चे दूध की मिलाकर चेहरे पर लगाया जाए। इसके सूखने पर चेहरा धो लें। सप्ताह में कम से कम चार बार ऐसा करने से काफी फायदा होता है।
    दो टमाटर को लेकर कुचला जाए और इसमें तीन चम्मच दही और दो चम्मच जौ का आटा मिला दिया जाए। चेहरे पर इस मिश्रण को कम से कम 20 मिनट के लिए लगाकर रखा जाए तो यह त्वचा के सिकुड़न में मदद करता है जिससे झुर्रियां कम होने लगती हैं और यह धूप की मार भी कम करता है। इस उपाय को सप्ताह में 2 बार कम से कम एक माह तक उपयोग में लाना चाहिए, फायदा होता है।
    रात सोने जाने से पहले संतरे के दो चम्मच रस में दो चम्मच शहद मिलाकर चेहरे पर 20 मिनट तक लगाए रखना चाहिए। बाद में साफ कपास को दूध में डुबोकर चेहरे की सफाई करनी चाहिए। ऐसा प्रतिदिन करा जाए तो सकारात्मक परिणाम जल्द ही दिखने लगते हैं।
    पारंपरिक हर्बल वैद्यों की जानकारी के अनुसार 1/2 कप पत्ता गोभी का रस तैयार किया जाए और इसमें आधा चम्मच दही और एक चम्मच शहद मिलाकर चेहरे पर लगाया जाए। जब यह सूख जाए तो गुनगुने पानी से इसे धो लिया जाए। ऐसा करने से चेहरे की त्वचा में प्राकृतिक रूप से खिंचाव आता है और यह झुर्रियों को दूर करने में मदद करता है।
    चावल के आटे में थोड़ा सा दूध और गुलाब जल मिलाकर पेस्ट तैयार कर लिया जाए और चेहरे पर हल्का-हल्का मालिश किया जाए। कुछ देर बाद इसे गुनगुने पानी से साफ भी कर लिया जाए। सप्ताह में कम से कम तीन बार इस प्रक्रिया को दोहराने से सन टैन होने पर काफी फर्क महसूस किया जा सकता है।


    केला त्वचा के लिए एक अच्छा नमी कारक (मॉइश्चराइज़र) उपाय है। पके हुए केले को अच्छी तरह से मैश कर लिया जाए और चेहरे पर फेसपैक की तरह लगा दिया जाए, करीब 15 मिनट बाद इसे धो लिया जाए। चेहरा धुल जाने के बाद रक्त चंदन का लेप भी लगाया जाए, माना जाता है कि ऐसा करने से चेहरे की त्वचा में जबरदस्त निखार आता है और लू के थपेड़ों का असर कम हो जाता है।
    पान के एक पत्ते को कुचल लिया जाए और इसमें एक चम्मच नारियल का तेल मिला लिया जाए। इसे चेहरे या शरीर के किसी भी हिस्से पर धूप की वजह से बने दाग, काले निशान या धब्बों पर लगाकर कुछ देर रखा जाए और फिर धो लिया जाए। ऐसा सप्ताह में कम से कम 2 से 3 बार किया जाए तो तीन महीने के भीतर निशान मिट सकते हैं।
    एक आलू को बारीक पीस लिया जाए और इसमें 2-3 चम्मच कच्चा दूध मिला लिया जाए ताकि पेस्ट तैयार हो जाए। इस पेस्ट को प्रतिदिन सुबह शाम कुछ देर के लिए काले निशानों पर लगाकर रखा जाए और फिर धो लिया जाए, शीघ्र ही निशान दूर हो जाएंगे।
    कुन्दरू के फलों में कैरोटीन प्रचुरता से पाया जाता है जो विटामिन ए का दूत कहलाता है। कुन्दरू में कैरोटीन के अलावा प्रोटीन, फाइबर और कैल्शियम जैसे महत्वपूर्ण तत्व भी पाए जाते हैं। गुजरात के डाँगी आदिवासियों के बीच कुंदरू की सब्जी बड़ी प्रचलित है। इन आदिवासियों के अनुसार इस फल की अधकच्ची सब्जी लगातार कुछ दिनों तक खाने से आंखों की रोशनी बेहतर होती है। त्वचा की चमक और तेजपन बनाए रखने के लिए 2-3 कच्चे कुंदरुओं को प्रतिदिन चबाना लाभदायक होता है।


    औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है जिससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार तुलसी के पत्तों को त्वचा पर रगड़ दिया जाए तो त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण में आराम मिलता है। गर्मियों में घमौरियों के इलाज के लिए डाँग- गुजरात के आदिवासी संतरे के छिलकों को छाँव में सुखाकर पाउडर बना लेते है और इसमें थोड़ा तुलसी का पानी और गुलाबजल मिलाकर शरीर पर लगाते है, ऐसा करने से तुरंत आराम मिलता है।
    चेहरे की त्वचा को साफ पानी से धो लिया जाए और इस पर कपास की मदद से नींबू का रस लगाया जाए तो चेहरे के छिद्रों पर तेल और मृत कोशिकाओं के जमावड़े को हटाया जा सकता है और त्वचा खूबसूरत भी दिखाई देती है।

    कुछ आदिवासी हर्बल जानकार चेहरे पर गर्म पानी की भाप लेने की सलाह देते हैं। इनके अनुसार एक चौड़े बर्तन में गर्म खौलता पानी डाल दिया जाए और पूरे सिर पर तौलिया डालकर खौलते पानी से निकल रही भाप को चेहरे के संपर्क में लाया जाए जिससे छिद्रों में उपस्थित गंदगी और तेल बाहर निकल आते है। कुछ देर बाद चेहरे पर कपास को हल्का-हल्का रगड़कर चेहरा साफ़ कर लिया जाए और फिर चेहरे पर नींबू रस लगाया जाए। ऐसा सप्ताह में सिर्फ़ एक बार किया जाना काफी है। मुहांसे ठीक हो जाते है और चेहरे से दाग-धब्बे भी मिट जाते हैं।



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हर्बल नुस्खा (herbal health tips)



 डॉ दीपक आचार्य


 सिर्फ घास नहीं औषधि भी है दूब

हिन्दू धर्म शास्त्रों में दूब घास को बेहद पवित्र माना गया है। हर शुभ काम में इसका इस्तेमाल होता है। दूब घास खेल के मैदान, मंदिर परिसर, बाग-बागीचों और खेत खलिहानों में पाई जाती है। आदिवासियों के अनुसार इसका प्रतिदिन सेवन शारीरिक स्फूर्ति प्रदान करता है और शरीर को थकान महसूस नहीं होती है।
वैसे आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी दूब घास एक शक्तिवर्द्धक औषधि है क्योंकि इसमें ग्लाइकोसाइड, अल्केलाइड, विटामिन-ए  विटामिन-सी की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। इसका लेप मस्तक पर लगाने से नकसीर ठीक होती है। पातालकोट में आदिवासी नाक से खून निकलने पर ताजी और हरी दूब का रस 2-2 बूंद नाक में डालते हैं जिससे नाक से खून आना बंद हो जाता है।


लू से बचना है तो शहतूत खाइये

इन दिनों शहतूत के फल खूब देखे जा रहे हैं। पातालकोट ही नहीं, बल्कि पूरे देश में इसके फलने का मौसम जारी है। इसके खास औषधीय गुण हैं और खासतौर से गर्मियों में लू से निपटने के लिए इसका खूब इस्तेमाल किया जाता है।
पातालकोट के आदिवासी गर्मी के दिनों में शहतूत के फलों के रस में चीनी मिलाकर पीने की सलाह देते हैं। उनके अनुसार शहतूत की तासीर ठंडी होती है जिसके कारण गर्मी में होने वाले सन स्ट्रोक से बचाव होता है। शहतूत का रस हृदय रोगियों के लिए भी लाभदायक है। गर्मियों में बार-बार प्यास लगने की शिकायत होने पर इसके फलों को खाने से प्यास शांत हो जाती है।

मसूड़ों से खून आए तो आजमाएं ये नुस्खा

मसूडों से खून आ रहा? इसे रोकने के नुस्खे के बारे में बता रहे हैं हमारे हर्बल आचार्य डॉ. दीपक आचार्य। अनार छीलने के बाद छिलकों को फेंके नहीं, इन्हें बारीक काटकर मिक्सर में थोड़े पानी के साथ डालकर पीस लें। बाद में इसे मुंह में डालकर कुछ देर कुल्ला करें और थूक दें, दिन में दो तीन बार ऐसा करने से मसूड़ों और दांतों पर किसी तरह के सूक्ष्मजीवी संक्रमण हो तो, काफी हद तक आराम मिल जाता है।
जिन्हें मसूड़ों से खून निकलने की शिकायत हो उन्हें यह फार्मुला बेहद फायदा करेगा। सैकड़ों साल से आजमाए जाने वाले इस आदिवासी फार्मुलों के असर को वैज्ञानिक परिक्षण के तौर पर सिद्ध किया जा चुका है। स्ट्रेप्टोकोकस मिटिस और स्ट्रेप्टोकोकस संगस नामक बैक्टिरिया की वजह से ही जिंजिवायटिस और कई अन्य मुख रोग होते हैं और इनकी वृद्धि को रोकने के लिए अनार के छिलके बेहद असरकारक होते हैं। आजमाएं जरूर इस नुस्खे को, असर दिखकर रहेगा, दावा है मेरा।

अर्टिकेरिया में कारगर अदरक

आदिवासी अंचलों में अर्टिकेरिया नामक एलर्जी (शरीर पर लाल चकत्तों का बनना) जो कि एक इंफ्लेमेशन है, से निपटने के लिए ताज़े अदरक को कुचलकर रस तैयार किया जाता है और इसका लेप सारे शरीर पर दिन में कम से कम 4 बार किया जाता है।
जानकारों का मानना है कि ऐसा लगातार करने से आर्टिकेरिया की परेशानी से आराम मिल जाता है। कुछ इलाकों में आदिवासी महुए की फलियों से निकाले गए तेल को शरीर पर लगाते  हैं। इनका मानना है कि ये तेल शरीर के बाहरी हिस्सों पर हुयी किसी भी तरह की एलर्जी को दूर करने में बेहद कारगर साबित होता है।

चेहरे से दाग मिटाये पान

पान के एक पत्ते को कुचल लिया जाए और इसमें एक चम्मच नारियल का तेल मिला लिया जाए। इसे चेहरे या शरीर के किसी भी हिस्से पर बने दाग, काले निशान या धब्बों पर लगाकर कुछ देर रखा जाए और फिर धो लिया जाए। ऐसा सप्ताह में कम से कम 2 से 3 बार किया जाए तो 3 महीने के भीतर निशान मिट सकते हैं।

मासिक धर्म की समस्याओं के लिए ज्वार

 मासिक धर्म से जुड़े विकारों के समाधान के लिए आदिवासी ज्वार के भुट्टे को जलाकर छानते हैं और राख संग्रहित कर लेते हैं। इस राख की ३ ग्राम मात्रा लेकर सुबह खाली पेट मासिक-धर्म चालू होने से लगभग एक सप्ताह पहले देना शुरु करते है। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बंद करवा दिया जाता है, इनके अनुसार इससे मासिक-धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।




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बड़े काम की इमली (Tamarind)

 बड़े काम की इमली

इमली का पेड़ सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके अलावा यह अमेरिका, अफ्रीका और कई एशियाई देशों में पाया जाता है। इमली के पेड़ बहुत बड़े होते हैं। आठ वर्ष के बाद इमली का पेड़ फल देने लगता है। फरवरी और मार्च के महीनों में इमली पक जाती है। इमली शाक (सब्जी), दाल, चटनी वगैरह कई चीजों में डाली जाती है।

इमली की लकड़ी बहुत मजबूत होती है। इस कारण लोग इसकी लकड़ी से कुल्हाड़ी के दस्ते भी बनाते हैं। इसे इंडियन डेट भी कहा जाता था क्योंकि यह फल देखने में खजूर के सूखे गूदे की तरह लगता था। चटखारेदार और मुंह में पानी लाने वाली इमली स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है। इसमें कैरोटीन, विटामिन सी और बी पाया जाता है। पित्त विकार, पीलिया और सर्दी के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है। इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इससे लाभ मिलता है। इमली के पानी के गरारे गले की खराश के इलाज में लाभकारी हैं। इमली को पानी में उबाल कर गरारा कर सकते हैं या इसकी सूखी पत्तियों का पाउडर पानी में मिला कर उपयोग में लाया जा सकता है।

गर्मी में बाहर निकलने से शरीर में डी-हाइड्रेशन हो जाता है या फिर लू लग जाती है। इससे बचने के लिए लू के समय बाहर निकलने पर इमली का शर्बत पी लेने पर लू की आशंका नहीं रहती। साथ ही धूप में रहने से पैदा हुए सिरदर्द को भी दूर करता है। इमली के कुछ हानिकारक प्रभाव भी हैं जैसे कच्ची इमली भारी, गर्म और अधिक खट्टी होती है जिन्हें इमली अनुकूल नहीं होती है, उन्हें पकी इमली से भी दान्तों का खट्टा होना, सिर और जबड़े में दर्द, सांस की तकलीफ, खांसी और बुखार जैसे दुष्परिणाम हो सकते हैं।

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आज का नुस्खा (Helth Tips)

 मोटापा भगाए चाय

 डॉ दीपक आचार्य

इन आदिवासियों के अनुसार ज्यादा देर तक उबली चाय का सेवन किया जाए तो मोटापा कम होता है और वैज्ञानिक तथ्य भी यही कहते है कि चाय को ज्यादा देर तक उबाला जाए तो टैनिन रसायन निकल आता है और यह रसायन पेट की भीतरी दीवार पर जमा हो भूख को मार देता है।

दिल की बीमारी में रामबाण है तुलसी

दिल की बीमारी में तुलसी एक वरदान है, क्योंकि ये खून में कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करती है। जिन्हें हार्टअटैक हुआ हो, उन्हें तुलसी के रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए। तुलसी और हल्दी के पानी का सेवन करने से शरीर में कोलेस्ट्राल की मात्रा नियंत्रित रहती है और कोई भी इसका सेवन कर सकता है।


गाउट में कारगर अदरक

गाउट और पुराने गठिया रोग में अदरक एक अत्यन्त लाभदायक औषधि है। अदरक लगभग (5 ग्राम) और अरंडी का तेल (आधा चम्मच) लेकर दो कप पानी में उबाला जाए ताकि यह आधा शेष रह जाए। प्रतिदिन रात्रि को इस द्रव का सेवन लगातार किया जाए तो धीमें-धीमें तकलीफ़ में आराम मिलना शुरू हो जाता है। आदिवासियों का मानना है कि ऐसा लगातार 3 माह तक किया जाए तो पुराने से पुराना जोड़ दर्द भी छू-मंतर हो जाता है।


अरंडी के तेल से बढ़ाएं नाखूनों की चमक

अरंडी के तेल को नाखूनों की सतह पर कुछ देर हल्के-हल्के मालिश करिए, प्रतिदिन सोने से पहले ऐसा किया जाए तो नाखूनों में जबरदस्त खूबसूरती और चमक आ जाती है। पातालकोट मध्यप्रदेश के आदिवासियों के अनुसार ऐसा करने से नाखूनों पर बन आए सफ़ेद निशान या धब्बे (ल्युकोनायसिया) भी मिट जाते हैं।

चींटियों को भगाने का हर्बल नुस्खा आज़माइये

अक्सर शक्कर के डिब्बे और चावल के बोरों या चावल इकठ्ठा किए बर्तनों में चींटियों को घूमते फिरते देखा जा सकता है और इससे हम सभी त्रस्त हो जाते हैं। करीब 2-4 लौंग को इन डिब्बों में डाल दीजिए और फिर देखिए चींटियां किस तरह से नदारद होती हैं। अक्सर आदिवासी खाना पकाने बाद आस-पास 1 या 2 लौंग को बर्तनों के पास रख देते हैं। मज़ाल है आस-पास कोई चींटी भटके।


डार्क सर्कल से यूं पाएं छुटकारा

कच्चे आलू के गोल टुकड़ों को 15 से 20 मिनट तक आंखों के ऊपर रख दिया जाए और बाद में ठंडे पानी से धो लिया जाए तो बहुत फायदा करता है। टमाटर के 1 चम्मच रस के साथ 1 चम्मच नींबू रस मिलाया जाए और डार्क सर्कल्स वाले हिस्सों पर लगाया जाए जाए करीब 15 से 25 मिनट के बाद इसे साफ पानी से धो लिया जाए। ऐसा रोज़ाना रात सोने से पहले से किया जाए तो जल्द ही डार्क सर्कल्स छू मंतर हो सकते हैं।

चेहरे की झुर्रियां मिटाए सेब


सेब के एक चौथाई हिस्से को कुचल लिया जाए और इसमें कुछ मात्रा में कच्चा दूध (10 मि.ली.) मिला लिया जाए और रोज चेहरे पर लगाया जाए। जब ये सूख जाए तो इसे धो लिया जाना चाहिए। हफ्ते में कम से कम 4 बार ऐसा करने से चेहरे की झुर्रियां दूर होने लगती हैं।


कई मर्जों का एक इलाज लहसून

नमक और लहसून का सीधा सेवन खून को शुद्ध करता है। जिन्हें रक्त में प्लेटलेट्स की कमी होती है उन्हें भी नमक और लहसून की समान मात्रा सेवन करनी चाहिए। लहसून के एंटीबैक्टीरियल गुणों को आधुनिक विज्ञान भी मानता है, लहसून का सेवन बैक्टीरिया जनित रोगों, दस्त, घावों, सर्दी-खांसी और बुखार में बहुत फायदेमंद है। लहसून की 2 कच्ची कलियां सुबह खाली पेट चबाने के आधे घंटे बाद मुलेठी के चूर्ण आधा चम्मच सेवन दो महीने तक लगातार करने से दमा जैसी घातक बीमारी से हमेशा के लिए छुट्टी मिल जाती है।

प्याज़ है बड़े काम की सब्ज़ी

प्याज़ में ग्लुटॉमिन, अर्जीनाइन, सिस्टन, सेपोनिन और शर्करा पायी जाती है। प्याज के बीजों को सिरका में पीसकर त्वचा पर लगाने से दाद-खाज और खुजली में अतिशीघ्र आराम मिलता है। प्याज के रस को सरसों के तेल में मिलाकर जोड़ों पर मालिश करने से आमवात, जोड़ दर्द में आराम मिलता है। वृद्धों और बच्चों को ज्यादा कफ हो जाने की दशा में प्याज के रस में मिश्री मिलाकर चटाने से फायदा मिलता है। प्याज के रस और नमक का मिश्रण मसूड़ों की सूजन और दांत दर्द को कम करता है।

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खइके पान बंगलुरू वाला

 खइके पान बंगलुरू वाला

 वसंती हरिप्रकाश


उस मीटिंग के वक्त मेरे लिए खुद को संभाल पाना बड़ा मुश्किल सा हो रहा था, मेरे लिए एक जगह पर सीधा खड़ा होना या बैठ पाना भी कठिन हो रहा था। यूं लगा जैसे मेरे पेट की अतडि़यां तक बाहर निकल आएंगी, वो ऐसा पेट दर्द था जिसे मैनें शायद इससे पहले कभी इतना महसूस नहीं किया था।अचानक उल्टियों के होने का आभास और फिर पेट में अजीब सी मरोड़ें, ये सब मेरे लिए बिल्कुल नया, पहली बार होने वाला और बहुत दर्दनाक था।

मुझे चलते रहना पसंद है, चाहे घरेलू काम-काज या फिर घर की चार दीवारियों से बाहर का काम या किसी खास मिशन पर यात्राएं, शरीर के चलते रहने में स्वास्थ्य संबंधी गम्भीर दिक्कतों का सामना कम ही होता है और जिस तरह की मेरी अपनी घुमक्कड़ और व्यस्त जीवनशैली है उसमें यदाकदा सरदर्द होना आम बात है, लेकिन दर्दनिवारक उपायों और अच्छी नींद के बाद ये भी छू मंतर भी हो जाते रहे हैं लेकिन, ये पेट दर्द असहनीय था, ये मेरी समझ से बाहर था कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है?

मीटिंग के दौरान नजदीक बैठे एक मित्र ने फटाफट मुझे एक नजदीकी क्लीनिक ले जाने की व्यवस्था कर दी। डॉक्टर ने परीक्षण कर मुझे एक इंजेक्शन दे दिया। इससे पहले कि हालात सुधर पाते, वो तूफान फिर जोर-शोर से अवतरित हुआ, इस बार दर्द पिछली बार की तुलना में ज्यादा भयंकर और दर्दकारक था और इस दर्द के साथ 7 से 8 बार उल्टियों का होना मेरी जान लिए जा रहा था। इस बार घर के नजदीक एक अन्य डॉक्टर के पास मुझे ले जाया गया। डॉक्टर ने एक बार फिर दर्द निवारक और एंटीबॉयोटिक गोलियों का गुलदस्ता भेंट कर दिया लेकिन मैंने ठान ली कि हालात भले बिगड़ जाएं लेकिन मुझे एंटीबॉयोटिक्स का कोर्स नहीं लेना है। मेरा हमेशा से मानना रहा है कि यथासंभव एंटिबॉयोटिक्स से दूर रहना ही बड़ी समझदारी है। शरीर को प्राकृतिक तौर तरीकों से ठीक किया जाना लंबे समय तक फायदा देता है। आजकल डॉक्टर्स के द्वारा रोगी को देखते ही एंटिबॉयोटिक्स दे देना चिकित्सा का सबसे पहला पायदान होता है जो कि घातक है। एंटिबॉयोटिक्स शरीर में पहुंचकर हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता की बैंड बजा देते हैं।

गाँव कनेक्शन के प्रचलित स्तंभकार “हर्बल आचार्य” डॉ दीपक आचार्य के एक लेख की बातें याद है मुझे जिसमें उन्होंने बताया था कि रोगोपचार की विधि तार्किक और न्यायसंगत नहीं होगी तो समस्याएं कम होने के बजाए दुगुनी ही होती चली जाएंगी। रसायनों और कृत्रिम रूप से तैयार आधुनिक औषधियों की शरण में जाकर त्वरित उपचार तो हो सकता है लेकिन पूर्णरूपेण नहीं। 

बस, मुझे हर्बल उपचार ही करना था।

बैंगलूरू के प्रख्यात वनस्पतिशास्त्री डॉ. बालकृष्णन नायर और उनके साथी आयुर्वेद, सिद्धा, यूनानी और कई अन्य हिन्दुस्तानी चिकित्सा पद्धितियों और पाश्चात्य शैली के औषधीय विज्ञान के साथ रोगनिवारण के नए आयामों की खोज में लगे हुए हैं। मुझे डॉ नायर की एक सलाह याद आई और इस सलाह का अमलीकरण अगली सुबह हो गया। मैनें अपने किचन गार्डन से पान की तीन पत्तियों को तोड़ा, उन्हें साफ धोया और उसकी डंठल अलग कर दी। पानी की पत्तियों पर तीन काली मिर्च और चुटकी भरी नमक डालकर, इसे मोड़कर मुंह में डाल लिया। इसे मुंह में रखकर आहिस्ता-आहिस्ता चबाना होता है ताकि धीमे-धीमे पान की पत्तियों और कालीमिर्च का रस पेट तक पहुंचे और अपना असर दिखाना शुरु करे। इसके अलावा पानी की शारीरिक पूर्ति बनाए रखने के लिए नारियल पानी, छाछ और पानी का सेवन पूरे दिन भर करती रही। दर्द से बचे रहने के लिए एक गोली दर्दनिवारक की भी बतौर सावधानी ले ली। मुझे त्वरित आराम मिला, मैं दर्द से खुद को आज़ाद महसूस कर पा रही थी।

डॉ नायर को फोन लगाकर इस पूरे केस की जानकारी भी दी। उनके अनुसार “ये फार्मूला बहुत असरकारक है, चाहे शरीर में एलर्जी हो या कोई जहरीला दुष्प्रभाव, ये दुष्प्रभाव ना सिर्फ खाना-पान की गड़बड़ी वाले हो सकते हैं बल्कि सर्पदंश में भी यही नुस्खा काफी कारगर है। इस फार्मूले का सेवन कम से कम तीन दिन किए जाने की सलाह डॉ नायर देते हैं। बातों बातों में डॉ नायर ने यह भी बताया कि अनार के छिलकों को भी नहीं फेंका जाना चाहिए। छिलकों को सुखा लें, पाउडर तैयार करें और जब भी पेट दर्द की शिकायत हो, एक चम्मच चूर्ण को 100 मिली छाछ के साथ लें तो दर्द गायब हो जाता है।

हर्बल मेडिसिन्स को किसी अन्य तरह के ट्रीटमेंट चलने की दशा में एक घंटे अंतराल के बाद ही लेने की सलाह एक्सपर्ट्स देते हैं। डॉ. पशुओं पर ज्यादा डोज़ के साथ इसी नुस्खे को आजमा चुके हैं और परिणाम काफी सकारात्मक हैं।


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कॉर्न सिल्क का शरबत




सेहत की रसोई कॉलम में हम अपने पाठकों के लिए लेकर आते हैं एक से बढ़कर एक पारंपरिक व्यंजनों से जुड़ी कई नायाब जानकारियां और इन व्यंजनों के औषधीय गुणों की जानकारी देते हैं हमारे ‘हर्बल आचार्य’ डॉ दीपक आचार्य। सेहत और किचन का तड़का हर सप्ताह एक खास व्यंजन के साथ हम परोसते हैं, अपने सभी पाठकों के लिए। सेहत की रसोई यानि बेहतर सेहत आपके बिल्कुल करीब। हमारे बुजुर्गों का हमेशा मानना रहा है कि सेहत दुरुस्ती के सबसे अच्छे उपाय हमारी रसोई में ही होते हैं। इस कॉलम के जरिये हमारा प्रयास है कि आपको आपकी किचन में ही सेहतमंद बने रहने के व्यंजन से रूबरू करवाया जाए। सेहत की रसोई में इस सप्ताह हमारे मास्टरशेफ भैरव सिंह राजपूत पाठकों के लिए ला रहे हैं ‘कॉर्न सिल्क का शरबत’

आवश्यक सामग्री

    ताजे हरे मक्के- 2
    तुलसी- 4 पत्ते
    नींबू- 1
    काला नमक- स्वादानुसार
    मिसरी- 20 ग्राम
    पानी- 500 मिली

विधि

ताजे हरे २ मक्के लेकर इनके सिल्क कॉर्न (चमकती बालियां या रेशमी बाल जो एक छोर पर दिखाई देते हैं) निकाल लें। इन सिल्क कॉर्न को साफ धो लिया जाए। एक गोल घेरे वाले गहरे बर्तन में आधा लीटर पानी लें और उसमें इन सिल्क कॉर्न को डाल दें। इन्हें करीब 10 मिनट तक उबलने दिया जाए। जब ये अच्छी तरह से उबल जाए तो इसे एक किनारे ठंडा होने के लिए रख दिया जाए। करीब एक घंटे बाद इसे छान लें। एक नींबू से रस निकालें और रस को इस पानी में डाल दें। इसी में मिसरी और काला नमक भी डाल दें। बाद में इसे रेफ्रिजरेट कर दें। जब यह अच्छी तरह से ठंडा हो जाए तो कांच के गिलास में खाली कर दें। सजाने के लिए इसपर तुलसी की पत्तियां डाल दें। इस तरह तैयार हो जाएगा २ लोगों के लिए कूल कूल कॉर्न सिल्क शरबत। अब इसके गुणों की बात तो हमारे हर्बल आचार्य ही करेंगे।

क्या कहते हैं हर्बल आचार्य

मक्का कमाल की औषधि है और इसके हर अंग अपने खास गुणों की वजह से परंपरागत हर्बल ज्ञान का हिस्सा हैं। शरीर में यूरिक एसिड की अधिकता होने पर जोड़ों पर जबरदस्त दर्द का अनुभव होता है। गाऊट, आर्थरायटिस, सायटिका, न्युरायटिस और यकृत की कमजोरी होना इसका प्रमुख लक्षण है। सिल्क कॉर्न यानि मक्के की बालियों का काढ़ा (एक कप) प्रतिदिन लेने से यह टॉक्सिन बाईंडर की तरह कार्य करता है और शरीर से अधिक मात्रा में बने यूरिक एसिड को बाहर निकाल फेंकता है। वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित इस नुस्खे से मैनें काफी लोगों को फायदा पहुंचते देखा है। मास्टरशेफ की ये रेसिपी गर्मियों में आपको कूल कूल तो करेगी लेकिन आपकी सेहत को दुरुस्त करने में कमी नहीं छोड़ेगी। नींबू इस रेसिपी में चार चांद लगाता है और आपके शरीर के लिए आवश्यक विटामिन सी की पूर्ति भी करता है। तुलसी तनाव दूर करने में मददगार होती है। एक बात बताना तो भूला जा रहा था, मक्के के दानों को उबालकर, नींबू रस और काला नमक डालकर खाना मत भूलिएगा। अब देरी किस बात की? मजे से स्वाद लें इस रेसिपी का और हमारी सेहत कनेक्शन टीम को शुक्रिया जरूर कहें।
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गर्मी में हो सकता है टायफाइड



लखनऊ। टायफाइड एक ऐसी बीमारी है, जिसमें पहले रोगी को तेज बुखार आता है और वो लगातार कई दिनों तक बना रहता है। यह बुखार कम-ज्यादा होता रहता है, लेकिन कभी सामान्य नहीं होता। टायफाइड का इन्फेक्शन होने के एक सप्ताह बाद रोग के लक्षण नजर आने लगते हैं।

टायफाइड के लक्षण और उपचार के बारे में लखनऊ के डॉ एमए खान बता रहे हैं-

कैसे फैलती है बीमारी

टायफाइड का कारण ‘साल्मोनेला टाइफी’ नामक बैक्टीरिया का संक्रमण होता है। साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया केवल मानव में छोटी आंत में पाए जाते हैं। ये मल के साथ निकल जाते हैं, जब मक्खियां मल पर बैठती हैं तो बैक्टीरिया इनके पांव में चिपक जाते हैं और जब यही मक्खियां खाद्य पदार्थों पर बैठती हैं, तो वहां ये बैक्टीरिया छूट जाते हैं। इस खाद्य पदार्थ को खाने वाला व्यक्ति इस बीमारी की चपेट में आ जाता है। शौच के बाद संक्रमित व्यक्ति का हाथ ठीक से न धोना और भोजन बनाना या भोजन को छूना भी रोग फैला सकता है।

लक्षण

    सामान्य से तेज़ बुखार, तापमान एक सा नहीं रहना
    पेट दर्द रहना
    थकान होना
    मल का रंग बदलना
    ध्यान केंद्रित ना कर पाना
    कमज़ोरी रहना

टायफाइड से बचाव

सफाई से बना हुआ खाना खाएं और खाना खाने और खाना बनाने से पहले ठीक तरह से हाथ धुलें। पीने के लिए साफ पानी का ही प्रयोग करें। पहले से कटे हुए फल ना खाएं। इस रोग का उपचार एंटीबॉयोटिक्स द्वारा सरलता से हो सकता है, बशर्ते समय पर इलाज की प्रक्रिया शुरू हो जाए। बुखार ठीक हो जाने पर भी एंटीबायोटिक्स का कोर्स 10 से 14 दिनों तक अवश्य पूरा करें क्योंकि इसमें ठीक होने के बाद रोग दोबारा होने की संभावना रहती है। टायफाइड का टीका दो वर्ष की उम्र के बाद प्रत्येक तीन साल पर गर्मी शुरू होने के पहले ही लगवा लेना चाहिए।

घरेलू इलाज

    पान का रस, अदरक का रस और शहद को बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम पीने से आराम मिलता है।
    यदि जुकाम या सर्दी-गर्मी में बुखार हो तो तुलसी, मुलेठी, गाजवां, शहद और मिश्री को पानी में मिलाकर काढा बनाएं और पिएं। इससे जुकाम सही हो जाता है और बुखार भी जल्दी ही उतर जाता है।
    इसके लिए 20 तुलसी की पत्तियां, 20 काली मिर्च, थोड़ी सी अदरक, जरा सी दालचीनी को पानी में डालकर खूब खौलाएं। अब इस मिश्रण को आंच से उतारकर छानें और इसमें मिश्री या चीनी मिलाकर गर्म-गर्म पिएं।
    बुखार में रोगी को ज्यादा से ज्यादा आराम की जरूरत होती है। भोजन का खास ख्याल रखें। बुखार होने पर दूध, साबूदाना, चाय, मिश्री आदि हल्की चीजें खाएं। पानी खूब पिएं और पीने के पानी को पहले गर्म करें और उसे ठंडा होने के बाद पिएं।
    तेज बुखार आने पर माथे पर ठंडे पानी का कपड़ा रखें तो बुखार उतर जाता है और बुखार की गर्मी सिर पर नहीं चढ़ती है।
    घरेलू दवाओं से यदि आपको आराम न मिले, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और उसके निर्देशानुसार इलाज करवाएं।






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