मंगलवार, 18 अगस्त 2015

अपने हाथ में ही अपना आरोग्य



नाक को रोगरहित रखने के लिये हमेशा नाक में सरसों या तिल आदि तेल की बूँदें डालनी चाहिए। कफ की वृद्धि हो या सुबह के समय पित्त की वृद्धि हो अथवा दोपहर को वायु की वृद्धि हो तब शाम को तेल की बूँदें डालनी चाहिए। नाक में तेल की बूँदे डालने वाले का मुख सुगन्धित रहता है, शरीर पर झुर्रियाँ नहीं पड़तीं, आवाज मधुर होती है, इन्द्रियाँ निर्मल रहती हैं, बाल जल्दी सफेद नहीं होते तथा फुँसियाँ नहीं होतीं।

अंगों को दबवाना, यह माँस, खून और चमड़ी को खूब साफ करता है, प्रीतिकारक होने से निद्रा लाता है, वीर्य बढ़ाता है तथा कफ, वायु एवं परिश्रमजन्य थकान का नाश करता है।

कान में नित्य तेल डालने से कान में रोग या मैल नहीं होती। बहुत ऊँचा सुनना या बहरापन नहीं होता। कान में कोई भी द्रव्य (औषधि) भोजन से पहले डालना चाहिए।

नहाते समय तेल का उपयोग किया हो तो वह तेल रोंगटों के छिद्रों, शिराओं के समूहों तथा धमनियों के द्वारा सम्पूर्ण शरीर को तृप्त करता है तथा बल प्रदान करता है।

शरीर पर उबटन मसलने से कफ मिटता है, मेद कम होता है, वीर्य बढ़ता है, बल प्राप्त होता है, रक्तप्रवाह ठीक होता है, चमड़ी स्वच्छ तथा मुलायम होती है।

दर्पण में देहदर्शन करना यह मंगलरूप, कांतिकारक, पुष्टिदाता है, बल तथा आयुष्य को बढ़ानेवाला है और पाप तथा दारिद्रय का नाश करने वाला है

(भावप्रकाश निघण्टु)

जो मनुष्य सोते समय बिजौरे के पत्तों का चूर्ण शहद के साथ चाटता है वह सुखपूर्वक स सकता है, खर्राटे नहीं लेता।

जो मानव सूर्योदय से पूर्व, रात का रखा हुआ आधा से सवा लीटर पानी पीने का नियम रखता है वह स्वस्थ रहता है।

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