मंगलवार, 11 जनवरी 2011

आयुर्वेदिक काढ़े

आयुर्वेदिक दवाओं की जानकारी के अंतर्गत इस बार हम आयुर्वेदिक काढ़े की जानकारी दे रहे हैं।

दशमूल काढ़ा : विषम ज्वर, मोतीझरा, निमोनिया का बुखार, प्रसूति ज्वर, सन्निपात ज्वर, अधिक प्यास लगना, बेहोशी, हृदय पीड़ा, छाती का दर्द, सिर व गर्दन का दर्द, कमर का दर्द दूर करने में लाभकारी है व अन्य सूतिका रोग नाशक है।

महामंजिष्ठादि काढ़ा : समस्त चर्म रोग, कोढ़, खाज, खुजली, चकत्ते, फोड़े-फुंसी, सुजाक, रक्त विकार आदि रोगों पर विशेष लाभकारी है।

महासुदर्शन काढ़ा : विषम ज्वर, धातु ज्वर, जीर्ण ज्वर, मलेरिया बुखार आदि समस्त ज्वरों पर विशेष लाभकारी है, भूख बढ़ाता है तथा पाचन शक्ति बढ़ाता है। श्वास, खांसी, पांडू रोगों आदि में हितकारी। रक्त शोधक एवं यकृत उत्तेजक ।

महा रास्नादि काढ़ा : समस्त वात रोगों में लाभकारी। आमवात, संधिवात, सर्वांगवात, पक्षघात, ग्रध्रसी, शोथ, गुल्म, अफरा, कटिग्रह, कुब्जता, जंघा और जानु की पीड़ा, वन्ध्यत्व, योनी रोग आदि नष्ट होते हैं।

रक्त शोधक : सब प्रकार की खून की खराबियां, फोड़े-फुंसी, खाज-खुजली, चकत्ते, व्रण, उपदंश (गर्मी), आदि रोगों पर लाभकारी है तथा खून साफ करता है।

सामान्य मात्रा : 10 से 25 मिली तक बराबर पानी मिलाकर भोजन करने के बाद दोनों समय पिए जाते हैं।

विविध
अर्क अजवायन : पेट व आंतों के दर्द में लाभकारी। बदहजमी, अफरा, अजीर्ण, मंदाग्नि में लाभप्रद। दीपक तथा पाचक व जिगर की बीमारियों को दूर करता है।

अर्क दशमलव : प्रसूत ज्वर एवं सब प्रकार के वात रोगों में लाभदायक है।

अर्क सुदर्शन : अनेक तरह के बुखारों में लाभदायक है। पुराने बुखार, विषम ज्वर, त्रिदोष ज्वर, इकतारा, तिजारी बुखारों को नष्ट करता है।

अर्क सौंफ : भूख बढ़ाता है। आंव-पेचिस आदि में लाभदायक है। मेदा व जिगर की बीमारियों में फायदेमंद है। प्यास व अफरा कम करता है। पित्त, ज्वर, बदहजमी, शूल, नेत्ररोग आदि में लाभकारी है।

खमीरा गावजवां : दिल-दिमाग को ताकत देता है। घबराहट व चित्त की परेशानी दूर करता है। प्यास कम करता है, नेत्रों को लाभदायक है। खांसी, श्वास (दमा), प्रमेह आदि में लाभकारी। मात्रा 10 से 25 ग्राम सुबह-शाम चाटना चाहिए।

खमीरा सन्दल : अंदरूनी गर्मी को कम करता है, प्यास को कम करता है, दिल को ताकत देता है व खास तौर पर दिल की धड़कन को कम करता है। पैत्तिक दाह, मुंह सूखना, घबराहट, जलन, गर्मी से जी मिचलाना तथा मूत्र दाह में लाभकारी। शीतल व शांतिदायक। गर्भवती स्त्रियों के लाभदायक। मात्रा 10 से 25 ग्राम सुबह, दोपहर व शाम अर्क गावजवां के साथ या केवल चाटना चाहिए।

गुलकन्द प्रवाल युक्त : अत्यंत शीतल है। कब्ज दूर करता है व पाचन शक्ति बढ़ाता है। दिल, फेफड़े, मैदा व दिमाग को ताकत देता है। जिगर की सूजन व हरारत कम करता है। गर्भवती स्त्रियों के लिए विशेष लाभदायक है। गर्मी के मौसम में बालक, वृद्ध, स्त्री, पुरुष सबको इसका सेवन करना चाहिए। मात्रा 10 से 25 ग्राम सुबह शीतल जल या दूध के साथ लेना चाहिए।

माजून मुलैयन : हाजमा करके दस्त साफ लाने के लिए प्रसिद्ध माजून है। बवासीर के मरीजों के लिए श्रेष्ठ दस्तावर दवा। मात्रा रात को सोते समय 10 ग्राम माजून दूध के साथ।

सिरका गन्ना : पाचक, रुचिकारक, बलदायक, स्वर शुद्ध करने वाला, श्वास, ज्वर तथा वात नाशक। मात्रा 10 से 25 मि.ली. सुबह व शाम भोजन के बाद।

सिरका जामुन : यकृत (लीवर) व मेदे को लाभकारी। खाना हजम करता है, भूख बढ़ाता है, पेशाब लाता है व तिल्ली के वर्म को दूर करने की प्रसिद्ध दवा। मात्रा 10 से 25 मि.ली. सुबह व शाम भोजन के बाद।

आयुर्वेदिक औषधीय तेल

आयुर्वेदिक दवाओं की जानकारी में हम अभी तक अनेक प्रकार की दवाएँ तथा विभिन्न रोगों की दवाएँ बता चुके हैं। इसी कड़ी के अंतर्गत हम आयुर्वेदिक औषधीय तेलों की उपयोगी जानकारी दे रहे हैं।

अणु तेल : सिर का दर्द, आधा सीसी, पीनस, नजला, अर्दित, मन्यास्तम्भ आदि में लाभप्रद।

इरमेदादि तेल : दंत रोगों में लाभदायक। मसूढ़ों के रोग, मुंह से दुर्गन्ध आना, जीभ, तालू व होठों के रोगों में लाभप्रद। ब्रणोपचार के लिए उत्तम। प्रयोग विधि : मुख रोगों में मुंह में भरना अथवा दिन में तीन-चार बार तीली से लगाना।

काशीसादि तेल : व्रण शोधक तथा रोपण है। इसके लगाने से बवासीर के मस्से नष्ट हो जाते हैं। नाड़ी व्रण एवं दूषित व्रणों के उपचार हेतु लाभकारी। प्रयोग विधि : बवासीर में दिन में तीन चार बार गुदा में लगाना अथवा रूई भिगोकर रखना।

गुडुच्यादि तेल : वात रक्त, कुष्ठ रोग, नाड़ी व्रण, विस्फोट, विसर्प व पाद दाहा पर उपयुक्त।

चंदनबला लाशादि तेल : इसके प्रयोग से सातों धातुएं बढ़ती हैं तथा वात विकार नष्ट होते हैं। कास, श्वास, क्षय, शारीरिक क्षीणता, दाह, रक्तपित्त, खुजली, शिररोग, नेत्रदाह, सूजन, पांडू व पुराने ज्वर में उपयोगी है। दुबले-पतले शरीर को पुष्ट करता है। बच्चों के लिए सूखा रोग में लाभकारी। सुबह व रात्रि को मालिश करना चाहिए।

जात्यादि तेल : नाड़ी व्रण (नासूर), जख्म व फोड़े के जख्म को भरता है। कटे या जलने से उत्पन्न घावों को व्रणोपचार के लिए उत्तम। प्रयोग

विधि : जख्म को साफ करके तेल लगावें या कपड़ा भिगोकर बांधें।

नारायण तेल : सब प्रकार के वात रोग, पक्षघात (लकवा), हनुस्म्भ, कब्ज, बहरापन, गतिभंग, कमर का दर्द, अंत्रवृद्धि, पार्श्व शूल, रीढ़ की हड्डी का दर्द, गात्र शोथ, इन्द्रिय ध्वंस, वीर्य क्षय, ज्वर क्षय, दन्त रोग, पंगुता आदि की प्रसिद्ध औषधि। सेवन में दो-तीन बार पूरे शरीर में मालिश करना चाहिए। मात्रा 1 से 3 ग्राम दूध के साथ पीना चाहिए।

पंचगुण तेल : संधिवात, शरीर के किसी भी अवयव के दर्द में उपयोगी। कर्णशूल में कान में बूंदें डालें। व्रण उपचार में फाहा भिगोकर बांधे।

महाभृंगराज तेल : बालों का गिरना बंद करता है तथा गंज को मिटाकर बालों को बढ़ाता है। असमय सफेद हुए बालों को काला करता है। माथे को ठंडा करता है। प्रयोग विधि : सिर पर धीरे-धीरे मालिश करना चाहिए।
महानारायण तेल : नारायण तेल से अधिक लाभदायक है।

महामरिचादि तेल : खाज, खुजली, कुष्ठ, दाद, विस्फोटक, बिवाई, फोड़े-फुंसी, मुंह के दाग व झाई आदि चर्म रोगों और रक्त रोगों के लिए प्रसिद्ध तेल से त्वचा के काले व नीले दाग नष्ट होकर त्वचा स्वच्छ होती है। सुबह व रात्रि को मालिश करना चाहिए।

महामाष (निरामिष) : पक्षघात (लकवा), हनुस्तम्भ, अर्दित, पंगुता, शिरोग्रह मन्यास्तम्भ, कर्णनाद तथा अनेक प्रकार के वात रोगों पर लाभकारी।

महाविषगर्भ तेल : सब तरह के वात रोगों की प्रसिद्ध औषधि। जोड़ों की सूजन समस्त शरीर में दर्द, गठिया, हाथ-पांव का रह जाना, लकवा, कंपन्न, आधा सीसी, शरीर शून्य हो जाना, नजला, कर्णनाद, गण्डमाला आदि रोगों पर। सुबह व रात्रि मालिश करें।

महालाक्षादि तेल : सब प्रकार के ज्वर, विषम ज्वर, जीर्ण ज्वर व तपेदिक नष्ट करता है। कास, श्वास, प्रतिशाय (जुकाम), हाथ-पैरों की जलन, पसीने की दुर्गन्ध शरीर का टूटना, हड्डी के दर्द, पसली के दर्द, वात रोगों को नष्ट करता है। बल, वीर्य कांति बढ़ाता है तथा शरीर पुष्ट करता है। सुबह व रात्रि मालिश करना चाहिए।

मरिचादि तेल : महामरिचादि तेल के समान न्यून गुण वाला।

रोपण तेल : सब प्रकार के व्रणों (घाव) में ब्रणोपचार के लिए उत्तम। योनि रोग में उत्तर वस्ति में गुणकारी।

लाक्षादि तेल : महालाक्षादि तेल के समान न्यून गुण वाला।

विषगर्भ तेल : महाविषगर्भ तेल के समान न्यून गुण वाला।

षडबिंदु तेल : इस तेल के व्यवहार से गले के ऊपर के रोग जैसे सिर दर्द, सर्दी, (जुकाम), नजला, पीनस आदि में लाभ होता है। सेवन : दिन में दो-तीन बार 5-6 बूंद नाक में डालकर सूंघना चाहिए।

सैंधवादि तेल : सभी प्रकार के वृद्धि रोगों में इस तेल के प्रयोग से अच्छा लाभ होता है। आमवात, कमर व घुटने के दर्द आदि में उपयोगी है।

सोमराजी तेल : इस तेल की मालिश से रक्त विकार, खुजली, दाद, फोड़ा-फुंसी, चेहरे पर कालिमा आदि में फायदा होता है।

एरण्ड तेल : पेट के सुद्दों को दस्त के जरिये निकालता है। जोड़ों के दर्द में लाभकारी है।

जैतून तेल : त्वचा को नरम करता है तथा चर्म रोगों में जलन आदि पर लाभप्रद है।

नीम तेल : कृमि रोग, चर्म रोग, जख्म व बवासीर में लाभकारी।

बादाम तेल असली : दिमाग को ताकत देता है, नींद लाता है, सिर दर्द व दिमाग की खुश्की दूर करता है। मस्तिष्क का कार्य करने वालों को लाभप्रद है। अर्श रोगियों तथा गर्भवती स्त्रियों को लाभकारी। सेवन : सिर पर मालिश करें तथा 3 से 6 ग्राम तक दूध में डालकर पीना चाहिए।

दयाल तेल : गठिया का दर्द, पक्षघात (लकवा), कुलंगवात, अर्द्धगवात, चोट लगना, जोड़ों
का दर्द, कमर का दर्द तथा सब प्रकार के वात संबंधी दर्दों को शीघ्र दूर करता है।

बावची तेल : सफेद दाग (चकत्ते) तथा अन्य कुष्ट रोगों पर।

मालकंगनी तेल : वात व्याधियों में उपयुक्त।

लौंग तेल : सिर दर्द व दांत दर्द में अक्सीर है।

विल्व तेल कान दर्द, कान में आवाज तथा सनसनाहट होने पर बहरापन दूर करने में विशेष उपयोगी।

बीमारी के अनुसार दवाएँ

प्रत्येक मौसम में सेवन योग्य (शीतर, शांतिदायक, दिल व दिमाग को स्फूर्तिदायक, अधिक प्यास, गर्मी व सिर दर्द आदि से बचने के लिए) :गुलकन्द प्रवालयुक्त, मोती पिष्टी, प्रवाल पिष्टी, खमीरा संदल, शर्बत संदल, शर्बत अनार।

शरद ऋतु में विशेष रूप से सेवन योग्य (पौष्टिक) : बादाम पाक, बसंत, कुसुमाकर रस, च्यवनप्राश अवलेह (स्पेशल) दयाल तेल, दशमूलारिष्ट।

विषम ज्वर (मलेरिया) : पु.प. विषम ज्वरांतक लौह, सुदर्शन चूर्ण, महा सुदर्शन काढ़ा, अमृतारिष्ट, ज्वरांकुश रस, सत्व गिलोय।

वात श्लेष्मिक ज्वर (एन्फ्लूएन्जा) : त्रिभुवन कीर्ति रस, लक्ष्मी विलास रस, संजीवनी वटी, पीपल 64 प्रहरी, अमृतारिष्ट।

श्लीपद (हाथी पाँव) : नित्यनंद रस, मल्ल सिंदूर।

जीर्ण ज्वर व अन्य : स्वर्ण वसंत मालती, सितोपलादि चूर्ण, अमृतराष्टि, मत्युंजय रस, आनंद भैरव, गोदंती भस्म, सर्वज्वरहर लौह, संजीवनी, ज्वरांकुश रस, महालाक्षादि तेल।

तमक श्वास (दवा) : कफकेयर, च्यवनप्राश अवलेह, सितोपलादि चूर्ण, श्वासकास, चिंतामणि कनकासव, शर्बत वासा, वासारिष्ट, वासावलेह, मयूर चन्द्रिका भस्म, अभ्रक भस्म तेल।

कास रोग (कफ खांसी) : कफकेयर शर्बत वासा, वासावलेह, वासारिष्ट खदिरादि वटी, मरिचादि वटी, लवंगादि वटी, त्रिकुट चूर्ण, द्राक्षारिष्ट, एलादि वटी, कालीसादि चूर्ण, कफकेतु रस, अभ्रक भस्म, श्रृंगारभ्र रस, बबूलारिष्ट।

उर्ध्व रक्तपित्त (कफ के साथ अणवा उल्टी में खून आना) : कफकेयर, शर्बत वासा, कामदुधा रस मौ.यु. कहरवा पिष्टी, वासावलेह, प्रवाल पिष्टी, वासारिष्ट, बोलबद्ध चूर्ण, बोल पर्पटी, रक्त पित्तांतक लौह कुष्माण्ड अवलेह।

राजयक्षमा (टीबी) : स्वर्ण वसंत मालती, लक्ष्मी विलास रस, मृगांक रस, वृहत्‌ श्रृंगारभ्र रस, राजमृगांक रस, वासावलेह, द्राक्षासव, च्यवनप्राश अवलेह, महालक्ष्मी विलास रस।

पार्श्व शूल (प्लूरिसरी, फेफेड़ों में पानी भरना) : नारदीय लक्ष्मी विलास रस, स्वर्ण वसंत मालती, मृगश्रृंग भस्म, रस सिंदूर।

हिक्का रोग (हिचकी आना) : सूतशेखर स्वर्णयुक्त, मयूर चन्द्रिका भस्म, एलादि वटी, एलादि चूर्ण।

खालित्य (बालों का गिरना, गंजापन) : महाभृंगराज तेल, हस्तिदंतमसी, च्यवनप्राश अवलेह।

पालित्य (बाल सफेद होना) : महाभृंगराज तेल, भृंगराजसव, च्यवनप्राश।

विचर्चिका (छाजन, एग्जिमा) : चर्म रोगांतक मरहम, गुडुच्यादि तेल, रस माणिक्य, महामरिचादि तेल गंधक रसायन, त्रिफला चूर्ण, पुभष्पांजन, रक्त शोध, खदिरादिष्ट, महामंजिष्ठादि काढ़ा।

दद्रु (दाद, रिंगवर्म) : सोमराजी तेल, गंधक रसायन।

कुष्ठ (सफेद दाग) : सोगन बावची, खदिरादिष्ट, आरोग्यवर्द्धिनी वटी, रस माणिक्य, गंधक रसायन, चालमोगरा तेल, महामंजिष्ठादि क्वाथ।

शीत पित्त (पित्ती) : हरिद्राखंड, कामदुधा रस, आरोग्यवर्द्धिनी वटी, सूतशेखर रस।

पिदक (गर्मी की मरोरी, पसीना) : खमीरा संदल, प्रवालयुक्त, गुलकन्द, प्रवाल पिष्टी, जहर मोहरा पिष्टी, सारिवाद्यासव।

खाज-खुजली, फोड़े-फुंसी, रक्त विकार : रक्त शोधक, खदिराष्टि, महामंजिष्ठादि काढ़ा, सारिवाद्यासव, महामरिचादि तेल, रोगन नीम, गंधक रसायन, केशर गूगल, आरोग्यवर्द्धनी, जात्यादि तेल, चर्मरोगांतक मरहम,पुष्पांजन।

ऐरोमाथैरेपी खुशबू से उपचार

पेट के ऊपर दर्द
पेट के ऊपरी भाग में दर्द की स्थिति में तीन बूँदें पिपरमेंट ऑइल, दो बूँदें क्लोव ऑइल तथा एक बूँद यूकेलिप्टस ऑइल के मिश्रण में एक चम्मच वेजीटेबल ऑइल मिलाकर मालिश करने से लाभ होता है। दर्द यदि पेट के निचले हिस्से में हो तो दो बूँद जिरेनियम ऑइल, दो बूँद रोजमेरी ऑइल व एक बूँद जिंजर ऑइल में एक चम्मच वेजीटेबल ऑइल डालकर दर्द वाले भाग पर हल्के हाथ की मालिश की जा सकती है।

दाँतों का पोषण
दाँतों की उचित सफाई न रखने व अच्छे पोषण के अभाव से कई बार दाँतों में खून लगता है। इस स्थिति में एक लीटर गुनगुने पानी में एक चम्मच ब्रैंडी, दो बूँद लेमन ऑइल, एक बूँद लेवेंडर ऑइल व एक बूँद यूकेलिप्टस ऑइल मिलाकर कुल्ला करने से फायदा होगा। इस मिश्रण को पिएँ नहीं।

नकसीर फूटनागर्मियों में नकसीर फूटना या नाक से खून आना एक आम समस्या है। इसके लिए पीठ के बल सीधे लेट जाएँ और एक टिशु पेपर पर एक बूँद साइप्रस ऑइल, एक बूँद लेवेन्डर ऑइल, दो बूँद लेमन ऑइल व एक बूँद रोज ऑइल डालकर सूँघने से राहत मिलेगी। छोटे-मोटे साधारण घाव व फोड़े-फुंसियों के उपचार के लिए दो बूँद लैवेंडर ऑइल, एक बूँद कैमोमाइल ऑइल व एक बूँद टी ट्री ऑइल के मिश्रण को एक कप गुनगुने पानी में मिलाकर दिन में दो बार घाव को धोएँ। घाव या फुंसी को धूल-मिट्टी से जरूर बचाएँ।

फिशर
गुदा का फिशर होने पर दो लीटर गुनगुने पानी में पाँच बूँदें लेवेंडर, दो बूँदें जिरोनियम व दो बूँदें लेमन ऑइल डालकर गुदा वाले भाग को धोएँ। उसके बाद ये सभी एसेंशियल ऑइल एलोवीरा जेल में मिलाकर प्रभावित भाग के चारों ओर मालिश करें। घर में भारी सामान उठाते समय, नृत्य या व्यायाम करते समय, हाथ या पैरों की मांसपेशियाँ खिंच जाने से हाथ या पैर में मोच आ सकती है। ऐसी स्थिति में किसी भी बेस ऑइल की तीस मि.ग्रा. मात्रा लेकर उसमें पाँच बूँद ब्लैक पेपर ऑइल, पंद्रह बूँद यूकेलिप्टस ऑइल, पाँच बूँद जिंजर ऑइल व नट मेग ऑइल मिलाकर दिन में तीन बार मालिश करें। साथ ही ठंडी मसाज भी फायदेमंद होगी।

रजोनिवृत्तिरजोनिवृत्ति के समय महिलाओं के स्वभाव में परिवर्तन हो जाना एक आम समस्या है। वास्तव में रजोनिवृत्ति के समय रक्त नलिकाओं में अनियमितता आ जाने के कारण या तेज गर्मी की वजह से अक्सर महिलाएँ चिड़चिड़ी व बेचैन हो जाती हैं। 30 मिलीग्राम बेस ऑइल में छः बूँद लेमन ऑइल, दस बूँद क्लैरी सेज ऑइल, 9 बूँद जिरेनियम ऑइल व पाँच बूँदें इवनिंग प्राइमरोज ऑइल मिलाएँ व संपूर्ण शरीर की मालिश करें। नहाने के पानी में भी इस मिश्रण का प्रयोग करें। ऐसे वक्त में चाय-कॉफी व अन्य गर्म पेय पदार्थों का सेवन बंद कर देना चाहिए।

नींद न आना
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में नींद न आना भी एक आम समस्या है। इसके कारण शारीरिक या मानसिक दोनों हो सकते हैं। शरीर की मालिश या नहाने के पानी में कुछ तेलों के प्रयोग से यह समस्या दूर हो सकती है। तीस मिलीग्राम बेस ऑइल में पाँच बूँद कैमोमाइल ऑइल, पाँच बूँद मेजोरम ऑइल, पंद्रह बूँद सैंडल वुड ऑइल तथा पाँच बूँद क्लैरीसेज ऑइल मिलाकर मालिश करने से आराम मिलता है। मालिश करते समय ध्यान दें कि मालिश पूरी पीठ, गले तथा कंधों आदि पर अच्छी तरह करें। नहाने के पानी में इस मिश्रण का प्रयोग करते समय जाँच लें कि नहाने के पानी का तापमान साधारण हो, न तो गर्म और न ही ठंडा।

चूँकि प्रत्येक व्यक्ति न केवल मानसिक अपितु शारीरिक क्षमता में भी दूसरों से भिन्न होता है इसलिए जरूरी है कि उपरोक्त किसी भी चिकित्सा पद्धति का प्रयोग करने से पूर्व अपने चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।

तेल बहुत उपयोगी
घर में प्रयोग किए जा सकने वाले तेल विभिन्न प्रकार से इस्तेमाल किए जा सकते हैं, जैसे मालिश में, नहाने के पानी में या भाप के पानी में आदि। शरीर से दूषित पदार्थों के निष्कासन में ये तेल बहुत उपयोगी होते हैं जैसे एंटीसेप्टिक, एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगस, एंटीन्यूरालाजिक, एंटीडिपरेसेंट, रक्टी, रूमेटिक, डियोडराइजिंग आदि। एसेंशियल ऑइल को भाप विधि के द्वारा निकाला जाता है। जैसे लैवेंडर के लगभग एक सौ किलो पौधे से लगभग तीन किलो तेल प्राप्त किया जा सकता है। इन एसेंशियल तेलों का प्रयोग सदैव बेस ऑइल के साथ मिलाकर किया जाता है।

विभिन्न प्रकार के तेलों को बेस ऑइल के रूप में लिया जा सकता है जैसे वेजीटेबल ऑइल, एप्रीकाट ऑइल, मीठा बादाम तेल आदि। एसेंशियल ऑइल की मात्रा के अनुसार बेस ऑइल की मात्रा भी बदलती रहती है। जैसे एक बूँद एसेंशियल ऑइल में एक मि.ली. बेस ऑइल, चार से दस बूँद में दस मि.ली. बेस ऑइल और छः से पंद्रह बूँद में पंद्रह मि.ली. बेस ऑइल का प्रयोग किया जाता है।

आयुर्वेदिक चूर्ण

हम इससे पहले आयुर्वेदिक दवाओं में गोलियों, वटियों भस्म व पिष्टी की जानकारी आपको दे चुके हैं। आयुर्वेद के कुछ चूर्ण, जो दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी हैं, की जानकारी दी जा रही है-

अश्वगन्धादि चूर्ण : धातु पौष्टिक, नेत्रों की कमजोरी, प्रमेह, शक्तिवर्द्धक, वीर्य वर्द्धक, पौष्टिक तथा बाजीकर, शरीर की झुर्रियों को दूर करता है। मात्रा 5 से 10 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

अविपित्तकर चूर्ण : अम्लपित्त की सर्वोत्तम दवा। छाती और गले की जलन, खट्टी डकारें, कब्जियत आदि पित्त रोगों के सभी उपद्रव इसमें शांत होते हैं। मात्रा 3 से 6 ग्राम भोजन के साथ।

अष्टांग लवण चूर्ण : स्वादिष्ट तथा रुचिवर्द्धक। मंदाग्नि, अरुचि, भूख न लगना आदि पर विशेष लाभकारी। मात्रा 3 से 5 ग्राम भोजन के पश्चात या पूर्व। थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए।

आमलकी रसायन चूर्ण : पौष्टिक, पित्त नाशक व रसायन है। नियमित सेवन से शरीर व इन्द्रियां दृढ़ होती हैं। मात्रा 3 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

आमलक्यादि चूर्ण : सभी ज्वरों में उपयोगी, दस्तावर, अग्निवर्द्धक, रुचिकर एवं पाचक। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह व शाम पानी से।

एलादि चूर्ण : उल्टी होना, हाथ, पांव और आंखों में जलन होना, अरुचि व मंदाग्नि में लाभदायक तथा प्यास नाशक है। मात्रा 1 से 3 ग्राम शहद से।

गंगाधर (वृहत) चूर्ण : अतिसार, पतले दस्त, संग्रहणी, पेचिश के दस्त आदि में। मात्रा 1 से 3 ग्राम चावल का पानी या शहद से दिन में तीन बार।

जातिफलादि चूर्ण : अतिसार, संग्रहणी, पेट में मरोड़, अरुचि, अपचन, मंदाग्नि, वात-कफ तथा सर्दी (जुकाम) को नष्ट करता है। मात्रा 1.5 से 3 ग्राम शहद से।

दाडिमाष्टक चूर्ण : स्वादिष्ट एवं रुचिवर्द्धक। अजीर्ण, अग्निमांद्य, अरुचि गुल्म, संग्रहणी, व गले के रोगों में। मात्रा 3 से 5 ग्राम भोजन के बाद।

चातुर्जात चूर्ण : अग्निवर्द्धक, दीपक, पाचक एवं विषनाशक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम दिन में तीन बार शहद से।

चातुर्भद्र चूर्ण : बालकों के सामान्य रोग, ज्वर, अपचन, उल्टी, अग्निमांद्य आदि पर गुणकारी। मात्रा 1 से 4 रत्ती दिन में तीन बार शहद से।

चोपचिन्यादि चूर्ण : उपदंश, प्रमेह, वातव्याधि, व्रण आदि पर। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः व सायं जल अथवा शहद से।
तालीसादि चूर्ण : जीर्ण, ज्वर, श्वास, खांसी, वमन, पांडू, तिल्ली, अरुचि, आफरा, अतिसार, संग्रहणी आदि विकारों में लाभकारी। मात्रा 3 से 5 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम।

दशन संस्कार चूर्ण : दांत और मुंह के रोगों को नष्ट करता है। मंजन करना चाहिए।

नारायण चूर्ण : उदर रोग, अफरा, गुल्म, सूजन, कब्जियत, मंदाग्नि, बवासीर आदि रोगों में तथा पेट साफ करने के लिए उपयोगी। मात्रा 2 से 4 ग्राम गर्म जल से।

पुष्यानुग चूर्ण : स्त्रियों के प्रदर रोग की उत्तम दवा। सभी प्रकार के प्रदर, योनी रोग, रक्तातिसार, रजोदोष, बवासीर आदि में लाभकारी। मात्रा 2 से 3 ग्राम सुबह-शाम शहद अथवा चावल के पानी में।

पुष्पावरोधग्न चूर्ण : स्त्रियों को मासिक धर्म न होना या कष्ट होना तथा रुके हुए मासिक धर्म को खोलता है। मात्रा 6 से 12 ग्राम दिन में तीन समय गर्म जल के साथ।

पंचकोल चूर्ण : अरुचि, अफरा, शूल, गुल्म रोग आदि में। अग्निवर्द्धक व दीपन पाचन। मात्रा 1 से 3 ग्राम।

पंचसम चूर्ण : कब्जियत को दूर कर पेट को साफ करता है तथा पाचन शक्ति और भूख बढ़ाता है। आम शूल व उदर शूल नाशक है। हल्का दस्तावर है। आम वृद्धि, अतिसार, अजीर्ण, अफरा, आदि नाशक है। मात्रा 5 से 10 ग्राम सोते समय पानी से।

यवानिखांडव चूर्ण : रोचक, पाचक व स्वादिष्ट। अरुचि, मंदाग्नि, वमन, अतिसार, संग्रहणी आदि उदर रोगों पर गुणकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम।

लवणभास्कर चूर्ण : यह स्वादिष्ट व पाचक है तथा आमाशय शोधक है। अजीर्ण, अरुचि, पेट के रोग, मंदाग्नि, खट्टी डकार आना, भूख कम लगना। आदि अनेक रोगों में लाभकारी। कब्जियत मिटाता है और पतले दस्तों को बंद करता है। बवासीर, सूजन, शूल, श्वास, आमवात आदि में उपयोगी। मात्रा 3 से 6 ग्राम मठा (छाछ) या पानी से भोजन के पूर्व या पश्चात लें।

लवांगादि चूर्ण : वात, पित्त व कफ नाशक, कंठ रोग, वमन, अग्निमांद्य, अरुचि में लाभदायक। स्त्रियों को गर्भावस्था में होने वाले विकार, जैसे जी मिचलाना, उल्टी, अरुचि आदि में फायदा करता है। हृदय रोग, खांसी, हिचकी, पीनस, अतिसार, श्वास, प्रमेह, संग्रहणी, आदि में लाभदायक। मात्रा 3 ग्राम सुबह-शाम शहद से।
व्योषादि चूर्ण : श्वास, खांसी, जुकाम, नजला, पीनस में लाभदायक तथा आवाज साफ करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सायंकाल गुनगुने पानी से।

शतावरी चूर्ण : धातु क्षीणता, स्वप्न दोष व वीर्यविकार में, रस रक्त आदि सात धातुओं की वृद्धि होती है। शक्ति वर्द्धक, पौष्टिक, बाजीकर तथा वीर्य वर्द्धक है। मात्रा 5 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण (सुख विरेचन चूर्ण) : हल्का दस्तावर है। बिना कतलीफ के पेट साफ करता है। खून साफ करता है तथा नियमित व्यवहार से बवासीर में लाभकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम रात्रि सोते समय गर्म जल अथवा दूध से।

सारस्वत चूर्ण : दिमाग के दोषों को दूर करता है। बुद्धि व स्मृति बढ़ाता है। अनिद्रा या कम निद्रा में लाभदायक। विद्यार्थियों एवं दिमागी काम करने वालों के लिए उत्तम। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः -सायं मधु या दूध से।

सितोपलादि चूर्ण : पुराना बुखार, भूख न लगना, श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, अरुचि जीभ की शून्यता, हाथ-पैर की जलन, नाक व मुंह से खून आना, क्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध दवा। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह-शाम शहाद से।

सुदर्शन (महा) चूर्ण : सब तरह का बुखार, इकतरा, दुजारी, तिजारी, मलेरिया, जीर्ण ज्वर, यकृत व प्लीहा के दोष से उत्पन्न होने वाले जीर्ण ज्वर, धातुगत ज्वर आदि में विशेष लाभकारी। कलेजे की जलन, प्यास, खांसी तथा पीठ, कमर, जांघ व पसवाडे के दर्द को दूर करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ।

सुलेमानी नमक चूर्ण : भूख बढ़ाता है और खाना हजम होता है। पेट का दर्द, जी मिचलाना, खट्टी डकार का आना, दस्त साफ न आना आदि अनेक प्रकार के रोग नष्ट करता है। पेट की वायु शुद्ध करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।

सैंधवादि चूर्ण : अग्निवर्द्धक, दीपन व पाचन। मात्रा 2 से 3 ग्राम प्रातः व सायंकाल पानी अथवा छाछ से।

हिंग्वाष्टक चूर्ण : पेट की वायु को साफ करता है तथा अग्निवर्द्धक व पाचक है। अजीर्ण, मरोड़, ऐंठन, पेट में गुड़गुड़ाहट, पेट का फूलना, पेट का दर्द, भूख न लगना, वायु रुकना, दस्त साफ न होना, अपच के दस्त आदि में पेट के रोग नष्ट होते हैं तथा पाचन शक्ति ठीक काम करती है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।

त्रिकटु चूर्ण : खांसी, कफ, वायु, शूल नाशक, व अग्निदीपक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम प्रातः-सायंकाल शहद से।

त्रिफला चूर्ण : कब्ज, पांडू, कामला, सूजन, रक्त विकार, नेत्रविकार आदि रोगों को दूर करता है तथा रसायन है। पुरानी कब्जियत दूर करता है। इसके पानी से आंखें धोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। मात्रा 1 से 3 ग्राम घी व शहद से तथा कब्जियत के लिए 5 से 10 ग्राम रात्रि को जल के साथ।

श्रृंग्यादि चूर्ण : बालकों के श्वास, खांसी, अतिसार, ज्वर में। मात्रा 2 से 4 रत्ती प्रातः-सायंकाल शहद से।

अजमोदादि चूर्ण : जोड़ों का दुःखना, सूजन, अतिसार, आमवात, कमर, पीठ का दर्द व वात व्याधि नाशक व अग्निदीपक। मात्रा 3 से 5 ग्राम प्रातः-सायं गर्म जल से अथवा रास्नादि काढ़े से।

अग्निमुख चूर्ण (निर्लवण) : उदावर्त, अजीर्ण, उदर रोग, शूल, गुल्म व श्वास में लाभप्रद। अग्निदीपक तथा पाचक। मात्रा 3 ग्राम प्रातः-सायं उष्ण जल से।

माजून मुलैयन : हाजमा करके दस्त साफ लाने के लिए प्रसिद्ध माजून है। बवासीर के मरीजों के लिए श्रेष्ठ दस्तावर दवा। मात्रा रात को सोते समय 10 ग्राम माजून दूध के साथ।

पुरूषों में बढता हेयरफाल, पाएं निजात

हेयरफाल का जितना खतरा महिलाओं को होता है, उससे कहीं ज्यादा पुरूषौं को होता है। हालांकि बालों का झडना एक आम समस्या है पर कम उम्र में बाल झडना किसी मुसीबत से कम नहीं है। लेकिन समय रहते यदि उपाय किए जाएं तो इस समस्या से बचा जा सकता है।
1. हेयरविशेषज्ञों के अनुसार 30 की उम्र के बाद हेयरफाल का जितना खतरा महिलाओं को होता है, पुरूषों में भी इस उम्र के बाद हेयरफाल की समस्या हो जाती है। कई बार तो कम उम्र में बाल झडना शुरू हो जाते हैं और कम उम्र में ही गंजेपन की समस्या से सामना करना पडता है। 60 का पडाव पार करने तक ऎसे पुरूष बिलकुल गंजे हो सकते हैं।
2. पुरूषों में भी फैशन का क्रेज बढता जा रहा है। ऎसे में पुरूष अपनी गर्लफ्रैंड या पत्नियों के सौंदर्य प्रसाधनौं का इस्तेमाल करते हैं। उनका तेल और कंडीशनर यूज करते हैं। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि जो तेल, शैम्पू आपकी गर्लफ्रैंड या पत्नी को सूट करता है वह आपको भी करे। यदि आपको बालो संबंधी कोई समस्या हो तो सबसे पहले हेयर एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
3. एंटीडैंड्रफ शैंपू का ज्यादा प्रयोग न करें। क्योकी एंटीडैंड्रफ शैंपू का ज्यादा प्रयोग सिर की नेचुरल नमी को खत्म कर देता है।
4. गंदे बालों पर जैल या कोई हेयर स्प्रे न करें। ऎसा करना आपकी बालों की सेहत के लिएहानिकारक हो सकता है।
5. बालों को कभी-कभी शैंपू करें। साथ ही गर्दन तक शैंपू का प्रयोग करें। उंगलियौं के पोरों से हल्के-हल्के शैंपू से मसाज करें। ऎसा करने से आपके सिर का ब्लड सर्कुलेशन बढेगा।
6. हर समय कैप पहनने से बचें। कैप पहनने से पसीना, कीटाणु और गंदगी सिर के किनारों पर जम जाती है। इससे बालों की जडों को नुकसान पहुंचता है और बाल गिरने शुरू हो जाते हैं।
7. गीले बालों में कंघी करने से बचें। यदि गीले बालों में कंघी करें तो चौडे दांतों वाले कंघे का प्रयोग करें। साथ ही दिन में तीन-चार बार कंघी करें। ऎसा करने से बालों में जमीं तेल की चिपचिपाहट दूर होती है और नए बाल उगने में मदद मिलती है।
8. पुरूषों मे हेयरफाल का सीधा संबंध तनाव से होता है। तनाव के कारण बालों की जडें कमजोर हो जाती हैं। इसलिए जहां तक हो सके तनाव को अपनी जिंदगी से दूर रखें। साथ ही जंकफूड के बजाय घर का पौष्टिक भोजन करें। पानी भरपूर मात्रा में पिएं।
9. सिर पर तेल से मसाज करें। इसके लिए आप सरसों और जैतून के तेल को बराबर मात्रा में मिला कर बालों में हल्के-हल्के उंगलियों के पोरों से मसाज करें। साथ ही हथेलियों से सिर को थपथपाएं। ऎसा करने से बालौं में डैंड्रफ और हेयरफाल की समस्या से निजात मिलता है। मसाज करने के बाद तौलिये को गर्म पानी में भिगोएं फिर उसे निचोड कर सिर को भाप दें। इससे आपके रोमछिद्र खुल जाते हैं और तेल बालों की जडों के अंदर तक समा जाता है। इससे आपके बाल मजबूत होंगे।
10. 1 अंडे को फेंट कर उसकी जर्दी को बालों में लगाएं और आधे घंटे बाद शैंपू से बालौं को धो लें। ऎसा सप्ताह में एक बार करें। ऎसा करने से आपके बाल मजबूत होंगे। समय रहते यदि आप अपने झडते बालों में उपरोक्त बातें ध्यान में रखकर उपाय करेंगें तो आपको कम उम्र में गंजेपन की समस्या का सामनानहीं करना पडेगा। साथ ही आपके बाल मजबूत, घने और चमकदार रहेंगे।

सोमवार, 10 जनवरी 2011

मधुमेह दमन चूर्ण

रक्त में शर्करा की मात्रा अधिक होना और मूत्र में शर्करा होना 'मधुमेह' रोग होना होता है। यहाँ मधुमेह रोग को नियन्त्रित करने वाली परीक्षित और प्रभावकारी घरेलू चिकित्सा में सेवन किए जाने योग्य आयुर्वेदिक योग 'मधुमेह दमन चूर्ण' का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है।

घटक द्रव्य - नीम के सूखे पत्ते 20 ग्राम, ग़ुडमार 80 ग्राम, बिनोले की मींगी 40 ग्राम, जामुन की गुठलियों की मींगी 40 ग्राम, बेल के सूखे पत्ते 60 ग्राम।


निर्माण विधि - सब द्रव्यों को खूब कूट-पीसकर मिला लें और इस मिश्रण को 3 बार छानकर एक जान कर लें। छानकर शीशी में भर लें।

मात्रा और सेवन विधि - आधा-आधा चम्मच चूर्ण, ठण्डे पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करें।

लाभ - यह योग मूत्र और रक्त में शर्करा को नियन्त्रित करता है। इसका प्रभाव अग्न्याशय और यकृत के विकारों को नष्ट कर देता है। इसका सेवन कर मधुमेह रोग को नियन्त्रित किया जा सकता है। इसके साथ वसन्त कुसुमाकर रस की 1 गोली प्रतिदिन लेने से यह रोग निश्चित रूप से नियन्त्रित रहता है। यह योग इसी नाम से बाजार में मिलता है।

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