बुधवार, 19 जनवरी 2011

कोलेस्टरोल कम करने के आसान उपाय.

१) एल.डी एल.कोलेस्टरोल- ---यह हानिकारक कोलेस्टरोल रक्त वाहिकाओं में जमता रहता है, जिससे वे भीतर से संकरी हो जाती है और उनमें दौडने वाले खून के प्रवाह में बाधा उत्पन्न होने से हार्ट अटैक और हाई ब्लड प्रेशर जैसे हृदय रोग  जन्म लेते हैं।
२) एच.डी.एल.कोलेस्टरोल-- यह लाभदायक कोलेस्टरोल माना जाता है । खून में इसका वांछित स्तर बना रहने से हृदय रोगों की संभावना कम हो जाती है। यह खराब और  हानिकारक कोलेस्टरोल को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया में मददगार होता है।
३) ट्राईग्लिसराईड कोलेस्टरोल भी हानिकारक होता है। हार्ट अटैक रोग में इसकी जिम्मेदारी  काफ़ी  अहम मानी गई है।
कोलेस्टरोल नियंत्रित और कम करने के लिये निम्न उपाय करना उचित है--

१) पर्याप्त रेशे वाली खाद्य वस्तुएं दैनिक भोजन में शामिल करें।हरी पत्तेदार सब्जियों में प्रचुर रेशा होता है। इनका ज्युस भी लाभदायक है। सब्जियों में कोलेस्टरोल नहीं होता है।

२) सभी तरह के फ़ल खाएं। कोलेस्टरोल घटाने में इनका विशेष महत्व है।

३) साबुत अनाज,भूरे चावल जई,सोयाबीन का उपयोग करना लाभप्रद है। सोयाबीन में उच्चकोटि का प्रोटीन होताहै।। आलू और चावल में कोलेस्टरोल और सोडियम नहीं होते हैं और कोलेस्टरोल नियंत्रण के लिये इनके उपयोग की अनदेखी नहीं करना चाहिये।

४) टमाटर ,गाजर,सेवफ़ल,नारंगी,पपीता आदि फ़ल खूब खाएं।

५) एक अनुसंधान में यह तथ्य सामने आया है कि काली और हरी चाय का उपयोग कोलेस्टरोल नियंत्रण का सशक्त उपाय है। ज्यादा चाय पीने वालों को हार्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है। लेकिन यह  चाय  दूध और शकर रहित होनी चाहिये।

६)  तेल और वनस्पति घी में तली वस्तुएं खाने से खराब कोलेस्टरोल तेजी से बढता है। इनसे बचें।सब्जी, दाल का स्वाद मसालों से बढाएं। तेल,घी न्युनतम व्यवहार करें। कचोरी समोसे तो कभी न खाएं। लेकिन इस जगह यह लिखना भी जरूरी है कि जेतुन का तेल कोलेस्टरोल कम करता है। मंहगा जरूर है पर बहुत ज्यादा फ़ायदेमंद भी है।

७)  मांस खाने से खराब कोलेस्टरोल बढता है। यह हृदय रोग उत्पन्न करता है। मांस खाना छोड दें।

८)  लहसुन का प्रयोग कोलेस्टरोल घटाता है। सुबह ३-४ लहसुन की कली  कच्ची चबाकर खाएं। इसमें खून को पतला करने के तत्व हैं जो खून मे थक्का जमने से बचाव करते हैं। भोजन में भी पर्याप्त लहसुन का प्रयोग करें।

९) कच्चा प्याज ,बादाम, अखरोट,खारक का समुचित उपयोग उत्तम है। इनमें उच्चकोटि की वसा पायी जातीहै।

१०) शकर से कोलेस्टरोल की वृद्धि होती है। अत: न्युनतम उपयोग करें।

११) मछली का तेल बुरे कोलेस्टरोल को नियंत्रित करता है। काड लिवर आईल भी उत्तम है।

१२)  नियमित रुप से व्यायाम( घूमने,सीढी चढने) करने से कोलेस्टरोल नियंत्रण में रहता है।

 योगासन और प्राणायाम कोलेस्टरोल घटाने मे आशातीत लाभप्रद परिणाम प्रस्तुत करते  हैं।

१३) एलोपैथी के चिकित्सक कोलेस्टरोल कम करने के लिये स्टेटिन दवा का व्यवहार करते हैं।

१४) आयुर्वेदिक वैध्य  अर्जुन की छाल का काढा,त्रिफ़ला,पुनर्नवा मंडूर ,आरोग्यवर्धिनी वटी तथा चन्द्रप्रभा वटी का उपयोग करते हैं।

१५) कोलेस्टरोल कम करने के लिये जीवनशैली में बदलाव बेहद जरूरी है। मोटापा कम करने से भी कोलेस्टरोल नियंत्रण में मदद मिलती है। आलसी जीवन से कोलेस्टरोल बढता है।

थकान उतारने के आसान तरीके

अधिक परिश्रम करने से शरीर में थकान आ जाती है, शरीर सुस्त हो जाता है। फिर कुछ काम करने का मन नहीं करता, सिर्फ आराम की जरूरत महसूस होती है।

थकान उतारने के लिए आप कुछ इस तरह प्रयास करें-

अपनी दो अँगुलियों के पोरों से चेहरे की हल्की मालिश करें। इससे ब्लड सर्कूलेशन बढ़ेगा, जिससे आप महसूस करेंगे कि आपकी थकान रफूचक्कर हो गई है।

* नाक के दोनों ओर हल्की मालिश करते हुए धीरे-धीरे दोनों आँखों के बीच वाले भाग से लेकर आँखों के नीचे भी हल्की मालिश करें। फिर इसी तरह से भौहों तक पहुँचें।

* भौहों पर हल्का दबाव डालते हुए अंदर से बाहर की ओर मालिश करें।

* अब आँखों के बाहरी किनारों पर मालिश करते हुए ललाट तक पहुँचें।

* इसके बाद आँखों के एकदम नीचे की ओर आएँ। गालों के बीच हल्की मालिश करते हुए फिर ऊपर से ही मसूड़ों की भी मालिश करें। इसके बाद जबड़ों को अंगुलियों की पकड़ में लें और जबड़ों के किनारों पर हल्का दबाव डालें।

* कई बार सुगंधित तेल के प्रयोग से भी शरीर की थकावट को भगाया जा सकता है। सुगंधित तेल से प्रभावित अंग की हल्की मालिश करने से ताजगी महसूस होती है, इसके लिए सुगंधित तेल की कुछ बूँदें वनस्पति तेल में मिलाकर मालिश करनी चाहिए। 

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

तुलसी एक दिव्य पौधा है।

तुलसी की २१ से ३५ पत्तियाँ स्वच्छ खरल या सिलबट्टे (जिस पर मसाला न पीसा गया हो) पर चटनी की भांति पीस लें और १० से ३० ग्राम मीठी दही में मिलाकर नित्य प्रातः खाली पेट तीन मास तक खायें। ध्यान रहे दही खट्टा न हो और यदि दही माफिक न आये तो एक-दो चम्मच शहद मिलाकर लें। छोटे बच्चों को आधा ग्राम दवा शहद में मिलाकर दें। दूध के साथ भुलकर भी न दें। औषधि प्रातः खाली पेट लें। आधा एक घंटे पश्चात नाश्ता ले सकते हैं। दवा दिनभर में एक बार ही लें परन्तु कैंसर जैसे असह्य दर्द और कष्टप्रद रोगो में २-३ बार भी ले सकते हैं।

इसके तीन महीने तक सेवन करने से खांसी, सर्दी, ताजा जुकाम या जुकाम की प्रवृत्ति, जन्मजात जुकाम, श्वास रोग, स्मरण शक्ति का अभाव, पुराना से पुराना सिरदर्द, नेत्र-पीड़ा, उच्च अथवा निम्न रक्तचाप, ह्रदय रोग, शरीर का मोटापा, अम्लता, पेचिश, मन्दाग्नि, कब्ज, गैस, गुर्दे का ठीक से काम न करना, गुर्दे की पथरी तथा अन्य बीमारियां, गठिया का दर्द, वृद्धावस्था की कमजोरी, विटामिन ए और सी की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग, सफेद दाग, कुष्ठ तथा चर्म रोग, शरीर की झुर्रियां, पुरानी बिवाइयां, महिलाओं की बहुत सारी बीमारियां, बुखार, खसरा आदि रोग दूर होते हैं।

यह प्रयोग कैंसर में भी बहुत लाभप्रद है।

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

घरेलू तेल के लाजवाब नुस्खे

अलसी का तेल : इसके तेल में विटामिन 'ई' पाया जाता है। कुष्ठ रोगियों को इसके तेल का सेवन करने से अत्यंत लाभ होता है। आग से जले हुए घाव पर इसके तेल का फाहा लगाने से जलन और दर्द में तुरंत आराम मिलता है। अलसी को भूनकर बकरी के दूध में पकाकर पुल्टिस बाँधने से फोड़े का दर्द बंद हो जाता है और फोड़ा फूट जाता है।

एरंड का तेल : रेड़ी के तेल को एरंड और केस्टर ऑइल कहते हैं। इस तेल का सेवन हृदय रोग, पुराना बुखार, पेट के वायु संबंधी रोग, अफरा, वायुगोला, शूल, कब्जियत और कृमि को दूर कर देता है। यह भूख को बढ़ाने वाला तथा यौवन को स्थिर रखने वाला होता है। शुद्ध तेल को एक छँटाक अथवा आधी छँटाक पीने से यह जुलाब का काम करता है। बेसन में इसके तेल को मिलाकर शरीर पर उबटन करने से चमड़ी का रंग साफ हो जाता है।

जैतून का तेल : जैतून के तेल को ऑलिव ऑइल कहते हैं। शरीर पर इसकी मालिश सर्दी को दूर करने वाली, सूजन मिटाने वाली, लकवा, गठिया, कृमि और वात रोगों से छुटकारे के लिए अत्यंत हितकारी होती है।

नारियल का तेल : नारियल के तेल में भी विटामिन 'ई' पाया जाता है। यह तेल ठंडा, मधुर, भारी, ग्राही, पित्त नाशक तथा बालों को बढ़ाने वाला होता है। इसे बालों में लगाने से बाल चिकने, काले, लंबे हो जाते हैं।

सरसों का तेल : सरसों के तेल में विटामिन ए, बी व ई पाए जाते हैं। यह गर्म होता है। इसमें नमक मिलाकर दाँतों में मलने से दाँत दर्द, पायरिया रोग दूर होता है और दाँत मजबूत होते हैं।

बिनौला तेल : इसके सेवन से स्तनों में अधिक दूध उत्पन्न होता है। फोड़ा, फुँसी, खुजली, सूजन, जोड़ों का दर्द, गठिया आदि रोगों को यह दूर करता है।

राई का तेल : यह चर्म रोग को दूर करने वाला होता है। इसे सरसों के तेल की तरह ही खाने के उपयोग में लिया जाता है।

तिल का तेल : तिल का तेल स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। यह मधुर, सूक्ष्म, कसैला, कामशक्ति बढ़ाने वाला होता है। इसके तेल में हींग और सौंठ मिलाकर गर्म करके शरीर पर मालिश करने से कमर, जोड़ों का दर्द, लकवा रोग मिट जाता है। यह खाने से ज्यादा मालिश में गुणकारी होता है।

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

अवलेह पाक (चाटी जाने वाली दवा)

सुपारी पाक : बच्चा होने के बाद महिलाओं को इसका सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से गर्भावस्था और प्रसवकाल की दुर्बलता दूर होकर शरीर पुष्ट व स्वास्थ्य उन्नत होता है। रक्तपित्त, क्षय, उरक्षत, प्रमेह नाशक, व वीर्यवर्धक, प्रदर रोग नाशक, मूत्रघात नाशक, गर्भाशय संबंधी रोगों में लाभकारी। मात्रा 10 से 15 ग्राम-प्रातः सायं दूध से।

हरिद्राखंड : शीत पित्त (पित्ती), चकत्ते, खुजली, विस्फोट (फफोले), दाद, एलर्जी, आदि रोगों की प्रसिद्ध औषधि। नियमित प्रयोग से शरीर की कांति बढ़ाता है। मात्रा 5 से 10 ग्राम दूध अथवा जल से।

सिद्ध घृ

फलकल्याण घृत (फल घृत) : स्त्रियों के शरीर या कमर का दर्द तथा कमजोरी दूर करता है, गर्भ का पोषण करता है, गर्भिणी स्वस्थ रहती है तथा सुंदर संतान की जननी बनती है। गर्भाशय के रोगों में गुणकारी एवं बन्धया स्त्रियों को हितकारी। मात्रा 5 से 10 ग्राम प्रातः-सायं दूध के साथ।

त्रिफला घृत : इसके सेवन से आंख की ज्योति बढ़ती है तथा रतौंध, आंखों से पानी बहना, खुजली पड़ना, रक्त दृष्टि, नेत्र पीड़ा और नेत्र विकार दूर होते हैं। त्रिफला के पूर्ण गुण होने के साथ-साथ स्निग्धता भी आती है अतः पेट साफ रहता है। मात्रा 5 से 10 ग्राम प्रातः-सायं दूध के साथ।
ब्रह्म रसायन : शारीरिक व मानसिक दुर्बलता दूर कर नवशक्ति का संचार करने वाला अपूर्व रसायन। श्वास, कास में लाभप्रद तथा दिमागी कार्य करने वालों के लिए उपयुक्त। मात्रा 3 से 10 ग्राम गर्म दूध के साथ सुबह-शाम लेना चाहिए।

मूसली पाक (केशरयुक्त) : अत्यंत पौष्टिक है। असंयमजनित रोगों को दूर कर शरीर को पुष्ट बनाता है। बल, वीर्यवर्धक, बाजीकारक एवं शक्तिदायक। शरद ऋतु में शक्ति संचय हेतु उपयुक्त। मात्रा 10 से 15 ग्राम प्रातः-सायं दूध से।

वासावलेह : सभी प्रकार की खांसी, श्वास, दमा, क्षय, रक्तपित्त, पुरानी खांसी के साथ खून आना, फेफेड़ों की कमजोरी आदि रोगों को नष्ट करता है। मात्रा 10 से 25 ग्राम सुबह-शाम दूध के साथ।
चित्रक हरीतिकी : पुराने और बार-बार होने वाले सर्दी-जुकाम (नजला) की अनुभूत दवा है। पीनस, श्वास, कास तथा उदर रोगों में गुणकारी एवं अग्निवर्धक। मात्रा 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम।

बादाम पाक (केशर व भस्मयुक्त) : दिल और दिमाग को ताकत देता है। नेत्रों को हितकारी तथा शिरा रोग में लाभकारी। शरीर को पुष्ट करता है और वजन बढ़ाता है। सर्दियों में सेवन करने योग्य उत्तम पुष्टि दायक है। सभी आयु वालों के लिए पौष्टिक आहार। मात्रा 10 से 20 ग्राम प्रातः-सायं दूध से।

कुष्मांड (खंड) अवलेह : रक्तपित्त, कांस, श्वास, उल्टी, प्यास व ज्वर, नाशक, मुंह, नाक, गुदा इन्द्रियों आदि से खून आने पर लाभकारी। नेत्रों को हितकारी, बल, वीर्यवर्धक एवं पौष्टिक। स्वर शुद्ध करता है। मात्रा 15 ग्राम सुबह-शाम चाटना चाहिए।

च्यवनप्राश अवलेह (अष्टवर्गयुक्त) : सप्त धातुओं को बढ़ाकर शरीर का काया कल्प करने की प्रसिद्ध औषधि। फेफेड़े के विकार, पुराना श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, पुराना बुखार, खून की कमी, कैल्शियम की कमी, क्षय, रक्तपित्त, रक्त क्षय, मंदाग्नि, धातु क्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध औषधि। इसमें स्वाभाविक रूप से विटामिन 'सी' पर्याप्त मात्रा में होता है। बल, वीर्यवर्धक है। मात्रा 10 से 25 ग्राम (2-4 चम्मच) दूध के साथ सुबह-शाम सोते समय।

आयुर्वेद भस्म व पिष्टी

अकीक भस्म : हृदय की निर्बलता, नेत्र विकार, रक्त पित्त, रक्त प्रदर आदि रोग दूर करती है। (नाक-मुंह से खून आना) मात्र 1 से 3 रत्ती।

अकीक पिष्टी : हृदय और मस्तिष्क को बल देने वाली तथा वात, पित्त नाशक, बल वर्धक
और सौम्य है।

अभ्रक भस्म (साधारण) : हृदय, फेफड़े, यकृत, स्नायु और मंदाग्नि से उत्पन्न रोगों की सुप्रसिद्ध दवा है। श्वास, खांसी, पुराना बुखार, क्षय, अम्लपित्त, संग्रहणी, पांडू, खून की कमी, धातु दौर्बल्य, कफ रोग, मानसिक दुर्बलता, कमजोरी आदि में लाभकारी है। मात्रा 3 से 6 रत्ती शहद, अदरक या दूध से।

अभ्रक भस्म (शतपुटी पुटी) (100 पुटी) : इसमें उपर्युक्त गुण विशेष मात्रा है। मात्रा 1 से 2 रत्ती।

अभ्रक भस्म (सहस्त्र पुटी) (1000 पुटी) : इसमें साधारण भस्म की अपेक्षा अत्यधिक गुण मौजूद रहते हैं। मात्रा 1/4 से 1 रत्ती।

कपर्दक (कौड़ी, वराटिका, चराचर) भस्म : पेट का दर्द, शूूल रोग, परिणाम शूल अम्लपित्त, अग्निमांद्य व फेफड़ों के जख्मों में लाभकारी। मात्रा 2 रत्ती शहद अदरक के साथ सुबह व शाम को।

कसीस भस्म : रक्ताल्पता में अत्यधिक कमी, पांडू, तिल्ली, जिगर का बढ़ जाना, आम विकार, गुल्म आदि रोगों में भी लाभकारी। मात्रा 2 से 8 रत्ती।

कहरवा पिष्टी (तृणकांतमणि) : पित्त विकार, रक्त पित्त, सिर दर्द, हृदय रोग, मानसिक विकार, चक्कर आना व सब प्रकार के रक्त स्राव आदि में उपयोगी। मात्रा 2 रत्ती मक्खन के साथ।

कांतिसार (कांत लौह फौलाद भस्म) : खून को बढ़ाकर सभी धातुओं को बढ़ाना इसका मुख्य गुण है। खांसी, दमा, कामला, लीवर, प्लीहा, पांडू, उदर रोग, मंदाग्नि, धातुक्षय, चक्कर, कृमिरोग, शोथ रोगों में लाभकारी तथा शक्ति वर्द्धक। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती।

गोदन्ती हरताल (तालक) भस्म : ज्वर, सर्दी, खांसी, जुकाम, सिर दर्द, मलेरिया, बुखार आदि में विशेष लाभकारी। मात्रा 1 से 4 रत्ती सुबह व शाम को शहद व तुलसी के रस में।

जहर मोहरा खताई भस्म : शारीरिक एवं मानसिक बल को बढ़ाती है तथा विषनाशक है। अजीर्ण, कै, उल्टी, अतिसार, यकृत विकार, घबराहट, जीर्ण ज्वर, बालकों के हरे-पीले दस्त एवं सूखा रोग में लाभकारी। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद में।

जहर खताई पिष्टी : गुण, जहर मोहरा खताई भस्म के समान, किंतु अधिक शीतल, घबराहट व जी मिचलाने में विशेष उपयोगी। मात्रा 1 से 3 रत्ती शर्बत अनार से।
टंकण (सुहागा) भस्म : सर्दी, खांसी में कफ को बाहर लाती है। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद से।

ताम्र (तांबा) भस्म : पांडू रोग, यकृत, उदर रोग, शूल रोग, मंदाग्नि, शोथ कुष्ट, रक्त विकार, गुर्दे के रोगों को नष्ट करती है तथा त्रिदोष नाशक है। मात्रा 1/2 रत्ती शहद व पीपल के साथ।

नाग (सीसा) भस्म : वात, कफनाशक, सब प्रकार के प्रमेह, श्वास, खांसी, मधुमेह धातुक्षय, मेद बढ़ना, कमजोरी आदि में लाभकारी। मात्रा 1 रत्ती शहद से।

प्रवाल (मूंगा) भस्म : पित्त की अधिकता (गर्मी) से होने वाले रोग, पुराना बुखार, क्षय, रक्तपित्त, कास, श्वास, प्रमेह, हृदय की कमजोरी आदि रोगों में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद अथवा शर्बत अनार के साथ।

प्रवाल पिष्टी : भस्म की अपेक्षा सौम्य होने के कारण यह अधिक पित्त शामक है। पित्तयुक्त, कास, रक्त, रक्त स्राव, दाह, रक्त प्रदर, मूत्र विकार, अम्लपित्त, आंखों की जलन, मनोविकार और वमन आदि में विशेष लाभकारी है। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद अथवा शर्बत अनार से।

पन्ना पिष्टी : रक्त संचार की गति को सीमित करके विषदोष को नष्ट करने में उपयोगी है। ओज वर्द्धक है तथा अग्निप्रदीप्त कर भूख बढ़ाती है। शारीरिक क्षीणता, पुराना बुखार, खांसी, श्वास और दिमागी कमजोरी में गुणकारी है। मात्रा 1/2 रत्ती शहद से।

वंग भस्म : धातु विकार, प्रमेह, स्वप्न दोष, कास, श्वास, क्षय, अग्निमांद्य आदि पर बल वीर्य बढ़ाती है। अग्निप्रदीप्त कर भूख बढ़ाती है तथा मूत्राशय की दुर्बलता को नष्ट करती है। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह व शाम शहद या मक्खन से।

मण्डूर भस्म : जिगर, तिल्ली, शोथ, पीलिया, मंदाग्नि व रक्ताल्पता की उत्तम औषधि। मात्रा 2 रत्ती शहद से।

मयूर चन्द्रिका भस्म : हिचकी और श्वास (दमा) में अत्यंत गुणकारी है। वमन (उल्टी) व चक्कर आदि में लाभकारी। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद से।

माणिक्य पिष्टी : समस्त शारीरिक और मानसिक विकारों को नष्ट कर शरीर की सब धातुओं को पुष्ट करती है और बुद्धि को बढ़ाती है। मात्रा 1/2 रत्ती से 2 रत्ती तक।
मुक्ता (मोती) भस्म : शारीरिक और मानसिक पुष्टि प्रदान करने वाली प्रसिद्ध दवा है। चित्त भ्रम, घबराहट, धड़कन, स्मृति भंग, अनिद्रा, दिल-दिमाग में कमजोरी, रक्त पित्त, अम्ल पित्त, राजयक्षमा, जीर्ण ज्वर, उरुःक्षत, हिचकी आदि की श्रेष्ठ औषधि। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती
तक।

मुक्ता शुक्ति भस्म : रक्त पित्त, जीर्ण ज्वर, दाह, धातुक्षय, तपेदिक, मृगी, खांसी, यकृत, प्लीहा व गुल्म नाशक। मात्रा 2 रत्ती शहद से प्रातः व सायं।

मुक्ता (मोती) पिष्टी : मुक्ता भस्म के समान गुण वाली तथा शीतल मात्रा। 1/2 से 1 रत्ती शहद या अनार के साथ।

मुक्ता शुक्ति पिष्टी : मुक्ता शुक्ति भस्म के समान गुणकारी तथा प्रदर पर लाभकारी।

मृगश्चृ (बारहसिंगा) भस्म : निमोनिया, पार्श्वशूल, हृदय रोग, दमा, खांसी में विशेष लाभदायक, बालकों की हड्डी बनाने में सहायक है। वात, कफ, प्रधान ज्वर, (इन्फ्लूएंजा) में गुणकारी। मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद से।

यशद भस्म : कफ पित्तनाशक है। पांडू, श्वास, खांसी, जीर्णज्वर, नेत्ररोग, अतिसार, संग्रहणी आदि रोगों में लाभदायक। मात्रा 1 रत्ती शहद से।

रजत (रौप्य, चांदी) भस्म : शारीरिक व मानसिक दुर्बलता में लाभदायक है। वात, पित्तनाशक, नसों की कमजोरी, नपुंसकता, प्रमेह, धारुत दौर्बल्य, क्षय आदि नाशक तथा बल और आयु को बढ़ाने वाली है। मात्रा 1 रत्ती प्रातः व सायं शहद या मक्खन से।

लौह भस्म : खून को बढ़ाती है। पीलिया, मंदाग्नि, प्रदर, पित्तविकार, प्रमेह, उदर रोग, लीवर, प्लीहा, कृमि रोग आदि नाशक है। व शक्ति वर्द्धक है। मात्रा 1 रत्ती प्रातः व सायं शहद और मक्खन के साथ।

लौह भस्म (शतपुटी) : यह साधारण भस्म से अधिक गुणकारी है।

शंख (कंबू) भस्म : कोष्ठ शूल, संग्रहणी, उदर विकार, पेट दर्द आदि रोगों में विशेष उपयोगी है। मात्रा 1 से 2 रत्ती प्रातः व सायं शहद से।

स्वर्ण माक्षिक भस्म : पित्त, कफ नाशक, नेत्रविकार, प्रदर, पांडू, मानसिक व दिमागी कमजोरी, सिर दर्द, नींद न आना, मूत्रविकार तथा खून की कमी में लाभदायक। मात्रा 1 से 2 रत्ती प्रातः व सायं शहद से।

स्वर्ण भस्म : इसके सेवन से रोगनाशक शक्ति का शरीर में संचार होता है। यह शारीरिक और मानसिक ताकत को बढ़ाकर पुराने से पुराने रोगों को नष्ट करता है। जीर्णज्वर, राजयक्षमा, कास, श्वास, मनोविकार, भ्रम, अनिद्रा, संग्रहणी व त्रिदोष नाशक है तथा वाजीकर व ओजवर्द्धक है। इसके सेवन से बूढ़ापा दूर होता है और शक्ति एवं स्फूर्ति बनी रहती है। मात्रा 1/8 से 1/2 रत्ती तक।

संगेयशव पिष्टी : दिल व मेदे को ताकत देती है। पागलपन नष्ट करती है तथा अंदरूनी जख्मों को भरती है। मात्रा 2 से 8 रत्ती शर्बत अनार के साथ।

हजरूल यहूद भस्म : पथरी रोग की प्रारंभिक अवस्था में देने से पथरी को गलाकर बहा देती है। पेशाब साफ लाती है और मूत्र कृच्छ, पेशाब की जलन आदि को दूर करती है। मात्रा 1 से 4 रत्ती दूध की लस्सी अथवा शहद से।

हजरूल यहूद पिष्टी : अश्मीर (पथरी) में लाभकारी तथा मूत्रल।

हाथीदांत (हस्तिदंतमसी) भस्म : बालों का झड़ना रोकती है तथा नए बाल पैदा करती है। प्रयोग विधि : खोपरे के तेल के साथ मिलाकर लगाना चाहिए।

त्रिवंग भस्म : प्रमेह, प्रदर व धातु विकारों पर। गदला गंदे द्रव्ययुक्त और अधिक मात्रा में बार-बार पेशाब होने पर इसका उपयोग विशेष लाभदायक है। धातुवर्द्धक तथा पौष्टिक है। मात्रा 1 से 3 रत्ती।

आयुर्वेद रस-रसायन, वटी व गोलियाँ

अगस्ति सूतराज रस : संग्रहणी अतिसार, आमांश शूल व मंदाग्नि में। मात्रा 1 रत्ती प्रातः व सायं भुना जीरा, मठा या शहद में।

अग्नि तुंडी वटी : मंदाग्नि, पेट फूलना व हाजमे के लिए तथा अजीर्ण के दस्त बंद करती है। मात्रा 1 से 3 रत्ती।

अग्नि कुमार रस : अजीर्ण, मंदाग्नि एवं पेट दर्द आदि में। मात्रा 1 से 3 रत्ती।

अजीर्ण कंटक रस : अजीर्ण व हैजे में। मात्रा 1 से 3 रत्ती तक प्याज व अदरक रस के साथ।

अर्श कुठार रस : बवासीर व पद्धकोष्ठ में हल्का दस्तावर है। मात्रा 2 रत्ती शहद में।

आनंद भैरव रस : सन्निपात ज्वर, अतिसार, जीर्ण ज्वर, सर्दी, जुकाम, खाँसी व आमवातादि रोगों में। मात्रा 1 से 2 गोली शहद व पान के रस में।

आमवतारि रस : आमवात विकार के कारण शरीर के दर्द में लाभकारी। मात्रा 1 से 4 गोली गर्म पानी में अथवा दूध से।

आरोग्यवर्द्धिनी वटी नं.1 : पाचक, दीपक, मेदनाशक, मलावरोध, जीर्ण ज्वर, रक्त विकार, शोथ व यकृत रोगों में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 गोली रात्रि को ठंडे जल के साथ।

इच्छाभेदी रस : यह तीव्र दस्तावार है, शूल रोग मल का रुकना तथा पेट फूलने आदि पर लाभकारी है। तीन-चार दस्त लाकर पेट साफ करती है। मात्रा 1 से 2 गोली रात्रि को ठंडे जल के साथ।

एकांगवीर रस : गृध्रसी, विकलांगता आदि तीव्र वात विकारों में लाभदायक। अंगों में आई अशक्तता को दूर करने में लाभदायक। मात्रा 1 से 2 रत्ती।

एलादि वटी : सूखी खांसी, पुरानी खांसी, दमा, रक्त पित्त (मुंह से खून गिरना), वमन, स्वरभेद (गला बैठना), प्यास आदि में लाभकारी यह संग्राहक, वेदनाशामक तथा निद्राप्रदायक है। गले की खराबी, टांसिल फूलने में फायदेमंद। मात्रा 2 से 4 गोली चूसना चाहिए।

कफकुठार रस : कफ के अधिक गिरने तथा खाँसी और दमा में लाभकारी। सर्दी व जुकाम के बुखार में मात्रा 1 रत्ती शहद व पानी के साथ।

कफकेतू रस : कफजन्य बुखार, दमा, खाँसी, पीनस, गले के रोग, दाँत-कान व नेत्र रोगों पर, जुकाम आदि में लाभकारी। मात्रा 1 रत्ती शहद व पानी के रस में।

कर्पूर रस : पतले दस्त, संग्रहणी, ज्वरातिसार आदि में लाभकारी। यह संग्राहक तथा निद्राप्रदायक दवा है। मात्रा 1 -1 रत्ती तीन बार छोटे बच्चों को 1/4 रत्ती।
कल्पतरू रस : खाँसी, क्षय, श्वास, बुखार, अजीर्ण, मुख रोग व कफ ज्वर नाशक है। मात्रा 2 रत्ती शहद व अदरक के साथ।

काम दूधा रस : रक्त पित्त, अम्ल पित्त, वमन, पित्त वृद्धि, भ्रम आदि पित्त विकारों में लाभकारी। मात्रा 2 से 6 रत्ती।

काम दुधा (मौक्तिक युक्त) : पित्तजन्य समस्त रोगों में लाभदायक। रक्त पित्त, अम्ल पित्त, गर्भवती के वमन एवं रक्त स्राव आदि में लाभकारी। मात्रा 1-1 रत्ती दिन में तीन समय।

कामिनी विद्रावण रस : शुक्रवर्द्धक एवं स्तंभन शक्तिवर्द्धक। मात्रा 1 से 2 गोली रात को दूध में।

कुमार कल्याण रस (स्वर्णयुक्त) : बच्चों के सभी रोग, जैसे ज्वर, खाँसी, श्वास, उल्टी, दस्त होना, दूध डालना, सूखा रोग, पसली चलना आदि में शीघ्र लाभकारी तथा बच्चों को बलवान बनाता है। मात्रा 1/4 रत्ती सुबह व शाम मां के दूध के साथ।

कुटजघन वटी : ज्वर, अतिसार और संग्रहणी में पतले दस्त होने पर लाभकारी। मात्रा 2 से 4 रत्ती।

क्रव्याद रस (वृहत) : मंदाग्नि मूलक रोगों एवं उदर रोगों में लाभदायक। अत्यंत अग्निदीपक, शूल, बादी से पैदा गाँठें व कब्जियत पर लाभकारी। मात्रा 2 से 4 रत्ती।

कृमि कुठार रस : पेट के कीड़ों को नष्ट करता है। मात्रा 2 से 4 रत्ती सुबह-शाम वायविडंग के काढ़े के साथ।

कांकयन वटी : खूनी बवासीर व बादी दोनों में लाभकारी। मात्रा 2 गोली सुबह-शाम।

खादिरादि वटी : स्वर भंग, खाँसी, मुँह में छाले पड़ना, होठों के विकार में गोली चूसने पर आराम मिलता है। खून की गर्मी नष्ट करती है।

गर्भपाल रस : गर्भपात एवं गर्भ के कारण होने वाले वमन, अरुचि आदि में लाभकारी तथा गर्भ पोषक है। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम शहद से।

गर्भ चिंतामणि रस वृहत (स्वार्णयुक्त) : असमय तथा बार-बार गर्भ का गिरना, गर्भ के कारण उत्पन्न रोगों में लाभकारी। इससे गर्भ की रक्षा तथा पोषण होता है। गर्भिणियों के ज्वर, दाह, आदि के लिए उपयुक्त। मात्रा 1 से 2 रत्ती।

गुडुत्ती (गिलोय) सत्व : जीर्ण ज्वर, रक्तपित्त, प्रमेह, पांडू तथा जलन आदि में लाभप्रद। मात्रा 2 से 6 रत्ती।
गंधक वटी : रक्त शोधक, अजीर्ण, अतिसार, संग्रहणी, हैजा, वायुगोला व पेट के रोगों में लाभकारी। मात्रा 2 से 4 गोली भोजन के बाद गर्म जल के साथ।

गंधक रसायन : सब प्रकार के रक्त विकार, कुष्ठ रोग, खाज-खुजली, फोड़े-फुंसी, चकत्ता, वातरक्त आदि रक्त एवं चर्म रोगों को दूर करता है। रसायन पुष्टिकारक तथा पाचन अग्नि बढ़ाने में उपयोगी है। मात्रा 1 से 4 रत्ती सुबह-शाम दूध से।

ग्रहणी कपाट रस : संग्रहणी, अतिसार, मंदाग्नि, आमातिसार व अजीर्ण के दस्त दूर करता है। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम जीरा, जायफल व शहद से।

चन्दनादि वटी : प्रमेह आदि में, पेशाब की जलन को दूर कर पेशाब खुलकर लाती है। पेशाब में मवाद आना, पुराना सुजाक आदि रोगों में लाभकारी। मात्रा 1-1 गोली दिन में तीन बार पानी अथवा दूध की लस्सी से।

चन्द्रप्रभा रस : असंयमजनित सभी प्रकार के विकार, मूत्राशय की दुर्बलता, स्नायु दौर्बल्य, सब प्रकार के प्रमेह, पथरी, सुजाक, मूत्र दोष, धातु क्षीणता, पेशाब में धातु जाना, प्रदर व रजोधर्म संबंधी रोगों में अत्यंत लाभकारी। मात्रा 1 से 2 गोली प्रातः व सायं दूध के साथ

चन्द्रकला रस (मौक्तिक युक्त) : रक्त पित्त, रक्त स्राव, दाह, वमन एवं अन्यान्य पित्त विकारों में लाभकारी। मात्रा 1/2 सुबह व शाम।

चन्द्रामृत वटी : जुकाम व गले की खराब से खाँसी, श्वास, रक्तपित्त, प्यास, जीर्ण ज्वर आदि में मात्रा 1 से 3 रत्ती।

चन्द्रोदय वर्ती : तिमिर, मांस, वृद्धि, मोतियाबिंद, रतौंधी, फूला, नेत्र के दाने व पटलनाशक में लें। गुलाब जल या पानी में घिसकर लगाना।

चतुर्मुख रस (स्वर्णयुक्त) : समस्त प्रकार के वायु स्नायु रोग, दौर्बल्य, मानसिक विकार, शारीरिक क्षीणता, मूत्र विकार, पुराना बुखार, खांसी, अम्लपित्त, प्रसूत ज्वर आदि में लाभकारी। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती दिन में दो बार।

चिंतामणि रस (स्वर्णयुक्त) : मानसिक विकार को दूर कर रक्त संचार को नियमित करता है। अनिद्रा, घबराहट, भ्रम आदि में उपयोगी। मात्रा 1/2 से 1 रत्ती दिन में दो बार।

चित्रकादि वटी : पाचन शक्ति की कमी, अरुचि, आंव, पेचिश, संग्रहणी, रोसेज आदि रोगों को दूर करती है। मात्रा 2 से 4 गोली भोजन के बाद।

ज्वरांकुश रस : नया बुखार, विषम ज्वर, पारी से आने वाले बुखार में अत्यंत लाभकारी एवं मल शोधक। मात्रा 1 से 2 रत्ती नीबू के रस या शहद में।

जलोदरारि रस : जलोदर रोग से शरीर में एकत्रित जल को सुखाती तथा बाहर निकालती है और फिर संचय नहीं होने देती है तथा दस्तावर भी है। यकृत वृद्धि व उदर रोगों पर लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती शहद में।

जयमंगल रस (स्वर्णयुक्त) : जीर्ण ज्वर, धातुगत ज्वर और कठिन बुखारों में अत्यंत लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती सतगिलोय, सितोपलादि चूर्ण व शहद के साथ।

जवाहर मोहरा (स्वर्णयुक्त) : दिल व दिमाग को ताकत देता है। घबराहट, चक्कर आना तथा बेचैनी में लाभकारी। मात्रा 1/2 रत्ती दिन में 2-3 बार शहद या फल के रस के साथ।

तालकेश्वर रस : रक्त विकार, खाज, खुजली, वात रक्त, उपदंश आदि में मात्रा 1/2 से 1 रत्ती शहद अथवा मक्खन के साथ।

तारकेश्वर रस : बार-बार पेशाब लगने अथवा पेशाब के साथ-साथ विभिन्न पदार्थों के निकलने की अवस्था में रस, रक्तादि धातुओं को बढ़ाकर शरीर को पुष्ट करता है। मात्रा 1 से 2 रत्ती।

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