रविवार, 3 अप्रैल 2011

गर्दन का व्यायाम कई रोगों को दूर करता है

रीढ़ की हड्डी को कशेरुक दंड या मेरुदंड कहा जाता है। इससे समस्त कंकाल को सहारा मिलता है। रीढ़ की हड्डी या मेरुदंड में 33 कशेरुकाएं होती हैं जिसमें से 7 कशेरुकाएं गर्दन में होती हैं। इन्हें सर्वाइकल बर्टिब्रा कहा जाता है इन कशेरूकाओं के बीच फाइब्रो कार्टिलेज डिस्क होते हैं जिसके चलते कशेरुकाएं एक दूसरे से नहीं जुड़ती तथा सिर को मोड़ने या घुमाने में इससे मदद मिलती है यदि गर्दन में दर्द होने लगे तथा वह दर्द हाथों तक फैल जाए और उंगलियों में झनझनाहट महसूस हो तो यह सर्वाइकल स्पांडिलाइटिस से ग्रसित होने की निशानी है या आगे चलकर आप इस रोग से ग्रसित हो सकते हैं। गर्दन में होने वाला स्पांडिलाइटिस नसों पर दबाव डालता है जिसके कारण दर्दों में वृध्दि होती है।

वातरोग के कारण गर्दन में निम्न जटिलताएं पैदा हो सकती हैं :-
प हाथों में दर्द प कंधों में दर्द प चक्कर आना प आंखों में तकलीफ प अनिद्रा प छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आना
वात रोगों से बचने के लिए निम्न उपाय अमल में लाएं-
प कड़े बिस्तर का इस्तेमाल करें। प अपनी क्षमता के अनुसार व्यायाम व योगासन करें। प अपना वजन नियंत्रित रखें। प हमेशा समतल बिस्तर का ही प्रयोग करें। प ठंडे कमरे में निवास न करें। प मक्खन, घी, शराब, मीठी पावरोटी, अंडे, मांस, सेम व कंदमूल वर्गीय खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
यह रोग निम्न कारणों से होता है-
प ऊंचे तकिए का प्रयोग करने से। प गर्दन झुकाकर काम करने से (दफ्तर, कम्प्यूटर, सिलाई-कढ़ाई के काम आदि) प गलत तरीके से सोने या लेटने पर। प अत्यधिक मानसिक तनाव के कारण
रोग चिकित्सा- चिकित्सा प्रारंभ करने से पहले एक्स-रे करवा कर निम्न बातों का निदान कर लेना चाहिए।
प रीढ़ का क्षय प रीढ़ के गर्दन वाले हिस्से का टेढ़ा हो जाना। प विभिन्न कशेरूकाओं में दर्द का सही कारण। प रीढ़ की कशेरूकाओं के बीच अंतर में आई कमी की संभावना।
अगर किसी मांसपेशी में दर्द हो रहा हो तो पतले तकिए का इस्तेमाल करना चाहिए तथा कड़े बिस्तर पर सोना चाहिए। यदि आप गर्दन झुका कर काम करते हैं तो गर्दन झुका कर काम करना बंद कर दें। इससे दर्द में राहत मिलेगी। सिर झुकाकर कोई व्यायाम या योगासन जैसे शीर्षासन, सर्वांगासन, हलासन आदि कदापि न करें।
गर्दन के निम्न व्यायाम करें :
व्यायाम 1 : सीधे खड़े हो जाएं या बैठ जाएं। स्वाभाविक रूप से सांस लेते हुए तथा सांस छोड़ते हुए सिर को एक बार बायीं ओर जितना घुमा सकें, घुमाएं। फिर बायीं ओर यथासंभव सिर घुमाएं। इस प्रक्रिया को एक बार मानकर इस व्यायाम को 10 बार करें।
व्यायाम 2 : इस व्यायाम को करने के लिए भी पिछले व्यायाम की तरह खड़े हो जाएं या बैठ जाएं। फिर स्वाभाविक रूप से सांस लेते हुए तथा छोड़ते हुए सिर को एक बार पीछे की ओर झुकाएं, फिर सीधा करें। इस पूरी प्रक्रिया को एक बार मानकर इस व्यायाम को भी 10 बार करें।
व्यायाम 3 : अब साइडवाइज बेन्डिंग- सीधा रहकर।
व्यायाम 4 : सिर को वृत्ताकार दायीं ओर से बायीं ओर घुमाएं तथा बायें ओर से दायें ओर घुमायें। इस प्रक्रिया को एक बार मानकर इसी प्रकार 10 बार करें। सिर को वृत्ताकार घुमाने से जिन्हें चक्कर आता हो, वे इस व्यायाम को न करें।
रूकावट डालने वाला व्यायाम (स्टेटिक एक्सरसाइज) : दायें-बायें गर्दन घुमाते समय हाथ से विपरीत दिशा में दबाव डाला जाता है। उस समय दबाव तथा गर्दन का दबाव बराबर रहने पर सिर स्थिर रहेगा, हिलेगा नहीं।
शोल्डर रोलिंग : पहले सीधे खड़े हो जाएं। उसके बाद दोनों कंधों को सामने से पीछे की ओर बारी-बारी से वृत्ताकार घुमाएं। फिर विपरीत दिशा में पीछे से सामने की ओर 10 बार घुमाएं। व्यायाम करते समय सांस स्वाभाविक रूप से लें और छोड़ें।
नेक पुलिंग : इस व्यायाम में किसी अन्य व्यक्ति की जरूरत पड़ती है। आप सीधे बैठ जाएं और सहायक व्यक्ति को अपने पीछे खड़ा करा दें जो अपने दोनों हाथों से कानों की ओर से आपके सिर को दबाए रखेगा तथा धीरे-धीरे खींचेगा। वह सिर को ऊपर की ओर 10 सेकेण्ड तक खींचकर पकड़े रहेगा। फिर ढीला छोड़ देगा। इस प्रकार 5-10 बार करना पड़ेगा।
सहज अर्ध्दमत्स्येन्द्रासन : सुखासन या पद्मासन में बैठ जाएं। रीढ़ को सीधा रखते हुए दायां हाथ बाएं घुटने पर रखें। बाएं हाथ को पीठ के पीछे ले जाकर सिर व गर्दन को बायीं ओर जितना संभव हो सके, मोड़ें तथा मन ही मन 20 तक गिनती करें। इसी प्रकार सिर और गर्दन को दायें ओर घुमाकर सम्पूर्ण शरीर को दायें ओर मरोड़े। व्यायाम करते समय स्वाभाविक रूप में सांस ले और छोड़ें।
यष्टि आसन : श्वासन की मुद्रा में लेट जाएं तथा दोनों हाथों को सिर के पीछे ले जाएं। स्वाभाविक रूप से सांस लें तथा छोड़ें। पांव के तलवे नीचे की ओर तथा हथेलियां ऊपर की ओर रखें। इस मुद्रा में करीब 30 सेकण्ड तक रहें। इसे दो बार करें।
गोमुखासन : बायें घुटने पर दायां घुटना रख कर बैठें। बायें पैर की एड़ी दायें नितंब से तथा दायें पैर की एड़ी बायें नितंब से सटाकर रखें। दायें हाथ को सिर के ऊपर से उठाकर कोहनी से मोड़ लें तथा पीठ के समानांतर नीचे की ओर उतारें।
बायां हाथ कोहनी से मोड़कर पीछे ले जाएं। दोनों हाथों की अंगुलियां हुक की तरह बनाकर आपस में फंसा दें। रीढ़ सीधी रखें। स्वाभाविक रूप से सांस लें तथा छोड़ें। मन ही मन 20 तक गिनें। अब पांव व हाथ बदल लें। दायें से बायें मिला कर एक बार मानें और इस प्रकार दो बार करें।

नींबू में गुण बहुत हैं

नींबू विटामिन- सी का महत्वपूर्ण स्रोत है। वैसे तो सभी प्रकार के नींबू गुणों से भरपूर होते हैं किन्तु कागजी नींबू सबसे अच्छा माना जाता है। प्रस्तुत है नींबू के औषधीय गुण और घरेलू नुस्खें। आप भी इन्हें आजमाइए।

1) बाल गिरने, बालों के सफेद होने पर, सिर में रूसी व जुएं होने पर नींबू के रस में आंवले का चूर्ण मिलाकर सिर धोने से फायदा होता है।
2) चावल बनाते समय नींबू के रस की कुछ बूंदे डाल देने से चावल एक दूसरे से जुड़ते नहीं हैं और खिले-खिले तैयार होते हैं।
3) मुंहासे दूर करने के लिये चौथाई नींबू का रस निचोड़ कर उसमें थोड़ी से मलाई मिलाकर इसे एक महीने तक चेहरे पर लगाते रहने से चेहरे पर निखार आ जाता है तथा मुंहासे दूर होते हैं।
4) नींबू के रस में काली मिर्च, धनिया और भुना हुआ जीरा मिलाकर सेवन करने से पेट का विकार दूर होता है।
5) नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर लगाने से खुजली में आराम मिलता है।
6) सब्जी, दाल, सलाद आदि में नींबू के रस की बूंदे मिला देने से उनका स्वाद बढ़ जाता है।
7) नींबू के छिलकों को दांत पर रगड़ने से दांत स्वच्छ सुंदर तथा चमकीले हो जाते हैं।
8) नींबू के रस में लौंग पीसकर लगाने से दांत के दर्द में आराम मिलता है।
9) पानी और शक्कर में नींबू का रस मिलाकर पीने से पीलिया रोग से मुक्ति मिलती है।
10) पानी में नींबू का रस मिलाकर कुल्ला करने से मुंह की बदबू दूर हो जाती है।
11) कब्ज की शिकायत होने पर नित्य प्रति हल्के गर्म पानी में नींबू का रस सुबह शाम लेना चाहिये।
12) मोटापा दूर करने के लिये प्रात: काल उठते ही एक गिलास पानी में नींबू का रस दो चम्मच, शहद मिलाकर नियमित पीने से लाभ होता है।

क्या आप अपने सांवले रंग से परेशान हैं...?

अक्सर कुछ लोग अपने सांवले रंग से परे शान रहते हैं। सांवला रंग कभी किसी के करियर में रुकावट बनता है तो कभी शादी ब्याह में। ज्यादातर लड़के लड़कियां भी अपने लिए गोर रंग के हमसफर को प्रीफर करते है।अगर आप अपने सांवले रंग से परेशान हैं तो घबराइये नहीं कुछ आसान आयुर्वेद नुस्खे ऐसे हैं जिनसे आपका सांवलापन दूर हो सकता है।

1. एक बाल्टी ठण्डे या गुनगुने पानी में दो नींबू का रस मिलाकर गर्मियों में कुछ महीने तक नहाने से त्वचा का रंग निखरने लगता है (इस विधि को करने से त्वचा से सम्बन्धी कई रोग ठीक हो जाते हैं )।

2. आंवला का मुरब्बा रोज एक नग खाने से दो तीन महीने में ही रंग निखरने लगते है।

3. गाजर का रस आधा गिलास खाली पेट सुबह शाम लेने से एक महीने में रंग निखरने लगता है।

रोजाना सुबह शाम खाना खाने के बाद थोड़ी मात्रा में सांफ खाने से खून साफ होने लगता है और त्वचा की रंगत बदलने लगती है।

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

गजब की औषधि है-हल्दी

भारतीय संस्कृति में हल्दी का विशेष महत्व है। इसे धार्मिक दृष्टि से भी पवित्र एवं शुभ माना जाता है। प्रत्येक शुभ कार्य में हल्दी का उपयोग किसी न किसी रूप में अवश्य किया जाता है। हल्दी की उपयोगिता मसाले के रूप में सर्वविदित है। कोई भी सब्जी या दाल हल्दी के बिना स्वादिष्ट बन ही नहीं सकती। किन्तु मसाले के अतिरिक्त हल्दी के अनेक औषधीय उपयोग भी हैं। हल्दी स्वभाव के तिक्त, रूक्ष, वर्ण करने वाली तथा कफ, पित्त, त्वचा के दोष, रक्तदोष, सूजन, मधुमेह एवं ब्रण को दूर कर राहत पहुंचाने वाली है।

आयुर्वेद की अनेक औषधियों के निर्माण में हल्दी का उपयोग होता है। आयुर्वेदिक तेल, घृत, आसव, अरिष्टों एवं चूर्णों में हल्दी का उपयोग किया जाता है। पारद संहिता में हल्दी के कल्य का वर्णन किया गया है। हल्दी के मुख्य औषधीय उपयोग निम्नवत् हैं :-
चोट लगने पर ः यदि शरीर के किसी भी भाग में चोट लग गयी है और वहां सूजन आ गयी हो तो हल्दी पीसकर उसमें चूना मिलाकर चोट लगे स्थान पर लेप करना चाहिए। यदि चोट भीतरी हो तो गाय के गुनगुने दूध में हल्दी ता चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिए। ऐसा करने से दर्द कम हो जाता है और यदि घाव हो गया हो तो इसका लेप लगाने से कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
फोड़े-फुंसियों में ः यदि फोड़ा फूटा हुआ न हो तो अलसी के पुल्तिस में हल्दी मिलाकर फोड़े पर बांधने से फोड़ा जल्दी ही पककर फूट जाता है। मवाद, बाहर आ जाता है और घाव शीघ्र ही ठीक हो जाता है।
एलर्जी में ः हल्दी का उपयोग, चर्मरोग, जुकाम एवं श्वास की एलर्जी में भी विशेष लाभ पहुंचाता है।
खांसी में ः यदि खांसी हो गयी है तो हल्दी सात माशा, आमी हल्दी दो माशा लेकर इन दोनों को पानी के साथ पीसकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनाकर इनका सुबह-शाम जल के साथ सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है। यदि खांसी सूखी हो तो गर्म दूध में हल्दी का एक चम्मच चूर्ण मिलाकर पीने से खांसी ढीली हो जाती है और कफ बाहर आ जाता है। सूखी खांसी में शहद के साथ ही हल्दी का सेवन उपयोगी होता है।
उदर गैस में ः यदि पेट में गैस बन रही हो तो पिसी हल्दी दस रत्ती एवं दस रत्ती काला नमक मिलाकर गर्म जल के साथ सेवन करने से शीघ्र ही लाभ पहुंचता है। इसके सेवन से एक तरफ जहां पेट के अन्दर एकत्रित गैस निकल जाती है, वहां गैस का बनना भी काम हो जाता है।
दांत रोग ः दांत दर्द या दांत संबंधी अन्य विकार हों तो हल्दी का मंजन करना विशेष उपयोगी होता है। मंजन बनाने हेतु हल्दी की गांठ को धीमी आंच पर भूनकर इसे बारीक पीसकर कपड़े में छान लेना चाहिए। इसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर प्रातः एवं शाम को भोजन से पूर्व इसका मंजन करना चाहिए।
कान रोग में ः कान संबंधी रोगों में भी हल्दी का उपयोग विशेष लाभकारी होती है। कान बहने, कान दर्द, कान में पीब या मवाद होने पर हल्दी का उपयोग विशेष लाभ पहुंचाता है। कान की तकलीफ होने पर हल्दी को उसकी मात्रा से दोगुने पानी में बारीक पीसकर छान लेना चाहिए। इसके बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर धीमी आंच पर पकाना चाहिए। जब पककर मात्र तेल रह जाये तो उसे शीशी में रख लेना चाहिए एवं जब भी कान में दर्द हो या कान संबंधी अन्य तकलीफ हो तो थोड़ा गुनगुना करके दो-तीन बूंद कान में डालनी चाहिए। कान की किसी भी प्रकार की तकलीफ में इससे आराम पहुंचाता है।
मुख संबंधी रोगों में ः मुख संबंधी तकलीफ एवं हलक तथा मुंह में छाले पड़ जाने की स्थिति में अथवा गले में गिल्टियों के निकल आने की स्थिति में हल्दी का सेवन बेहद उपयोगी होता है। मुंह में छाले पड़ने पर एक तोला हल्दी को कूट-पीसकर एक लीटर पानी में उबाल लेना चाहिए। जब खूब उबल जाये तो उतारकर ठंडा कर उससे सुबह-शाम कुल्ला करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं एवं जलन भी दूर हो जाती है।
यदि गले में गिल्टियां निकल आई हों तो हल्दी को महीन पीसकर छह माशा की मात्रा में सुबह जल के साथ इसका सेवन करना चाहिए। साथ ही साथ हल्दी को पानी में पीसकर हल्का गर्म करके गले पर इसका लेप करने पर भी आराम मिलता है।

शक्ति से भरपूर है-बादाम

दरम्याने कद के पेड़ पर बादाम लगते हैं। इस पेड़ पर सफेद तथा गुलाबी रंग के फूल लगते हैं। अप्रैल में लगे फूल अगस्त में फल बन जाते हैं। फल हरे रंग का छिलका लिए होते हैं। छिलके में से निकला कच्चा बादाम बहुत सुपाच्य तथा रूचिकर होता है। भारत में कश्मीर, हिमाचल प्रदेश में इसकी अच्छी फसल होती है। अफगानिस्तान तो जैसे बादाम का घर ही है। फल का पूर्ण मालाकार तथा बारीक कंगूरेदार होता है। उपचार भी जान लें बादाम से। ग्रन्थों में बादाम को ‘वाताम’ लिखा मिलता है।

* शरीर की खोई हुई शक्ति पाने के लिए बादाम की गिरी को दूध में उबाल कर पीना लाभ कर रहता है।
* तोतले बच्चों का अच्छा उपचार है। रात को गिरी भिगोएं। प्रात: छील कर गाय के ताजे मक्खन में मिलाकर खिलाएं।
* जो बच्चे अभी बोलना सीख न रहे हों, और आप उनकी इस देरी से चिन्तित हों तो भी मक्खन के साथ रात की भीगी और छीली हुई गिरी खिलाएं। बोलने लगेंगे।
* कमर दर्द जैसे रोगों का अच्छा उपचार है बादाम का सेवन।
* महिलाओं के प्रसूता होने पर उन्हें किसी न किसी रूप में बादाम देना कमजोरी दूर करेगा।
* दांतों की रक्षा के लिए बादाम के छिलकों को जला कर मंजन तैयार करें और प्रतिदिन प्रयोग करें।
* यदि सुनने की शक्ति कम होने का भय हो तो बादाम रोगन की एक-एक बूंद प्रतिदिन डालें।
* औरतों को सफेद पानी (लिकोरिया) बीमारी हो जाने पर बादाम की गिरियां रात भर भिगोएं। प्रात: खिलाएं।
* सिर की खुश्की मिटाने के लिए सिर पर बादाम रोगन की मालिश करें।
* बाल न झड़े, इसके लिए भी सिर पर बादाम रोगन की मालिश करते हैं।
* दिमागी काम करने वालों को पांच से सात बादाम प्रतिदिन खाने चाहिए। यह शक्तिशाली टॉनिक है।
* मन्द बुध्दि भी तीव्र कर देते हैं। बादाम तथा बदाम रोगन।
* बादाम को चबाकर खाने से पूर्व कुछ घन्टे पानी में भिगो कर रखें। छील कर खाएं, अथवा छिलके सहित, फिर पीस कर खाएं तो पूरी-पूरी पौष्टिकता मिलेगी।

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

औषधीय गुणों से भरपूर घीया

कुछ सब्जियां प्रकृति की तरफ से फल के रूप में हम सबको मिलती है। घीया सभी सब्जियों से सस्ती मानी जाती है। यह बेल पर पैदा होती है और कुछ ही समय में काफी बड़ी हो जाती है। घीया को लौकी के नाम से जाना जाता है। वास्तव में यह एक औषधि है और इसका उपयोग हजारों रोगियों पर सलाद के रूप में अथवा रस निकालकर या सब्जी के रूप में एक लंबे समय से किया जाता रहा है। लंबी तथा गोल दोनों प्रकार की घीया वीर्यवर्ध्दक, पित्त तथा कफनाशक और धातु को पुष्ट करने वाली होती है।

घीया को कच्चा भी खाया जा सकता है। कच्ची घीया अथवा उसका रस पेट साफ करता है और शरीर को शुध्द एवं स्वस्थ बनाती है। वाग्भट्ट ने इसे तरबूज, खरबूजा, ककड़ी तथा खीरे के परिवार में रखा है। दरअसल ये सभी फल कफ तथा वायु को दूर करते हैं और शरीर से मल निकालते हैं तथा खाने में मीठे होते हैं। 100 ग्राम लौकी के रस में निम्नलिखित तत्व पाए जाते हैं :- पानी 96.1 ग्राम, प्रोटीन 0.2 ग्राम, वसा 0.1 ग्राम, रेशा 0.6 ग्राम, कार्बोज 2.5 ग्राम, कैल्शियम 20 मि.ग्रा., फास्फोरस 10 मि.ग्रा., लौहतत्व 0.5 मि.ग्रा., थायेमीन 0.03 मि.ग्रा., रिबोफ्लेविन 0.01 मि.ग्रा., नियासिन 0.2 मि.ग्रा., खनिज लवण 0.5 प्रतिशत, ऊर्जा 12 कि. कैलोरी।
घीया का प्रयोग आंतों की कमजोरी, कब्ज, पीलिया, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह, आंत आमाशय या यकृत की सृजन, शरीर में जलन, मानसिक उत्तेजना, लकवा, संधिवात, स्ायु रोग आदि में बहुत उपयोगी है। आइए, डालें घीया के औषधीय गुणों पर एक नजर :-
1) हैजा होने पर 25 मि.ली. घीया के रस में आधा नींबू का रस मिलाकर धीरे-धीरे पीएं। इससे मूत्र बहुत आता है।
2) खांसी, टी.बी., सीने में जलन आदि में भी घीया बहुत उपयोगी है।
3) हृदय रोग में, विशेषकर भोजन के पश्चात् एक कप घीया के रस में थोड़ी सी काली मिर्च और पुदीना डालकर पीने से हृदय रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
4) पुराना बुखार तथा कफ से पैदा होने वाले रोगों में यह उत्तम औषधि है।
5) घीया में श्रेष्ठ किस्म का पोटेशियम प्रचुर मात्रा में मिलता है, जिसकी वजह से यह गुर्दे के रोगों में बहुत उपयोगी है और इससे पेशाब खुलकर आता है।
6) घीया श्लेषमा रहित आहार है। इसमें खनिज लवण अच्छी मात्रा में मिलती है।
7) लौकी के बीज का तेल कोलेस्ट्रॉल को कम करता है तथा हृदय को शक्ति देता है। यह रक्त की नाड़ियों को भी स्वस्थ बनाता है।

क्या आप फास्ट फूड के साथ कॉफी लेते हैं तो सावधान!

लंदन। अगर आप फास्ट फूड के शौकीन हैं तो अगली बार इसके साथ कॉफी पीने से परहेज करें। ऐसा इसलिए क्योंकि इन दोनों का एक साथ सेवन खून में शुगर का स्तर बढ़ा सकता है।

शोधकर्ताओं की मानें तो अगर एक स्वस्थ व्यक्ति भी फास्ट फूड के साथ कैफीन युक्त पदार्थ का सेवन करता है तो उनके खून में शुगर का लेवल डायबिटीज होने की हद तक बढ़ जाता है। ‘जरनल ऑफ न्यूट्रिशन’ में छपे एक शोध के मुताबिक शरीर में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली वसा खून में मौजूद शुगर को संतुलित रखती है लेकिन अगर इसके साथ कैफीनयुक्त कॉफी मिल जाए तो शरीर में इसका असर उलटा हो जाता है। और यह अंगों को प्रभावित कर सकती है। कैनेडा की ग्यिूल्फ यूनिवर्सिटी के शोध प्रमुख मैरी सोलिल बियूडोइन ने यह जानकारी दी।

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