शनिवार, 2 अप्रैल 2011

गजब की औषधि है-हल्दी

भारतीय संस्कृति में हल्दी का विशेष महत्व है। इसे धार्मिक दृष्टि से भी पवित्र एवं शुभ माना जाता है। प्रत्येक शुभ कार्य में हल्दी का उपयोग किसी न किसी रूप में अवश्य किया जाता है। हल्दी की उपयोगिता मसाले के रूप में सर्वविदित है। कोई भी सब्जी या दाल हल्दी के बिना स्वादिष्ट बन ही नहीं सकती। किन्तु मसाले के अतिरिक्त हल्दी के अनेक औषधीय उपयोग भी हैं। हल्दी स्वभाव के तिक्त, रूक्ष, वर्ण करने वाली तथा कफ, पित्त, त्वचा के दोष, रक्तदोष, सूजन, मधुमेह एवं ब्रण को दूर कर राहत पहुंचाने वाली है।

आयुर्वेद की अनेक औषधियों के निर्माण में हल्दी का उपयोग होता है। आयुर्वेदिक तेल, घृत, आसव, अरिष्टों एवं चूर्णों में हल्दी का उपयोग किया जाता है। पारद संहिता में हल्दी के कल्य का वर्णन किया गया है। हल्दी के मुख्य औषधीय उपयोग निम्नवत् हैं :-
चोट लगने पर ः यदि शरीर के किसी भी भाग में चोट लग गयी है और वहां सूजन आ गयी हो तो हल्दी पीसकर उसमें चूना मिलाकर चोट लगे स्थान पर लेप करना चाहिए। यदि चोट भीतरी हो तो गाय के गुनगुने दूध में हल्दी ता चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिए। ऐसा करने से दर्द कम हो जाता है और यदि घाव हो गया हो तो इसका लेप लगाने से कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
फोड़े-फुंसियों में ः यदि फोड़ा फूटा हुआ न हो तो अलसी के पुल्तिस में हल्दी मिलाकर फोड़े पर बांधने से फोड़ा जल्दी ही पककर फूट जाता है। मवाद, बाहर आ जाता है और घाव शीघ्र ही ठीक हो जाता है।
एलर्जी में ः हल्दी का उपयोग, चर्मरोग, जुकाम एवं श्वास की एलर्जी में भी विशेष लाभ पहुंचाता है।
खांसी में ः यदि खांसी हो गयी है तो हल्दी सात माशा, आमी हल्दी दो माशा लेकर इन दोनों को पानी के साथ पीसकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनाकर इनका सुबह-शाम जल के साथ सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है। यदि खांसी सूखी हो तो गर्म दूध में हल्दी का एक चम्मच चूर्ण मिलाकर पीने से खांसी ढीली हो जाती है और कफ बाहर आ जाता है। सूखी खांसी में शहद के साथ ही हल्दी का सेवन उपयोगी होता है।
उदर गैस में ः यदि पेट में गैस बन रही हो तो पिसी हल्दी दस रत्ती एवं दस रत्ती काला नमक मिलाकर गर्म जल के साथ सेवन करने से शीघ्र ही लाभ पहुंचता है। इसके सेवन से एक तरफ जहां पेट के अन्दर एकत्रित गैस निकल जाती है, वहां गैस का बनना भी काम हो जाता है।
दांत रोग ः दांत दर्द या दांत संबंधी अन्य विकार हों तो हल्दी का मंजन करना विशेष उपयोगी होता है। मंजन बनाने हेतु हल्दी की गांठ को धीमी आंच पर भूनकर इसे बारीक पीसकर कपड़े में छान लेना चाहिए। इसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर प्रातः एवं शाम को भोजन से पूर्व इसका मंजन करना चाहिए।
कान रोग में ः कान संबंधी रोगों में भी हल्दी का उपयोग विशेष लाभकारी होती है। कान बहने, कान दर्द, कान में पीब या मवाद होने पर हल्दी का उपयोग विशेष लाभ पहुंचाता है। कान की तकलीफ होने पर हल्दी को उसकी मात्रा से दोगुने पानी में बारीक पीसकर छान लेना चाहिए। इसके बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर धीमी आंच पर पकाना चाहिए। जब पककर मात्र तेल रह जाये तो उसे शीशी में रख लेना चाहिए एवं जब भी कान में दर्द हो या कान संबंधी अन्य तकलीफ हो तो थोड़ा गुनगुना करके दो-तीन बूंद कान में डालनी चाहिए। कान की किसी भी प्रकार की तकलीफ में इससे आराम पहुंचाता है।
मुख संबंधी रोगों में ः मुख संबंधी तकलीफ एवं हलक तथा मुंह में छाले पड़ जाने की स्थिति में अथवा गले में गिल्टियों के निकल आने की स्थिति में हल्दी का सेवन बेहद उपयोगी होता है। मुंह में छाले पड़ने पर एक तोला हल्दी को कूट-पीसकर एक लीटर पानी में उबाल लेना चाहिए। जब खूब उबल जाये तो उतारकर ठंडा कर उससे सुबह-शाम कुल्ला करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं एवं जलन भी दूर हो जाती है।
यदि गले में गिल्टियां निकल आई हों तो हल्दी को महीन पीसकर छह माशा की मात्रा में सुबह जल के साथ इसका सेवन करना चाहिए। साथ ही साथ हल्दी को पानी में पीसकर हल्का गर्म करके गले पर इसका लेप करने पर भी आराम मिलता है।

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