गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

5 मिनिट में पाएं ऑइली फेस की चिपचिप से छुटकारा

हर चीज के दो पहलू होते हैं। यही कारण है कि खाशियत भी कभी-कभी खामी यानी कमी बन जाती है। ऐसा ही कुछ ऑइली फेस वालों के साथ भी है, क्योंकि जिस तैलीय त्वचा की यह खाशियत है कि इससे लम्बी उम्र तक चेहरे पर झुर्रिया या झाइयां नहीं पड़तीं। साथ ही चेहरे की चमक भी लंबे समय तक कायम रहती है।

लेकिन तैलीय त्वचा की अगर सही देखभाल न की जाए तो अच्छे भले चेहरे पर कील-मुहासों या फुंसियों का हमला शुरू हो जाता है। ऐसी त्वचा पर जल्दी कोई मेकअप भी सूट नहीं करता है। ऐसे में प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेदिक नुस्खों की मदद बेहद कारगर होती है। तो आइये जाने कि प्राकृतिक तरीकों से कैसे अपने चेहरे की खूबसूरती को बरकरार रखा जाए....

-त्वचा को प्राकृतिक रूप से खूबसूरत बनाना हो तो प्रतिदिन 8-10 लीटर तरल पदार्थ लें। इससे त्वचा में कुदरती नमी

बनी रहेगी और त्वचा चिपचिपी नजर नहीं आएगी।

- त्वचा का पीएच स्तर बरकरार रखने के लिए चेहरे पर खीरे का रस लगाएं और हो सके तो थोडा रस नियमित रूप से पीएं। इसके अलावा टमाटर का गूदा हलके हाथों से चेहरे पर मलें।

- बारीक पिसा हुआ बेसन, आटा, संतरे के सूखे हुए छिलकों का पाउडर तथा एक चम्मच मलाई मिलाकर उबटन बनाएं। नहाने से पहले इस उबटन को चेहरे पर लगाकर 5 से 7 मिनिट तक रखने से तैलीय त्वचा की समस्या से तत्काल छुटकारा मिलता है।

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

गर्मियों में लाभदायक हैं घरेलू शीतल पेय

शरीर को ठंडा रखने हेतु घरेलू शीतल पेयों का ही सेवन करें : गर्मियों में सूर्य का तापमान बढ़ते ही पेय पदार्थों की बिक्री धड़ल्ले से होने लगती है। शीतर पेय की बोतलों से लगभग सभी दुकानें सज जाती हैं लेकिन यह खबर पढ़कर शायद आपको आश्चर्य होगा कि ज्यादातर डिब्बाबंद पेय पदार्त हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होते हैं। तरल आहार के रूप में मौजूद बाजारों में उपलब्ध शीतल पेयों को पीना एक तरह से जान-बूझकर रोगों को आमंत्रण देने के समान है।
इसके सेवन करने से जहां भूख खत्म हो जाती है, वहीं दूसरी तरफ मोटापा बढ़ने का तरा भी मंडराने लगता है। इसीलिए स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह है कि गर्मियों में यदि आप सेहतमंद बने रहना चाहते हैं तो शरीर की आंतरिक शीतलता कायम रखने हेतु घर में खुद के द्वारा तैयार किए गए शीतल पेयों का सेवन करना ही श्रेयस्कर होगा क्योंकि बाजार में मौजूद अधिकांश शीतल पेय प्रदूषित तथा कृत्रिम रसायनयुक्त होते हैं। ये पेय निस्संदेह सम्पूर्ण सेहत का नाश करके शरीर को गंभीर नुकसान ही पहुंचाते हैं। लाभ की बात सोचना तो कोरी बेवकूफी होगी।
ग्रीष्म ऋतु के दौरान सेवन योग्य शीतल पेयों में नारियल पानी, बेल का रस, पुदीने का रस और अप्रैल से लेकर नवंबर तक नींबू के रस की मांग सबसे ज्यादा होती है। इन सभी उपरोक्त शीतल पेयों का निर्माण आप स्वयं घर बैठे सफाईयुक्त तरीके से कर सकते हैं जो खास तौर पर इस ऋतु में स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। वैसे भी, कृत्रिम रूप से बनाए गए शीतल पेयों से शरीर को वह फायदा नहीं होता है जो घर में तैयार किए हुए शीतल पेयों से पहुंचता है। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ घरेलू शीतल पेयों के बारे में जिसके सेवन मात्र से शरीर को तृप्ति प्रदान होती है।
नींबू का रस- गर्मियों के आने मात्र से नींबू की शिकंजी लगभग हरेक घरों में बनी नजर आती है। शिकंजी का सेवन करके मेहमान जहां खुश हो जाते हैं वहीं मलेरिया ज्वर आदि परेशानियों में भी लाभ मिलता है। बार-बार जी मिचलाने की विकृति और अजीर्ण रोग में नींबू का रस रामबाण औषधि के रूप में काम करता है जबकि शरीर में जल की कमी प्यास आदि शांत करने में अव्वल नजर आता है।
गर्मियों के दिनों में नींबू के रस यानी शिकंजी की मांग लोगों में अधिकाधिक देखी जाती है जिसका निर्माण घरों में कोई भी व्यक्ति बड़ी सरलतापूर्वक कर सकता है। अधिक स्वादिष्ट व गुणकारी बनाने हेतु गृहणियां इसमें हींग, अदरक का रस, काला नमक और सेंघा नमक का मिश्रण आवश्यकतानुसार प्रयोग कर सकती हैं।
बेल का रस- गर्मियों में दूसरे नंबर पर बेलगिरी का रस अर्थात् शरबत बनाने का आता है। यह उस बेलगिरी के गूदे से तैयार किया जाता है। अतिसार, पेचिश और रक्तातिसार रोगियों के लिए यह काफी फायदेमंद रहता है। यातायात में फंसे लोगों को हुए डिप्रेशन और मानसिक तनाव में यह कई लाभ पहुंचाता है जबकि अल्सर से पीड़ित रोगियों के लिए यह रस अत्यंत गुणकारी साबित होता है। यह मोटापा घटाने में भी अपनी अहम् भूमिका निभाता है।
पुदीने का रस- अक्सर हॉट गर्मी में पुदीना काफी लाभदायक होता है। इसमें प्राकृतिक रूप से पिपरमेंट होता है। यह कोशिकाओं में सूचना तंत्र को सुचारू करने के साथ ही लू, बुखार, जलन व गैस की परेशानियों से दो-चार हो रहे लोगों को काफी लाभ पहुंचाता है। इसको भी नींबू के रस की भांति बहुत ही आसानी से तैयार किया जा सकता है। इसको पीने के उपरांत उल्टी आने जैसी शिकायत भी स्वत: दूर हो जाती है।
नारियल का रस- यूं तो नारियल पानी को ही नारियल का रस कहा जाता है कि किन्तु यह बात बहुत कम लोग ही जानते होंगे। प्राय: इस उमस भरी गर्मी में शीतलता का मंद-मंद अहसा कराने वाला यह प्राकृतिक रूप से तैयार शीतल पेय बनाने के लिए किसी को कुछ करने की जरूरत नहीं होती।
पेय रूप में स्वयं ही तैयार हुआ नारियल रस न सिर्फ हमें टेस्टी ही लगता है अपितु अत्यधिक पसीने के कारणवश शरीर से निकले मिनरल्स की भी भरपाई कर देता है। इसलिए यदि आप कठिन परिश्रम करते हैं तो नारियल पानी रूपी रस का सेवन जरूर करें। यह आपके लिए काफी लाभदायक होगा।
गुलाब का रस- ‘रूह अफजा’ नामक बाजार में मिलने वाले इस शीतल पेय पदार्थ को यदि घर में ही तैयार कर लें तो यह सेहत की दृष्टि से काफी लाभप्रद होगा। इसके लिए गुलाब के फूलों का रस निकालकर चीनी की चाशनी में मिलाकर तैयार किया जा सकता है इस तरह गुलाब का रस पीते समय व्यक्ति को गुलाब की सुगंध भी आती है।
यह शर्बत रूपी रस पेशाब की जलन को कम करके शरीर की थकावट और प्यास की तीव्रता को शांत करता है। यही नहीं, इसके रोजाना सेवन से नेत्रों की जलन और लालिमा नष्ट होती है। इसलिए नियमित रूप से गुलाब और ताजगी के लिए नितांत आवश्यक है

मठा- एक शीतल पेय

‘ताहि अहीर की छोकरिया, छछिया अरि छाछ पे नाच नचावे।’ की याद ताजा हो जाती है जब छाछ (मठा) की बात उठती है। श्रीकृष्ण भगवान दही-बेचने के लिये जा रही गोपिकाओं से छाछ मांगते हैं। गोपिकाएं कहती हैं, ‘पहले अपना नाच दिखाओ, फिर छाछ मिलेगा।’ बुरे फंसे श्रीकृष्ण पर वे करें क्या…? दही न सही मठा ही सही, कुछ तो मिले। नंद-नंदन राजपुत्र हैं और इन गोपिकाओं से दही मांग रहे हैं। कैसी विडम्बना है…।
दही की बात तो कहीं और है। यहां तो छाछ भर के लिये इन्हें नाचना पड़ता है। आइए देखें, इस छाछ में आखिर क्या विशेषताएं हैं…?
गर्मी के आते ही क्या गांव, क्या शहर हर जगह शीतल पेयों की बाढ़ सी आ जाती है। लिम्का, माजा, पैप्सी कोला, कोका कोला और प्रूटी आदि अमीरों के पेट को ठंडा करते हैं, वहीं सौंफ का शीतल पेय, शर्बत, नींबू का ठंडा रस और मठा (छाछ) गरीबों के लिये प्रयुक्त होते हैं। इन शीतल पेयों में मठा का महत्वपूर्ण स्थान है।
* दही में बिना पानी डाले मथें। ऐसा मलाई सहित करें। जो मठा तैयार होता है इसमें गुड़ या चीनी डालकर सेवन करने से पके आम सदृश गुणकारी होता है।
* ऊपर की मलाई हटा लीजिए। अब दही मथकर मठा तैयार कीजिए। इस मठे का प्रयोग वात, कफ और पित्त के रोगों में लाभप्रद होता है।
* दही की मात्रा का चौथाई भाग जल डालकर मथने से जो मठा बनता है वह उष्णवीर्य, पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला, वात के रोगों में लाभदायक तथा गृहिणी को स्वास्थ्यप्रद बनाता है।
* दही में आधा पानी डालकर मथने से तैयार छाछ कफवृध्दि तो करता है, मगर आंव पड़ने (पेचिश) में आराम पहुंचाता है।
* मक्खन निकाल कर दही की मात्रा से अधिक पानी डाल कर मथने से जो छाछ (मठा) तैयार होता है वह प्यास को हरने वाला, वात नाशक तथा कफप्रद होता है। थोड़ा नमक डाल पीने से अत्यन्त पाचक होता है।
* मठे में पिसी सोंठ और सेंधा नमक मिलाकर पीने से वात के रोगों में आराम होता है।
* मठे में शक्कर मिलाकर पीने से पित्त के रोग ठीक होते हैं।
* सोंठ, पीतल और काली मिर्च पीसकर मठे में मिलाकर पीने से वात, बवासीर, अतिसार तथा वस्तिक्षेत्र के रोगों में आराम होता है।
* मठे में गुड़ डालकर पीने से पेशाब संबंधी रोगों में आराम पहुंचाता है।
* पिसा जीरा व नमक के साथ मठे का सेवन करने से शरीर को आराम होता है। गर्मी में यह पेय सेवन करने से शरीर… शीतल और प्रसन्नचित्त बना रहता है।
* मठे का उपयोग खाने में भी किया जा सकता है। चपाती या भात से मठा खाते हमने अक्सर लोगों को देखा है। गरीब ही क्या, अमीर भी दाल या सब्जी के स्थान पर मठा (छाछ) का उपयोग शौक से करते देखे जाते हैं। मठा से आज कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। जहां यह एक शालीन और स्वास्थ्यप्रद पेय है, वही इसे सर्वप्रिय खाद्य भी माना जा सकता है।

हल्दी के औषधीय गुण

हल्दी के औषधीय गुणों से प्राय: सभी लोग परिचित होते हैं। हल्दी शरीर में रक्त को शुध्द करने के साथ-साथ तीनों दोषों यानी वात्त-पित्त-कफ का भी शमन करती है।
यह शरीर की काया और रंग को सुधारने में एक महत्वपूर्ण देशी औषधि के रूप में कारगर भूमिका अदा करती है। इसे फेस पैक के रूप में बेसन के साथ लगाने से त्वचा में निखार आता है जबकि खांसी होने पर गरम पानी से उपयोग निम्नवत तरीके से रोगोपचार के लिए कर सकते हैं।

* मधुमेह से राहत : आयुर्वेद के अनुसार मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को हल्दी की गांठों को पीसकर तथा देसी घी में भूनकर और थोड़ी चीनी मिलाकर कुछ दिनों तक रोजाना देने से रोगी को काफी राहत मिलती है।
* पथरी से निजात : यदि शरीर में पथरी हो गई है तो हल्दी और पुराना गुड़ छाछ में मिलाकर सेवन करने से निजात मिल जाती है।
* बुखार की समाप्ति : ठंडी देकर आने वाले बुखार में दूध को गर्म कर हल्दी और कालीमिर्च मिलाकर पीने से बुखार जल्दी ही शरीर से छूमंतर हो जाता है।
* चेचक के घावों हेतु लाभदायक : देखने में आया है कि चेचक के घाव अक्सर व्यक्ति को रुलाकर रख देते हैं। इसलिए इस दौरान हल्दी और कत्थे को महीन पीसकर चेचक के घावों पर छिड़कें, निस्संदेह काफी लाभ पहुंचेगा।
* जुकाम का अंत : हल्दी और दूध को गर्म कर उसमें थोड़ा गुड़ और नमक मिलाकर बच्चों को पिलाने से कफ और जुकाम का अंत हो जाता है।
* रूप निखार के लिए सर्वोत्तम : अक्सर शादी-विवाह के दौरान दुल्हन की काया, सौंदर्य और रूप निखार के लिए हल्दी का उबटन, लेप और मालिश किया जाता है। इससे शरीर की काया और रंग में काफी सुधार होता है।
* सौंदर्य प्रसाधन सामग्री बनाने में उपयोगी : आज की तारीख में अधिकांश बड़ी-बड़ी कम्पनियां प्रसाधन सामग्री का निर्माण करने हेतु हल्दी को मुख्य अवयव के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं जिससे चेहरे की क्रीम और शरीर के लोशन का निर्माण किया जाता है। इस प्रकार हल्दी का उपयोग प्राकृतिक सौंदर्य रूपी प्रसाधन की डिमांड बन गई है जिसकी लोगों को सदा तलाश रहती है।

भूलने की आदत से पाएं छुटकारा, इस छोटे से उपाय से

भागदौड़ और बेहद व्यस्तताओं से भरी हुई आधुनिक जीवनशैली ने इंसान को शारीरिक रूप से ही नहीं, मन-मस्तिष्क के स्तर पर भी अस्त-व्यस्त कर दिया है। वैसे भी मशीनी युग में इंसान के अधिकांश शारीरिक और मानसिक कामों को आधुनिक मशीनों द्वारा किया जाने लगा है। इस अति मशीनीकरण ने जिंदगी को ज्यादा सुविधाजनक तो बना दिया है, पर साथ ही इसका सबसे बुरा असर यह हुआ है कि इससे मनुष्य की शारीरिक और मानसिक क्षमता में काफी गिरावट भी आ गई है।

कमजोर स्मरण शक्ति यानी यादाश्त की कमी की समस्या आज लगभग आम हो चुकी है। कमजोर स्मरण शक्ति के कारण व्यक्ति भूलने की आदत का शिकार हो जाता है। इस समस्या का प्रमुख कारण काम का तनाव, अधिक व्यस्तता और अनियमित दिनचर्या का होना है।

सभी चिकित्सा पद्धतियों में स्मरण शक्ति बढ़ाने के कई उपाय और औषधियां बताई गईं हैं, लेकिन ये दवाइयां कुछ समय के लिये असर दिखाकर फिर से निष्क्रीय हो जाती हैं। इसलिये यदि कोई भूलने की इस जटिल समस्या का स्थाई समाधान चाहता हो तो उसे योग में बताए गए इस उपाय को अवश्य आजमाना चाहिये..

- उगते हुए सूरज की ओर मुखातिब होकर आंखें बंद करके ध्यान मुद्रा में बैठें। अब मन में लगातार उठते हुए विचारों को आते हुए देेखें। योग में इसे ही साक्षी साधना भी कहा जाता है। इस अभ्यास को लगातार 15 दिनों तक करने से आपका मन एकाग्र होने लगेगा। और यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि इंसान को वही बात या घटना लंबे समय तक याद रहती है जिसमें उसका मन अधिक से अधिक एकाग्र होता है। अत: जो भी करें उस समय दूसरा कुछ भी नहीं सोचें हर समय पूरी तरह से वर्तमान में जीना सीखें। काम करते समय पिछली घटनाओं और भविष्य की चिंता से बिल्कुल दूर रहें। जो करें बस पूरी तरह से मन-मस्तिष्क से वहीं उपस्थित रहें। आप देखेंगे कि कुछ ही समय में आपकी भूलने की आदत बगैर किस दवाई के ही हमेशा के लिये मिट चुकी है।

मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

फल जो मुँहासे से बचाते हैं

मुँहासे से त्‍वचा की खूबसूरती सबसे ज्‍यादा प्रभावित होती है। ये उम्र के उस पड़ाव पर चेहरे पर निकल आते हैं जब खूबसूरती सबसे ज्‍यादा मायने रखती है। इसका कोई स्‍थाई इलाज नहीं है क्‍योंकि यह हार्मोंस के असंतुलन के कारण होता है। लेकिन खान पान में बदलाव करके इससे बचा जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ फलों का सेवन नियमित रूप से किया जाए तो त्‍वचा को मुँहासे से बचाया जा सकता है।


अंगूर

यदि आपको अंगूर पसंद है तो यह आपके लिए अच्‍छी खबर है। यह आपकी त्‍वचा को मुँहासे से मुक्‍त रखता है। साथ ही यह त्‍वचा पर पड़ी मुँहासे के निशान को भी मिटाता है।


खुबानी

खुबानी में विटामिन सी और ए प्रचुर मात्रा में पाया जा‍ता है। यह आपकी निश्‍तेज त्‍वचा में जान डाल देता है। यह संवेदनशील त्‍वचा के लिए किसी दवा से कम नहीं है।


केला

केला फाइबर और विटामिन युक्‍त होता है। यह त्‍वचा को चमक प्रदान करता है। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह त्‍वचा को मुँहासे से बचाता है।


पपीता

आमतौर पर लोग पपीता पसंद नहीं करते हैं। लेकिन अपनी त्‍वचा से प्‍यार करते हैं तो पपीता को अपना दोस्‍त बनाएं। इसमें पाए जाने वाले एंजाइम डेड स्‍कीन को बाहर करता है और चेहरे पर चमक लाता है। इसमें विटामिन ए और सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो त्‍वचा के लिए कवच का काम करता है। इसका फेस पैक लगाने से त्‍वचा की पोर खुल जाती हैं। और ब्‍लैक हेड्स नहीं होते हैं। इससे रंग भी गोरा होता है

ताली योग बनाता है अंदर से मजबूत

हम जब खुश होते हैं तो ताली बजाते हैं लेकिन ताली मात्र खुशी का इजहार करने के लिए नहीं बजाया जाता बल्कि यह आपके रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाता है।




जब आप अपनी दोनों हथेलियों को जोर-से एक-दूसरे पर मारते हैं। इस दौरान हाथों के सारे बिंदु दब जाते हैं और धीरे-धीरे शरीर में व्याप्त रोगों का सुधार होता है। लगातार ताली बजाने से शरीर के श्‍वेत रक्‍त कण मजबूत होते है, जिसके परिणामस्वरूप मानव शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि होती है।




गैस, कब्ज, अपच, मानसिक तनाव, एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन से पीड़ित हैं तो दायें हाथ की चार अंगुलियों को बाएं हाथ की हथेलियों पर जोर-से मारना चाहिए और इस अभ्यास को सुबह-शाम कम-से-कम 5 मिनट करना चाहिए। धीरे-धीरे हम इन रोगों से मुक्त हो जाएंगे।



निम्न रक्तचाप के रोगियों को खड़े होकर दोनों हाथों को सामने लाकर ताली बजाते हुए नीचे से ऊपर की ओर गोलाकार घुमाएं और दिशा नीचे से ऊपर की ओर होनी चाहिए। यह निम्न रक्तचाप को सामान्य करने में बहुत ही लाभदायक तरीका है। ताली योग के द्वारा हृदय रोग, कमर दर्द, सरवाइकल जैसे रोग भी दूर होते हैं।



कैसे करें ताली योग दोनों हाथों की दसों अंगुलियों और हथेली को जोर-जोर से मारते हुए एक साथ एक ही जैसी आवाज में ताली योग का अभ्यास करें।



शुरू-शुरू में इसका अभ्यास कम-से-कम 2 मिनट अवश्य करना चाहिए और फिर इसको बढ़ाते हुए लगभग रोज 10 मिनट तक अभ्यास करना चाहिए

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