गुरुवार, 21 जुलाई 2011

कड़वा करेला: लाजवाब खूबियों का खजाना


आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा में करेले को काफी गुणकारी और फायदेमंद बताया जाता है। लेकिन इसकी खूबियों पर वैज्ञानिक विश्लेषणों से प्राप्त नतीजों ने भी प्रामाणिकता की मुहर लगा दी है। आइये जानते हैं कि कड़वा करेला अपने किन दुर्लभ गुणों के कारण इतना फायदेमंद बताया जाता है...

करेले में विटामिन-सी के अलावा इसमें गंधयुक्त वाष्पशील तेल, केरोटीन, ग्लूकोसाइड, सेपोनिन, एल्केलाइड एवं बिटर्स पाए जाते हैं। इन सभी पौषक तत्वों के कारण करेला केवल सब्जी न होकर औषधि का काम भी करता है। इसके औषधीय गुण इस प्रकार हैं।

- करेला मधुमेह में रामबाण औषधि का कार्य करता है, छाया में सुखाए हुए करेला का एक चम्मच पावडर प्रतिदिन सेवन

  करने से डायबिटीज में चमत्कारिक लाभ मिलता है। क्योंकि करेला पेंक्रियाज को उत्तेजित कर इंसुलिन के स्रावण को

  बढ़ाता है।

- बिटर्स एवं एल्केलाइड की उपस्थिति के कारण इसमें रक्तशोधक गुण पाए जाते हैं। इसका प्रयोग करने से फ ोड़े-फुं सी एवं

  चर्मरोग नहीं होते।

- करेले के बीज में विरेचक-तेल पाया जाता है। जिसके कारण करेले की सब्जी खाने से कब्ज नहीं होता।

- इसके सेवन से एसिडिटी, खट्टी डकारों में आराम मिलता है।

- विटामिन ए की उपस्थिति के कारण इसकी सब्जी खाने से रतौंधी रोग नहीं होता है।

- जोड़ों के दर्द में करेले की सब्जी का सेवन व जोड़ों पर करेले के पत्तों का रस लगाने से आराम मिलता है।

बुधवार, 20 जुलाई 2011

पांच बातों का ध्यान जिंदगी भर रखें

मेडीकल सांइस के क्षेत्र में चाहे कितनी ही तरक्की हो गई हो, लेकिन कुछ रोग आज भी जानलेवा बने हुए हैं। ऐसी ही  

ला-इलाज बीमारियों में केंसर भी एक है। यह बात अवश्य है कि केंसर की जानकारी समय रहते लगने पर इसको संभाला और समाप्त किया जा सकता है किन्तु अधिकांस दुखद घटनाओं में होता यह है कि जब तक पता चलता है बात हाथ से निकल चुकी होती है।

शरीर को लेकर बरती गई जरा सी लापरवाही कई बार भयानक दु:ख का कारण बन जाती है। इसलिये समझदारी इसी में है कि हर अपने तन-मन को लेकर हमेशा जागरूक और जिम्मेदार रहें। तो आइये जानते हैं कुछ ऐसे ही बेहद आसान और कारगर उपाय, जिन्हें अपने डेली रुटीन में शामिल करके आप केंसर जैसी भयानक बीमारी से काफी हद तक सुरक्षित हो जाते हैं। ये पांचों उपााय योग, आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा का सम्मिलित रूप हैं......

-प्रतिदिन सुबह खाली पेट पांच पत्तियां तुलसी की मुंह में रखकर जब तक चूंसते रहें, जब तक कि ये समाप्त न हो जाएं।

-प्रतिदिन सोने से पूर्व गुनगुने पानी के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन करें।

-प्रतिदिन सूर्योदय की पहली किरणों का सेवन करते हुए कम से कम 2 से 3 मील तक मॉर्निग वाक करें।

-चुनिंदा आसन और प्राणायाम को अपनी नियमित दिनचर्या में शामिल करें, यह काम किसी कुशल योग मार्गदर्शक की

 देखरेख में करना सुरक्षित रहता है।

-नशीले पदार्थों- चाय, कॉफी, तंबाकू, अधिक टीवी देखना, तेज म्यूजिक सुनना ......आदि से जितना हो सकें बच कर रहें।

सोमवार, 18 जुलाई 2011

सांवली सूरत: कमजोरी को खूबी में बदलें इस रामबाण उपाय से...

सच्चाई यही है कि दुनिया की कोई भी क्रीम आपको गोरा नहीं बना सकती। इसलिये जो त्वचा प्राकृतिक रूप से मिली है उसे स्वस्थ और आकर्षक अवश्य बनाया जा सकता है। मंहगी और कभी-कभी हानिकारक परिणाम देने वाली कास्मेटिक क्रीम की बजाय नीचे बताए जा रहे आसान घरेलू प्रयोग को आजमा कर आप अवश्य ही अपने चेहरे की खूबसूरती को कई 

गुना बढ़ा सकते हैं। 

आसान घरेलू प्रयोग:

सांवली त्वचा को सलोनी रंगत देने के लिए मजीठ, हल्दी, चिरौंजी 50-50 ग्रा. लेकर पाउडर बना लें। एक-एक चम्मच सब चीजों को मिलाकर इसमें 6 चम्मच शहद मिलाएं और नींबू का रस तथा गुलाब जल डालकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को चेहरे, गरदन, बांहों पर लगाएं और एक घंटे के बाद गुनगुने पानी से चेहरा धो दें। इस प्रयोग को सप्ताह में दो सिर्फ दो बार करने से चेहरे का सांवलापन दूर होकर रंग निखर आएगा। 

प्रयोग 2:

नींबू व संतरे के छिलकों को सुखाकर चूर्ण बना लें। इस पाउडर को हफ्ते में एक बार बिना मलाई के दूध में मिलाकर लगाएं, त्वचा में आकर्षक चमक आएगी। जाड़े के दिनों में दूध में केसर या एक चम्मच हल्दी का सेवन करने से भी रक्त साफ होता है, और रक्त के साफ होने पर निश्चित रूप से त्वचा क रंग में भी निखार आता है।

नाजुक पत्तियों में छुपा है अनोखे गुणों का खजाना!

खाने में प्रयोग होने वाला हरा और सूखा धनिया खरीदने में भले ही सस्ता हो लेकिन गुणों के मामले में यह बहुत कीमती है। यह आपके खाने का स्वाद और सुगंध तो बढ़ाता ही है, पर आपके जाने-अनजाने ही आपको कई बीमारियों से निजात भी दिलाता है। आइये जानें कि धनिया किन-किन बीमारियों या परेशानियों में मददगार हो सकता है...

आंखों के रोग:
आंखों के लिए धनिया बड़ा गुणकारी होता है। थोड़ा सा धनिया कूट कर पानी में उबाल कर ठंडा कर के, मोटे कपड़े से छान कर शीशी में भर लें। इसकी दो बूंद आंखों में टपकाने से आंखों में जलन, दर्द तथा पानी गिरना जैसी समस्याएं दूर होती हैं। नकसीर:

हरा धनिया 20 ग्राम व चुटकी भर कपूर मिला कर पीस लें। सारा रस निचोड़ लें। इस रस की दो बूंद नाक में दोनों तरफ टपकाने से तथा रस को माथे पर लगा कर मलने से खून तुरंत बंद हो जाता है।

गर्भावस्था में जी घबराना:
गर्भ धारण करने के दो-तीन महीने तक गर्भवती महिला को उल्टियां आती है। ऐसे में धनिया का काढ़ा बना कर एक कप काढ़े में एक चम्मच पिसी मिश्री मिला कर पीने से जी घबराना बंद होता है।

पित्ती:
शरीर में पित्ती की तकलीफ  हो तो हरे धनिये के पत्तों का रस, शहद और रोगन गुल तीनों को मिला कर लेप करने से पित्ती की खुजली में तुरंत आराम होता है।

 

खूब पीएं ऐसी चाय... नुकसान नहीं, फायदा होगा!!

अभी तक आपने यही सुना होगा कि चाय सेहत के लिये बहुत हानिकारक होती है, लेकिन यह सिक्के का सिर्फ एक पहलू है। हानिकारक समझे जाने वाली यही चाय आपके लिये बेहद लाभदायक भी हो सकती है। तरीके बदलने से परिणाम भी बदल जाते हैं। सही तरीके से बनी चाय आपके लिये काफी फायदेमंद हो सकती है। आइये जाने कि गुणों से भरपूर ऐसी लाभदायक चाय किस तरह बनती है....

आवश्यक सामग्री:

तुलसी के सुखाए हुए पत्ते (जिन्हें छाया में रखकर सुखाया गया हो) 500 ग्राम, दालचीनी 50 ग्राम, तेजपात 100 ग्राम,

ब्राह्मी बूटी 100 ग्राम, बनफ शा 25 ग्राम, सौंफ 250 ग्राम, छोटी इलायची के दाने 150 ग्राम, लाल चन्दन 250 ग्राम और काली मिर्च 25 ग्राम। सब पदार्थों को एक-एक करके इमाम दस्ते (खल बत्ते) में डालें और मोटा-मोटा कूटकर सबको मिलाकर किसी बर्नी में भरकर रख लें। बस, तुलसी की चाय तैयार है। 

बनाने की विधि : 

आठ प्याले चाय के लिए यह 'तुलसी चाय' का मिश्रण (चूर्ण) एक बड़ा चम्मच भर लेना काफ ी है। आठ प्याला पानी एक तपेली में डालकर गरम होने के लिए आग पर रख दें। जब पानी उबलने लगे तब तपेली नीचे उतार कर एक चम्मच मिश्रण डालकर फौरन  ढक्कन से ढक दें। थोड़ी देर तक सीझने दें फिर छानकर कप में डाल लें। इसमें दूध नहीं डाला जाता। मीठा करना चाहें तो उबलने के लिए आग पर तपेली रखते समय ही उचित मात्रा में शकर डाल दें और गरम होने के लिए रख दें।

फायदे:

ऊपर बताए गए प्रयोग से बनी चाय आपको ताजगी और स्फूर्ति के साथ ही तंदरुस्ती का अतिरिक्त लाभ भी दे सकती है। तुलसी की चाय प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाकर रोगों से बचाने वाली, स्फू र्तिदायक, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाली होती है।

बीमारी छुड़ाने का इससे मजेदार कोई उपाय नही!!

अगर कोई कहे कि ताली बजाओ और तमात बीमारियों ससुरक्षित हो जाओ, तो शायद किसी को यकीन न हो, लेकिन यह कोई सुखद कल्पना नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक सत्य है।

खुखी का इजहार करने के लिये इंसान के पास कई तरीके होते हैं। हंसना, नाच-कूद करना, मुस्कुराना या हिप-हिप हुर्रे जैसी कोई आवाज निकालना। लेकिन एक तरीका ऐसा भी है, जो आपकी खुशी को बढ़ाने के साथ-साथ आपको सेहत को भी दुरुस्त करता है। यह तरीका है- ताली बजाने का।

हम जब खुश होते हैं तो ताली बजाते हैं लेकिन ताली मात्र खुशी का इजहार करने के लिए नहीं बजायी जाती बल्कि यह आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाता है। इस तरह से आपका शरीर एक प्रकार के सुरक्षा कवच में आ जाता है, जिस कारण बीमारियां आप तक पहुंच ही नहीं पातीं।

जब आप अपनी दोनों हथेलियों को जोर-से एक-दूसरे पर मारते हैं। इस दौरान हाथों के सारे बिंदु दब जाते हैं और धीरे-धीरे शरीर में व्याप्त रोगों का सुधार होता है। लगातार ताली बजाने से शरीर के श्वेत रक्त कण मजबूत होते है, जिसके परिणामस्वरूप मानव शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि होती है।

लहसुन : स्वास्थ्य में योगदान


लहसुन एक कंदीय औषध द्रव्य है, जिसका रसोई से लेकर शरीर के रोगग्रस्त होने तक प्रयोग किया जाता है। हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने शरीर के लिए अवाश्यक औषधीय पौधों - कन्दों, पत्रों, छाल, बीजों एवं शुष्क फलों को शरीर की महत्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति एवं उनकी जरूरी मात्रा शरीर की कोशिकाओं और इस जटिल संरचनात्मक काया को मिल सके, इस हेतु इन्हें रसोई रूपी दैनन्दनीय प्रक्रिया में शामिल कर रखा है। पिछले अंक में प्रकाशित तुलसी की क़डी को आगे जारी रखते हुए इस अंक में लहसुन के बारे में चर्चा करेंगे। नाम और गुणधर्म : एक पौराणिक किंवदन्ति के अनुसार लहसुन की उत्पत्ति - जिस समय गरू़ड ने इन्द्र के पास से अमृत का हरण किया था, उस समय अमृत जो बिन्दु (अमृत-बंूद) पृथ्वी पर गिरा, इसी से लहसुन की उत्पत्ति हुई। लहसुन के आयुर्वेद एवं संस्कृत में रसोन, उग्रगन्धा, महौषध अरिष्ट एवं मेलच्छन्कन्द नाम हैं। 
हिन्दी में लहसुन, अन्य भाषाओं में निम्न प्रकार - गुजराती में लसुण, बंगला में रसुन, अंग्रेजी में गार्लिक (Garlic) - Latin Name - Allim Sativum, Fam. - LiliaceaeР
लहसुन में 6 प्रकार के रसों में से 5 रस पाये जाते हैं, केवल अम्ल नामक रस नहीं पाया जाता है। 
निम्न रस - मधुर - बीजों में, लवण - नाल के अग्रभाग में, कटु - कन्दों में, तिक्त - पत्तों में, कषाय - नाल में। ""रसोनो बृंहणो वृष्य: स्गिAधोष्ण: 
पाचर: सर:।"" अर्थात् लहसुन वृहण (सप्तधातुओं को बढ़ाने वाला, वृष्य - वीर्य को बढ़ाने वाला), रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, म”ाा, शुक्र स्निग्धाकारक, उष्ण प्रकृत्ति वाला, पाचक (भोजन को पचाने वाला) तथा सारक (मल को मलाशय की ओर धकेलने वाला) होता है। 
""भग्नसन्धानकृत्"" - टूटी हुई हçड्डयों को जो़डने वाला, कुष्ठ के लिए हितकर, शरीर में बल, वर्ण कारक, मेधा और नेत्र शक्ति वर्धक होता है। 
लहसुन सेवन योग्य व्यक्ति के लिए पथ्य - अपथ्य: पथ्य : मद्य, माँस तथा अम्ल रस युक्त भक्ष्य पदार्थ हितकर होते हैं - ""मद्यंमांसं तथाडमल्य्य हितं लसुनसेविनाम्""। 
अहितकर : व्यायाम, धूप का सेवन, क्रोध करना, अधिक जल पीना, दूध एवं गु़ड का सेवन निषेध माना गया है। 
रासायनिक संगठन : इसके केन्द्रों में एक बादामी रंग का उ़डनशील तेल पाया जाता है, जिसमें प्रधान रूप से Allyl disulphible  and Allyl propyldisulphide और अल्प मात्रा में Polysulphides पाये जाते हैं। इन सभी की क्रिया Antibacterial होती है तथा ये एक तीव्र प्रतिजैविक Antibiotics का भी काम करते हैं। 
श्वसन संस्थान पर लहसनु के उपयोग: 
1. लहसुन के रस की 1 से 2 चम्मच मात्रा दिन में 2-3 बार यक्ष्मा दण्डाणुओं (T.B.) से उत्पन्न सभी विकृत्तियों जैसे - फुफ्फुस विकार, स्वर यन्त्रशोथ में लाभदायक होती है। इससे शोध कम होकर लाभ मिलता है। 
2. स्वर यन्त्रशोथ में इसका टिंक्चर 1/2 - 1 ड्राप दिन में 2-3 बार देने पर लाभ होता है। 
3. पुराने कफ विकार जैसे - कास, श्वास, स्वरभङग्, (Bronchitis) (Bronchiectasis) एवं श्वासकृच्छता में इसका अवलेह बनाकर उपयोग करने से लाभ होता है। 
4. चूंकि लहसुन में जो उ़डनशील तैलीय पदार्थ पाया जाता है, उसका उत्सर्ग त्वचा, फुफ्फुस एवं वृक्क द्वारा होता है, इसी कारण ज्वर में उपयोगी तथा जब इसका उत्सर्ग फुफ्फुसों (श्वास मार्ग) के द्वारा होता है, तो कफ ढ़ीला होता है तथा उसके जीवाणुओं को नाश होकर कफ की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
5.(Gangerene of lungs) तथा खण्डीय (Lobar pneumonia) में इसके टिंक्चर 2-3 बूंद से आरंभ कर धीरे-धीरे बूंदों की मात्रा बढ़ाकर 20 तक ले जाने से लाभ होता है। 
6. खण्डीय फुफ्फुस पाक में इसके टिंक्चर की 30 बूंदें हर 4 घण्टे के उपरान्त जल के साथ देने से 48 घण्टे के अन्दर ही लाभ मालूम होता है तथा 5-6 दिन में ज्वर दूर हो जाता है।
7. बच्चों में कूकर खांसी, इसकी कली के रस की 1 चम्मच में सैंधव नमक डालकर देने से दूर होती है। 8. अधिक दिनों तक लगातार चलने वाली खाँसी में इसकी 3-4 कलियों (छोटे टुक़डों) को अग्नि में भूनकर, नमक लगाकर खाने से में लाभ मिलता है।
9. लहसुन की 5-7 कलियों को तेल में भूनें, जब कलियाँ काली हो जाएं, तब तेल को अग्नि पर से उतार कर जिन बच्चों या वृद्ध लोगों को जिनके Pneumoia (निमोनिया) या छाती में कफ जमा हो गया है, उनमें छाती पर लेप करके ऊपर से सेंक करने पर कफ ढीला होकर खाँसी के द्वारा बाहर निकल जाता है। 
तंत्रिका संस्थान के रोगों में उपयोग: 
1. (Histeria) रोग में दौरा आने पर जब रोगी बेहोश हो जाए, तब इसके रस की 1-2 बूंद नाक में डालें या सुंघाने से रोगी का संज्ञानाश होकर होश आ जाता है। 
2. अपस्मार (मिर्गी) रोग में लहसुन की कलियों के चूर्ण की 1 चम्मच मात्रा को सायँकाल में गर्म पानी में भिगोकर भोजन से पूर्व और पश्चात् उपयोग कराने से लाभ होता है। यही प्रक्रिया दिन में 2 बार करनी चाहिए। 
3. लहसुन वात रोग नाशक होता है अत: सभी वात विकारों साईटिका (Sciatica), कटिग्रह एवं मन्याग्रह (Lumber & Cirvical spondalitis) और सभी लकवे के रोगियों में लहसुन की 7-9 कलियाँ एवं वायविडगं 3 ग्राम मात्रा को 1 गिलास दूध में, 1 गिलास पानी छानकर पिलाने से सत्वर लाभ मिलता है। 
4. सभी वात विकार, कमर दर्द, गर्दन दर्द, लकवा इत्यादि अवस्थाओं में सरसों या तिल्ली के 50 ग्राम तेल में लहसुन 5 ग्राम, अजवाइन 5 ग्राम, सोंठ 5 ग्राम और लौंग 5-7 नग डालकर तब तक उबालें जब ये सभी काले हो जाएं। इन्हें छानकर तेल को काँच के मर्तबान में भर लें व दर्द वाले स्थान पर मालिश करने से पी़डा दूर होती है। 
5. जीर्णआमवात, सन्धिशोथ में इसे पीसकर लेप करने से शोथ और पी़डा का नाश होता है। 
6. बच्चों के वात विकारों में ऊपर निर्दिष्ट तेल की मालिश विशेष लाभदायक होती है। 
पाचन संस्थान में उपयोग: 
1. अजीर्ण की अवस्था और जिन्हें भूख नहीं लगती है, उन्हें लहसुन कल्प का उपयोग करवाया जाता है। आरंभ में 2-3 कलियाँ खिलाएं, फिर प्रतिदिन 2-2 कलियाँ बढ़ाते हुए शरीर के शक्तिबल के अनुसार 15 कलियों तक ले जाएं। फिर पुन: घटाते हुए 2-3 कलियों तक लाकर बंद कर कर दें। इस कल्प का उपयोग करने से भूख खुलकर लगती है। आंतों में (Atonic dyspepsia) में शिथिलता दूर होकर पाचक रसों का ठीक से स्राव होकर आंतों की पुर: सरण गति बढ़ती है और रोगी का भोजन पचने लगता है। 
2. आंतों के कृमि (Round Worms) में इसके रस की 20-30 बूंदें दूध के साथ देने से कृमियों की वृद्धि रूक जाती है तथा मल के साथ निकलने लगते हैं। 
3. वातगुल्म, पेट के अफारे, (Dwodenal ulcer) में इसे पीसकर, कर घी के साथ खिलाने से लाभ होता है। 
ज्वर (Fever) रोग में उपयोग:
1. विषम ज्वर (मलेरिया) में इसे (3-5 कलियों को) पीस कर या शहद में मिलाकर कुछ मात्रा में तेल या घी साथ सुबह खाली पेट देने से प्लीहा एवं यकृत वृद्धि में लाभ मिलता है। 
2. आंत्रिक ज्वर/मियादी बुखार/मोतीझरा (Typhoid) तथा तन्द्राभज्वर (Tuphues) में इसके टिंक्चर की 8-10 बूंदे शर्बत के साथ 4-6 घण्टे के अन्तराल पर देने से लाभ मिलता है। यदि रोग की प्रारंभिक अवस्था में दे दिया जाये तो ज्वर बढ़ ही नहीं पाता है। 
3. इसके टिंक्चर की 5-7 बूंदें शर्बत के साथ (Intestinal antiseptic) औषध का काम करती है। ह्वदय रोग में: 1. ह्वदय रोग की अचूक दवा है। 
2. लहसुन में लिपिड (Lipid) को कम करने की क्षमता या Antilipidic प्रभाव होने के कारण कोलेस्ट्रॉल और ट्राईग्लिसराइडस की मात्रा को कम करता है। 
3. लहसुन की 3-4 कलियों का प्रतिदिन सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल का बढ़ा हुआ लेवल कम होकर ह्वदयघात (Heartattack) की संभावनाओं को कम करता है। 
Note:
  1. लहसुन की तीक्ष्णता को कम करने के लिए इनकी कलियों को शाम को छाछ या दही के पानी में भिगो लें तथा सुबह सेवन करने से इसकी उग्र गन्ध एवं तीक्ष्णता दोनों नष्ट हो जाती हैं।
2. लहसुन की 5 ग्राम मात्रा तथा अर्जुन छाल 3 ग्राम मात्रा को दूध में उबाल कर (क्षीरपाक बनाकर) लेने से मायोकार्डियल इन्फेक्शन ((M.I.) ) तथा उच्चा कॉलेस्ट्रॉल (Hight Lipid Profile) दोनों से बचा जा सकता है।
3. ह्वदय रोग के कारण उदर में गैस भरना, शरीर में सूजन आने पर, लहसुन की कलियों का नियमित सेवन करने से मूत्र की प्रवृत्ति बढ़कर सूजन दूर होता है तथा वायु निकल कर ह्वदय पर दबाव भी कम होता है। 
4. (Diptheria) नामक गले के उग्र विकार में इसकी 1-1 कली को चूसने पर विकृत कला दूर होकर रोग में आराम मिलता है, बच्चों को इसके रस (आधा चम्मच) में शहद या शर्बत के साथ देना चाहिए। 
5. पशुओं में होने वाले Anthrax रोग में इसे 10-15 ग्राम मात्रा में आभ्यान्तर प्रयोग तथा गले में लेप के रूप में प्रयोग करते हैं। 
Note : लहसुन के कारण होने वाले उपद्रवों में हानिनिवारक औषध के रूप में मातीरा, धनियाँ एवं बादाम के तेल में उपयोग में लाते हैं।
Note : गर्भवती çस्त्रयों तथा पित्त प्रकृत्ति वाले पुरूषों को लहसुन का अति सेवन निषेध माना गया है।

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