गुरुवार, 17 नवंबर 2011

सर्दी स्पेशल: रोज इनमें से कुछ भी खाएं तो सालभर बीमारियां छू भी नहीं पाएगी

सर्दियों में अपनी आयु और शारीरिक अवस्था को ध्यान में रख कर उचित और आवश्यक मात्रा में, पौष्टिक शक्तिवर्धक चीजों को लेना हमारे शरीर को सालभर के लिए एनर्जी देता है। आयु और शारीरिक अवस्था के मान से अलग-अलग पदार्थ सेवन करने योग्य होते हैं। लेकिन ठंड में पौष्टिक पदार्थों का सेवन शुरू करने से पहले पेट शुद्धि यानी कब्ज दूर करना आवश्यक है। 
क्योंकि इन्हें पचाने के लिए अच्छी पाचन शक्ति होना जरूरी है। वरना पौष्टिक पदार्थों या औषधियों का सेवन करने से लाभ ही नहीं होगा। ऐसी तैयारी करके, सुबह शौच जाने के नियम का पालन करते हुए, हर व्यक्ति को अपना पेट साफ रखना चाहिए। ठीक समय 32 बार चबा चबा कर भोजन करना चाहिए।अब हम पहले ऐसे पौष्टिक पदार्थों की जानकारी दे रहे हैं। जो किशोरवस्था से लेकर प्रोढ़ावस्था तक के स्त्री-पुरुष सेवन कर अपने शरीर को पुष्ट, सुडौल, व बलवान बना सकते हैं। 
क्या खाएं सर्दियों में-
         - सोते समय एक गिलास मीठे कुनकुने गर्म दूध में एक चम्मच शुद्ध घी डालकर पीना चाहिए।
         -  दूध में मलाई और पिसी मिश्री मिलाकर पीना चाहिए।
         - एक बादाम पत्थर घिस कर दूध में मिला कर उसमें पीसी हुई मिश्री मिलाकर पीना चाहिए। 
         - सप्ताह में दो दिन अंजीर का दूध लें।
         - तालमखाना।
         - सफेद मुसली।
         - ठंडे दूध में एक केला और एक चम्मच शहद।
         - उड़द की दाल दूध पका कर बनाई हुई खीर।
         - प्याज का रस।
         - असगंध चूर्ण
         - उड़द की दाल। 
         - रोज सेवफल खाएं।
         - कच्चे नारियल की सफेद गरी। 
         -प्याज का रस दो चम्मच, शहद एक चम्मच, घी पाव चम्मच।

बुधवार, 16 नवंबर 2011

इन बातों का ध्यान न रखा तो हो जाएंगे इस लाइलाज बीमारी के शिकार


माना जाता है कि दमा यानी एस्थमा एक ऐसा रोग है जो एक बार हो जाए तो दम निकलने के बाद ही जाता है।आमतौर पर यह रोग अनुवांशिक होता है तो कुछ लोगों को मौसम के कारण हो जाता है। इसके कारण रोगी कोई भी काम ठीक से नहीं कर पाते और जल्दी थक जाते हैं। जब दमा रोग से पीडि़त रोगी को दौरा पड़ता है तो उसे सूखी खांसी होती है और ऐंठनदार खांसी होती है। इस रोग से पीडि़त रोगी चाहे कितना भी बलगम निकालने के लिए कोशिश करें लेकिन फिर भी बलगम बाहर नहीं निकलता है। दमा रोग प्राकृतिक चिकित्सा से पूरी तरह से ठीक हो सकता है। लेकिन अगर यह रोग अनुवांशिक न हो तो कुछ बातों की सावधानी रखकर इस रोग से बचा जा सकता है।

दमा रोग होने का कारण:-



   - औषधियों का अधिक प्रयोग करने के कारण कफ सूख जाने से दमा रोग हो जाता है।

   - खान-पान के गलत तरीके से दमा रोग हो सकता है।

   - मानसिक तनाव, क्रोध तथा अधिक भय के कारण भी दमा रोग हो सकता है।

    - खून में किसी प्रकार से दोष उत्पन्न हो जाने के कारण भी दमा रोग हो सकता है।

    - नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करने के कारण दमा रोग हो सकता है।

    - खांसी, जुकाम तथा नजला रोग अधिक समय तक रहने से दमा रोग हो सकता है।

    - नजला रोग होने के समय में संभोग क्रिया करने से दमा रोग हो सकता है।

    - भूख से अधिक भोजन खाने से दमा रोग हो सकता है।

    - मिर्च-मसाले, तले-भुने खाद्य पदार्थों तथा गरिष्ठ भोजन करने से दमा रोग हो सकता है।

    - फेफड़ों में कमजोरी, हृदय में कमजोरी, गुर्दों में कमजोरी, आंतों में कमजोरी, स्नायुमण्डल में कमजोरी तथा नाकड़ा रोग हो जाने के कारण दमा रोग हो जाता है।

    - मनुष्य की श्वास नलिका में धूल तथा ठंड लग जाने के कारण दमा रोग हो सकता है।

    - धूल के कण, खोपड़ी के खुरण्ड, कुछ पौधों के पुष्परज, अण्डे तथा ऐसे ही बहुत सारे प्रत्यूजनक पदार्थों का भोजन में अधिक सेवन करने के कारण दमा रोग हो सकता है।

    - मनुष्य के शरीर की पाचन नलियों में जलन उत्पन्न करने वाले पदार्थों का सेवन करने से भी दमा रोग हो सकता है।

    - मल-मूत्र के वेग को बार-बार रोकने से दमा रोग हो सकता है।

    - धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ रहने या धूम्रपान करने से दमा रोग हो सकता है।


नहीं होगा कोई रोग, मैथी का ये अचूक प्रयोग ठंड में बना देगा आपकी सेहत

ठंड में आने वाली सारी हरे पत्तेदार सब्जियों को स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी माना गया है। अगर बात मेथी की हो तो मेथी तो वो सब्जी है जो खाने के स्वाद को और ज्यादा बड़ा देती है। मसालों, सब्जियों के बघार में,अचार में, पत्तियों की सब्जी और मेथी के पराठे बहुत चाव से खाए जाते हैं। मेथी का दवाई के रूप में उपयोग हजारों सालों से किया जाता रहा है। कमर दर्द, गठिया दर्द, प्रसव के बाद, डाइबिटीज के साथ ही जोड़ों के दर्द, आंखों की कमजोरी, शारीरिक दुर्बलता, मूत्र संबंधी विकार ये सब दूर होते हैं। इसका सेवन हर साल करते रहना चाहिए।

स्त्रियां भी इसका सेवन करके सदैव स्वस्थ रह सकती हैं एवं चिरयौवन प्राप्त कर सकती हैं। हर साल सर्दियों के मौसम में इसे लाग के रूप में खाया जाता है। माना जाता है ठंड में इसका सेवन करने से शरीर स्वस्थ व निरोगी रहता है।

 सामग्री- मेथीदाने- 500 ग्राम, सोंठ का बारीक पाउडर 250 ग्राम, दूध चार लीटर, घी 500 ग्राम, चीनी 1.5 किलो, सोंठ, छोटी पीपलामूल, अजवाइन, जीरा, कलौंजी, सौंफ, धनिया, तेजपत्ता, कचूर, दालचीनी, जायफल और नागरमोथा ये सब 10-10 ग्राम। 

बनाने की विधि- उक्त सभी कूट पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। अब दूध को एक साफ कड़ाई में डालकर आग पर चढ़ाएं। औटाने पर जब दूध आधा रह जाए, तब इसमें मेथी का पिसा चूर्ण तथा सोंठ का पिसा हुआ चूर्ण डाल दें। हिलाते रहें और मावा बना दें। अब घी डालकर इसकी सिकाई करें। गुलाबी रंग का होने तक सेकें । अब इसमें मावा और बाकी की सब पिसी हुई दवाईयां मिलाकर चलाएं। जब कुछ गाढ़ा सा हो जाए, तब नीचे उतार लें तथा या तो जमाकर बर्फी जैसी चक्की काट लें अथवा लगभग 10-10 ग्राम वजन के लड्डू बांध दें।

 

सेवन कैसे करें- इस लड्डू को सुबह के समय 200 ग्राम की मात्रा में खाकर ऊपर से दूध पीएं। इससे सभी तरह के वायु विकार समाप्त होते हैं। शरीर हष्ट-पुष्ट होता है। प्रसव के बाद स्त्रियां इस पाक का सेवन करें। उनका शरीर कांतिमान हो जाता है। जिन व्यक्तियों के जोड़ों में सून दर्द, घुटनों में दर्द, थकान सी महसूस होना, पैरों के तलवों में अत्याधिक पसीना आना, बायंटे आना व गैस संबंधित सभी बीमारियों में फायदा होता है।

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

एलर्जी के लिए ये छोटे-छोटे उपाय है रामबाण

एलर्जी एक ऐसा शब्द,जिसका प्रयोग व्यापक रूप से होता आया है, आपने यह भी कहते हुए सुना होगा कि यार मुझे उससे बात करने में एलर्जी होती है। ऐसा ही कुछ हमारे सजीव शरीर में भी होता है, एलर्जी हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधकक्षमता के अतिसक्रियता के कारण उत्पन्न होने वाले एक प्रतिक्रिया है ,खासकर तब जब प्रतिक्रिया किसी सामान्य एवं हानिरहित पदार्थ से हो रही हो तो वह पदार्थ एलर्जन कहलाता है। ये प्रतिक्रियाएं एक्वयार्ड,प्रेडिकटेबल एवं तीव्र होती हैं। आयुर्वेद शरीर रूपी क्षेत्र को एलर्जन रूपी बीज के प्रभाव  से  प्रतिरोधक क्षमता को संतुलित करने के  सिद्धांत पर कार्य करता है, अत: हानिरहित औषधियां एलर्जी से बचाव में अत्यंत कारगर सिद्ध होती हैं।
-सर्दी हो या गर्मी सुबह उठते ही नाक बंद हो जाने और लगातार छिंक आने से वे परेशान हैं  और कई आयुर्वेदिक उपचार लेने की बात कह रहे हैं : आप सब केवल नियमित रूप से गिलोय की ताजी डंठलों का रस तथा ताजे आंवलें का रस  निकालकर ,उन्हें नियमित रूप से 2-3 चम्मच की मात्रा में सेवन करें या करायें निश्चित लाभ मिलेगा,साथ ही पंचकर्म चिकित्सक के निर्देशन में नस्य लेना भी  एलर्जी से निजात दिलाने में मददगार होगा ,आप सभी गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद ,आधा चम्मच नींबू का रस को कुछ महीनों तक लगातार लें ,देखें आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में संतुलन आ जाएगा ,और आपको एलर्जी से सम्बंधित परेशानियों में अवश्य ही लाभ मिलेगा।


- शरीर में खुजली और सूजन , घास के खेतों में जानेपर होने वाली समस्या का निदान चाहा है, इसे 'अर्टीकेर्या - कहते हैं ,इसमें दवा खाने तक चकते नहीं बनते और दवा छोडते ही बन जाते हैं। योग की कुंजल क्रिया या कुशल चिकित्सक के निर्देशन में पंचकर्म  का वमन कर्म अत्यंत फायदेमंद होगा ,फिलहाल आप चित्रकादीवटी  एवं आरोग्य वर्धिनीवटी दो-दो गोली सुबह शाम गुनगुने पानी से लें ।

कम्प्यूटर पर कई घंटो तक काम करने के बाद भी कैसे रहें तरोताजा?

आजकल कम्प्यूटर हम सभी की जिंदगी की जरुरत बन गया है। वर्कप्लेस हो या घर हम बिना कम्प्यूटर के अपना काम नहीं कर सकते हैं। यही कारण है कि कम्प्यूटर पर काम करते हुए थकान हो जाने के बावजूद भी हम लगातार कम्प्यूटर पर काम करते रहते हैं। ऐसे में ये भी एक परेशानी है कि हम कम्प्यूटर पर काम को करते हुए भी किस तरह अपने वर्क में 100 प्रतिशत तक दे सकते हैं। अगर आपके साथ भी यही समस्या है कि आप कम्प्यूटर पर बहुत ज्यादा काम के बोझ के कारण होने वाली थकान के चलते ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं तो हम देते हैं आपको कुछ ऐसे टिप्स जिनसे आप कम्प्यूटर पर कई घंटो तक काम करने के बावजूद भी तरोताजा रह सकते हैं।

- बेवजह कम्प्यूटर का इस्तेमाल न करें।

- कम्प्यूटर पर कार्य करते समय कुर्सी सही डिजाइन की होनी चाहिए। 

- कुर्सी में पूरी पीठ हत्थे पर होनी चाहिए। जिससे बैठते समय कमर, पीठ और हाथों को सहारा मिले। 

- की-बोर्ड माउस को 90 कोण पर मुड़ी कोहनी की सीध में रखें, बेहतर होगा की बोर्ड थोड़ा ढलान पर हों।

- जांघे जमीन के समांतर टखने समकोण पर मुड़े हो, आवश्यक होने पर पैरों को फुट रेस्ट सहारा दें। 

- कम्प्यूटर पर कार्य करते समय फोन को कंधों और गर्दन से दबा कर बात न करें।

- देर तक टेलीफोन से बात करने के लिए हेडफोन उपयोग करें।

- कार्य करते समय शरीर ढीला रखें मन शांत रखें।

- की-बोर्ड माउस का उपयोग कम करने के लिए आवाज पहचान कर कार्य करने वाले सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

- मॉनीटर की चमक, परावर्तन कम करने के लिए एण्टीग्लेमर कोटिंग या ग्लास लगाएं।

आयुर्वेदिक नुस्खा: ये महिलाओं को सुडौल बनाएगा और कमजोरी मिटाएगा




महिलाएं स्वभाव से बहुत ही भावुक होती है। कहते हैं ममता, प्यार, दया और सेवा ये सभी गुण उनमें जन्म से ही होते हैं। इसीलिए वे शादी के बंधन में बंधने के बाद पराए घर को अपनाकर अपने दिन-रात उनकी सेवा में लगा देती है। ऐसे में अधिकतर महिलाएं अपने ऊपर ध्यान नहीं दे पाती हैं। ध्यान नहीं देने के कारण वे कई बार अपनी बीमारियों को छिपाए रखती हैं। इस तरह अंदर ही अंदर वे कमजोर होती जाती हैं। श्वेत रक्त प्रदर, रक्त प्रदर , मासिक धर्म की अनियमितता, कमजोरी दुबलापन, सिरदर्द, कमरदर्द आदि। ये सभी बीमारियां शरीर को स्वस्थ और सुडौल नहीं रहने देती हैं।  इसलिए हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसा आयुर्वेदिक नुस्खा जो महिलाओं की हर तरह की कमजोरी को दूर करता है।

नुस्खा- स्वर्ण भस्म या वर्क दस ग्राम, मोती पिष्टी बीस ग्राम, शुद्ध हिंगुल तीस ग्राम, सफेद मिर्च चालीस ग्राम, शुद्ध खर्पर अस्सी ग्राम। गाय के दूध का मक्खन पच्चीस ग्राम थोड़ा सा नींबू का रस पहले स्वर्ण भस्म या वर्क और हिंगुल को मिला कर एक जान कर लें। फिर शेष द्रव्य मिलाकर मक्खन के साथ घुटाई करें। फिर नींबु का रस कपड़े की चार तह करके छान लें और इसमें मिलाकर चिकनापन दूर होने तक घुटाई करनी चाहिए।आठ-दस दिन तक घुटाई करनी होगी। फिर उसकी एक-एक रत्ती की गोलियंा बना लें।

सेवन की विधि-  1 या 2 गोली सुबह शाम एक चम्मच च्यवनप्राश के साथ सेवन करें। इस दवाई का सेवन करने से महिलाओं को प्रदर रोग, शारीरिक क्षीणता, और कमजोरी आदिसे मुक्ति मिलती है और शरीर स्वस्थ और सुडौल बनता है। यह दवाई ''स्वर्ण मालिनी'' वसंत के नाम से बाजार में भी मिलती है। इसके सेवन से शरीर बलशाली होता है। शरीर के सभी अंगों को ताकत मिलती है।

सूखे अदरक के ये अनोखे प्रयोग कर देंगे इन सारे रोगों की छुट्टी

भोजन ठीक तरह से नहीं पचता है,भोजन के ठीक से नहीं पचने के कारण शरीर में कितने ही रोग पैदा हो जाते है,अनियमित खानपान से गैस और कफ दूषित हो जाते हैं। सोंठ कब्ज एवं कफवात नाशक, आमवात नाशक है। उदररोग, वातरोग, बावासीर, आफरा, आदि रोगों का नाश करती है। सोंठ में कफनाशक गुण होने के कारण यह खांसी और कफ रोगों में उपयोगी है।

सोंठ का उपयोग प्राचीनकाल से ही होता आ रहा है। सोंठ एक उष्ण जमीकंद हैं जो अदरक के रूप में जमीन से खोदकर निकाली जाती है और सुखाकर सोंठ बनती है। मनुष्य में जीने की शक्ति और रोगों से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता पैदा करती हैं। यह औषधी उत्तेजक, पाचक और शांतिकारक हैं। इसके सेवन से पाचन क्रिया शुद्ध होती है। सोंठ उष्ण होने से वायु के कुपित होने पर होने वाले रोगों को नष्ट करती है।

आधा सिरदर्द- सोंठ का चंदन की घिसकर लेप करें।

आंखों के रोग- सोंठ नीम के पत्ते या निंबोली पीसकर उसमें थोड़ा सा सेंधा नमक डालकर गोलियां बना लें। गोली को मामूली गर्म कर आंखों पर बांधने से आंखों की पीड़ा कम होती है।

कमरदर्द- कमरदर्द में सोंठ का चूर्ण आधा चम्मच दो कप पानी में उबालकर आधा कप रह जाए। तब छानकर ठंडाकर उसमें दो चम्मच अरण्डी तेल मिला क रोज रात को पीएं।

उदर रोग- चार ग्राम सोंठ का काढ़ा बनाकर पिलाएं एवं साथ में अजवाइन की बनाकर पिलाएं। साथ में अजवाइन की फक्की लगाने से उदर रोग नष्ट होता है।

खांसी-  सोंठ चूर्ण के साथ मुलहटी का चूर्ण एक चम्मच गुनगुने पानी में लेने पर छाती में जमा कफ बाहर निकलता है और खांसी में आराम मिलता है। 

कब्ज- सोंठ का चूर्ण एक चम्मच गरम पानी को उबालकर पिलाएं। 

मंदाग्रि- सोंठ चूर्ण गुड़ में मिलाकर खाने से पाचन क्रिया बढ़ती है।

प्रसव के बाद- सोंठ एवं सफेद मूसली का चूर्ण, कतीरा गोंद के साथ खाने पर प्रसव की कमजोरी एवं कमर दर्द में कमी आ जाती है। 

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