शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

Home Made Skin Paste and Tips


निम्नलिखित प्रक्रिया को अपनाइए। फल के निचोड़ से बनी सिर्फ एक ही बूँद काफी है आपकी त्वचा रक्षा के लिए। इसमें खर्च भी कम होगा और बाजारू कॉस्मेटिक जैसी मिलावट से भी परे। विभिन्न मौसम में इस्तेमाल के लिए यह एक अत्यंत सफल और वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
सेब : यह त्वचा का तेल कम करता है।
विधि : सेब के एक बड़े टुकड़े की लुगदी बनाकर उसकी पतली तह चेहरे पर 10-15 मिनट तक लगाकर लेट जाएँ। फिर गरम पानी से चेहरा धो लें।
बादाम : रूखी त्वचा के लिए उपयोगी। यह त्वचा को पोषकता एवं कोमलता देती है।
विधि : एक कप ठंडा दूध लें। इसमें 1 औंस पीसा हुआ बादाम डालकर खूब फेंटें। फिर आधा औंस शकर उसमें मिला दें। फिर आहिस्ता-आहिस्ता मुँह, हाथ पर इसका लेप लगाएँ। 20 मिनट बाद ठंडे पानी से धो लें।
टमाटर : दूसरे अन्य फलों की अपेक्षा टमाटर में अधिक विटामिन होते हैं। यह त्वचा को रेशमी, मुलायम बनाने में सहायक है। इसके प्रयोग से त्वचा के दाग-धब्बे धीरे-धीरे कम होकर मिट जाते हैं।
विधि : टमाटर का रस, नीबू का रस, ग्लिसरीन समान मात्रा में लेकर मिलाएँ। हाथ-मुँह धोने के बाद इस मिश्रण से त्वचा की मालिश करें। आधे घंटे बाद गुनगुने पानी से धो लें।
झरबेरी : यह कांतिहीन मुरझाई त्वचा को दिव्यता प्रदान करती है। सूखी त्वचा को मुलायम बनाने के लिए मक्खन मिलाएँ।
विधि : थोड़े से मक्खन में ताजे झरबेरी पीसकर मिलाएँ। पतला लेप चेहरे पर लगाकर आधे घंटे बाद गरम पानी से धो लें। त्वचा एकदम मुलायम हो जाएगी।
तरबूज : यह प्रकृति प्रदत्त नमी देने वाला फल है। इसकी शीतलता, नमी अन्य फलों की अपेक्षा अधिक देर तक रहती है। झुलसी त्वचा के निशानों को मिटाने के लिए यह एक आदर्श फल है।
विधि : फल के सफेद भाग का रस निकालकर उसमें थोड़ा-सा शहद मिलाकर चेहरे पर लगाएँ। सूखने पर फिर लगाएँ। ऐसा 10-15 मिनट तक करें। चाहें तो इस रस में कॉटन भिगोकर चेहरे पर फैला लें। फिर ठंडे पानी से धो लें।
खीरा : तैलीय त्वचा के तेल को सामान्य रखने तथा कांतिहीन त्वचा में कांति लाने के लिए खीरे का रस प्रकृति की अनुपम देन है। इसका प्रयोग टोनिंग के तौर पर किया जाता है।
विधि : (टोनिंग) खीरे का रस निकालकर चेहरे पर बार-बार लगाएँ। 15-20 मिनट बाद चेहरा ठंडे पानी से धो लें। खीरे के टुकड़ों को दूध में उबालकर मैश करें। अब पूरे चेहरे पर लगाकर आधे घंटे के लिए छोड़ दें। फिर ठंडे पानी से धो लें। यह एक बेहतरीन मास्क है, जो त्वचा में कसाव लाता है।
शहद : यह त्वचा की झुर्रियाँ मिटाने में बड़ा सहायक है। यह खुश्क त्वचा को मुलायम कर रेशमी व चमकदार बनाता है।
विधि : चेहरे पर शहद की एक पतली तह चढ़ा लें। इसे 15-20 मिनट लगा रहने दें, फिर कॉटनवूल भिगोकर इसे पोंछ लें। तैलीय त्वचा वाले शहद में चार-पाँच बूँद नीबू का रस डालकर उपयोग करें।
नीम : यह त्वचा में रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाता है। इसके प्रयोग से मुँहासे में जादू जैसा लाभ होता है।
विधि : चार-पाँच नीम की पत्तियों को पीसकर मुलतानी मिट्टी में मिलाकर लगाएँ, सूखने पर गरम पानी से धो लें।
केला : यह त्वचा में कसाव लाता है तथा झुर्रियों को मिटाता है।
विधि : पका केला मैश कर चेहरे पर लगाएँ। आधा घंटे बाद ठंडे पानी से धो लें।
* गर्मी के दिनों में तेज धूप और गर्म हवाएँ त्वचा को काफी नुकसान पहुँचाती हैं। इस मौसम में पसीने की चिपचिपाहट का भी सामना करना पड़ता है।
* गर्मी के मौसम में पसीना अधिक निकलने की वजह से घमौरी, खाज, खुजली आदि की शिकायत भी उत्पन्न हो जाती है।
* तेज धूप में निकलने पर त्वचा पर सनबर्न, पिगमेंटेशन आदि की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।
* अधिक गर्मी और पसीने की वजह से बगलों व जाँघों में संक्रमण हो जाता है।
बचाव के उपाय
* दिन में कम से कम दो बार ठंडे पानी से रगड़-रगड़कर स्नान करें।
* साफ, धुले, सूती कपड़े पहनें। अंतर्वस्त्र दो बार बदलें।
* दिनभर में 3-4 बार चेहरे को फेसवॉश से साफ करें।
* ककड़ी, खीरा, संतरा या मौसम्बी का रस निकाल लें। इसे ट्रे में डालकर फ्रिज में जमने के लिए रख दें। इसके क्यूब को चेहरे पर मलें। चेहरा चमक उठेगा। रोमकूपों और मुँहासों के लिए भी लाभदायक होता है।
* पानी में थोड़ी-सी फिटकरी मिलाकर इसे आइस क्यूब में रखकर फ्रिज में जमा लें। यह क्यूब चेहरे पर रगड़ने से ताजगी मिलती है।
* गर्मी के दिनों में ब्लीचिंग न करवाएँ। इससे त्वचा काली हो जाने का डर रहता है।
* धूप में निकलने पर सनस्क्रीन या सन ब्लॉक क्रीम, लोशन का इस्तेमाल करें।
* सुबह-सबेरे या शाम को व्यायाम हेतु समय अवश्य निकालें।
* घर से कहीं भी बाहर जाते समय सन्सक्रीन लोशन लगाएँ, पूरी तरह कवर्ड (स्कार्फ, ग्लब्स, समर कोट आदि) होकर बाहर निकलें, ढेर सारा पानी पिएँ।
* आँखों को सूर्य की तेज किरणों से बचाने के लिए अच्छी क्वालिटी के सनग्लासेस इस्तेमाल करें।
* हमेशा पानी की बॉटल साथ में रखें। इसमें ग्लूकोज या नींबू पानी भी मिला सकते हैं।
* कॉटन के हल्के रंगों को पहनावे में प्राथमिकता दें।
* 10 से 4 बजे तक घर या ऑफिस से बाहर निकलते समय अपना विशेष ध्यान रखें।
इसके अलावा गर्मी में रॉक साल्ट (खनिज नमक), जीरा, सौंफ व इलायची जैसे मसाले तथा दही, कच्ची केरी का पना, पुदीना, बेल के फल का रस, ठंडाई, चटनियाँ, सत्तू और जलजीरा जैसी चीजें भी शरीर के लिए बेहद अनुकूल होती हैं।

अशोक के अनेक रोगों में लाभ


ऐसा कहा जाता है कि जिस पेड़ के नीचे बैठने से शोक नहीं होता, उसे अशोक कहते हैं, अर्थात् जो स्त्रियों के सारे शोकों को दूर करने की शक्ति रखता है, वही अशोक है। अशोक का पेड़ आम के पेड़ की तरह सदा हरा-भरा रहता है, जो 7.5 से 9 मीटर तक ऊंचा तथा अनेक शाखाओं से युक्त होता है। इसका तना सीधा आमतौर पर लालिमा लिए हुए भूरे रंग का होता है। यह पेड़ सारे भारत में आसानी से मिलता है। अशोक के पत्ते डंठल के दोनों ओर 5-6 के जोड़ों में 9 इंच लंबे, गोल व नोकदार होते हैं। प्रारंभ में पत्तों का रंग तांबे के रंग के समान होता है, जो बाद में लालिमा लिए हुए गहरे हरे रंग का हो जाता है। सूखने के बाद पत्तों का रंग लाल हो जाता है। पुष्प प्रारंभ में सुंदर, पीले, नारंगी रंग के होते हैं। बंसत ऋतु में लगने वाले पुष्प गुच्छाकार, सुगंधित, चमकीले, सुनहरे रंग के होते हैं, जो बाद में लाल रंग के हो जाते हैं। मई के माह में लगने वाली फलियां 4 से 10 बीज वाली होती हैं। अशोक फली गहरे जामुनी रंग की होती है। फली पहले गहरे जामुनी रंग की होती है, जो पकने पर काले रंग की हो जाती है। पेड़ की छाल मटमैले रंग की बाहर से दिखती है, लेकिन अंदर से लाल रंग की होती है।
पेड़ : अशोक का पेड़ 7.5 से 9 मीटर तक ऊंचा, सदाहरित, अधिक शाखाओं वाला घना व छायादार होता है।
पत्ते : अशोक के पेड़ के पत्ते 9 इंच लंबे, गोल व नोकदार दोनों ओर 5-6 जोड़ों में लगते हैं। कोमल अवस्था में ये श्वेताभ लाल वर्ण के परंतु बाद में गहरे हरे रंग के हो जाते हैं। पत्तों के किनारे लहरदार होते हैं।
फूल : अशोक के फूल गुच्छों में नारंगी और लाल रंग के सुगंधित और अति सुंदर होते हैं।
फली : अशोक की फली 4 से 10 इंच लंबी, 1 से 2 इंच चौड़ी, मई महीने में लगती है। फली के अंदर 4-10 बीज तक होते हैं। इसकी कच्ची फली गहरे बैंगनी रंग की और पकने पर काले रंग की हो जाती है।
बीज : अशोक के बीज 1 से 1.5 इंच लंबे, चपटे, ऊपर का छिलका लाल चमड़े के समान मोटा होता है। पेड़ में गोदने से सफेद रस निकलता है जो शीघ्र ही वायु में सूखकर लाल हो जाता है। यही अशोक का गोंद होता है।
गुण : आयुर्वेदिक मतानुसार अशोक का रस कड़वा, कषैला, शीत प्रकृति युक्त, चेहरे की चमक बढ़ाने वाला, प्यास, जलन, कीड़े, दर्द, जहर, खून के विकार, पेट के रोग, सूजन दूर करने वाला, गर्भाशय की शिथिलता, सभी प्रकार के प्रदर, बुखार, जोड़ों के दर्द की पीड़ा नाशक होता है।
होम्योपैथी मतानुसार अशोक की छाल के बने मदर टिंचर से गर्भाशय सम्बंधी रोगों में लाभ मिलता है और बार-बार पेशाब करने की इच्छा होना, पेशाब कम मात्रा में होना, मासिक-धर्म के साथ पेट दर्द, अनियमित स्राव तथा रक्तप्रदर का कष्ट भी दूर होता है।
वैज्ञानिक मतानुसार, अशोक का मुख्य प्रभाव पेट के निचले भागों यानी योनि, गुर्दों और मूत्राशय पर होता है। गर्भाशय के अलावा ओवरी पर इसका उत्तेजक असर पड़ता है। यह महिलाओं में प्रजनन शक्ति को बढ़ाता है। इसकी रासायनिक संरचना करने पर अशोक की छाल में टैनिन 7 प्रतिशत, कैटेकॉल 3 प्रतिशत, इसेन्शियल आइल 4 प्रतिशत, कैल्शियम युक्त कार्बनिक 2 प्रतिशत, लौह खनिज 4 प्रतिशत तथा ग्लाइकोसाइड भी पाया जाता है, जिसकी क्रिया एस्ट्रोजन हार्मोन जैसी होती है। अशोक की मुख्य क्रिया स्टेरायड और कैल्शियम युक्त लवणों के यौगिक के कारण होती है।
मात्रा :
अशोक की छाल का चूर्ण 10 से 15 ग्राम। बीज और पुष्प का चूर्ण 3 से 6 ग्राम। छाल का काढ़ा 50 मिलीलीटर।
Helpfull In
1 : गर्भ स्थापना हेतु
अशोक के फूल दही के साथ नियमित रूप से सेवन करते रहने से स्त्री का गर्भ स्थापित होता है।
2 : श्वेत प्रदर
अशोक की छाल का चूर्ण और मिश्री समान मात्रा में मिलाकर गाय के दूध के साथ 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार कुछ हफ्ते तक सेवन करते रहने से श्वेत प्रदर नष्ट हो जाता है।
3 : खूनी प्रदर में
अशोक की छाल, सफेद जीरा, दालचीनी और इलायची के बीज को उबालकर काढ़ा तैयार करें और छानकर दिन में 3 बार सेवन करें।
4 : योनि के ढीलेपन के लिए
अशोक की छाल, बबूल की छाल, गूलर की छाल, माजूफल और फिटकरी समान भाग में पीसकर 50 ग्राम चूर्ण को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, 100 मिलीलीटर शेष बचे तो उतार लें, इसे छानकर पिचकारी के माध्यम से रोज रात को योनि में डालें, फिर 1 घंटे के पश्चात मूत्रत्याग करें। कुछ ही दिनों के प्रयोग से योनि तंग (टाईट) हो जायेगी।
5 : पेशाब करने में रुकावट
अशोक के बीज पानी में पीसकर नियमित रूप से 2 चम्मच की मात्रा में पीने से मूत्र न आने की शिकायत और पथरी के कष्ट में आराम मिलता है।
6 : मुंहासे, फोड़े-फुंसी
अशोक की छाल का काढ़ा उबाल लें। गाढ़ा होने पर इसे ठंडा करके, इसमें बराबर की मात्रा में सरसों का तेल मिला लें। इसे मुंहासों, फोड़े-फुंसियों पर लगाएं। इसके नियमित प्रयोग से वे दूर हो जाएंगे।
7 : मंदबुद्धि (बृद्धिहीन)
अशोक की छाल और ब्राह्मी का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच सुबह-शाम एक कप दूध के साथ नियमित रूप से कुछ माह तक सेवन करें। इससे बुद्धि का विकास होता है।
8 : सांस फूलना
पान में अशोक के बीजों का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में चबाने से सांस फूलने की शिकायत में आराम मिलता है।
9 : खूनी बवासीर
अशोक की छाल और इसके फूलों को बराबर की मात्रा में लेकर रात्रि में एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें। सुबह पानी छानकर पी लें। इसी प्रकार सुबह भिगोकर रखी छाल और फूलों का पानी रात्रि में पीने से शीघ्र लाभ मिलता है।अशोक की छाल का 40-50 मिलीलीटर काढ़ा पिलाने से खूनी बवासीर में खून का बहना बंद हो जाता है।
10 : श्वास
अशोक के बीजों के चूर्ण की मात्रा एक चावल भर, 6-7 बार पान के बीड़े में रखकर खिलाने से श्वास रोग में लाभ होता है।
11 : त्वचा सौंदर्य
अशोक की छाल के रस में सरसों को पीसकर छाया में सुखा लें, उसके बाद जब इस लेप को लगाना हो तब सरसों को इसकी छाल के रस में ही पीसकर त्वचा पर लगायें। इससे रंग निखरता है।
12 : वमन (उल्टी)
अशोक के फूलों को जल में पीसकर स्तनों पर लेप कर दूध पिलाने से स्तनों का दूध पीने के कारण होने वाली बच्चों की उल्टी रुक जाती है।
13 : रक्तातिसार
अशोक के 3-4 ग्राम फूलों को जल में पीसकर पिलाने से रक्तातिसार में लाभ होता है।
14 : मासिक-धर्म में खून का अधिक बहना
अशोक की छाल 80 ग्राम और 80 ग्राम दूध को डालकर चौगुने पानी में तब तक पकायें जब तक एक चौथाई पानी शेष न रह जाए, उसके बाद छानकर स्त्री को सुबह-शाम पिलायें। इस दूध का मासिक-धर्म के चौथे दिन से तब तक सेवन करना चाहिए, जब तक खून का बहना बंद न हो जाता हो।
15 : स्वप्नदोष
स्त्रियों के स्वप्नदोष में 20 ग्राम अशोक की छाल, कूटकर 250 ग्राम पानी में पकाएं, 30 ग्राम शेष रहने पर इसमें 6 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
16 : पथरी
अशोक के 1-2 ग्राम बीज को पानी में पीसकर नियमित रूप से 2 चम्मच की मात्रा में पिलाने से मूत्र न आने की शिकायत और पथरी के कष्ट में आराम मिलता है।
17 : अस्थिभंग (हड्डी का टूटना) होने पर
अशोक की छाल का चूर्ण 6 ग्राम तक दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से तथा ऊपर से इसी का लेप करने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है और दर्द भी शांत हो जाता है।
18 : गर्भाशय की सूजन
अशोक की छाल 120 ग्राम, वरजटा, काली सारिवा, लाल चंदन, दारूहल्दी, मंजीठ प्रत्येक की 100-100 ग्राम मात्रा, छोटी इलायची के दाने और चन्द्रपुटी प्रवाल भस्म 50-50 ग्राम, सहस्त्रपुटी अभ्रक भस्म 40 ग्राम, वंग भस्म और लौह भस्म 30-30 ग्राम तथा मकरध्वज गंधक जारित 10 ग्राम की मात्रा में लेकर सभी औषधियों को कूटछानकर चूर्ण तैयार कर लेते हैं। फिर इसमें क्रमश: खिरेंटी, सेमल की छाल तथा गूलर की छाल के काढ़े में 3-3 दिन खरल करके 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लेते हैं। इसे एक या दो गोली की मात्रा में मिश्रीयुक्त गाय के दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इसे लगभग एक महीने तक सेवन कराने से स्त्रियों के अनेक रोगों में लाभ मिलता है। इससे गर्भाशय की सूजन, जलन, रक्तप्रदर, माहवारी के विभिन्न विकार या प्रसव के बाद होने वाली दुर्बलता नष्ट हो जाती है। जरायु (गर्भाशय) के किसी भी दोष में अशोक की छाल का चूर्ण 10 से 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह क्षीरपाक विधि (दूध में गर्म कर) सेवन करने से अवश्य ही लाभ मिलता है। इससे गर्भाशय के साथ-साथ अंडाशय भी शुद्ध और शक्तिशाली हो जाता है।
19 : कष्टार्तव (मासिक धर्म का कष्ट के साथ आना)
अशोक की छाल 10 से 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन क्षीरपाक विधि (दूध में गर्म करके) प्रतिदिन पिलाने से कष्टरज (माहवारी का कष्ट के साथ आना), रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर आदि रोग ठीक हो जाते हैं। यह गर्भाशय और अंडाशय में उत्तेजना पैदा करती है और उन्हें पूर्ण रूप से सक्षम बनाती है।
20 : खूनी अतिसार
100 से 200 ग्राम अशोक की छाल के चूर्ण को दूध में पकाकर प्रतिदिन सुबह सेवन करने से रक्तातिसार की बीमारी समाप्त हो जाती है।
21 : मासिक-धर्म सम्बंधी परेशानियां
अशोक की छाल 10 ग्राम को 250 ग्राम दूध में पकाकर सेवन करने से माहवारी सम्बंधी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
22 : प्रदर रोग
अशोक की छाल को कूट-पीसकर कपड़े से छानकर रख लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर में आराम मिलता है।अशोक की छाल के काढ़े को दूध में डालकर पका लें, इसे ठंडा कर स्त्री को उसके शक्ति के अनुसार पिलाने से प्रदर में बहुत लाभ मिलता है। लगभग 20-24 ग्राम अशोक की छाल लेकर इससे आठ गुने पानी के साथ पकाकर चतुर्थांश शेष काढ़ा बना लें और फिर 250 ग्राम दूध के साथ उबालकर रोगी को पिलायें। इससे सभी तरह के प्रदर रोग मिट जाते हैं।अशोक की छाल को चावल के धोवन के पानी के साथ पीसकर छान लें। इसमें थोड़ी मात्रा में शुद्ध रसांजन और शहद डालकर पीयें। इससे सभी तरह के प्रदर में लाभ होता है।2 ग्राम अशोक के बीज, ताजे पानी के साथ ठंडाई की तरह पीसे, उसमें सही मात्रा में मिश्री मिलाकर रोगी को पिलायें। इससे रक्तप्रदर और मूत्र आने में रुकावट, पथरी सभी में बहुत अधिक लाभ मिलता है।अशोक के फूलों (पुश्पों) का रस शहद में मिलाकर पीने से प्रदर में आराम मिलता है।अशोक की छाल के काढ़े में वासा पंचाग का चूर्ण 2 ग्राम शहद 2 ग्राम चम्मच मिलाकर पीने से रक्त प्रदर में लाभ होता है। इसे दिन में 2 बार सेवन करना चाहिए।अशोक की छाल के काढे़ से योनि का धोये तो इससे खून के बहाव को रोकने में सहायता मिलती है। इससे रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर तथा योनि की सड़न में भी लाभ होता है।अशोक की छाल का काढ़ा, सफेद फिटकरी के चूर्ण में मिलाकर गुप्तांग (योनि) में पिचकारी देने से दोनों प्रकार के प्रदर और उनकी विभिन्न बीमारियां मिट जाती हैं।अशोक और पुनर्नवा मिश्रित काढ़े से योनि का प्रक्षालन करने से योनि की सूजन में लाभ होता है और खून का बहाव भी कम हो जाता है। इससे प्रदर रोग और योनि की सूजन भी मिट जाती है।100 ग्राम अशोक की छाल और बबूल की छाल, 50-50 ग्राम लोध्र की छाल और नीम के सूखे पत्ते को जौकूट (पीस) करें और चौगुने पानी में गर्म कर लें। जब आधा पानी ही रह जाये तो इसे उतारकर छान लें। ठंडा होने पर बोतल में भरकर रख लें। इस काढे़ से योनि को धोयें। इससे प्रदर में फायदा होता है।अशोक की छाल 10 से 20 ग्राम की मात्रा में सुबह के समय चूर्ण बनाकर दूध में उबालकर सेवन करने से लाभ मिलता है। यह रक्तप्रदर, कष्टरज और श्वेतप्रदर आदि दोषों से मुक्ति दिलाकर गर्भाशय और अंडाशय को पूर्ण सक्षम और सबल बना देता है। अशोक की छाल के 40-50 मिलीलीटर काढ़े को दूध में मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से श्वेत प्रदर और रक्त प्रदर में लाभ होता है।अशोक की 3 ग्राम छाल को चावल के धोवन (चावल को धोने से प्राप्त पानी) में पीस लें, फिर छानकर इसमें 1 ग्राम रसौत और 1 चम्मच शहद मिलाकर नियमित रूप से सुबह-शाम सेवन करें। इससे सभी प्रकार के प्रदर में लाभ होगा। इस प्रयोग के साथ इसकी छाल के काढ़े में फिटकरी मिलाकर योनि में इसकी पिचकारी लेनी चाहिए।अशोक के 2-3 ग्राम फूलों को जल में पीसकर पिलाने से रक्त प्रदर में लाभ होता है। इसकी अंतर छाल का महीन चूर्ण 10 ग्राम, साठी चावल का चूर्ण 50 ग्राम, मिश्री चूर्ण 10 ग्राम, शहद 3 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में विशेष लाभ होता है। इसे दिन में तीन बार सेवन करें।

ऐसे करें तो पलभर में टाइपिंग की थकान हो जाएगी उडऩ-छू

वर्तमान समय में सभी कामों के लिए कम्प्यूटर का उपयोग किया जाता है। ऐसे में कामकाजी लोगों को लगातार कई घंटों तक कम्प्यूटर पर कार्य करना पड़ता है।कम्प्यूटर पर वर्किंग करते समय सबसे अधिक अंगुलियों को कार्य करना पड़ता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि वे थक सकती हैं और दर्द भी करें। अगर आपके साथ भी यही समस्या है तो ऑफिस में या अन्य किसी भी स्थान पर कम्प्यूटर वर्किंग करते समय ही एक छोटी एक्सरसाइज करें तो आपकी अंगुलियों का तनाव समाप्त हो जाएगा और आप अपना कार्य अच्छे से कर सकेंगे।

एक्सरसाइज की विधि- चेयर पर बैठे-बैठे ही अपने हाथों को सामने की ओर कंधे के बराबर ले आएं। दोनों हथेली को नीचे की ओर रखते हुए मुठ्ठी बना लें। ध्यान रहे अंगूठा अंदर की ओर रखें। अब दोनों हथेलियों को घुमाइएं। दोनों हथेलियों को दोनों दिशाओं में बारी-बारी से घुमाएं। सांस सामान्य रखें।यह अभ्यास पांच-पांच मिनिट तक दिन में कई बार कर सकते हैं। इससे अंगुलियों और हाथों को तनाव खत्म हो जाएगा।

सर्दी में जोड़ों के दर्द को कहें अलविदा सिर्फ चंद मिनटों में

जोड़ों में दर्द के अनेक कारण हो सकते हैं जाड़े के मौसम में जैसे-जैसे तापमान में कमी होती है, किसी जोड़ विशेष में रक्त वाहिनियों के संकुचित होने से उस हिस्से में रक्त का तापमान कम हो जाता है जिससे जोड़ में अकड़ाहट बढ़ती है तथा दर्द होने लगता है।

जबकि कई बार रक्त धमनियों की दीवार के तनाव में कमी आती है, जिस कारण धमनियां फैल जाती हैं तथा दर्द और सूजन बढ़ जाते हैं। इसके अलावा सर्दियों में बढ़ी हुई हयूमिडिटी के कारण तंत्रिकाओं में संवेदना की क्षमता निश्चित रूप से बढ़ जाती है।

जिससे जोड़ों में दर्द अधिक महसूस होता है जबकि गर्मियों में इसके उल्टे सिद्धान्त के कारण दर्द कम महसूस होता है। अगर आपको भी ठंड में जोड़ों का दर्द सता रहा है तो नीचे लिखे आसन को रोज कुछ मिनट करें शीघ्र ही जोड़ों के दर्द हो जाएगा ठीक। 

गृद्धासन की विधि



- समतल स्थान पर कंबल आदि बिछाकर जमीन पर सीधा खड़े हो जाएं।



- फिर दाएं पैर को घुटनें से मोड़कर बाएं पैर में रस्सी की तरह लपेटकर खड़े हो जाएं तथा पूरे शरीर का भार एक पैर पर डालें।



- इस तरह दोनों हाथों को भी आपस में इस तरह से लपेटे की अंगुलियां गिद्ध की चोंच की तरह बन जाएं।



- हाथों को मुंह के सामने रखें।



- आसन की इस स्थिति में कुछ देर तक रहें और सामान्य स्थिति में आकर इस क्रिया को दूसरे पैरों से भी करें।



- इसमें घुटनों को हमेशा मुड़े हुए रखें। इस आसन का अभ्यास शुरु में कठिन होता है।



- इस आसन को शुरु में करते समय किसी दूसरे की सहायता ले सकते हैं। बाद में बिना किसी की सहायता से ही करें। इस आसन में शरीर का पूर्ण भार एक पैर पर ही टिका होता है। इसमें शरीर का संतुलन बनाना आवश्यक है।



आसन से रोगों में लाभ



इससे पिण्डलियों की मांसपेशियां विकसित व सख्त बनती है। इस से पैरों व हाथों की हड्डियां मजबूत होती है तथा रीढ़ की हड्डी भी मजबूत होती है। यह हाथ-पैरों को विकसित एवं पुष्ट करता है। यह गठिया तथा पुरानी वातरोग, साइटिका पेन को ठीक करता हैं।

ठंड में फिटनेस बनाए रखने के लिए अपनाएं ये आसान तरीका

यदि आप ठण्ड में देर से उठने के आदि हैं और ठण्ड के मारे टहलने से परहेज करते हैं, तो आप हो जाएँ सावधान ! आयुर्वेद के अनुसार  इस ऋतु में अग्नि का बल अपने चरम पर होता है, जिस कारण लोग अधिक भारी और चर्बी युक्त भोजन कर लेते हैं ,और क्रिसमस  की पार्टीयों के खान-पान का तो कहना ही क्या? पर वैज्ञानिकों के मानें तो इस ऋतु में भी रात के भोजन के बाद टहलना आपके लिए फायदेमंद होगा। हाल ही में हुए एक अध्ययन में युनिवर्सिटी आफ ग्लासगो के शोधकर्ताओं मानना है, कि यदि आप ठण्ड में अत्यधिक वसा से युक्त भोजन कर लेते हैं, तो इसका प्रभाव आपके वजन को बढ़ा देता है। 

डॉ जैन्सन गिल का कहना है,कि ऐसा अक्सर क्रिसमस के दौरान हो रही पार्टियों के कारण भी हो सकता है । यदि आप इस दौरान रात को नियमित रूप से भोजन लेने के बाद टहलते हैं, तो आपकी खून में जमा अतिरिक्त चर्बी की मात्रा नियंत्रित रहती है। इन विशेषज्ञों का मानना है, कि वसा हमारे शरीर के लिए एक आवश्यक तत्व  है ,लेकिन इसकी खून में आ रही अतिरिक्त मात्रा हमारे हृदय सहित रक्तचाप के नियंत्रण को बिगाड़ सकती है इन्हें कारणों  से आयुर्वेद के आचार्यों ने घी और तेल के नियंत्रित मात्रा में सेवन को आवश्यक  बताया है,बस ध्यान रहे की आपके शरीर में आ रही अतिरिक्त चर्बी को टहलने या नियमित व्यायाम के द्वारा जलाया जा सके।  

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

ये हैं बढ़े हुए प्रोस्टेट की समस्या को मिटाने वाले कुछ कुदरती नुस्खे

यदि आपकी उम्र पचास को पार कर गयी है ,तो आपको प्रोस्टेट की समस्या से दो-चार होना पड़ सकता है। चिकित्सा जगत में इसे बिनायन प्रोस्टेट हायपरप्लेसीया कहा जाता है। इसमें पेशाब की धीरे का रुक-रुक कर आना,रात में बार-बार पेशाब जाना और पेशाब को न रोक पाना जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। हम आपको एक ऐसा उपाय बताते हैं ,जिससे आपको इस समस्या से राहत मिल पायेगी।

अश्विनी मुद्रा : लंबी सांस खींचकर रोकें। ठुड्डी  को नीचे झुकाकर छाती से लगाएं। अपने गुदा द्वार को सिकोड़ें। जितनी देर कर सकें, करें। फि र सांस छोड़ते हुए नार्मल अवस्था में आएं। गर्दन सीधी कर लें।  इसका नियमित अभ्यास करें साथ ही निम्न योग औषधि को भी लें आपको निश्चित लाभ मिलेगा।

- काली तुलसी के जड़ का चूर्ण - 3 ग्राम , मक्का की जटा की भस्म - 3 ग्राम, प्रात: सायं गाय के दूध साथ 2 से 3  माह दें और लाभ देखें। 

- 3-4 लिटर पानी पीने की आदत डालें। लेकिन शाम को 6 बजे बाद जरुरत मुताबिक ही पानी पीएं ताकि रात को बार बार पेशाब के लिये न उठना पडे।

-  सोयाबीन में फायटोएस्टोजीन्स होते हैं जो शरीर मे टेस्टोस्टरोन का लेविल कम करते हैं। रोज 30 ग्राम सोयाबीन के बीज गलाकर खाना लाभदायक उपचार है।

-  विटामिन सी का प्रयोग रक्त नलियों के अच्छे स्वास्थ्य के लिये जरूरी है। 500 एम जी की 3 गोली प्रतिदिन लेना हितकर माना गया है। 

- अलसी को मिक्सर में चलाकर पावडर बनालें । यह पावडर 20 ग्राम की मात्रा में पानी में घोलकर दिन में दो बार पीयें। बहुत लभदायक उपचार है।

-  कद्दू में जिन्क पाया जाता है जो इस रोग में लाभदायक है। कद्दू के बीज की गिरी निकालकर तवे पर सेक लें। इसे मिक्सर में पीसकर पावडर बनालें। यह चूर्ण 20 से 30 ग्राम की मात्रा में नित्य पानी के साथ लेने से प्रोस्टेट सिकुडकर मूत्र खुलासा होने लगता है।

- चर्बीयुक्त पदार्थों का सेवन बंद कर दें। मांस खाने से भी परहेज करें।

- हर साल प्रोस्टेट की जांच कराते रहें ताकि रोग को प्रारंभिक हालत में ही पकडा जा सके।

- चाय और काफी में केफिन तत्व पाया जाता है। केफिन मूत्राशय की ग्रीवा को कठोर करता है और प्रोस्टेट रोगी की तकलीफ बढा देता है। इसलिये केफिन तत्व वाली चीजें इस्तेमाल न करें।

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