मंगलवार, 16 सितंबर 2014

चर्म रोगों के लिए मलहम

चर्म रोगों के लिए मलहम  
25 मी.ली नीम का तेल, 25 मी.ली करंज का तेल, 25 मी.ली सरसों का तेल, 25 मी.ली कुसुम का तेल, 25 ग्राम गंधक, 100 ग्राम चरोटा, 100 ग्राम अमलतास एवं 25 ग्राम जटामांसी को लेकर सबसे पहले चरोटा, जटामांसी और अमलतास का क्वाथ बना लें. इस क्वाथ में में सारे तेलों को मिलकर धीमी आँच पर पकाएं. जब सारा पानी सुखकर सर तेल बच जाए उसे तेल को आंच से उतारकर छानकर उसमे 25 ग्राम मोम मिलाकर आँच पर चढ़ा दे. जब मोम उस तेल में मिल जाये फिर उसमे गंधक मिलाकर आंच से उतार लें. अब आपका मलहम तैयार है. चर्मरोगों में हमेशा नीम युक्त साबुन से ही स्नान करें.


पारंपरिक सौंदर्यवर्धक नुस्खे
 जायफल को गाय के दूध में घिसकर उसका लेप चेहरे पर 1 घंटा लगाकर धोने से चेहरे की कांति बढ़ती है. धूप की कालिमा (सनबर्न) से बचने के लिए धूप में कम घूमे साथ ही चेहेरे पर संतरे के छिलकों को बारीक़ काटकर चेहरे पर लगाने से सनबर्न से बचे रह सकते है.

दूध का महत्व



प्रोटीन,विटामिन,कार्बोहाइड्रेट,खनिज,वसा,आयरन और इन्जाइम से भरपूर होता है।
बुद्धि के विकास के लिए लाभप्रद है।
केल्शियम और फास्फोरस दांतों के लिए लाभकारी हैं।
विटामिन से आँखों की रौशनी बड़ती है।
विटामिन बी नाडी मंडल के लिए लाभकारी है।
विटामिन सी शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता रात रात रात रात।
रात में सोने से पहले १ कप दूध का सेवन करने से नये रक्त का निर्माण होता है।
हल्के गर्म दूध का सेवन पाचन तन्त्र को ठीक रखता है। {प्रात: काल }
मधुमय रोगियों को वसा रहित दूध पिने की सलाह दी जाती है।
दूध में काली मिर्च और मिश्री मिलाकर पीने से सर्दी-जुकाम में आराम मिलता है।

मुहँ के छालो का घरेलु इलाज

10 ग्राम नीला थोथा और 10 ग्राम फिटकरी को अलग-अलग लेकर तवे पर भून लें. ध्यान रखे नीले थोथे को भूनते समय उसका धुँआ आखों में नहीं जाना चाहिए और नीले थोथे को पूरी तरह नहीं भूनकर आधा ही भूने. अब भूनी हुई फिटकरी और नीले थोथे को मिलकर चूर्ण कर ले. इसके 1 ग्राम चूर्ण को 1 चम्मच पानी में मिलाकर कर रुई के फाहे की मदद से मुहँ के छालों पर लगाकर 1-2 मिनिट तक रखें. ऐसा करते समय इस बात की सावधानी रखे के इसको लगाने पर मुहँ में बनाने वाली लार को थूक दे इसे अन्दर नहीं जाने दे. ऐसा करने पर भी यदि छाले ठीक न हो तो यह चुटकी भर भस्म सीधे छालों पर लगाए. इस उपचार को खाली पेट करे. बाद में मुहँ को पानी से अच्छी तरह साफ कर ले. अमरुद और चमेली के पत्तों को चबाने से मुहँ के छालों में लाभ मिलता है

बांझपन चिकित्सा से उपचार

  • स्त्री को गर्भधारण कराने के लिए उसकी योनि के स्नायु स्वस्थ हो इसके लिए स्त्री का सही आहार, उचित श्रम एवं तनाव रहित होना जरूरी है तभी स्त्री गर्भवती हो सकती है इसलिए स्त्री को इस पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
  • स्त्री को गर्भधारण करने के लिए यह भी आवश्यक है कि योनिस्राव क्षारीय होना चाहिए इसलिए स्त्री का भोजन क्षारप्रधान होना चाहिए। इसलिए उसे अधिक मात्रा में अपक्वाहार तथा भिगोई हुई मेवा खानी चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित स्त्रियों को अपने इस रोग का इलाज करने के लिए सबसे पहले अपने शरीर से विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालना चाहिए इसके लिए स्त्री को उपवास रखना चाहिए। इसके बाद उसे 1-2 दिन के बाद कुछ अंतराल पर उपवास करते रहना चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित स्त्रियों को दूध की बजाए दही का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • स्त्री को गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद एवं नींबू का रस मिलाकर पीना चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित स्त्रियों को ज्यादा नमक, मिर्च-मसाले, तले-भुने खाने वाले पदार्थ, चीनी, चाय, काफी, मैदा आदि चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित स्त्रियों को यदि कब्ज हो तो इसका इलाज तुरंत कराना चाहिए।
  • बांझपन को दूर करने के लिए स्त्रियों को विटामिन `सी´ तथा `ई´ की मात्रा वाली चीजें जैसे नींबू, संतरा, आंवला, अंकुरित, गेहूं आदि का भोजन में सेवन अधिक करना चाहिए।
  • स्त्रियों को सर्दियों में प्रतिदिन 5-6 कली लहसुन चबाकर दूध पीना चाहिए, इससे स्त्रियों का बांझपन जल्दी ही दूर हो जाता है।
  • जामुन के पत्तों का काढ़ा बनाकर फिर इसको शहद में मिलाकर प्रतिदिन पीने से स्त्रियों को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  • बड़ (बरगद) के पेड़ की जड़ों को छाया में सुखाकर कूट कर छानकर पाउडर बना लें। फिर स्त्रियां इसे माहवारी समाप्त होने के बाद तीन दिन लगातार रात को दूध के साथ लें। इस क्रिया को तब तक करते रहना चाहिए जब तक की स्त्री गर्भवती न हो जाए।
  • स्त्री के बांझपन के रोग को ठीक करने के लिए 6 ग्राम सौंफ का चूर्ण घी के साथ तीन महीने तक लेते रहने से स्त्री गर्भधारण करने योग्य हो जाती है।
  • स्त्री के बांझपन के रोग को ठीक करने के लिए उसके पेड़ू पर मिट्टी की गीली पट्टी करनी चाहिए तथा इसके बाद उसे कटिस्नान कराना चाहिए और कुछ दिनों तक उसे कटि लपेट देना चहिए। इसके बाद स्त्री को गर्म पानी का एनिमा देना चाहिए।
  • रूई के फाये को फिटकरी में लपेटकर तथा पानी में भिगोकर रात को जब स्त्री सो रही हो तब उसकी योनि में रखें। सुबह के समय में जब इस रूई को निकालेंगे तो इसके चारों ओर दूध की खुरचन की तरह पपड़ी सी जमा होगी। जब तक पपड़ी आनी बंद न हो तब तक इस इस क्रिया को प्रतिदिन दोहराते रहना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से स्त्री गर्भ धारण करने योग्य हो जाती है फिर इसके बाद स्त्री को पुरुष के साथ संभोग क्रिया करनी चाहिए।
  • स्त्रियों के बांझपन की समस्या को दूर करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार कई प्रकार के आसन भी हैं जिनको करने से उनकी बांझपन की समस्या कुछ ही दिनों में दूर हो सकती है।
  • बांझपन को दूर करने के आसन निम्न हैं- सर्वांगासन, मत्स्यासन, अर्ध मतेन्द्रासन, पश्चिमोत्तानासन, शलभासन आदि।
  • स्त्री में बांझपन का रोग उसके पति के कारण भी हो सकता है इसलिए स्त्रियों को चाहिए कि वह अपने पति का चेकअप कराके उनका इलाज भी कराएं और फिर अपना भी उपचार कराएं।
  • यदि स्त्री-पुरुष दोनों में से किसी के भी प्रजनन अंगों में कोई खराबी हो तो उसका तुरंत ही इलाज कराना चाहिए।

गर्दन में दर्द होने के कारण

गर्दन में दर्द होने के कारण-
  • अपने भोजन में तली-भुनी, ठण्डी-बासी या मसालेदार पदार्थों का अधिक सेवन करने के कारण भी गर्दन में दर्द का रोग हो सकता है।
  • गर्दन में दर्द गलत तरीके से बैठने या खड़े रहने से भी हो जाता है जैसे-खड़े रहना या कूबड़ निकालकर बैठना।
  • भोजन में खनिज लवण तथा विटामिनों की कमी रहने के कारण भी गर्दन में दर्द की समस्या हो सकती है।
  • कब्ज बनने के कारण भी गर्दन में दर्द हो सकता है।
  • पाचनशक्ति में गड़बड़ी हो जाने के कारण गर्दन में दर्द का रोग हो सकता है।
  • अधिक चिंता, क्रोध, ईर्ष्या, शोक या मानसिक तनाव की वजह से भी गर्दन में दर्द हो सकता है।
  • किसी दुर्घटना आदि में किसी प्रकार से गर्दन पर चोट लग जाने के कारण भी गर्दन में दर्द का रोग हो सकता है।
  • अधिक शारीरिक कार्य करने के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है।
  • मोटे गद्दे तथा नर्म गद्दे पर सोने के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है।
  • गर्दन का अधिक कार्यो में इस्तेमाल करने के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है।
  • अधिक देर तक झुककर कार्य करने से गर्दन में दर्द हो सकता है।
  • व्यायाम न करने के कारण भी गर्दन में दर्द हो सकता है।
  • अधिक दवाइयों का सेवन करने के कारण भी गर्दन में दर्द हो सकता है।
  • शारीरिक कार्य न करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
  • चिंता, क्रोध, मानसिक तनाव, ईर्ष्या तथा शोक आदि के कारण भी गर्दन में दर्द हो सकता है।
  • किसी दुर्घटना में गर्दन पर चोट लगने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
 उपचार-
  • गर्दन के दर्द को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार सबसे पहले रोगी के गलत खान-पान के तरीकों को दूर करना चाहिए और फिर रोगी का उपचार करना चाहिए।
  • इस रोग से पीड़ित रोगी को हमेशा पौष्टिक भोजन करना चाहिए। रोगी को अपने भोजन में विटामिन `डी` लोहा, फास्फोरस तथा कैल्शियम का बहुत अधिक प्रयोग करना चाहिए ताकि हडि्डयों का विकास सही तरीके से हो सके और हडि्डयों में कोई रोग पैदा न हो सके।
  • शरीर में विटामिन `डी` लोहा, फास्फोरस तथा कैल्शियम मात्रा को बनाये रखने के लिए व्यक्ति को अपने भोजन में गाजर, नीबू, आंवला, मेथी, टमाटर, मूली आदि सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए। फलों में रोगी को संतरा, सेब, अंगूर, पपीता, मौसमी तथा चीकू का सेवन अधिक करना चाहिए।
  • गर्दन में दर्द से पीड़ित व्यक्ति को चोकरयुक्त रोटी व अंकुरित खाना देने से बहुत जल्दी लाभ होता है।
  • गर्दन के दर्द को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के ही एक भाग जल चिकित्सा का सहारा लिया जा सकता है। इस उपचार के द्वारा रोगी को स्टीमबाथ (भापस्नान) कराया जाता है और उसकी गर्दन पर गरम-पट्टी का सेंक करते है तथा इसके बाद रोगी को रीढ़ स्नान कराया जाता है जिसके फलस्वरूप रोगी की गर्दन का दर्द जल्दी ही ठीक हो जाता है। इस प्रकार से उपचार करने से रोगी के शरीर में रक्त-संचालन (खून का प्रवाह) बढ़ जाता है और रोमकूपों द्वारा विजातीय पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिसके फलस्वरूप रोगी की गर्दन का दर्द तथा अकड़न होना दूर हो जाती है।
  • गर्दन के दर्द तथा अकड़न को दूर करने के लिए सूर्य किरणों द्वारा बनाए गए लाल व नारंगी जल का उपयोग करने से रोगी को बहुत अधिक फायदा होता है। सूर्य की किरणों में हडि्डयों को मजबूत करने के लिए विटामिन `डी` होता है। सूर्य की किरणों से शरीर में विटामिन `डी` को लेने के लिए रोगी को पेट के बल खुले स्थान पर जहां पर सूर्य की किरणें पड़ रही हो उस स्थान पर लेटना चाहिए। ताकि सूर्य की किरणें सीधी उसकी गर्दन व रीढ़ की हड्डी पर पड़े। इस क्रिया को करते समय सिर पर कोई कपड़ा रख लेना चाहिए ताकि सिर पर छाया रहें।
  • गर्दन के दर्द को ठीक करने के लिए रोगी की गर्दन पर सरसों या तिल के तेल की मालिश करनी चाहिए। मालिश करते समय यह ध्यान देना चाहिए कि मालिश हमेशा हल्के हाथों से करनी चाहिए। मालिश यदि सूर्य की रोशनी के सामने करें तो रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  • योगासन के द्वारा भी गर्दन के दर्द तथा अकड़न को ठीक किया जा सकता है। योगासन द्वारा गर्दन के दर्द तथा अकड़न को ठीक करने के लिए सबसे पहले गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं और फिर धीरे-धीरे गर्दन को आगे की ओर झुकाएं। फिर ठोड़ी को कंठ कूप से लगाएं। इसके कुछ देर बाद गर्दन को दाएं से बाएं तथा फिर बाएं से दाएं हल्के झटके के साथ घुमाएं।
  • गर्दन के दर्द तथा अकड़न को दूर करने के लिए भुजंगासन, धनुरासन या फिर सर्पासन करना लाभकारी रहता है।
  • गर्दन के दर्द तथा अकड़न को ठीक करने के लिए प्राणायाम ध्यान का अभ्यास करें।
  • गर्दन के दर्द तथा अकड़न की समस्या को दूर करने के लिए रोजाना सुबह के समय में खुली ताजी हवा में घूमें।
  • गर्दन में दर्द होने पर इसका उपचार करने के लिए सबसे पहले गर्दन में दर्द होने के कारणों को दूर करना चाहिए।
  • योगाभ्यास तथा विशेष व्यायाम से गर्दन के दर्द से पूरी तरह छुटकारा मिल सकता है।
  • गर्दन के दर्द से पीड़ित रोगी को अपने कंधों को ऊपर से नीचे की ओर करना।
  • कंधों को सामने तथा पीछे की ओर गतिशील करना चाहिए इससे गर्दन का दर्द ठीक हो जाता है।
  • कंधों को घड़ी की दिशा में सीधी तथा उल्टी दिशा में घुमाना चाहिए जिससे गर्दन कां दर्द ठीक हो जाता है।
  • गर्दन से पीड़ित रोगी को अपनी उंगुलियों को गर्दन के पीछे आपस में फंसाना चाहिए और फिर फंसी उंगुलियों की तरफ दबाव देते हुए अपने कोहनी को आगे से पीछे की ओर गतिशील करना चाहिए जिसके फलस्वरूप गर्दन का दर्द जल्दी ही ठीक हो जाता है।
  • गर्दन से पीड़ित रोगी को अपने भोजन में विटामिन `डी´, लोहा, कैल्शियम, फास्फोरस की अधिकता वाले खाद्य पदार्थों का अधिक उपयोग करना चाहिए।
  • संतरा, सेब, मौसमी, अंगूर तथा पपीता व चीकू का उपयोग भोजन में अधिक करना चाहिए।
गर्दन में दर्द तथा अकड़न से बचने के लिए कुछ सावधानियां-
  • सोने के लिए व्यक्ति को सख्त तख्त का ही प्रयोग करना चाहिए।
  • सोते समय गर्दन के नीचे तकिए का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • किसी भी कार्य को करते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को तनी हुई और बिल्कुल सीधी रखनी चाहिए।
  • गर्दन के दर्द तथा अकड़न का उपचार करते समय अधिक सोच-विचार नहीं करना चाहिए।
  • गर्दन में दर्द तथा अकड़न की समस्या से बचने के लिए वह कार्य नहीं करना चाहिए जिससे गर्दन या आंखों पर अधिक बोझ या तनाव पड़े।
  • गर्दन में दर्द तथा अकड़न की समस्या से बचने के लिए प्रतिदिन 6 से 8 घण्टे की तनाव रहित नींद लेना बहुत ही जरूरी है।
  • गर्दन के दर्द तथा अकड़न से बचने के लिए यह ध्यान देना चाहिए कि यदि खड़े है तो तनकर खड़े हो तो अपनी पीठ सीधी रखनी चाहिए।
  • आगे की ओर झुककर किसी भी कार्य को नहीं करना चाहिए।
जानकारी-
           इस प्रकार से कुछ नियमों का अपने जीवन में प्रयोग करने से गर्दन में कभी भी दर्द तथा अकड़न नहीं होता है। यदि गर्दन में दर्द तथा अकड़न हो भी गई है तो संतुलित भोजन का सेवन करके तथा प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करके जल्दी ही इस रोग को ठीक किया जा सकता है।

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

पारंपरिक चिकित्सा 4


हड्डी के टूटने / हड्डी का टेढ़ापन और सड़े-गले घावों का उपचार


यह संदेश निर्मल कुमार अवस्थीजी ने जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़ के वैध मनहरलाल लाठिया का साक्षात्कार लेते समय का है.
मनहरलाल लाठिया का कहना है की वह टूटी हड्डी, हड्डी का टेढ़ापन और सड़े-गले घावों को ठीक करते है…इनका कहना है के वह एक लेप बनाते है और उसे घावों पर लगते है.. जिससे सडा-गला मांस पानी बनकर बह जाता है और नया मांस आने लगता है….यह अभी तक ऐसे लगभग 200 मरीजों को ठीक कर चुके है.. वह मरीजों को हठजोड़ खिलाते है और शंखपुष्पी का चूर्ण देते है….इनके अनुसार इन्होने एक चमत्कारी चूर्ण बनाया है जिसमे काला जीरा, अजमोठ और मैथी होती है…इस चूर्ण को देने से घावों का सड़ना-गलना रुक  जाता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है…अगर किसी का ज्यादा खून बहने लगे तो यह उसका भी इलाज करते है…साथ ही यह अनियमित माहवारी भी का भी इलाज करते है….यह इलाज के लिए चूर्ण और अपनी बनाई गोली भी देते है…

   
विभिन्न प्रकार के विष का उपचार
October 3, 2013

यह संदेश डॉ. एच.डी. गाँधी का धर्मार्थ दवाखाना, संजय नगर (रायपुर) छत्तीसगढ़ से है:

इस संदेश में डॉ. एच.डी. गाँधी का कहना है की अगर बिच्छु काटे स्थान पर अकौए (Calotropis gigantea) का दूध लगाने से लाभ मिलता है…काटे हुए स्थान पर पोटेशियम पेर्मेगनेट (Potassium Permanganate) या कार्बोलिक एसिड (Carbolic Acid) लगाने से लाभ होता है….तीसरा इमली का बीज पत्थर पर पानी से साथ रगड़कर दंश वाले स्थान पर लगाने से वह चिपककर सारा विष खीच लेता है….चौथा इन्द्रायण के फल का 5 ग्राम गुदा खाने से लाभ होता है….सांप काटने पर कालीमिर्च और प्याज़ पीसकर दंश वाले स्थान पर लगाये इससे प्याज़ का रंग हरा हो जायेगा…यह प्रक्रिया दोहराते रहे जब तक प्याज़ का रंग बदलना जारी रहे….सांप काटे स्थान पर अकौए (Calotropis gigantea) का दूध टपकाते रहे जब तक दूध कर रंग सफ़ेद न होने लगे….कनखजूरा काटने पर अकौए का दूध लगाने पर लाभ होगा.. यदि कनखजूरा चिपक गया है तो उस पर सरसों का तेल लगाये….मधुमक्खी के काटने पर तुलसी की पत्तियों को नमक में पीसकर लगाने से लाभ होगा….घर में लहसुन का चूर्ण पोटली में बांध कर रखने से चींटी-तिलचट्टे घर में नहीं आते है….भांग के नशे में दही पिलाने से लाभ होता है… तम्बाकू का नशा प्याज़ का रस 10 मी.ली. पिलाने से नशा उतर जाता है….मकड़ी का विष सौंठ और जीरा पानी में पीसकर लगाने से उतर जाता है…सूरजमुखी के 15 ग्राम बीज पीसकर खाने से सभी प्रकार के विष उतर जाते है….डॉ. एच.डी. गाँधी का संपर्क है 9424631467 है…


दूध बढ़ाने के लिए
October 3, 2013

यह संदेश डॉ. एच.डी. गाँधी का धर्मार्थ दवाखाना, संजय नगर (रायपुर) छत्तीसगढ़ से है:

इस संदेश में डॉ. एच.डी. गाँधी का कहना है की जिन स्तनपान कराने वाली माताओं का दूध कम आता है वह सतावर का 10 ग्राम चूर्ण दूध के साथ सेवन करने से दूध में वृद्धी होती है…दूसरा विदारीकन्द का 5 ग्राम चूर्ण दूध के साथ सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है….कच्चे पपीते के सेवन से भी दूध में वृद्धी होती है…रक्त प्रदर होने पर 50 ग्राम चावल को पानी से धो कर उसे दुबारा 100 ग्राम पानी में 4 घंटों के लिए भिगोने के बाद उसे मसलकर उस पानी के सेवन से लाभ होता है….दूसरा केले की नर्म जड़ के 10 ग्राम रस का प्रतिदिन सेवन करने से लाभ होता है….तीसरा गुलर की 200 ग्राम छाल 250 ग्राम पानी में उबालकर 50 ग्राम शेष रहने पर उसमे 25 ग्राम मिश्री और 2 ग्राम सफ़ेद जीरे कर चूर्ण मिलकर सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है…चौथा प्रसव में पुदीने का रस पिलाने से प्रसव आसानी से हो जाता है…. डॉ. एच.डी. गाँधी का संपर्क है 9424631467


गुलर के गुण
October 3, 2013

यह सन्देश वैध श्री निर्मल अवस्थी का , वार्ड क्रमांक 4, कस्तूरबा नगर बिलासपुर छत्तीसगढ़ से है:

इस संदेश में निर्मलजी गुलर (Cluster Tree- Ficus racemosa) के गुणों के बारे में बता रहे है…इनका कहना है की ताजा और सूखे फल शहद, शक्कर और मिश्री के साथ खाने से प्रदर रोग मिटता है…गुलर के पके हुए फल सैंधा नमक के साथ खाने से असाध्य प्रमेह रोग भी मिटता है….गुलर के पत्तियों का रस पीने से हृदय, यकृत और वात विकार भी दूर होता है….गुलर के पत्तियों का 6 ग्राम रस प्रतिदिन पीने से रक्त प्रमेह भी मिटता है….गुलर के कच्चे फलों का समभाग शक्कर मिलकर चूर्ण बना कर रख ले इस चूर्ण को प्रतिदिन 5 ग्राम दूध के साथ लेने से शक्ति बढती है याद रखे दूध यदि गाय (Cow Milk) का हो तो ज्यादा लाभदायक है….प्रतिदिन गुलर फल खाने से मधुमेह (Diabetes) मिटता है…गुलर के कच्चे फल का साग खाने से भी मधुमेह मिटता है….सड़े-गले घावों पर गुलर की पत्तियां पीस कार लगाने से काफी आराम मिलता है….गुलर का पानी मिला दूध औटाकर पीने से पुराना बुखार (Old Fever) उतरता है…निर्मलजी का संपर्क है: 09685441912


वातनाशक तेल
October 3, 2013

यह संदेश वैध श्री निर्मल अवस्थी का , वार्ड क्रमांक 4, कस्तूरबा नगर बिलासपुर छत्तीसगढ़ से है:

निर्मलजी इस संदेश में वातनाशक तेल के बारे में बता रहे है जो घुटने, कमर और शरीर दर्द में लाभदायक है जिसे हम घर में ही बना सकते है….इसके लिए सरसों का तेल (Mustered Oil) 500 ग्राम, केवड़े के बीज 25 ग्राम, धतूरे के बीज 25 ग्राम, तम्बाकू जर्दा (Tobacco Leaves)25 ग्राम और लहसुन की कलियाँ (Garlic) 25 ग्राम, इस सभी सामग्रियों को साफ़ करके सरसों के तेल में डाल कर धीमी आंच पर पकाएं जब सारे घटक (सामग्री) जल जाएँ और तेल 3/4 बच जाये तो इस तेल तो ठंडा कर के छान कर रख ले….यह तेल दर्द वाले स्थान पर लगा कर मालिश करे  और अकौए (Calotropis gigantea) के पत्ते तो थोडा गरम कर उस दर्दवाले स्थान की सिकाई करे….घर पर बने इस तेल के उपयोग से आराम होगा…..जिन भाइयों को गठियावत हो तो वह इस के साथ अश्वगंधा, विधारा और मीठी सुरंजन (Colchicum Luteum) 100-100 ग्राम और सौंठ 25 पीस कर चूर्ण बना ले और इस चूर्ण को सुबह-शाम 5 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ लेने से लाभ होगा….निर्मलजी का संपर्क है: 09685441912


धातु रोग का घरेलु उपचार
October 2, 2013

यह संदेश अनंतराम श्रीमाली का सागर से है:

इनका कहना है की यह समस्त रोगों का उपचार जड़ी-बूटियों से करते है इनका कहना है की धातु रोग का उपचार करने के लिए तुलसी के बीज 2 ग्राम, शाम को एक मुट्ठी धनिया (Coriander Seeds)  200 ग्राम पानी में फुलाएं और उस पानी से धनिया को निकाल कर उसी पानी में तुलसी के (Basil Seeds) बीज पीस कर लेने से धातु रोग ठीक होने लगते है…..अनंतराम श्रीमालीजी का संपर्क है: 9179607522

पारंपरिक चिकित्सा 3


सहजन / मुनगा से पोषण / Drumstick is helpful to fight malnutrition
October 26, 2013

यह मोहनजी यादव का है जो बैतूल मध्यप्रदेश में नीरज यादव से बात कर रहे है, नीरजजी का कहना है की मध्यप्रदेश में लगभग 60 बच्चे कुपोषण का शिकार है और हर साल कई बच्चो की कुपोषण से मृत्यु हो जाती है…उनका कहना है की “शेवगा” यानि (मूनगा / सहजन) जिसे अंग्रेजी में ड्रमस्टिक के नाम से जाना जाता है की पत्तियों में कुपोषण से बचाने के गुण होते है और यह सहजता से उपलब्ध है…उनका यह भी कहना है की “शेवगा की पत्तियाँ खिलाओ, कुपोषित बच्चों को मरने से बचाओ“…अगर इसकी पत्तियों का उपयोग किया जाये तो बच्चो को कुपोषण से बचाया जा सकता है… इसकी पत्तियों में विटामिन “ए” गाजर से 4 गुना अधिक, विटामिन “सी” संतरे से 7 गुना अधिक, प्रोटीन दही से दोगुना, कैल्शियम दूध से 4 गुना अधिक, पोटेशियम केले से 3 गुना अधिक इसके आलावा इसमें मेगनिशियम, आयरन और जिंक भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है…जो शरीर को पोषक तत्वों की पूर्ति करते है…कुछ विशेषज्ञ मानते है की इसका पाउडर मल्टी-विटामिन टेबलेट के बराबर काम करता है…
Mohan Ji is talking to Neeraj Yadav who tells us that we can beat malnutrition by using leaf of Drum stick. He says more than 60% children are malnourished in places like Madhya Pradesh and leaf of Drum stick contains 4 times from Vitamin A than carrot, twice protein than curd, 4 times more calcium than milk and 7 times more Vitamin C than orange. People can grow drum stick in their house and save their children from malnutrition. For more Mohan Ji is at 09479598133
   
मैथी के गुण / Medicinal Properties of Fenugreek
October 12, 2013

यह संदेश श्री निर्मल कुमार अवस्थीजी का वार्ड क्रमांक 4 कस्तूरबा नगर, छत्तीसगढ़ से है…यह आज मैथी के गुणों के बारे में बता रहें है… इनका कहना है की हमारे आहार में हरी साग-सब्जियों का काफी महत्व है आधुनिक विज्ञान के मतानुसार हरी सब्जियों में क्लोरोफिल नामक तत्व होता है जो जीवाणुओं का नाशक है और यह दाँतों और मसूड़ों में सडन पैदा करनेवाले कीटाणुओं का यह नाश करता है….हरी सब्जियों में प्रोटीन और लौहतत्व भी भरपूर मात्र में होता है जो शरीर में रक्त को बढ़ता है…यह शरीर के क्षार को घटा कर उसका नियमन करता है…हरी सब्जियों में मैथी का प्रयोग भारत के सभी भागों में बहुतायत से किया जाता है…कई लोग इसे सुखाकर कर भी उपयोग में लाते है… मैथी के दानो (बीजों) का प्रयोग प्रायः हर घर में बघार (छौंक) लगाने में होता है…वैसे तो मैथी वर्षभर उगाई जाती है पर विशेषकर मार्गशीर्ष से फागुन माह में ज्यादा उगाई जाती है…कोमल पत्ते वाली मैथी कम कडवी होती है… मैथी की भाजी तीखी, कडवी, रुक्ष, गरम, पित्तवर्धक और भूखवर्धक पचने में हलकी और हृदय को बल प्रदान करने वाली होती है… मैथी के बीजों की अपेक्षा मैथी की भाजी कुछ ठंडी, पचने में आसान, प्रसूता, वायु दोष वालो के लिए उपयोगी है…यह बुखार, अरुचि, उलटी, खांसी,  वातरोग, बवासीर, कृमि तथा क्षय का नाश करने वाली होती है…मैथी पौष्टिक और रक्त को शुद्ध करने वाली है…यह वायुगोला, संधिवात, मधुमेह, प्रमेह और निम्न रक्तचाप के घटाने वाली है… मैथी माता का दूध बढाती है…काम दोष को मिटाती और शरीर को पुष्ट करती है…कब्जियत और बवासीर में मैथी से सब्जी रोज खाने से लाभ मिलता है… जिसे बहुमूत्रता की शिकायत हो उसे 100 मी.ली मैथी के रस में डेढ़ ग्राम कत्था और तीन ग्राम मिश्री मिलकर प्रतिदिन सेवन करना चाहिये… इससे लाभ होगा.. निर्मल अवस्थी का संपर्क है: 9685441912

This is a message from Nirmal Awasthi from ward no. 4, Kasturba Nagar, Chhatisgarh.

In this message Nirmalji is telling us about the medicinal properties of Fenugreek (Trigonella foenum-graecum). He says – As per modern science green vegetables contain an element named “Chlorophyll”  which helps destroy bacterial & fungal infections. Green vegetables are also a very good source of Iron & minerals. Fenugreekin  is an perennial vegetable  and is commonly used in every home throughout India. Fenugreek is used both as dried as well as fresh leaves. The seeds & dried leaves of this vegetable can be used as a condiment in many foods before final serving to give flavor & aroma. This vegetable has a number of health benefits and is used in traditional medicine.

Medicinal Usages:

Fenugreek is very helpful to increase & stimulate lactation for nursing mothers.

It is beneficial for people with diabetes.

It is also helps to relieve cough & pain

Daily use of  100 gram Fenugreek juice with Catechu & sugar can cure frequent urination problem.

It is also helpful for piles patients.

Nirmal Awasthi jis contact number is: 9685441912


सर्दी और खांसी का उपचार / Treatment of Cough & Cold
October 12, 2013

यह संदेश रामफल पटेलजी का प्रज्ञा संजीवनी नया बस स्टैंड पाली जिला कोरबा, छत्तीसगढ़ से है… इस सन्देश में रामफलजी सर्दी और खांसी के उपचार के बारे में बता रहें है…इनका कहना है की सौंठ 50 ग्राम, पीपर 50 ग्राम, कालीमिर्च 50 ग्राम, अडूसा 25 ग्राम, गिलोय 25 ग्राम और मुलेठी 25 ग्राम इन सबको पीसकर कर चूर्ण बना लें…और सुबह-शाम 2-3 ग्राम शहद के साथ ले…आवश्कता पड़ने पर 3 बार भी लिया जा सकता है…इसको लेने से सर्दी-खांसी में आराम मिलेगा….रामफल पटेलजी का संपर्क है: 8815113134

This message is by Shri. Ramfal Patel from Pragya Sanjeevani, New Bus Stand, Korba distt., Chhatisgarh. In this message he is telling us about a traditional remedy to treat cough & cold. He suggests – Take 50gms Dry Ginger, 50gms  Piper (longum), 50gms plack pepper, 25gms Justicia (adhatoda), 25gms Tinospora cordifolia and 25gms Glycyrrhiza glabra and grind them until a powder is formed. Take 2-3 gms of this powder with Honey. This medicine is very helpful to alleviate cough.

Ramfal Patel ji’s contact number is: 8815113134

अपामार्ग / लट्ठजीरा के औषधीय गुण / Medicinal Properties of Achyranthes aspera
October 10, 2013

यह संदेश लोमेश कुमार बच का लिमरू वन औषधालय, जिला कोरबा, छतीसगढ़ से है…इस संदेश में वह अपामार्ग जिसे कई स्थानों पर लट्ठजीरा / चिरचिटा के नाम से भी जाना जाता है के औषधि गुणों के बारे में बता रहे है… इनका कहना है की यह प्रायः सभी स्थानों पर पाया जाता है…यह औषधि अपने दिव्य प्रभावों से शरीर की दूषित धातुओं को शुद्ध करके हमें निरोगी बनाती है…रोग निदान के लिए इसकी पत्तियां, बीज जड़ सभी काम में लायी जाती है इस प्रकार यह सम्पूर्ण पौधा अपने आप में औषधि गुणों को समेटे हुए है… इसकी औषधि देने की मात्रा है पत्र स्वरस 3 ग्राम दिया जाता है, पत्र चूर्ण 3-6 ग्राम की मात्रा में दिया जाता है, मूल चूर्ण को 2-6 ग्राम की मात्रा में और बीज को 3-5 ग्राम की मात्रा में दिया जाता है…. इसके फूलों की मंजरी को तोड़ कर दातों पर मलने से  दांत मजबूत और निरोगी होते है… रक्तार्श जिसे खुनी बवासीर भी कहते है के लिए अपामार्ग के बीजों को पीसकर चावल के धोवन के साथ लेने पर रक्त आना बंद हो जाता है… बधिरता में इसके क्षार को तेल में पकाकर वह तेल कान में डालते रहने पर बधिरता समाप्त हो जाती है… बिच्छु के डंक मारने पर इसकी पत्तियों का रस पिलाने और इसकी जड़ को पीसकर उसका लेप दंश वाले स्थान पर लगाने से आराम मिलता है… भस्मक रोग जिसमे खूब खाने के बाद भी भूख नही मिटती और खाने के इच्छा होती ही रहती है उसके निदान के लिए इसके बीजों को खीर में मिलकर देने से लाभ मिलता है… सेहुआ रोग जिसमे त्वचा में सफ़ेद चकत्ते पड़ जाते है उसके उपचार के लिए इसका पंचांग बनाकर उसके क्षार बनाकर उसे केले के पत्तों का क्षार और हल्दी मिलाकर सेहुआ पर लगाने से अच्छा लाभ होता है…लोमेश्जी का संपर्क है: 9753705914

This is a message of vaidya Lomesh Kumar Buch from Limru forest hospital in Korba, Chhatisgarh. In this message Lomesh ji describes the medicinal use of the wild herb known as “Apamarga” in Hindi (Achyranthes aspera). It is a perennial herb commonly found throughout India & the Indian subcontinent. Lomesh ji says this herb has divine healing powers and it is very useful in expelling toxic contamination from our body. The plant’s leaves, stem, flowers, seeds & root are all equally useful for healing.

Prescribed & recommended quantitative dose of this herb with respect to different parts of the plant:

1. Leaves extract 3 grams.

2. Dry leaves powder 3-6 grams.

3. Dry root powder 2-6 grams.

4. Seeds 3-5 grams.
Uses
Rubbing the spica of this plant on the teeth is very helpful to keep them healthy & strong.
The powder of the plant’s seeds along with water used to wash rice is given to cure piles.
In the case of scorpion bites, the patient gets relief by drinking the extract of the plant’s leaves & by applying the crushed roots of the plant on the bitten area to alleviate venom, as it has anti venom properties.
The seeds of this plant have the property of reducing appetite. The plant’s seeds with condensed milk is used for this purpose.
Apamarga also helps cure a lot of skin diseases such as the disease known as “Sehua” otherwise known as “Tinea versicolor” or “Pityriasis versicolor” in medical terminology. In this disease lighter or darker patches on skin appears. Apamarga Alkali is very useful for removing these skin patches.

Procedure to prepare “Apamarga” Alkali:

Burn leaves, seeds, stem together in deep pan until ash is formed. Then pour some water and mixed well and removing plant residues filter it with cotton cloth and boil again until water evaporates and after complete evaporation the remaining greasy substance at the bottom is “Apamarga Alkali”

   
एक्जिमा एवं आधासीसी दर्द का उपचार
October 9, 2013

यह संदेश श्री. निर्मल कुमार अवस्थीजी का वार्ड क्रमांक 4, कस्तूरबा नगर, छत्तीसगढ़ से है..आप वह एक्जिमा के उपचार के बारे में बता रहें है… उनका कहना है यह दो अचूक नुस्खे है जो एक्जिमा रोगियों के लिए अत्यंत लाभदायक है…

पहला नुस्खा है: जमीन में एक फीट का गड्ढा खोदकर एक चूल्हा बना ले.. उसमे ऊंट की सुखी लेंडी भरकर आग लगा दें…फिर पीतल की एक थाली में पानी भरकर उसे उसी चूल्हे पर  चढ़ा दें..धीरे-धीरे पीतल की थाली के निचले पेंदे में धुंए का काजल इकठ्ठा हो जायेगा…आग के बुझने पर पीतल की उस थाली से काजल को  निकालकर किसी डिबिया में रख ले…इसी काजल को नित्य एक्जिमा पर लगाने से पुराने से पुराना एक्जिमा ठीक हो जाता है…

दूसरा नुस्खा है: करेले के पत्तों का रस निकालकर गरम करें..उसी अनुपात में  तिल का तेल भी गरम करें…फिर दोनों को मिलाकर गरम करें… करेले के रस की मात्रा सुखकर कम हो जाने पर उसे एक शीशी में भरकर रख लें..इसे एक्जिमा पर लगाये अवश्य लाभ होगा….

आधासीसी के दर्द का उपचार: आधासीसी का दर्द काफी पीड़ादायक होता है…इसे ठीक करने के लिए सतावर की ताज़ी जड़ को कूटकर उसका अर्क निकल लें… और  उसी मात्रा में तिल का तेल मिलाकर गर्म करें और जब तेल से सतावर का अर्क सूखकर सिर्फ तेल रह जाये तो उसे छानकर किसी बोतल में भरकर रख लें… इसी तेल को जिस भाग में दर्द हो रहा हो वहां लगायें और सूंघे अवश्य लाभ होगा…यह स्वनुभूत योग है…


पीलिया रोग में आहार
October 9, 2013

यह संदेश सरोजनी गोयल का बाल्को, जिला कोरबा, छत्तीसगढ़ से है..इस संदेश में वह पीलिया रोग में लिए जा सकने वाले आहार के बारे में बता रहीं है… उनका कहना है की बदलते मौसम में कई रोगों के साथ पीलिया भी बढ़ रहा है… इससे बचने के लिए मकोय की पत्तियों को पानी में उबालकर उसे पिये तो लाभ होता है… मकोय पीलिया के लिए उत्तम औषधि है इसका सेवन किसी भी रूप में किया जाये लाभदायक होता है… यदि पीलिया की लक्षण दिखाई देने लगे तो पानी पीने की मात्र बढ़ा दे इससे शरीर के हानिकारक तत्व उसर्जित हो जाते है… कच्चे पपीते का ज्यादा उपयोग करना रोगी के लिए अच्छा होता है…एक धारणा है की पीलिया के रोगी को मीठा नहीं खाना चाहिये… पर वास्तविकता है की रोगी यदि गाय के दूध से बना पनीर व छेने से बनी मिठाई खाए तो फ़ायदा होता है… इसके बारे में ज्यादा जानकारी अपने चिकित्सक से ले..

परंपरागत उपचार: पीलिया के रोगी को मुली के रस का सेवन करना खासा लाभदायक होता है..यह रक्त और यकृत से अतिरिक्त रक्तिम-पित्तवर्णकता (Bilirubin) को निकलता है..पीलिया के रोगी को धनिया, टमाटर, प्याज यह सब्जियां देना चाहिये…. सरोजनी गोयल का संपर्क है: 9165058483


रसपान से रोग उपचार
October 9, 2013

यह संदेश लोमेश कुमार बच का लिमरू वन औषधालय, जिला कोरबा, छतीसगढ़ से है…इस संदेश में वह विभिन्न रोगों का फलों-सब्जियों के रस से उपचार के बारे में बता रहे है… कौन से रोगों में कैसा रसोपचार किया जाये निम्नलिखित है:

गठियावात: अनन्नास, नीबू, खीरा, गाजर, पालक, चुकंदर का रस उपयोगी है.

मधुमेह: गाजर, संतरा, पालक, मुसम्बी, अन्नानास, नीबू, का रस उपयोगी है.

उच्च रक्तचाप: संतरा, अंगूर, गाजर चुकंदर, खीरा का रस उपयोगी है.

सर्दी-जुकाम: नीबू, संतरा, अनन्नास, गाजर, प्याज, पालक का रस उपयोगी है.

आँखों के लिए: टमाटर, गाजर, पालक, खुबानी का रस उपयोगी है.

मोटापे के लिए: नीबू, संतरा, अनन्नास, टमाटर, पपीता, चुकंदर, गाजर, पालक, पत्तागोभी का रस उपयोगी है.

अल्सर के लिए: गाजर, पत्तागोभी, अंगूर, खुबानी का रस उपयोगी है.

टांसिल के लिए: नीबू, संतरा, अनन्नास, गाजर, पालक, मूली, खुबानी का रस उपयोगी है.

सिरदर्द: अंगूर, नीबू, गाजर, पालक का रस उपयोगी है.

अनिद्रा: सेव, गाजर, अंगूर, नीबू कर रस उपयोगी है.

रक्ताल्पता: गाजर, पालक, काले अंगूर, चुकंदर, खुबानी का रस उपयोगी है.

कब्ज: अंगूर, गाजर, चुकंदर, पपीता का रस उपयोगी है.

बुखार: संतरा, नीबू, मुसम्बी, गाजर, अनन्नास, प्याज, पालक, खुबानी का रस उपयोगी है.

पीलिया: गन्ना, नीबू, गाजर, अंगूर, चुकंदर, खीर, मुली, पालक, नाशपाती का रस उपयोगी है.

लोमेश कुमार बच का संपर्क है: 9753705914


अदरक के गुण
October 9, 2013

यह संदेश सरोजनी गोयल का बाल्को, जिला कोरबा, छत्तीसगढ़ से है…इस संदेश में सरोजनीजी अदरक के गुणों के बारे में बता रहीं है…उनका कहना है की अदरक सामान्यतः सभी घरों में आसानी से उपलब्ध होता है…इसे अक्सर चाय में डालकर पिया जाता है..और यह कई रोगों की अचूक दवा भी है…गठियावात के रोगी इसे गाय के घी में भुनकर खाए और तेल में तलकर उससे जोड़ो की मालिश करें तो उन्हें आराम मिलेगा…लकवा होने की दशा में रोगी को अदरक शहद में मिलकर खिलाये लाभ होगा..अगर पेट में तकलीफ या उल्टियाँ हो रही हो तो 5 ग्राम अदरक के रस में 5 ग्राम पुदीने का रस 2 ग्राम सैंधा नमक मिलकर खिलाये लाभ होगा…अगर खांसी हो रही हो तो अदरक के रस में उतना ही निम्बू का रस मिलकर दे खांसी में आराम होगा…नजला और जुकाम होने पर अदरक के छोटे-छोटे टुकडे काट ले और उसी के वजन के बराबर देशी घी में भुन ले..और उसमे सौंठ, जीरा, कालीमिर्च, नागकेसर, इलाइची, धनिया और तेजपत्ता मिलाकर काढ़ा बना ले और इसका प्रयोग करें…अगर उल्टियाँ हो रही हो तो अदरक का रस प्याज के रस में मिलकर पियें आराम होगा…सरोजनी गोयल का संपर्क है: 9165058483


वायुदोष (गैस) एवं पथरी का उपचार
October 8, 2013

यह संदेश श्रीमती आशीष रात्रे का बाल्को नगर जिला कोरबा, छत्तीसगढ़ से है उनका कहना है की अगर किसी को पेट में गैस (वायु) के समस्या हो तो वह एक लीटर पानी में एक चम्मच अजवाइन डालकर अच्छी तरह पका लें….और उसे ठंडा कर उसी पानी का पीने में उपयोग करें…जब भी कभी पानी पीना हो तो इसी तरह पानी का प्रयोग करें….इसी प्रकार रात को सोते समय चुटकी बार अजवाइन खाकर पानी पी लें…ऐसा करने से पेट की गैस समाप्त हो जाती है… दूसरा प्रयोग है पत्थरचटा ढाई पत्तों को चबाकर कर खाने से अपच दूर हो जाती है…पत्थरचटा का एक प्रयोग पथरी के रोगी भी कर सकते है… इसने ढाई पत्तें 3-5 दिनों तक नियमित चबाकर खाने से पथरी चाहे वह गुर्दे में हो या अमाशय में, वह भी गलकर निकल जाती है…आशीष रात्रे का संपर्क है: 9981440565

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शहद की उपयोगिता
October 8, 2013

यह संदेश श्री निर्मल अवस्थी का कस्तूरबा नगर, वार्ड क्रमांक 4, बिलासपुर से है…वह आज शहद के बारे में जानकारी दे रहें है…उनका कहना है की शहद आयुर्वेदिक चिकित्सा का महत्वपूर्ण अवयव है इसके बिना आयुर्वेदिक उपचार अधुरा माना गया है…मधुमक्खियाँ विभिन्न प्रकार के फूलों से यह मधुरस एकत्रित करती है…शहद में वह सभी पोषक तत्व पाए जाते है हो शरीर के विकास और पाचन क्रिया को सुचारू रखने के लिए आवश्यक होते है….यह रोगाणुनाशक और उत्तम भोज्य पदार्थ है…आयुर्वेद में माँ के दूध के बाद शहद को ही बच्चे के लिए सर्वाधिक पोषक बताया गया है.. शीतकाल में सोते समय ठन्डे दूध के शहद लेने से यह शरीर को मोटा और सुडौल बनाता है…इसके विपरीत सुबह शौच के पहले एक चम्मच शहद पानी के साथ लेने से यह मोटापा कम करता है…इसके अलावा शहद को हलके गर्म दूध, पानी, दही, दलिया, नीबू के रस, खीर, सलाद में भी अलग-अलग समय प्रयोग किया जाता है…. शहद को पके आम के रस साथ खाने से पीलिया दूर होता है…गोखरू के चूर्ण में शहद मिलकर खाने से पथरी में लाभ होता है…अदरक के रस के साथ शहद को चाटने से यह पेट के लिए उपयोगी है…अडूसे के काढ़े में शहद मिलकर पीने से खांसी में लाभ होता है…बैंगन के भर्ते में शहद मिलाकर खाने से अनिद्रा रोग में फ़ायदा होता है…थकान होने पर शहद के सेवन से ताजगी आती है…शहद को केवड़ा रस व पानी के साथ पीने से मांसपेशियों को ताकत मिलती है… काली खांसी होने पर 2 बादाम के साथ शहद लेने पर लाभ होता है… बवासीर में एक चुटकी त्रिफला चूर्ण के साथ शहद लेने से आराम मिलता है… शरीर के किसी जले हुए भाग पर शहद लगाने से आराम मिलता है… निर्मल अवस्थी का संपर्क है: ०९६८५४४१९१२



चुकंदर के गुण
October 8, 2013

यह संदेश शिवेंद्र का जिला अनुपपुर मध्य-प्रदेश से है.. इस संदेश में वह चुकंदर के गुणों के बारे में बता रहें है…उनका कहना है की चुकंदर अनीमिया को दूर करने में लाभदायक है इसके लिए या तो चुकंदर का रस पिये या इसे सलाद के रूप में भी लिया जा सकता है…चुकंदर गुर्दे के रोगों में भी लाभदायक है.. गुर्दे के रोग से पीड़ित व्यक्तियों को चुकंदर का नियमित सेवन करना चाहिये… चुकंदर का रस पीलिया में भी गुणकारी है पीलिया से ग्रस्त रोगियों को दिन में चार बार चुकंदर का रस पीना चाहिये पर यह ध्यान रखें की एक बार में केवल एक कप रस का ही सेवन करें…उल्टी-दस्त होने पर चुकंदर के रस में चुटकी भर नमक मिलकर पिलाना चाहिये इससे लाभ होगा… चुकंदर मासिक धर्म के दौरान होने वाली परेशानियों को भी दूर करता है…बच्चों और वयस्कों को चुकंदर का नियमित सेवन करना चाहिये इससे दांतों को मजबूती मिलती है और अपच की शिकायत भी दूर होती है…शिवेंद्र का संपर्क है: 9981915159
   
पीपल के गुण
October 6, 2013

यह संदेश सरोजनी गोयल का बाल्को कोरबा, छत्तीसगढ़ से है…इस संदेश में सरोजनीजी पीपल के गुणों के बारे में बता रहीं है…उनका कहना है की पीपल बहुत सारे रोगों को दूर करता है….पीपल का फल बाँझपन को दूर करने में मददगार है…जिन स्त्रियों को गर्भ धारण नहीं होता है वह इसके फलो को बारीक़ पीसकर दिन के एक बार खाए तो उनको शीघ्र गर्भ धारण करने में मदद मिलेगी….वहीँ आजकल पुरषों में शीघ्रपतन होना आम है वह पीपल के दूध को बताशे के साथ पकाकर खाए उनको लाभ होगा…पीपल दमे को भी ठीक करने में मददगार है, पीपल के छाल का चूर्ण थोड़े गरम पानी के साथ दिन में तीन बार लेने से दमा ठीक हो जाता है….पेट में कृमि होने पर पीपल के पंचांग का चूर्ण थोड़े गुड और सौंफ के साथ खाने से लाभ होता है….जिनको पीलिया हो रहा हो तो वह पीपल और नीम के 5-5 पत्ते पीसकर सैंधा नमक मिलाकर नियमित खाए तो लाभ होगा….सरोजनी गोयल का संपर्क है: 9165058483
   

अशोक वृक्ष के लाभ
October 6, 2013

यह संदेश निर्मल अवस्थीजी का कस्तूरबा नगर, वार्ड क्रमांक 4, छत्तीसगढ़ से है…इस संदेश में निर्मलजी अशोक के गुणों के बारे में बता रहे है….इनका कहना है की अशोक का वृक्ष सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है…लोग इसे घर पर भी लगाते है…आज वह अशोक से सौंदर्यवर्धक उबटन बनाने की विधि बता रहें है…गेहूं का आटा 4 चम्मच, सरसों का तेल 2 चम्मच, अशोक का चूर्ण 4 चम्मच इन तीनो को मिलाकार गाढ़ा घोल बना लें…यदि घोल ज्यादा गाढ़ा बन जाये तो इसमें थोडा दूध या पानी मिलाकर पतला कर ले….इस उबटन के प्रतिदिन चहरे, हाथों और पैरों पर लगाये….इससे रंग साफ़ होगा और तेजस्विता आएगी…..दूसरा उपयोग अशोक की 250 ग्राम छाल का बारीक़ चूर्ण बना ले और इसमें 250 ग्राम मिश्री मिलकर रख ले…यह चूर्ण श्वेत और रक्त प्रदर के लिए बड़ा उपयोगी है….मात्रा 10 ग्राम चूर्ण फांक कर ऊपर से चावल के धोवन का आधा गिलास पानी पी ले…तीसरा उपयोग गर्भस्राव को रोकने के लिए है… उपर लिखी विधि का प्रयोग गर्भधारण के पूर्व और बाद का प्रयोग करना है….साथ में अशोकघनसत्व वटी 2 गोली, प्रवालपिष्टी 2 रत्ती, गिलोय सत्व 4 रत्ती ऐसी मात्रा दिन में तीन बार देते रहें….साथ ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान दे…इसका प्रयोग कुछ दिनों तक करने से लाभ होता है.. निर्मल अवस्थी का संपर्क है: 09685441912


पीलिया, हिचकी, प्रदर, रक्तप्रदर, स्वप्नदोष
October 5, 2013

यह संदेश निर्मल अवस्थीजी का कस्तूरबा नगर, वार्ड क्रमांक 4, बिलासपुर से है…उनका कहना है की पीलिया होने पर आक जिसको मदार भी कहते है की नयी कोमल कोंपले पीसकर मावे में मिलकर और उसने शक्कर मिलकर खिलाकर उपर से दूध पिला दे….यह चमत्कारिक ढंग से पीलिया को समाप्त कर देगी..अगर कोई कसर रह जाये तो इसे दवा लेने के तीसरे दिन भी एक बार दे दे…पीलिया जड़ से समाप्त हो जायेगा…दूसरी औषधि भी पीलिया के लिए ही है…100 ग्राम मुली के रस में 20 ग्राम शक्कर मिलकर पिलाये…गन्ने का रस, टमाटर और पपीते का सेवन करे…अगर किसी को हिचकी आती है तो मयूर पंख का चांदोबा जलाकर बनाई 2 रत्ती भस्म, 2 रत्ती पीपल चूर्ण को शहद में मिलाकर देने से हिचकी दूर होती है….प्रदर रोग में 100 ग्राम धनिया बीज 400 ग्राम पानी में स्टील के बर्तन में उबालें…आधा शेष रहने पर 20 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें, 3-4 दिनों में लाभ होगा…रक्त प्रदर में 10 ग्राम मुल्तानी मिट्टी 100 ग्राम पानी में रात में भिगो दे, प्रातः इसे छान ले मिट्टी छोड़कर उस पानी को सोना-गेरू एक चम्मच फांक कर यह पानी पी लें…अगर सोना-गेरू नहीं हो फिर भी यह लाभ करेगा….स्वप्नदोष दूर करने के लिए बबूल की कोमल फलियाँ जिसमे बीज न आया हो उसे छाया में सुखा लें.. फिर उसे पीसकर चूर्ण बनाकर उसमे बराबर मात्र में मिश्री मिला लें….उसे सुबह-शाम एक-एक चम्मच लेने से स्वप्नदोष में लाभ होगा….निर्मल अवस्थी का संपर्क है: 09685441912


अधिक माहवारी रोकने के लिए औषधि
October 5, 2013

यह संदेश संजय माधब सेठ का लखमारा, जिला बारगाह ओडिशा से है…वह महिलायों में अधिक माहवारी से उत्पन्न तकलीफों का उपचार बता रहे है.. उनका कहना है की इसकी औषधि बनाने के लिए….कालीमिर्च 5 ग्राम, हिंग 5 ग्राम और सैंधा नमक 8 ग्राम इन तीनो सामग्रियों को पीसकर चूर्ण बना लें.. और इसे सुबह-शाम ठन्डे पाने से 3 माह तक लेने से कमर दर्द, पेट दर्द और अधिक माहवारी से उत्पन्न समस्याएँ दूर होंगी…संजय माधब सेध का संपर्क है: 09938323201


दोहों के माध्यम से रोग उपचार की जानकारी
October 5, 2013

यह संदेश निर्मल कुमार अवस्थी का कस्तूरबा नगर वार्ड क्रमांक 4, बिलासपुर से है…उन्होंने रोगों के उपचार के बारे में बताने के लिए दोहों के रचना की है… वह दोहों के माध्यम से रोग के उपचार की जानकारी दे रहें है उनके दोहें इस प्रकार है:
आँखों लाली बसे और धुंधली हो यदि दृष्टी,
आलू का रस डालिए तो दिखने लगती सृष्टि

लेकर के शरणागत को छठे आंवला युक्त,
रोगी हो जाता तुरंत बवासीर से मुक्त

प्रातः उठ कर करें जो जन जलपान ,
वे निरोगी रहते सदा , रोगों से अनजान

प्रतिदिन हम खाते रहे मात्र एक ही सेव,
बढे हमारा स्वास्थ्य , हो अनुकूल सदैव

काढ़ा तुलसी -अडूसे का, कुछ दिन पिये श्रीमान,
सुखी खासी दूर हो, रोगी जाये जान

तम्बाकू मत खाइए लीजिये दवा का काम,
तेल निलामल हम बनायें , खुजली काम-तमाम

चेहरे में हल्दी सहित, मन चन्दन और दुग्ध,
आकर्षण नित्य प्रति बढे, होगी जन मन मुग्ध

दूध पपीता रात पी, केवल चम्मच एक,
कीड़ें निकलेंगे सुबह, यह सलाह है नेक

तुलसी पत्ते खाइए थोड़े गुड के संग,
कीड़ें मरें पेट के, हो जाये मन चंग

 प्रातः कार्तिक मास में, नित तुलसी जो खाए,
एक वर्ष तक रोग फिर उसको ढूंड न पाए

तुलसी रस के साथ में निगले गुड और सौंठ,
होगा दूर अजीर्ण थके न कहते ओंठ

तुलसी को शुभदा कहें सदा सयाने लोग,
नारी तुलसी खाए नित रहे प्रजनन अंग निरोग


निर्मल अवस्थी का संपर्क है: 09685441912


गठियावात – साइटिका के लिए औषधि
October 5, 2013

यह संदेश अजय कुमार सैनी (अजय क्लिनिक) का विट्ठल नगर  सागर से है इस संदेश में वह गठियावात और साइटिका के औषधि बता रहे है…उनका कहना है की यह औषधि बनाने के लिए हरसिंगार की पत्तियां 500 ग्राम, सहजन (मुनगा) की पत्तियां 100 ग्राम, अशोक की छाल 100 ग्राम और अजवाईन 25 ग्राम इन सब सामग्रियों को 2 लीटर पानी में उबाले और जब पानी 1 लीटर बच जाये तो उसे छान कर रख लें….इस काढ़े को 50-50 ग्राम सुबह-शाम को ले…इस प्रकार इसे 90 दिनों तक लेने से जोड़ों का दर्द और साइटिका नष्ट होता है….अजय कुमार सैनी का संपर्क है: 8462970635 / 9893222938


श्वेत प्रदर की पारंपरिक चिकित्सा
October 4, 2013

यह संदेश निर्मल कुमार अवस्थी का है जो चांपा छत्तीसगढ़ में पारंपरिक चिकित्सक रमेश कुमार पटेल का साक्षात्कार कर रहे है…रमेश कुमार का कहना है की श्वेत प्रदर होने पर वह अशोक की छाल, सेमल के छाल, अपामार्ग, अश्वगंधा की जड़, सतावर की जड़ का काढ़ा बना कर एक सप्ताह की खुराक देते है… यह खुराक सुबह-शाम को खाना खाने से पहले 10 मी.ली. दी जाती है…. निर्मल कुमार अवस्थी का संपर्क है:09685441912

काली मिर्च के लाभ
October 4, 2013

यह संदेश निर्मल कुमार अवस्थी का बिलासपुर से है आज यह हमें काली मिर्च के लाभों के बारे में बता रहे है…इनका कहना है की लाल मिर्च सभी को मना नहीं की जाती बल्कि उन लोगो के लिए निषेध है जो अल्सर, बवासीर, सीने की जलन या अम्लता से पीड़ित होते है…इनका कहना है की काली मिर्च जिन घरों में अधिक उपयोग में लाई जाती है उन लोगो का डॉक्टरों के यहाँ जाना कम ही होता है….काली मिर्च न सिर्फ खाने का स्वाद बढाती है बल्कि यह एक गुणकारी औषधि भी है….काली मिर्च का पाउडर गुड में मिलकर खाने से नजला, जुकाम ठीक हो जाता है….काली मिर्च के पानी से गरारे करने या काली मिर्च के चूर्ण से मंजन करने से दाँतों का दर्द दूर हो जाता है….5-7 काली मिर्चें घी के साथ खाने से जहर का असर कम हो जाता है….काली मिर्च साफ जगह पर घिस कर लगाने से फुंसियाँ, छोटे फोड़े ठीक हो जाते है….कालीमिर्च का चूर्ण सूंघने से खासी के कारण हुआ सर का भारीपन कम हो जाता है….कालीमिर्च को पानी में बताशे के साथ उबालकर उस पानी को पीने से पसीना आता है और सुस्ती दूर हो जाती है….11 काली मिर्चें घिसकर पानी में उबालकर कर पीने से मौसमी बुखार ठीक हो जाता है….कालीमिर्च के सेवन से भूख बढती है…इससे बवासीर में भी लाभ होता है….निर्मल अवस्थी का संपर्क है: 09685441912

   
नपुंसकता का उपचार
October 4, 2013

यह संदेश निर्मल कुमार अवस्थी का बिलासपुर, छत्तीसगढ़ से है…इसमें वह नपुंसकता का उपचार बता रहे है…इनका कहना है की अधिकतर नपुंसकता मानसिक और शारीरिक होती है…. इसके उपचार की औषधि बनाने के के लिए आक के पौधे का दूध इकठ्ठा कर ले फिर लगभग आधा किलो छुआरे लेकर उसे बीच में से काटकर उसकी गुठली निकाल दे और उसमे में आक का दूध भर कर उसे धागे से बांध दे…इसके बाद गेहूं का आटा गूंधकर एक गेंद बनाकर उन दूध भरे छुआरों को उसमे भरकर (जैसे कचौड़ी बनती है) सब तरफ से बंद कर दे…फिर उसे भट्टी में रख दे….जिससे उसकी भस्म बन जाये….यही औषधि है इस भस्म को 2-2 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ ले….इससे कमजोरी और नपुंसकता धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी…निर्मल अवस्थी का संपर्क है: 09685441912

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