बुधवार, 17 सितंबर 2014

सेहत के अनमोल नुस्खे


विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार अविकसित तथा विकासशील देशों में हर वर्ष पांच लाख स्त्रियों की मौत होती है। इनमें एक बड़ी संख्या को उन मामलों में सतर्कता बरत कर बचाया जा सकता है। मृत्यु का कारण बनने वाले रोगों से सतर्कता के साथ ही निबटा जा सकता है। निर्धन देशों में जहां अज्ञानता का बोलबाला है, प्रति एक लाख पांच सौ स्त्रियां गर्भावस्था या प्रसवकाल में मृत्यु को प्राप्त होती हैं जबकि अमेरिका तथा यूरोप के विकसित देशों में यह दर केवल बीस स्त्री प्रति एक लाख है। गर्भकाल में स्त्रियों की मृत्यु का एक बड़ा कारण असंतुलित भोजन तथा गन्दगी है। कुछ नियमों का पालन करते हुए हम अपनी सेहत को उत्तम बना सकते हैं।
* पेट के रोगियों को हरी पत्तेदार सब्जियां अधिक मात्रा में खानी चाहिए। पालक, लालसाग, मेथी का साग, बथुआ का साग अपने भोजन में नियमित लेते रहना चाहिए।
* अपने भोजन में यदि आप पौष्टिक तत्वों को कायम रखना चाहती हैं तो सब्जी में हमेशा तब नमक डालिए जब उसके पकने में सिर्फ थोड़ी-सी कसर बाकी हो।
* सलाद के साथ नमक का इस्तेमाल कतई मत करिए, क्योंकि कच्चे सलादों में नमक की मात्रा प्राकृतिक रूप से ही रहती है। सलाद के साथ अलग से नमक खाने पर मूत्राशय संबंधी अनेकानेक बीमारियां हो जाती हैं।
* यौन शक्ति को बढ़ाने के लिए शुध्द शहद के साथ गर्म दूध पीना अत्यधिक लाभदायक होता है। एक गिलास भैंस के दूध के साथ दो चम्मच शहद डालकर पीते रहने से वृध्दावस्था तक यौन-शक्ति बरकरार रहती है।
* आप कोई एन्टीबायोटिक, नींद लेने वाली गोलियां, दौरे की दवा या टीबी की दवाएं ले रही हों तो उस अविध में सिर्फ गर्भ निरोधक गोलियां ही लेना काफी नहीं होता बल्कि उसके साथ-साथ गर्भ निरोध का दूसरा उपाय भी अपनाना चाहिए।
* बिना चिकित्सक की सलाह के एन्टीबायोटिक दवाएं, गर्भ निरोधक दवाएं, गर्भपात की दवाएं या सेक्स से संबंधित दवाएं कभी न लें अन्यथा स्वास्थ्य के साथ-साथ सुन्दरता पर भी ग्रहण लग सकता है।
* एक नयी धारणा यहह बन रही है कि चेहरे की मालिश तथा ‘फेशियल’ से चेहरे पर बुढ़ापा नहीं उभर पाता किन्तु अमेरिकी त्वचा विशेषज्ञ डा. लेलीमेण्ड तथा टोण्डो एलने का कहना है कि उपरोक्त धारणा का अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिला है। यह लाभ केवल मनोवैज्ञानिक कारणों से ही होता है। इससे होता सिर्फ इतना है कि ‘फेशियल’ तथा मालिश से रोमछिद्र साफ हो जाते हैं जिससे रक्त संचार में अस्थायी वृध्दि हो जाती है और व्यक्ति कुछ अवधि के लिए सुखद अनुभव करता है।
* आयुर्वेद के अनुसार भोजन के तुरन्त बाद मट्ठा (तक्र) पीना, सौ कदम चलना (टहलना) आदि ठीक होता है परन्तु भोजन के बाद अधिक बोलना, अधिक भोजन के बाद अधिक घूमना या अधिक गरम पदार्थों का सेवन करना हानिकारक होता है।
* सोयाबीन के अधिक सेवन से स्तन कैंसर नहीं होता अतः अपने दैनिक आहार में सोयाबीन के बने पदार्थों का अधिक सेवन करना चाहिए।
* नियमित रूप से जुकाम की शिकायत रहने पर दूब की कोपलों को तोड़कर उसे चटनी के समान पीस लीजिए और शहद के साथ प्रतिदिन रात्रि में लीजिए। जुकाम एकदम गायब हो जायेगी।
* पेट की किसी भी तरह की शिकायत होने पर गाढ़ा दूध का दलिया, कच्चा नारियल, पेठा व रसगुल्ला खाइए। पेट की बीमारी आपके कब्जे में होगी।
* स्तन पर अनचाहे बालों के होने को गम्भीरता से लीजिए। उन्हें काटिए नहीं बल्कि मूंगदाल के उबटन से हल्का-हल्का मसाज करते हुए नियमित प्रयोग से हटा लें। यह ग्रंथी रोग के कारणों से होता है।
* कच्चे नारियल का पानी दिन भर में 4-5 बार 50-50 ग्राम की मात्रा में पीने से शरीर पर दुबलापन दूर होता है।
* बेर के पत्तों को पीसकर पानी में मथने से जो झाग उठता है, उस झाग को सिर में लगाने से बाल झड़ने बन्द हो जाते हैं।
* अदरक के एक किलो रस में 500 ग्राम तिल का तेल मिलाकर गर्म करिए और जब केवल तेल बचा रहे, उतार कर छान कर बोतल में रखकर बन्द कर रख दीजिए। इस तेल से उस अंग पर मालिश कीजिए जहां कहीं भी दर्द होता है।

पेट के रोगों में अचूक लाभ देता है गूलर

मोरासी परिवारी का सदस्य गूलर लंबी आयु वाला वृक्ष है। इसका वनस्पतिक नाम फीकुस ग्लोमेराता रौक्सबुर्ग है। यह सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। यह नदी-नालों के किनारे एवं दलदली स्थानों पर उगता है। उत्तर प्रदेश के मैदानों में यह अपने आप ही उग आता है।
इसके भालाकार पत्ते 10 से सत्रह सेमी लंबे होते हैं जो जनवरी से अप्रैल तक निकलते हैं। इसकी छाल का रंग लाल-घूसर होता है। फल गोल, गुच्छों में लगते हैं। फल मार्च से जून तक आते हैं। कच्चा फल छोटा हरा होता है पकने पर फल मीठे, मुलायम तथा छोटे-छोटे दानों से युक्त होता है। इसका फल देखने में अंजीर के फल जैसा लगता है। इसके तने से क्षीर निकलता है।
आयुर्वेदिक चिकित्सों के अनुसार गूलर का कच्चा फल कसैला एवं दाहनाशक है। पका हुआ गूलर रूचिकारक, मीठा, शीतल, पित्तशामक, तृषाशामक, श्रमहर, कब्ज मिटाने वाला तथा पौष्टिक है। इसकी जड़ में रक्तस्राव रोकने तथा जलन शांत करने का गुण है। गूलर के कच्चे फलों की सब्जी बनाई जाती है तथा पके फल खाए जाते है। इसकी छाल का चूर्ण बनाकर या अन्य प्रकार से उपयोग किया जाता है।
गूलर के नियमित सेवन से शरीर में पित्त एवं कफ का संतुलन बना रहता है। इसलिए पित्त एवं कफ विकार नहीं होते। साथ ही इससे उदरस्थ अग्नि एवं दाह भी शांत होते हैं। पित्त रोगों में इसके पत्तों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन भी फायदेमंद होता है।
गूलर की छाल ग्राही है, रक्तस्राव को बंद करती है। साथ ही यह मधुमेह में भी लाभप्रद है। गूलर के कोमल-ताजा पत्तों का रस शहद में मिलाकर पीने से भी मधुमेह में राहत मिलती है। इससे पेशाब में शर्करा की मात्रा भी कम हो जाती है।
गूलर के तने को दूध बवासीर एवं दस्तों के लिए श्रेष्ठ दवा है। खूनी बवासीर के रोगी को गूलर के ताजा पत्तों का रस पिलाना चाहिए। इसके नियमित सेवन से त्वचा का रंग भी निखरने लगता है। हाथ-पैरों की त्वचा फटने या बिवाई फटने पर गूलर के तने के दूध का लेप करने से आराम मिलता है, पीड़ा से छुटकारा मिलता है। गूलर से स्त्रियों की मासिक धर्म संबंधी अनियमितताएं भी दूर होती हैं।
स्त्रियों में मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव होने पर इसकी छाल के काढ़े का सेवन करना चाहिए। इससे अत्याधिक बहाव रुक जाता है। ऐसा होने पर गूलर के पके हुए फलों के रस में खांड या शहद मिलाकर पीना भी लाभदायक होता है। विभिन्न योनि विकारों में भी गूलर काफी फायदेमंद होता है। योनि विकारों में योनि प्रक्षालन के लिए गूलर की छाल के काढ़े का प्रयोग करना बहुत फायदेमंद होता है।
मुंह के छाले हों तो गूलर के पत्तों या छाल का काढ़ा मुंह में भरकर कुछ देर रखना चाहिए। इससे फायदा होता है। इससे दांत हिलने तथा मसूढ़ों से खून आने जैसी व्याधियों का निदान भी हो जाता है। यह क्रिया लगभग दो सप्ताह तक प्रतिदिन नियमित रूप से करें।
आग से या अन्य किसी प्रकार से जल जाने पर प्रभावित स्थान पर गूलर की छाल को लेप करने से जलन शांत हो जाती है। इससे खून का बहना भी बंद हो जाता है। पके हुए गूलर के शरबत में शक्कर, खांड या शहद मिलाकर सेवन करने से गर्मियों में पैदा होने वाली जलन तथा तृषा शांत होती है। नेत्र विकारों जैसे आंखें लाल होना, आंखों में पानी आना, जलन होना आदि के उपचार में भी गूलर उपयोगी है।
इसके लिए गूलर के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसे साफ और महीन कपड़े से छान लें। ठंडा होने पर इसकी दो-दो बूंद दिन में तीन बार आंखों में डालें। इससे नेत्र ज्योति भी बढ़ती है। नकसीर पूहृटती हो तो ताजा एवं पके हुए गूलर के लगभग 25 मिली लीटर रस में गुड़ या शहद मिलाकर सेवन करने या नकसीर पूहृटना बंद हो जाती है।

सेहत : सिरदर्द एक नुस्खे अनेक

सिरदर्द से हर व्यक्ति छुटकारा पाना चाहता है, खासकर इसीलिए भी क्योंकि यह रोजमर्रा की गतिविधियों में खासा बाधक बन जाता है। अब सिरदर्द दूर करने के लिए लोग नाना प्रकार के नुस्खे अपनाते हैं। इनमें से कुछेक को हम यहाँ दर्ज कर रहे हैं। देखिए आपको इनमें से कौन सा नुस्ख फायदा पहुँचाता है? सूखे अदरक पाउडर को पानी में मिलाकर लेप तैयार कर लीजिए और उसे अपने माथे पर लगा लें। इससे थोड़ी सी जलन होगी, लेकिन दर्द से आराम मिल जाएगा। कुछ लोग लेप को कानों के पीछे भी लगाते हैं।
साफ और मुलायम कपड़ा ले लें और उसे सफेद सिरके में डुबो लें। इस कपड़े को सिर पर लपेट लें और आराम करें जितनी बार जरुरत हो दोहराएं। बार-बार सिर में होने वाले दर्द को दूर करने के लिए डॉक्टरों का सुझाव है कि बर्फ का प्रयोग करें। एक पतले प्लास्टिक बैग में बर्फ भर लें और उसे अपने माथे पर सिर पर रखें। दक्षिण भारत में सिरदर्द दूर करने के लिए प्याज को कूटकर लेप बना लिया जाता है और फिर उसे माथे पर लगा लिया जाता है।
अजवाइन के बीजों को रोस्ट करके सुखा लें और उन्हें एक मलमल के कपड़े में बांधकर छोटी सी पोटली बना लें। इसे बार-बार सूंघते रहें, जब तक सिरदर्द दूर न हो जाए। खाली पेट पर रोजाना सुबह एक सेब खाने की आदत डाल लें। ऐसा करने से सिरदर्द की समस्या नहीं रहेगी। पिपरमैंट तेल सूंघने या पेपरमेंटयुक्त चाय पीने से भी सिरदर्द दूर हो जाता है। धूप में काम करने से जो सिरदर्द होता है, वह मेहंदी के पूहृलों से दूर हो जाता है।
मेंहंदी के पूहृलों को सिरके में पीस लें और उसके लेप को माथे पर लगाएं। ताजे चंदन के लेप में अगर तुलसी के पत्ते पीसकर मिला जाएं और इसे माथे पर लगाया जाए, तो सिरदर्द दूर हो जाता है। 10-15 तुलसी के पत्ते, लहसुन की 4 फांक और एक चम्मच सूखे हुए अदरक के पाउडर को मिलाकर पीस लें। इससे जो लैप तैयार होगा, उसे माथे पर लगा लें। 2 लौंग, 2 सेटीमीटर लंबी दालचीनी और एक बादाम लें। इसका लेप बना लें और माथे पर लगाएं। आधा चम्मच लौंग के पाउडर को एक चम्मच दालचीनी के तेल में मिलाकर उसे प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं। सिर की मालिश आयुर्वेद का प्राचीन फार्मूला है।
किसी अनुभवी व्यक्ति से सिर की मालिश कराएं। मालिश बादाम या सरसों के तेल से या घीस से कराएं। ध्यान लगाने से तुरंत राहत तो नहीं मिलेगी, लेकिन रोजाना ध्यान लगाने से मन रिलैक्स होगा। जिससे सिरदर्द की तीव्रता कम हो जाएगी। यह साधारण तरीका है, लेकिन इस पर महारत हासिल करना कठिन है, क्योंकि इंद्रियों को पूरी तरह से नियंत्रित करने का सवाल है। इसमें दिमाग पर इतना काबू करना होता है कि बेकार के विचारों को आने न दिया जाए और अंदरुनी शांति व खामोशी पर फोकस किया जाए। ऐसा करना मुश्किल होता है, लेकिन नामुमकिन नहीं।
एरोथेरेपी विशेषज्ञों का कहना है कि अलग-अलग किस्म के सिरदर्दों के लिए अलग-अलग किस्म से होने वाला सिरदर्द गुलाब तेल से दुरुस्त हो जाता है। बिना किसी विशेष कारण के जो दर्द होता है, उसमें लेवेंडर तेल काम करता है। इन तेलों को लगाया नहीं सूंघा जाता है। सेक्सुअल गतिविधि से एंडोरपिंहृस जारी होते हैं जोेकि प्राकृतिक दर्द निवारक होते हैं, इसीलिए बहुत कम लोग सेक्स के जरिए भी सिरदर्द दूर करते हैं। अगर इन नुस्खों के बावजूद भी सिरदर्द दूर न हो तो डॉक्टर से संपर्क करें, शर्माएं नहीं। आखिर यह आपकी सेहत का मामला है।

क्या फट रही है पैरों की एड़ियां, आजमाएं नुस्खा

शरीर में उष्णता या खुश्की बढ़ जाने, नंगे पैर चलने-फिरने, खून की कमी, तेज ठंड के प्रभाव से तथा धूल-मिट्टी से पैर की एड़ियां फट जाती हैं। यदि इनकी देखभाल न की जाए तो ये ज्यादा फट जाती हैं और इनसे खून आने लगता है, ये बहुत दर्द करती हैं।

 

अमचूर का तेल 50 ग्राम, मोम 20 ग्राम, सत्यानाशी के बीजों का पावडर 10 ग्राम और शुद्ध घी 25 ग्राम। सबको मिलाकर एक जान कर लें और शीशी में भर लें। सोते समय पैरों को धोकर साफ कर लें और पोंछकर यह दवा बिवाई में भर दें और ऊपर से मोजे पहनकर सो जाएं । कुछ दिनों में बिवाई दूर हो जाएगी, तलवों की त्वचा साफ, चिकनी व साफ हो जाएगी। त्रिफला चूर्ण को खाने के तेल में तलकर मल्हम जैसा गाढ़ा कर लें। इसे सोते समय बिवाइयों में लगाने से थोड़े ही दिनों में बिवाइयां दूर हो जाती हैं। 

समये से पहले ही बूढ़ा होने से बचने के लिए उपचार

समये से पहले ही बूढ़ा होने से बचने के लिए उपचार:-

  • लगभग 10 ग्राम गेहूं का चोकर लेकर एक प्याला पानी में डालकर उबाल लें। फिर इसे छानकर इसमें 2 बादाम की गिरी को घिसकर मिला लें तथा इसमें दूध और मिश्री डाल लें। फिर इसका सेवन करें। इस प्रकार के पेय पदार्थ को प्रतिदिन बनाकर सेवन करने से बुढ़ापा जल्दी नहीं आता है।
  • एक कटोरी चना और 3 चम्मच मेथीदाने को भिगोकर छान लें। इसके बाद पानी में नींबू का रस निचोड़कर इसमें शहद और इन सभी चीजों को मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से बुढ़ापा जल्दी नहीं आता है।
  • छोटी हरड़ को प्रतिदिन मुंह में रखकर चूसने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
जानकारी-
       इस प्रकार की चीजों का प्रतिदिन सेवन करने से व्यक्ति समय से पहले बूढ़ा नहीं लगता है।

मल्टीपल स्कलेरोसीस रोग

मल्टीपल स्कलेरोसीस रोग होने के लक्षण-
          इस रोग से पीड़ित कई रोगियों में अलग-अलग लक्षण दिखाई देते हैं। इस रोग से पीड़ित रोगी को पहले तेज लक्षण सामने प्रकट होते हैं तथा कुछ सप्ताह महीनों या वर्षों के बाद ये लक्षण गायब हो जाते हैं। इस रोग के दुबारा से लक्षण कभी भी दिख सकते हैं और हो सकता है कि इस रोग का आक्रमण जीवनभर कभी भी न हो। इस रोग की शुरुआती अवस्था में रोगी व्यक्ति को थकावट होती है तथा उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी के हाथ-पैर कमजोर हो जाते हैं तथा सुन्न हो जाते हैं। रोगी की आंखों में कई प्रकार की समस्या हो जाती है तथा रोगी को बोलने में परेशानी होने लगती है। रोगी व्यक्ति को पेशाब पर नियंत्रण नहीं रहता है और उसका पेशाब अपने आप निकल जाता है।
 कारण-इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण असंतुलित खान-पान है। गलत तरीके के खान-पान के कारण रोगी के शरीर में दूषित द्रव्य जमा हो जाता है जिसके कारण यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।
  • अत्यधिक मानसिक तनाव रहने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो सकता है।
 उपचार-मल्टीपल स्कलेरोसीस रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को कम से कम 5 दिनों तक फलों तथा सब्जियों का रस सेवन करने के लिए देना चाहिए तथा रोगी व्यक्ति को उपवास रखने के लिए कहना चाहिए तथा इसके बाद रोगी को गर्म पानी का एनिमा क्रिया कराके उसके पेट को साफ करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप शरीर का खून साफ हो जाता है और दूषित द्रव्य शरीर के बाहर निकल जाते हैं और रोगी का यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  • मल्टीपल स्कलेरोसीस रोग से पीड़ित रोगी को मौसम के अनुसार सभी प्रकार के फलों तथा सब्जियों का सेवन करना चाहिए क्योंकि ये पदार्थ रोगी के लिए बहुत अधिक लाभदायक होते हैं। ये फल कुछ इस प्रकार हैं- चुकन्दर, गाजर, खीरा, पत्तागोभी, मूली, टमाटर आदि।
  • मल्टीपल स्कलेरोसीस रोग से पीड़ित रोगी को विटामिन `बी` तथा `ई` युक्त फलों का सेवन करना चाहिए तथा अंकुरित अन्न का सेवन अधिक करना चाहिए और रोगी को यदि थकावट हो रही हो तो उसे अपने थकावट को दूर करने के लिए अधिक से अधिक आराम करना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

दुबलापन होने का कारण

दुबलापन होने का कारण:-
  • पाचन शक्ति में गड़बड़ी के कारण व्यक्ति अधिक दुबला हो सकता है।
  • मानसिक, भावनात्मक तनाव, चिंता की वजह से व्यक्ति दुबला हो सकता है।
  • यदि शरीर में हार्मोन्स असंतुलित हो जाए तो व्यक्ति दुबला हो सकता है।
  • चयापचयी क्रिया में गड़बड़ी हो जाने के कारण व्यक्ति दुबला हो सकता है।
  • बहुत अधिक या बहुत ही कम व्यायाम करने से भी व्यक्ति दुबला हो सकता है।
  • आंतों में टेपवोर्म या अन्य प्रकार के कीड़े हो जाने के कारण भी व्यक्ति को दुबलेपन का रोग हो सकता है।
  • मधुमेह, क्षय, अनिद्रा, जिगर, पुराने दस्त या कब्ज आदि रोग हो जाने के कारण व्यक्ति को दुबलेपन का रोग हो जाता है।
  • शरीर में खून की कमी हो जाने के कारण भी दुबलेपन का रोग हो सकता है।
 उपचार:-
  • थायरायड ग्रंथि के लिए पोषक तत्व, आयोडीन युक्त पदार्थों में अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इन पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  • ताजी हरी सब्जियों में भी आयोडीन पदार्थ अधिक होता है। इसलिए ताजी हरी सब्जियों का भोजन में अधिक प्रयोग करना चाहिए।
  • अधिक पतले व्यक्ति को मिर्च-मसालेदार सब्जियां तथा भोजन नहीं करना चाहिए।
  • अधिक पतले व्यक्ति को अपने पतलेपन का उपचार करने के लिए 2-3 दिनों तक अधिक मात्रा में फल खाने चाहिए तथा इसके साथ में प्रतिदिन कम से कम 100 ग्राम चोकर खाना चाहिए। इसके फलस्वरूप पतले व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
  • अधिक पतले व्यक्ति को आटे के चोकर फलों में मिलाकर या फिर फल के रस में घोलकर सेवन करने से कुछ ही दिनों में अधिक लाभ मिलता है।
  • गूदेदार फल जैसे-पपीते में चोकर मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से व्यक्ति को पतलेपन से काफी हद तक छुटकारा मिल जाता है।
  • रोगी को अधिक मात्रा में अपने भोजन में फलों का उपयोग करना चाहिए। इससे व्यक्ति की पाचनशक्ति बढ़ती है और व्यक्ति को भूख अधिक लगती है। जिसके फलस्वरूप उसे पतलेपन से छुटकारा मिल जाता है।
  • व्यक्ति को अपना वजन बढ़ाने के लिए आटा, चावल, मीठा, किशमिश, खजूर, अंजीर तथा मुनक्का का भोजन में अधिक सेवन करना चाहिए।
  •  व्यक्ति को अपने पतलेपन को दूर करने के लिए चिकनाई की वनस्पति, श्वेतसार पदार्थ जिनसे वजन बढ़ने लगता है, अधिक मात्रा में सेवन करने चाहिए।
  • व्यक्ति को अपने पतलेपन को दूर करने के लिए प्रतिदिन अंकुरित दाल का भोजन में उपयोग करना चाहिए।
  • व्यक्ति को अपना वजन बढ़ाने के लिए सुबह के समय में उठते ही तथा रात को सोते समय और भोजन के 2 घण्टे के बाद या फिर उससे पहले थोड़ा-थोड़ा अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए।
  • व्यक्ति को सुबह के समय में व्यायाम करना चाहिए और टहलना चाहिए।
  • प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार गर्म दूध का उपयोग करने से वजन बढ़ने लगता है। इस प्रकार से रोगी का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करने से कुछ ही दिनों में रोगी व्यक्ति पतलेपन से पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
  • दुबलेपन रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपनी पाचनक्रिया में सुधार करना चाहिए। इसके बाद इस रोग का उपचार करना चाहिए।
  • दुबलेपन रोग का उपचार करने के लिए रोगी को कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए। इसके बाद कुछ दिन तक फल, सलाद, अंकुरित पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
  • दूध, केला, भिगोए हुए खजूर, पका हुआ आम, किशमिश आदि का उपयोग भोजन में अधिक करना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति को भूख से अधिक बिल्कुल भी नहीं खाना चाहिए तथा सदैव पौष्टिक भोजन करना चाहिए।
  • दुबले व्यक्ति को प्रतिदिन 100 ग्राम हरे पत्ते वाली सब्जियों जैसे पत्तागोभी, बथुआ, धनिया, पुदीना मूली के पत्ते तथा पालक का सेवन करना चाहिए।
  • दूब का रस तथा नारियल पानी प्रतिदिन पीना बहुत ही लाभदायक होता है।
  • 100 मिलीलीटर गाजर का रस, 50 मिलीलीटर पालक का रस और 50 मिलीलीटर चुकन्दर के रस को एक साथ मिलाकर प्रतिदिन पीने से रोगी के शरीर में शक्ति आ जाती है जिसके फलस्वरूप रोगी का पतलापन दूर होता जाता है।
  • प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार दुबलेपन को दूर करने के लिए कई प्रकार के आसन हैं जिनको करने से कुछ ही दिनों में दुबलापन दूर हो जाता है ये आसन इस प्रकार हैं- नित्य प्रति पर्याप्त व्यायाम, योगमुद्रासन, सर्वांगासन, हलासन, मत्स्यासन, प्राणायाम तथा कटिस्नान आदि।
  •  दुबलेपन को दूर करने के लिए एनिमा लेना भी काफी फायदेमंद होता है।

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