मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

मर्दाना बाँझ पतन



o   प्रजनन  अंगो की अल्पक्रियता, अन्डग्रन्थि दौबल्र्य एवं शुक्रजनन नलिका के अपजनन आदि ही पुरूष बाँझपन के प्रमुख कारण है। शुक्रवाहिनी नलिका का अवरोध जन्मजात भी हो सकता है तथा पूयमेह (गोनोरिया) व मम्मपस एवं वृषण के राजयक्ष्मा के कारण भी हो सकता है। जन्मजात कारण में अन्डों का अत्यन्त छोटा होना भी सम्मिलित है। ‘एन्ड्रोजन‘ नामक पुरूष ‘हार्मोन‘ का उत्पादन कम होना या शुक्राणुओं का उत्पादन करने वाले अथवा शुक्राणुओं को बहाने वाले स्त्रोतों की विकृति भी पुरूष बांझपन के प्रमुख कारणों में से है। शुक्रकीट मृत होने से या अल्पमात्रा में होने से भी गर्भाधान नही होता हैं।

·         शुक्रकीट अल्पता, व निष्क्रयता में अन्ड-ग्रन्थि की रूग्णता व अनुपस्थिति, शुक्रवाहिनी व पौरूष ग्रन्थि की रूग्णता व अनुपस्थिति, अत्यधिक मैथुन तथा शुक्रवाहिनी व पौरूष ग्रन्थि की जीर्णशोथ या आघात व शल्य कर्मजन्य विकृतियां भी पुरूष बांझपन के कारणों में सहायक होती है।

·         उपचार:- बसन्त कुसुमाकर रस 1 गोली, अमृतासत्व, स्वर्णबंग (प्रत्येक-2-2 रत्ती) शतावर्यादि चूर्ण 1 माशा की (एक मात्रा) दिन में दो बार सुबह-शाम दूध से सेवन करने पर चालीस दिन में शुक्राणुओं की वृद्धि हो जाती है।

मोटापा नाशक



o   प्रातःकाल चावलों का गर्म-गर्म मांड़ नमक मिलाकर पिया करें। या गिलोय का चूर्ण और त्रिफला दोनों 3-3 ग्राम लेकर प्रायः सायं मधु में मिलाकर चाटें।

o   भोजपत्र 10 ग्राम को चाय की भाँति उबाल कर पिया करें।

o   प्रतिदिन पानी में शहद मिलाकर पियें।

o   नंगे बदन अधिक से अधिक समय सूर्य के प्रकाश (धूप) में व्यतीत किया करें।

o   हरी साग सब्जियों तथा फलों, तथा चोकर युक्त आटे की रोटियों का प्रयोग करे तथा भोजन के साथ जल न पिया करें, जल भोजन के 1 घन्टा बाद थोड़ा-थोड़ा पिया करें।

o   25 ग्राम नीबू के रस में 125 ग्राम पानी मिलाकर (यथा स्वाद शहद भी मिलालें) खूब घोल कर शर्बत सा बनाकर लगातार 2-3 मास सेवन करें, शरीर में चाहें कैसी भी चर्बी बढ़ी हो घट जाती है। भोजन दिन में 1 बार हल्का करें तथा शाम को केवल फलाहार करें।

पुत्र उत्पन्न करने के योग




o   मोर के पंख के आसमानी रंग के चाँद (टुकड़े) की कैंची से बारीक काटकर और गुड़ में लपेटकर एक गोली बनालें। इस प्रकार तीन चाँदों की 3 गोलियाँ बनायें, फिर दो मास का गर्भ पूरा होने पर अर्था 61, 62, 63 वें दिन 1-1- गोली प्रातः काल बछड़े वाली गौ के दूध के साथ गर्भवती को सेवन करायें शर्तिया लड़का होगा। हजारों बार परीक्षित है। नोटः- चाँदों की कतरन (चूरा) को कैपसूल में भरकर भी प्रयोग किया जा सकता हैं

o   ऋ़तुकाल में पलाश (ढाक) का पत्ता दूध में पीसकर पिलाने से भी होने वाली सन्तान शर्तिया लड़का ही होता है।

o   गर्भवती होने पर प्रथम मास में ही शिवलिंगी के 9 या 11 बीजों का चूर्ण बछड़े वाली गाय के दूध के साथ प्रातः काल फाँकने से शिव के समान पराक्रमी पुत्र ही उत्पन्न होता है। गर्भ का ज्ञान होते ही यह प्रयोग करलें, इसमें देरी न करें।

o   भांग के 9 बीज गुड़ में रखकर गोली बनालें। गर्भ के तीसरे माह के प्रारम्भ में प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर यह गोली खिलाकर उपर से बछड़े वाली गाय का धारोष्ण दूध के पिलाने से शर्तिया पुत्र ही उत्पन्न होता है।

o   पुष्य नक्षत्र में लक्ष्मण बूंटी (हरिद्वार की अधिक श्रेष्ठ रहती है) की जड़ किसी कुंआरी कन्या के हाथों पिसवाकर, मासिक धर्म समाप्त होने के बाद, स्नान आदि करके तुरन्त प्रयोग करें। इस प्रकार प्रति माह यह प्रयोग जारी रखें। इस प्रयोग काल में जब भी गर्भ धारण होगा तो निश्चित ही पुत्र ही पैदा होगा।

o   बिजौरे के बीजों को दूध में पीसकर मासिकधर्म के दिनों लगातार 5 दिनों तक प्रयोग कराने से अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

o   असगन्ध का काढ़ा तैयार करें, उसको दूध में डालकर उसके बराबर घी और मिश्री मिलाकर मासिकधर्म के दिनों में 5 दिन प्रयोग करायें, निश्चय ही गर्भवती होने पर पुत्र की ही प्राप्ति होगी।


संतान प्राप्ती (Baby)





o   कस्तूरी 2 रत्ती, अफीम, केसर, जायफल (प्रत्येक 1-1 माशा) भांग के पत्ते 2 रत्ती तथा पुराना गुड़, सफेद कत्था (प्रत्येक 5 माशा 2 रत्ती) सुपारी गुजराती 3 नग एवं लौंग 4 नग लें। सभी औषधियों को कूट छानकर जंगली बेर के समान गोलियाँ बनाकर मासिकधर्म के पश्चात् 1-1- गोली सुबह-शाम (5 दिन) खिलायें।

·         नोट - इस योग के प्रयोग से 40-50 वर्ष की स्त्री (जिसे मासिक आ रहा हो) का भी बांझपन रोग दूर होकर गर्भ ठहर जाया करता है, यदि प्रथम मास के प्रयोग से गर्भ न ठहरे तो यह प्रयोग जब तक गर्भ न ठहरे (दूसरे या तीसरे मास) तक कर सकते है।

o   मोर के पंख के बीच वाले भाग (सुन्दर, गोल, चाँद) 9 नग लेकर गरम तवे पर भूनकर, बारीक पीसकर पुराने गुड़ में खूब मिलाकर नौ गोलियाँ बना लें। मासिक धर्म आने के दिनों में प्रतिदिन एक गोली 9 दिनों तक प्रातः सूर्योदय से पूर्व, दूध के साथ सेवन करायें। इसके पश्चात् दम्पत्ति खुश होकर (प्रसन्न मुद्रा में) सम्भोग करें। गर्भ ठहर जायेगा। यदि प्रयोग प्रथम मास में असफल रहे तो पुनः दूसरे या तीसरे मास प्रयोग करें।

o   मासिकधर्म के पश्चात् प्रतिदिन 8 दिनों तक असली नागेश्वर का चूर्ण 3-3 ग्राम गाय के घी में मिलाकर सेवन करने से मात्र पहिले या दूसरे महीने में ही अवश्य गर्भ ठहर जाता है। औषधि का सेवन प्रतिदिन 2 बार सुबह-शाम करायें।

o   शिवलिंगी के बीज, नागौरी असगन्ध, असली नागकेशर, मुलहठी, कमलकेसर, असली वंशलोचन (प्रत्येक 10-10 ग्राम) मिश्री 100 ग्राम लें। सभी औषधियों को कूट-पीसकर चूर्ण बनायें। मासिकधर्म के पश्चात् प्रतिदिन बार (सुबह, दोपहर, शाम) 6-6 ग्राम की मात्रा में बछड़े वाली गोदुग्ध के साथ प्रयोग करने से तथा स्त्री-पुरूष का 1 माह पूर्व से ब्रह्मचर्य का पालन करने तथा औषधि प्रयोग के 12वीं रात्रि सम्भोग करने से अवश्य गर्भ रहता है। एक मास में 1 बार ही सम्भोग करें। अधिक से अधिक 4 मास के प्रयोग से ही अवश्य गर्भ ठहर जाता है।


कुछ घरेलू उपचार (Tips)



o   साठी की जड़, दारू हल्दी, गोखरू, पाढल़, एवं निशोध को समभाग लें तथा बारीक कूटपीसकर दस माशा गोमूत्र के साथ पीने से समस्त प्रकार की सूजन नष्ट हो जाती है।

o   योनि की खुजली में सन्दल का तेल लगाना हितकारी है।

o   मोर के पंख की राख तथा जली हुई पीपल को शहद के साथ चटाने से हिचकी आना और वमन होना बन्द हो जाता है। जल से सैंधा नमक बारीक पीसकर नस्य देने से भी हिचकियाँ आना (हिक्कारोग) नष्ट हो जाता है।

o   योनि की खुजली के लिए गन्धक का मलहम तथा नीम का औटाया हुआ गुनगुना जल भी अत्यन्त लाभ होता है।

o   बड़ी इलायची तथा माजूफल को समभाग में लेकर बारीक पीस लें इसके बाद दोनों बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सुरक्षित रखलें। इस चूर्ण को 2-2 माशा की मात्रा में सुबह-शाम ताजा जल से सेवन कराने से कठिन से कठिन श्वेत प्रदर का रोग भी जड़ मूल से नष्ट हो जाता है।

o   पीपल की लाख बारीक पीसकर (चूर्ण बनाकर) 6 से 8 माशा तक की मात्रा में बकरी दूध के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर रोगों का नाश हो जाता है।

o   नीलोफर के फूल गाय के दूध के साथ पीसकर योनि पर लेप करने से (मात्र 10 दिनों में ही प्रयोग से) योनि संकुचित हो जाती है।

o   आक के फूलों को गाय के दूध के साथ पीसकर लगभग 30 दिन तक प्रातःकाल पीने से मूत्र की जलन व पथरी रोग जड़ से नष्ट हो जाता हैं।

o   माजूफल और फिटकरी को फूला समभाग लेकर पोटली बना लें। उसे योनि में रखने से (मात्र 7 से 14 दिनों तक प्रयोग से ही) योनि संकुचित हो जाती है।

o   आक की जड़ का छिलका 1 तोला की मात्रा में लेकर साफ-स्वच्छ कर ठन्डाई के समान जल में घोटकर पिलाने से सर्पविष उतर जाता है तथा आक की कुछ कोपलें चबाकर खाने से भी सर्प का विष उतर जाता है।

o   सफेद मूसली, काली मूसली, असगन्ध तीनों को समभाग लेकर दूध में काढ़ा बना लें। उसमें 2 तोला मिश्री मिलाकर सेवन करने से स्त्रियों के दिल, दिमाग की कमजोरी, धड़कन एवं घबराहट दूर हो जाती है।

o   खूनी पेचिश हो जाने पर नींबू मिलाकर दूध को फाड़ लें। छेना और पानी अलग-अलग कर लें। रोगी को फटे दूध का अलग किया पानी दिन भर में कई बार पिलायें। खूनी पेचिश में लाभप्रद योग है।

o   यदि गर्मी के कारण क्षुधा-नाश (भूख बन्द होना) हो गई हो तो 3-4 आलू-बुखारे पानी में भिगोकर प्रातः काल मसलकर सेवन करायें। गर्मी शान्त होगी तथा भूख लगेगी।

o   आलू बुखारा तथा इमली की चटनी खाने से भी गर्मी शान्त होकर भूख बढ़ती है।

o   एक तोला अकरकरा को तेज सिरके में 3 बार डुबाकर सुखा लें फिर उसमें 3 तोला शहद मिला लें। इसे सुबह-शाम 1-1 तोला की मात्रा में खिलाने से मृगी रोग नष्ट हो जाता है।

o   प्याज और नकछिकनी को पीसकर नस्य लेने से भी मृगी रोग दूर हो जाता है।

o   पीले रंग के आक के पत्ते लेकर उन पर घी चुपड़कर आग पर सेंक लें। फिर उसका रस निकला कर हल्का गरम करके कानों में डालने से कर्ण पीड़ा दूर हो जाती हैं।

o   आंक के फूल की एक लौंग 1 रत्ती पीसकर गोली बनालें। इस गोली को गरम जल के साथ सेवन करायें। पेटदर्द में तत्काल लाभ होगा। यदि पेट में सर्दी समा गई हो तो सेंक दें।

o   बथुआ के 15 ग्राम बीजों को आधा लीटर जल में औटायें। पानी चैथाई भाग शेष रहे तो छानकर सेवन करने से निश्चय ही गर्भपात हो जाता है।

o   यदि लौहसार को सात दिन तक गौमूत्र में पकाया जाये और फिर बारीक पीसकर 4 रत्ती की मात्रा में 4 माशा के गुड़ के साथ 15 दिनों तक लगातार सेवन किया जाये तो किसी भी प्रकार का पान्डु रोग हो, नष्ट हो जाता है।

o   सोंठ का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा सा अरन्ड का तेल डाल दें। इसके पश्चात् उसमें भूनी हुई हींग एवं काला नमक मिलाकर सेवन से भी मूत्राघात रोग नष्ट हो जाता है।

o   गोमूत्र में शुद्ध की गई बाबची व शुद्ध गन्धक को मिलाकर सुबह-शाम मधु के साथ 3 माशे तक सेवन करने से श्वेत कुष्ट रोग नष्ट हो जाता है।

o   रसौंत को स्त्री को दूध में घिसलें उसके बाद शहद में मिलाकर कान में डालने से कान का बहना (कर्णस्त्राव) बन्द हो जाता है।

o   मिश्री तथा इलायची को बारीक पीसकर कान में डालने से कान का बहना तथा बहरापन नष्ट हो जाता है।

o   हरड़ की छाल के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से कन्ठ रोगों में अत्यन्त लाभ होता है।

o   आँवला और हरड़ के काढ़े में घी मिलाकर पीने से ‘चक्कर आना‘ बन्द हो जाता है ।

o   भांग को भून लें और पीसकर चूर्ण बनालें, इसको अल्प मात्रा में शहद के साथ चाटने से नींद आ जाती है। इसी प्रकार पीपलामूल का चूर्ण गुड़ में मिलाकर खाने से गहरी नींद आ जाती है।

o   प्रातःकाल दही, मक्खन और शहद का सेवन करने से खोई जवानी पुनः वापस आ जाती है। चेहरे की झुर्रियां दूर हो जाती है तथा मांसपेशियों की शक्ति बढ़कर स्मरणशक्ति भी मजबूत हो जाती है।

o   पीपल के चूर्ण में शहद मिलाकर खाने से पेट के रोग नष्ट होते है।

o   गेदें के फूल की पत्तियों के रस में बराबर मात्रा में शहद मिलाकर कान में 1-2 बूंद डालने से कान का दर्द मिट जाता है।

o   नीम की पत्तियों को पानी में खौलाकर उसमें गुनगुना शहद डालकर कान को पिचकारी से धेाने से कान का दर्द एवं मवाद नष्ट हो जाता है।

o   मुलायम बारीक कपड़े को शहद में तर करके जले स्थान पर लगाकर पट्टी बांधने से लाभ होता है। यदि घाव हो गया हो तो-घाव को नीम के पानी से धोकर शहद का फाहा लगाकर बाँध देना चाहिए। यदि अकौता हो गया हो तो नीम के पत्तों के उबाले हुए जल से धोकर शहद और नीबूं रस मिलाकर लगाने से लाभ हो जाता है।

o   आक की जड़ का कपड़छन चूर्ण एक छटांक, इतना ही काली मिर्च का चूर्ण तथा मिश्री चूर्ण मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां तैयार कर सुरक्षित रख लें। दमा के रोगी को यह गोलियां सेवन करायें। शर्तिया लाभ होगा।

o   आक की कोपलें 3 तेाला तथा डेढ़ तोला अजवायन लेकर बारीक पीसलें। इसके बाद इसमें 1 छटांक गुड़ मिलाकर 2-2 माशे की गोलियां बनाकर प्रतिदिन प्रातःकाल खाली पेट 1-1 गोली सेवन कराने से दमा रोग सदैव के लिए नष्ट हो जाता है ।

o   इन्द्राजन के बीज 3 माशा तथा कालीमिर्च 5 नग कुटकर 1 पाव पानी में क्वाथ बना लें। पाव शेष रहने पर उतार कर तथा छान प्रातः काल 3-4 बार सेवन करने से रजोदर्शन खुलकर हो जाता है।

o   भारंगी 6 माशा, कश्मीरी केसर 6 रत्ती, गुलकन्द 6 माशा, शुद्ध हीरा हींग 6 रत्ती बारीक पीसकर 20 गोलियां बनाकर छाया में सुखाकर सुरक्षित रख लें। यह 1-1 गोली दिन में 2 बार गरम जल से स्त्री को सेवन कराने से रजोदर्शन हो जाता है।

o   भुनी फिटकरी, गन्धक, चीनी, कच्चा सुहागा, आमलासार को सममात्रा में पीसकर 5 दिन तक दाद पर मलने से दाद नष्ट हो जाता है।

o   चैकिया सुहागा 1 छटांक अदरक के रस में घोटकर दाद पर लगाने से भी दाद नष्ट हो जाता है।

o   आवंले के रस में शहद मिलाकर खाने से सोमरोग (स्त्रियों का रोग) नष्ट हो जाता है।

o   सफेद मूसली, पका हुआ केला, ताड़ की जड़ एवं छुहारा को दूध में घोटकर पीने से मूत्रातिसार रोग नष्ट हो जाता है।

o   कलिहारी की जड़ स्त्री के पैरों में बांधने से बिना पीड़ा के सुगमतापूर्वक प्रसव हो जाता है।

o   हल्दी और धतुरे की जड़ की पानी में पीसकर लेप करने से स्तन-पीड़ा नष्ट हो जाती है।

o   इन्द्रायण की जड़ को पानी में पीसकर लेप करने से स्तनों की पीड़ा नष्ट हो जाती है।

o   सफेद जीरा तथा सैन्धा नमक 50-50 ग्राम, और जामुन की गुठली का सूखा चूर्ण 100 ग्राम, हजरूल यहूद 10 ग्राम को बारीक कूट-पीसकर 11 पुडि़यां बनाकर-1 पुडि़या प्रतिदिन सुबह को सेवन करने से सुजाक नष्ट हो जाता है।

o   चोबचीनी तथा मिश्री बराबर मात्रा में लेकर एक पाव पानी में रात्रि के समय भिगों दें। प्रतिदिन सुबह छानकर सेवन करने से सुजाक नष्ट हो जाता है। प्रयोग 40 दिनों तक करायें।

o   गेरू 8 माशा और तालीस पत्र 6 ताशा को बारीक पीसकर मासिकधर्म के चैथे दिन पानी से सेवन करवा देने से स्त्री सदा के लिए बांझ हो जाती हैं।

o   यदि बालक हो कब्ज हो जाये (दूध न पचे और मल न आये) तो कालानमक, हरड़, और सुहागा घिसकर दूध में पिलाने से कब्ज दूर हो जाती है।

o   कालीमिर्च का चूर्ण तथा तुलसी का रस समभाग मात्रा में पीने से विषम ज्वर दूर हो जाता है।    

o   प्याज का रस 2 लीटर, तथा शहद 1 लीटर को मिलकार अग्नि पर पकावें, शहद शेष रहने पर उतार लें फिर उसमें 4 ग्राम जावित्री, 1 ग्राम कस्तूरी, 4 ग्राम लौंग तथा 4 ग्राम केसर मिलाकर सुरक्षित रखलें। इसे सुबह-शाम 20-20 ग्राम लेकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से नामर्दी मिट जाती है।

o   शहद 20 ग्राम, हीरा हींग 10 ग्राम करें। पहले हीरा हींग को खरल करें, फिर शहद मिलाकर कई घन्टे तक पुनः खरल करें। इस औषधि को लिंग पर 3 ग्राम की मात्रा में लेप करने के बाद बंगला पान का पत्ता बँधवा दें। ठंडे तथा 4 घन्टे बाद इसे खोलकर पुनः लेप करवा कर पान का पत्ता बँधवा दें। लेप के प्रयोग काल में ठंडे जल से लिंग को बचायें। इस प्रयोग के मात्र 1-2 सप्ताह तक करने से ही लिंग में नयी शक्ति आकर नामर्द भी पूर्ण मर्द बन जाता है।

o   यदि गले में घाव हो गये हों तो मसूर की दाल औटाकर 2-3 बार गरारे करवायें या भुने सुहागे के कुल्ले करवायें अथवा कच्ची फिटकरी 5 रत्ती और सोड़ाबाई कार्बन ठन्डे पानी में मिलाकर गरारे करायें। गले के घाव शर्तिया ठीक हो जायेगें

o   यदि दाँतों में कीड़ा लग गया हो तो मुँह खोलकर कलौंजी की धूनी दें, कीड़ा मर जायेगा। या हींग दबायें अथवा हींग और कपूर मिलाकर कीड़े वाले स्थान में भर दें।

o   माजूफल और फिटकरी को औटाकर ठन्डा करके गरारे कराने से पायरिया नष्ट हो जाता है। अथवा-मौलसिरी और सुपारी की छाल जलाकर, कपूर व माजूफल 6-6 माशा तथा यूकिलिप्ट्स 6 माशा, लाहौरी नमक और बड़ी हरड़, की गुठली की गिरी 3-3 माशा को एकत्रकर बारीक पीसकर मंजन बनाकर प्रयोग करने पायरिया जड़-मूल से नष्ट हो जाती है।

o   1 किलो ग्राम शहद, आधा लीटर मीठे अंगूर का रस, 250 ग्राम अदरक का रस, तथा 2 लीटर प्याज के रस को कलईदार बर्तन में एक साथ डालकर मन्द अग्नि पर क्वाथ बनने तक पकायें। फिर उतार कर सुरक्षित रखलें। इस औषधि को 25 ग्राम लेकर दूध के साथ सेवन करें। शक्तिबर्द्धक है।

o   त्रिफला भस्म को शहद के साथ मिलाकर उपदंश पर लगाने से घाव सूख जाते है।

o   पीपल के चूर्ण के साथ शहद मिलाकर चाटने से सर्दी, खाँासी, कफ तथा ज्वर आदि रोग नष्ट हो जाते है।

o   सिरका में शहद और नमक मिलाकर चेहरे पर मलने से झाईयां नष्ट हो जाती है।

o   उठते हुए फोड़े पर-शहद और चूना लगाने से लाभ होता है। सूजन पर भी यह योग हितकारी है।

o   शहद को रूई में भिगोकर योनि में रखने से योनि की गन्दगी निकल जाती है तथा योनिशूल भी नष्ट हो जाता है।

o   मासिकधर्म के पश्चात् भग में कबूतर की बीट रखने से गर्भ ठहरता है।

o   हरड़, रसौंत और सैन्धा नमक पानी में घिसकर आँखों पर लेप करने से रोहे नष्ट हो जाते है।

o   ग्लीसरीन में अफीम मिलाकर डालने से कान का तीव्रशूल भी नष्ट हो जाता है। अजवायन को सरसों के तेल में जलाकर छान लें, इस तेल की 2-3 बूदंे  कान में डालने से भी कान का दर्द दूर हो जाता है।

मंगलवार, 30 सितंबर 2014

आंत उतरना Hernia




           प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार आंत उतरने की बीमारी एक बहुत ही गंभीर समस्या है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है तथा उसे कई प्रकार के पेट के रोग हो जाते हैं।

आंत उतरने के रोग होने के लक्षण:-

     जब किसी व्यक्ति की आंत अपने जगह से उतर जाती है तो उस व्यक्ति के अण्डकोष की सन्धि में गांठे जैसी सूजन पैदा हो जाती है जिसे यदि दबाकर देखा जाए तो उसमें से कों-कों शब्द की आवाज सुनाई देती हैं। आंत उतरने का रोग अण्डकोष के एक तरफ पेड़ू और जांघ के जोड़ में अथवा दोनों तरफ हो सकता है। जब कभी यह रोग व्यक्ति के अण्डकोषों के दोनों तरफ होता है तो उस रोग को हार्निया रोग के नाम से जाना जाता है। वैसे इस रोग की पहचान अण्डकोष का फूल जाना, पेड़ू में भारीपन महसूस होना, पेड़ू का स्थान फूल जाना आदि। जब कभी किसी व्यक्ति की आंत उतर जाती है तो रोगी व्यक्ति को पेड़ू के आस-पास दर्द होता है, बेचैनी सी होती है तथा कभी-कभी दर्द बहुत तेज होता है और इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। कभी-कभी तो रोगी को दर्द भी नहीं होता है तथा वह धीरे से अपनी आंत को दुबारा चढ़ा लेता है। आंत उतरने की बीमारी कभी-कभी धीरे-धीरे बढ़ती है तथा कभी अचानक रोगी को परेशान कर देती है।

आंत उतरने का कारण:-

          प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार यह रोग व्यक्ति को आन्त्रवृद्धि, पेड़ू में विकृत पदार्थ का अनावश्यक भार जाने के फलस्वरूप, तल-पेट की मांसपेशियों की कमजोरी हो जाने के कारण होता है। आंत में पेट के सारे पाचनतंत्र रहते हैं।

प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार देखा जाए तो आंत निम्नलिखित कारणों से  उतर जाती है-

1. कठिन व्यायाम करने के कारण आंत उतरने का रोग हो जाता है।

2. पेट में कब्ज होने पर मल का दबाव पड़ने के कारण आंत उतरने का रोग हो जाता है।

3. भोजन सम्बन्धी गड़बड़ियों तथा शराब पीने के कारण भी आंत अपनी जगह से उतर जाती है।

4. मल-मूत्र के वेग को रोकने के कारण भी आंत अपनी जगह से उतर जाती है।

5. खांसी, छींक, जोर की हंसी, कूदने-फांदने तथा मलत्याग के समय जोर लगाने के कारण आंत अपनी जगह से उतर जाती है।

6. पेट में वायु का प्रकोप अधिक होने से आंत अपनी जगह से उतर जाती है।

7. अधिक पैदल चलने से भी आंत अपनी जगह से उतर जाती है।

8. भारी बोझ उठाने के कारण भी आंत अपनी जगह से उतर जाती है।

9. शरीर को अपने हिसाब से अधिक टेढ़ा-मेढ़ा करने के कारण आंत अपनी जगह से उतर जाती है।

आंत उतरने से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

1. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार जब किसी व्यक्ति की आंत उतर जाती है तो रोगी व्यक्ति को तुरन्त ही शीर्षासन कराना चाहिए या उसे पेट के बल लिटाना चाहिए। इसके बाद उसके नितम्बों को थोड़ा ऊंचा उठाकर उस भाग को उंगुलियों से सहलाना और दबाना चाहिए। जहां पर रोगी को दर्द हो रहा हो उस भाग पर दबाव हल्का तथा सावधानी से देना चाहिए। इस प्रकार की क्रिया करने से रोगी व्यक्ति की आंत अपने स्थान पर आ जाती है। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने के बाद रोगी को स्पाइनल बाथ देना चाहिए, जिसके फलस्वरूप रोगी व्यक्ति की पेट की मांसपेशियों की शक्ति बढ़ जाती है तथा अण्डकोष संकुचित हो जाते हैं।

2. रोगी की आंत को सही स्थिति में लाने के लिए उसके शुक्र-ग्रंथियों पर बर्फ के टुकड़े रखने चाहिए जिसके फलस्वरूप उतरी हुई आंत अपने स्थान पर आ जाती है।

3. यदि किसी समय आंत को अपने स्थान पर लाने की क्रिया से आंत अपने स्थान पर नहीं आती है तो रोगी को उसी समय उपवास रखना चाहिए। यदि रोगी के पेट में कब्ज हो रही हो तो एनिमा क्रिया के द्वारा थोड़ा पानी उसकी बड़ी आंत में चढ़ाकर, उसमें स्थित मल को बाहर निकालना चाहिए इसके फलस्वरूप आंत अपने मूल स्थान पर वापस चली जाती है।

4. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार इस रोग का उपचार करने के लिए हार्निया की पट्टी का प्रयोग करना चाहिए। इस पट्टी को सुबह के समय से लेकर रात को सोने के समय तक रोगी के पेट पर लगानी चाहिए। यह पट्टी तलपेट के ऊपर के भाग को नीचे की ओर दबाव डालकर रोके रखती है जिसके फलस्वरूप रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने से उसकी मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं और रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। ठीक रूप से लाभ के लिए रूग्णस्थल (रोग वाले भाग) पर प्रतिदिन सुबह और शाम को चित्त लेटकर नियमपूर्वक मालिश करनी चाहिए। मालिश का समय 5 मिनट से आरम्भ करके धीरे-धीरे बढ़ाकर 10 मिनट तक ले जाना चाहिए। रोगी के शरीर पर मालिश के बाद उस स्थान पर तथा पेड़ू पर मिट्टी की गीली पट्टी का प्रयोग लगभग आधे घण्टे तक करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

5. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोगी व्यक्ति के पेट पर मालिश और मिट्टी लगाने तथा रोगग्रस्त भाग पर भाप देने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

6. इस रोग का इलाज करने के लिए पोस्ता के डोण्डों को पुरवे में पानी के साथ पकाएं तथा जब पानी उबलने लगे तो उसी से रोगी के पेट पर भाप देनी चाहिए और जब पानी थोड़ा ठंडा हो जाए तो उससे पेट को धोना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

निम्नलिखित व्यायामों के द्वारा आंत उतरने के रोग को ठीक किया जा सकता है-

1. यदि आंत उतर गई हो तो उसका उपचार करने के लिए सबसे पहले  रोगी के पैरों को किसी से पकड़वा लें या फिर पट्टी से चौकी के साथ बांध दें और हाथ कमर पर रखें। फिर इसके बाद रोगी के सिर और कन्धों को चौकी से 6 इंच ऊपर उठाकर शरीर को पहले बायीं ओर और फिर पहले वाली ही स्थिति में लाएं और शरीर को उठाकर दाहिनी ओर मोड़े। फिर हाथों को सिर के ऊपर ले जाएं और शरीर को उठाने का प्रयत्न करें। यह कसरत कुछ कठोर है इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि अधिक जोर न पड़े। सबसे पहले इतनी ही कोशिश करें जिससे पेशियों पर तनाव आए, फिर धीरे-धीरे बढ़ाकर इसे पूरा करें। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

2. प्राकृतिक चिकित्सा से इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को सीधे लिटाकर उसके घुटनों को मोड़ते हुए पेट से सटाएं और तब तक पूरी लम्बाई में उन्हें फैलाएं जब तक उसकी गति पूरी न हो जाए और चौकी से सट न जाए। इस प्रकार से रोगी का इलाज करने से रोगी का रोग ठीक हो जाता है।

3. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोगी व्यक्ति का इलाज करने के लिए रोगी के दोनों हाथों को फैलाकर चौकी के किनारों को पकड़ाएं और उसके पैरों को जहां तक फैला सकें उतना फैलाएं। इसके बाद रोगी के सिर को ऊपर की ओर फैलाएं। इससे रोगी का यह रोग ठीक हो जाता है।

4. रोगी व्यक्ति का इलाज करने के लिए रोगी व्यक्ति को हाथों से चौकी को पकड़वाना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी अपने पैरों को ऊपर उठाते हुए सिर के ऊपर लाएं और चौकी की ओर वापस ले जाते हुए पैरों को लम्बे रूप में ऊपर की ओर ले जाएं। इसके बाद अपने पैरों को पहले बायीं ओर और फिर दाहिनी ओर जहां तक नीचे ले जा सकें ले जाएं। इस क्रिया को करने में ध्यान इस बात पर अधिक देना चाहिए कि जिस पार्श्व से पैर मुड़ेंगे उस भाग पर अधिक जोर न पड़े। यदि रोगी की आन्त्रवृद्धि दाहिनी तरफ है तो उस ओर के पैरों को मोड़ने की क्रिया बायीं ओर से अधिक बार होनी चाहिए। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने से रोगी की आंत अपनी जगह पर आ जाती है।

5. कई प्रकार के आसनों को करने से भी आंत अपनी जगह पर वापस आ जाती है जो इस प्रकार हैं- अर्द्धसर्वांगासन, पश्चिमोत्तानासन, भुजंगासन, सर्वांगासन, शीर्षासन और शलभासन आदि।

6. आंत को अपनी जगह पर वापस लाने के लिए सबसे पहले रोगी को पहले दिन उपवास रखना चाहिए। इसके बाद रोग को ठीक करने के लिए केवल फल, सब्जियां, मट्ठा तथा कभी-कभी दूध पर ही रहना चाहिए। यदि रोगी को कब्ज हो तो सबसे पहले उसे कब्ज का इलाज कराना चाहिए। फिर सप्ताह में 1 दिन नियमपूर्वक उपवास रखकर एनिमा लेना चाहिए। इसके बाद सुबह के समय में कम से कम 1 बार ठंडे जल का एनिमा लेना चाहिए और रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में पहले गर्म जल से स्नान करना चाहिए तथा इसके बाद फिर ठंडे जल से। फिर सप्ताह में एक बार पूरे शरीर पर वाष्पस्नान भी लेना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को तख्त पर सोना चाहिए तथा सोते समय सिर के नीचे तकिया रखना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को अपनी कमर पर गीली पट्टी बांधनी चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

7. इस रोग से पीड़ित रोगी को गहरी नीली बोतल के सूर्यतप्त जल को लगभग 50 मिलीलीटर की मात्रा में रोजाना लगभग 6 बार लेने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

मांस-पेशियों में खिंचाव Strain in the muscles



         कोई व्यक्ति कितना भी स्वस्थ क्यों न हो उसकी मांसपेशियों में कभी न कभी खिंचाव जरूर आ जाता है।
मांसपेशियों में खिंचाव आने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
•मांसपेशियों में खिंचाव आने पर रोगी व्यक्ति को पूरी तरह से आराम करना चाहिए।
•रोगी को अपनी मांसपेशियों पर हर 2 घण्टे के अन्तराल पर आधे घण्टे के लिए बर्फ से मालिश करनी चाहिए।
•मांसपेशियों में खिंचाव से पीड़ित रोगी को गर्म तथा ठंडा स्नान करना चाहिए।
•मांसपेशियों में खिंचाव से पीड़ित रोगी को विटामिन `सी´ की मात्रा वाली चीजों का भोजन में अधिक सेवन करना चाहिए।
•मांसपेशियों में खिंचाव आने पर तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए जिसके फलस्वरूप दर्द जल्दी ही ठीक हो जाता है।

Featured post

इस फ़ार्मूले के हिसाब से पता कर सकती हैं अपनी शुभ दिशाऐं

महिलाएँ ...इस फ़ार्मूले के हिसाब से पता कर सकती हैं अपनी शुभ दिशाऐं।   तो ये है इस फ़ार्मूले का राज... 👇 जन्म वर्ष के केवल आख़री दो अंकों क...