बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

गुलाब Rosa damacena, Rosa Indica


सुन्दरता का यह पौधा प्राय: सभी घरों में गमलों अथवा जमीन पर लगाया हुआ दिखार्इ दिया जा सकता है। इसकी अनेको रंग बिरंगी देसी व कलमी किस्में सभी पौधशालाओं मेें बहुलता से उपलब्ध होती है। हम इसको केवल औषध के रूप में उपयुक्ता के आधार पर वर्णित कर रहे है। ये मुख्यतया चैतर्इ गुलाब जो साल भर में केवल चैत्र मास ही में फूल देते है; देसी गुलाबी गुलाब व साल भर बहुलता से फूल देने वाला गंगानगरी लाल गुलाब है।

सबसे उपयुक्त चेतर्इ गुलाब राजस्थान में बहुत थोडे क्षेत्र में हल्दीघाटी (खमनोर) में उगाया जाता है जिसका श्रीनाथ मंदिर नाथद्वारा में चैत्र मास में पहला भोग लगाया जाता है व इन फूलो से विश्वप्रसिद्ध गुलाब का तेल व इत्र, गुलाब जल, शरबत व गुलकन्द बनता है। उत्तर प्रदेश के कन्नोज, अलीगढ, गाजीपुर, बलिया आदि क्षेत्रों में व्यवसायिक स्तर पर खेती की जाती है।

औषधि के रूप में गुलाब जल को काजल, अंजन और आँखो के घावों आदि में उपयोग किया जाता है। तेल को अनेक अप्रिय स्वाद और गंधवाली वस्तुओं में मिलाकर प्रिय बनाया जाता है। इत्र को सुगंध उधोग में बहुतायत से उपयोग किया जाता है। गुलाब का शरबत गर्मियो में स्फूर्तिदायक पेय के रूप में व पंखुडियाँ आदि गुलकन्द व मिठाइयों में काम आती है।

मीठा नीम (कडी पत्ता) – Meetha Neem (Muraya Koinigi)



meetha neemबहु उपयोगी मीठे नीम का छोटा वृक्ष (झाड़) बडे गमले में आसानी से उगाया जा सकता है। कढ़ी, दाल, सब्जी, पुलाव, नमकीन आदि भोज्य पदार्थो में इसके ताजे हरे पत्ते छोंक देते समय तप्त घी या तेल में डाल कर भून कर मिला लें तो सब्जी में सुगंध आने लगती है व आहार में अत्यधिक बीटा कैरोटीन, प्रोटीन, लोह, फासफोरस, विटामिन ‘सी आदि पोषक तत्व सहज ही प्राप्त हो जाते है।

प्रयोग :

    मूँग की दाल में मीठे नीम के पत्तों का छोंक लगाकर सेवन करने से अपानवायू दूर होती है, भूख खुलकर लगती है तथा भोजन शीघ्र पचता है।
    पेशाब में जलन होने पर इसके पत्तों व डन्डी को उबालकर व ठंडा करके पिलाने से आराम मिलता है। इसमें छोटी इलायची के दानों का चूर्ण मिलाना ज्यादा हितकारी है। इसे पीने से मूत्रावरोध दूर होकर मूत्र साफ आता है।
    वंशानुकूलजनित मधुमेह में प्रतिदिन दस पत्तियों को सुबह-सुबह चबाकर खाने से तीन महिने में ही लाभ मिल जाता है। मोटापाजनित मधुमेह भी ठीक होता है।
    इसकी पत्तियों को पीस कर छाछ या लस्सी के साथ लेने से बाल जड़ो से मजबूत व चमकीले बनकर स्वस्थ हो जाते हैं तथा केशो का झड़ना या गिरना रूक जाता है। इसकी पत्तियों को नारियल के तेल में जलाकर काली पडे तब तक उबालकर उस तेल को बालों में लगाने से बालों को ताकत मिलती है, बाल बढते हैं तथा बालों की चमक बरकरार रहती है।

मीठे नीम की पत्तियों में हर्बल टानिक के गुण पाये जाते हैं, ये शरीर की पाचन क्रिया को मजबूती देती है तथा शरीर को स्वस्थ रखने में सहायता प्रदान करती है अत: इसको हर घर में लगाना उपयुक्त है।

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

मर्दाना बाँझ पतन



o   प्रजनन  अंगो की अल्पक्रियता, अन्डग्रन्थि दौबल्र्य एवं शुक्रजनन नलिका के अपजनन आदि ही पुरूष बाँझपन के प्रमुख कारण है। शुक्रवाहिनी नलिका का अवरोध जन्मजात भी हो सकता है तथा पूयमेह (गोनोरिया) व मम्मपस एवं वृषण के राजयक्ष्मा के कारण भी हो सकता है। जन्मजात कारण में अन्डों का अत्यन्त छोटा होना भी सम्मिलित है। ‘एन्ड्रोजन‘ नामक पुरूष ‘हार्मोन‘ का उत्पादन कम होना या शुक्राणुओं का उत्पादन करने वाले अथवा शुक्राणुओं को बहाने वाले स्त्रोतों की विकृति भी पुरूष बांझपन के प्रमुख कारणों में से है। शुक्रकीट मृत होने से या अल्पमात्रा में होने से भी गर्भाधान नही होता हैं।

·         शुक्रकीट अल्पता, व निष्क्रयता में अन्ड-ग्रन्थि की रूग्णता व अनुपस्थिति, शुक्रवाहिनी व पौरूष ग्रन्थि की रूग्णता व अनुपस्थिति, अत्यधिक मैथुन तथा शुक्रवाहिनी व पौरूष ग्रन्थि की जीर्णशोथ या आघात व शल्य कर्मजन्य विकृतियां भी पुरूष बांझपन के कारणों में सहायक होती है।

·         उपचार:- बसन्त कुसुमाकर रस 1 गोली, अमृतासत्व, स्वर्णबंग (प्रत्येक-2-2 रत्ती) शतावर्यादि चूर्ण 1 माशा की (एक मात्रा) दिन में दो बार सुबह-शाम दूध से सेवन करने पर चालीस दिन में शुक्राणुओं की वृद्धि हो जाती है।

मोटापा नाशक



o   प्रातःकाल चावलों का गर्म-गर्म मांड़ नमक मिलाकर पिया करें। या गिलोय का चूर्ण और त्रिफला दोनों 3-3 ग्राम लेकर प्रायः सायं मधु में मिलाकर चाटें।

o   भोजपत्र 10 ग्राम को चाय की भाँति उबाल कर पिया करें।

o   प्रतिदिन पानी में शहद मिलाकर पियें।

o   नंगे बदन अधिक से अधिक समय सूर्य के प्रकाश (धूप) में व्यतीत किया करें।

o   हरी साग सब्जियों तथा फलों, तथा चोकर युक्त आटे की रोटियों का प्रयोग करे तथा भोजन के साथ जल न पिया करें, जल भोजन के 1 घन्टा बाद थोड़ा-थोड़ा पिया करें।

o   25 ग्राम नीबू के रस में 125 ग्राम पानी मिलाकर (यथा स्वाद शहद भी मिलालें) खूब घोल कर शर्बत सा बनाकर लगातार 2-3 मास सेवन करें, शरीर में चाहें कैसी भी चर्बी बढ़ी हो घट जाती है। भोजन दिन में 1 बार हल्का करें तथा शाम को केवल फलाहार करें।

पुत्र उत्पन्न करने के योग




o   मोर के पंख के आसमानी रंग के चाँद (टुकड़े) की कैंची से बारीक काटकर और गुड़ में लपेटकर एक गोली बनालें। इस प्रकार तीन चाँदों की 3 गोलियाँ बनायें, फिर दो मास का गर्भ पूरा होने पर अर्था 61, 62, 63 वें दिन 1-1- गोली प्रातः काल बछड़े वाली गौ के दूध के साथ गर्भवती को सेवन करायें शर्तिया लड़का होगा। हजारों बार परीक्षित है। नोटः- चाँदों की कतरन (चूरा) को कैपसूल में भरकर भी प्रयोग किया जा सकता हैं

o   ऋ़तुकाल में पलाश (ढाक) का पत्ता दूध में पीसकर पिलाने से भी होने वाली सन्तान शर्तिया लड़का ही होता है।

o   गर्भवती होने पर प्रथम मास में ही शिवलिंगी के 9 या 11 बीजों का चूर्ण बछड़े वाली गाय के दूध के साथ प्रातः काल फाँकने से शिव के समान पराक्रमी पुत्र ही उत्पन्न होता है। गर्भ का ज्ञान होते ही यह प्रयोग करलें, इसमें देरी न करें।

o   भांग के 9 बीज गुड़ में रखकर गोली बनालें। गर्भ के तीसरे माह के प्रारम्भ में प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर यह गोली खिलाकर उपर से बछड़े वाली गाय का धारोष्ण दूध के पिलाने से शर्तिया पुत्र ही उत्पन्न होता है।

o   पुष्य नक्षत्र में लक्ष्मण बूंटी (हरिद्वार की अधिक श्रेष्ठ रहती है) की जड़ किसी कुंआरी कन्या के हाथों पिसवाकर, मासिक धर्म समाप्त होने के बाद, स्नान आदि करके तुरन्त प्रयोग करें। इस प्रकार प्रति माह यह प्रयोग जारी रखें। इस प्रयोग काल में जब भी गर्भ धारण होगा तो निश्चित ही पुत्र ही पैदा होगा।

o   बिजौरे के बीजों को दूध में पीसकर मासिकधर्म के दिनों लगातार 5 दिनों तक प्रयोग कराने से अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

o   असगन्ध का काढ़ा तैयार करें, उसको दूध में डालकर उसके बराबर घी और मिश्री मिलाकर मासिकधर्म के दिनों में 5 दिन प्रयोग करायें, निश्चय ही गर्भवती होने पर पुत्र की ही प्राप्ति होगी।


संतान प्राप्ती (Baby)





o   कस्तूरी 2 रत्ती, अफीम, केसर, जायफल (प्रत्येक 1-1 माशा) भांग के पत्ते 2 रत्ती तथा पुराना गुड़, सफेद कत्था (प्रत्येक 5 माशा 2 रत्ती) सुपारी गुजराती 3 नग एवं लौंग 4 नग लें। सभी औषधियों को कूट छानकर जंगली बेर के समान गोलियाँ बनाकर मासिकधर्म के पश्चात् 1-1- गोली सुबह-शाम (5 दिन) खिलायें।

·         नोट - इस योग के प्रयोग से 40-50 वर्ष की स्त्री (जिसे मासिक आ रहा हो) का भी बांझपन रोग दूर होकर गर्भ ठहर जाया करता है, यदि प्रथम मास के प्रयोग से गर्भ न ठहरे तो यह प्रयोग जब तक गर्भ न ठहरे (दूसरे या तीसरे मास) तक कर सकते है।

o   मोर के पंख के बीच वाले भाग (सुन्दर, गोल, चाँद) 9 नग लेकर गरम तवे पर भूनकर, बारीक पीसकर पुराने गुड़ में खूब मिलाकर नौ गोलियाँ बना लें। मासिक धर्म आने के दिनों में प्रतिदिन एक गोली 9 दिनों तक प्रातः सूर्योदय से पूर्व, दूध के साथ सेवन करायें। इसके पश्चात् दम्पत्ति खुश होकर (प्रसन्न मुद्रा में) सम्भोग करें। गर्भ ठहर जायेगा। यदि प्रयोग प्रथम मास में असफल रहे तो पुनः दूसरे या तीसरे मास प्रयोग करें।

o   मासिकधर्म के पश्चात् प्रतिदिन 8 दिनों तक असली नागेश्वर का चूर्ण 3-3 ग्राम गाय के घी में मिलाकर सेवन करने से मात्र पहिले या दूसरे महीने में ही अवश्य गर्भ ठहर जाता है। औषधि का सेवन प्रतिदिन 2 बार सुबह-शाम करायें।

o   शिवलिंगी के बीज, नागौरी असगन्ध, असली नागकेशर, मुलहठी, कमलकेसर, असली वंशलोचन (प्रत्येक 10-10 ग्राम) मिश्री 100 ग्राम लें। सभी औषधियों को कूट-पीसकर चूर्ण बनायें। मासिकधर्म के पश्चात् प्रतिदिन बार (सुबह, दोपहर, शाम) 6-6 ग्राम की मात्रा में बछड़े वाली गोदुग्ध के साथ प्रयोग करने से तथा स्त्री-पुरूष का 1 माह पूर्व से ब्रह्मचर्य का पालन करने तथा औषधि प्रयोग के 12वीं रात्रि सम्भोग करने से अवश्य गर्भ रहता है। एक मास में 1 बार ही सम्भोग करें। अधिक से अधिक 4 मास के प्रयोग से ही अवश्य गर्भ ठहर जाता है।


कुछ घरेलू उपचार (Tips)



o   साठी की जड़, दारू हल्दी, गोखरू, पाढल़, एवं निशोध को समभाग लें तथा बारीक कूटपीसकर दस माशा गोमूत्र के साथ पीने से समस्त प्रकार की सूजन नष्ट हो जाती है।

o   योनि की खुजली में सन्दल का तेल लगाना हितकारी है।

o   मोर के पंख की राख तथा जली हुई पीपल को शहद के साथ चटाने से हिचकी आना और वमन होना बन्द हो जाता है। जल से सैंधा नमक बारीक पीसकर नस्य देने से भी हिचकियाँ आना (हिक्कारोग) नष्ट हो जाता है।

o   योनि की खुजली के लिए गन्धक का मलहम तथा नीम का औटाया हुआ गुनगुना जल भी अत्यन्त लाभ होता है।

o   बड़ी इलायची तथा माजूफल को समभाग में लेकर बारीक पीस लें इसके बाद दोनों बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सुरक्षित रखलें। इस चूर्ण को 2-2 माशा की मात्रा में सुबह-शाम ताजा जल से सेवन कराने से कठिन से कठिन श्वेत प्रदर का रोग भी जड़ मूल से नष्ट हो जाता है।

o   पीपल की लाख बारीक पीसकर (चूर्ण बनाकर) 6 से 8 माशा तक की मात्रा में बकरी दूध के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर रोगों का नाश हो जाता है।

o   नीलोफर के फूल गाय के दूध के साथ पीसकर योनि पर लेप करने से (मात्र 10 दिनों में ही प्रयोग से) योनि संकुचित हो जाती है।

o   आक के फूलों को गाय के दूध के साथ पीसकर लगभग 30 दिन तक प्रातःकाल पीने से मूत्र की जलन व पथरी रोग जड़ से नष्ट हो जाता हैं।

o   माजूफल और फिटकरी को फूला समभाग लेकर पोटली बना लें। उसे योनि में रखने से (मात्र 7 से 14 दिनों तक प्रयोग से ही) योनि संकुचित हो जाती है।

o   आक की जड़ का छिलका 1 तोला की मात्रा में लेकर साफ-स्वच्छ कर ठन्डाई के समान जल में घोटकर पिलाने से सर्पविष उतर जाता है तथा आक की कुछ कोपलें चबाकर खाने से भी सर्प का विष उतर जाता है।

o   सफेद मूसली, काली मूसली, असगन्ध तीनों को समभाग लेकर दूध में काढ़ा बना लें। उसमें 2 तोला मिश्री मिलाकर सेवन करने से स्त्रियों के दिल, दिमाग की कमजोरी, धड़कन एवं घबराहट दूर हो जाती है।

o   खूनी पेचिश हो जाने पर नींबू मिलाकर दूध को फाड़ लें। छेना और पानी अलग-अलग कर लें। रोगी को फटे दूध का अलग किया पानी दिन भर में कई बार पिलायें। खूनी पेचिश में लाभप्रद योग है।

o   यदि गर्मी के कारण क्षुधा-नाश (भूख बन्द होना) हो गई हो तो 3-4 आलू-बुखारे पानी में भिगोकर प्रातः काल मसलकर सेवन करायें। गर्मी शान्त होगी तथा भूख लगेगी।

o   आलू बुखारा तथा इमली की चटनी खाने से भी गर्मी शान्त होकर भूख बढ़ती है।

o   एक तोला अकरकरा को तेज सिरके में 3 बार डुबाकर सुखा लें फिर उसमें 3 तोला शहद मिला लें। इसे सुबह-शाम 1-1 तोला की मात्रा में खिलाने से मृगी रोग नष्ट हो जाता है।

o   प्याज और नकछिकनी को पीसकर नस्य लेने से भी मृगी रोग दूर हो जाता है।

o   पीले रंग के आक के पत्ते लेकर उन पर घी चुपड़कर आग पर सेंक लें। फिर उसका रस निकला कर हल्का गरम करके कानों में डालने से कर्ण पीड़ा दूर हो जाती हैं।

o   आंक के फूल की एक लौंग 1 रत्ती पीसकर गोली बनालें। इस गोली को गरम जल के साथ सेवन करायें। पेटदर्द में तत्काल लाभ होगा। यदि पेट में सर्दी समा गई हो तो सेंक दें।

o   बथुआ के 15 ग्राम बीजों को आधा लीटर जल में औटायें। पानी चैथाई भाग शेष रहे तो छानकर सेवन करने से निश्चय ही गर्भपात हो जाता है।

o   यदि लौहसार को सात दिन तक गौमूत्र में पकाया जाये और फिर बारीक पीसकर 4 रत्ती की मात्रा में 4 माशा के गुड़ के साथ 15 दिनों तक लगातार सेवन किया जाये तो किसी भी प्रकार का पान्डु रोग हो, नष्ट हो जाता है।

o   सोंठ का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा सा अरन्ड का तेल डाल दें। इसके पश्चात् उसमें भूनी हुई हींग एवं काला नमक मिलाकर सेवन से भी मूत्राघात रोग नष्ट हो जाता है।

o   गोमूत्र में शुद्ध की गई बाबची व शुद्ध गन्धक को मिलाकर सुबह-शाम मधु के साथ 3 माशे तक सेवन करने से श्वेत कुष्ट रोग नष्ट हो जाता है।

o   रसौंत को स्त्री को दूध में घिसलें उसके बाद शहद में मिलाकर कान में डालने से कान का बहना (कर्णस्त्राव) बन्द हो जाता है।

o   मिश्री तथा इलायची को बारीक पीसकर कान में डालने से कान का बहना तथा बहरापन नष्ट हो जाता है।

o   हरड़ की छाल के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से कन्ठ रोगों में अत्यन्त लाभ होता है।

o   आँवला और हरड़ के काढ़े में घी मिलाकर पीने से ‘चक्कर आना‘ बन्द हो जाता है ।

o   भांग को भून लें और पीसकर चूर्ण बनालें, इसको अल्प मात्रा में शहद के साथ चाटने से नींद आ जाती है। इसी प्रकार पीपलामूल का चूर्ण गुड़ में मिलाकर खाने से गहरी नींद आ जाती है।

o   प्रातःकाल दही, मक्खन और शहद का सेवन करने से खोई जवानी पुनः वापस आ जाती है। चेहरे की झुर्रियां दूर हो जाती है तथा मांसपेशियों की शक्ति बढ़कर स्मरणशक्ति भी मजबूत हो जाती है।

o   पीपल के चूर्ण में शहद मिलाकर खाने से पेट के रोग नष्ट होते है।

o   गेदें के फूल की पत्तियों के रस में बराबर मात्रा में शहद मिलाकर कान में 1-2 बूंद डालने से कान का दर्द मिट जाता है।

o   नीम की पत्तियों को पानी में खौलाकर उसमें गुनगुना शहद डालकर कान को पिचकारी से धेाने से कान का दर्द एवं मवाद नष्ट हो जाता है।

o   मुलायम बारीक कपड़े को शहद में तर करके जले स्थान पर लगाकर पट्टी बांधने से लाभ होता है। यदि घाव हो गया हो तो-घाव को नीम के पानी से धोकर शहद का फाहा लगाकर बाँध देना चाहिए। यदि अकौता हो गया हो तो नीम के पत्तों के उबाले हुए जल से धोकर शहद और नीबूं रस मिलाकर लगाने से लाभ हो जाता है।

o   आक की जड़ का कपड़छन चूर्ण एक छटांक, इतना ही काली मिर्च का चूर्ण तथा मिश्री चूर्ण मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां तैयार कर सुरक्षित रख लें। दमा के रोगी को यह गोलियां सेवन करायें। शर्तिया लाभ होगा।

o   आक की कोपलें 3 तेाला तथा डेढ़ तोला अजवायन लेकर बारीक पीसलें। इसके बाद इसमें 1 छटांक गुड़ मिलाकर 2-2 माशे की गोलियां बनाकर प्रतिदिन प्रातःकाल खाली पेट 1-1 गोली सेवन कराने से दमा रोग सदैव के लिए नष्ट हो जाता है ।

o   इन्द्राजन के बीज 3 माशा तथा कालीमिर्च 5 नग कुटकर 1 पाव पानी में क्वाथ बना लें। पाव शेष रहने पर उतार कर तथा छान प्रातः काल 3-4 बार सेवन करने से रजोदर्शन खुलकर हो जाता है।

o   भारंगी 6 माशा, कश्मीरी केसर 6 रत्ती, गुलकन्द 6 माशा, शुद्ध हीरा हींग 6 रत्ती बारीक पीसकर 20 गोलियां बनाकर छाया में सुखाकर सुरक्षित रख लें। यह 1-1 गोली दिन में 2 बार गरम जल से स्त्री को सेवन कराने से रजोदर्शन हो जाता है।

o   भुनी फिटकरी, गन्धक, चीनी, कच्चा सुहागा, आमलासार को सममात्रा में पीसकर 5 दिन तक दाद पर मलने से दाद नष्ट हो जाता है।

o   चैकिया सुहागा 1 छटांक अदरक के रस में घोटकर दाद पर लगाने से भी दाद नष्ट हो जाता है।

o   आवंले के रस में शहद मिलाकर खाने से सोमरोग (स्त्रियों का रोग) नष्ट हो जाता है।

o   सफेद मूसली, पका हुआ केला, ताड़ की जड़ एवं छुहारा को दूध में घोटकर पीने से मूत्रातिसार रोग नष्ट हो जाता है।

o   कलिहारी की जड़ स्त्री के पैरों में बांधने से बिना पीड़ा के सुगमतापूर्वक प्रसव हो जाता है।

o   हल्दी और धतुरे की जड़ की पानी में पीसकर लेप करने से स्तन-पीड़ा नष्ट हो जाती है।

o   इन्द्रायण की जड़ को पानी में पीसकर लेप करने से स्तनों की पीड़ा नष्ट हो जाती है।

o   सफेद जीरा तथा सैन्धा नमक 50-50 ग्राम, और जामुन की गुठली का सूखा चूर्ण 100 ग्राम, हजरूल यहूद 10 ग्राम को बारीक कूट-पीसकर 11 पुडि़यां बनाकर-1 पुडि़या प्रतिदिन सुबह को सेवन करने से सुजाक नष्ट हो जाता है।

o   चोबचीनी तथा मिश्री बराबर मात्रा में लेकर एक पाव पानी में रात्रि के समय भिगों दें। प्रतिदिन सुबह छानकर सेवन करने से सुजाक नष्ट हो जाता है। प्रयोग 40 दिनों तक करायें।

o   गेरू 8 माशा और तालीस पत्र 6 ताशा को बारीक पीसकर मासिकधर्म के चैथे दिन पानी से सेवन करवा देने से स्त्री सदा के लिए बांझ हो जाती हैं।

o   यदि बालक हो कब्ज हो जाये (दूध न पचे और मल न आये) तो कालानमक, हरड़, और सुहागा घिसकर दूध में पिलाने से कब्ज दूर हो जाती है।

o   कालीमिर्च का चूर्ण तथा तुलसी का रस समभाग मात्रा में पीने से विषम ज्वर दूर हो जाता है।    

o   प्याज का रस 2 लीटर, तथा शहद 1 लीटर को मिलकार अग्नि पर पकावें, शहद शेष रहने पर उतार लें फिर उसमें 4 ग्राम जावित्री, 1 ग्राम कस्तूरी, 4 ग्राम लौंग तथा 4 ग्राम केसर मिलाकर सुरक्षित रखलें। इसे सुबह-शाम 20-20 ग्राम लेकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से नामर्दी मिट जाती है।

o   शहद 20 ग्राम, हीरा हींग 10 ग्राम करें। पहले हीरा हींग को खरल करें, फिर शहद मिलाकर कई घन्टे तक पुनः खरल करें। इस औषधि को लिंग पर 3 ग्राम की मात्रा में लेप करने के बाद बंगला पान का पत्ता बँधवा दें। ठंडे तथा 4 घन्टे बाद इसे खोलकर पुनः लेप करवा कर पान का पत्ता बँधवा दें। लेप के प्रयोग काल में ठंडे जल से लिंग को बचायें। इस प्रयोग के मात्र 1-2 सप्ताह तक करने से ही लिंग में नयी शक्ति आकर नामर्द भी पूर्ण मर्द बन जाता है।

o   यदि गले में घाव हो गये हों तो मसूर की दाल औटाकर 2-3 बार गरारे करवायें या भुने सुहागे के कुल्ले करवायें अथवा कच्ची फिटकरी 5 रत्ती और सोड़ाबाई कार्बन ठन्डे पानी में मिलाकर गरारे करायें। गले के घाव शर्तिया ठीक हो जायेगें

o   यदि दाँतों में कीड़ा लग गया हो तो मुँह खोलकर कलौंजी की धूनी दें, कीड़ा मर जायेगा। या हींग दबायें अथवा हींग और कपूर मिलाकर कीड़े वाले स्थान में भर दें।

o   माजूफल और फिटकरी को औटाकर ठन्डा करके गरारे कराने से पायरिया नष्ट हो जाता है। अथवा-मौलसिरी और सुपारी की छाल जलाकर, कपूर व माजूफल 6-6 माशा तथा यूकिलिप्ट्स 6 माशा, लाहौरी नमक और बड़ी हरड़, की गुठली की गिरी 3-3 माशा को एकत्रकर बारीक पीसकर मंजन बनाकर प्रयोग करने पायरिया जड़-मूल से नष्ट हो जाती है।

o   1 किलो ग्राम शहद, आधा लीटर मीठे अंगूर का रस, 250 ग्राम अदरक का रस, तथा 2 लीटर प्याज के रस को कलईदार बर्तन में एक साथ डालकर मन्द अग्नि पर क्वाथ बनने तक पकायें। फिर उतार कर सुरक्षित रखलें। इस औषधि को 25 ग्राम लेकर दूध के साथ सेवन करें। शक्तिबर्द्धक है।

o   त्रिफला भस्म को शहद के साथ मिलाकर उपदंश पर लगाने से घाव सूख जाते है।

o   पीपल के चूर्ण के साथ शहद मिलाकर चाटने से सर्दी, खाँासी, कफ तथा ज्वर आदि रोग नष्ट हो जाते है।

o   सिरका में शहद और नमक मिलाकर चेहरे पर मलने से झाईयां नष्ट हो जाती है।

o   उठते हुए फोड़े पर-शहद और चूना लगाने से लाभ होता है। सूजन पर भी यह योग हितकारी है।

o   शहद को रूई में भिगोकर योनि में रखने से योनि की गन्दगी निकल जाती है तथा योनिशूल भी नष्ट हो जाता है।

o   मासिकधर्म के पश्चात् भग में कबूतर की बीट रखने से गर्भ ठहरता है।

o   हरड़, रसौंत और सैन्धा नमक पानी में घिसकर आँखों पर लेप करने से रोहे नष्ट हो जाते है।

o   ग्लीसरीन में अफीम मिलाकर डालने से कान का तीव्रशूल भी नष्ट हो जाता है। अजवायन को सरसों के तेल में जलाकर छान लें, इस तेल की 2-3 बूदंे  कान में डालने से भी कान का दर्द दूर हो जाता है।

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