शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

गर्भावस्था के दौरान गर्भवती स्त्री की शारीरिक जांचे Some important tests/examinations


 गर्भावस्था के दौरान गर्भवती स्त्री की विभिन्न प्रकार की शारीरिक जांचे की जाती हैं जैसे-
पेट की जांच-
          पेट की जांच करने पर पेट पर कोई घाव, निशान, बच्चे का आकार, उसका पेट में स्थान, बच्चे का हिलना-डुलना, सिर का स्थान, गर्भाशय का आकार और समय के अनुरूप बढ़ने आदि की पूरी जानकारी मिलती है। गर्भवती स्त्री के पेट की जांच गर्भावस्था के दौरान कई बार की जाती है।

बच्चे के दिल की धड़कन की जांच-

          गर्भ में बच्चे के दिल की धड़कन स्टेथिस्कोप अथवा फीटल डौपलर द्वारा सुनी जा सकती है। फीटल डौपलर बिजली या बैटरी द्वारा चलने वाली एक छोटी सी मशीन होती है। इसको मां के पेट पर लगाकर गर्भाशय में पल रहे बच्चे की दिल की धड़कन को सुना जा सकता है। बच्चे का दिल एक मिनट में 120 से 160 बार तक धड़कता है।

गर्भवती महिलाओं के योनि की जांच-

          गर्भधारण के लगभग 37 सप्ताह बाद स्त्री की योनि की जांच की जाती है। योनि की जांच करके स्त्री रोग विशेषज्ञ निम्नलिखित बातों की जानकारी लेती हैं-

1. योनि की जांच करने से गर्भाशय में बच्चे के आकार और स्थान के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

2. कूल्हे की हडि्डयों के आकार और बनावट के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

3. गर्भावस्था का आकार, प्रकार और समय के अनुसार गर्भावस्था की स्थिति के बारे में जानकारी होती है।

4. गर्भाशय में कोई रसौली, सूजन या मांस आदि के होने के बारे में पता चलता है।

5. योनि और गर्भाशय में किसी रोग का होना।

नोट-  योनि की जांच बार-बार नहीं करानी चाहिए।

हाथ और पैरों की जांच-

          गर्भवती स्त्री में रक्त की कमी, सांस का रोग, हृदय का रोग, आदि के बारे में उसके हाथ और हाथ के नाखूनों द्वारा समझा जा सकता है। स्त्री घर में किस प्रकार का कार्य करती है यह भी हाथों से मालूम किया जा सकता है। हाथों और अंगुलियों में सूजन हो जाने पर, कई रोगों का विचार डॉक्टर के सामने आने लगता है। पैरों में वेरीकोस नलिकाएं और सूजन भी देखी जा सकती है।

गर्भवती स्त्री के रक्त की जांच-

          हीमोग्लोबिन रक्त का वह लाल भाग होता है जो शरीर में ऑक्सीजन को ले जाता है। यह मां और बच्चे दोनों के लिए आवश्यक होता है। इसकी कमी को एनीमिया कहते हैं, जिसके लिए डॉक्टर स्त्री को लौह युक्त दवाईयां देते हैं। इसकी जांच अवश्य ही करवानी चाहिए।

          हीमोग्लोबिन को ग्राम या प्रतिशत में जाना जाता है। शरीर में यह 14.7 ग्राम होने पर इसे हम 100 प्रतिशत कहते हैं। स्त्री के शरीर में यह 11 से 13 ग्राम होना जरूरी होता है जिससे स्त्री एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है। यदि यह 11 ग्राम से कम होता है तो बच्चे को पूर्ण गर्भावस्था में कम रक्त और ऑक्सीजन मिलने के कारण जन्म लेने वाला बच्चा शारीरिक रूप से कमजोर और कम वजन का पैदा होता है।

गर्भवती स्त्री के ब्लड ग्रुप की जांच-

          स्त्री के ब्लड ग्रुप के बारे में भी जानकारी होना जरूरी होता है, जिससे प्रसव के समय रक्त की आवश्यकता पड़ने पर इसे उपलब्ध किया जा सके। साथ-साथ ही आर.एच फेक्टर भी करवाना चाहिए। रक्त को चार प्रमुख ग्रुपों में बांटा गया है- A, B, AB, O जो निगेटिव या पॉजिटिव होता है। निगेटिव होने पर बच्चे के जन्म लेते ही मां को एन.टी.डी. का टीका लगाया जाता है जिससे अगले होने वाले बच्चे को किसी तरह की हानि या स्त्री को गर्भपात न हो।

रुबेला और वायरल रोगों की जांच-

          रक्त द्वारा जर्मन मीजल्स रूबेला की जांच करवानी चाहिए। इस रोग के कारण भी बच्चे में कई दूसरे रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इसके साथ-साथ हैपीटाईटिस की भी जांच करवानी चाहिए।

वैनेरल डिजीज रिसर्च लैब्रोरेट्रीज-

          गर्भवती स्त्री में इसकी जांच कराने से वेनेरल रोग का पता चल जाता है। यह रोग संभोग क्रिया द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में जा सकता है जैसे- सिफलिस रोग। यह रोग पुरुषों से स्त्रियों को हो सकता है या फिर स्त्रियों से पुरुषों में हो सकता है। इसलिए गर्भधारण से पहले यह जरूरी होता है कि स्त्री या पुरुष में कोई इस रोग से पीड़ित तो नहीं है। इसलिए दोनों को ही इसकी जांच करवानी चाहिए। इस बीमारी में भी बच्चे का विकास ठीक प्रकार से नहीं होता है। इस जांच के लिए दोनों को अपने डॉक्टरों से परामर्श लेना चाहिए।

एल्फा फीटो प्रोटीन की जांच-

          स्त्रियों के रक्त द्वारा यह जांच की जाती है। इसका सही समय 16 से 18 सप्ताह का होता है। बच्चे के विकास में यदि कोई भी रुकावट होती है तो इस जांच से मालूम चल जाता है। यह प्रोटीन बच्चे के लीवर द्वारा बनता है तथा ओवल द्वारा मां के रक्त में आ जाता है। जांच के ठीक न आने पर दो सप्ताह के बाद दुबारा जांच करवाकर अपने डॉक्टर की राय अवश्य ले लेनी चाहिए।

एच.आई.वी (एड्स)-

          एच.आई.वी वायरस की जांच रक्त द्वारा करवायी जाती है। इस जांच से स्त्री या उसके होने वाले बच्चे को ही नहीं बल्कि डॉक्टरों और हॉस्पिटल के अन्य कर्मचारियों को भी लाभ होता है। एच.आई.वी का वायरस उन स्त्रियों में पाया जा सकता है जो एक से अधिक व्यक्तियों के साथ संभोग क्रिया करती हैं या उनके पति एक अधिक स्त्रियों के साथ यह क्रिया करते हों। दूषित रक्त और संक्रमित इंजेक्शन के प्रयोग से भी यह वायरस फैलता है।

गर्भावस्था में स्त्री के मूत्र की जांच-

          गर्भवती स्त्री के मूत्र की जांच एक आवश्यक जांच होती है। इसके द्वारा मुख्यत: प्रोटीन, ग्लूकोज या पस के बारे में जानकारी करते हैं। यदि मूत्र से संबंधित कोई रोग इस जांच में आ जाए तो उसका इलाज जल्द से जल्द कराना चाहिए तथा शूगर आदि को नहीं बढ़ने देना चाहिए। इसके लिए डॉक्टर की राय अवश्य ही लेनी चाहिए। इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि मूत्र को इकट्ठा करने के लिए आपका बर्तन या शीशी साफ होनी चाहिए और मूत्र के बीच की धार को ही जांच के लिए एकत्र करना चाहिए ताकि जांच के बाद सही रिपोर्ट आ सके।

अल्ट्रासाउन्ड-
          अल्ट्रासाउन्ड आवाज की वह तरंगे हैं जिनके द्वारा बच्चे की हडि्डयां और मांसपेशियां ठीक प्रकार से देखी जा सकती है। अल्ट्रासाउन्ड के समय स्त्री को अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए ताकि उसका मूत्राशय पूर्ण रूप से भरा रहे। ऐसा करने से अल्ट्रासाउन्ड की रिपोर्ट पूरी तरह से ठीक आती है। इस जांच में पेट के निचले भाग पर एक चिकना द्रव भी लगाया जाता है तथा मशीन का प्रोब उस पर घुमाते हैं। इससे ध्वनि तरंगों द्वारा गर्भ में बच्चे का आकार, प्रकार, दिल की धड़कन व उसका कुछ हिलना-डुलना व अन्य क्रियाओं को टी.वी की स्क्रीन पर देखा जा सकता है। अल्ट्रासाउन्ड में द्रव का भाग कुछ अधिक गाढे़ रंग का तथा बच्चे का रूप जैसा आकार सफेद रंग का दिखाई पड़ता है जो चीज दिखने में जितनी ठोस होती है वह उतनी ही सफेद दिखाई पड़ती है। यह जांच गर्भावस्था में कई बार करवाई जा सकती है। इस जांच से मां और बच्चे कोई हानि नहीं होती है जबकि एक्स-रे द्वारा जांच करवाना मां और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक होता है।

गर्भावस्था में अल्ट्रासाउन्ड की भूमिका-

1. अल्ट्रासाउन्ड द्वारा गर्भ मे पल रहे बच्चे की उम्र का पता लगाया जाता है।

2. गर्भ में बच्चे के विकास के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है।

 3. अल्ट्रासाउन्ड करने से बच्चे के शारीरिक आकार-प्रकार की जानकारी मिल सकती है।

 4. अल्ट्रासाउन्ड द्वारा बच्चे के शरीर की विभिन्न त्रुटियों, रूप और बनावट तथा अन्य रोगों के बारे में पता चलता है।

5. अल्ट्रासाउन्ड से बच्चे की हृदय की धड़कन के बारे में पता चलता है।

6. इसके द्वारा बच्चे के गुर्दे अथवा मस्तिष्क की कमियां तथा अन्य रोगों के बारे में पता चलता है।

7. अल्ट्रासाउन्ड द्वारा गर्भ में पल रहें जुड़वां बच्चे की जानकारी मिल सकती है।

8. अल्ट्रासाउन्ड से गर्भ में बच्चे का स्थान पता चलता है।

9. गर्भ में ओवल के स्थान के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

10. एमनीओटिक द्रव की मात्रा मालूम होती है।

11. जिगर और पित्त की थैली के रोगों की जानकारी मिलती है।

एम्नीयोसेनटैसिस-

          एम्नीयोसेनटैसिस की जांच सभी स्त्रियों के लिए अनिवार्य नहीं होती है। यह जांच लगभग 14-16 सप्ताह में की जाती है। इस जांच में स्त्री के पेट का अल्ट्रासाउन्ड करते हैं तथा उसकी देख-रेख से बच्चेदानी से एमनीओटिक द्रव सुई द्वारा बाहर निकाला जाता है। इस द्रव की जांच में फीटल सैल देखे जाते हैं। जिसके द्वारा बच्चे के शरीर की बनावट, रीढ़ की हडि्डयों की बनावट, मस्तिष्क रोग तथा अन्य रोगों की जानकारी ली जाती है। इस जांच में अल्ट्रासाउन्ड का प्रयोग आवश्यक होता है ताकि सुई ठीक स्थान पर डाली जा सके तथा ओवल या बच्चे को सुई न लगे।

          स्त्री में इस जांच से कुछ हानियां भी हो सकती हैं। कई बार सुई द्वारा बाहर का रोग गर्भाशय में प्रवेश कर सकता है। इसके लिए बहुत ही साफ-सफाई की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही इस जांच से स्त्री को गर्भपात भी हो सकता है। इसलिए इस जांच से पहले सभी पहलुओं पर ध्यान देना जरूरी होता है।

एमनिऔसिन्टैसिस के संकेत-

1. यदि स्त्री रोग विशेषज्ञ बच्चे में कोई कमी महसूस करें।

2. यदि पहले हुए बच्चे में कुछ शारीरिक कमी हो।

3. यदि परिवार के सभी बच्चे त्रुटिपूर्ण होते हों।

4. यदि स्त्री की आयु 35 वर्ष से अधिक हो।

          एमनिऔसिन्टैसिस या ए.एफ.पी. द्वारा अगर मालूम चले कि बच्चे में किसी प्रकार की शारीरिक त्रुटि है तो अच्छा होगा कि स्त्री को गर्भपात करा लेना चाहिए। रोगग्रस्त बच्चे को पालने से अच्छा गर्भपात करा लेना चाहिए। स्त्री को यदि गर्भावस्था के शुरू के 3-4 महीनों में खसरा, छोटी माता , या फिर सिफलिस आदि रोग हो भी तो गर्भपात करवा लेना चाहिए। गर्भपात उसी हॉस्पिटल में करवाना चाहिए जहां सभी सुविधाएं उपलब्ध हों।

कैरीओनिक विलस की जांच-

1. यदि स्त्री रोग विशेषज्ञ गर्भ में पल रहे बच्चे में कोई कमी महसूस करती हैं।

2. यदि परिवार में जन्म लेने वाले बच्चे की शारीरिक बनावट में कोई कमी हो।

3. अगर स्त्री ने इससे पहले भी कभी त्रुटिपूर्ण बच्चे को जन्म दिया हो।

4. अगर पति के परिवार में किसी त्रुटिपूर्ण बच्चे का जन्म हुआ हो।

टैटनेस का इंजैक्शन-

          गर्भावस्था के दौरान मां को टैटनेस का इंजैक्शन अवश्य देना चाहिए। यह इंजैक्शन मां और बच्चे दोनों की टेटनेस रोग से रक्षा करता है। यह इंजेक्शन दो या तीन बार लगाया जाता है। कुछ स्त्री रोग विशेषज्ञ यह इंजैक्शन गर्भावस्था के तीसरे, छठे और नौवें महीने में देते हैं और कुछ सातवें और आठवें महीने में देते हैं।

गर्भ में बच्चे का लिंग-

          जब स्त्री के अण्डे से पुरुष के शुक्राणु मिलते हैं तो सम्पूर्ण बच्चे का निर्माण होता है। उसमें स्त्री के अण्डे के 23 क्रोमोजोम्स और पुरुष के शुक्राणु के भी 23 क्रोमोजोम्स होते हैं। इस प्रकार 46 क्रोमोजोम्स मिलकर 23 जोडे़ बनाते हैं। स्त्री के सेक्स क्रोमोजोम्स `x` होते हैं तथा पुरुष के क्रोमोजोन्स `x` व `y` प्रकार के होते हैं। जब पुरुष के `x` स्त्री के `x` से मिलते हैं तो लड़की पैदा होती है। जिसे `x`, `x` कहते हैं। पुरुष का `y` जब स्त्री के `x` से मिलता है। तब `x`,`y` बनता है जिससे लड़के का जन्म होता है।

          कुछ डॉक्टरों के अनुसार गर्भ में बच्चे का लिंग स्त्री के भोजन से निर्धारित होता है। लगभग 80 प्रतिशत लोगों को इस कार्य में भोजन करने से सफलता प्राप्त हो सकती है। भोजन में अधिक स्टार्च, दूध , दूध से बनी चीजें, कम नमक तथा कैल्शियम की गोलियां खाने से लड़की पैदा होती है तथा अधिक नमक, मांस, फल तथा बहुत कम दूध व दूध से बनी चीजें तथा एक गोली पोटैशियम की खाने से लड़का पैदा होता है।

          कुछ विशेषज्ञ यह मानते हैं कि जिन व्यक्तियों में एक से अधिक स्त्रियों के साथ सेक्स क्रिया की लालसा होती है, उनमें लड़का पैदा होने की संभावना अधिक रहती है।

          कुछ लोगों के अनुसार यदि संभोग से पहले स्त्री अपनी योनि को सोडाबाइकार्बोनेट से धो लें तो लड़का पैदा होता है। इसके लिए एक चम्मच सोडाबाइकार्बोनेट लगभग आधा लीटर गुनगुने पानी में डालकर योनि को अन्दर तक धोने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा करने के बाद सेक्स क्रिया करने से लड़के का जन्म होता है। दूसरी तरफ एक चम्मच सफेद सिरका तथा आधा चम्मच गुनगुने पानी से योनि को धोने के बाद सेक्स करने से लड़की पैदा होती है।

          कुछ लोगों के अनुसार गर्भ में बच्चे के लिंग का निर्धारण संभोग करने के समय पर निर्भर करता है। इस विचार में कहा जाता है कि अण्डे के बनते ही यदि संभोग 48 घंटे में किया जाए तो होने वाले बच्चा लड़का होता है। यदि 48 घंटे के बाद संभोग करते हैं तो लड़की पैदा होती है।

          उपयुक्त बात की सच्चाई को जानने के लिए अण्डे बनते ही 48 घंटे में तीन बार संभोग करें तथा पूरे माह गर्भ के ठहरने का इन्तजार करें। यदि गर्भ न रुका हो तो इसी प्रकार अगले महीने भी करना चाहिए। इससे इच्छानुसार बच्चे की प्राप्ति होती है। अण्डे बनने को स्त्रियां भलीभान्ति अल्ट्रासाउन्ड पर देखकर पता कर सकती हैं। स्त्रियों के शरीर के तापमान से भी यह मालूम किया जा सकता है कि उनके शरीर में अण्डे बन रहें हैं या नहीं बन रहे हैं क्योंकि स्त्रियों के शरीर का तापमान अण्डे बनने से पहले कम होता है तथा अण्डे बनने पर एक डिग्री बढ़ जाता है।

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मंगलवार, 29 सितंबर 2015

बालों में नारियल तेल फायदा न करे तो लगाएं अरंडी का तेल



अगर आप बालों में केवल नारियल या बादाम का तेल ही लगाती हैं और आपको फिर भी फायदा नहीं हो रहा है तो, अपना तेल बद डालिये। बालों को स्‍वस्‍थ रखने के लिये आप उनमें अरंडी का तेल लगा सकती हैं। अरंडी को अंग्रेजी में कैस्‍टर ऑइल भी बोलते हैं।

अगर आपके बाल रूखे हैं, उनमें रूसी है या फिर दो मुंहे हो गए हैं और शाइन पूरी तहर से खतम हो चुकी है तो, आपको अरंडी का तेल ही लगाना चाहिये। आप चाहें तो अरंडी के तेल में जैतून का तेल या अन्‍य तेल भी मिक्‍स कर सकती हैं।

अरंडी का तेल काफी पौष्‍टिक होता है, जिसमें मौजूदा तत्‍व बालों के अदंर तक समा कर उसे मजबूती प्रदान करते हैं। अगर आप चाहती हैं कि आपके बालों की सभी समस्‍याएं दूर हो जाएं तो अरंडी के तेल से एक बार एक्‍सपेरिमेंट करना ना भूलियेगा। अब आइये जानते हैं अंरडी के तेल को किस प्रकार से लगाया जा सकता है।


बालों की ग्रोथ बढाए

आरंडी तेल को जैतून या नारियल तेल के साथ मिक्‍स कर के लगाने से बालों की ग्रोथ होती है। इसे 3 से 8 घंटो के लिये हफ्ते में तीन बार लगाएं।

चमकदार बालों के लिये यह तेल बालों में प्राकृतिक कोटिंग कर के बालों को चमकीला और स्‍मूथ बनाता है। आप इसे गरम कर के सिर में लगा सकती हैं।

बालों का झड़ना रोके बालों को झड़ने से रोकने के लिये सिर पर 30 मिनट तक के लिये इस तेल से मसाज करें और फिर बालों को धो लें।
दो मुंहे बालों से बचाए इस तेल में विटामिन ई, ओमेगा 6 फैटी एसिड और जरुरी अमीनो एसिड पाए जाते हैं। यह तेल बालों को दो मुंहा होने से बचाता है। इसे लगाने के लिये थोड़े से जोजोबा ऑइल में इस तेल की थोड़ी सी मात्रा मिलाइये और नहाने से पहले बालों में लगाइये।

रूसी भगाए कैस्‍टर ऑइल में एंटी वाइरल, एंटी बैक्‍टीरियल और एंटी फंगल गुण होते हैं जिससे रूसी की समस्‍या दूर होती है। इस तेल को ऑलिव ऑइल तथा कुछ बूंद नींबू के रस के साथ मिला कर लगाएं। फिर उसके आधे घंटे के बाद नहा लें।

बालों में नमी बढाए अगर आपके बाल रूखे और फिजी हैं तो आपको आरंडी के तेल को गरम कर के सिर पर लगाना चाहिये। इससे आप के बाल मोटे भी हो जाएंगे।
प्राकृतिक कंडीशनर थोड़े से कैस्‍टर ऑइल को एलोवेरा जैल, शहद और नींबू के रस में मिलाइये। इसे बालों की जड़ों से शुरु कर के बालों के आखिर तक लगाइये। फिर 30 मिनट के बाद बालों को धो लीजिये।

सोमवार, 28 सितंबर 2015

बालों की सभी परेशानियों को दूर करे ये 3 आयुर्वेदिक तेल


 क्‍या आप जानते हैं कि हमारी दादी-नानी के बाल अभी तक इतने लंबे और मजबूत क्‍यूं हैं? ऐसा इसलिये क्‍योंकि वे अपने बालों को आयुर्वेदिक तेलों से मसाज किया करती थीं। गरम तेल से सिर को अच्‍छी प्रकार से मसाज करने पर आपके बालों में भी जान आ जाएगी। आयुर्वेदिक तेलों में आपको गुड़हल का तेल, तुलसी या फिर आवंले का तेल ही प्रयोग करना चाहिये। आज हम आपको बताएंगे कि इन सभी तेलों का प्रयोग कैसे करना है।
 अगर आप इन्‍हें भली प्रकार से रखेंगी तो यह तेल कई सालों तक चल सकते हैं। इन्‍हें एयर टाइट कंडेनर में ही रखें और सूरज की धूप ना पड़ने दें।
1 गुडहल तेल
 यह तेल बालों को पतला होने तथा झड़ने से रोकता है। इसे तैयार करने के लिये विधि पढ़ें - सामग्री- 3-4 गुड़हल के फूल, मुठ्ठीभर उसकी पत्‍तियां, 1 चम्‍मच मेथी दाना और नारियल तेल। विधि - गुड़हल और पत्‍तियों को मिक्‍सी में पीस कर पेस्‍ट बना कर एक बरतन में डालें। फिर उसमें नारियल तेल डाल कर गरम करें। इस पेस्‍ट को लगातार चलाती रहें। फिर इसमें मेथी दाना डाल कर कुछ सेकेंड गरम करें। आपका तेल तैयार है, इसका जब भी प्रयोग करें, हल्‍का सा गरम कर लें।

तुलसी तेल
बालों में चमक और जड़ से मजबूती प्रदान करने के लिये यह तेल लगाएं। सामग्री- तुलसी पावडर, नारियल तेल, पानी और मेथी दाना। विधि- 2 चम्‍मच तुलसी पावडर में थोड़ा सा पानी मिक्‍स कर के पेस्‍ट बनाएं। एक बरतन में नारियल तेल गरम करें, जब तेल में उबाल आने लगे तब उसमें तुलसी पेस्‍ट डालें। तेल को चलाती रहें। फिर इसमें मेथी के दाने डालें। जब हो जाए तब तेल को छान कर किसी शीशी में भर लें। तेल को हमेशा गरम कर के प्रयोग करना चाहिये।

 आंवला तेल [आमला और कडी पत्‍ते से बनाइये बालों को काला करने वाला तेल] बालों का झड़ना, असमय सफेद होना या फिर अन्‍य बालों की समस्‍याओं के लिये आंवले का तेल काफी लाभकारी है। इसे बनाने की विधि जानें- सामग्री- आंवला पावडर, नारियल तेल और पानी।
 विधि - एक बरतन में, आंवला पावउर और पानी मिक्‍स कर के 15 मिनट तक उबालें। आंच बंद करें और इस तेल को ठंडा होने दें।फिर इसे छान कर किनारे रखें। अब अलग से जरा सा आंवला पावडर ले कर थोड़ा सा पानी मिला कर पेस्‍ट बनाएं। अब एक दूसरे बरतन में, तैयार किया हुआ आंवले का पानी, नारियल तेल और पेस्‍ट मिलाएं। इसे आंच पर रखें और इसे तब तक उबालती रहें जब तक कि यह गाढ़ा पेस्‍ट ना बन जाए। इसे लगातार चलाना होता है। उसके बाद स्‍टोव बंद कर दें। अब आप इस तेल को हल्‍का ठंडा हो जाने के बाद सिर पर लगा सकती हैं।

सोमवार, 21 सितंबर 2015

बालो को लम्बा करने का तेल बनाये घर पर


सामग्री :-
1. अरंडी का तेल 250 ग्राम
2. जैतून का तेल 50 ग्राम,
3. चन्दन कि लकड़ी का बारीक बुरादा 50 ग्राम
4. काँफी पाउडर 50 ग्राम।
5. बरगद के पेड़ कि एकदम ताजा पत्ती (बन्द वाली कोपल) 300 ग्राम
6. अम्बर बेल 300 ग्राम (जो हरे रंग के धागे कि तरह पेड़ के ऊपर मिलती है।)
क्र. 1 से 4 की चीजेँ पंसारी एवँ 5,6 को गाँव देहात से ढूँढ कर लाना होगा।
बनाने की विधि --
दोनोँ तेलोँ को मिला कर हल्की आँच पर गर्म करेँ। फिर इस तेल मे सभी चीजेँ डाल लेवेँ और तब तक हिलाते रहेँ जब तक पूरी सामग्री काली होकर जल ना जायेँ। सावधानी रखना तेल तड़तड़ाता बहुत है। सभी चीजेँ जल जाने पर ठंडा करके तेल को बोतल मे भरकर रख लेवेँ।

प्रयोग की विधि --
रोजाना 20 मिनिट तक उँगलियोँ के पोरौँ से इस तेल की मालिश सिर मे करेँ। तेल के नियमित प्रयोग से जो बाल सफेद हो गये है वो भी वापस जड़ से काले उगने लगेँगे।
इसके साथ में एक एक चम्मच सुबह शाम त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ ज़रूर ले।

6 महीने में रिजल्ट मिल जायेगा।स्नान करने के बाद ही तेल लगाना है , शेम्पू का प्रयोग नहीं करना तेल लगाने के बाद |

गुर्दे की पत्थरी का नुस्खा.


इस नुस्खे से कई रोगियों को लाभ हुआ.अन्य रोगी भी लाभ उठा सकें इसलिए नुस्खा प्रस्तुत है.
करीब दो किलो नीबूं का रस निकाल लें.यह रस लगभग एक लीटर होना चाहिए.इसे छान कर कांच की बड़ी बोतल मे भर कर इसमे मुट्ठी भर कौड़ियां डाल कर रख दें और 7-8 दिन तक हिलाएं नही.कौड़ियां पन्सारी की दुकान मे मिलती हैं नींबू के रस का रंग दुधिया हो जाएगा.अब रोजाना सुबह खाली पेटआधा कप रस अच्छी तरह बारिक छान कर पीना है.इसके एक घण्टे तक कुछ भी खांएं या पिएं नही.
रस खत्म होने तक ऐसे रोजाना सेवन करें.पत्थरी धीरे धीरे गल कर पेशाब के साथ निकल जाएगी.
और रोग मुक्त हो जाओगे.

सोमवार, 14 सितंबर 2015

सेहत से भरपूर है फ्रेंचबीन्स



बीन्स एक ऐसी सब्जी है जिसका प्रयोग लगभग हर तरह के भोजन में किया जाता है। यह सेहत से भरा एक पौष्टिक वि‍कल्प भी है। सलाद से लेकर, भोजन तक में प्रयोग की जाने वाली, प्रोटीन से भरपूर फ्रेंच बीन्स, किस तरह आपकी सेहत को और भी बेहतर बना सकती है, जानिए -

बीन्स की हरी पत्त‍ियों को भी सब्जी के रूप में भोजन में शामिल किया जाता है तथा सूखी हुई फलियों को राजमा या लोबिया के रूप में खाया जाता है।
1  फ्रेंच बीन्स में मुख्यत: पानी, प्रोटीन, कुछ मात्रा में वसा तथा कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, विटामिन सी आदि तरह के मिनरल और विटामिन मौजूद होते हैं।
 2  इनके अलावा बीन्स विटामिन बी2 का भी प्रमुख स्त्रोत है। प्रति सौ ग्राम फ्रेंच बीन्स से तकरीबन 26 कैलोरी मिलती है। राजमा में यही सब अधि‍क मात्रा में पाया जाता है इसलिए प्रति सौ ग्राम राजमा से 347 कैलोरी मिलती है।

3  बीन्स, घुलनशील फाईबर का अच्छा स्रोत है, जिसके कारण यह हृदय रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि प्रतिदिन एक कप पकी हुई बीन्स का प्रयोग करने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है और इससे हृदयाघात की संभावना भी 40 प्रतिशत तक कम हो सकती है।
 4  बीन्स में सोडियम की मात्रा कम तथा पोटेशियम, कैल्शि‍यम व मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है जो रक्तचाप को बढ़ने से रोकता है और हार्ट अटैक के खतरे को कम करता है।

5 बीन्स का 'ग्लाइसेमिक इन्डेक्स' कम होता है जिससे अन्य भोज्य पदार्थों की अपेक्षा बीन्स खाने पर रक्त में शर्करा का स्तर अधि‍क नहीं बढ़ता । इसमें मौजूद फाइबर रक्त में शर्करा के स्तर को बनाए रखने में मदद करते हैं। यही कारण है, कि मधुमेह के रोगियों को बीन्स खाने की सलाह देते है।


6 बीन्स का रस शरीर में इन्सुलिन के उत्पादन को बढ़ावा देता है। इस वजह से मधुमेह के मरीजों के लिए बीन्स खाना बहुत लाभदायक माना जाता है।

7  फ्रेंच बीन्स किडनी से संबंधित बीमारियों में भी काफी फायदेमंद है। किडनी में पथरी की समस्या होने पर, आप लगभग 60 ग्राम बीन्स की पत्त‍ियों को चार लीटर पानी में करीब चार घंटे तक उबाल लें। फिर इसके पानी को कपड़े से छानकर करीब आठ घंटे तक ठंडा होने के लिए रख दें। अब इसे फिर से छान लें पर ध्यान रखें कि इस बार इस पानी को बिना हिलाए छानना है। इसे एक सप्ताह तक हर दो घंटे में पीने से अत्यधि‍क लाभ होता है।

8 होम्योपैथिक दवाओं में भी बीन्स बहुत काम आती है। ताजी बीन्स का उपयोग रूमेटिक, आर्थ्राइटिस तथा मूत्र संबंधी तकलीफ के लिए दवाई बनाने के लिए किया जाता है।

9  बीन्स में एन्टीआक्सीडेंट की मात्रा भी काफी होती है। एन्टीऑक्सीडेंट शरीर में कोशिकाओं की मरम्मत के साथ् ही त्वचा व दिमाग के लिए भी अच्छा माना जाता है। इसलिए इसका सेवन करने से कैंसर की संभावना कम हो जाती है। इसमें मौजूद फाईटोएस्ट्रोजन स्तन कैंसर के खतरे को भी कम हो सकता है।

10  इन सभी के अलावा बीन्स कैल्शियम का एक अच्छा स्त्रोत हैं, जो हड्डियों तथा दांतों दोनों के विकास में महत्वपूर्ण होता है।


बुधवार, 2 सितंबर 2015

इन 9 बातों में नहीं है दम, इनसे कभी नहीं होता वजन कम



अगर आप ये 9 काम हर रोज यह सोच कर करते हैं कि इनसे आपका वजन कम हो जाएगा, तो यह सिर्फ आपकी गलतफ    हमी है। मोटापा कम करने के ये सिर्फ मिथ हैं, जानिए इनके फैक्ट...
ज्‍यादा वर्कआउट करने से कभी भी वजन कम नहीं होता है। हर दिन नियमित रूप से व्‍यायाम करने से ही लाभ होता है।एक समय का खाना न खाना या अपनी खुराक में कटौती कर देने से भी आपके वजन में कमी आ जाएगी। बस खाने-पीने का नियम सही रखें।
फलों को खाने से कभी वजन नहीं बढ़ता। एक समय खाना न खाएं। फल ही खाएं। ये आपको एनर्जी देते हैं। फैट नहीं बढ़ाते हैं। इसी तरह यह भी आपकी गलतफहमी है कि ज्यादा पानी पीते रहने से मोटापा घटता है। यह सिर्फ एक मिथ है। पानी पीने से आपका पेट भर जाता है, लेकिन कैलोरी में कमी नहीं आती।
अपनी खुराक में कार्बोहाइड्रेट शामिल नहीं करते हैं, तो आपको कमजोरी आ जाएगी। इससे आप दुबले नहीं हो सकते हैं। बस इतना ध्यान रखने की जरूरत होती है कि आपको कितना कार्बोहाइड्रेट लेना है। कई लोगों का मानना है कि मीठा खाने से वो मोटे हो जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं है। डार्क चॉकलेट आदि खाने से आपके स्‍वास्‍थ्‍य को लाभ मिलेगा।
सिर्फ फाइबर का सेवन करना भी वजन कम नहीं कर सकता। फाइबर से आपको एनर्जी मिलती है, इसके अलावा आपकी पाचन क्रिया भी दुरुस्‍त रहती है। सिर्फ फाइबर के सेवन से शरीर में दुबलापन नहीं आता। सलाद ज्यादा खाने से भी वजन कम नहीं होता। इससे आपके शरीर में प्रोटीन की मात्रा अच्‍छी हो जाती है लेकिन वजन में कमी नहीं आती है।
जूस पीना भी मोटापे कम करने का जरिया नहीं है। वजन में कमी नहीं आती है जूस पीने से।

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