आयुर्वेद यह मानता है कि इस संसार में जो भी द्रव्य हैं, उनमें कुछ न कुछ औषधीय गुण मौजूद हैं ,बस आवश्यकता है, जानकारी की। इसी प्रकार हमारे दैनिक प्रयोग में आने वाले फल सब्जियों में भी औषधीय गुण होते हैं।ऐसी ही एक सब्जी जिसका प्रयोग हम अक्सर अपने भोजन में करते हैं। नाम है मूली। आप सोचते होंगे मूली। अरे इसमें भला क्या खास होगा, तो आप हम आपको कुछ ऐसी चंद जानकारी देंगे जिससे आप मूली को केवल मूली नहीं रोगों के मूल पर प्रहार करनेवाली के रूप में जानेंगे।
- मूली के पत्तों को सुखा कर इसे जला लें। अब बची राख को पानी में मिलाकर आग पर तब तक उबालें। जब तक सूखकर क्षार का रूप न ले लें। अब इस क्षार को 500 मिलीग्राम की मात्रा में नियमित सेवन श्वांस के रोगियों के लिए अच्छी औषधि है।
-मूली की पत्तियों का रस को तिल के तेल में उबाल कर तेल बनाएं। 2-3 बूँद कान में टपकाने से पीड़ा में आराम मिलता है।
-मूली के पत्तों का रस दिन में दो से तीन बार 25 से 30 मिली की मात्रा में भोजन के बाद लेना। यकृतदौर्बल्य में फायदेमंद है।
-पीलिया (जौंडिस) के रोगी के लिए मूली की सब्जी पथ्य है।
-यदि बवासीर के कारण खून आ रहा हो, तो फिटकरी पांच ग्राम ,मूली की पत्तियों का रस आधा लीटर। एक साथ उबाल लें। जब यह गाढा हो जाए तो छोटी-छोटी गोलियां (250-500 मिलीग्राम ) बना लें। अब इसे उम्र के अनुसार एक से दो गोली मक्खन के साथ देने से निश्चित लाभ मिलता है।-मूली के बीज का चूर्ण पांच से दस ग्राम की मात्रा में देने से स्त्रियों में अनियमित मासिकस्राव जिसे समस्या से निजात मिल जाती है।
- मूली के ताजे पत्ते का रस डाययूरेटिक एवं मृदु विरेचक का काम करता है, अत: पथरी को बाहर निकालने में भी मददगार होता है।
- मूली के पत्तों का रस यदि मिश्री के साथ सेवन करें तो यह एंटएसिड का काम करता है।
-तिल के साथ आधी मात्रा में मूली के बीजों का सेवन किसी भी सूजन में प्रभावी है।
-मूली का सूप हिचकी को रोकने में कारगर होता है।
-मूली के पत्तों को दस से बीस ग्राम की मात्रा में एक से दो ग्राम कलमी शोरा के साथ मिलाकर पिलाने से मूत्र साफ आता है।तो मूली में ऐसे कई गुण मौजूद हैं जिनका संक्षिप्त वर्णन यहां प्रस्तुत किया गया है। हाँ यदि इसे चिकित्सकीय परामर्श से मात्रा एवं पथ्य खाने योग्य- अपथ्य व चिकित्सा के समय त्याग देने योग्य को ध्यान में रखकर लिया जाए तो यह कमाल की औषधि है।
- मूली के पत्तों को सुखा कर इसे जला लें। अब बची राख को पानी में मिलाकर आग पर तब तक उबालें। जब तक सूखकर क्षार का रूप न ले लें। अब इस क्षार को 500 मिलीग्राम की मात्रा में नियमित सेवन श्वांस के रोगियों के लिए अच्छी औषधि है।
-मूली की पत्तियों का रस को तिल के तेल में उबाल कर तेल बनाएं। 2-3 बूँद कान में टपकाने से पीड़ा में आराम मिलता है।
-मूली के पत्तों का रस दिन में दो से तीन बार 25 से 30 मिली की मात्रा में भोजन के बाद लेना। यकृतदौर्बल्य में फायदेमंद है।
-पीलिया (जौंडिस) के रोगी के लिए मूली की सब्जी पथ्य है।
-यदि बवासीर के कारण खून आ रहा हो, तो फिटकरी पांच ग्राम ,मूली की पत्तियों का रस आधा लीटर। एक साथ उबाल लें। जब यह गाढा हो जाए तो छोटी-छोटी गोलियां (250-500 मिलीग्राम ) बना लें। अब इसे उम्र के अनुसार एक से दो गोली मक्खन के साथ देने से निश्चित लाभ मिलता है।-मूली के बीज का चूर्ण पांच से दस ग्राम की मात्रा में देने से स्त्रियों में अनियमित मासिकस्राव जिसे समस्या से निजात मिल जाती है।
- मूली के ताजे पत्ते का रस डाययूरेटिक एवं मृदु विरेचक का काम करता है, अत: पथरी को बाहर निकालने में भी मददगार होता है।
- मूली के पत्तों का रस यदि मिश्री के साथ सेवन करें तो यह एंटएसिड का काम करता है।
-तिल के साथ आधी मात्रा में मूली के बीजों का सेवन किसी भी सूजन में प्रभावी है।
-मूली का सूप हिचकी को रोकने में कारगर होता है।
-मूली के पत्तों को दस से बीस ग्राम की मात्रा में एक से दो ग्राम कलमी शोरा के साथ मिलाकर पिलाने से मूत्र साफ आता है।तो मूली में ऐसे कई गुण मौजूद हैं जिनका संक्षिप्त वर्णन यहां प्रस्तुत किया गया है। हाँ यदि इसे चिकित्सकीय परामर्श से मात्रा एवं पथ्य खाने योग्य- अपथ्य व चिकित्सा के समय त्याग देने योग्य को ध्यान में रखकर लिया जाए तो यह कमाल की औषधि है।
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