गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

फल और सब्जी से करें उपचार

मूली : इसका रस 1-1 चम्मच दिन में 3-4 बार पीने से आँतों के विकार दूर होते हैं और बवासीर रोग ठीक होता है। मूली स्वयं हजम नहीं होती, लेकिन अन्य भोज्य पदार्थों को पचा देती है।
अमरूद : अमरूद के पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ले करने से मुँह के छालों और मसूड़ों के कष्ट में आराम मिलता है। जामफल में विटामिन सी की अधिकता होने के कारण यह त्वचा से संबंधित बीमारियों को कम करता है।
अँगूर : अँगूर की पत्तियाँ सुखाकर पीसकर रख लें। एक चम्मच चूर्ण एक गिलास पानी में उबालकर काढ़ा करें और इस कुनकुने गर्म काढ़े से गरारे करने से मुँह के छाले, दाँत दर्द और टॉंसिल्स के कष्ट में बहुत लाभ होता है।
पत्तागोभी : इसके पत्तों के रस में समभाग पानी मिलकर गरारे करने से टॉंसिलाइटिस, फेरिजाइटिस और लेरिजाइटिस आदि व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं। प्रतिदिन पत्तागोभी के पत्ते बारीक काटकर सेवन करने से नेत्र ज्योति तेज होती है।
खूबानी : इसकी गिरियों का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने और ऊपर से गर्म दूध पीने से सर्दी-खाँसी, श्वास कष्ट, सिर दर्द, वात प्रकोप, गैस ट्रबल और पेट दर्द आदि व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं।
गाजर : प्रतिदिन दोपहर में एक गिलास गाजर का रस पीने से शरीर में रक्त बढ़ता है। शरीर पुष्ट और सुडौल होता है तथा आँखों की ज्योति बढ़ती है। गाजर का रस पीने से चेहरे पर लालिमा आ जाती है।

बीमारियों को दूर करते हैं फूल

प्रकृति की बेहद खूबसूरत सौगात रंग-बिरंगे, महकते फूल सिर्फ आँखों को ही शीतलता नहीं देते बल्कि सेहत की दृष्टि से भी लाजवाब होते हैं। फूलों की हजारों प्रजातियों में से कई ऐसी हैं, जिनमें घाव को भरने से लेकर त्वचा संबंधी बीमारियों को दूर करने का भी उपचार है। फूलों की अलग-अलग प्रजातियाँ अलग-अलग स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने में सहायक होती हैं और इसलिए इनका उपयोग करने के पहले विशेषज्ञ का परामर्श आवश्यक होता है।
गेंदे का फूल
जिनके घरों में बच्चे हों, उन्हें अपने घरों में गेंदे का फूल जरूर लगाना चाहिए। गेंदे के फूल को घाव भरने के लिए सर्वश्रेष्ठ मरहम माना जाता है। पुराने समय में बच्चों को चोट लगने पर गेंदे के फूलों को पीस कर घाव के स्थान पर लगा दिया जाता था। गेंदे के फूलों को तुलसी के पत्तों के साथ पीस कर उसका मलहम बना कर भी घाव के उपर रखा जा सकता है। इसके अलावा गेंदे की एक विशेष प्रजाति से त्वचा संबंधी रोगों का भी उपचार किया जा सकता है। इन दिनों लोकप्रिय अरोमाथेरेपी में भी एग्जिमा, जलन और त्वचा के दाग-धब्बों के उपचार संबंधी दवाइयों में गेंदा मुख्य घटक होता है।
फूलों के राजा गुलाब का भी चिकित्सा के क्षेत्र में अहम योगदान है। आयुर्वेद में गुलाब का उपयोग स्कर्वी के उपचार और गुर्दे संबंधी समस्याओं में होता है। फूलों से उपचार के क्षेत्र में शोध कर रहे आयुर्वेद चिकित्सक डॉ। नितिन शर्मा ने बताया कि गुलाब का फूल शरीर में विटामिन सी की कमी को दूर करने में सहायक होता है।
गुलाब
गुलाब की कलियाँ विटामिन सी से समृद्ध होती हैं। इन कलियों को स्कर्वी दूर करने के एक प्रमुख तत्व के तौर पर शामिल किया जाता है। गुलाब की कलियाँ का अर्क गुर्दे की बीमारियों की दवाइयाँ बनाने में भी इस्तेमाल होता है। यह मूत्र संबंधी विकारों को दूर करती हैं। इसके अलावा गुलाब की पँखुड़ियाँ गर्मी के कारण आए बुखार को दूर करने, शरीर को ठंडा करने और त्वचा की झाइयाँ दूर करने में उपयोग की जाती हैं।
कमल
कीचड़ में खिलने वाला कमल भी डायरिया को दूर करने और गर्मी के कारण झुलसी त्वचा को निखारने में मददगार साबित होता है।
डायरिया के उपचार के लिए कमल के बीजों को गर्म पानी में डाल कर उसमें काला नमक मिलाया जाता है। अब इसमें चाय की पत्ती डालकर उबाल कर पीने से डायरिया का उपचार किया जा सकता है।कमल की पत्तियों को पीस कर उसे झुलसी त्वचा पर लगाने से त्वचा की गर्मी दूर हो जाती है और झुलसने का निशान भी चला जाता है। शरीर से अतिरिक्त वसा कम करने की दवाइयों में भी कमल की पत्तियों का उपयोग होता है।

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

भोजन : क्या खायें, कब खायें?

 

* प्रात: सूर्य उदय होने से पूर्व उठें। आवश्यक सैर, प्राणायाम, व्यायाम के लिए जरूर समय निकालें।
* रात देर तक जागने की आदत को सदा के लिए त्याग दें।
* यदि आप को खाते रहने की आदत है और उपवास नहीं रखते, तो प्लीज पूरे महीने में दो से तीन बार उपवास करें।
* उपवास तोड़ते समय सामान्य खुराक लें। आम दिनों से दो गुना खाकर उपवास के प्रभाव को खत्म न कर दें।
* जब भी भोजन करने बैठें, सारी चिंताएं दूर भगाकर मन चित्त लगाकर, चबा-चबा कर भोजन करें।
* भोजन खाते समय प्रसन्नचित रहें तथा मौन रहें तो बहुत ही अच्छा।
* अनाज, दालें आदि शरीर के लिए आवश्यक हैं। मोटा आटा, मोटा अनाज छिलकेदार दालें बेहतर हैं।
* यदि आप की आयु पचास से ऊपर है तो दिन में एक बार दालें, एक ही बार अनाज लेना चाहिए।
* कितनी भी जल्दी हो, भोजन सदैव खूब चबाकर खाएं। यदि समय कम है तो कम भोजन खा लें, मगर बिना चबाए नहीं।
* प्रात: तथा सायं के समय कुछ देर खुली हवा में घूमना, लम्बे-लम्बे सांस लेना आप के स्वास्थ्य के लिए उत्तम होगा।
* दोपहर के भोजन के बाद थोड़ा विश्राम, रात्रि के भोजन के बाद थोड़ी वाक करने की आदत अच्छी रहती है।

लाभदायक घरेलू इलाज

* चक्कर आने पर तुलसी के रस में चीनी मिलाकर सेवन करने से ठीक हो जाते हैं।
* मिश्री के साथ तुलसी दल लेने से पेट में दर्द ठीक हो जाता है।
* कुष्ठ रोग में प्रतिदिन प्रात: तुलसी का रस पीने से रोग ठीक हो जाता है।
* दाद-खाज जैसे चर्म रोगों में तुलसी और नींबू के रस का लेप करने से लाभ मिलता है।
* स्मरणशक्ति को बढ़ाने के लिए तुलसी के 5 पत्ते सुबह खाने से लाभ होता है।
* तुलसी का पंचांग चूर्ण चार माशा गाय के दूध में सुबह-शाम पीने से गठिया रोग ठीक होता है।
* मुंह के छालों में तुलसी के अर्क का कुल्ला करने से लाभ होता है।
* हैजे में तुलसी के बीज का चूर्ण बनाकर गाय के दूध में सेवन करने से तुरंत लाभ मिलता है।
* दस्त आने पर एक माशा जीरा और दस तुलसीदल दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
* पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए छोटी इलायची अदरक का रस और तुलसी का रस मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
* कान में हो रहे सामान्य दर्द को दूर करने के लिए तुलसी के पत्तों का रस कपूर में मिलाकर गुनगुना करके कुछ बूंदें डालने से लाभ मिलता है।

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

कंधो के दर्द-जकडऩ से परेशान है

यदि आप कंधो के दर्द-जकडऩ से परेशान है तो आपके लिए पर्वतासन बहुत अच्छा उपाय है। इस आसन से कंधो की जकडऩ और कंधों के जोड़ों को दर्द दूर होता है। साथ ही साथ रीढ़ के सभी जोड़ों के बीच का तनाव कम होता है।पर्वतासन की विधिसमतल स्थान पर कंबल या अन्य कपड़ा बिछाकर बैठ जाएं। रीढ़ को सीधा रखें, दोनों हाथों की अंगुलियों को इंटरलॉक करें, हथेली को पलट कर सिर के ऊपर लाएं। पर्वतासन करने के लिए हाथों को ऊपर की ओर खींचे, बाजू सीधा कर लें। कंधे, बाज़ू और पीठ की मांसपेशियों में एक साथ खिंचाव को महसूस करें। इस स्थिति में एक से दो मिनट तक रूकें, गहरी सांस लें और निकालें। अंत में हाथों को नीचे कर लें। पैरों की स्थिति बदिलए और एक बार फिर से पर्वतासन का अभ्यास करें। रीढ़ को हमेशा सीधा रखिए।पर्वतासन के लाभपर्वतासन के अभ्यास से कंधो की जकडऩ और कंधों के जोड़ों को दर्द दूर होता है। साथ ही साथ रीढ़ के सभी जोड़ों के बीच का तनाव कम होता है। फलस्वरूप तंत्रिकाओं में एक प्रकार की स्फूर्ति बनी रहती है और मन प्रसन्न रहता है।पर्वतासन करने से ना सिर्फ सांस लेने में अधिक सुविधा होती है, बल्कि फेंफड़ों की क्षमता बढ़ती है. दरअसल जब हाथों को ऊपर की ओर खींचा जाता है तब पेट की मांसपेशियों में हल्का सा खिंचाव बना रहता है और छाती चौड़ी हो जाती है, जिससे फेंफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ जाती है और सांस भरने और निकालने में सुविधा होती है। गर्भवती महिलाएं भी पहले 6 महीने तक इस आसन का अभ्यास कर सकती हैं। इस आसन के अभ्यास से तंत्रिकाओं में चुस्ती स्फूर्ति बनी रहती है।

नहीं पड़ेगा दिल का दौरा

हमारे शरीर में रक्त संचार सामान्य रहना बहुत जरूरी है। रक्त संचार कम या ज्यादा होना दोनों ही परिस्थितियां हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। ऐसे में हमेशा बीमारी को दूर रखने के लिए सही आहार के साथ-साथ योगा भी काफी अहम भूमिका निभाता है।
आसन की विधि: इस आसन की पूर्ण अवस्था प्राप्त करने में नियमित अभ्यास बहुत जरूरी। इसके लिए किसी समतल स्थान पर कंबल या दरी बिछाकर सीधे खड़े हो जाएं। दोनों पैरों के मध्य लगभग एक मीटर की दूरी रखें। लंबी सांस लेकर अंदर ही रोकें। इसमें दाएं हाथ से बाएं पैर का पंजा स्पर्श करें। अब धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए झुकें और बाएं हाथ से दाएं पैर के पंजे का स्पर्श करें और फिर दाएं हाथ से बाएं पैर के पंजे का स्पर्श करें। आपको अपनी नजर हाथ के आगे भाग पर टिकाए रखें। इस बात का भी ध्यान रखें कि झुककर पांव को छूते समय पैर जरा भी झुकें नहीं। वह बिल्कुल सीधी और तनी हुई रखें। इस आसन से कमर का जितना अधिक झुकाव होगा, उतना ही अधिक लाभ प्राप्त होगा। एक बात और छाती को विशेष रूप से पांव की ओर घुमाना चाहिए। इस क्रिया से छाती व फेंफड़े भी मजबूत होंगे।
आसन के लिए सावधानी: यह आसन गर्भवती महिलाओं को नहीं करना चाहिए।
आसन के लाभ: इसके नियमित अभ्यास से हृदय और सांस संबंधी रोगों में बेहद फायदा मिलता है। इससे पेट की आंतें स्वस्थ रहती हैं। कमर दर्द से छुटकारा मिलता है। इस योग से पूरे शरीर का व्यायाम होता है जिससे शरीर का रक्त संचार ठीक रहता है। शरीर को बल मिलता है। कमर, गर्दन, हाथों के लिए यह आसन बेहद लाभदायक है।

किसी भी व्यायाम में ऐसी व्यवस्था नहीं है कि पेट के सभी तंत्रों को कुछ क्षण के लिए आराम दिया जा सके। पेट की सारी पेशियों की मालिश भी प्राकृत रूप से हो जाती है। जिनको कब्ज की परेशानी रहती है, उनके लिए यह उड्डीयन बन्ध सबसे अधिक फायदेमंद है।उड्डीयन बंध की विधि: सबसे पहले कंबल या दरी बिछाकर पद्मासन में बैठ जाएं। पेट के अंदर की सारी वायु निकाल दें और पेट को अंदर की ओर खलाएं। जब पेट अंदर चला जाए, तो नाभि के नीचे के के भाग को सिकोड़ें। इसप्रकार महाप्राचीरा ऊपर को उठेगी और नाभि के अंग पेडू और गुप्तांग के आसपास की पेशियों का शिथलीकरण हो जाए। घुटनों को थोड़ा मोड़ें और दोनों घुटनों पर रखें। सांस बाहर निकाल दें। अब घुटनों पर जोर देते हुए पेट को अंदर खलाएं जिससे पेट में गड्ढा सा बन जाए। इस स्थिति के बाद नाभि के नीचे के भाग पेडू और गुप्तांग के चारों ओर की पेशियों को ऊपर की ओर तानें। इस प्रकार उदर, पेडू और नीचे की पेशियों का शिथलिकरण हो जाएगा। इसी स्थिति में रहकर पेट का तनाव कम कर दें और धीरे-धीरे सांस अंदर जाने दें। यह पूर्ण उड्डीयन की स्थिति होगी। जबतक सांस सरलता से रोक सके, उतनी ही देर खलाने की क्रिया जारी रखें। जब यह महसूस होने लगे की अब सांस नहीं रुकेगी तो धीरे-धीरे अंदर की ओर सांस भरना शुरू करें।सावधानी: हाई ब्लड प्रेशर के रोगी इस बंध को ना करें।उड्डीयन बंध के फायदे: इस बंध से पेट के सभी तंत्रों की मालिश हो जाती है। पाचन शक्ति बढ़ती है। कुण्डलिनी जागरण में यह बंध महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि किसी व्यक्ति को कब्ज की समस्या है तो उसे यह बंध नियमित करना चाहिए। साथ ही इस बंध से भूख बढ़ती है एवं पेट संबंधी कई रोग दूर होते हैं।

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