सोमवार, 21 फ़रवरी 2011


किसी भी व्यायाम में ऐसी व्यवस्था नहीं है कि पेट के सभी तंत्रों को कुछ क्षण के लिए आराम दिया जा सके। पेट की सारी पेशियों की मालिश भी प्राकृत रूप से हो जाती है। जिनको कब्ज की परेशानी रहती है, उनके लिए यह उड्डीयन बन्ध सबसे अधिक फायदेमंद है।उड्डीयन बंध की विधि: सबसे पहले कंबल या दरी बिछाकर पद्मासन में बैठ जाएं। पेट के अंदर की सारी वायु निकाल दें और पेट को अंदर की ओर खलाएं। जब पेट अंदर चला जाए, तो नाभि के नीचे के के भाग को सिकोड़ें। इसप्रकार महाप्राचीरा ऊपर को उठेगी और नाभि के अंग पेडू और गुप्तांग के आसपास की पेशियों का शिथलीकरण हो जाए। घुटनों को थोड़ा मोड़ें और दोनों घुटनों पर रखें। सांस बाहर निकाल दें। अब घुटनों पर जोर देते हुए पेट को अंदर खलाएं जिससे पेट में गड्ढा सा बन जाए। इस स्थिति के बाद नाभि के नीचे के भाग पेडू और गुप्तांग के चारों ओर की पेशियों को ऊपर की ओर तानें। इस प्रकार उदर, पेडू और नीचे की पेशियों का शिथलिकरण हो जाएगा। इसी स्थिति में रहकर पेट का तनाव कम कर दें और धीरे-धीरे सांस अंदर जाने दें। यह पूर्ण उड्डीयन की स्थिति होगी। जबतक सांस सरलता से रोक सके, उतनी ही देर खलाने की क्रिया जारी रखें। जब यह महसूस होने लगे की अब सांस नहीं रुकेगी तो धीरे-धीरे अंदर की ओर सांस भरना शुरू करें।सावधानी: हाई ब्लड प्रेशर के रोगी इस बंध को ना करें।उड्डीयन बंध के फायदे: इस बंध से पेट के सभी तंत्रों की मालिश हो जाती है। पाचन शक्ति बढ़ती है। कुण्डलिनी जागरण में यह बंध महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि किसी व्यक्ति को कब्ज की समस्या है तो उसे यह बंध नियमित करना चाहिए। साथ ही इस बंध से भूख बढ़ती है एवं पेट संबंधी कई रोग दूर होते हैं।

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