गुरुवार, 31 मार्च 2011

कैसे करें योगासन?

नियमित योगासन से व्यक्ति अपने आपको लम्बे समय तक चुस्त-दुरूस्त बनाये रख सकता है। योग बीमारियों से बचे रहने का सबसे बेहतर उपाय है, लेकिन योगासन यूं ही नहीं किये जा सकते। योग कैसे करना चाहिए तथा इसे करने से पहले और बाद में क्या करना चाहिए और क्या नहीं, यहां हम इस बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं :- योगासन प्रातःकाल शौच आदि से निवृत्त होने के बाद ही करना चाहिए। यदि स्ान करने के बाद योगासन किया जाये तो और भी अच्छा है, क्योंकि स्ान करने से हमारा शरीर हल्का-फुल्का और स्फूर्तियुक्त बन जाता है। संध्या काल में भोजन से पूर्व आसन किये जा सकते हैं। प आसन करने की जगह समतल, स्वच्छ और शांत होनी चाहिए। भूमि पर मोटी दरी या कालीन आदि बिछाकर योगासन करें। प आसन करते समय बातचीत न करें। यदि आसन एकाग्रता से किये जायें तो शारीरिक और मानसिक लाभ अधिक होते हैं। प अभ्यास करते समय छड़ी, चश्मा या आभूषण न पहनें। प योगासन झटके के साथ या बलपूर्वक नहीं करें। इससे शरीर में पीड़ा हो सकती है। प योगासन करते समय ढीले कपड़े पहनने चाहिए। प जटिल रोगों में या अधिक ज्वर में आसन न करें। महिलाओं को गर्भधारण के चार महीनों के बाद, प्रसूति के तीन महीनाेंं और मासिक धर्म के समय आसन नहीं करने चाहिए। प आसनों की संख्या और उनकी अवधि धीरे-धीरे ही बढ़ानी चाहिए। पहले ही दिन अधिक आसन कर डालने का प्रयास ठीक नहीं है। प यदि आसन करते समय शरीर के किसी भाग में अधिक दर्द होता हो तो उस आसन का अभ्यास तुरन्त बन्द कर दें। प आसन करते समय व्यक्ति को यथासंभव हल्का भोजन करना चाहिए ताकि शरीर हल्का-फुल्का रहे। प योगासन करते समय शरीर को हवा का सीधा झोंका न लगे, यह ध्यान रखें। योगासन करते समय शरीर के किसी भी जोड़ को उसके कुदरती मोड़ के अनुसार ही मोड़ना चाहिए। कभी भी उल्टे या तिरछे होने का प्रयत्न न करें। प योगासन के अभ्यास के क्रम का भी ध्यान अवश्य रखें, फिर प्राणायम और अंत में ध्यान करें।

महिलाओं के रोग और बायोकैमिक दवाएं

यह तो आप जानते ही होंगे कि बायोकैमिक चिकित्सा पध्दति हानि रहित व लवण चिकित्सा पध्दति है। इस पध्दति में मात्र 12 लवणीय दवाएं है, जो शरीर के लिए आवश्यक है। इन दवाओं की और विशेषता यह है कि ये अधिक मात्रा में दे देने या सभी 12 दवाएं एक साथ दे देने पर भी शरीर को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचती। यहां हम आपकी जानकारी के लिए सभी 12 दवाओं का महिलाओं से संबंधित विभिन्न रोगों से जुड़ा महत्व बता रहे हैं।

* कल्केरिया फ्लोर : यह दवा गर्म अवस्था में गर्भाशय की संकुचन स्थिति ठीक करती हैष गर्भाशय को मजबूती प्रदान करती है तथा मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव को सही स्थिति प्रदान करती है।

* कल्केरिया फॉस : यह प्रसव कमजोरी, मासिक धर्म, स्तन पीड़ा, कमर दर्द, श्वेत प्रदर को ठीक करती है। इससे कैल्शियम की कमी को भी दूर किया जा सकता है।
कल्केरिया सल्फ : योनि में खुजली, स्तनों में दर्द, मासिक धर्म की अनियमित स्थिति को ठीक करने के लिए यह दवा उत्तम है।

* फेरम फॉस : यह लवण मासिक धर्म विकृति, शुष्क योनि आदि रोगों में बहुत लाभप्रद है।

* काली मयूर : यह एक तरह से कीटाणुनाशक है। गर्भाशय के घाव, प्रसूति ज्वर में तो बहुत फायदेमंद है।

* काली सल्फ : मासिक धर्म में देरी अथवा अनियमितता सूजाक में बहुत फायदेमंद है।
मैग्नीशिया फॉस : मासिक धर्म के प्रारंभ के समय के कष्ट में डिम्ब ग्रंथियों के दर्द में यह दवा देनी चाहिए।

* नेट्रम मयूर : बांझपन, योनि में जलन, योनि की भीतरी जलन, मैथुन क्रिया के प्रति उदासीनता या उत्तेजना की कमी अथवा स्तनों में दूध की कमी हो तो इस साल्ट का सेवन करना चाहिए।

* नेट्रम फॉस : तिथि से पूर्व मासिक धर्म आना, बदबूदार श्वेत प्रदर, योनि से बदबू आए अथवा बांझपन की स्थिति हो तो इस दवा का सेवन लाभप्रद रहता है।

* नेट्रम सल्फ : मासिक धर्म के दिनों में अपच, पेट दर्द, योनि के छिलने से उत्पन्न पीड़ा हो तो इस दवा का सेवन करें।

* काली फॉस : मासिक धर्म में काम इच्छा, शरीर में पीड़ा, अत्यधिक रक्तस्राव हो तो काली फॉस का सेवन करें।
* साइलीशिया : दुर्गन्धयुक्त मासिक धर्म, स्तन के घाव, स्तनों में गांठ होने या कड़े हो जाने पर, योनि के घाव, मासिक धर्म के दिनों में कब्ज हो तो यह लवण दे सकते हैं।
जहर करेगा स्वर संबंधी विकारों का उपचार सर्वाधिक असरदार और प्राकृतिक विष माने जाने वाले बोटलिनम यया बोटॉक्स का प्रयोग अब तक आंख की एठी हुई मांसपेशियों को ढीला करने और चेहरे की झुर्रिया व झाईयां दूर करने के लिए उसकी मांसपेशियां शिथिल करने में ही किया जाता रहा है किन्तु अब गले की सर्जरी में आवाज गंवा चुके मरीजों की आवाज वापस लाने में भी बोटाक्स नामक यह अत्यन्त तीव्र विष प्रभावी दवा का काम कर रहा है। गले के कैंसर या ऐसे ही अन्य मुख व कंठ विकारों में प्राय: रोगियों का स्वरयंत्र निकाल दिया जाता है और उन्हें अपने कंठ की मांसपेशियां स्वत: ही नियंत्रित करनी पड़ती है जबकि आमतौर पर स्वरयंत्र ही हवा के जरिये आवाज का नियंत्रण करता है। ऐसे में आपरेशन के बाद सामान्य रूप से अपनी प्राकृतिक आवाज पुन: पाना बहुत मुश्किल होता है। कंठ की मांसपेशियों का नियंत्रण स्वयं करते हुए कई बार वे एेंठने लगती हैं और आवाज ठीक से नहीं आ पाती।

टैक्सास विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार स्वरयंत्र के अभाव में कंठ की मांसपेशियों पर बोटाक्स विष का प्रयोग उन्हें शिथिल कर देता है, जिससे उनमें ऐठन नहीं हो पाती और आवाज लगातार ठीक से आती रहती है। वैज्ञानिक दल ने करीब 23 रोगियों पर बोटाक्स का प्रयोग किया, जिनमें से 15 रोगियों की आवाज में फर्क पहले ही इंजेक्शन में आ गया जबकि दूसरा एंजेक्शन देने पर चार अन्य रोगियों की आवाज वापस आ गयी और शेष चार में से एक रोगी की आवाज तीसरा इंजेक्शन देने पर वापस आ गयी। इस महत्वपूर्ण शोध से उत्साहित टैक्सास विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का मानना है कि स्वर संबंधी विकारों के उपचार में बोटाक्स विष बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

दवाई खाएं, मगर अन्धाधुन्ध नहीं

यदि व्यक्ति बीमार पड़ जाता है तो उसे किसी न किसी दवा का सहारा तो लेना ही पड़ता है। फिर भी दवा सीमित खानी चाहिए, अन्धाधुंध नहीं। वह भी तब जब जरूरी है।

* जरा सी तकलीफ हुई नहीं कि हम पहुंच जाते हैं डाक्टर के पास। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। उस कारणों को अपने व्यवहार से निकाल फेंकना चाहिए, जिनसे रोग हुआ। डाक्टर तक पहुंचने की नौबत गंभीर अवस्था में हो।
* यह बात मान लेनी चाहिए कि हम प्रयत्न कर, अपने आहार में जरूरी सुधार व परिवर्तन कर, उपयुक्त व्यायाम का सहारा लेकर अपने रोग को उखाड़ सकते हैं। इस प्रकार के प्रयत्न से यदि रोग मुक्त हो जाएंगे तो फिर से यह नहीं उभर सकेगा। इसे जड़ से उखाड़ फेंकना लक्ष्य हो आपका।
* यह भी पता चला है कि बहुत से रोगों का मुख्य कारण अधिक कब्ज होना या पाचन शक्ति में गड़बड़ हो जाना या फिर पेट में कोई विकार घर कर जाना। यदि इस ओर हम सदा ध्यान देते रहें तो रोग होंगे ही नहीं।

बुधवार, 30 मार्च 2011

दस्त और डीहाईड्रेशन में सावधानियां

दस्त या अतिसार स्वयं तो रोग है ही, यदि ये बने रहें तो शरीर में पानी की कमी हो जाना लाजमी है। यह शरीर में पानी की कमी ही डीहाईड्रेशन है, जो कि दस्तों से भी अधिक खतरनाक है। अत: दस्तों का सही, तुरंत इलाज करना जरूरी है। बार-बार शौच जाना बहुत कमजोरी भी ला देता है।

कारण : 1. अशुध्द दूषित पानी पीना, 2. अंतड़ियों में भोजन का सड़ना, 3. आवश्यकता से अधिक खाना, 4. किसी अन्य रोग के कारण एन्टीबायोटिक दवाएं खाना, 5. ऐसी दवाएं खाना जो दस्त लगाती हों, 6. भोजन की किसी प्रकार से एलर्जी हो जाना, 7. बासी भोजन खाने से, 8. फल से जो गल-सड़ गये हों, 9. पुरानी मिठाई से, 10. गंदे, मक्खियों वाले, धूल वाले कटे फल आदि खाने से भी, 11. घबराहट, मानसिक दबाव, भय तथा तनाव भी दस्त लगा देते हैं।
उपचार : दस्तों से बचने के लिए निम्नलिखित उपचार कर सकते हैं-
जीरा तथा सौंफ से- एक चम्मच जीरा, एक चम्मच सौंफ लेकर तवे पर भून लें। फिर चकला-बेलना पर या सिल पर पीसें। इसे खाकर ताजा पानी पी लें। ऐसी तीन खुराक एक दिन में लेनी है। कुल चार दिन उपचार करना है। यह चूर्ण इकट्ठा, एक बार बनाकर भी रख सकते हैं।
ईसबगोल की भूसी से- ईसबगोल की भूसी के दो चम्मच लें। एक डिश प्लेट दही में मिलाकर खाएं। ऐसी तीन खुराक दिन में लें। तीन दिनों तक लेते रहें। आराम मिलेगा।
अदरक का रस- एक प्याला उबला हुआ पानी लें। इसमें अदरक का ताजा रस एक चम्मच डालें। कुछ देर रखा रहने दें। जब गुनगुना हो जाए तो पी लें। ऐसी चार खुराक हर घंटे-डेढ़ घंटे के बाद लें। दो ही दिनों में आराम मिल जायेगा।
डीहाईड्रेशन से बचें- इस रोग में डीहाईड्रेशन का बहुत डर रहता है। इससे बचने का प्रयत्न करना जरूरी है।
1. उबाल कर, ठंडा करके पानी पीने की आदत डाले।
2. इलेक्ट्राल को घोलकर पीते रहें।
3. गुनगुने पानी में चीनी, नमक और नींबू स्वाद के अनुसार मात्रा में डालें और पी लें। दिन भर पीते रहें जब तक दस्त परेशान कर रहे हों। ऐसा करने से पानी की कमी नहीं होती और रोग भी जल्दी शांत होता है। इस रोग से कमजोरी भी आ जाती है। अत: जल्दी से जल्दी इलाज कर अपना बचाव करें।

दो सेब खाने से भाग जाएगा आपका गुस्सा

आजकल हर व्यक्ति के ऊपर जरूरत से ज्यादा काम का बोझ और जिम्मेदारियां आ गई हैं। इन्हीं कारणों को लेकर आज ज्यादातर लोगों का स्वभाव चिढ़चिढ़ा हो गया है।कई कोशिशों के बाद भी वे अपने गुस्से पर कन्ट्रोल नहीं कर पाते हैं।

कई बार उनका यही गुस्सा कई मुसीबतों का कारण भी बन जाता है। लेकिन अब आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है नीचे एक कारगर घरेलू नुस्खा बताया जा रहा है जिसको आजमा कर आप अपने गुस्से को हमेशा के लिए दूर कर सकते है।

- दो पके हुए सेब बिना छीले ही सुबह सुबह खाली पेट खूब चबा चबाकर खाएं। लगातार पन्द्रह दिन सेब खाने से किसी भी तरह का गुस्सा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।

विशेष- जिन लोगों का दिमाग कमजोर हो या जिन स्टूडेण्टस को याद न रहने की समस्या हो वे इस नुस्खे को जरूर आजमाएं। इस नुस्खे को आजमाने से मेमोरी शार्प होती है।

मंगलवार, 29 मार्च 2011

हेल्दी रखती हैं नैचरल चीजें

एक परफेक्ट मील के लिए जरूरी है कि आप सही चीजों को मिक्स करें और इनमें बैलेंस बनाए रखें। आपको बताते हैं कुछ बेसिक रूल्स, जिन्हें अपनाकर आपका खाना टेस्टी होने के साथ ही हेल्दी भी हो जाएगा:

रूल 1
उन्हीं सब्जियों और फलों का इस्तेमाल करें, जो सीजन में हैं। क्या आपने जून के महीने में सेब खाए हैं? इस मौसम में सेब बिना रस वाला और टेस्टलेस होता है। यह याद रखें कि अगर सब्जियां व फल सीजन के बाहर मिल रहे हैं, तो वे आर्टिफिशल तरीके से तैयार किए गए हैं और हेल्थ के लिहाज से अनहेल्दी हैं। इसलिए सीजन के मुताबिक ही फल और सब्जियां खरीदें।

रूल 2
लोकल फल और सब्जियां ही खरीदें। सुपरमार्केट में रखी पैकेट सब्जियां हेल्दी नहीं होती। ये आधी पकी ले ली जाती हैं और फिर इन्हें आर्टिफिशल तरीके से पकाया जाता है। इन्हें ताजा रखने के लिए केमिकल के साथ रखा जाता है, जिससे इनके तत्व खत्म हो जाते हैं। इसलिए सब्जियां हमेशा सब्जी वाले से ताजा ही खरीदें।

रूल 3
नेचर के साथ चलें। वही खाएं, जो आपके रहने की जगह में ज्यादा पाया जाता है। उदाहरण के तौर पर ठंडी जगहों पर रहने वाले एस्कीमोज बहुत सारा फैट खाते हैं, क्योंकि यह उनको सूट करता है। लेकिन अगर हम इतना फैट खाएं, तो यह जानलेवा हो सकता है। भारत में फल, सब्जियां, मसाले और सब्जियां बहुत मिलती हैं, इसलिए हमें इन्हें ही ज्यादा खाना चाहिए।

रूल 4
दिन का पहला आहार नाश्ता पौष्टिक व स्वादिष्ट होगा, तो आप दिनभर एनर्जी से भरपूर रहेंगे। इसके लिए आपको बहुत ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं। बस फ्रिज से अपनी पसंद के फूटस चुनें। आजकल के मौसम में पाइनेपल, मैंगो, केला, बेरीज और सेब अच्छे फल हैं। इन्हें अच्छी तरह धोकर एक प्लेट में छोटे-छोटे टुकड़े कर लें और ठंडा करने के लिए फ्रीज में रख दें।

नाश्ते के समय सलाद को फ्रीज से निकालें और उसमें पुदीना और नारियल डालकर ऊपर से फ्रेश दही डाल दें। ठंडा- ठंडा सलाद तैयार। खरबूजा, संतरे, तरबूज का सलाद भी गर्मियों के दिन में मजेदार सलाद हो सकता है। इस मौसम में अपने फ्रीज में खूब मात्रा में खीरा, टमाटर, बंद गोभी और नीबू रखें। इससे आप जब चाहें इस पोषक युक्त आहार का आनंद उठा सकती हैं।

एक कटोरा दलिया या ओटमील में ब्राउन शुगर, कसा खजूर, किशमिश, बादाम और ब्राउन शुगर मिलाएं। यह नाश्ता आपको दिनभर एनर्जी से भरपूर रखेगा और लंच टाइम तक भूख नहीं लगने देगा।

रूल 5
ज्यादा तेल इस्तेमाल न करें। अपने वेज या नॉनवेज खाने पर पहले तेल लगा लें और फिर पैन में पकाएं। इससे बिल्कुल भी एक्स्ट्रा तेल नहीं लगता है। तेल, घी या मक्खन को कम या ज्यादा गर्म न होने दें, यह हानिकारक होता है।

रूल 6
प्योर सामग्री का इस्तेमाल करें। जैसे, धनिया के पूरे बीजों का इस्तेमाल करें, क्योंकि बीजों में सारे तत्व बने रहते हैं। सारे मसालों के बीज रखें और तब ही पीसें, जब जरूरत हो। अगर वह पहले से पीसे हों, तो वह प्रोटीन के साथ-साथ टेस्ट भी खो देते हैं। बाहर से मसालों का पाउडर बिल्कुल न खरीदें। इनमें कलर व मात्रा बढ़ाने के लिए कुछ मिला दिया जाता है।

रूल 7
सही सब्जी, फिश, मीट कुछ भी खाएं। इसे बनाने की सामग्री लें और बनने में पूरा समय दें। इससे खाना टेस्टी बनेगा और आप खाने का पूरी तरह एंजॉय भी कर पाएंगे।

नमक खाते ही उतर जाएगा बुखार

गर्मियों में अधिकाशं लोगों को किसी न किसी कारण से बुखार की शिकायत हो ही जाती है। कभी वायरल फीवर के नाम पर तो कभी मलेरिया जैसे नामों से यह सभी को अपनी चपेट में ले लेता है। फिर बड़ा आदमी हो या कोई बच्चा इस बीमारी की चपेट में आकर कई परेशानियों से घिर जाते हैं। कई बुखार तो ऐसे हैं जो बहुत दिनों तक आदमी को अपनी चपेट में रखकर उसे पूरी तरह से कमजोर बना देता है। पर घबराइए नहीं सभी तरह के बुखार की एक अचूक दवा है भुना नमक। इसके प्रयोग किसी भी तरह के बुखार को उतार देता है।

भुना नमक बनाने की विधि- खाने मे इस्तेमाल आने वाला सादा नमक लेकर उसे तवे पर डालकर धीमी आंच पर सेकें। जब इसका कलर कॉफी जैसा काला भूरा हो जाए तो उतार कर ठण्डा करें। ठण्डा हो जाने पर एक शीशी में भरकर रखें।जब आपको ये महसूस होने लगे की आपको बुखार आ सकता है तो बुखार आने से पहले एक चाय का चम्मच एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर ले लें। जब आपका बुखार उतर जाए तो एक चम्मच नमक एक बार फिर से लें। ऐसा करने से आपको बुखार कभी पलट कर नहीं आएगा।

विशेष-हाई ब्लडप्रेशर के रोगियों को यह वि धि नहीं अपनानी चाहिए।

- यह प्रयोग एक दम खाली पेट करना चाहिए इसके बाद कुछ खाना नहीं चाहिए और ध्यान रखें कि इस दौरान रोगी को ठण्ड न लगे।

- अगर रोगी को प्यास ज्यादा लगे तो उसे पानी को गर्म कर उसे ठण्डा करके दें।

- इस नुस्खे को अजमाने के बाद रोगी को करीब 48 घंटे तक कुछ खाने को न दें। और उसके बाद उसे दूध, चाय या हल्का दलिया बनाकर खिलाऐं।

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