सोमवार, 2 मई 2011

आंतों में घाव व सूजन



चिकित्सा :

1. सेब : आंतों में घाव होने पर सेब का रस पीते रहने से आराम मिलता है।

2. बेर : बेर का सेवन करने से आंतों के घाव ठीक होते हैं।

3. फलों का रस : आंतों के घाव के रोगियों को फलों का रस पिलाने से लाभ होता है क्योंकि फलों का रस ज्यादा लेने से या फलाहार पर रहने से पेट में हाइड्रोक्लोरिड एसिड बनता है जो आंतों के घावों को ठीक कर देता है।

4. गाजर : बड़ी आंत की सूजन में गाजर का रस लगभग 200 ग्राम, चुकन्दर का रस 150 ग्राम, खीरे का रस 160 ग्राम मिलाकर पीना चाहिए।

5. दही : आंतों की सूजन दूर करने के लिए दही का प्रयोग करें। ज्यादा से ज्यादा दही का सेवन करें रोटी कम कर दें। भूख लगने पर भी दही का प्रयोग करें।

6. फिटकरी : भूनी फिटकरी आधा ग्राम पीसकर एक केले में चीरकर भर दें और सुबह-शाम खायें।

7. कुचला : घाव में कीड़े पड़ गये हो तो कुचला के पत्तों की पट्टी बांधें। इससे सभी कीड़े मर जायेंगें और घाव ठीक हो जाएगा।

8. मूली : मूली और उसके कोमल पत्ते चबाकर खाने से आंत्रों (आंतों) की सूजन नष्ट होती है।

आंत्रपुच्छ प्रदाह

Appendicitis


परिचय :

पेट के दायें भाग में नाभि से हटकर लगभग 6 सेमी की दूरी तक दर्द होता है। यह दर्द कभी कम तो कभी तेज होने लगता है यहां तक कि हिलने डुलने से दर्द और तेज हो जाता है।

आंत्रपुच्छ यानी अपेंडिक्स की चिकित्सा आयुर्वेद में औषधी द्वारा भी की जा सकती है। मगर आपातकालीन में तो शल्य (सर्जिकल) चिकित्सा ही सही है।

भोजन तथा परहेज :

पथ्य : पूरा आराम करना, फलों का रस, पर्लवाली, साबूदाना और दूसरे तरल पदार्थ खायें। रोटी न खायें, दस्त की दवा लेना, खटाई, ज्यादा तेल से बने चटपटे मसालेदार चीजें न खायें।


बनतुलसी :

बनतुलसी को पीसकर लुगदी बना लें किसी लोहे की करछुल पर गर्म करें (भूनना नहीं है) उस पर थोड़ा-सा नमक छिड़क दें और दर्द वाले स्थान पर इस लुगदी की टिकिया बनाकर 48 घंटे में 3 बार बदल कर बांधें। रोगी को इस अवधि में बिस्तर पर आराम करना चाहिए। इस चिकित्सा से 48 घंटे में रोग दूर हो जाता है। इसके पत्ते दर्द कम करते हैं। सूजन कम करते हैं। सूजन व दर्द वाले स्थान पर इसका लेप करने से फायदा होता है।


    गाजर :

    आंत्रपुच्छ प्रदाह में गाजर का रस पीना फायदेमंद है। काली गाजर सबसे ज्यादा फायदेमंद है।


      दूध :

      दूध को एक बार उबालकर ठंडा कर पीने से लाभ होता है।


      टमाटर :

      लाल टमाटर में सेंधानमक और अदरक डालकर भोजन के पहले खाने से फायदा होता है।


      इमली :

      इमली के बीजों का अन्दरूनी सफेद गर्भ (गिरी) को निकालकर पीस लें। बने लेप को मलने और लगाने से सूजन में और पेट फूलने में आराम आता है।


        गुग्गुल :

        गुग्गुल लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से 1 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम गुड़ के साथ खाने से फायदा होता है।


          सिनुआर :

          सिनुआर के पत्तों का रस 10 से 20 ग्राम सुबह-शाम खाने से आंतों का दर्द दूर होता है। साथ ही सिनुआर, करंज, नीम और धतूरे के पत्तों को एक साथ पीसकर हल्का गर्म-गर्म जहां दर्द हो वहां बांधने से लाभ होता है।


            नागदन्ती :

            नागदन्ती की जड़ की छाल 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम निर्गुण्डी (सिनुआर) और करंज के साथ लेने से आंतों के दर्द में लाभ होता है। यह आंत में तेज दर्द हो या बाहर से दर्द हो हर जगह प्रयोग किया जा सकता है। यह न्यूमोनिया, फेफड़े का दर्द, अंडकोष की सूजन, यकृत की सूजन तथा फोड़ा आदि में फायदेमंद है।


            रानीकूल (मुनियारा) :

            रानीकूल की जड़ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम लेने से लाभ होता है। इससे आंत से सम्बन्धी दूसरे रोगों में भी फायदा होता है। इसका पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती का चूर्ण) फेफड़े की जलन में भी फायदेमंद होता है।


            हुरहुर :

            पेट में जिस स्थान पर दर्द महसूस हो उस स्थान पर पीले फूलों वाली हुरहुर के सिर्फ पत्तों को पीसकर लेप करने से दर्द मिट जाता है।


              राई :

              पेट के निचले भाग में दायीं ओर राई पीसकर लेप करने से दर्द दूर होता है। मगर ध्यान रहे कि एक घंटे से ज्यादा देर तक लेप लगा नहीं रहना चाहिए। वरना छाले भी पड़ सकते हैं।


                पालक का साग :

                आंत से सम्बन्धित रोगों में पालक का साग खाना फायदेमंद है।


                  चौलाई :

                  चौलाई का साग लेकर पीस लें और उसका लेप करें। इससे शांति मिलेगी और पीड़ा दूर होगी।


                  बड़ी लोणा :

                  बड़ी लोणा का साग पीसकर आंत की सूजन वाले स्थान पर लेप लगायें या उसे बांधें। इससे दर्द कम होता है और सूजन दूर होती है।


                    चांगेरी :

                    चांगेरी के साग को पीसकर लेप बना लें और उसे पेट के दर्द वाले हिस्से में बांधें। इससे लाभ होगा।


                    चूका साग :

                    चूका साग सिर्फ खाने और दर्द वाले स्थान पर ऊपर से लेप करने व बांधने से ही बहुत लाभ होता है।


                      आंत कृमि (Intestinal Worms)



                      परिचय :

                      आंतों में कई तरह के कीड़े पैदा होते हैं। जिनमें सूत्रकृमि, केंचुए और फीता कृमि खास हैं। आंतों में इसके होने से गुदा में खुजली, भूख न लगना, कब्ज, सिर दर्द आदि लक्षण भी प्रकट होते हैं। कभी-कभी पतले दस्त भी आने लगते हैं। इसे दूर करने के लिए लीवर का स्वस्थ होना जरूरी है। इन कृमियों के अलावा भी कुछ कृमि होते हैं जो अनाज वगैरह को भी खत्म करते हैं।

                      रोग के लक्षण :

                      मल के साथ कीड़े निकलना, पेट में दर्द और दस्त व भूख न लगना।


                      एरंड का तेल :

                      काला जीरा, अजवाइन और पलाश को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और सोते समय खा लें। दूसरे दिन सुबह के समय एरंड का तेल लें। इससे आंतों के कीडे़ मर जाते हैं।


                      केला :

                      केला शहद में भिगोकर रात के समय खायें। अगले दिन सुबह के समय एरण्डी का तेल लें। इससे कीड़े मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।


                      मैनफल :

                        बच्चों के आन्त्रकृमि में मैनफल का छिलका या मैनफल के बीज का चूर्ण 1 से 4 ग्राम देने से कीड़े खत्म होते हैं। दस्त के लिए दूसरी दवा देना जरूरी नहीं। यह विरेचक भी है।


                          नमक :


                            • बच्चों के पेट में कीड़े होने पर नमक मिलाकर गुनगुना पानी पिला दें। नाभि पर हल्दी पीसकर लगा दें। दो से तीन दिनों तक ऐसा करने से बच्चों के पेट के सारे कीड़े खत्म हो जाते हैं।
                            • बच्चों के आंतों के कीड़ों में नमक मिलाकर हल्का गरम पानी मिलाकर पिला दें। नाभि पर हल्दी पीसकर लगा दें। ऐसा रोज करने से तीन दिनों में आंतों के सारे कीड़े खत्म हो जाते हैं।
                            • सूत्रकृमि में नमक के लेप को नाभि के नीचे लगाने से लाभ होता है।


                            जंगली अजवायन :

                            जंगली अजवायन का पाउडर 1 से 3 ग्राम नियमित रात को गरम पानी से लेने से पेट के कीडे़ खत्म हो जाते हैं और अफारा भी खत्म हो जाता है।


                            गजपीपल :

                            गजपीपल का फांट (गर्म पानी में गजपीपल का चूर्ण मिलाकर छाना गया रस) 7 मिलीलीटर से 21 मिलीलीटर तक सुबह-शाम खाने से पेट के कीड़े खत्म हो जाते हैं।


                            सोया :

                            सोया का काढ़ा 40 ग्राम सुबह-शाम पीने पेट में होने वाले कीड़े खत्म हो जाते हैं।


                            बायविडंग :


                              • बायविडंग का पाउडर बच्चे को 4 ग्राम और बड़ों को 8 ग्राम सुबह शहद या गु़ड़ के साथ सेवन करने के लिए दें। इसके सेवन के 4 घंटे के बाद उम्र के अनुसार एरंड तेल को दूध में मिलाकर पीने से पेट के कीड़े जल्दी मर जाते हैं।
                              • अतीस का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तथा वायविडंग का चूर्ण लगभग आधा ग्राम रात में सोने से पहले गरम पानी के साथ लेना चाहिए। इससे आंतों के कीड़े मर जाते हैं।


                              विडंगभेद :

                              विडंगभेद का पाउडर 5 से 15 ग्राम शहद में मिलाकर सुबह चाटना चाहिए। इसके 4 घंटे बाद एरंड तेल 2 से 4 चम्मच दूध में मिलाकर पिला देने से आंत के कीड़े खत्म होते हैं।


                                नाड़ी हिंगु :

                                नाड़ी हिंगु एक तरह के गोंद के रूप में मिलता है। इसे लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में सुबह-शाम देने से गोल कीड़े खत्म होते हैं या निर्जीव होकर मल के साथ निकल आते हैं। डिकामाली या नाड़ी हिंगु में लकड़ी के टुकड़े, घास फूस आदि लगे होते हैं जिसे गरम पानी में घोलकर साफ कर प्रयोग में लाया जाता है।


                                  बांस :

                                  बांस के पत्तों को पीसकर रस निकालकर बच्चों को बस्ति (एनिमा क्रिया) दी जाये तो सूत्रकृमि खत्म होते हैं।


                                  कबीला :

                                    • कबीला 2 से 8 ग्राम को दूध, दही, शहद या किसी सुगन्धित पेय के साथ रात को सोने से पहले खिलायें। इससे सभी तरह के कीड़े खासकर स्फीत कीड़े जरूर खत्म होते हैं। इसमें अलग से दस्त की जरूरत नहीं होती फिर भी सुबह से अगर मल नहीं हो रहा हो तो दूध में 2 से चार चम्मच एरंड तेल मिलाकर पिला दें।
                                    • बच्चों के आंतों में कीड़े होने की शिकायत पर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कबीला दूध या दही में मिलाकर रात में देना चाहिए।


                                    सत्यानाशी :

                                    सत्यानाशी की जड़ का पाउडर 4 ग्राम नियमित रूप खिलाने से स्फीत कीड़े खत्म होते हैं।


                                      भारंगी :

                                      भारंगी की छाल या पत्तों की फांट तैयार कर बस्ति देने से सूत्र कीड़े खत्म होते हैं।



                                      आमाहल्दी :

                                      आमाहल्दी 2 से 4 ग्राम लताकरंज के पत्ते के रस के साथ खाने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं।


                                      लहसुन :


                                        • लहसुन का रस 10 से 30 बूंद को दूध में मिलाकर सुबह-शाम खाने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं।
                                        • लहसुन के रस में शहद मिलाकर खाने से आंत के कीड़े खत्म हो जाते हैं।
                                        • लहसुन को बायविडंग के चूर्ण के साथ खाने से आंत के कीडे़ समाप्त हो जाते हैं।


                                        तारपीन :

                                        गोंद के साथ तारपीन तेल को घोंटकर थोड़ी सी चीनी मिलाकर पानी के साथ खाने से आंत के कीड़े खत्म होते हैं।


                                          भांट :

                                          भांट के पत्ते के रस को नाभि के नीचे लेप करने से कीड़े खत्म होते हैं।


                                          बालू का साग :

                                          बालू का साग एक तरह की वनस्पति है जिसके पत्तों में बालू की तरह क्षार के कंकड़ होते हैं। इसके पंचाग का रस 500 ग्राम पानी के साथ सुबह खाली पेट हर दूसरे दिन खाने से आंत के कीड़े मरकर निकल जाते हैं।


                                          फरहद :

                                          फरहद के पत्ते का रस 5 से 10 ग्राम सुबह-शाम पिलाने से कीड़े खत्म होते हैं।


                                          हरसिंगार :

                                          बच्चों के पेट के कीड़ों के लिए हरसिंगार के पत्तों के रस को चीनी मिलाकर देने से लाभ होता है।


                                          सहजन :

                                          सहजन के फली की साग खाते रहने से आंत में कीड़े नहीं होते हैं।


                                            कोरैया (कूड़ा) :

                                            कोरैया के कोमल पत्ते खिलाने से बच्चों के पेट के कीड़े खत्म होते हैं।


                                              कंटकंरज :

                                              कंटकरंज के पत्ते का रस 10 से 20 ग्राम या जड़ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से 1.20 ग्राम को कालीमिर्च के साथ घोंटकर सुबह-शाम खाने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं


                                              अतिबला (कंघी) :

                                              अतिबला (कंघी) के बीजों की धूनी गुदा में देने से सूत्रकृमि खत्म होते हैं।


                                                मरोड़फली :

                                                मरोड़फली डेढ़ ग्राम से 3 ग्राम सुबह शाम देने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं।


                                                  पीला हुरहुर :

                                                  पीले हुरहुर के बीजों का चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में खाने से आंतों के कीड़े खत्म हो जाते हैं।


                                                  हिंगोट :

                                                  हिंगोट के फल का गूदा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम सुबह से शाम तक खाने से पेट के कीड़े खत्म हो जाते हैं।


                                                  गैम्बोज :

                                                  तमाल के पेड़ से प्राप्त गोंद को गैम्बोज कहते हैं। इसे 3 मिलीग्राम की मात्रा में रात में सोने से पहले दालचीनी या लौंग के साथ दें। इससे पेट के कीड़े खत्म होते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि मात्रा ज्यादा न हो अन्थया जान भी जा सकती है।


                                                    ढाक :

                                                    ढाक के स्वस्थ बीज (जिनमें कीड़े न लगे हो) का पाउडर लगभग आधा ग्राम से 10 ग्राम तक की मात्रा में खाने से पेट के केचुएं खत्म होते हैं। इसके बीजों के छिलके निकालकर प्रयोग करें अन्यथा पतले दस्त भी हो सकते हैं।


                                                      सागौन :

                                                      सागौन की छाल या लकड़ी का चूर्ण यदि 3 से 12 ग्राम सुबह-शाम खाये तो आंतों के कीड़े खत्म हो जाते हैं।


                                                        कोशाम :

                                                        कोशाम के बीजों का चूर्ण मवेशी (जानवरों) के घावों पर डालने से घाव के सब कीड़े निकल जाते हैं।


                                                        नारियल :

                                                        आंतों के चिपटे कीड़ों को खत्म करने के लिए पीड़ित रोगी को रात में एक नारियल की गरी खिलाकर सवेरे दस्त आने के लिए कोई औषधी खिला दें। इससे आंतों के कीड़े मरकर बाहर निकल आते हैं।


                                                          कच्ची सुपारी :

                                                          आंतों में चिपटे कीड़े निकालने के लिए कच्ची सुपारी को दूध में पीसकर पिलाने से काफी फायदा होता है।


                                                          शहतूत :

                                                          शहतूत के पेड़ की छाल का काढ़ा 50 से 100 ग्राम की मात्रा में खाने से आंत के कीड़े मरकर बाहर निकल आते हैं।


                                                            अनार :

                                                              • अनार के जड़ की छाल 1 से 2 ग्राम खाने से आंतों के कीड़े खत्म हो जाते हैं। इसे नियमित सुबह-शाम दें। अनार के फल का छिलका भी इसी मात्रा में लेने से कीड़ नष्ट होते हैं।
                                                              • अनार का रस आंतों के कीडे़ और दस्तों में लाभकारी होता है। लीवर की कार्यक्षमता को बढ़ाता है और पाचन में सहायता करता है।


                                                              सेब :

                                                              सेब के पेड़ की जड़ 10 ग्राम से 20 ग्राम पीसकर सुबह शाम खाने से कीड़े मरकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।


                                                                अखरोट :


                                                                  • अखरोट के पत्तों का रस 10 से 20 ग्राम खाने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं।
                                                                  • अखरोट का तेल बताशे में 15 से 20 बूंद डालकर या दूध में मिलाकर सुबह-शाम खाने से आंत के कीड़े खत्म होते हैं।


                                                                  बिजौरा नींबू :

                                                                  बिजौरा नींबू की जड़ 10 ग्राम पीसकर रोज सवेरे 2-4 दिनों तक पिलाने से कीड़े खत्म होते हैं।


                                                                  बथुआ :

                                                                  आंतों में कीड़े होने पर बथुआ का साग खाना लाभदायक होता है।


                                                                    सुगन्ध वास्तुक :

                                                                    सुगन्ध वास्तुक के बीज लगभग आधा ग्राम से 2.40 ग्राम चीनी के साथ सिर्फ एक ही मात्रा देना काफी होता है। इस बीज से तेल भी निकाला जाता है।


                                                                    छोटी लोणा (नोनीसाग) :

                                                                    छोटी लोणा (नोनीसाग) के बीज का पाउडर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में खाने से आंत के कीड़े खत्म होते हैं।


                                                                    पेठा भूरा :

                                                                    पेठा के बीजों का चूर्ण बनाकर 3 से 6 ग्राम या इसके बीजों का तेल 20 से 30 बूंद सुबह-शाम खाने से आंत के कीड़े खत्म होते हैं।


                                                                      सफेद कद्दू :

                                                                      सफेद कद्दू के ताजे बीज, 30 से 60 ग्राम कूटकर दूध एवं मधु के साथ खाली पेट पिलाने से आंतों के कीड़े खत्म होते हैं। इसे पिलाने के कम से कम 3 घंटे बाद विरेचन देकर पेट साफ कर दिया जाता है।


                                                                        करेले :

                                                                        आंतों के कीड़े खत्म करने के लिए करेले का रस गरम पानी में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर खाने से पूरा फायदा होता है और कीड़े खत्म होते हैं।


                                                                        गाजर :

                                                                        गाजर को कद्दूकस कर नियमित खिलाने से आंतों के कीड़े मर जाते हैं।


                                                                        कच्चे अनानास :

                                                                        कच्चे अनानास का रस नियमित रूप से खाने से आंतों के कीड़े खत्म होते हैं।


                                                                        अफसतीन :

                                                                        अफसतीन का तेल 10 से 15 बूंद सुबह-शाम बताशे पर डालकर या दूध में मिलाकर खाने से आंत के कीड़े मर जाते हैं।


                                                                        अजवायन :

                                                                        किरमानी अजवायन का चूर्ण डेढ़ ग्राम से 3 ग्राम सुबह-शाम खाने से आंत के कीड़े खत्म होते हैं।


                                                                          फा-जूफा :

                                                                          फा-जूफा 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम खाने से कीड़े खत्म होते हैं।


                                                                          पुदीना :

                                                                          पुदीना के पत्तों को खाने से आंतों के दर्द और कीड़े दूर होते हैं।


                                                                          बेवरंग :

                                                                          आंतों के कीड़ों को दूर करने के लिए बेवरंग के बीजों का चूर्ण 4 से 16 ग्राम सुबह-शाम लेने से लाभ होता है।


                                                                            गंधपुरा :

                                                                            गंधपुरा का तेल 5 से 15 बूंद सुबह-शाम चीनी में डालकर खाने से आंत के कीड़े खत्म होते हैं।


                                                                              कुप्पी :

                                                                              कुप्पी के पंचांग का चूर्ण 40 से 80 ग्राम सुबह-शाम लेने से आंतों के कीड़े खत्म होते हैं।


                                                                              टमाटर :

                                                                              टमाटर के रस में कालीमिर्च और कालानमक मिलाकर नियमित सुबह खाली पेट खाने से एक हफ्ते में ही कीड़े खत्म हो जाते हैं।


                                                                                हींग :

                                                                                पानी में हींग घोलकर नाभि के नीचे लगाने से आंतों के कीड़े मल के साथ बाहर आ जाते हैं।


                                                                                  गंभारी :

                                                                                  गंभारी की जड़ का काढ़ा 50 से 100 मिलीमीटर की मात्रा में रोगी को पिलाने से आंतों के कीडे़ मर जाते हैं।


                                                                                    पोदीना :

                                                                                    आधा कप पोदीने का रस दिन में दो बार नियमित रूप से कुछ दिनों तक पिलाते रहने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।


                                                                                      सूरजमुखी :

                                                                                        • लगभग 1 से 3 ग्राम की मात्रा में इसके बीज खिलाने से केंचुआ व उदरगत कीड़े का निर्हरण (नाश) होता है।
                                                                                        • सूरजमुखी के बीजों का चूर्ण डेढ़ से तीन ग्राम चीनी के साथ सुबह-शाम दो दिन सेवन करें और तीसरे दिन एरंड तेल विरेचन (दस्त लाना) के लिए लें। इससे विशेषत: मल के कीड़े निकल जाते हैं।


                                                                                        आंत्रवृद्धि (आंत का उतरना) (HERNIA)



                                                                                        परिचय :

                                                                                        आंत का अपने स्थान से हट जाना ही आंत का उतरना कहलाता है। यह कभी अंडकोष में उतर जाती है तो कभी पेडु या नाभि के नीचे खिसक जाती है। यह स्थान के हिसाब से कई तरह की होती है जैसे स्ट्रैगुलेटेड, अम्बेलिकन आदि। जब आंत अपने स्थान से अलग होती है तो रोगी को काफी दर्द व कष्ट का अनुभव होता है।

                                                                                        इसे छोटी आंत का बाहर निकलना भी कहा जाता है। खासतौर पर यह पुरुषों में वक्षण नलिका से बाहर निकलकर अंडकोष में आ जाती है। स्त्रियों में यह वंक्षण तन्तु लिंगामेन्ट के नीचे एक सूजन के रूप में रहती है। इस सूजन की एक खास विशेषता है कि नीचे से दबाने से यह गायब हो जाती है और छोड़ने पर वापस आ जाती है। इस बीमारी में कम से कम खाना चाहिए। इससे कब्ज नहीं बनता। इस बात का खास ध्यान रखें कि मल त्याग करते समय जोर न लगें क्योंकि इससे आंत और ज्यादा खिसक जाती है।

                                                                                        विभिन्न भाषाओं में आंत उतरने के नाम :

                                                                                        हिन्दी

                                                                                        आंत का उतरना।

                                                                                        अरबी

                                                                                        आंत्रवृद्धि।

                                                                                        बंगाली

                                                                                        अंत्रवृद्धि।

                                                                                        गुजराती

                                                                                        सर्वग्रन्था।

                                                                                        कन्नड़

                                                                                        करलु बेलेयुवुडू।

                                                                                        मराठी

                                                                                        आंत्रवृद्धि।

                                                                                        पंजाबी

                                                                                        धरनपैना।

                                                                                        तमिल

                                                                                        इलिव्युड, कुदलिरवकम।

                                                                                        तेलगू

                                                                                        रेगुजरूत।

                                                                                        अंग्रेजी

                                                                                        हार्निया।

                                                                                        कारण :

                                                                                        कब्ज, झटका, तेज खांसी, गिरना, चोट लगना, दबाव पड़ना, मल त्यागते समय जोर लगाने से या पेट की दीवार कमजोर हो जाने से आंत कहीं न कहीं से बाहर आ जाती है और इन्ही कारणों से वायु जब अंडकोषों में जाकर उसकी शिराओं नसों को रोककर अण्डों और चमड़े को बढ़ा देती है जिसके कारण अंडकोषों का आकार बढ़ जाता है। वात, पित्त, कफ, रक्त, मेद और आंत इनके भेद से यह सात तरह का होता है।

                                                                                        लक्षण :

                                                                                        • वातज रोग में अंडकोष मशक की तरह रूखे और सामान्य कारण से ही दुखने वाले होते हैं।
                                                                                        • पित्तज में अंडकोष पके हुए गूलर के फल की तरह लाल, जलन और गरमी से भरे होते हैं।
                                                                                        • कफज में अंडकोष ठंडे, भारी, चिकने, कठोर, थोड़े दर्द वाले और खुजली से भरे होते हैं।
                                                                                        • रक्तज में अंडकोष काले फोड़ों से भरे और पित्त वृद्धि के लक्षणों वाले होते हैं।
                                                                                        • मेदज के अंडकोष नीले, गोल, पके ताड़फल जैसे सिर्फ छूने में नरम और कफ-वृद्धि के लक्षणों से भरे होते हैं।
                                                                                        • मूत्रज के अंडकोष बड़े होने पर पानी भरे मशक की तरह शब्द करने वाले, छूने में नरम, इधर-उधर हिलते रहने वाले और दर्द से भरे होते है। अंत्रवृद्धि में अंडकोष अपने स्थान से नीचे की ओर जा पहुंचती हैं। फिर संकुचित होकर वहां पर गांठ जैसी सूजन पैदा होती है।

                                                                                        भोजन तथा परहेज :

                                                                                        दिन के समय पुराने बढ़िया चावल, चना, मसूर, मूंग और अरहर की दाल, परवल, बैगन, गाजर, सहजन, अदरक, छोटी मछली और थोड़ा बकरे का मांस और रात के समय रोटी या पूड़ी, तरकारियां तथा गर्म करके ठंडा किया हुआ थोड़ा दूध पीना फायदेमंद है। लहसुन, शहद, लाल चावल, गाय का मूत्र गाजर, जमीकंद, मट्ठा, पुरानी शराब, गर्म पानी से नहाना और हमेशा लंगोट बांधे रहने से लाभ मिलता है।

                                                                                        उड़द, दही, पिट्ठी के पदार्थ, पोई का साग, नये चावल, पका केला, ज्यादा मीठा भोजन, समुद्र देश के पशु-पक्षियों का मांस, स्वभाव विरुद्ध अन्नादि, हाथी घोड़े की सवारी, ठंडे पानी से नहाना, धूप में घूमना, मल और पेशाब को रोकना, पेट दर्द में खाना और दिन में सोना नहीं चाहिए।


                                                                                        रोहिनी

                                                                                        रोहिनी की छाल का काढ़ा 28 मिलीलीटर रोज 3 बार खाने से आंतों की शिथिलता धीरे-धीरे दूर हो जाती है।

                                                                                        इन्द्रायण

                                                                                        • इन्द्रायण के फलों का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग या जड़ का पाउडर 1 से 3 ग्राम सुबह शाम खाने से फायदा होता है। अनुपात में सोंठ का चूर्ण और गुड़ का प्रयोग करते है।
                                                                                        • इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 4 ग्राम की मात्रा में 125 ग्राम दूध में पीसकर छान लें तथा 10 ग्राम अरण्डी का तेल मिलाकर रोज़ पीयें इससे अंडवृद्धि रोग कुछ ही दिनों में दूर हो जाता है।
                                                                                        • इन्द्रायण की जड़ और उसके फूल के नीचे की कली को तेल में पीसकर गाय के दूध के साथ खाने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।

                                                                                        मोखाफल :

                                                                                        मोखाफल कमर में बांधने से आंत उतरने की शिकायत मिट जाती है इसका दूसरा नाम एक सिरा रखा गया है। आदिवासी लोग बच्चों के अंडकोष बढ़ने पर इसके फल को कमर में भरोसे के साथ बांधते है जिससे लाभ भी होता है।

                                                                                        भिंडी :

                                                                                          बुधवार को भिंडी की जड़ कमर में बांधे। हार्निया रोग ठीक हो जायेगा।

                                                                                            लाल चंदन :

                                                                                            लाल चंदन, मुलहठी, खस, कमल और नीलकमल इन्हें दूध में पीसकर लेप करने से पित्तज आंत्रवृद्धि की सूजन, जलन और दर्द दूर हो जाता है।

                                                                                            देवदारू :

                                                                                            देवदारू के काढ़े को गाय के मूत्र में मिलाकर पीने से कफज का अंडवृद्धि रोग दूर होता है।

                                                                                            सफेद खांड :

                                                                                            सफेद खांड और शहद मिलाकर दस्तावर औषधि लेने से रक्तज अंडवृद्धि दूर होती है।

                                                                                            वच :

                                                                                            वच और सरसों को पानी में पीसकर लेप करने से सभी प्रकार के अंडवृद्धि रोग कुछ ही दिनों में दूर हो जाते हैं।

                                                                                            पारा :

                                                                                            पारे की भस्म को तेल और सेंधानमक में मिलाकर अंडकोषों पर लेप करने से ताड़फल जैसी अंडवृद्धि भी ठीक हो जाती है।

                                                                                            एरंड :

                                                                                            • एक कप दूध में दो चम्मच एरंड का तेल डालकर एक महीने तक पीने से अंत्रवृद्धि ठीक हो जाती है।
                                                                                            • खरैटी के मिश्रण के साथ अरण्डी का तेल गर्मकर पीने से आध्यमान, दर्द, आंत्रवृद्धि व गुल्म खत्म होती है।
                                                                                            • रास्ना, मुलहठी, गर्च, एरंड के पेड की जड़, खरैटी, अमलतास का गूदा, गोखरू, पखल और अडूसे के काढ़े में एरंडी का तेल डालकर पीने से अंत्रवृद्धि खत्म होती है।
                                                                                            • इन्द्रायण की जड़ का पाउडर, एरंडी के तेल या दूध में मिलाकर पीने से अंत्रवृद्धि खत्म हो जाएगी।
                                                                                            • लगभग 250 ग्राम गरम दूध में 20 ग्राम एरंड का तेल मिलाकर एक महीने तक पीयें इससे वातज अंत्रवृद्धि ठीक हो जाती है।
                                                                                            • एरंडी के तेल को दूध में मिलाकर पीने से मलावरोध खत्म होता है।
                                                                                            • दो चम्मच एरंड का तेल और बच का काढ़ा बनाकर उसमें दो चम्मच एरंड का तेल मिलाकर खाने से लाभ होता है।

                                                                                            गुग्गुल:

                                                                                              गुग्गुल एलुआ, कुन्दुरू, गोंद, लोध, फिटकरी और बैरोजा को पानी में पीसकर लेप करने से अंत्रवृद्धि खत्म होती है।

                                                                                                कॉफी :

                                                                                                • बार-बार काफी पीने से और हार्निया वाले स्थान को काफी से धोने से हार्निया के गुब्बारे की वायु निकलकर फुलाव ठीक हो जाता है।
                                                                                                • बार-बार काफी पीने और हार्निया वाले स्थान को काफी से धोने से हार्नियां के गुब्बारे की वायु निकलकर फुलाव ठीक हो जाता है। मृत्यु के मुंह के पास पहुंची हुई हार्नियां की अवस्था में भी लाभ होता है।

                                                                                                तम्बाकू :

                                                                                                तम्बाकू के पत्ते पर एरंडी का तेल चुपड़कर आग पर गरम कर सेंक करने और गरम-गरम पत्ते को अंडकोषों पर बांधने से अंत्रवृद्धि और दर्द में आराम होता है।


                                                                                                मारू बैंगन :

                                                                                                मारू बैगन को भूभल में भूनकर बीच से चीरकर फोतों यानी अंडकोषों पर बांधने से अंत्रवृद्धि व दर्द दोनों बंद होते हैं। बच्चों की अंडवृद्धि के लिए यह उत्तम है।


                                                                                                  छोटी हरड़ :

                                                                                                  छोटी हरड़ को गाय के मूत्र में उबालकर फिर एरंडी का तेल लें। इन हरड़ों का पाउडर बनाकर कालानमक, अजवायन और हींग मिलाकर 5 ग्राम मात्रा मे सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ खाने से या 10 ग्राम पाउडर का काढ़ा बनाकर खाने से आंत्रवृद्धि की विकृति खत्म होती है।


                                                                                                  समुद्रशोष :

                                                                                                  समुद्र शोष विधारा की जड़ को गाय के मूत्र मे पीसकर लेप करने करने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।

                                                                                                  त्रिफला :

                                                                                                  इस रोग में मल के रुकने की विकृति ज्यादा होती है। इसलिए कब्ज को खत्म करने के लिए त्रिफला का पाउडर 5 ग्राम रात में हल्के गर्म दूध के साथ लेना चाहिए।


                                                                                                  मुलहठी :

                                                                                                  मुलहठी, रास्ना, बरना, एरंड की जड़ और गोक्षुर को बराबर मात्रा में लेकर, थोड़ा सा कूटकर काढ़ा बनायें। इस काढ़े में एरंड का तेल डालकर पीने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।


                                                                                                  अजवायन :

                                                                                                  अजवायन का रस 20 बूंद और पोदीने का रस 20 बूंद पानी में मिलाकर पीने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।

                                                                                                  सम्भालू :

                                                                                                  सम्भालू की पत्तियों को पानी में खूब उबालकर उसमें थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर सेंकने से आंत्रवृद्धि शांत होती है।

                                                                                                  दूध :

                                                                                                  उबाले हुए हल्के गर्म दूध में गाय का मूत्र और शक्कर 25-25 ग्राम मिलाकर खाने से अंडकोष में उतरी आंत्र अपने आप ऊपर चली जाती है।

                                                                                                  गोरखमुंडी :

                                                                                                  गोरखमुंडी के फलों की मात्रा के बराबर मूसली, शतावरी और भांगर लेकर कूट-पीसकर पाउडर बनायें। यह पाउडर 3 ग्राम पानी के साथ खाने से आंत्रवृद्धि में फायदा होता है।

                                                                                                  हरड़ :

                                                                                                  हरड़, मुलहठी, सोंठ 1-1 ग्राम पाउडर रात को पानी के साथ खाने से लाभ होता है।

                                                                                                  बरियारी :

                                                                                                  लगभग 15 से 30 मिलीलीटर जड़ का काढ़ा 5 मिलीलीटर रेड़ी के तेल के साथ दिन में दो बार सेवन करने से लाभ होता है।

                                                                                                  बकरी का दूध :

                                                                                                  आंखों के लाल होने पर मोथा या नागरमोथा के फल को साफ करके बकरी के दूध में घिसकर आंखों में लगाने से आराम आता है।


                                                                                                    रविवार, 1 मई 2011

                                                                                                    सौंदर्य व औषधीय गुणों से भरपूर है चंदन

                                                                                                    प्राचीन काल से लेकर अब तक चंदन से मनुष्य का विशेष लगाव रहा है। धूप, अगरबत्ती, परफ्यूम, उबटन पाउडर आदि में चंदन की सुगंध व शीतलता का कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
                                                                                                    चंदन एक सदाबहार, घना व छायादार वृक्ष है। यह अपने आस-पास के पौधों से पोषक तत्व सोखता रहता है। इसके प्राकृतिक गुण वातावरण को सुगंधित बनाए रखते हैं। यह श्वेत व लाल रंग का होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में यह खूब होता है।
                                                                                                    चंदन सिर्फ पूजा पाठ के लिए ही काम में नहीं लाया जाता वरन् इसका उपयोग सौंदर्य व औषधि के रूप में भी किया जाता है। चंदन घिसकर देवताओं को लगाया जाता है। प्रतिदिन चंदन लगाने से स्मरण शक्ति ठीक रहती है। चुस्ती-फुरती भी बनी रहती है।
                                                                                                    चंदन ते तेल से बने सैंट, परफ्यूम लगाने से त्वचा को कोई नुकसान नहीं होता। चंदन वाला टेलकम पाउडर लगाने से गर्मी से राहत मिलती है।

                                                                                                    *कफ वाली खांसी होने पर चंदन तेल की 3-4 बूंदे बताशे पर डालकर खाएं। आराम मिलेगा।
                                                                                                    *गर्मियों में उल्टियां होने पर चंदन को घिसकर आंवले के रस या मुरब्बे के साथ खिलाएं।
                                                                                                    *यदि आपकी त्वचा से दुर्गंध आती है तो चंदन की तेल की मालिश करें।
                                                                                                    *सिरदर्द व मानसिक परेशानी होने पर माथे पर चंदन का लेप करें आराम मिलेगा।
                                                                                                    *दुर्गंध दूर करने के लिए चंदन की अगरबत्ती जलायें। माहौल भीनी-भीनी खुशबू से महकने लगेगा।
                                                                                                    *चंदन की छाल को घिसकर त्वचा के रोगों में लगाने से तुरंत असर होता है।
                                                                                                    *उबटन में हल्दी के साथ चंदन मिलाकर लगाने से चेहरे के काले दाग, झुर्रियां मुंहासे दूर हो जाते हैं व चेहरा साफ व चमकने लगता है।
                                                                                                    *चंदन का धुआं कीटनाशी भी होता है। लू लग जाने पर हाथ, पैरों पर चंदन को घिसकर लगाएं व चंदन का शर्बत पुदाने के रस के साथ पिएं।
                                                                                                    *जले-कटे स्थान पर तथा सृजन होने पर चंदन लगाने से आराम मिलता है।
                                                                                                    *सफेद चंदन को घिस कर शहद, मिश्री मिलाकर चावल के घोए हुए पानी के साथ पीने से रक्ततिसार में लाभ होता है
                                                                                                    *पतले दस्त होने पर चंदन घिसकर मिश्री या खस के दानों को पीसकर उसके साथ पानी में घोल कर पी लें।
                                                                                                    *एड़ियों के फटने पर चंदन का तेल लगाने से आराम मिलता है।
                                                                                                    *बुखार में चंदन का तेल माथे पर लगाएं। इससे बुखार नियंत्रण में आ जाता है।
                                                                                                    *चंदन को आप कंडीशनर के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यह बालों को मजबूती देता है। इसका प्रयोग बालों को चमक व पोषण देता है।

                                                                                                    नींबू से निखारिए अपना स्वास्थ्य और सौंदर्य

                                                                                                    नींबू क प्रयोग औषधि के रूप में तो होता ही है, साथ ही यह सौंदर्य रक्षा में भी अपनी अहम् भूमिका निभाता है। झाइयों को दूर करना हो या त्वचा की रंगत निखारनी हो या कील मुंहासों से छुटकारा पाना हो या फिर हाथों की कोमलता बरकरार रखनी हो तो नींबू पूरी मुस्तैदी और सजगता के साथ इन सभी कार्यों को सम्पन्न करते हुए आपके कोमल सौंदर्य की रक्षा करता है। सौंदर्य रक्षा के साथ ही नींबू के अन्य अनेक गुणों के विषय में भी यहां जानकारी दी जा रही है।
                                                                                                    * चेहरे पर क्रांति लाने के लिए नींबू के रस में मलका मसूर की दाल को पीसकर मिला दें तथा इस तैयार उबटन को दस मिनट तक चेहरे पर लगा रहने दें। दस मिनट बाद हल्के हाथों से रगड़कर छुड़ाएं। इस प्रक्रिया से दस दिनों में ही चेहरा जगमगाने लगेगा।
                                                                                                    * अगर चेहरे पर झाइयां अपना आधिपत्य जमा रही हों तो नींबू के रसयुक्त छिलके को चेहरे पर रगड़िये। एक हफ्ते में आपका चेहरा झाइयों से मुक्त हो जाएगा।
                                                                                                    * हाथों की कोमलता की रक्षा के लिए दो चम्मच नींबू के रस में एक चम्मच ग्लिसरीन और एक चम्मच गुलाबजल मिलाकर तैयार कर लें और रोज रात में सोते समय आठ बूंदें लेकर हाथों की मालिश कर लें। हाथ हमेशा नर्म, मुलायम और कोमल बने रहेंगे।
                                                                                                    * चेहरे को कीलों और खूटियों से मुक्त करने के लिए नींबू के रस को रूई को सहायता से पूरे चेहरे पर लगायें और पांच मिनट तक वैसे ही लगा रहने दें। फिर गुनगुने पानी से चेहरा धोकर रोयेंदार तौलिये से पोंछ लें। एक हफ्ते के अन्दर कीले और खुटियां चेहरे से गायब हो जाएंगी।
                                                                                                    * अगर शरीर की रंगत को निखारना हो तो नहाने वाले पानी में दो नींबूओं का रस और एक चम्मच नमक मिला दें। इस पानी से प्रतिदिन स्ान करें। कुछ ही दिनों में शरीर की रंगत में निखार आ जाता है। एवं दाग-धब्बे भी दूर हो जाते हैं।
                                                                                                    * चेहरे पर पड़े दाग-धब्बे मिटाने के लिए रोज सुबह और शाम नियमित रूप से ठंडे पानी में एक नींबू का रस निचोड़कर पियें। कुछ ही दिनों में दाग और धब्बों से चेहरा मुक्त होकर निखर जाता है।
                                                                                                    * मुंहासों से छुटकारा पाने के लिए कच्चे दूध में नींबू का रस निचोड़कर उसे मुंहासों पर लगायें और पन्द्रह मिनट बाद गरम पानी से मुंह धो लें। कुछ दिनों में मुंहासे समाप्त हो जायेंगे और चेहरा फूल-सा खिल उठेगा।
                                                                                                    * चेहरे पर चितकबरे दागों को साफ करने के लिए रात में सोते समय नींबू के रस को दागों पर लगाकर सुखा लें और सुबह उठकर गुनगुने पानी से मुंह धो लें। पन्द्रह दिन में ही चितकबरे दाग छूट जायेंगे।
                                                                                                    * हाथों की कुहनी का रंग अगर अधिक काला हो रहा हो तो नींबू के रस-भरे छिलके पर नमक मिला कर रगड़िये। कुहनियां दो-चार दिनों में ही साफ हो जायेंगी।
                                                                                                    * दांत अगर अधिक पीले हो गये हों तो नमक लगे नींबू के छिलके को दांतों पर रगड़िये। मात्र दो दिनों में ही दांत चमक उठेंगे।
                                                                                                    * होंठ अगर फट रहे हों तो दूध की मलाई में नींबू के रस को निचोड़ कर रोज लगाइये! होंठ फटना दूर होकर मुलायम हो जाएंगे।
                                                                                                    नींबू के अन्य महत्वपूर्ण उपयोग-
                                                                                                    * मकड़ी के काटे हुए स्थान पर नींबू के रस में नीम के पत्तों का रस व बेसन मिलाकर मलने से मकड़ी का वष नहीं चढ़ता है।
                                                                                                    * धतूरे के नशे को दूर करने के लिए नींबू के रस में चीनी मिलाकर पीजिए। थोड़ी देर में ही लाभ मालूम होगा।
                                                                                                    * नींबू के सूखे छिलकों को सुलगा कर उसका धुआं खटमल युक्त चारपाई, कुर्सी आदि में लगाने से खटमल भाग जाते हैं।
                                                                                                    * भांग के नशे से मुक्ति के लिए नींबू चूसने से लाभ मिलता है।
                                                                                                    * मधुमक्खी के काटने पर उस स्थान पर रसयुक्त नींबू के छिलके में नमक लगाकर रगड़ने से राहत मिलती है।
                                                                                                    * नींबू के छिलकों को सुखाकर पीस लें। इस डस्ट को कीड़े-मकोड़ों के रहने वाले स्थान पर छिड़ने से कीड़े-मकोड़े वहां से भाग जाते हैं।
                                                                                                    * आंवले के तेल में नींबू का रस मिलाकर बालों में लगाते रहने से बाल लम्बे, घने व काले होते हैं, साथ ही जूं भी मर जाते हैं।
                                                                                                    * सरसों तेल में नींबू रस मिलाकर कांख में लगाने से वहां के जूं मर जाते हैं।

                                                                                                    शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

                                                                                                    मुलतानी मिट्टी का पैक लगाइए, दमकती त्वचा पाइये

                                                                                                    आज महिलाएं अपने सौंदर्य के प्रति अत्यधिक जागरूक हैं। आज का युग है ही सौंदर्य प्रधान युग। फिर हम में से कौन अपने आपको ब्यूटी क्वीन कहलाना पसंद नहीं करेगा। नारी की इसी आवश्यकता को मध्य नजर रखते हुए सौंदर्य प्रसाधनों की कई छोटी बड़ी कम्पनियां खुल गई हैं मगर ये सौंदर्य प्रसाधन इतने महंगे होते हैं कि हम सब इन्हें खरीद नहीं पाते। निराश न होइए। आपके लिए सस्ते, आसानी से उपलब्ध और पाकृतिक प्रसाधन मौजूद हैं। मुलतानी मिट्टी की सहायता से आप अपने रूप को निखार कर आकर्षक बना सकती हैं।
                                                                                                    १ मुलतानी मिट्टी का पैक प्राकृतिक एन्टीसेप्टिक है। इसके प्रयोग से आप अपने चेहरे को मुंहासों, दाग, धब्बों व झाइयों से दूर रख सकते हैं। इसका उपयोग त्वचा में कसाव लाता है।
                                                                                                    २ मुलतानी मिट्टी में दही मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को 15-20 मिनट तक चेहरे पर लगाए रखें। सूखने पर ठंडे पानी से धो लें। त्वचा साफ स्निग्ध दोनों हो जाएगी।
                                                                                                    ३ एक चम्मच पिसी हुई मुलतानी मिट्टी में एक चम्मच नींबू का रस, एक छोटा चम्मच बेसन, जरा सी हल्दी मिलाकर पैक तैयार करें। इस पैक के इस्तेमाल से आप मुंहासों से छुटकारा पा सकेंगी।
                                                                                                    ४ काली त्वचा को निखारने के लिए दो चम्मच मुलतानी मिट्टी में एक चम्मच सरसों का तेल, एक चम्मच मलाई व चुटकी भर हल्दी मिलाएं। इस पेस्ट को नहाने से पूर्व पूरी त्वचा पर लगाएं। हफ्ते में एक दो बार इस पेस्ट का इस्तेमाल करें।
                                                                                                    ५ मुलतानी मिट्टी का प्रयोग दही, दूध के अतिरिक्त फलों व सब्जियों के रस के साथ भी किया जा सकता है। फलों के रस के साथ इसका प्रयोग करने से त्वचा के बंद रोम कूप खुल जाते हैं।
                                                                                                    ६ टमाटर के रस में मुलतानी मिट्टी का पेस्ट बनाकर प्रतिदिन चेहरे पर लगाना आपकी त्वचा को गोरा व साफ करता है।
                                                                                                    ७ यदि आपकी त्वचा तैलीय है तो मुलतानी मिट्टी में गुलाब जल मिला कर लगाएं।
                                                                                                    ८ चेहरे की झुर्रियों को दूर करने के लिए दो चम्मच मुलतानी मिट्टी, छोटे चम्मच खीरे का रस, दो बादाम की पिसी गिरियां मिलाकर पैक बना लें। इसे चेहरे पर हफ्ते में एक बार अवश्य लगाएं ताकि झुर्रियां दूर होकर त्वचा मुलायम व साफ हो जाए।
                                                                                                    ९ शुष्क त्वचा के लिए दो चम्मच मुलतानी मिट्टी में बादाम का तेल या शहद मिलाकर चेहरे पर लगाएं। सूखने के पश्चात गुनगुने पानी से धो लें।
                                                                                                    १० चेहरे के साथ-साथ आप मुलतानी मिट्टी का प्रयोग अपने बालों के लिए भी कर सकती हैं। इसका प्रयोग बालों को चमकदार, मुलायम व काला बनाता है। दो चम्मच मुलतानी मिट्टी में दही व नींबू की कुछ बूंदें मिलाकर बालों की जड़ों में लगाएं।
                                                                                                    ११ पैक हमेशा ब्रश या उंगलियों के पोरों से धीरे-धीरे लगाएं। यदि आप पैक का प्रयोग महीने में तीन चार बार करेंगी तो आपकी त्वचा कांतिमय व मुलायम बनी रहेगी।

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