परिचय :
     आंत का अपने  स्थान से हट जाना ही आंत का उतरना कहलाता है। यह कभी अंडकोष में उतर जाती है तो कभी  पेडु या नाभि के नीचे खिसक जाती है। यह स्थान के हिसाब से कई तरह की होती है जैसे  स्ट्रैगुलेटेड, अम्बेलिकन आदि। जब आंत अपने स्थान से अलग होती है तो रोगी को काफी  दर्द व कष्ट का अनुभव होता है।
           इसे छोटी आंत का बाहर निकलना भी कहा जाता है। खासतौर पर यह  पुरुषों में वक्षण नलिका से बाहर निकलकर अंडकोष में आ जाती है। स्त्रियों में यह  वंक्षण तन्तु लिंगामेन्ट के नीचे एक सूजन के रूप में रहती है। इस सूजन की एक खास  विशेषता है कि नीचे से दबाने से यह गायब हो जाती है और छोड़ने पर वापस आ जाती है। इस  बीमारी में कम से कम खाना चाहिए। इससे कब्ज नहीं बनता। इस बात का खास ध्यान रखें कि  मल त्याग करते समय जोर न लगें क्योंकि इससे आंत और ज्यादा खिसक जाती है।
 विभिन्न भाषाओं में आंत उतरने के नाम  :
     | हिन्दी     |      आंत का उतरना। | 
  | अरबी      |      आंत्रवृद्धि। | 
  | बंगाली          |      अंत्रवृद्धि। | 
  | गुजराती    |      सर्वग्रन्था। | 
  | कन्नड़          |      करलु बेलेयुवुडू। | 
  | मराठी     |      आंत्रवृद्धि। | 
  | पंजाबी          |      धरनपैना।  | 
  | तमिल          |      इलिव्युड,  कुदलिरवकम। | 
  | तेलगू      |      रेगुजरूत। | 
  | अंग्रेजी          |       हार्निया। | 
  
कारण :
          कब्ज,  झटका, तेज खांसी, गिरना, चोट लगना, दबाव पड़ना, मल त्यागते समय जोर लगाने से या पेट  की दीवार कमजोर हो जाने से आंत कहीं न कहीं से बाहर आ जाती है और इन्ही कारणों से  वायु जब अंडकोषों में जाकर उसकी शिराओं नसों को रोककर अण्डों और चमड़े को बढ़ा देती  है जिसके कारण अंडकोषों का आकार बढ़ जाता है। वात, पित्त, कफ, रक्त, मेद और आंत इनके  भेद से यह सात तरह का होता है।
 लक्षण :
  - वातज रोग में अंडकोष मशक की तरह रूखे और  सामान्य कारण से ही दुखने वाले होते हैं।  
- पित्तज में अंडकोष पके हुए गूलर के फल की तरह  लाल, जलन और गरमी से भरे होते हैं।  
- कफज में अंडकोष ठंडे, भारी, चिकने, कठोर, थोड़े  दर्द वाले और खुजली से भरे होते हैं।  
- रक्तज में अंडकोष काले फोड़ों से भरे और पित्त  वृद्धि के लक्षणों वाले होते हैं।  
- मेदज के अंडकोष नीले, गोल, पके ताड़फल जैसे  सिर्फ छूने में नरम और कफ-वृद्धि के लक्षणों से भरे होते हैं।   
- मूत्रज के अंडकोष बड़े होने पर पानी भरे मशक की  तरह शब्द करने वाले, छूने में नरम, इधर-उधर हिलते रहने वाले और दर्द से भरे होते  है। अंत्रवृद्धि में अंडकोष अपने स्थान से नीचे की ओर जा पहुंचती हैं। फिर संकुचित  होकर वहां पर गांठ जैसी सूजन पैदा होती है। 
भोजन तथा परहेज :
            दिन के  समय पुराने बढ़िया चावल, चना, मसूर, मूंग और अरहर की दाल, परवल, बैगन, गाजर, सहजन,  अदरक, छोटी मछली और थोड़ा बकरे का मांस और रात के समय रोटी या पूड़ी, तरकारियां तथा  गर्म करके ठंडा किया हुआ थोड़ा दूध पीना फायदेमंद है। लहसुन, शहद, लाल चावल, गाय का  मूत्र गाजर, जमीकंद, मट्ठा, पुरानी शराब, गर्म पानी से नहाना और हमेशा लंगोट बांधे  रहने से लाभ मिलता है।
           उड़द, दही, पिट्ठी के पदार्थ, पोई का साग, नये चावल, पका केला,  ज्यादा मीठा भोजन, समुद्र देश के पशु-पक्षियों का मांस, स्वभाव विरुद्ध अन्नादि,  हाथी घोड़े की सवारी, ठंडे पानी से नहाना, धूप में घूमना, मल और पेशाब को रोकना, पेट  दर्द में खाना और दिन में सोना नहीं चाहिए।
 
  रोहिनी
  
  
रोहिनी की छाल का  काढ़ा 28 मिलीलीटर रोज 3 बार खाने से आंतों की शिथिलता धीरे-धीरे दूर हो जाती है। 
    इन्द्रायण
  
  
 - इन्द्रायण के फलों का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का  चौथा भाग या जड़ का पाउडर 1 से 3 ग्राम सुबह शाम खाने से फायदा होता है। अनुपात में  सोंठ का चूर्ण और गुड़ का प्रयोग करते है।  
- इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 4 ग्राम की मात्रा  में 125 ग्राम दूध में पीसकर छान लें तथा 10 ग्राम अरण्डी का तेल मिलाकर रोज़ पीयें  इससे अंडवृद्धि रोग कुछ ही दिनों में दूर हो जाता है।  
- इन्द्रायण की जड़ और उसके फूल के नीचे की कली  को तेल में पीसकर गाय के दूध के साथ खाने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।
    मोखाफल :
  
  
मोखाफल कमर में  बांधने से आंत उतरने की शिकायत मिट जाती है इसका दूसरा नाम एक सिरा रखा गया है।  आदिवासी लोग बच्चों के अंडकोष बढ़ने पर इसके फल को कमर में भरोसे के साथ बांधते है  जिससे लाभ भी होता है।
    भिंडी :
  
  
बुधवार को भिंडी  की जड़ कमर में बांधे। हार्निया रोग ठीक हो जायेगा। 
 
  लाल चंदन :
  
  
लाल चंदन, मुलहठी,  खस, कमल और नीलकमल इन्हें दूध में पीसकर लेप करने से पित्तज आंत्रवृद्धि की सूजन,  जलन और दर्द दूर हो जाता है।
  देवदारू :
  
  
 देवदारू के काढ़े  को गाय के मूत्र में मिलाकर पीने से कफज का अंडवृद्धि रोग दूर होता है।
    सफेद खांड :
  
  
सफेद खांड और शहद  मिलाकर दस्तावर औषधि लेने से रक्तज अंडवृद्धि दूर होती है।
    वच :
  
  
वच और सरसों को  पानी में पीसकर लेप करने से सभी प्रकार के अंडवृद्धि रोग कुछ ही दिनों में दूर हो  जाते हैं।
    पारा :
  
  
 पारे की भस्म को  तेल और सेंधानमक में मिलाकर अंडकोषों पर लेप करने से ताड़फल जैसी अंडवृद्धि भी ठीक  हो जाती है।
    एरंड :
  
  
 - एक कप दूध में दो  चम्मच एरंड का तेल डालकर एक महीने तक पीने से अंत्रवृद्धि ठीक हो जाती है।  
- खरैटी के मिश्रण  के साथ अरण्डी का तेल गर्मकर पीने से आध्यमान, दर्द, आंत्रवृद्धि व गुल्म खत्म होती  है।   
- रास्ना, मुलहठी,  गर्च, एरंड के पेड की जड़, खरैटी, अमलतास का गूदा, गोखरू, पखल और अडूसे के काढ़े में  एरंडी का तेल डालकर पीने से अंत्रवृद्धि खत्म होती है।  
- इन्द्रायण की जड़  का पाउडर, एरंडी के तेल या दूध में मिलाकर पीने से अंत्रवृद्धि खत्म हो  जाएगी।  
- लगभग 250 ग्राम  गरम दूध में 20 ग्राम एरंड का तेल मिलाकर एक महीने तक पीयें इससे वातज अंत्रवृद्धि  ठीक हो जाती है।  
- एरंडी के तेल को  दूध में मिलाकर पीने से मलावरोध खत्म होता है।  
- दो चम्मच एरंड का  तेल और बच का काढ़ा बनाकर उसमें दो चम्मच एरंड का तेल मिलाकर खाने से लाभ होता  है।
    गुग्गुल:
  
  
गुग्गुल एलुआ,  कुन्दुरू, गोंद, लोध, फिटकरी और बैरोजा को पानी में पीसकर लेप करने से अंत्रवृद्धि  खत्म होती है।
 
  कॉफी :
  
   
 
  - बार-बार काफी पीने से और हार्निया वाले स्थान  को काफी से धोने से हार्निया के गुब्बारे की वायु निकलकर फुलाव ठीक हो जाता  है।  
- बार-बार काफी पीने और हार्निया वाले स्थान को  काफी से धोने से हार्नियां के गुब्बारे की वायु निकलकर फुलाव ठीक हो जाता है।  मृत्यु के मुंह के पास पहुंची हुई हार्नियां की अवस्था में भी लाभ होता है।
  तम्बाकू :
  
  
तम्बाकू के पत्ते  पर एरंडी का तेल चुपड़कर आग पर गरम कर सेंक करने और गरम-गरम पत्ते को अंडकोषों पर  बांधने से अंत्रवृद्धि और दर्द में आराम होता है।
 
    मारू बैंगन :
  
  
मारू बैगन को भूभल  में भूनकर बीच से चीरकर फोतों यानी अंडकोषों पर बांधने से अंत्रवृद्धि व दर्द दोनों  बंद होते हैं। बच्चों की अंडवृद्धि के लिए यह उत्तम है। 
 
    छोटी हरड़ :
  
  
छोटी हरड़ को गाय  के मूत्र में उबालकर फिर एरंडी का तेल लें। इन हरड़ों का पाउडर बनाकर कालानमक,  अजवायन और हींग मिलाकर 5 ग्राम मात्रा मे सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ खाने से  या 10 ग्राम पाउडर का काढ़ा बनाकर खाने से आंत्रवृद्धि की विकृति खत्म होती  है।
 
    समुद्रशोष :
  
  
 समुद्र शोष  विधारा की जड़ को गाय के मूत्र मे पीसकर लेप करने करने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता  है।
    त्रिफला :
  
  
इस रोग में मल के  रुकने की विकृति ज्यादा होती है। इसलिए कब्ज को खत्म करने के लिए त्रिफला का पाउडर  5 ग्राम रात में हल्के गर्म दूध के साथ लेना चाहिए।
 
   मुलहठी :
  
  
मुलहठी, रास्ना,  बरना, एरंड की जड़ और गोक्षुर को बराबर मात्रा में लेकर, थोड़ा सा कूटकर काढ़ा बनायें।  इस काढ़े में एरंड का तेल डालकर पीने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता  है।
 
  अजवायन :
  
   
 
 अजवायन का रस 20 बूंद और पोदीने का रस 20 बूंद  पानी में मिलाकर पीने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।
  
  सम्भालू :
  
  
सम्भालू की  पत्तियों को पानी में खूब उबालकर उसमें थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर सेंकने से  आंत्रवृद्धि शांत होती है।
  दूध :
  
  
उबाले हुए हल्के  गर्म दूध में गाय का मूत्र और शक्कर 25-25 ग्राम मिलाकर खाने से अंडकोष में उतरी  आंत्र अपने आप ऊपर चली जाती है।
    गोरखमुंडी :
  
  
गोरखमुंडी के फलों  की मात्रा के बराबर मूसली, शतावरी और भांगर लेकर कूट-पीसकर पाउडर बनायें। यह पाउडर  3 ग्राम  पानी के साथ खाने से आंत्रवृद्धि में फायदा होता है।
    हरड़ :
  
  
 हरड़, मुलहठी,  सोंठ 1-1 ग्राम पाउडर रात को पानी के साथ खाने से लाभ होता है।
 
  बरियारी :
  
  
 लगभग 15 से 30  मिलीलीटर जड़ का काढ़ा 5 मिलीलीटर रेड़ी के तेल के साथ दिन में दो बार सेवन करने से  लाभ होता है।
  बकरी का दूध :
  
  
आंखों के लाल होने  पर मोथा या नागरमोथा के फल को साफ करके बकरी के दूध में घिसकर आंखों में लगाने से  आराम आता है।
 
   
 
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