पक्षाघात- कुछ विशिष्ट आयुर्वेदिक क्रियाएं
आज के प्रगतिशील वैज्ञानिक युग में सी.टी. स्कैन, एम.आर.आई जैसे महत्वपूर्ण परीक्षणों की वजह से पक्षाघात की गंभीरता हम समझ सकते हैं। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में पक्षाघात के रोगियों के लिये आपातकालीन चिकित्सा भी की जाती है जैसे मल मूत्र पर नियंत्रण न होने पर कैथेटर लगाना, निगलने में असमर्थता होने पर रायल्स टयूब लगाकर टयूब लगाकर रुग्ण को सहारा दिया जाता है पर सभी प्रकार की आपात्कलीन चिकित्साएं देने पर आखिर रूग्ण का क्या हाल होगा। इसका उत्तर यही है कि आधुनिक चिकित्सक केवल फिजियोथिरेपी के सहारे रुग्ण को छोड़ देते हैं।
आपात्कालीन चिकित्सा निपटाने के पश्चात कभी-कभी रूग्ण के सगे संबंधी उसे नीम हकीम के चक्कर में ले जाते हैं। नीम हकीम उसकी सभी प्रकार की जीवन रक्षक एलोपैथी औषधि बंदकर अपनी ही औषधि देते हैं। ऐसे में रोगी को कुछ न कुछ हानि होने की संभावना अवश्य होती है। हो सकता है लकवे का दूसरा आघात भी हो, इसलिए रुग्ण को किसी योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के मार्गदर्शन में चिकित्सा देने की आवश्यकता है क्योंकि ये नीम हकीम पक्षाघात के हर रुग्ण को एक ही प्रकार की चिकित्स देते हैं। ऐसे रोगी में कारणानुरूप चिकित्सा कराना आवश्यक होता है।
आयुर्वेदिक चिकित्सक होने के नाते मेरे मतानुसार लकवाग्रस्त रोगी को फिजियोथिरेपी के साथ-साथ रुग्ण पर ऐसी ाियाएं करनी चाहिये जिससे मस्तिष्क में रक्तसंचार की आपूर्ति होती रहे व मस्तिष्कगत नाड़ी कोषों को चेतना मिलती रहे। इस प्रकार की चिकित्सा आयुर्वेद के पंचकर्म से ही संभव है।
पंचकर्म की महत्वपूर्ण ाियाओं से पक्षाघात का मरीज स्वयं अपने दैनिक कार्य भलीभांति कर सकता है। ये ाियाएं शिरोधारा, नस्य, स्ेहन, स्वेदन, पिंड स्वेद, पिषींचल धारा, बस्ति व मृदुविरेचन है। इन सभी ाियाओं को करने से शरीर की नसों व मांसपेशियों को पुष्टि व ताकत मिलती है जिससे रूग्ण चलने-फिरने में कुछ प्रतिशत समर्थ हो जाता है। पक्षाघात का मुख्य कारण मस्तिष्क गत होता है, अत: इसमें शिरोधारा लाभदायी है। शिरोधारा में रूग्ण के ललाट प्रदेश पर औषधियुक्त तेल इत्यादि की धारा विशिष्ट प्राियानुसार गिराई जाती है। शिरोधारा से ब्लडप्रेशर व मानसिक तनाव कम होता है। पक्षाघात के रुग्ण में नस्य के अंतर्गत विशिष्ट प्रािया द्वारा नाक में औषधिद्रव्य डालते हैं जिसके परिणाम आश्चर्यजनक पाए गये हैं।
लकवाग्रस्त रूग्णों में औषधियुक्त तैलों से मालिश (स्ेहन) योग्य चिकित्सक के मार्ग दर्शन में करना चाहिये क्योंकि मांसपेशियों व नसों का उद्गम व निवेश स्थान, चिकित्सक को ही मालूम रहता है, अत: योग्य चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही वैज्ञानिक पध्दति से मालिश करनी चाहिये। पिंषीचल स्वेद में प्रभावित अंग में कोष्ण तैल की धारा गिराते हैं जिससे मांसपेशियों का पोषण होकर ताकत आती है।
पिंड स्वेद में चावल, औषधियुक्त काढ़े की पोटली बनाकर प्रभावित अंग पर घर्षण करते हैं जिससे मांसपेशियों में रक्तप्रवाह बढ़कर स्ायु, मज्जा व मांस धातु को बल मिलता है। इस पिंड स्वेद के परिणाम पोलियो रोग में लाभदायी पाए गये हैं। पक्षाघात का अंतर्भाव वातव्याधि में होता है। वात व्याधि के लिये बस्ति आधी चिकित्सा कही है इसलिये पक्षाघात के रुग्णों में बस्ति कर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। बस्तिकर्म में गुद मार्ग द्वारा विशिष्ट औषधियां प्रविष्ट की जाती हैं। लकवाग्रस्त रोगी में विरेचन के अंतर्गत विशिष्ट प्रािया द्वारा जुलाब देते हैं जिससे मस्तिष्कगत धमनियों में रुकावटें दूर होती हैं।
हमारा एक युवा रुग्ण श्री नितिन गलानी लकवाग्रस्त होकर आया था जो चलने-फिरने, उठने-बैठने में असमर्थ व शय्या पर ही था। आरोग्यधाम में उपलब्ध निरंतर 21 दिन की विशिष्ट चिकित्सोपाम से ठीक होकर स्वयं पैदल चलकर अपने घर गया। इस तरह पंचकर्म की इन विशिष्ट ाियाओं से अनेक वातविकार व लकवाग्रस्त रूग्ण लाभान्वित हो रहे हैं। पक्षाघात के रोगी में सबसे अहम् होता है आत्मविश्वास का अभाव, अत: मानसिक सांत्वना देकर व्यायाम फिजियोथिरेपी कर्म के लिये प्रेरित करना चाहिये। औषधि व उक्त विशिष्ट ाियाओं से पक्षाघात के रूग्ण कुछ प्रतिशत में पुन: अपनी दैनिक चर्या कष्टरहित व्यतीत कर सकते हैं। ये विशिष्ट ाियाएं सेरिब्रल पाल्सी व पोलियो में भी लाभदायी पायी गयी हैं।
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