कैंसर की रामबाण औषधि सर्वपिष्टी
चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत प्राचीनकाल से ही अग्रणी रहा है। हमारे देश में विकसित विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पध्दतियां एवं औषधियां कई असाध्य रोगों के इलाज में कारगर साबित हुई है। महर्षि चरक संभवत: पहले चिकित्सक थे। जिन्होंने पाचन चयापचय और शरीर प्रतिरक्षा की अवधारणा दी। उन्होंने वात, पित्त और कफ के दोष के आधार पर शरीर के विभिन्न रोगों की व्याख्या की। ये दोष तब उत्पन्न होते हैं, जब हमारा चयापचय खाये हुए भोजन पर प्रतिक्रिया करता है। एक ही मात्रा में ग्रहण किया गया भोजन अलग-अलग शरीर में भिन्न-भिन्न प्रकार के दोष उत्पन्न कर सकता है।
बीमारी तब उत्पन्न होती है जब मानव शरीर में मौजूद तीनों दोष असंतुलित हो जाते हैं। इनके संतुलन को फिर से कायम करने के लिये महर्षि चरक विभिन्न प्रकार की औषधियां बतते थे, जो आज भी हमारे आयुर्वेद का आधार बनी हुई हैं। उन्होंने जिन औषधियों को अपनी चिकित्सा पध्दति का आधार बनाया, उनसे से अधिकांश भोज्य पदार्थ नहीं है। इस अवधारणा के विपरीत भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों ने लाइलाज बीमारी कैंसर की दवा खाद्य पदार्थों से ही तैयार करने का करिश्मा कर दिखाया है।
आज विश्व की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कैंसर बीमारी से पीड़ित है, और सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि हर साल इसमें लाखों की संख्या में औसतन वृध्दि हो रही है। ऐसे समय में भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों के प्रयास से कैंसर रोगियों में आशा की एक नयी किरण जागी है। वाराणसी स्थित डी.एस. रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों द्वारा इजाद की गयी इस औषधि का नाम ‘सर्वपिष्टी’ है। इस औषधि से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारे शरीर को पोषण खाद्य पदार्थों से ही मिलता है, इसलिए औषधि भी खाद्य पदार्थों में ही है। ‘पोषक ऊर्जा’ के सिध्दांत का प्रतिपादन कर मानव जाति के कल्याण की असीम संभावनाएं सामने आयी है। संभावना है कि यदि इस दिशा में आगे कार्य किये गये तो कैंसर की तरह अन्य बीमारियों का इलाज खोजने में सफलता हासिल होगी।
सर्वापिष्टी नामक इस औषधि के प्रयोग से हजारों कैंसर रोगियों को नया जीवन मिला है। इतने कारगर परिणाम हासिल करने के बाद भी आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिक यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि जिस कैंसर पर विजय पाने में पूरी दुनिया के वैज्ञानिक असफल रहे हैं, उस पर विशुध्द भारतीय पध्दति से विजय पायी जा चुकी है।
यह एक संयोग ही रहा कि अमेरिका में रह रहे कैंसर चिकित्सक डा.सुहद पारीख को ही कैंसर हो गया और वे हर आधुनिक चिकित्सा पध्दति को आजमाने के बाद अंत में ‘सर्वपिष्टी’ की शरण में आये और अपना जीवन बचाने में सफल हो सके।
इस दवा के प्रयोग के दो माह बाद जब उन्होंने अपनी एमआरआई दर्ज करायी तो परिणाम आश्चर्यजनक थे। हेड आफ पैंक्रियाज के सभी मास्स काफी छोटे हो गये थे और लीवर के सभी मास्स लगभग समाप्त हो गये थे। रक्त परीक्षण के बाद ट्यूमर मार्कर काफी नीचे आ गये थे। पहले ट्यूमर 2,00,000 (दो लाख) था जो घटकर 2,000 ही रह गया।
कुछ दिनों बाद हेड आफ पैंक्रियाज के मास्स भी समाप्त हो गये और डा.पारीख ने अपना खोया हुआ वजन भी वापस पा लिया।
वैज्ञानिकों का कहना है कि सर्वपिष्टी कैंसर के इलाज में रामबाण औषधि साबित हुई है। साथ ही इलाज पर होने वाले खर्च वर्तमान में मौजूद चिकित्सा पध्दतियों की तुलना में काफी कम है लेकिन कई बार रोग अधिक बढ़ जाने पर इस औषधि को काम करने के लिये समय नहीं मिल पाता है। चिकित्सक रोगी को नहीं बल्कि रोगी की जांच रिपोर्ट को देखने के बाद ही यह औषधि देते हैं।
कैंसर सहित अन्य सभी प्रकार की गंभीर बीमारियों से बचने के लिये सबसे अधिक आवश्यकता रोगी की जागरूकता की है। यदि प्रारंभिक अवस्था में ही समस्या को नजरअंदाज न किया जाय और रोग की सही पहचान हो जाये तो इलाज आसान हो जाता है।
बीमारी तब उत्पन्न होती है जब मानव शरीर में मौजूद तीनों दोष असंतुलित हो जाते हैं। इनके संतुलन को फिर से कायम करने के लिये महर्षि चरक विभिन्न प्रकार की औषधियां बतते थे, जो आज भी हमारे आयुर्वेद का आधार बनी हुई हैं। उन्होंने जिन औषधियों को अपनी चिकित्सा पध्दति का आधार बनाया, उनसे से अधिकांश भोज्य पदार्थ नहीं है। इस अवधारणा के विपरीत भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों ने लाइलाज बीमारी कैंसर की दवा खाद्य पदार्थों से ही तैयार करने का करिश्मा कर दिखाया है।
आज विश्व की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कैंसर बीमारी से पीड़ित है, और सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि हर साल इसमें लाखों की संख्या में औसतन वृध्दि हो रही है। ऐसे समय में भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों के प्रयास से कैंसर रोगियों में आशा की एक नयी किरण जागी है। वाराणसी स्थित डी.एस. रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों द्वारा इजाद की गयी इस औषधि का नाम ‘सर्वपिष्टी’ है। इस औषधि से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारे शरीर को पोषण खाद्य पदार्थों से ही मिलता है, इसलिए औषधि भी खाद्य पदार्थों में ही है। ‘पोषक ऊर्जा’ के सिध्दांत का प्रतिपादन कर मानव जाति के कल्याण की असीम संभावनाएं सामने आयी है। संभावना है कि यदि इस दिशा में आगे कार्य किये गये तो कैंसर की तरह अन्य बीमारियों का इलाज खोजने में सफलता हासिल होगी।
सर्वापिष्टी नामक इस औषधि के प्रयोग से हजारों कैंसर रोगियों को नया जीवन मिला है। इतने कारगर परिणाम हासिल करने के बाद भी आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिक यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि जिस कैंसर पर विजय पाने में पूरी दुनिया के वैज्ञानिक असफल रहे हैं, उस पर विशुध्द भारतीय पध्दति से विजय पायी जा चुकी है।
यह एक संयोग ही रहा कि अमेरिका में रह रहे कैंसर चिकित्सक डा.सुहद पारीख को ही कैंसर हो गया और वे हर आधुनिक चिकित्सा पध्दति को आजमाने के बाद अंत में ‘सर्वपिष्टी’ की शरण में आये और अपना जीवन बचाने में सफल हो सके।
इस दवा के प्रयोग के दो माह बाद जब उन्होंने अपनी एमआरआई दर्ज करायी तो परिणाम आश्चर्यजनक थे। हेड आफ पैंक्रियाज के सभी मास्स काफी छोटे हो गये थे और लीवर के सभी मास्स लगभग समाप्त हो गये थे। रक्त परीक्षण के बाद ट्यूमर मार्कर काफी नीचे आ गये थे। पहले ट्यूमर 2,00,000 (दो लाख) था जो घटकर 2,000 ही रह गया।
कुछ दिनों बाद हेड आफ पैंक्रियाज के मास्स भी समाप्त हो गये और डा.पारीख ने अपना खोया हुआ वजन भी वापस पा लिया।
वैज्ञानिकों का कहना है कि सर्वपिष्टी कैंसर के इलाज में रामबाण औषधि साबित हुई है। साथ ही इलाज पर होने वाले खर्च वर्तमान में मौजूद चिकित्सा पध्दतियों की तुलना में काफी कम है लेकिन कई बार रोग अधिक बढ़ जाने पर इस औषधि को काम करने के लिये समय नहीं मिल पाता है। चिकित्सक रोगी को नहीं बल्कि रोगी की जांच रिपोर्ट को देखने के बाद ही यह औषधि देते हैं।
कैंसर सहित अन्य सभी प्रकार की गंभीर बीमारियों से बचने के लिये सबसे अधिक आवश्यकता रोगी की जागरूकता की है। यदि प्रारंभिक अवस्था में ही समस्या को नजरअंदाज न किया जाय और रोग की सही पहचान हो जाये तो इलाज आसान हो जाता है।
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