शुक्रवार, 20 मई 2011

बेल से घरेलू उपचार



बिल्वफल अर्थात् बेल का मूल वतन भारत ही है। अति प्राचीन काल से इसकी गणना औषधि के रूप में होती आ रही है। आकार की दृष्टि से यह गोल कैथ (कपित्थ) से मिलता-जुलता है। यह साधारण गेंद के समान होता है। हिमालय की तराई, मध्य एवं दक्षिण भारत, बिहार, बंगाल आदि प्रान्तों में बेल के वृक्ष बहुतायत मात्रा में पाये जाते हैं।
बिल्व का गूदा, पत्ता, जड़, छाल आदि औषधि के लिए उपयोगी माना जाता है। छोटे कच्चे बेल के फल को छीलकर, गोल-गोल कतरेनुमा टुकड़े काटकर सुखाकर मुखरबंद डिब्बों में संग्रह करके रखा जाता है। इसका उपयोग वैद्य लोग सालों भर तक औषधि के रूप में किया करते हैं। प्रयोग हेतु जंगली फलों का ही संग्रह करके रखा जाना उत्तम माना जाता है।
सेवन की दृष्टि से बेल का चूर्ण तीन ग्राम से छह ग्राम तक ही लेना उचित होता है। रस एक तोला से एक ग्राम तक ही सेवनीय होता है।
औषधीय प्रयोग : बिल्वपत्र के औषधीय गुणों का कारण उसमें स्थित ‘टॉनिन’ होता है। पाचन की तकलीफों और पुरानी पेचिश के लिए बिल्वफल के रस के समान अन्य कोई उपाय नहीं होता। इसका रस पौष्टिक होता है तथा रक्त विकार को भी दूर करता है।
बेल आमातिसार (बादी दस्त) तथा खूनी दस्त (रक्तातिसार) की अचूक औषधि है। दस्त, संग्रहणी (पेचिश), गर्भवती का वमन, बच्चों के दांत निकलते समय का दस्त, कब्ज, समज्वर, रक्तहीनता (एनीमिया), बहुमूत्र, प्रदर (ल्यूकोरिया), हैजा, मस्तिष्क की गर्मी, नपुंसकता, कुकर खांसी, फोड़ा, कंठमाला, रतौंधी, बहरापन, वायु गोला आदि का सफल चिकित्सक हैं। मच्छर-मक्खी भगाने के लिए भी बेल एक सस्ती दवा है।
रक्तहीनता का प्रयोग ः कमजोरी की अवस्था में खून की मात्रा शरीर में कम होने पर बेलगिरी का चूर्ण 5 ग्राम चीनी मिले हुए दूध के साथ दिन में चार बार तक खाने से एनीमिया दूर होता है।
बहुमूत्र पर प्रयोग : पेशाब के जल्दी-जल्दी आने पर दस ग्राम बेलगिरी और पांच ग्राम सोंठ को कूटकर रख लें। चार सौ ग्राम पानी में इसका (काढ़ा) बनाइए। जब पानी का आठवां भाग बाकी रह जाए तो उतार कर पांच ग्राम की मात्रा में रोगी को दिन में तीन बार तक पिलाइए।
कुक्कुर खांसी पर प्रयोग : बिल्व की हरी पत्तियों को गर्म तवे पर रख दीजिए। जब वे भुनकर काले रंग के हो जाएं तो उन्हें पीसकर कपड़छन कर लीजिए। फिर इसे शीशी में भरकर रख लीजिए। प्रात: दोपहर तथा सायं एक से 2 ग्राम तक शहद के साथ चाटने से हठीली से हठीली कुक्कुर खांसी एक सप्ताह के अन्दर (कभी-कभी एक ही दिन में) समाप्त हो जाती है।
रतौंधी पर प्रयोग : यह आंखों की बीमारी है। शाम होते ही दिखाई देना बन्द हो जाता है। बेल के ताजे पत्ते दस ग्राम, काली मिर्च सात दाने, पानी सौ ग्राम तथा चीनी (खांड) 25 ग्राम ले लें। बेल के पत्तों को खूब पीस लें। फिर उसमें काली मिर्च डालकर पीस लें। उसमें चीनी डालकर शरबत की तरह प्रात: सायं पिएं। बेल के पत्तों को रात में पानी में भींगने के लिए छोड़ दें। इसी पानी से प्रात: काल आंखों को धोएं। इस प्रकार करने से आंखों की रतौंधी जाती रहती है।

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