शुक्रवार, 13 मई 2011

अनेक रोगों की असरकारक दवा इमली

पुरानी इमली बहुत ही गुणकारी होती है। सूखी पुरानी इमली संदीपक, भेदक, हल्की, हृदय के लिये हितकारी, कफ एवं वात रोगों में पथ्यकारी तथा कृमिनाशक होती है। इसके बीज संग्रहणी, अतिसार, रक्तार्श, सोमरोग, प्रदर, प्रेमह, बिच्छू आदि विषैले जीवों के काटने के दर्द में उपयोगी है। इमली को हमेशा पानी में कांच या मिट्टी के पात्र में ही भिंगोना चाहिये, तांबा, पीतल, कांसा या लोहे के पात्र में कभी नहीं। इमली के कुछ विशेष उपयोग इस प्रकार है :-
कब्ज : बहुत पुरानी इमली का शर्बत बनाकर पीने से कब्ज दूर होती है।
खाज-खुजली :- इमली के बीज नींबू के रस में पीसकर लगाने से खाज दूर होती है।
लू लगना :- गर्मी में एकदम बाहर निकलने से शरीर का जलीयांश शुष्क होकर तीव्र ज्वर हो जाता है। इसे लू लगना कहते हैं। इससे बचने के लिये लू के समय बाहर निकलने पर इमली का शर्बत पी लेने पर लू की आशंका नहीं रहती।
स्वप्नदोष : इमली के बीजों को चौगुने दूध में भिंगोकर रख दें। दो दिन बाद छिलका निकालकर पीस लें। प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन इसका करने से धातु पुष्ट होती है और स्वप्नदोष दूर होता है।
नपुंसकता : इमली के बीजों की गिरी, वटजटा, सिंघाड़ा, तालमखाना, कमरकस, कतीरागोंद, बबूल का गोंद, बीजबंद, समुद्रदोष, तुख्यमलंगा, कौंच के बीच, रीठे की गिरी, छोटी इलाइयची प्रत्येक को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें और समभाग मिश्री की चाशनी मिलाकर जमा दें। सुबह-शाम 6-6 माशा सेवन करने से और ऊपर से गाय का दूध पीने से वीर्यहीनता, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन मिटकर नपुंसकता दूर होती है।
श्वेद प्रदर : बिना ऋतुकाल स्त्री की योनि से सफेद, लाल नीला, पीला स्राव होता रहे तो यह प्रदर रोग समझना चाहिये। अप्राकृतिक भोजन, अजीर्ण, अतिमैथुन, गर्भस्राव, क्रोध, शोक, चिंता ज्यादा चटपटे पदार्थों के सेवन आदि से यह रोग होता है। यह रोग कई प्रकार का होता है। इससे स्त्री का शरीर दिनों दिन कमजोर और रक्तहीन होता चला जाता है। इससे बचने के लिये लोहे की छोटी कड़ाही या तवे पर थोड़ी रेत डालकर चूल्हे पर चढ़ाकर खूब गर्म करें। बाद में इमली के बीज इसमें डाल दें और कड़छी चलाते रहें। अधभुने हो जाने पर गर्म दशा में ही इनके छिलके निकाल लें।
बीजों को लोहे के हमामदस्ते में अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण के वजन के बराबर मिश्री या शक्कर मिला लें। प्रात: सायं 1-2 तोले की मात्रा में गाय के दूध के साथ या पानी से कुछ दिन लगातार सेवन करने से श्वेत प्रदर का रोग समाप्त हो जाता है।
सांप का विष : इमली के बीजों को पत्थर पर थोड़े जल में घिसकर रख लें। सांप के काटे हुए स्थान पर ब्लेड से चीरकर दबाकर वहां से काला रक्त निकालकर घिसे हुए बीजों को एक-दो बीज की मात्रा में चिपका दें। ये बीज विष चूसना आरंभ कर देंगे। थोड़ी-थोड़ी देर बाद बीज बदलते रहें और बदले हुए बीजों की जमीन में गाड़ दें। बीज उस समय तक बदलते रहें, जब तक कि पूरा विष न उतर जाए।

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