गुरुवार, 19 मई 2011

आधे सिर का दर्द अब चुटकियों में होगा छूमंतर


अक्सर लोग सिर दर्द की समस्या से परेशान रहते हैं, लेकिन कुछ लोगों ऐसे हैं जिनके लिए अक्सर होने वाला आधाशीशी का दर्द बडी परेशानी बन गया है। नीचे बताए जा रहे कुछ आयुर्वेद के उपायों से आप इस समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा पा सकते हैं।

1. गाय का ताजा घी सुबह शाम दो चार बूंद नाक में डालने से टपकाने से आधाशीशी का दर्द हमेशा के लिए जड़ से खत्म हो जाता है।

2. सिर के जिस भाग में दर्द हो रहा हो उस तरफ  के नथुने में चार पांच बूंद सरसों के तेल की डालने से या तेल को सूंघने से आधासिर दर्द बन्द हो जाता है।

विशेष: इस विधि को अपनाने से नाक से खून आने(नकसीर) की समस्या भी दूर हो जाती है।

सावधानी: यह प्रयोग आयुर्वेद के किसी अनुभवी जानकार की देखरेख में करना ज्यादा सुरक्षित रहता है।

बुधवार, 18 मई 2011


कैंसर की रामबाण औषधि सर्वपिष्टी

चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत प्राचीनकाल से ही अग्रणी रहा है। हमारे देश में विकसित विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पध्दतियां एवं औषधियां कई असाध्य रोगों के इलाज में कारगर साबित हुई है। महर्षि चरक संभवत: पहले चिकित्सक थे। जिन्होंने पाचन चयापचय और शरीर प्रतिरक्षा की अवधारणा दी। उन्होंने वात, पित्त और कफ के दोष के आधार पर शरीर के विभिन्न रोगों की व्याख्या की। ये दोष तब उत्पन्न होते हैं, जब हमारा चयापचय खाये हुए भोजन पर प्रतिक्रिया करता है। एक ही मात्रा में ग्रहण किया गया भोजन अलग-अलग शरीर में भिन्न-भिन्न प्रकार के दोष उत्पन्न कर सकता है।
बीमारी तब उत्पन्न होती है जब मानव शरीर में मौजूद तीनों दोष असंतुलित हो जाते हैं। इनके संतुलन को फिर से कायम करने के लिये महर्षि चरक विभिन्न प्रकार की औषधियां बतते थे, जो आज भी हमारे आयुर्वेद का आधार बनी हुई हैं। उन्होंने जिन औषधियों को अपनी चिकित्सा पध्दति का आधार बनाया, उनसे से अधिकांश भोज्य पदार्थ नहीं है। इस अवधारणा के विपरीत भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों ने लाइलाज बीमारी कैंसर की दवा खाद्य पदार्थों से ही तैयार करने का करिश्मा कर दिखाया है।
आज विश्व की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कैंसर बीमारी से पीड़ित है, और सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि हर साल इसमें लाखों की संख्या में औसतन वृध्दि हो रही है। ऐसे समय में भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों के प्रयास से कैंसर रोगियों में आशा की एक नयी किरण जागी है। वाराणसी स्थित डी.एस. रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों द्वारा इजाद की गयी इस औषधि का नाम ‘सर्वपिष्टी’ है। इस औषधि से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारे शरीर को पोषण खाद्य पदार्थों से ही मिलता है, इसलिए औषधि भी खाद्य पदार्थों में ही है। ‘पोषक ऊर्जा’ के सिध्दांत का प्रतिपादन कर मानव जाति के कल्याण की असीम संभावनाएं सामने आयी है। संभावना है कि यदि इस दिशा में आगे कार्य किये गये तो कैंसर की तरह अन्य बीमारियों का इलाज खोजने में सफलता हासिल होगी।
सर्वापिष्टी नामक इस औषधि के प्रयोग से हजारों कैंसर रोगियों को नया जीवन मिला है। इतने कारगर परिणाम हासिल करने के बाद भी आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिक यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि जिस कैंसर पर विजय पाने में पूरी दुनिया के वैज्ञानिक असफल रहे हैं, उस पर विशुध्द भारतीय पध्दति से विजय पायी जा चुकी है।
यह एक संयोग ही रहा कि अमेरिका में रह रहे कैंसर चिकित्सक डा.सुहद पारीख को ही कैंसर हो गया और वे हर आधुनिक चिकित्सा पध्दति को आजमाने के बाद अंत में ‘सर्वपिष्टी’ की शरण में आये और अपना जीवन बचाने में सफल हो सके।
इस दवा के प्रयोग के दो माह बाद जब उन्होंने अपनी एमआरआई दर्ज करायी तो परिणाम आश्चर्यजनक थे। हेड आफ पैंक्रियाज के सभी मास्स काफी छोटे हो गये थे और लीवर के सभी मास्स लगभग समाप्त हो गये थे। रक्त परीक्षण के बाद ट्यूमर मार्कर काफी नीचे आ गये थे। पहले ट्यूमर 2,00,000 (दो लाख) था जो घटकर 2,000 ही रह गया।
कुछ दिनों बाद हेड आफ पैंक्रियाज के मास्स भी समाप्त हो गये और डा.पारीख ने अपना खोया हुआ वजन भी वापस पा लिया।
वैज्ञानिकों का कहना है कि सर्वपिष्टी कैंसर के इलाज में रामबाण औषधि साबित हुई है। साथ ही इलाज पर होने वाले खर्च वर्तमान में मौजूद चिकित्सा पध्दतियों की तुलना में काफी कम है लेकिन कई बार रोग अधिक बढ़ जाने पर इस औषधि को काम करने के लिये समय नहीं मिल पाता है। चिकित्सक रोगी को नहीं बल्कि रोगी की जांच रिपोर्ट को देखने के बाद ही यह औषधि देते हैं।
कैंसर सहित अन्य सभी प्रकार की गंभीर बीमारियों से बचने के लिये सबसे अधिक आवश्यकता रोगी की जागरूकता की है। यदि प्रारंभिक अवस्था में ही समस्या को नजरअंदाज न किया जाय और रोग की सही पहचान हो जाये तो इलाज आसान हो जाता है।


केले से होते हैं कई उपचार

प्राकृतिक चिकित्सा में केले का विशेष महत्व है। इसका विविध प्रकार से सेवन बहुत से रोगों से छुटकारा दिलाता है।
कुछ पेचीदा रोग भी केले के सामने औंधे मुंह गिरते हैं।
* यदि सफेद पानी का रोग परेशान कर रहा हो तो रोगी को पहले दो केले खिलाएं फिर शहद मिला आधा गिलास दूध पीने को दें। प्रात: खाली पेट। साथ होने लगेगा।
* क्षय रोग में यह प्रयोग करें। केले के पेड़ का ताजा रस रोगी प्रतिदिन तीन बार भी लिया करे। यदि रस उपलब्ध न करा सकें तो कच्चा हरा केला काटकर खिलाएं। यह उपचार काफी जल्दी अच्छे परिणाम देता है।
* पेशाब रुक जाने पर केले के पौधे का रस लें। इसे चार चम्मच देसी घी में मिलाएं। इसके दो चम्मच एक बार पिलाएं। दिन में दो बार। पेशाब की रुकावट नहीं रहेंगी।
* यदि हाई ब्लडप्रेशर की शिकायत हो तो नाश्ते के बाद केले का सेवन फायदा करता है।
* कुछ व्यक्तियों को बार-बार पेशाब जाना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को एक केला, आधा कप आंवले के रस के साथ खिला दें। आंवले के रस में थोड़ी चीनी मिला लें। दो-तीन दिनों के उपचार के बाद काफी लाभ हो जाएगा।
* पेचिश की शिकायत में एक कटोरी दही लें। उसमें छिले केले के टुकड़े मिला दें। रोगी इसे दिन में तीन बार खा लें। आराम आ जाएगा।
* गैस रोग से परेशान रोगी एक पका हुआ केला ले। दूध का एक छोटा गिलास भी। थोड़ी दूध पीए, साथ में थोड़ा केला खाए। दोनों को साथ-साथ चलाएं। यह गैस रोग में तो उपयोगी है ही, अल्सर में भी ठीक रहता है।
* कुछ बच्चों को मिट्टी खाने की आदत हो जाती है। वे ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि उनके शरीर में कैल्शियम की कमी रहती है। केला तथा 5 ग्राम शहद, दोनों को साथ-साथ खिलाएं। मिट्टी खाने की आदत छूट जाएगी।
* शरीर का कोई अंग जल जाने पर, उस पर केले के खाने वाले भाग को कूटकर बांधें।
दर्द गायब हो जाएगा। कुछ दिनों तक रोज बांधें। पूरी तरह ठीक हो जाएंगे।

बॉडी मसाज से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखें क्योंकि...

तेल मालिश करना शरीर के लिए लाभदायक होता है लेकिन इसके भी अपने नियम हैं, अगर उसे ध्यान में नहीं रखा जाए तो परेशानी खड़ी हो सकती है। शास्त्रों और आयुर्वेद में बताया गया है कि रविवार, मंगलवार और शुक्रवार को तेल की मालिश नहीं करनी चाहिए। इससे शरीर पर विपरित प्रभाव पड़ता है।



शास्त्रों के अनुसार रविवार, मंगलवार और शुक्रवार को तेल से मालिश करना मना है। इसके पीछे भी विज्ञान है।



- रविवार का दिन सूर्य से संबंधित है। सूर्य से गर्मी उत्पन्न होती है। अत: इस दिन शरीर में पित्त अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक होना स्वाभाविक है। तेल से मालिश करने से भी गर्मी उत्पन्न होती है। इसलिए रविवार को तेल से मालिश करने से रोग होने का भय रहता है।



- मंगल ग्रह का रंग लाल है। इस ग्रह का प्रभाव हमारे रक्त पर पड़ता है। इस दिन शरीर में रक्त का दबाव अधिक होने से खुजली, फोड़े फुन्सी आदि त्वचा रोग या उनसे मृत्यु होने का डर भी रहता है।



- इसी तरह शुक्र ग्रह का संबंध वीर्य तत्व से रहता है। इस दिन मालिश करने से वीर्य संबंधी रोग हो सकते हैं।



- अगर रोजाना मालिश करना हो तो तेल में रविवार को फूल, मंगलवार को मिट्टी और शुक्रवार को गाय का मूत्र डाल लेने से कोई दुष्प्रभाव नहीं होता।

मंगलवार, 17 मई 2011

कभी न होंगे नर्वस व फ्रस्टेट, गर करें ये 7 काम

हेजीटेशन यानी झिझक एक ऐसी समस्या है जो किसी के व्यक्तित्व को पूरी तरह से निखरने और खिलने नहीं देती। कई बार देखने में आता है कि योग्य और प्रतिभाशाली व्यक्ति भी अपने गुणों को अभिव्यक्त नहीं कर पाता है। मंच पर जाने से झिझकना, संकोच करना, चार लोगों के बीच बोलना पड़े तो कतराना, भीड़ के सामने से गुजरना...ये कुछ ऐसे ही अवसर हैं जिन पर हेजीटेशन का शिकार व्यक्ति बड़ी कठिनाई और असहजता का सामना करता है। ऐसे कठिन हालातों से बचने के लिये हम कुछ ऐसे उपाय कर सकते हैं, जो यकीनन कुछ ही दिनों में हमें इस समस्या से छुटकारा दिलाकर आत्मविश्वा से भर देते हैं। तो चलिये जानें कि वे अचूक उपाय कौन से हैं.....

1. नकारात्मक विचारों और दोस्तों से दूर रहें।

2. अपनी दिनचर्या नियमित रखें।

3. योग-प्राणायाम को अपनी नियमित दिनचर्या में अवश्य शामिल करें।

4. प्रतिदिन 30 मिनिट आध्यात्मिक साहित्य पढऩे के लिये रोज निकालें।

5. जल्दी सोने और सुबह जल्दी उठने की आदत डालें।

6. कोरी कल्पनाएं करने और योजनाएं बनाते रहने में समय बर्बाद करने की बजाय, एक छोटा सा ही काम करें

 पर पूरी मेहनत और जी-जान लगाकर करें।

7. सीमा से अधिक झिझक, हीनभावना, या घबराहट होने पर किसी मनोरोग विशेषज्ञ, या साइक्रेटिस्ट से सलाह लें और खुलकर अपनी समस्या बताएं।

ऊपर बताए गए उपायों को पूरी तरह से अपना लेने पर आपका आत्मविश्वास बढऩे लगेगा। जैसे प्रकाश के प्रकट होते ही अंधेरा मिट जाता है, वैसे ही आत्मविश्वास के पैदा होते ही सारे काल्पनिक डरों का अस्तित्व सदैव के लिये समात्प हो जाता है।

60 दिनों में शरीर को बनाएं बलवान और चमकदार

माना कि शरीर की बजाय गुणों का मूल्य अधिक होता है लेकिन यह भी इतना ही सच है कि इंसान की पहली पहचान उसे देखकर ही बनती है। आन्तरिक व्यक्तित्व का गुणवान होना अच्छी बात है, लेकिन इससे भी बढिय़ा बात तो तब होगी कि आप अंदर और बाहर दोनों ही स्तरों पर आकर्षक और प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक बनें। तो आइये चलते हैं एक ऐसे बेहद आसान और 100 प्रतिशत असरदार आयुर्वेदिक नुस्खे की तरफ जो शर्तिया तौर पर आपके शरीर को ताकतवर, चमकदार और तेजस्वी बनाता है....

किसी प्रामाणिक और भरोसे की जगह से अश्वगंधा, विधारा, शतावरी 50-50 ग्राम लेकर पीस लें, अब इसमें 150 ग्राम मिश्री मिलाकर रोज प्रात: एक चम्मच चूर्ण पानी या गाय के दूध से खाते रहें। खटाई, अधिक मिर्च-मसाले, बेहद गर्म व बहुत ठंडी चीजों से  कुछ दिनों तक दूरी बनाकर रखें। यदि आपको कब्ज की शिकायत न हो तो यकीनन इस आयुर्वेदिक नुस्खे से मात्र 60 ही दिनों में आपका काया कल्प हो जाएगा।आपको देखकर सहसा लोगों को अपनी आंखों को भरोसा ही नहीं होगा।

सोमवार, 16 मई 2011


अनेक रोग नाशक भी है पपीता

पपीता एक ऐसा मधुर फल है जो सस्ता, सपरिचित एवं सर्वत्र सुलभ है। यह फल प्राय: बारहों मास पाया जाता है। किन्तु फरवरी से मार्च तथा मई से अक्तूबर के बीच का समय पपीते की ऋतु मानी जाती है। कच्चा पपीता हरे रंग का तथा पकने पर पीले रंग का हो जाता है। कच्चे पपीते में विटामिन ‘ए’ तथा पके पपीते में विटामिन ‘सी’ की मात्रा भरपूर पायी जाती है।
आयुर्वेद में पपीता (पपाया) को अनेक असाध्य रोगों को दूर करने वाला बताया गया है। संग्रहणी, आमाजीर्ण, मन्दाग्नि, पाण्डुरोग (पीलिया), प्लीहा वृध्दि, बन्ध्यत्व को दूर करने वाला, हृदय के लिए उपयोगी, रक्त के जमाव में उपयोगी होने के कारण पपीते का महत्व हमारे जीवन के लिए बहुत अधिक हो जाता है।
पपीते के सेवन से चेहरे पर झुर्रियां पड़ना, बालों का झड़ना, कब्ज, पेट के कीड़े, वीर्यक्षय, स्कर्वी रोग, बवासीर, चर्मरोग, उच्च रक्तचाप, अनियमित मासिक धर्म आदि अनेक बीमारियां दूर हो जाती है। पपीते में कैल्शियम, फास्फोरस, लौह तत्व, विटामिन- ए, बी, सी, डी प्रोटीन, कार्बोज, खनिज आदि अनेक तत्व एक साथ हो जाते हैं। पपीते का बीमारी के अनुसार प्रयोग निम्नानुसार किया जा सकता है।
१) पपीते में ‘कारपेन या कार्पेइन’ नामक एक क्षारीय तत्व होता है जो रक्त चाप को नियंत्रित करता है। इसी कारण उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) के रोगी को एक पपीता (कच्चा) नियमित रूप से खाते रहना चाहिए।
२) बवासीर एक अत्यंत ही कष्टदायक रोग है चाहे वह खूनी बवासीर हो या बादी (सूखा) बवासीर। बवासीर के रोगियों को प्रतिदिन एक पका पपीता खाते रहना चाहिए। बवासीर के मस्सों पर कच्चे पपीते के दूध को लगाते रहने से काफी फायदा होता है।
३) पपीता यकृत तथा लिवर को पुष्ट करके उसे बल प्रदान करता है। पीलिया रोग में जबकि यकृत अत्यन्त कमजोर हो जाता है, पपीते का सेवन बहुत लाभदायक होता है। पीलिया के रोगी को प्रतिदिन एक पका पपीता अवश्य खाना चाहिए। इससे तिल्ली को भी लाभ पहुंचाया है तथा पाचन शक्ति भी सुधरती है।
४) महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म एक आम शिकायत होती है। समय से पहले या समय के बाद मासिक आना, अधिक या कम स्राव का आना, दर्द के साथ मासिक का आना आदि से पीड़ित महिलाओं को ढाई सौ ग्राम पका पपीता प्रतिदिन कम से कम एक माह तक अवश्य ही सेवन करना चाहिए। इससे मासिक धर्म से संबंधित सभी परेशानियां दूर हो जाती है।
५) जिन प्रसूता को स्तनों में दूध कम बनता हो, उन्हें प्रतिदिन कच्चे पपीते का सेवन करना चाहिए। सब्जी के रूप में भी इसका सेवन किया जा सकता है। इससे स्तनों में दूध की मात्रा अधिक उतरने लगती है।
६) सौंदर्य वृध्दि के लिए भी पपीते का इस्तेमाल किया जाता है। पपीते को चेहरे पर रगड़ने से चेहरे पर व्याप्त कील मुंहासे, कालिमा व मैल दूर हो जाते हैं तथा एक नया निखार आ जाता है। इसके लगाने से त्वचा कोमल व लावण्ययुक्त हो जाती है। इसके लिए हमेशा पके पपीते का ही प्रयोग करना चाहिए।
७) कब्ज सौ रोगों की जड़ है। अधिकांश लोगों को कब्ज होने की शिकायत होती है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वे रात्रि भोजन के बाद पपीते का सेवन नियमित रूप से करते रहें। इससे सुबह दस्त साफ होता है तथा कब्ज दूर हो जाता है।
८) समय से पूर्व चेहरे पर झुर्रियां आना बुढ़ापे की निशानी है। अच्छे पके हुए पपीते के गूदे को उबटन की तरह चेहरे पर लगायें। आधा घंटा लगा रहने दें। जब वह सूख जाये तो गुनगुने पानी से चेहरा धो लें तथा मूंगफली के तेल से हल्के हाथ से चेहरे पर मालिश करें। ऐसा कम से कम एक माह तक नियमित करें।
९) नए जूते-चप्पल पहनने पर उसकी रगड़ लगने से पैरों में छाले हो जाते हैं। यदि इन पर कच्चे पपीते का रस लगाया जाए तो वे शीघ्र ठीक हो जाते हैं।
१०) पपीता वीर्यवर्ध्दक भी है। जिन पुरुषों को वीर्य कम बनता है और वीर्य में शुक्राणु भी कम हों, उन्हें नियमित रूप से पपीते का सेवन करना चाहिए।
११) हृदय रोगियों के लिए भी पपीता काफी लाभदायक होता है। अगर वे पपीते के पत्तों का काढ़ा बनाकर नियमित रूप से एक कप की मात्रा में रोज पीते हैं तो अतिशय लाभ होता है

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