अगर कोई कहे कि ताली बजाओ और तमात बीमारियों ससुरक्षित हो जाओ, तो शायद किसी को यकीन न हो, लेकिन यह कोई सुखद कल्पना नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक सत्य है।
खुखी का इजहार करने के लिये इंसान के पास कई तरीके होते हैं। हंसना, नाच-कूद करना, मुस्कुराना या हिप-हिप हुर्रे जैसी कोई आवाज निकालना। लेकिन एक तरीका ऐसा भी है, जो आपकी खुशी को बढ़ाने के साथ-साथ आपको सेहत को भी दुरुस्त करता है। यह तरीका है- ताली बजाने का।
हम जब खुश होते हैं तो ताली बजाते हैं लेकिन ताली मात्र खुशी का इजहार करने के लिए नहीं बजायी जाती बल्कि यह आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाता है। इस तरह से आपका शरीर एक प्रकार के सुरक्षा कवच में आ जाता है, जिस कारण बीमारियां आप तक पहुंच ही नहीं पातीं।
जब आप अपनी दोनों हथेलियों को जोर-से एक-दूसरे पर मारते हैं। इस दौरान हाथों के सारे बिंदु दब जाते हैं और धीरे-धीरे शरीर में व्याप्त रोगों का सुधार होता है। लगातार ताली बजाने से शरीर के श्वेत रक्त कण मजबूत होते है, जिसके परिणामस्वरूप मानव शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि होती है।
सोमवार, 18 जुलाई 2011
लहसुन : स्वास्थ्य में योगदान
हिन्दी में लहसुन, अन्य भाषाओं में निम्न प्रकार - गुजराती में लसुण, बंगला में रसुन, अंग्रेजी में गार्लिक (Garlic) - Latin Name - Allim Sativum, Fam. - LiliaceaeÐ
लहसुन में 6 प्रकार के रसों में से 5 रस पाये जाते हैं, केवल अम्ल नामक रस नहीं पाया जाता है।
निम्न रस - मधुर - बीजों में, लवण - नाल के अग्रभाग में, कटु - कन्दों में, तिक्त - पत्तों में, कषाय - नाल में। ""रसोनो बृंहणो वृष्य: स्गिAधोष्ण:
पाचर: सर:।"" अर्थात् लहसुन वृहण (सप्तधातुओं को बढ़ाने वाला, वृष्य - वीर्य को बढ़ाने वाला), रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, म”ाा, शुक्र स्निग्धाकारक, उष्ण प्रकृत्ति वाला, पाचक (भोजन को पचाने वाला) तथा सारक (मल को मलाशय की ओर धकेलने वाला) होता है।
""भग्नसन्धानकृत्"" - टूटी हुई हçड्डयों को जो़डने वाला, कुष्ठ के लिए हितकर, शरीर में बल, वर्ण कारक, मेधा और नेत्र शक्ति वर्धक होता है।
लहसुन सेवन योग्य व्यक्ति के लिए पथ्य - अपथ्य: पथ्य : मद्य, माँस तथा अम्ल रस युक्त भक्ष्य पदार्थ हितकर होते हैं - ""मद्यंमांसं तथाडमल्य्य हितं लसुनसेविनाम्""।
अहितकर : व्यायाम, धूप का सेवन, क्रोध करना, अधिक जल पीना, दूध एवं गु़ड का सेवन निषेध माना गया है।
रासायनिक संगठन : इसके केन्द्रों में एक बादामी रंग का उ़डनशील तेल पाया जाता है, जिसमें प्रधान रूप से Allyl disulphible and Allyl propyldisulphide और अल्प मात्रा में Polysulphides पाये जाते हैं। इन सभी की क्रिया Antibacterial होती है तथा ये एक तीव्र प्रतिजैविक Antibiotics का भी काम करते हैं।
श्वसन संस्थान पर लहसनु के उपयोग:
1. लहसुन के रस की 1 से 2 चम्मच मात्रा दिन में 2-3 बार यक्ष्मा दण्डाणुओं (T.B.) से उत्पन्न सभी विकृत्तियों जैसे - फुफ्फुस विकार, स्वर यन्त्रशोथ में लाभदायक होती है। इससे शोध कम होकर लाभ मिलता है।
2. स्वर यन्त्रशोथ में इसका टिंक्चर 1/2 - 1 ड्राप दिन में 2-3 बार देने पर लाभ होता है।
3. पुराने कफ विकार जैसे - कास, श्वास, स्वरभङग्, (Bronchitis) (Bronchiectasis) एवं श्वासकृच्छता में इसका अवलेह बनाकर उपयोग करने से लाभ होता है।
4. चूंकि लहसुन में जो उ़डनशील तैलीय पदार्थ पाया जाता है, उसका उत्सर्ग त्वचा, फुफ्फुस एवं वृक्क द्वारा होता है, इसी कारण ज्वर में उपयोगी तथा जब इसका उत्सर्ग फुफ्फुसों (श्वास मार्ग) के द्वारा होता है, तो कफ ढ़ीला होता है तथा उसके जीवाणुओं को नाश होकर कफ की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
5.(Gangerene of lungs) तथा खण्डीय (Lobar pneumonia) में इसके टिंक्चर 2-3 बूंद से आरंभ कर धीरे-धीरे बूंदों की मात्रा बढ़ाकर 20 तक ले जाने से लाभ होता है।
6. खण्डीय फुफ्फुस पाक में इसके टिंक्चर की 30 बूंदें हर 4 घण्टे के उपरान्त जल के साथ देने से 48 घण्टे के अन्दर ही लाभ मालूम होता है तथा 5-6 दिन में ज्वर दूर हो जाता है।
7. बच्चों में कूकर खांसी, इसकी कली के रस की 1 चम्मच में सैंधव नमक डालकर देने से दूर होती है। 8. अधिक दिनों तक लगातार चलने वाली खाँसी में इसकी 3-4 कलियों (छोटे टुक़डों) को अग्नि में भूनकर, नमक लगाकर खाने से में लाभ मिलता है।
9. लहसुन की 5-7 कलियों को तेल में भूनें, जब कलियाँ काली हो जाएं, तब तेल को अग्नि पर से उतार कर जिन बच्चों या वृद्ध लोगों को जिनके Pneumoia (निमोनिया) या छाती में कफ जमा हो गया है, उनमें छाती पर लेप करके ऊपर से सेंक करने पर कफ ढीला होकर खाँसी के द्वारा बाहर निकल जाता है।
तंत्रिका संस्थान के रोगों में उपयोग:
1. (Histeria) रोग में दौरा आने पर जब रोगी बेहोश हो जाए, तब इसके रस की 1-2 बूंद नाक में डालें या सुंघाने से रोगी का संज्ञानाश होकर होश आ जाता है।
2. अपस्मार (मिर्गी) रोग में लहसुन की कलियों के चूर्ण की 1 चम्मच मात्रा को सायँकाल में गर्म पानी में भिगोकर भोजन से पूर्व और पश्चात् उपयोग कराने से लाभ होता है। यही प्रक्रिया दिन में 2 बार करनी चाहिए।
3. लहसुन वात रोग नाशक होता है अत: सभी वात विकारों साईटिका (Sciatica), कटिग्रह एवं मन्याग्रह (Lumber & Cirvical spondalitis) और सभी लकवे के रोगियों में लहसुन की 7-9 कलियाँ एवं वायविडगं 3 ग्राम मात्रा को 1 गिलास दूध में, 1 गिलास पानी छानकर पिलाने से सत्वर लाभ मिलता है।
4. सभी वात विकार, कमर दर्द, गर्दन दर्द, लकवा इत्यादि अवस्थाओं में सरसों या तिल्ली के 50 ग्राम तेल में लहसुन 5 ग्राम, अजवाइन 5 ग्राम, सोंठ 5 ग्राम और लौंग 5-7 नग डालकर तब तक उबालें जब ये सभी काले हो जाएं। इन्हें छानकर तेल को काँच के मर्तबान में भर लें व दर्द वाले स्थान पर मालिश करने से पी़डा दूर होती है।
5. जीर्णआमवात, सन्धिशोथ में इसे पीसकर लेप करने से शोथ और पी़डा का नाश होता है।
6. बच्चों के वात विकारों में ऊपर निर्दिष्ट तेल की मालिश विशेष लाभदायक होती है।
पाचन संस्थान में उपयोग:
1. अजीर्ण की अवस्था और जिन्हें भूख नहीं लगती है, उन्हें लहसुन कल्प का उपयोग करवाया जाता है। आरंभ में 2-3 कलियाँ खिलाएं, फिर प्रतिदिन 2-2 कलियाँ बढ़ाते हुए शरीर के शक्तिबल के अनुसार 15 कलियों तक ले जाएं। फिर पुन: घटाते हुए 2-3 कलियों तक लाकर बंद कर कर दें। इस कल्प का उपयोग करने से भूख खुलकर लगती है। आंतों में (Atonic dyspepsia) में शिथिलता दूर होकर पाचक रसों का ठीक से स्राव होकर आंतों की पुर: सरण गति बढ़ती है और रोगी का भोजन पचने लगता है।
2. आंतों के कृमि (Round Worms) में इसके रस की 20-30 बूंदें दूध के साथ देने से कृमियों की वृद्धि रूक जाती है तथा मल के साथ निकलने लगते हैं।
3. वातगुल्म, पेट के अफारे, (Dwodenal ulcer) में इसे पीसकर, कर घी के साथ खिलाने से लाभ होता है।
ज्वर (Fever) रोग में उपयोग:
1. विषम ज्वर (मलेरिया) में इसे (3-5 कलियों को) पीस कर या शहद में मिलाकर कुछ मात्रा में तेल या घी साथ सुबह खाली पेट देने से प्लीहा एवं यकृत वृद्धि में लाभ मिलता है।
2. आंत्रिक ज्वर/मियादी बुखार/मोतीझरा (Typhoid) तथा तन्द्राभज्वर (Tuphues) में इसके टिंक्चर की 8-10 बूंदे शर्बत के साथ 4-6 घण्टे के अन्तराल पर देने से लाभ मिलता है। यदि रोग की प्रारंभिक अवस्था में दे दिया जाये तो ज्वर बढ़ ही नहीं पाता है।
3. इसके टिंक्चर की 5-7 बूंदें शर्बत के साथ (Intestinal antiseptic) औषध का काम करती है। ह्वदय रोग में: 1. ह्वदय रोग की अचूक दवा है।
2. लहसुन में लिपिड (Lipid) को कम करने की क्षमता या Antilipidic प्रभाव होने के कारण कोलेस्ट्रॉल और ट्राईग्लिसराइडस की मात्रा को कम करता है।
3. लहसुन की 3-4 कलियों का प्रतिदिन सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल का बढ़ा हुआ लेवल कम होकर ह्वदयघात (Heartattack) की संभावनाओं को कम करता है।
Note:
1. लहसुन की तीक्ष्णता को कम करने के लिए इनकी कलियों को शाम को छाछ या दही के पानी में भिगो लें तथा सुबह सेवन करने से इसकी उग्र गन्ध एवं तीक्ष्णता दोनों नष्ट हो जाती हैं।2. लहसुन की 5 ग्राम मात्रा तथा अर्जुन छाल 3 ग्राम मात्रा को दूध में उबाल कर (क्षीरपाक बनाकर) लेने से मायोकार्डियल इन्फेक्शन ((M.I.) ) तथा उच्चा कॉलेस्ट्रॉल (Hight Lipid Profile) दोनों से बचा जा सकता है।
3. ह्वदय रोग के कारण उदर में गैस भरना, शरीर में सूजन आने पर, लहसुन की कलियों का नियमित सेवन करने से मूत्र की प्रवृत्ति बढ़कर सूजन दूर होता है तथा वायु निकल कर ह्वदय पर दबाव भी कम होता है।
4. (Diptheria) नामक गले के उग्र विकार में इसकी 1-1 कली को चूसने पर विकृत कला दूर होकर रोग में आराम मिलता है, बच्चों को इसके रस (आधा चम्मच) में शहद या शर्बत के साथ देना चाहिए।
5. पशुओं में होने वाले Anthrax रोग में इसे 10-15 ग्राम मात्रा में आभ्यान्तर प्रयोग तथा गले में लेप के रूप में प्रयोग करते हैं।
Note : लहसुन के कारण होने वाले उपद्रवों में हानिनिवारक औषध के रूप में मातीरा, धनियाँ एवं बादाम के तेल में उपयोग में लाते हैं।
Note : गर्भवती çस्त्रयों तथा पित्त प्रकृत्ति वाले पुरूषों को लहसुन का अति सेवन निषेध माना गया है।
आयुर्वेद चिकित्सा: जीवन जीने का सम्पूर्ण विज्ञान
आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान ही नहीं अपितु जीवन जीने का सम्पूर्ण विज्ञान है। इसके अन्तर्गत रोग (शरीर में उत्पन्न विकृति) के निवारण के साथ शारीरिक स्वास्थ्य के संरक्षण को भी महत्ता दी गई है। स्वस्थ शरीर की प्रकृति और रोगी का होना शरीर की विकृति का द्योतक होता है, शरीर में रोगों से ल़डने की प्रबल क्षमता होती है, लेकिन गलत खान-पान एवं रहन-सहन की आदतों के कारण हमारा शरीर रोगों से आक्रान्त हो जाता है, भौतिकतावादी जीवन शैली के युग में हम प्रकृति से दूर हो गए हैं, यही कारण है कि रोग व रोगियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है।
एक जमाना था जब परिवार के बुजुर्ग अपने अनुभवों से घरेलू नुस्खों के द्वारा न केवल रोग की प्राथमिक अवस्था में ही बल्कि मौसम के अनुसार आने वाली व्याधियों के आने से पूर्व ही उपचार सम्पन्न करवा देते थे जिससे रोग आगे नहीं बढ़ पाता था। इससे यह सिद्धान्त लागू होता है कि "यस्य देशस्य यो जन्तुस्त”ां तस्यौषधं हितम्" अर्थात् जिस देश, पारिस्थितिकी, वातावरण में मनुष्य रहता है, उसे वहीं की औषधियां, अन्न, खान-पान एवं रहन-सहन अनुकूल होते हैं। तुलसी जहां एक तरफ औषधीय गुणकर्मो से भरपूर है, वहीं श्रद्धा, विश्वास आदि आध्यात्मिक, मानसिक एवं धार्मिक गुणों से भी ओतप्रोत है, यही कारण है कि तुलसी न केवल शारीरिक व्याधियों के लिए बल्कि मानसिक व आध्यात्मिक विकारों में भी लाभकारी होती है।
तुलसी का सामान्य परिचय: तुलसी का पौधा भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। घर की पवित्रता, संस्कार, धार्मिकता एवं भूतबाधा के विनाशा का प्रतीक माना गया है। वर्तमान में तुलसी पर अनेकों अनुसंधान जारी हैं, चिकित्सा क्षेत्र मे रोगों को दूर करने की विलक्षण शक्ति, पर्यावरण क्षेत्र मे प्रदूषित वायु (हवा) के शुद्धिकरण व पर्यावरण संरक्षण की शक्ति पर अनुसंधान जारी है। तुलसी आधिभौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक तीनों प्रकार की विपदाओं से मुक्त करती है।
लेटिन नाम- Ocimum Senctum.
भारतीय साहित्य, वेद, वेदांग, पुराण तथा आयुर्वेद के ग्रंथों में तुलसी के अनेक नाम वर्णित हैं, जिनका संबंध तुलसी के गुणकर्म और उपयोग से जु़डा है।
तुलसी: जिसकी तुलना किसी अन्य से न की जाए अतुलनीय।
पुष्पसारा: सभी पुषों का सार होने से।
विश्वपावनी: समस्त विश्व को पवित्र व निर्मल करने वाली।
कायस्था: शरीर को स्थिर अर्थात वृद्धावस्था से रक्षा करने वाली। आरोग्य प्रिया: शरीर को आरोग्य तथा महिलाओं के अंगों को निर्मल व पुष्ट बनाने वाली।
अप्रेतराक्षसी: रोग रूपी दैत्यों, राक्षसों व पिशाचों को नष्ट करने वाली। पावनी: आत्मा, मन, इन्द्रियों एवं पर्यावरण को पवित्र करने के कारण।
अमृता: अमृत के समान गुण रखने के कारण।
भेद: तुलसी के दो भेद होते हैं- शुक्ल तुलसी, कृष्ण (श्याम तुलसी) सुश्रुत: सुरसा एवं श्वेत सुरसा।
शुक्ल तुलसी को: राम तुलसी भी कहा जाता है। अथर्ववेद के अनुसार- श्यामा तुलसी त्वचा, मांस व अस्थियों में प्रविष्ट महारोगों को नष्ट करती है। तुलसी का पौधा सुगंधित, बहुशाखी, बहुवर्षायु, 1-3 फीट ऊंचा, शाखाएं गोल, आमने-सामने व सीधी ऊपर की ओर जाती हैं। तुलसी पत्र गोलाई लिए हुए 1-2½ इंच लम्बे होते हैं व पृष्ठ रोमश होते हैं, शाखाओं की शिराओं पर फूलों की म†जरी लगती है।
पर्यावरण पर तुलसी पौधे का प्रभाव: एक अध्ययन के अनुसार तुलसी का पौधा उपापचय क्रिया के दौरान आकाोन (03) गैस छो़डता है जिसमे ऑक्सीजन (प्राणवायु) के 2 के स्थान पर तीन परमाणु होते हैं, इससे तुलसी पौधे के चारों ओर ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
संभवतया: प्राचीनकाल से ही वायु शोधन गुण के कारण इसे घर के आंगन मे लगाने की परम्परा रही है।
-सूर्यग्रहण आदि के समय प्रकाश की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से खाद्य-पदार्थो और जल को बचाने के लिए उनमें तुलसी पत्रों को डालने का विधान चला आ रहा है।
-वैज्ञानिक अध्ययनों द्वारा पता लगा है कि तुलसी पौधों के आसपास मलेरिया उत्पादक, प्लेग, क्षय के कीटाणुओं का संवर्द्धन नहीं होता है। इससे सिद्ध होता है कि शरीर में इसके आंतरिक प्रयोग से इन कीटाणुओं से संबंधित रोगों से मुक्ति मिलती है।
तुलसी के गुण-कर्म-
"अकालमृत्यु हरणं सर्वव्याधि विनाशनम्।
हरेश्चरणोदकं पीत्वां सर्वपापैर्विमुच्यतेH"
तुलसी पत्रयुक्त चरणामृत अकालमृत्यु, सर्व व्याधियों का विनाशाक और सर्वपापों के नाश का कारक होता है। आयुर्वेदानुसार तुलसी रस में कटु-तिक्त, रूक्ष व लघु, विपाक में कटु एवं वीर्य में ऊष्ण होती है। मुख्य रूप से यह कफ एवं वायु नाशक होती है, कृमि दोषहर, अग्निदीपक, रूचिकर, ह्वदय के लिए हितकर, रक्त विकार और पाश्र्वशूल में हितकर होती है।
- इसके बीज स्निग्ध व पिच्छिल होने से मूत्रकृच्छ, पूयमेह तथा दुर्बलता में उपयोगी होते हैं।
- तुलसी यकृत को बल प्रदान करती है तथा लघु व रूक्ष गुण के कारण नित्य प्रयोग से शरीर में चर्बी को बढ़ने से रोकती है।
- शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करती है। तुलसी के सेवन से ब्लड कॉलेस्ट्रोल का लेवल सामान्य आता है।
- तुलसी में antri oxidant गुण होने के साथ ही कैंसर रोधि गुण भी पाया जाता है।
- एक अध्ययन के अनुसार तुलसी मे प्राकृतिक पारा (Natural Mercury) पाया जाता है, जो स्वास्थ्य संरक्षण व प्राणशक्ति संवर्द्धन के लिए आवश्यक होता है। इसी कारण लोक मान्यता के अनुसार तुलसी को दांतों से चबाने का निषेध किया गया है, क्योंकि यह दांतों के इनेमल को नुकसान पहुंचाता है। इससे भारतीय शास्त्रीय विज्ञान का उत्कृष्ट वैज्ञानिक पहलू प्रदर्शित होता है।
रासायनिक दृष्टि से- तुलसी में पीले रंग का उ़डनशील तेल पाया जाता है, जो कुछ समय रखे रहने पर रवेदार हो जाता है जिसे तुलसी कर्पूर (बेसल कैम्फर) कहते हैं। इसमें सैफोनिन्स, ऎल्डी हाइड्स, ग्लाइकोसाइड, टेनिन, फिनोल, एस्कोर्बिक एसिड व कैरोटिन पाया जाता है। यह तेल क्षयरोग एवं पूयोत्पादक जीवाणुओं के विरूद्ध कार्य करता है अर्थात स्ट्रेप्टोमाइसिन की 1/10 व आइसोनाइज्ड से 1/4 भाग काम करता है।
- यह तेल आंत्रिक ज्वर (Typhoid) के जीवाणु तथा आंत्र के श्व.ष्टश्द्यi E.Coli (Intestinal Bacteria) से ल़डने की क्षमता रखता है।
- तुलसी पत्र के 100 ग्राम पत्तों में 83 ग्राम Ascorbic acid (Vit.C) तथा कैरोटिन 2-5 ग्राम पाया जाता है।
- तुलसी mast cells के Degramlation को रोकने में प्रभावी Anti allergic agent के रूप मे कार्य करती है।
- हाल ही के वैज्ञानिक अध्ययनों ने तुलसी कोAnti stress agent के रूप में प्रतिस्थापित किया है।
- तुलसी नाक, श्वसन नलिकाओं व फेफ़डों से स्रवित बढ़े हुए कफ को निकालने में मदद करती है जिससे अस्थमा के अटैक व सर्दी, जुकाम तथा फेफ़डों के रोगों से बचाव होता है।
- तुलसी काष्ठ की माला पहनने से शरीरस्थ विद्युत तरंगों का संचार निर्बाध तरीके से होता है जिससे ह्वदय, शिराधमनियों व तंत्रिका तंत्र की रोगों के आक्रमण से रक्षा होती है। तुलसी के औषध उपयोग के घटक पत्रं पुष्पं फलं मूलं त्वक् स्कन्ध संçज्ञतम्।
तुलसी संभवं सर्व पावनं मृत्तिकादिकम्H अर्थात पत्र, पुष्प, फल, मूल, त्वक्, काण्ड एवं सम्पूर्ण तुलसी पंचांग तथा पौधे के तल की मिट्टी सभी सेवनीय व पवित्र माने गए हैं। तुलसी के शरीर के संस्थान विशेष पर औषध प्रभाव
(a) यकृत एवं प्लीहा (तिल्ली): तुलसी अग्नि को दीपन करने और विषों का नाश करने वाली होती है। यकृत के कमजोर हो जाने पर पाचकाग्नि कमजोर (मंद) तथा शरीर के विषों की मात्रा बढ़ जाती है।
परिणामस्वरूप यकृतशोथ (Hepetitis) यकृत का बढ़ना (Hepltomegely) आदि विकार उत्पन्न होते हैं, शरीर में Toxicity (विषाक्तता) के बढ़ने से R.B.C. (लाल रूधिर कणिकाएं) का विनाश होने लगता है जिससे splenomegely (प्लीहा वृद्धि) हो जाती है।
- तुलसी viral hepetitis में कारगर सिद्ध हुई है।
- तुलसी के 15-20 पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से यकृत विकारों में लाभ होता है।
- तुलसी पत्र के एक चम्मच रस में, एक ग्राम जीरा चूर्ण लेने से यकृत व प्लीहा विकारों में लाभ होता है।
(b) ह्वदय व रक्त वाहिनी विकारों में: - तुलसी के निरन्तर प्रयोग से रक्त कॉलेस्ट्रोल अपने सामान्य लेवल पर आ जाता है।
- तुलसी पत्रों व बीजों के सेवन से धमनी काठिन्य (arteriosclerosis) दूर होकर धमनी दाब सामान्य हो जाता है।
- तुलसी के सूखें पत्तों का चूर्ण एक ग्राम या ताजा रस एक चम्मच को, अर्जुन छाल दो ग्राम, के साथ शहद में मिलाकर लेने से ह्वदय को लाभ होता है।
- निम्न रक्तचाप के मरीजों को तुलसी माला धारण से रक्त दाब सामान्य होता है।
- तुलसी रस एक चम्मच में पुष्कर मूल, एक से दो ग्राम तथा शहद मिलाकर लेने से ह्वदय शूल और पाश्र्व शूल में लाभ होता है।
(ष्) कैंसर रोग में:अमेरिका में अमेरिकन एसोसिएशन कैंसर रिसर्च की कॉन्फ्रेंस में carmonas cancer institute के वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि तुलसी स्तन कैंसर की वृद्धि को रोकने में कारगर सिद्ध हुई है।
-तुलसी में Anti oxident गुण जो chemically induced cancer inhibiting and anti inflamatory गुण पाया जाता है। इसमें Urosilic acid पाया जाता है, जो Nervous system, Liver and Skin tissues (ऊतकों) पर सुरक्षा प्रदान करता है। इससे ट्यूमर में रक्त की सप्लाई देने वाली रक्त वाहिनियों की संख्या कम हो जाती है जिससे ट्यूमर की वृद्धि रूक जाती है। रक्त वाहिनियों की संख्या कम होने से ऑक्सीजन व पोषक तत्वों की सप्लाई रूकने से कैंसर कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।
- तुलसी कैंसर पर कीमोथैरेपी एजेंट के समानान्तर काम करती है। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि तुलसी स्तन कैंसर में भविष्य में प्रतिरोधक, चिकित्सकीय औषध के रूप में कारगर सिद्ध हो सकती है।
-गेहूं के ताजा ज्वारों का 25 द्वद्य रस + तुलसी पत्र 3 चम्मच रस मिलाकर पीने से कैंसर रोगियों को विशेष लाभ
- चुकन्दर के रस में, तुलसी रस मिलाकर लेने से रक्त कैंसर (Luecamia) मे लाभ मिलता है। (स्त्र) ज्वर व मलेरिया में
उपयोग: - तुलसी संक्रमण का प्रतिकार, विषों का निर्हरण व शरीर की क्ष&#
एक जमाना था जब परिवार के बुजुर्ग अपने अनुभवों से घरेलू नुस्खों के द्वारा न केवल रोग की प्राथमिक अवस्था में ही बल्कि मौसम के अनुसार आने वाली व्याधियों के आने से पूर्व ही उपचार सम्पन्न करवा देते थे जिससे रोग आगे नहीं बढ़ पाता था। इससे यह सिद्धान्त लागू होता है कि "यस्य देशस्य यो जन्तुस्त”ां तस्यौषधं हितम्" अर्थात् जिस देश, पारिस्थितिकी, वातावरण में मनुष्य रहता है, उसे वहीं की औषधियां, अन्न, खान-पान एवं रहन-सहन अनुकूल होते हैं। तुलसी जहां एक तरफ औषधीय गुणकर्मो से भरपूर है, वहीं श्रद्धा, विश्वास आदि आध्यात्मिक, मानसिक एवं धार्मिक गुणों से भी ओतप्रोत है, यही कारण है कि तुलसी न केवल शारीरिक व्याधियों के लिए बल्कि मानसिक व आध्यात्मिक विकारों में भी लाभकारी होती है।
तुलसी का सामान्य परिचय: तुलसी का पौधा भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। घर की पवित्रता, संस्कार, धार्मिकता एवं भूतबाधा के विनाशा का प्रतीक माना गया है। वर्तमान में तुलसी पर अनेकों अनुसंधान जारी हैं, चिकित्सा क्षेत्र मे रोगों को दूर करने की विलक्षण शक्ति, पर्यावरण क्षेत्र मे प्रदूषित वायु (हवा) के शुद्धिकरण व पर्यावरण संरक्षण की शक्ति पर अनुसंधान जारी है। तुलसी आधिभौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक तीनों प्रकार की विपदाओं से मुक्त करती है।
लेटिन नाम- Ocimum Senctum.
भारतीय साहित्य, वेद, वेदांग, पुराण तथा आयुर्वेद के ग्रंथों में तुलसी के अनेक नाम वर्णित हैं, जिनका संबंध तुलसी के गुणकर्म और उपयोग से जु़डा है।
तुलसी: जिसकी तुलना किसी अन्य से न की जाए अतुलनीय।
पुष्पसारा: सभी पुषों का सार होने से।
विश्वपावनी: समस्त विश्व को पवित्र व निर्मल करने वाली।
कायस्था: शरीर को स्थिर अर्थात वृद्धावस्था से रक्षा करने वाली। आरोग्य प्रिया: शरीर को आरोग्य तथा महिलाओं के अंगों को निर्मल व पुष्ट बनाने वाली।
अप्रेतराक्षसी: रोग रूपी दैत्यों, राक्षसों व पिशाचों को नष्ट करने वाली। पावनी: आत्मा, मन, इन्द्रियों एवं पर्यावरण को पवित्र करने के कारण।
अमृता: अमृत के समान गुण रखने के कारण।
भेद: तुलसी के दो भेद होते हैं- शुक्ल तुलसी, कृष्ण (श्याम तुलसी) सुश्रुत: सुरसा एवं श्वेत सुरसा।
शुक्ल तुलसी को: राम तुलसी भी कहा जाता है। अथर्ववेद के अनुसार- श्यामा तुलसी त्वचा, मांस व अस्थियों में प्रविष्ट महारोगों को नष्ट करती है। तुलसी का पौधा सुगंधित, बहुशाखी, बहुवर्षायु, 1-3 फीट ऊंचा, शाखाएं गोल, आमने-सामने व सीधी ऊपर की ओर जाती हैं। तुलसी पत्र गोलाई लिए हुए 1-2½ इंच लम्बे होते हैं व पृष्ठ रोमश होते हैं, शाखाओं की शिराओं पर फूलों की म†जरी लगती है।
पर्यावरण पर तुलसी पौधे का प्रभाव: एक अध्ययन के अनुसार तुलसी का पौधा उपापचय क्रिया के दौरान आकाोन (03) गैस छो़डता है जिसमे ऑक्सीजन (प्राणवायु) के 2 के स्थान पर तीन परमाणु होते हैं, इससे तुलसी पौधे के चारों ओर ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
संभवतया: प्राचीनकाल से ही वायु शोधन गुण के कारण इसे घर के आंगन मे लगाने की परम्परा रही है।
-सूर्यग्रहण आदि के समय प्रकाश की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से खाद्य-पदार्थो और जल को बचाने के लिए उनमें तुलसी पत्रों को डालने का विधान चला आ रहा है।
-वैज्ञानिक अध्ययनों द्वारा पता लगा है कि तुलसी पौधों के आसपास मलेरिया उत्पादक, प्लेग, क्षय के कीटाणुओं का संवर्द्धन नहीं होता है। इससे सिद्ध होता है कि शरीर में इसके आंतरिक प्रयोग से इन कीटाणुओं से संबंधित रोगों से मुक्ति मिलती है।
तुलसी के गुण-कर्म-
"अकालमृत्यु हरणं सर्वव्याधि विनाशनम्।
हरेश्चरणोदकं पीत्वां सर्वपापैर्विमुच्यतेH"
तुलसी पत्रयुक्त चरणामृत अकालमृत्यु, सर्व व्याधियों का विनाशाक और सर्वपापों के नाश का कारक होता है। आयुर्वेदानुसार तुलसी रस में कटु-तिक्त, रूक्ष व लघु, विपाक में कटु एवं वीर्य में ऊष्ण होती है। मुख्य रूप से यह कफ एवं वायु नाशक होती है, कृमि दोषहर, अग्निदीपक, रूचिकर, ह्वदय के लिए हितकर, रक्त विकार और पाश्र्वशूल में हितकर होती है।
- इसके बीज स्निग्ध व पिच्छिल होने से मूत्रकृच्छ, पूयमेह तथा दुर्बलता में उपयोगी होते हैं।
- तुलसी यकृत को बल प्रदान करती है तथा लघु व रूक्ष गुण के कारण नित्य प्रयोग से शरीर में चर्बी को बढ़ने से रोकती है।
- शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करती है। तुलसी के सेवन से ब्लड कॉलेस्ट्रोल का लेवल सामान्य आता है।
- तुलसी में antri oxidant गुण होने के साथ ही कैंसर रोधि गुण भी पाया जाता है।
- एक अध्ययन के अनुसार तुलसी मे प्राकृतिक पारा (Natural Mercury) पाया जाता है, जो स्वास्थ्य संरक्षण व प्राणशक्ति संवर्द्धन के लिए आवश्यक होता है। इसी कारण लोक मान्यता के अनुसार तुलसी को दांतों से चबाने का निषेध किया गया है, क्योंकि यह दांतों के इनेमल को नुकसान पहुंचाता है। इससे भारतीय शास्त्रीय विज्ञान का उत्कृष्ट वैज्ञानिक पहलू प्रदर्शित होता है।
रासायनिक दृष्टि से- तुलसी में पीले रंग का उ़डनशील तेल पाया जाता है, जो कुछ समय रखे रहने पर रवेदार हो जाता है जिसे तुलसी कर्पूर (बेसल कैम्फर) कहते हैं। इसमें सैफोनिन्स, ऎल्डी हाइड्स, ग्लाइकोसाइड, टेनिन, फिनोल, एस्कोर्बिक एसिड व कैरोटिन पाया जाता है। यह तेल क्षयरोग एवं पूयोत्पादक जीवाणुओं के विरूद्ध कार्य करता है अर्थात स्ट्रेप्टोमाइसिन की 1/10 व आइसोनाइज्ड से 1/4 भाग काम करता है।
- यह तेल आंत्रिक ज्वर (Typhoid) के जीवाणु तथा आंत्र के श्व.ष्टश्द्यi E.Coli (Intestinal Bacteria) से ल़डने की क्षमता रखता है।
- तुलसी पत्र के 100 ग्राम पत्तों में 83 ग्राम Ascorbic acid (Vit.C) तथा कैरोटिन 2-5 ग्राम पाया जाता है।
- तुलसी mast cells के Degramlation को रोकने में प्रभावी Anti allergic agent के रूप मे कार्य करती है।
- हाल ही के वैज्ञानिक अध्ययनों ने तुलसी कोAnti stress agent के रूप में प्रतिस्थापित किया है।
- तुलसी नाक, श्वसन नलिकाओं व फेफ़डों से स्रवित बढ़े हुए कफ को निकालने में मदद करती है जिससे अस्थमा के अटैक व सर्दी, जुकाम तथा फेफ़डों के रोगों से बचाव होता है।
- तुलसी काष्ठ की माला पहनने से शरीरस्थ विद्युत तरंगों का संचार निर्बाध तरीके से होता है जिससे ह्वदय, शिराधमनियों व तंत्रिका तंत्र की रोगों के आक्रमण से रक्षा होती है। तुलसी के औषध उपयोग के घटक पत्रं पुष्पं फलं मूलं त्वक् स्कन्ध संçज्ञतम्।
तुलसी संभवं सर्व पावनं मृत्तिकादिकम्H अर्थात पत्र, पुष्प, फल, मूल, त्वक्, काण्ड एवं सम्पूर्ण तुलसी पंचांग तथा पौधे के तल की मिट्टी सभी सेवनीय व पवित्र माने गए हैं। तुलसी के शरीर के संस्थान विशेष पर औषध प्रभाव
(a) यकृत एवं प्लीहा (तिल्ली): तुलसी अग्नि को दीपन करने और विषों का नाश करने वाली होती है। यकृत के कमजोर हो जाने पर पाचकाग्नि कमजोर (मंद) तथा शरीर के विषों की मात्रा बढ़ जाती है।
परिणामस्वरूप यकृतशोथ (Hepetitis) यकृत का बढ़ना (Hepltomegely) आदि विकार उत्पन्न होते हैं, शरीर में Toxicity (विषाक्तता) के बढ़ने से R.B.C. (लाल रूधिर कणिकाएं) का विनाश होने लगता है जिससे splenomegely (प्लीहा वृद्धि) हो जाती है।
- तुलसी viral hepetitis में कारगर सिद्ध हुई है।
- तुलसी के 15-20 पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से यकृत विकारों में लाभ होता है।
- तुलसी पत्र के एक चम्मच रस में, एक ग्राम जीरा चूर्ण लेने से यकृत व प्लीहा विकारों में लाभ होता है।
(b) ह्वदय व रक्त वाहिनी विकारों में: - तुलसी के निरन्तर प्रयोग से रक्त कॉलेस्ट्रोल अपने सामान्य लेवल पर आ जाता है।
- तुलसी पत्रों व बीजों के सेवन से धमनी काठिन्य (arteriosclerosis) दूर होकर धमनी दाब सामान्य हो जाता है।
- तुलसी के सूखें पत्तों का चूर्ण एक ग्राम या ताजा रस एक चम्मच को, अर्जुन छाल दो ग्राम, के साथ शहद में मिलाकर लेने से ह्वदय को लाभ होता है।
- निम्न रक्तचाप के मरीजों को तुलसी माला धारण से रक्त दाब सामान्य होता है।
- तुलसी रस एक चम्मच में पुष्कर मूल, एक से दो ग्राम तथा शहद मिलाकर लेने से ह्वदय शूल और पाश्र्व शूल में लाभ होता है।
(ष्) कैंसर रोग में:अमेरिका में अमेरिकन एसोसिएशन कैंसर रिसर्च की कॉन्फ्रेंस में carmonas cancer institute के वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि तुलसी स्तन कैंसर की वृद्धि को रोकने में कारगर सिद्ध हुई है।
-तुलसी में Anti oxident गुण जो chemically induced cancer inhibiting and anti inflamatory गुण पाया जाता है। इसमें Urosilic acid पाया जाता है, जो Nervous system, Liver and Skin tissues (ऊतकों) पर सुरक्षा प्रदान करता है। इससे ट्यूमर में रक्त की सप्लाई देने वाली रक्त वाहिनियों की संख्या कम हो जाती है जिससे ट्यूमर की वृद्धि रूक जाती है। रक्त वाहिनियों की संख्या कम होने से ऑक्सीजन व पोषक तत्वों की सप्लाई रूकने से कैंसर कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।
- तुलसी कैंसर पर कीमोथैरेपी एजेंट के समानान्तर काम करती है। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि तुलसी स्तन कैंसर में भविष्य में प्रतिरोधक, चिकित्सकीय औषध के रूप में कारगर सिद्ध हो सकती है।
-गेहूं के ताजा ज्वारों का 25 द्वद्य रस + तुलसी पत्र 3 चम्मच रस मिलाकर पीने से कैंसर रोगियों को विशेष लाभ
- चुकन्दर के रस में, तुलसी रस मिलाकर लेने से रक्त कैंसर (Luecamia) मे लाभ मिलता है। (स्त्र) ज्वर व मलेरिया में
उपयोग: - तुलसी संक्रमण का प्रतिकार, विषों का निर्हरण व शरीर की क्ष&#
रविवार, 17 जुलाई 2011
छोटे फंडे-बड़े परिणाम.... यकीन न हो तो कर के देखें!!
कई बार ऐसा होता है कि जिसे हम बहुत बड़ी समस्या समझ रहे थे उसका उपाय बहुत ही आसानी से निकल आता है। आइये देखते हैं कुछ ऐसे ही बेहद सरल नुस्खे जो गंभीर समस्याओं का आसान हल हो सकते हैं...
डायबिटीज से छुटकारा:
इस रोग को प्राकृतिक रूप से नष्ट करने के लिये निम्र प्रयोग करें..
- गुड़हल के लाल फूल की 25 पत्तियां नियमित खाएं।
- सदाबहार के पौधे की पत्तियों का सेवन करें।
- कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में 5-6 भिंडियां काटकर रात को गला दीजिए, सुबह इस पानी को छानकर पी लीजिए।
- नियमित रूप से 2-3 कि.मी. पैदल घूमें।
खूबसूरत बाल:
पत्तियों और अन्य आसान घरेलू उपायों से बालों की खूबसूरती बढ़ाने के लिये निम्र प्रयोग करें...
- मैथीदाना, गुड़हल और बेर की पत्तियां पीसकर पेस्ट बना लें। इसे 15 मिनट तक बालों में लगाएं। इससे आपके बालों की जड़ें मजबूत होंगी और स्वस्थ भी।
- मेहंदी की पत्तियां, बेर की पत्तियां, आंवला, शिकाकाई, मैथीदाने और कॉफी को पीसकर शैम्पू बनाएं। इससे बाल चमकदार और घने होंगे।
- डेंड्रफ की समस्या से निजात पाने के लिए नींबू और आंवले का सेवन करें और लगाएं।
कैल्शियम की पूर्ति:
शरीर में कैल्शियम की कमी होने से हड्डियां कमजोर पडऩे लगती हैं इसलिये इस कमी को दूर करने के लिये निम्र प्रयोग करें...
- सतावरी के कंद का पावडर बनाकर आधा चम्मच दूध के साथ नियमित लें, इससे कैल्शियम की कमी नहीं होगी।
आयरन की पूर्ति:
शरीर में आयरन की कमी का होना कई गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है, इस कमी को दूर करने के लिये निम्र आसान प्रयोग करें...
- आयरन बढ़ाने के लिए पालक, टमाटर और गाजर खाए।
- अपनी डेली डाइट में दूध-दही को अवश्य शामिल करें।
- अंकुरित अन्न को नाश्ते के रूप में खाएं।
तेज बुद्घि के लिए:
जिंदगी का सारा दारोमदार बुद्धि पर ही निर्भर होता है क्योंकि बुद्धि ही आपको सही अवसरों को पहचानने और खोजने में मदद कर सकती है। बुद्धि को जाग्रत और तेज करने के लिये निम्न उपाय करें...
अश्वगंधा-100 ग्राम, सतावरी पावडर- 100 ग्राम, शंखपुष्पी पावडर-100 ग्राम, ब्राह्मी पावडर- 50 ग्राम मिलाकर शहद या दूध के साथ लेने से बुद्धि तीव्र होती है।
डायबिटीज से छुटकारा:
इस रोग को प्राकृतिक रूप से नष्ट करने के लिये निम्र प्रयोग करें..
- गुड़हल के लाल फूल की 25 पत्तियां नियमित खाएं।
- सदाबहार के पौधे की पत्तियों का सेवन करें।
- कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में 5-6 भिंडियां काटकर रात को गला दीजिए, सुबह इस पानी को छानकर पी लीजिए।
- नियमित रूप से 2-3 कि.मी. पैदल घूमें।
खूबसूरत बाल:
पत्तियों और अन्य आसान घरेलू उपायों से बालों की खूबसूरती बढ़ाने के लिये निम्र प्रयोग करें...
- मैथीदाना, गुड़हल और बेर की पत्तियां पीसकर पेस्ट बना लें। इसे 15 मिनट तक बालों में लगाएं। इससे आपके बालों की जड़ें मजबूत होंगी और स्वस्थ भी।
- मेहंदी की पत्तियां, बेर की पत्तियां, आंवला, शिकाकाई, मैथीदाने और कॉफी को पीसकर शैम्पू बनाएं। इससे बाल चमकदार और घने होंगे।
- डेंड्रफ की समस्या से निजात पाने के लिए नींबू और आंवले का सेवन करें और लगाएं।
कैल्शियम की पूर्ति:
शरीर में कैल्शियम की कमी होने से हड्डियां कमजोर पडऩे लगती हैं इसलिये इस कमी को दूर करने के लिये निम्र प्रयोग करें...
- सतावरी के कंद का पावडर बनाकर आधा चम्मच दूध के साथ नियमित लें, इससे कैल्शियम की कमी नहीं होगी।
आयरन की पूर्ति:
शरीर में आयरन की कमी का होना कई गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है, इस कमी को दूर करने के लिये निम्र आसान प्रयोग करें...
- आयरन बढ़ाने के लिए पालक, टमाटर और गाजर खाए।
- अपनी डेली डाइट में दूध-दही को अवश्य शामिल करें।
- अंकुरित अन्न को नाश्ते के रूप में खाएं।
तेज बुद्घि के लिए:
जिंदगी का सारा दारोमदार बुद्धि पर ही निर्भर होता है क्योंकि बुद्धि ही आपको सही अवसरों को पहचानने और खोजने में मदद कर सकती है। बुद्धि को जाग्रत और तेज करने के लिये निम्न उपाय करें...
अश्वगंधा-100 ग्राम, सतावरी पावडर- 100 ग्राम, शंखपुष्पी पावडर-100 ग्राम, ब्राह्मी पावडर- 50 ग्राम मिलाकर शहद या दूध के साथ लेने से बुद्धि तीव्र होती है।
अनोखे लहसुन की खूबियां, कई बीमारियों में रामबाण
आमतौर पर लहसुन को सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाने वाली वस्तु माना जाता है। लेकिन लहसुन सिर्फ स्वाद बढ़ाने का साधन ही नहीं है बल्कि इसमें ऐसी कई खूबियां होती हैं जो इसे बेजोड़ और बहुत कीमती बनाती हैं। आइए जाने कि इस सीधी-साधी लहसुन में क्या-क्या अनमोल गुण छुपे हुए हैं...
-लहसुन का सेवन करने वालों को टीबी रोग नहीं होता। लहसुन एक शानदार कीटाणुनाशक है, यह एंटीबायोटिक दवाइयों का अच्छा विकल्प है। लहसुन से टीबी के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
प्रयोग:1 बेजोड़ एंटीबायोटिक
सबसे पहले लहसुन को छील लीजिए। एक कली के तीन-चार टुकड़े कर लें। दोनों समय भोजन के आधा घंटे बाद काटे हुए दो टुकड़ों को मुंह में रखें। धीरे-धीरे चबाएं। जब अच्छी तरह से उसका रस बन जाए तब ऊपर से पानी पीकर सारी चबाई लहसुन निगल लें। लहसुन का तीखापन सहन नहीं कर पाते हों तो एक-एक मनुक्का में दो-दो टुकड़े रखकर चबाएं।
प्रयोग:2 हर दर्द का रामबाण उपाय
एक लहसुन की चार कलियां छीलकर तीस ग्राम सरसों के तेल में डाल दें। उसमें दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाएं। लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें। इस गुनगुने गर्म तेल की मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है।
विशेष: अस्थमा का अचूक उपाय
लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फ ायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।
-लहसुन का सेवन करने वालों को टीबी रोग नहीं होता। लहसुन एक शानदार कीटाणुनाशक है, यह एंटीबायोटिक दवाइयों का अच्छा विकल्प है। लहसुन से टीबी के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
प्रयोग:1 बेजोड़ एंटीबायोटिक
सबसे पहले लहसुन को छील लीजिए। एक कली के तीन-चार टुकड़े कर लें। दोनों समय भोजन के आधा घंटे बाद काटे हुए दो टुकड़ों को मुंह में रखें। धीरे-धीरे चबाएं। जब अच्छी तरह से उसका रस बन जाए तब ऊपर से पानी पीकर सारी चबाई लहसुन निगल लें। लहसुन का तीखापन सहन नहीं कर पाते हों तो एक-एक मनुक्का में दो-दो टुकड़े रखकर चबाएं।
प्रयोग:2 हर दर्द का रामबाण उपाय
एक लहसुन की चार कलियां छीलकर तीस ग्राम सरसों के तेल में डाल दें। उसमें दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाएं। लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें। इस गुनगुने गर्म तेल की मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है।
विशेष: अस्थमा का अचूक उपाय
लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फ ायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।
ये हैं एलर्जी से बचने के सबसे आसान आयुर्वेदिक तरीके..
"एलर्जी" एक आम शब्द, जिसका प्रयोग हम कभी 'किसी ख़ास व्यक्ति से मुझे एलर्जी है' के रूप में करते हैं। ऐसे ही हमारा शरीर भी ख़ास रसायन उद्दीपकों के प्रति अपनी असहज प्रतिक्रया को 'एलर्जी' के रूप में दर्शाता है।
बारिश के बाद आयी धूप तो ऐसे रोगियों क़ी स्थिति को और भी दूभर कर देती है। ऐसे लोगों को अक्सर अपने चेहरे पर रूमाल लगाए देखा जा सकता है। क्या करें छींक के मारे बुरा हाल जो हो जाता है।
हालांकि एलर्जी के कारणों को जानना कठिन होता है, परन्तु कुछ आयुर्वेदिक उपाय इसे दूर करने में कारगर हो सकते हैं। आप इन्हें अपनाएं और एलर्जी से निजात पाएं !
- नीम चढी गिलोय के डंठल को छोटे टुकड़ों में काटकर इसका रस हरिद्रा खंड चूर्ण के साथ 1.5 से तीन ग्राम नियमित प्रयोग पुरानी से पुरानी एलर्जी में रामबाण औषधि है।
- गुनगुने निम्बू पानी का प्रातःकाल नियमित प्रयोग शरीर में विटामिन-सी की मात्रा की पूर्ति कर एलर्जी के कारण होने वाले नजला-जुखाम जैसे लक्षणों को दूर करता है।
- अदरख,काली मिर्च,तुलसी के चार पत्ते ,लौंग एवं मिश्री को मिलाकर बनायी गयी 'हर्बल चाय' एलर्जी से निजात दिलाती है।
- बरसात के मौसम में होनेवाले विषाणु (वायरस)संक्रमण के कारण 'फ्लू' जनित लक्षणों को नियमित ताजे चार नीम के पत्तों को चबा कर दूर किया जा सकता है।- आयुर्वेदिक दवाई 'सितोपलादि चूर्ण' एलर्जी के रोगियों में चमत्कारिक प्रभाव दर्शाती है।
- नमक पानी से 'कुंजल क्रिया' एवं ' नेती क्रिया" कफ दोष को बाहर निकालकर पुराने से पुराने एलर्जी को दूर कने में मददगार होती है।
- पंचकर्म की प्रक्रिया 'नस्य' का चिकित्सक के परामर्श से प्रयोग 'एलर्जी' से बचाव ही नहीं इसकी सफल चिकित्सा है।
- प्राणायाम में 'कपालभाती' का नियमित प्रयोग एलर्जी से मुक्ति का सरल उपाय है।
कुछ सावधानियां जिन्हें अपनाकर आप एलर्जी से खुद को दूर रख सकते हैं :-
- धूल,धुआं एवं फूलों के परागकण आदि के संपर्क से बचाव।
- अत्यधिक ठंडी एवं गर्म चीजों के सेवन से बचना।
- कुछ आधुनिक दवाओं जैसे: एस्पिरीन, निमासूलाइड आदि का सेवन सावधानी से करना।
- खटाई एवं अचार के नियमित सेवन से बचना।
बारिश के बाद आयी धूप तो ऐसे रोगियों क़ी स्थिति को और भी दूभर कर देती है। ऐसे लोगों को अक्सर अपने चेहरे पर रूमाल लगाए देखा जा सकता है। क्या करें छींक के मारे बुरा हाल जो हो जाता है।
हालांकि एलर्जी के कारणों को जानना कठिन होता है, परन्तु कुछ आयुर्वेदिक उपाय इसे दूर करने में कारगर हो सकते हैं। आप इन्हें अपनाएं और एलर्जी से निजात पाएं !
- नीम चढी गिलोय के डंठल को छोटे टुकड़ों में काटकर इसका रस हरिद्रा खंड चूर्ण के साथ 1.5 से तीन ग्राम नियमित प्रयोग पुरानी से पुरानी एलर्जी में रामबाण औषधि है।
- गुनगुने निम्बू पानी का प्रातःकाल नियमित प्रयोग शरीर में विटामिन-सी की मात्रा की पूर्ति कर एलर्जी के कारण होने वाले नजला-जुखाम जैसे लक्षणों को दूर करता है।
- अदरख,काली मिर्च,तुलसी के चार पत्ते ,लौंग एवं मिश्री को मिलाकर बनायी गयी 'हर्बल चाय' एलर्जी से निजात दिलाती है।
- बरसात के मौसम में होनेवाले विषाणु (वायरस)संक्रमण के कारण 'फ्लू' जनित लक्षणों को नियमित ताजे चार नीम के पत्तों को चबा कर दूर किया जा सकता है।- आयुर्वेदिक दवाई 'सितोपलादि चूर्ण' एलर्जी के रोगियों में चमत्कारिक प्रभाव दर्शाती है।
- नमक पानी से 'कुंजल क्रिया' एवं ' नेती क्रिया" कफ दोष को बाहर निकालकर पुराने से पुराने एलर्जी को दूर कने में मददगार होती है।
- पंचकर्म की प्रक्रिया 'नस्य' का चिकित्सक के परामर्श से प्रयोग 'एलर्जी' से बचाव ही नहीं इसकी सफल चिकित्सा है।
- प्राणायाम में 'कपालभाती' का नियमित प्रयोग एलर्जी से मुक्ति का सरल उपाय है।
कुछ सावधानियां जिन्हें अपनाकर आप एलर्जी से खुद को दूर रख सकते हैं :-
- धूल,धुआं एवं फूलों के परागकण आदि के संपर्क से बचाव।
- अत्यधिक ठंडी एवं गर्म चीजों के सेवन से बचना।
- कुछ आधुनिक दवाओं जैसे: एस्पिरीन, निमासूलाइड आदि का सेवन सावधानी से करना।
- खटाई एवं अचार के नियमित सेवन से बचना।
हेयर प्रोब्लम भूल जाएं... बस आजमाएं और असर देखें!
खूबसूरती इंसान की स्वाभाविक प्यास है। इसीलिये हर व्यक्ति खुद भी सुन्दर दिखना चाहता है तथा दूसरों में भी खूबसूरती की ही तलाश करता है। व्यक्तित्व के दो स्तर होते हैं-एक बाहरी और एक अंदरूनी। बाहरी व्यक्तित्व यानी जो बाहर आंखों से नजर आता है। व्यक्ति का फस्र्ट इंप्रेशन इस बाहरी व्यक्तित्व का ही पड़ता है। वैसे तो शरीर का हर अंग महत्वपूर्ण होता है लेकिन चेहरा सबमें खाश होता है।
चेहरे की खूबसूरती के पीछे सिर के बालों की बड़ी अहम् भूमिका होती है। यहां हम बालों की खूबसूरती को बढ़ाने और लंबे समय तक कायम रखने के कुछ बहुत ही आसान और कारगर उपाय बता रहे हैं, जो प्रयोग करने पर यकीनन आपको बेहद पसंद आएंगे...
प्रयोग: 1
दो चम्मच त्रिफ ला पावडर 2 कप पानी में डालकर अच्छी तरह उबालें। फिर इसे छानकर ठंडा कर लें। इस पानी को 2-3 बार बालों में डालें तथा 5 मिनट बाद शैंपू कर लें। बाल चमकदार व मुलायम बनेंगे। डेंड्रफ होने पर त्रिफ ला के स्थान पर नीम की पत्तियों का पावडर लें इसी विधि से ही प्रयोग करें। डेंड्रफ की समस्या धीरे-धीरे कम होने लगेगी।
प्रयोग:2
आंवले का पेस्ट बालों में लगाकर 20 मिनट रखें फि र शैंपू कर दें। बालों में मजबूती आएगी। बालों में सोने के पहले तेल लगाएं। सुबह उठकर गर्म पानी में टॉवेल डुबाकर, निचोड़कर सर पर बांधें। 5 मिनट बाद शैंपू को पानी में घोलकर बाल धो लें। तेल के पश्चात दो बार शैंपू करें। इससे आपके बाल चमकीले तथा मुलायम हो जाएँगे।
प्रयोग:3
आधा कटोरी हरी मेहंदी पावडर लें। इसमें गर्म दूध (गाय का) डालकर पतला लेप बना लें। इसी लेप में एक बड़ा चम्मच आयुर्वेदिक हेयर ऑइल डालें। इसे अच्छी तरह से मिला लें। जब यह लेप ठंडा हो जाए तब बालों की जड़ों में लगाएं। 20 मिनट छोड़कर आयुर्वेदिक शैंपू पानी में घोलकर बालों को धो लें। इस डीप कंडीशनर द्वारा आपके बालों को पोषण भी मिलेगा एवं उसमें बाउंस (लोच) भी आ जाएगा।
चेहरे की खूबसूरती के पीछे सिर के बालों की बड़ी अहम् भूमिका होती है। यहां हम बालों की खूबसूरती को बढ़ाने और लंबे समय तक कायम रखने के कुछ बहुत ही आसान और कारगर उपाय बता रहे हैं, जो प्रयोग करने पर यकीनन आपको बेहद पसंद आएंगे...
प्रयोग: 1
दो चम्मच त्रिफ ला पावडर 2 कप पानी में डालकर अच्छी तरह उबालें। फिर इसे छानकर ठंडा कर लें। इस पानी को 2-3 बार बालों में डालें तथा 5 मिनट बाद शैंपू कर लें। बाल चमकदार व मुलायम बनेंगे। डेंड्रफ होने पर त्रिफ ला के स्थान पर नीम की पत्तियों का पावडर लें इसी विधि से ही प्रयोग करें। डेंड्रफ की समस्या धीरे-धीरे कम होने लगेगी।
प्रयोग:2
आंवले का पेस्ट बालों में लगाकर 20 मिनट रखें फि र शैंपू कर दें। बालों में मजबूती आएगी। बालों में सोने के पहले तेल लगाएं। सुबह उठकर गर्म पानी में टॉवेल डुबाकर, निचोड़कर सर पर बांधें। 5 मिनट बाद शैंपू को पानी में घोलकर बाल धो लें। तेल के पश्चात दो बार शैंपू करें। इससे आपके बाल चमकीले तथा मुलायम हो जाएँगे।
प्रयोग:3
आधा कटोरी हरी मेहंदी पावडर लें। इसमें गर्म दूध (गाय का) डालकर पतला लेप बना लें। इसी लेप में एक बड़ा चम्मच आयुर्वेदिक हेयर ऑइल डालें। इसे अच्छी तरह से मिला लें। जब यह लेप ठंडा हो जाए तब बालों की जड़ों में लगाएं। 20 मिनट छोड़कर आयुर्वेदिक शैंपू पानी में घोलकर बालों को धो लें। इस डीप कंडीशनर द्वारा आपके बालों को पोषण भी मिलेगा एवं उसमें बाउंस (लोच) भी आ जाएगा।
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लेखक - पी. ए. बाला पांच मोगरे के फूलों को दही में डूबा कर निकाल लेवें और धूप में पूर्ण तरीके से सुखा लेवें, जब यह पूरी तरह सूख जाए तब आप इसक...
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लेखक - पी. ए. बाला यह योगिनी प्रयोग है, इसमें आपकी समस्या का समाधान स्त्री अथवा पुरुष कोई भी किसी भी रूप में आकर कर जाएगा, अब इस प्रयोग के...