आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान ही नहीं अपितु जीवन जीने का सम्पूर्ण विज्ञान है। इसके अन्तर्गत रोग (शरीर में उत्पन्न विकृति) के निवारण के साथ शारीरिक स्वास्थ्य के संरक्षण को भी महत्ता दी गई है। स्वस्थ शरीर की प्रकृति और रोगी का होना शरीर की विकृति का द्योतक होता है, शरीर में रोगों से ल़डने की प्रबल क्षमता होती है, लेकिन गलत खान-पान एवं रहन-सहन की आदतों के कारण हमारा शरीर रोगों से आक्रान्त हो जाता है, भौतिकतावादी जीवन शैली के युग में हम प्रकृति से दूर हो गए हैं, यही कारण है कि रोग व रोगियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है।
एक जमाना था जब परिवार के बुजुर्ग अपने अनुभवों से घरेलू नुस्खों के द्वारा न केवल रोग की प्राथमिक अवस्था में ही बल्कि मौसम के अनुसार आने वाली व्याधियों के आने से पूर्व ही उपचार सम्पन्न करवा देते थे जिससे रोग आगे नहीं बढ़ पाता था। इससे यह सिद्धान्त लागू होता है कि "यस्य देशस्य यो जन्तुस्त”ां तस्यौषधं हितम्" अर्थात् जिस देश, पारिस्थितिकी, वातावरण में मनुष्य रहता है, उसे वहीं की औषधियां, अन्न, खान-पान एवं रहन-सहन अनुकूल होते हैं। तुलसी जहां एक तरफ औषधीय गुणकर्मो से भरपूर है, वहीं श्रद्धा, विश्वास आदि आध्यात्मिक, मानसिक एवं धार्मिक गुणों से भी ओतप्रोत है, यही कारण है कि तुलसी न केवल शारीरिक व्याधियों के लिए बल्कि मानसिक व आध्यात्मिक विकारों में भी लाभकारी होती है।
तुलसी का सामान्य परिचय: तुलसी का पौधा भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। घर की पवित्रता, संस्कार, धार्मिकता एवं भूतबाधा के विनाशा का प्रतीक माना गया है। वर्तमान में तुलसी पर अनेकों अनुसंधान जारी हैं, चिकित्सा क्षेत्र मे रोगों को दूर करने की विलक्षण शक्ति, पर्यावरण क्षेत्र मे प्रदूषित वायु (हवा) के शुद्धिकरण व पर्यावरण संरक्षण की शक्ति पर अनुसंधान जारी है। तुलसी आधिभौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक तीनों प्रकार की विपदाओं से मुक्त करती है।
लेटिन नाम- Ocimum Senctum.
भारतीय साहित्य, वेद, वेदांग, पुराण तथा आयुर्वेद के ग्रंथों में तुलसी के अनेक नाम वर्णित हैं, जिनका संबंध तुलसी के गुणकर्म और उपयोग से जु़डा है।
तुलसी: जिसकी तुलना किसी अन्य से न की जाए अतुलनीय।
पुष्पसारा: सभी पुषों का सार होने से।
विश्वपावनी: समस्त विश्व को पवित्र व निर्मल करने वाली।
कायस्था: शरीर को स्थिर अर्थात वृद्धावस्था से रक्षा करने वाली। आरोग्य प्रिया: शरीर को आरोग्य तथा महिलाओं के अंगों को निर्मल व पुष्ट बनाने वाली।
अप्रेतराक्षसी: रोग रूपी दैत्यों, राक्षसों व पिशाचों को नष्ट करने वाली। पावनी: आत्मा, मन, इन्द्रियों एवं पर्यावरण को पवित्र करने के कारण।
अमृता: अमृत के समान गुण रखने के कारण।
भेद: तुलसी के दो भेद होते हैं- शुक्ल तुलसी, कृष्ण (श्याम तुलसी) सुश्रुत: सुरसा एवं श्वेत सुरसा।
शुक्ल तुलसी को: राम तुलसी भी कहा जाता है। अथर्ववेद के अनुसार- श्यामा तुलसी त्वचा, मांस व अस्थियों में प्रविष्ट महारोगों को नष्ट करती है। तुलसी का पौधा सुगंधित, बहुशाखी, बहुवर्षायु, 1-3 फीट ऊंचा, शाखाएं गोल, आमने-सामने व सीधी ऊपर की ओर जाती हैं। तुलसी पत्र गोलाई लिए हुए 1-2½ इंच लम्बे होते हैं व पृष्ठ रोमश होते हैं, शाखाओं की शिराओं पर फूलों की म†जरी लगती है।
पर्यावरण पर तुलसी पौधे का प्रभाव: एक अध्ययन के अनुसार तुलसी का पौधा उपापचय क्रिया के दौरान आकाोन (03) गैस छो़डता है जिसमे ऑक्सीजन (प्राणवायु) के 2 के स्थान पर तीन परमाणु होते हैं, इससे तुलसी पौधे के चारों ओर ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
संभवतया: प्राचीनकाल से ही वायु शोधन गुण के कारण इसे घर के आंगन मे लगाने की परम्परा रही है।
-सूर्यग्रहण आदि के समय प्रकाश की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से खाद्य-पदार्थो और जल को बचाने के लिए उनमें तुलसी पत्रों को डालने का विधान चला आ रहा है।
-वैज्ञानिक अध्ययनों द्वारा पता लगा है कि तुलसी पौधों के आसपास मलेरिया उत्पादक, प्लेग, क्षय के कीटाणुओं का संवर्द्धन नहीं होता है। इससे सिद्ध होता है कि शरीर में इसके आंतरिक प्रयोग से इन कीटाणुओं से संबंधित रोगों से मुक्ति मिलती है।
तुलसी के गुण-कर्म-
"अकालमृत्यु हरणं सर्वव्याधि विनाशनम्।
हरेश्चरणोदकं पीत्वां सर्वपापैर्विमुच्यतेH"
तुलसी पत्रयुक्त चरणामृत अकालमृत्यु, सर्व व्याधियों का विनाशाक और सर्वपापों के नाश का कारक होता है। आयुर्वेदानुसार तुलसी रस में कटु-तिक्त, रूक्ष व लघु, विपाक में कटु एवं वीर्य में ऊष्ण होती है। मुख्य रूप से यह कफ एवं वायु नाशक होती है, कृमि दोषहर, अग्निदीपक, रूचिकर, ह्वदय के लिए हितकर, रक्त विकार और पाश्र्वशूल में हितकर होती है।
- इसके बीज स्निग्ध व पिच्छिल होने से मूत्रकृच्छ, पूयमेह तथा दुर्बलता में उपयोगी होते हैं।
- तुलसी यकृत को बल प्रदान करती है तथा लघु व रूक्ष गुण के कारण नित्य प्रयोग से शरीर में चर्बी को बढ़ने से रोकती है।
- शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करती है। तुलसी के सेवन से ब्लड कॉलेस्ट्रोल का लेवल सामान्य आता है।
- तुलसी में antri oxidant गुण होने के साथ ही कैंसर रोधि गुण भी पाया जाता है।
- एक अध्ययन के अनुसार तुलसी मे प्राकृतिक पारा (Natural Mercury) पाया जाता है, जो स्वास्थ्य संरक्षण व प्राणशक्ति संवर्द्धन के लिए आवश्यक होता है। इसी कारण लोक मान्यता के अनुसार तुलसी को दांतों से चबाने का निषेध किया गया है, क्योंकि यह दांतों के इनेमल को नुकसान पहुंचाता है। इससे भारतीय शास्त्रीय विज्ञान का उत्कृष्ट वैज्ञानिक पहलू प्रदर्शित होता है।
रासायनिक दृष्टि से- तुलसी में पीले रंग का उ़डनशील तेल पाया जाता है, जो कुछ समय रखे रहने पर रवेदार हो जाता है जिसे तुलसी कर्पूर (बेसल कैम्फर) कहते हैं। इसमें सैफोनिन्स, ऎल्डी हाइड्स, ग्लाइकोसाइड, टेनिन, फिनोल, एस्कोर्बिक एसिड व कैरोटिन पाया जाता है। यह तेल क्षयरोग एवं पूयोत्पादक जीवाणुओं के विरूद्ध कार्य करता है अर्थात स्ट्रेप्टोमाइसिन की 1/10 व आइसोनाइज्ड से 1/4 भाग काम करता है।
- यह तेल आंत्रिक ज्वर (Typhoid) के जीवाणु तथा आंत्र के श्व.ष्टश्द्यi E.Coli (Intestinal Bacteria) से ल़डने की क्षमता रखता है।
- तुलसी पत्र के 100 ग्राम पत्तों में 83 ग्राम Ascorbic acid (Vit.C) तथा कैरोटिन 2-5 ग्राम पाया जाता है।
- तुलसी mast cells के Degramlation को रोकने में प्रभावी Anti allergic agent के रूप मे कार्य करती है।
- हाल ही के वैज्ञानिक अध्ययनों ने तुलसी कोAnti stress agent के रूप में प्रतिस्थापित किया है।
- तुलसी नाक, श्वसन नलिकाओं व फेफ़डों से स्रवित बढ़े हुए कफ को निकालने में मदद करती है जिससे अस्थमा के अटैक व सर्दी, जुकाम तथा फेफ़डों के रोगों से बचाव होता है।
- तुलसी काष्ठ की माला पहनने से शरीरस्थ विद्युत तरंगों का संचार निर्बाध तरीके से होता है जिससे ह्वदय, शिराधमनियों व तंत्रिका तंत्र की रोगों के आक्रमण से रक्षा होती है। तुलसी के औषध उपयोग के घटक पत्रं पुष्पं फलं मूलं त्वक् स्कन्ध संçज्ञतम्।
तुलसी संभवं सर्व पावनं मृत्तिकादिकम्H अर्थात पत्र, पुष्प, फल, मूल, त्वक्, काण्ड एवं सम्पूर्ण तुलसी पंचांग तथा पौधे के तल की मिट्टी सभी सेवनीय व पवित्र माने गए हैं। तुलसी के शरीर के संस्थान विशेष पर औषध प्रभाव
(a) यकृत एवं प्लीहा (तिल्ली): तुलसी अग्नि को दीपन करने और विषों का नाश करने वाली होती है। यकृत के कमजोर हो जाने पर पाचकाग्नि कमजोर (मंद) तथा शरीर के विषों की मात्रा बढ़ जाती है।
परिणामस्वरूप यकृतशोथ (Hepetitis) यकृत का बढ़ना (Hepltomegely) आदि विकार उत्पन्न होते हैं, शरीर में Toxicity (विषाक्तता) के बढ़ने से R.B.C. (लाल रूधिर कणिकाएं) का विनाश होने लगता है जिससे splenomegely (प्लीहा वृद्धि) हो जाती है।
- तुलसी viral hepetitis में कारगर सिद्ध हुई है।
- तुलसी के 15-20 पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से यकृत विकारों में लाभ होता है।
- तुलसी पत्र के एक चम्मच रस में, एक ग्राम जीरा चूर्ण लेने से यकृत व प्लीहा विकारों में लाभ होता है।
(b) ह्वदय व रक्त वाहिनी विकारों में: - तुलसी के निरन्तर प्रयोग से रक्त कॉलेस्ट्रोल अपने सामान्य लेवल पर आ जाता है।
- तुलसी पत्रों व बीजों के सेवन से धमनी काठिन्य (arteriosclerosis) दूर होकर धमनी दाब सामान्य हो जाता है।
- तुलसी के सूखें पत्तों का चूर्ण एक ग्राम या ताजा रस एक चम्मच को, अर्जुन छाल दो ग्राम, के साथ शहद में मिलाकर लेने से ह्वदय को लाभ होता है।
- निम्न रक्तचाप के मरीजों को तुलसी माला धारण से रक्त दाब सामान्य होता है।
- तुलसी रस एक चम्मच में पुष्कर मूल, एक से दो ग्राम तथा शहद मिलाकर लेने से ह्वदय शूल और पाश्र्व शूल में लाभ होता है।
(ष्) कैंसर रोग में:अमेरिका में अमेरिकन एसोसिएशन कैंसर रिसर्च की कॉन्फ्रेंस में carmonas cancer institute के वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि तुलसी स्तन कैंसर की वृद्धि को रोकने में कारगर सिद्ध हुई है।
-तुलसी में Anti oxident गुण जो chemically induced cancer inhibiting and anti inflamatory गुण पाया जाता है। इसमें Urosilic acid पाया जाता है, जो Nervous system, Liver and Skin tissues (ऊतकों) पर सुरक्षा प्रदान करता है। इससे ट्यूमर में रक्त की सप्लाई देने वाली रक्त वाहिनियों की संख्या कम हो जाती है जिससे ट्यूमर की वृद्धि रूक जाती है। रक्त वाहिनियों की संख्या कम होने से ऑक्सीजन व पोषक तत्वों की सप्लाई रूकने से कैंसर कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।
- तुलसी कैंसर पर कीमोथैरेपी एजेंट के समानान्तर काम करती है। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि तुलसी स्तन कैंसर में भविष्य में प्रतिरोधक, चिकित्सकीय औषध के रूप में कारगर सिद्ध हो सकती है।
-गेहूं के ताजा ज्वारों का 25 द्वद्य रस + तुलसी पत्र 3 चम्मच रस मिलाकर पीने से कैंसर रोगियों को विशेष लाभ
- चुकन्दर के रस में, तुलसी रस मिलाकर लेने से रक्त कैंसर (Luecamia) मे लाभ मिलता है। (स्त्र) ज्वर व मलेरिया में
उपयोग: - तुलसी संक्रमण का प्रतिकार, विषों का निर्हरण व शरीर की क्ष&#
एक जमाना था जब परिवार के बुजुर्ग अपने अनुभवों से घरेलू नुस्खों के द्वारा न केवल रोग की प्राथमिक अवस्था में ही बल्कि मौसम के अनुसार आने वाली व्याधियों के आने से पूर्व ही उपचार सम्पन्न करवा देते थे जिससे रोग आगे नहीं बढ़ पाता था। इससे यह सिद्धान्त लागू होता है कि "यस्य देशस्य यो जन्तुस्त”ां तस्यौषधं हितम्" अर्थात् जिस देश, पारिस्थितिकी, वातावरण में मनुष्य रहता है, उसे वहीं की औषधियां, अन्न, खान-पान एवं रहन-सहन अनुकूल होते हैं। तुलसी जहां एक तरफ औषधीय गुणकर्मो से भरपूर है, वहीं श्रद्धा, विश्वास आदि आध्यात्मिक, मानसिक एवं धार्मिक गुणों से भी ओतप्रोत है, यही कारण है कि तुलसी न केवल शारीरिक व्याधियों के लिए बल्कि मानसिक व आध्यात्मिक विकारों में भी लाभकारी होती है।
तुलसी का सामान्य परिचय: तुलसी का पौधा भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। घर की पवित्रता, संस्कार, धार्मिकता एवं भूतबाधा के विनाशा का प्रतीक माना गया है। वर्तमान में तुलसी पर अनेकों अनुसंधान जारी हैं, चिकित्सा क्षेत्र मे रोगों को दूर करने की विलक्षण शक्ति, पर्यावरण क्षेत्र मे प्रदूषित वायु (हवा) के शुद्धिकरण व पर्यावरण संरक्षण की शक्ति पर अनुसंधान जारी है। तुलसी आधिभौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक तीनों प्रकार की विपदाओं से मुक्त करती है।
लेटिन नाम- Ocimum Senctum.
भारतीय साहित्य, वेद, वेदांग, पुराण तथा आयुर्वेद के ग्रंथों में तुलसी के अनेक नाम वर्णित हैं, जिनका संबंध तुलसी के गुणकर्म और उपयोग से जु़डा है।
तुलसी: जिसकी तुलना किसी अन्य से न की जाए अतुलनीय।
पुष्पसारा: सभी पुषों का सार होने से।
विश्वपावनी: समस्त विश्व को पवित्र व निर्मल करने वाली।
कायस्था: शरीर को स्थिर अर्थात वृद्धावस्था से रक्षा करने वाली। आरोग्य प्रिया: शरीर को आरोग्य तथा महिलाओं के अंगों को निर्मल व पुष्ट बनाने वाली।
अप्रेतराक्षसी: रोग रूपी दैत्यों, राक्षसों व पिशाचों को नष्ट करने वाली। पावनी: आत्मा, मन, इन्द्रियों एवं पर्यावरण को पवित्र करने के कारण।
अमृता: अमृत के समान गुण रखने के कारण।
भेद: तुलसी के दो भेद होते हैं- शुक्ल तुलसी, कृष्ण (श्याम तुलसी) सुश्रुत: सुरसा एवं श्वेत सुरसा।
शुक्ल तुलसी को: राम तुलसी भी कहा जाता है। अथर्ववेद के अनुसार- श्यामा तुलसी त्वचा, मांस व अस्थियों में प्रविष्ट महारोगों को नष्ट करती है। तुलसी का पौधा सुगंधित, बहुशाखी, बहुवर्षायु, 1-3 फीट ऊंचा, शाखाएं गोल, आमने-सामने व सीधी ऊपर की ओर जाती हैं। तुलसी पत्र गोलाई लिए हुए 1-2½ इंच लम्बे होते हैं व पृष्ठ रोमश होते हैं, शाखाओं की शिराओं पर फूलों की म†जरी लगती है।
पर्यावरण पर तुलसी पौधे का प्रभाव: एक अध्ययन के अनुसार तुलसी का पौधा उपापचय क्रिया के दौरान आकाोन (03) गैस छो़डता है जिसमे ऑक्सीजन (प्राणवायु) के 2 के स्थान पर तीन परमाणु होते हैं, इससे तुलसी पौधे के चारों ओर ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
संभवतया: प्राचीनकाल से ही वायु शोधन गुण के कारण इसे घर के आंगन मे लगाने की परम्परा रही है।
-सूर्यग्रहण आदि के समय प्रकाश की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से खाद्य-पदार्थो और जल को बचाने के लिए उनमें तुलसी पत्रों को डालने का विधान चला आ रहा है।
-वैज्ञानिक अध्ययनों द्वारा पता लगा है कि तुलसी पौधों के आसपास मलेरिया उत्पादक, प्लेग, क्षय के कीटाणुओं का संवर्द्धन नहीं होता है। इससे सिद्ध होता है कि शरीर में इसके आंतरिक प्रयोग से इन कीटाणुओं से संबंधित रोगों से मुक्ति मिलती है।
तुलसी के गुण-कर्म-
"अकालमृत्यु हरणं सर्वव्याधि विनाशनम्।
हरेश्चरणोदकं पीत्वां सर्वपापैर्विमुच्यतेH"
तुलसी पत्रयुक्त चरणामृत अकालमृत्यु, सर्व व्याधियों का विनाशाक और सर्वपापों के नाश का कारक होता है। आयुर्वेदानुसार तुलसी रस में कटु-तिक्त, रूक्ष व लघु, विपाक में कटु एवं वीर्य में ऊष्ण होती है। मुख्य रूप से यह कफ एवं वायु नाशक होती है, कृमि दोषहर, अग्निदीपक, रूचिकर, ह्वदय के लिए हितकर, रक्त विकार और पाश्र्वशूल में हितकर होती है।
- इसके बीज स्निग्ध व पिच्छिल होने से मूत्रकृच्छ, पूयमेह तथा दुर्बलता में उपयोगी होते हैं।
- तुलसी यकृत को बल प्रदान करती है तथा लघु व रूक्ष गुण के कारण नित्य प्रयोग से शरीर में चर्बी को बढ़ने से रोकती है।
- शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करती है। तुलसी के सेवन से ब्लड कॉलेस्ट्रोल का लेवल सामान्य आता है।
- तुलसी में antri oxidant गुण होने के साथ ही कैंसर रोधि गुण भी पाया जाता है।
- एक अध्ययन के अनुसार तुलसी मे प्राकृतिक पारा (Natural Mercury) पाया जाता है, जो स्वास्थ्य संरक्षण व प्राणशक्ति संवर्द्धन के लिए आवश्यक होता है। इसी कारण लोक मान्यता के अनुसार तुलसी को दांतों से चबाने का निषेध किया गया है, क्योंकि यह दांतों के इनेमल को नुकसान पहुंचाता है। इससे भारतीय शास्त्रीय विज्ञान का उत्कृष्ट वैज्ञानिक पहलू प्रदर्शित होता है।
रासायनिक दृष्टि से- तुलसी में पीले रंग का उ़डनशील तेल पाया जाता है, जो कुछ समय रखे रहने पर रवेदार हो जाता है जिसे तुलसी कर्पूर (बेसल कैम्फर) कहते हैं। इसमें सैफोनिन्स, ऎल्डी हाइड्स, ग्लाइकोसाइड, टेनिन, फिनोल, एस्कोर्बिक एसिड व कैरोटिन पाया जाता है। यह तेल क्षयरोग एवं पूयोत्पादक जीवाणुओं के विरूद्ध कार्य करता है अर्थात स्ट्रेप्टोमाइसिन की 1/10 व आइसोनाइज्ड से 1/4 भाग काम करता है।
- यह तेल आंत्रिक ज्वर (Typhoid) के जीवाणु तथा आंत्र के श्व.ष्टश्द्यi E.Coli (Intestinal Bacteria) से ल़डने की क्षमता रखता है।
- तुलसी पत्र के 100 ग्राम पत्तों में 83 ग्राम Ascorbic acid (Vit.C) तथा कैरोटिन 2-5 ग्राम पाया जाता है।
- तुलसी mast cells के Degramlation को रोकने में प्रभावी Anti allergic agent के रूप मे कार्य करती है।
- हाल ही के वैज्ञानिक अध्ययनों ने तुलसी कोAnti stress agent के रूप में प्रतिस्थापित किया है।
- तुलसी नाक, श्वसन नलिकाओं व फेफ़डों से स्रवित बढ़े हुए कफ को निकालने में मदद करती है जिससे अस्थमा के अटैक व सर्दी, जुकाम तथा फेफ़डों के रोगों से बचाव होता है।
- तुलसी काष्ठ की माला पहनने से शरीरस्थ विद्युत तरंगों का संचार निर्बाध तरीके से होता है जिससे ह्वदय, शिराधमनियों व तंत्रिका तंत्र की रोगों के आक्रमण से रक्षा होती है। तुलसी के औषध उपयोग के घटक पत्रं पुष्पं फलं मूलं त्वक् स्कन्ध संçज्ञतम्।
तुलसी संभवं सर्व पावनं मृत्तिकादिकम्H अर्थात पत्र, पुष्प, फल, मूल, त्वक्, काण्ड एवं सम्पूर्ण तुलसी पंचांग तथा पौधे के तल की मिट्टी सभी सेवनीय व पवित्र माने गए हैं। तुलसी के शरीर के संस्थान विशेष पर औषध प्रभाव
(a) यकृत एवं प्लीहा (तिल्ली): तुलसी अग्नि को दीपन करने और विषों का नाश करने वाली होती है। यकृत के कमजोर हो जाने पर पाचकाग्नि कमजोर (मंद) तथा शरीर के विषों की मात्रा बढ़ जाती है।
परिणामस्वरूप यकृतशोथ (Hepetitis) यकृत का बढ़ना (Hepltomegely) आदि विकार उत्पन्न होते हैं, शरीर में Toxicity (विषाक्तता) के बढ़ने से R.B.C. (लाल रूधिर कणिकाएं) का विनाश होने लगता है जिससे splenomegely (प्लीहा वृद्धि) हो जाती है।
- तुलसी viral hepetitis में कारगर सिद्ध हुई है।
- तुलसी के 15-20 पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से यकृत विकारों में लाभ होता है।
- तुलसी पत्र के एक चम्मच रस में, एक ग्राम जीरा चूर्ण लेने से यकृत व प्लीहा विकारों में लाभ होता है।
(b) ह्वदय व रक्त वाहिनी विकारों में: - तुलसी के निरन्तर प्रयोग से रक्त कॉलेस्ट्रोल अपने सामान्य लेवल पर आ जाता है।
- तुलसी पत्रों व बीजों के सेवन से धमनी काठिन्य (arteriosclerosis) दूर होकर धमनी दाब सामान्य हो जाता है।
- तुलसी के सूखें पत्तों का चूर्ण एक ग्राम या ताजा रस एक चम्मच को, अर्जुन छाल दो ग्राम, के साथ शहद में मिलाकर लेने से ह्वदय को लाभ होता है।
- निम्न रक्तचाप के मरीजों को तुलसी माला धारण से रक्त दाब सामान्य होता है।
- तुलसी रस एक चम्मच में पुष्कर मूल, एक से दो ग्राम तथा शहद मिलाकर लेने से ह्वदय शूल और पाश्र्व शूल में लाभ होता है।
(ष्) कैंसर रोग में:अमेरिका में अमेरिकन एसोसिएशन कैंसर रिसर्च की कॉन्फ्रेंस में carmonas cancer institute के वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि तुलसी स्तन कैंसर की वृद्धि को रोकने में कारगर सिद्ध हुई है।
-तुलसी में Anti oxident गुण जो chemically induced cancer inhibiting and anti inflamatory गुण पाया जाता है। इसमें Urosilic acid पाया जाता है, जो Nervous system, Liver and Skin tissues (ऊतकों) पर सुरक्षा प्रदान करता है। इससे ट्यूमर में रक्त की सप्लाई देने वाली रक्त वाहिनियों की संख्या कम हो जाती है जिससे ट्यूमर की वृद्धि रूक जाती है। रक्त वाहिनियों की संख्या कम होने से ऑक्सीजन व पोषक तत्वों की सप्लाई रूकने से कैंसर कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।
- तुलसी कैंसर पर कीमोथैरेपी एजेंट के समानान्तर काम करती है। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि तुलसी स्तन कैंसर में भविष्य में प्रतिरोधक, चिकित्सकीय औषध के रूप में कारगर सिद्ध हो सकती है।
-गेहूं के ताजा ज्वारों का 25 द्वद्य रस + तुलसी पत्र 3 चम्मच रस मिलाकर पीने से कैंसर रोगियों को विशेष लाभ
- चुकन्दर के रस में, तुलसी रस मिलाकर लेने से रक्त कैंसर (Luecamia) मे लाभ मिलता है। (स्त्र) ज्वर व मलेरिया में
उपयोग: - तुलसी संक्रमण का प्रतिकार, विषों का निर्हरण व शरीर की क्ष&#
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