आयुर्वेद एक संपूर्ण जीवन दर्शन है धर्मं, अर्थ, काम एवं मोक्ष के उद्देश्य से पूर्ण इस विज्ञान में गर्भधारण से लेकर मृत्युपर्यंत गुणों की वृद्धि के लिए संस्कारों का विधान है। गर्भधारण से पूर्व अच्छी गुणवान संतति प्राप्त करने हेतु "पुंसवन संस्कार" का वर्णन आयुर्वेद में मिलता है।
पुंसवन संस्कार का उद्देश्य विकृति रहित, गुणवान संतान की प्राप्ति से है। इस सम्बन्ध में बताये गए कुछ सरल उपाय संतान प्राप्ति में मददगार हो सकते हैं। आयुर्वेद के मनीषियों ने गर्भधारण से सम्बंधित विषयों को बड़ी सहजता से शास्त्रों में उल्लेखित किया है, इसके कुछ गूढ़ पहलु आपके सम्मुख प्रस्तुत हैं :-
- एक महीने तक ब्रह्मचर्य का पालन (अर्थात मन, वचन एवं कर्म से यौन विषयों से एक माह तक दूर रहना) करने वाले पुरुष को उड़द की दाल से बनाई गयी खिचडी के साथ दूध खाने का निर्देश है, साथ ही मासिक स्राव रुकने से अंतिम दिन (ऋतुकाल) के बाद जोड़े वाले दिनों में जैसे छठी, आठवीं एवं दसंवीं रात को यौन सम्बन्ध बनाने का निर्देश है, परन्तु ऐसा नहीं है क़ि अयुग्म दिनों में अर्थात पांचवीं, सातवीं एवं नौवीं रात्रि को यौन सम्बन्ध बनाने से संतान क़ी प्राप्ति नहीं होगी।
- ऋतुकाल के बाद की चौथी रात्रि की अपेक्षा,छठी रात्रि एवं छठी की अपेक्षा आठंवी रात्रि को यौन सम्बन्ध बनाना संतान प्राप्ति की दृष्टीकोण से अच्छा माना गया है।
- ऋतुकाल के सोलहवें से तीसवें दिन यौन सम्बन्ध बनाना संतान प्राप्ति क़ी दृष्टि से अच्छा नहीं माना गया है।
- आयुर्वेद मतानुसार ऋतुकाल के सामान्य चार दिनों में से पहले दिन स्त्री से यौन सम्बन्ध बनाना आयु को नष्ट करनेवाला बताया गया है तथा चौथे दिन के बाद यौन सम्बन्ध बनाना संतानोत्पत्ति क़ी दृष्टी से उत्तम माना गया है अर्थात मासिक स्राव के दिनों को छोड़कर ही यौन सम्बन्ध बनाने का निर्देश दिया गया है।
- उत्तम संतान के लिए लक्ष्मणा, वट के नए कोपल, सहदेवा एवं विश्वदेवा में से किसी एक को दूध के साथ पीस कर स्त्री के दाहिने एवं बाएं नासिका क्षिद्र में डालना चाहिए।
- इस प्रकार गर्भधारण संस्कार में बताये गए नियमों से उत्पन्न संतान बलवान, ओजस्वी, आरोग्ययुक्त एवं दीर्घायु होना उल्लेखित है।
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