मंगलवार, 30 अगस्त 2011

पेट में हों कीड़े तो इससे अच्छा नहीं मिलेगा उपाय


हमारे पेट में कुछ परजीवी अपना आसरा बनाकर रहते हुए। कुछ शरीर से बाहर निवास करते हैं तो कुछ शरीर के अन्दर हमारे ही भोजन पर निर्भर रहते हैं।





ये जीव अपनी संख्या में वृद्धि कर हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाते है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार ये परजीवी गोलकृमी,फीता कृमी,पिनकृमी आदि नामों से जाने जाते हैं। इनमें कुछ  हेल्मिन्थवर्ग के जीव हैं। जो धीरे-धीरे अपनी संख्या को बढाते हैं। कुछ सूक्ष्म जीव अमीबा। जैसे होते हैं जो शरीर में सहजीवी के रूप में रहते हैं तथा शरीर में पाचन सहित मल निर्माण क़ी प्रक्रिया में भी भाग लेते है।




लेकिन कुछ जीव परजीवी के रूप में रहकर आतों क़ी श्लेष्मा झिल्ली को नुकसान पहुंचाते हैं। आयुर्वेद में भी इन कृमियों के इलाज के लिए कुछ नुस्खे बताये गए हैं। जो इन्हें खींच कर बाहर निकालते हैं तथा इनकी प्रकृति से उलट होने के कारण इन्हें जीने के विपरीत वातावरण बना देते हैं। इसके अलावा यदि इनके उत्पन्न होने वाले कारणों को छोड़ दिया जाए तो ये फिर कभी नहीं पनपते हैं। आयुर्वेद में बताये  गए 20 प्रकार के इन कृमियों की चिकित्सा हेतु कुछ नायाब नुस्खे निम्न हैं एजिनका उचित प्रयोग इन्हें निर्मूल कर सकता है ।




- धतूरे के पत्तों का रस या पान के पत्तों का रस को कपूर मिलाकर एक कपडे के टूकडे में लेप करें,अब इस कपडे को सिर में बांधकर रात में आराम से सो जाएँ एप्रात:काल बालों को अ'छी तरह धोएंएइससे सिर के सारे कृमी मर जायेंगे




पलाश के बीज वायविडंग। चिरायता और नीम के सूखे पत्ते समान भाग में लेकर धतूरे के पत्ते के स्वरस के साथ पीसकर मालिश या लेप करें त्वचा या बालों के कृमी दूर हो जाते हैं।




- करंज क़ी गिरी ,पलाश के बीज,देशी अजवाइन और विडंग इन सबको मिलाकर चूर्ण बनाकर &ग्राम क़ी मात्रा में गुड के साथ गुनगुने पानी से देने पर पेट के कृमी नष्ट होते हैं।




- पारसीक अजवायन ,नागरमोथा,पीपर,काकडासींगी,वायविडंग। एवं अतीश को समभाग लेकर ग्राम क़ी मात्रा में गुड के  साथ खिलाने से पेट के कृमी मर कर बाहर निकल जाते हैं। वायविडंग,सैंधा नमक एयवक्षार एपलास के बीज।अजवायन,हरड एवं कम्पिल्लक को समभाग मिलाकर चूर्ण बनाकर 4,6 ग्राम क़ी मात्रा में गुड के साथ खिलाना भी कृमियों से निजात दिलाता है।




-भद्रमुस्तादीक्वाथ, कृमीमुद्गररस, कृमीकुठाररस,विडंगारिष्ट,मुस्तकारिष्ट आदि कुछ ऐसी आयुर्वेदिक औषधियां हैं जिनका चिकित्सक के निर्देशन में प्रयोग बच्चों से लेकर बड़ों तक के पेट में पाए जानेवाले कीड़ों को दूर कर सकता है आवश्यकता है तो सिर्फ अच्छी तरह से धोकर उबालकर और पकाकर भोजन करने की।

आपको हमेशा जवान रखेंगे ये आयुर्वेदिक फंडे


जीवन को जीना मात्र ही मनुष्य का उद्देश्य नहीं है, बल्कि सुखपूर्वक निरोगी जीवन बिताना आवश्यक है। आयुर्वेद के कुछ टिप्स अपनाकर आप सुखपूर्वक निरोगी जीवन व्यतीत कर सकते हैं। माना जाता है कि नियमपूर्वक इनके सेवन से।

- प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त (4-6 बजे ) के मध्य अर्थात सूरज उगने से पूर्व बिस्तर छोड़ दें।

- सुबह दंतधावन एवं शौचादि से पूर्व ताम्बे के लोटे में रात्रि को रखा पानी पीयें,इससे मल खुलकर आता है तथा कब्ज की शिकायत नहीं होती है।

- नाश्ता या भोजन हमेशा भूख से थोड़ा कम करें तथा योग्य आहार का ही सेवन करें तथा  भोजन के साथ -साथ पानी पीने क़ी प्रवृति से बचें।

- दिनचर्या में जानबूझकर,अनजाने में या असयंमित होकर किये गए आचरण को प्रज्ञापराध की श्रेणी में रखा जाता है,इससे से बचें क्योंकि यह सभी प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक रोगों का कारण है।

- आहार स्वयं एक औषधि है,अत:ज्ञानेन्द्रिय को वश में करते हुए ही भोजन सहित अन्य आचरण करना स्वस्थ रहने में मददगार होता है।

- शुद्ध जल एवं वायु का सेवन आयुर्वेद अनुसार रोगों से मुक्ति का मार्ग है।

- भोजन में गाय के दूध का सेवन आयुर्वेद में जीवनीय माना गया है तथा यह स्वयं में एक रसायन औषधि है जिसके नित्य सेवन से बुढापा देर से आता है।

- एक हरड का नित्य सेवन लम्बी आयु देता है,कहा भी गया है क़ी' माँ कभी नाराज हो सकती है परन्तु हरड नहीं।

- साल में एक बार शरीर रूपी मशीन का शोधन पंचकर्म चिकित्सक के निर्देश में अवश्य करवाएं, जिससे लम्बी एवं रोगरहित आयु प्राप्त होती है।

- रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने के लिए आंवले  का सेवन नित्य करें।

- आहार में रेशेदार फल सब्जियों के अलावा दालों का सेवन, शरीर में किसी भी प्रकार के क्षय (टूट- फूट ) को ठीक करने में मददगार होता है।

- आहार में स्नेह अर्थात घी का नियंत्रित मात्रा में प्रयोग बढ़ती उम्र में होनेवाले शारीरिक विकास के लिए आवश्यक है।

-  भोजन में लाल मिर्च का सेवन अम्लपित (हाइपरएसिडीटी) एवं भूख को कम कर कब्ज उत्पन्न कर अर्श (पाइल्स) का कारण बन सकता है ,अत: आयुर्वेद में अपनी अग्नि का ध्यान रखकर ही भोजन लेने का निर्देश है।

 ये कुछ आयुर्वेदिक फंडे हैं,जिनको आप अपनी दिनचर्या में शामिल कर हमेशा जवां और स्वस्थ रहकर लंबी उम्र प्राप्त कर सकते हैं। 
 

सोमवार, 29 अगस्त 2011

बस दस मिनट ....और बिना दवाई खांसी और जुकाम गायब!

 मौसम के परिवर्तन के कारण संक्रमण से कई बार वाइरल इंफेक्शन के कारण हमारे गले व फेफड़ों में जमने वाली एक श्लेष्मा होती है जो खांसी या खांसने के साथ बाहर आता है। यह फायदेमंद और नुकसानदायक दोनों है। इसे ही कफ कहा जाता है। अगर आप भी खांसी या जुकाम से परेशान है तो बिना दवाई लिए भी रोज सिर्फ दस मिनट इस मुद्रा के अभ्यास से कफ छुटकारा पा सकते हैं। मुद्रा- बाएं हाथ का अंगूठा सीधा खडा कर दाहिने हाथ से बाएं हाथ कि अंगुलियों में परस्पर फँसाते हुए दोनों पंजों को ऐसे जोडें कि दाहिना अंगूठा बाएं अंगूठे को बहार से कवर कर ले ,इस प्रकार जो मुद्रा बनेगी उसे अंगुष्ठ मुद्रा कहेंगे।

 अंगूठे में अग्नि तत्व होता है.इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर में गर्मी बढऩे लगती है. शरीर में जमा कफ  तत्व सूखकर नष्ट हो जाता है।सर्दी जुकाम,खांसी इत्यादि रोगों में यह बड़ा लाभदायी होता है, कभी यदि शीत प्रकोप में आ जाए और शरीर में ठण्ड से कपकपाहट होने लगे तो इस मुद्रा का प्रयोग लाभदायक होता है। रोज दस मिनट इस मुद्रा को करने से बहुत कफ होने पर भी राहत मिलती है। कफ शीघ्र ही सुख जाता है। साथ ही जरा सा सेंधा नमक धीरे धीरे चूसने से लाभ होता है। सुबह कोमल सूर्यकिरणों में बैठके दायें नाक से श्वास लेकर सवा मिनट रोकें और बायें से छोड़ें। ऐसा 3-4 बार करें। इससे कफ की शिकायतें दूर होंगी।

अपनाएं यह नुस्खा, आपकी स्किन ताउम्र रहेगी जवां


हर इंसान चाहता है कि वह खूबसूरत दिखे। खूबसूरत दिखने के लिए लोग कई तरह के बाहरी कास्मेटिक्स का प्रयोग करते हैं। लेकिन सही खान-पान के बिना स्कीन का हेल्दी होना संभव नहीं है। इसीलिए अगर आप भी चाहते है कि आपकी स्कीन उम्रभर चमकदार और बेदाग रहे तो नीचे लिखी टिप्स पर जरूर गौर करें।




- एक सामान्य व्यक्ति के लिए कम से कम 12-14 ग्लास पानी प्रतिदिन पीना आवश्यक होता है जिसमें सभी प्रकार के पेय शामिल हैं। जीवन के लिए पानी आवश्यक है और इसे उचित मात्रा में पीना सभी अंगों व तंत्रों, जिसमें त्वचा भी शामिल है, के लिए जरूरी है।




- सेब का रस पीने से पिंपल दूर होते हैं, तो बादाम रोज खाने से चेहरा चमक जाता है, मसलन अगर आपको दाग-धब्बों से दूर साफ और पारदर्शी स्किन चाहिए तो आपको विटामिन सी युक्त चीजों का सेवन करना होगा, जैसे आंवला।




- ब्लीच कराने से हमारी स्किन की बाहरी सफाई होती है, वैसे ही आंवला हमारी त्वचा के लिए अंदरूनी ब्लीच का काम करता है। ये हमारे शरीर से विषैले तत्वों को कम करता है, जिससे चेहरे पर झाईं या कालिमा नहीं आती।




- नारियल पानी या जीरे का पानी भी यही काम करता है। इसी तरह से अगर आपको त्वचा पर चमक चाहिए तो अपनी डाइट में मेवे को शामिल कीजिए। बादाम, अखरोट, मूंगफली जैसे मेवों में एक विशेष ऑयल होता है, जो चेहरे पर चमक लाता है। मछली भी फायदेमंद होती है, क्योंकि इसमें मौजूद ओमेगा 3 शरीर की कोशिकाओं के अंदर जाकर उन्हें पोषण देता है और उसका असर चेहरे पर दिखता है।

रविवार, 28 अगस्त 2011

दो कली लहसुन और बीमारियां छू -मंतर

चमत्कारिक गुणों वाली कई औषधियों का रोजाना इस्तेमाल हमारी रसोई से ही होता है। रसोई में होने वाली उन्हीं औषधीयों में से एक है लहसुन। लहसुन कुदरती खूबियों से भरपूर है। लेकिन इसे उचित मात्रा में ही लेना चाहिए।  लहसुन की तासीर काफी गर्म और खुश्क होती है कुछ लोगों को यह रास नहीं आता। लेकिन इसके सही तरीके से सेवन से कई तरह की बीमारियां दूर होती है।

 - दो कलियां लहसुन की पीसकर एक गिलास दूध में उबल ले व ठंडा करके सुबह शाम कुछ दिन पिए हृदय के रोगों में आराम मिलता है।

- लहसुन के नियमित सेवन पेट और भोजन की नली का कैंसर और स्तन कैंसर की सम्भावना को कम कर देताहै।

- नियमित लहसुन खाने से ब्लडप्रेशर नियमित होता है। एसिडिटी और गैस्टिक ट्रबल में इसका प्रयोग फायदेमंद होता है। दिल की बीमारियों के साथ यह तनाव को भी नियंत्रित करती है।

- हर रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोगों की संभावना में कमी आती है। कोलेस्ट्रॉल के स्तर में भी  कमी आती है।

- रोज लहसुन की एक कली निगलने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है।

- विषैले कीड़ों के काटने से होने वाली जलन को कम करने के लिए लहसुन को पीसकर त्वचा पर लेप करे। जल्द ही असर होगा।

- लहसुन कीटाणुनाशक है। लहसुन का नियमित सेवन करने वालों को तपेदिक यानी टीबी रोग नहीं होता।

- मुंहासे के लिए लहसुन की दो कलियों  को  और एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर मिला कर क्रीम बना ले इसे  मुहासों पर और चेहरे पर लगाए। 

जोड़ों के दर्द को भूल जाएंगे इस प्राकृतिक फार्मुले से..

अब अनियमित दिनचर्या, श्रम रहित जीवन शैली, खानपान में गड़बड़ी आदि के कारण शरीर में वात बढ़ जाता है। यही कारण है कि आजकल  कम उम्र में ही लोगों को जोड़ो का दर्द अपनी गिरफ्त में ले रहा है। वैसे अधिकतर लोग मानते हैं कि जोड़ो का दर्द लाइलाज नहीं है। प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से इसके दर्द से राहत मिल सकती है। अगर जोड़ों के दर्द से परेशान हैं तो नीचे लिखे टिप्स जरूर अपनाएं।

एक पतीले में पानी गर्म करके उसमें एप्सम सॉल्ट मिलाएं। इस पानी में पैरों को 10 से 15 मिनट तक डुबोकर रखें। इस दौरान पैरों को हल्का-हल्का मलते रहें। पानी की गर्मी और मालिश से त्वचा के रोम-छिद्र खुल जाते हैं और एप्सम सॉल्ट शरीर के अंदर से यूरिक एसिड को बाहर खींच लेता है। पैरों को पोंछ लें और ढंक दें। इसके बाद हाथ और कोहनी को भी डुबोएं। ध्यान रहे कि पानी गर्म ही रहे। 10 से 15 मिनट बाद हाथों को भी पोंछकर ढंक लें। ताकि पसीना आ जाए। दिन भर में तीन बार इस क्रिया को दोहराएं। एप्सम साल्ट युक्त गर्म पानी में एक या कई तौलिए को भिगोकर सिलसिलेवार या एक साथ जोड़ों पर रखा जा सकता है। 10 से 15 मिनट बाद गीले तौलिए हटाकर जोड़ों को पोंछ लें और फौरन कुछ ओढ़कर सो जाएं।

- इस रोग का उपचार करने में तुलसी बड़ी कारगर भूमिका निभाती है क्योंकि तुलसी में वात विकार को मिटाने का प्राकृतिक गुण होता है। तुलसी का तेल बनाकर दर्द वाली जगह लगाने से तुरंत आराम मिलता है।

- ज्यादा तकलीफ होने पर नमक मिले गरम पानी का टकोर व हल्के गुनगुने सरसों के तेल की मालिश करें।

- मोटापे पर नियंत्रण रखें। नियमित सूक्ष्म व्यायाम व योगाभ्यास करें।

-  भोजन में खट्टे फलों का प्रयोग न करें।

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

एसीडिटी को जड़ से उखाड़ फेंकेगा यह देसी नुस्खा


अच्छा और स्वादिष्ट खाना मिले तो खाने वाले को ध्यान ही नहीं रहता कि वह कितना रहा है इसीलिए कभी-कभी ज्यादा खा लेने पर एसीडिटी हो जाती है। इसके विपरित ज्यादा समय तक भुखे रहने पर भी  एसीडिटी हो जाती है।





ऐलोपेथिक दवाई लेने पर एसीडिटी से थोड़े समय के लिए निजात तो जरूर मिल जाती है लेकिन पूरी तरह छुटकारा नहीं मिलता है। इसीलिए एसीडिटी मिटाने के लिए आयुर्वेदिक देसी नुस्खे सबसे अधिक कारगर होते है।

आयुर्वेद और यूनानी पद्धति में तो शहद एक शक्तिवर्धक औषधी के रूप में लंबे समय से प्रयुक्त किया  जा रहा है। इसके विभिन्न गुण अब दुनिया भर में किए जा रहे शोधों से उजागर हो रहे हैं।




दालचीनी और शहद का योग पेट रोगों में भी लाभकारी है। पेट यदि गड़बड़ है तो इसके लेने से पेट दर्द ठीक हो जाता है और पेट के छाले भी खत्म हो जाते हैं। खाने से पहले दो चम्मच शहद पर थोड़ा-सा दालचीनी पावडर बुरककर चाटने से एसिडिटी में राहत मिलती है और खाना अच्छे से पचता है।

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