बुधवार, 17 सितंबर 2014

चाहे कितना भी पुराना हो सिर दर्द दूर करेगा ये मीठा पाक

इसके मुख्यतः दो कारण हैं- एक पित्त की अधिकता व दूसरा कब्ज। इसमें दीर्घकाल तक सतत दर्द रहता है अथवा महीने-दो महीने या इससे अधिक समय पर सिरदर्द का दौरा सा पड़ता है। इसके निवारण के लिए 500 ग्राम बादाम दरदरा कूट लें। 100 ग्राम घी में धीमी आँच पर सेंक लें। 750 ग्राम मिश्री की गाढ़ी, लच्छेदार चाशनी बनाकर उसमें यह बादाम तथा जावंत्री, जायफल, इलायची, तेजपत्र का चूर्ण प्रत्येक 3-3 ग्राम व 5 ग्राम प्रवालपिष्टी मिलाकर अच्छी तरह घोंट लें। थाली में जमाकर छोटे-छोटे टुकड़े काटकर सुरक्षित रख लें। 10 से 20 ग्राम सुबह दूध अथवा पानी के साथ लें। (पाचनशक्ति उत्तम हो तो शाम को पुनः ले सकते हैं।) खट्टे, तीखे, तले हुए व पचने में भारी पदार्थों का सेवन न करें।
*सिर दर्द मिटाने वाले आयुर्वेदिक नुस्खों के बारे में आप हमारे अन्य लेखों में विस्तार से हरिओमकेयर डॉट कॉम पर देख सकते है ।

बादाम अपने स्निग्ध व मृदु-विरेचक गुणों से पित्त व संचित मल को बाहर निकाल कर सिरदर्द को जड़ से मिटा देता है। साथ में मस्तिष्क, नेत्र व हृदय को बल प्रदान करता है।

अमेरिकन बादाम जिसका तेल, सत्त्व निकला हुआ हो वह नहीं, मामरी बादाम अथवा देशी बादाम भी अपने हाथ से गिरी निकाल से इस्तेमाल करो तो लाभदायक है। अमेरिकन बादाम का तेल गर्मी दे के निकाल देते हैं।

बौद्धिक काम करने वालों के लिए तथा शुक्रधातु की क्षीणता व स्नायुओं की दुर्बलता में भी यह बादामपाक अतीव लाभकारी है। स्वस्थ व्यक्तियों के लिए सर्दियों में सेवन करने योग्य यह एक उत्तम पुष्टिदायी पाक है।

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अनुशासन के बिना जीवन सफल नहीं हो सकता। हर व्यक्ति अपने विवेक से अनुशासित रहता है। जब तक विवेक प्रबुद्ध और जागरूक नहीं हो जाता है। ऐसे में सफल होने के लिए विवेक का जागृत होना जरूरी है। इसके लिए नीचे लिखी योगमुद्रा सबसे अच्छा उपाय है।



विधि- अनुशासन मुद्रा के लिए तर्जनी यानी इंडैक्स फिंगर अंगुली को सीधा रखें। शेष तीन अंगुलियों-कनिष्ठा छोटी अंगुली अनामिका   (रिंग फिंगर) और मध्यमा (मिडिल फिंगर) को अंगुठे के साथ मिलाएं। इस तरह बनने वाली मुद्रा को अनुशासन मुद्रा कहा गया है।

 
आसन- पद्मासन व सुखासन में इस मुद्रा का प्रयोग किया जा सकता है।

 
समय- रोज आठ मिनट से प्रारंभ करें। एक महिने तक रोज एक-एक मिनट बढ़ाएं।

 
लाभ- इस मुद्रा को करने से व्यक्ति अनुशासित होने लगता है। नेतृत्व क्षमताऔर कार्य क्षमता बढ़ती है। अपने आप में पौरुष का अनुभव होता है।

एक्जिमा नाशक दवा

5 नग माजूफल, 5 नग सुपारी, 5 दाने करंज, 5 दाने कुजले और सौरही थोड़ी (बच्चों के खेलने की)।

सबको एक मिट्टी के कुल्हड़ में रखकर कुल्हड़ का मुँह मिट्टी के ढक्कन से बंद कर गूँथा हुआ आटा लगाकर बंद कर दें। कुल्हड़ लाल हो जाए तब उतार लें। दवाओं की भस्म निकाल लें तथा पीसकर रख दें।

रस कपूर 20 ग्राम, सफेद खैर, मुर्दा शंख और छोटी इलायची के दाने तीनों 5-5 ग्राम इंच चारों को पीसकर चूर्ण कर लें और भस्म के चूर्ण के साथ मिला दें। शुद्ध चमेली के तेल में मिलाकर मलहम तैयार करें।

इस मलहम को एक्जिमा, दाद, खाज, खुजली वाले स्थान पर लगाएँ। कुछ दिनों में आराम मिलेगा।

बबासीर के मस्सों को कैसे नष्ट करें

1- नीम के कोमल पत्तियों को घी में भूनकर उसमें थोड़े-से कपूर डालकर टिकिया बना लें। टिकियों को गुदाद्वार पर बांधने से मस्से नष्ट होते हैं।

2- आधा चम्मच हर्र का चूर्ण गर्म पानी से सुबह-शाम खाने से बादी बवासीर बन्द हो जाती है।

3-नीम के कोमल पत्तियों को घी में भूनकर उसमें थोड़े-से कपूर डालकर टिकिया बना लें। टिकियों को गुदाद्वार पर बांधने से मस्से नष्ट होते हैं।

4- छोटी मक्खी को शहद और गाय का घी बराबर मात्रा में लेकर मस्सों पर लगायें। इस मिश्रण को बवासीर के मस्सों पर लगाने से कुछ सप्ताह में ही मस्से सूखकर गिर जाते हैं।

5-थूहर के दूध में हल्दी का बारीक चूर्ण मिलाकर उसमें सूत का धागा भिगोकर छाया में सुखा लें। इस धागे से मस्सों को बांधें, मस्से को धागे से बांधने पर 4-5 दिन तक खून निकलता है तथा बाद में मस्से सूख कर गिर जाते हैं। ध्यान रहे- इसका प्रयोग कमजोर रोगी पर न करें।

6- नीलाथोथा 20 ग्राम और अफीम 40 ग्राम लेकर इसे महीन कूट लें। इस चूर्ण को 40 ग्राम सरसों के तेल में मिलाकर पकायें। प्रतिदिन सुबह-शाम उस मिश्रण (पेस्ट) को रूई से मस्सों पर लगाने से मस्से 8 से 10 दिनों में ही सूखकर गिर जाते हैं।

7- मदार का दूध और हल्दी को पीसकर मस्सों पर रखकर लगोट बांधें। इसको लगाने से मस्से सूखकर ठीक हो जाते हैं।

8- कालीमिर्च और स्याहजीरा (काला जीरा) को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनायें। यह चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर ठीक होता है तथा बवासीर के मस्से भी ठीक होते हैं।

9- कालीमिर्च 3 ग्राम, पीपल 5 ग्राम, सौंठ 10 ग्राम तथा जिमीकन्द 20 ग्राम को सूखाकर महीन चूर्ण बना लें। उस चूर्ण में 200 ग्राम गुड़ डालकर अच्छी तरह मिला लें। इससे बेर के बराबर गोलियां बनाकर 1-1 गोली दूध या जल के साथ प्रतिदिन दो बार पीने से खूनी तथा बादी दोनों बवासीर ठीक होती है।

10- लौकी के पत्तों को पीसकर बवासीर के मस्सों पर बांधने से कुछ ही दिनों में लाभ दिखना शुरू हो जाता है।

11- लौकी या तुलसी के पत्तों को जल के साथ पीसकर अर्श (बवासीर) के मस्से पर दिन में दो से तीन बार लगाने से पीड़ा व जलन कम होती है तथा मस्से भी नष्ट होते है।

12- नीम की निबौली, कलमीशोरा, रसौत और हरड़ 10-10 ग्राम लेकर कूट-पीसकर, बारीककर मूली के रस में घोटकर जंगली बेर के बराबर गोलियां बना लें। सुबह-शाम एक-एक गोली ताजे पानी या मट्ठा के साथ खाने से खूनी बवासीर से खून आना पहले ही दिन बन्द हो जाता है और बादी बवासीर एक महीने के प्रयोग से पूरी तरह नष्ट हो जाती है।

13- मूली के रस में नीम की निबौली की गिरी पीसकर कपूर मिलाकर मस्सों पर लेप करने से मस्से सूख जाते हैं।

14- सूखे आंवलों का चूर्ण 20 ग्राम लेकर 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रातभर भिगोकर रखें। दूसरे दिन सुबह उसे हाथों से मलकर छान लें तथा छने हुए पानी में 5 ग्राम चिरचिटा की जड़ का चूर्ण और 50 ग्राम मिश्री मिलाकर पीयें। इसको पीने से बवासीर कुछ दिनों में ही ठीक हो जाते हैं और मस्से सूखकर गिर जाते हैं।

15- करेले के बीजों को सूखाकर इसका महीन पाउडर बनाकर इसे कपड़े से छान लें। इसके पाउडर में थोड़ी-सी शहद तथा सिरका मिलाकर मलहम बना लें। इस मलहम को लगातार 20 दिन तक मस्सों पर लगाने से मस्से सूख जाते हैं, तथा बवासीर (अर्श) रोग ठीक हो जाता है।

16- बवासीर के मस्सों को दूर करने के लिए 2 प्याज को भूमल (धीमी आग या राख की आग) में सेंककर छिलका उताकर लुगदी बनाकर मस्सों पर बांधने से मस्से तुरन्त नष्ट हो जाते हैं।

17- चाय की पत्तियों को पीसकर मलहम बना लें और इसे गर्म करके मस्सों पर लगायें। इस मलहम को लगाने से मस्से सूखकर गिरने लगते हैं।

18- लगभग 60 ग्राम काले तिल खाकर ऊपर से ठंड़ा पानी पीने से बिना खून वाली बवासीर (वादी बवासीर) ठीक हो जाती है। दही के साथ पीने से खूनी बवासीर भी नष्ट हो जाती है।

19- मेंहदीं के पत्तों को जल के साथ पीसकर गुदाद्वार पर लगाकर लंगोट बांधे। इससे मस्से सूख कर गिर जाते हैं।

20- बैंगन को जला लें। इनकी राख शहद में मिलाकर मरहम बना लें। इसे मस्सों पर लगायें। मस्से सूखकर गिर जायेंगें।

21- हरसिंगार के बीजों को छील लें। 10 ग्राम बीज में 3 ग्राम कालीमिर्च मिलाकर पीसकर गुदा पर लगाने से बादी बवासीर ठीक होती है।

22- छोटी हरड़, पीपल और सहजने की छाल का चूर्ण बनाकर उसी मात्रा में मिश्री मिलाकर खायें। इससे बादी बवासीर ठीक होती है।

23- सांप की केंचुली को जलाकर उसे सरसों के तेल में मिलायें। इस तेल को गुदा पर लगाने से मस्से कटकर गिर जाते हैं।

24- कपूर को आठ गुना अरण्डी के गर्म तेल में मिलाकर मलहम बनाकर रखें। पैखाने के बाद मस्सों को धोकर और पौंछकर मस्सों पर मलहम को लगायें। इसको लगाने से दर्द, जलन, चुभन आदि में आराम रहता है तथा मस्से सूखकर गिर जाते हैं।

25- फूली हुई और दर्दनाक बवासीर पर हरी या सूखी भांग 10 ग्राम अलसी, 30 ग्राम की पुल्टिश बनाकर बांधने से दर्द और खुजली मिट जाती है।

26- तुलसी के पत्ते का रस निकालकर इसे नीम के तेल में मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम मस्सों पर लगाएं। मस्सों पर इसको लगाने से मस्से जल्द ठीक हो जाते हैं।

27- चुकन्दर खाने व रस पीते रहने से बवासीर के मस्से समाप्त हो जाते हैं।

28- बवासीर के मस्सों पर करीब एक महीने तक लगातार पपीते का दूध लगाने से मस्से सूख जाते हैं।

29- भूनी फिटकरी और नीलाथोथा 10-10 ग्राम को पीसकर 80 ग्राम गाय के घी में मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम मस्सों पर लगायें। इससे मस्से सूखकर गिर जाते हैं।

30- कनेर की जड़ को ठंड़े पानी के

खुजली न सताए तो अच्छा

खुजली एक संक्रामक बीमारी है, जो एक आदमी से दूसरे आदमी में फैलती है। खुजली की वजह है ‘इच माइट’ यानी कुटकी जो नंगी आंखों से मुश्किल से दिखता है। इसकी खोज 1687 में हुई थी। इसे अंग्रेजी भाषा में आर्थोपोड कहते हैं। खुजली का यह छोटा जीव 0.4 मिलीमीटर आकार का होता है। इसका आकार कछुए जैसा होता है। इसका शरीर छोटे-छोटे ब्रश जैसे बालों से ढंका होता है। इसके दो जोड़े अगले पैर और दो जोड़े पिछले पैर होते हैं। अगले पैरों में चूसक होते हैं जो लंबी नलिकाकार रचनाएं होती हैं। मादा कुटकी चमड़ी में घुसकर अंडे देती है।
यह बीमारी सामान्य तौर पर प्रभावित आदमी के छूने या नजदीक रहने से फैलती है। इसी तरह प्रभावित बीमार आदमी के बिस्तर में सोने या इसके कपड़ों के इस्तेमाल से भी यह बीमारी होती है। बच्चों में यह बीमारी खेलने के दौरान फैलती है। कुटकी द्वारा पैदा हुई खुजली की बीमारी 63 फीसदी मामलों में हाथों से कलाइयों में ज्यादा होती है। उंगलियों के बीच में भी संक्रमण होता है। 11 फीसदी मामलों में यह बीमारी कुहनियों, नितंबों पेट के निचले भाग व व पैरों में होती है। छोटे बच्चों की हथेलियां भी बीमारी से प्रभावित होती हैं। औरतों की छाती व मर्दों के अंग भी खुजली से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
बीमारी की पहचान : खुजली की बीमारी के प्रमुख लक्षणों पर इसकी पहचान की जाती है। जैसे : मरीज खुजली की शिकायत करता है जो रात में ज्यादा होती है।
चमड़ी की जांच करने पर प्रभावित जगह पर बहुत छोटे-छोटे दाने दिखाई देते हैं।
कहीं-कहीं संक्रमण की वजह से दाने बड़े होकर पक जाते हैं। उनसे मवाद भी निकलता है।
अक्सर घर के दूसरे सदस्यों में भी इस तरह की शिकायतें और लक्षण मिलते हैं।
कुटकी का माइक्रोस्कोप द्वारा जांच करके भी इलाज किया जाता है।
इसका इलाज :
सबसे पहले तो पूरे परिवार के ओढ़ने-बिछाने और इस्तेमाल के कपड़ों को गरम पानी और सोडा से धोकर धूप में सुखाना चाहिए।
परिवार के सभी सदस्यों को खूब साबुन लगाकर रगड़कर गरम पानी से नहाना चाहिए। उसके बाद 25 फीसदी बेंजिल बेंजोएट का घोल आंखों को बचाकर पूरे बदन पर ब्रश की मदद से लगाना चाहिए। इसे 12 घंटे बाद दोबारा लगाना चाहिए और 12 घंटे बाद नहाना चाहिए।
यह ध्यान रखें कि बेंजिल बेंजोएट का घोल हफ्ते में दो बार से ज्यादा न लगाया जाए वरना चमड़ी की और दिक्कतें पैदा हो सकती हैं।
लिंडेन को नारियल के तेल में मिलाकर या फिर किसी भी वनस्पति तेल में मिलाकर प्रभावित भाग पर लगाते हैं। इसे दो-तीन बाद दोहराते हैं।
5 फीसदी टेटमोसाल घोल को लगाने से भी कुटकी खत्म हो जाती
है।
सल्फर का मरहम 2.5 से 20 फीसदी को रोजाना चार दिन तक सारे बदन पर लगाने से भी खुजली के मरीज को फायदा होता है। यह एक सस्ता इलाज है।
इसके अलावा डाक्टर खुजली कम करने के लिए भी दवा देते हैं लेकिन जब तक चमड़ी से कुटकी पूरी तरह अलग नहीं होती, तब तक मरीज को पूरी तरह राहत नहीं मिलती।

बच सकते हैं कमर दर्द से

कमर दर्द क्यों होता है :
* अक्सर शरीर भारी होने पर कमर दर्द हो जाता है।
* जल्दी-जल्दी सीढ़ी चढ़ना-उतरना भी कमर दर्द को बढ़ावा देता है।
* भारी वजन उठाने से भी कमर में दर्द हो जाता है।
* अधिक देर तक खड़े रह कर काम करने से भी कमर दर्द होता है।
* झुक कर काम करने से मांसपेशियों पर अधिक दबाव पड़ता है जिससे कमर दर्द की परेशानी का सामना करना पड़ता है।
* रीढ़ की हड्डी में सूजन होने पर भी कमर दर्द होता है।
* सोने और खड़े होने का तरीका गलत होने से भी कमर दर्द में दर्द होता है।
* कामकाजी लोगों को कुर्सी यदि आरामदायक नहीं है तो भी कमर दर्द हो जाता है।
बचाव
* सीढ़ियों पर आराम से उतरें चढ़ें।
* अकेले अधिक वजन न उठायें, किसी दूसरे की मदद लें।
* यदि आप का शरीर भारी है तो अपना वजन कम करने का प्रयास करें।
* पतले रूई के गद्दे पर या मोटी दरी बिछा कर सख्त सपाट जगह पर सोयें।
* लगातार खड़े होकर काम न करें। बीच-बीच में कुछ टहलें या बैठकर काम करें।
* काम करने की कुर्सी-मेज आरामदायक होने चाहिये। कुर्सी और मेज की ऊंचाई में अंतर उचित होना चाहिये।
* कुर्सी पर बैठते समय कुर्सी का पूरा सहारा लेकर बैठे।
* पैरों के नीचे छोटा स्टूल रखें। पैर अधिक समय तक लटकाकर न रखें।
* शीत ऋतु में कमर को उचित गर्म वस्त्रों से ढक कर रखें।
* सुबह सैर पर जरूर जायें और हल्के व्यायाम करें जिनसे कमर दर्द को आराम मिलेगा।

स्वस्थ जीवन के दस नियम

हर आदमी स्वस्थ और सुखी रहना चाहता है लेकिन स्वास्थ्य संबंधी सही जानकारी के अभाव में वह दीन-हीन बना रहता है। आइये हम आपको स्वस्थ रहने के कुछ आसान नियम बतायें :-
- प्रात: शीघ्र उठें और नींबू पानी अथवा तांबे के बर्तन में रखा बासी पानी पर्याप्त मात्रा में पियें। इससे आपका पेट साफ रहेगा और जी हल्का लगेगा।
- प्रात:काल और सायंकाल हल्का व्यायाम अथवा टहलना अत्यंत लाभदायक होता है। आप जैसे भी हों- बाल, वृध्द या युवा, बीमार अथवा स्वस्थ, गरीब या अमीर, बेकार अथवा अत्यं व्यस्त, आपको यह नियम अवश्य बनाना चाहिये।
- स्ान और प्रार्थना भी नित्य नियम से करनी चाहिये। शरीर की शुध्दि के लिये स्ान जितना जरूरी है उतनी ही प्रार्थना भी लेकिन दोनों ही क्रियाएं औपचारिकता की तरह नहीं होनी चाहिये। जो भी करें, पूरे मन से करें।
- नाश्ता और भोजन में मधुर, रसदार तथा पौष्टिक आहार लेना चाहिये। सड़े गले, जले-भुने, बासी और सस्ते फास्टफूड से बचना चाहिये। उत्तम भोजन घर का पकाया गया सात्विक भोजन ही हो सकता है।
- परिश्रम से जी न चुरायें। जितना संभव हो, शारीरिक और मानसिक श्रम करें तथा पूरी तन्मयता से करें, प्रसन्नतापूर्वक करें।
- नींद और विश्राम में कटौती न करें। भोजन और श्रम की तरह नींद भी आवश्यक है। यह टानिक की तरह शरीर तथा मन को ताजगी प्रदान करती है।
- विहार में संतुलन रखें। ऋतु,काल और शक्ति के अनुसार काम सेवन (सहवास) करें, न तो अत्यधिक और न ही अति अल्प। ‘काम’ जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। संतुलित काम सेवन स्त्री पुरुष दोनों के लिये फायदेमंद हैं।
- सप्ताह में एक दिन हर कार्यालय में अवकाश रहता है। ठीक इसी प्रकार पेट को भी विश्राम देना चाहिये। व्रत के नाम पर शरीर को मारना नहीं चाहिये बल्कि नींबू पानी, छाछ या फलों का रस पीकर पेट को तनिक विश्राम देना चाहिये। ताकि आगे के दिनों के लिये वह शक्ति संचय कर सके।
- दिनभर में एक समय ऐसा निकालना चाहिये जब आप एकांत में आत्मनिरीक्षण कर सकें। इससे आपको अच्छा बनने में मदद मिलेगी।
- आत्मविश्वास, ईश्वर विश्वास और सदैव सक्रियता तथा जागृति आपके सुखी स्वस्थ जीवन के लिये संजीवनी का कार्य करती हैं। आप जिस तरह की नौकरी या व्यापार करते हैं उसी को ईश्वर की सेवा मानें।
उपरोक्त प्रकार के नियम अपनाकर आप स्वस्थ सानंद जीवन बिता सकते हैं।

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