खुजली एक संक्रामक बीमारी है, जो एक आदमी से दूसरे आदमी में फैलती है। खुजली की वजह है ‘इच माइट’ यानी कुटकी जो नंगी आंखों से मुश्किल से दिखता है। इसकी खोज 1687 में हुई थी। इसे अंग्रेजी भाषा में आर्थोपोड कहते हैं। खुजली का यह छोटा जीव 0.4 मिलीमीटर आकार का होता है। इसका आकार कछुए जैसा होता है। इसका शरीर छोटे-छोटे ब्रश जैसे बालों से ढंका होता है। इसके दो जोड़े अगले पैर और दो जोड़े पिछले पैर होते हैं। अगले पैरों में चूसक होते हैं जो लंबी नलिकाकार रचनाएं होती हैं। मादा कुटकी चमड़ी में घुसकर अंडे देती है।
यह बीमारी सामान्य तौर पर प्रभावित आदमी के छूने या नजदीक रहने से फैलती है। इसी तरह प्रभावित बीमार आदमी के बिस्तर में सोने या इसके कपड़ों के इस्तेमाल से भी यह बीमारी होती है। बच्चों में यह बीमारी खेलने के दौरान फैलती है। कुटकी द्वारा पैदा हुई खुजली की बीमारी 63 फीसदी मामलों में हाथों से कलाइयों में ज्यादा होती है। उंगलियों के बीच में भी संक्रमण होता है। 11 फीसदी मामलों में यह बीमारी कुहनियों, नितंबों पेट के निचले भाग व व पैरों में होती है। छोटे बच्चों की हथेलियां भी बीमारी से प्रभावित होती हैं। औरतों की छाती व मर्दों के अंग भी खुजली से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
बीमारी की पहचान : खुजली की बीमारी के प्रमुख लक्षणों पर इसकी पहचान की जाती है। जैसे : मरीज खुजली की शिकायत करता है जो रात में ज्यादा होती है।
चमड़ी की जांच करने पर प्रभावित जगह पर बहुत छोटे-छोटे दाने दिखाई देते हैं।
कहीं-कहीं संक्रमण की वजह से दाने बड़े होकर पक जाते हैं। उनसे मवाद भी निकलता है।
अक्सर घर के दूसरे सदस्यों में भी इस तरह की शिकायतें और लक्षण मिलते हैं।
कुटकी का माइक्रोस्कोप द्वारा जांच करके भी इलाज किया जाता है।
इसका इलाज :
सबसे पहले तो पूरे परिवार के ओढ़ने-बिछाने और इस्तेमाल के कपड़ों को गरम पानी और सोडा से धोकर धूप में सुखाना चाहिए।
परिवार के सभी सदस्यों को खूब साबुन लगाकर रगड़कर गरम पानी से नहाना चाहिए। उसके बाद 25 फीसदी बेंजिल बेंजोएट का घोल आंखों को बचाकर पूरे बदन पर ब्रश की मदद से लगाना चाहिए। इसे 12 घंटे बाद दोबारा लगाना चाहिए और 12 घंटे बाद नहाना चाहिए।
यह ध्यान रखें कि बेंजिल बेंजोएट का घोल हफ्ते में दो बार से ज्यादा न लगाया जाए वरना चमड़ी की और दिक्कतें पैदा हो सकती हैं।
लिंडेन को नारियल के तेल में मिलाकर या फिर किसी भी वनस्पति तेल में मिलाकर प्रभावित भाग पर लगाते हैं। इसे दो-तीन बाद दोहराते हैं।
5 फीसदी टेटमोसाल घोल को लगाने से भी कुटकी खत्म हो जाती
है।
सल्फर का मरहम 2.5 से 20 फीसदी को रोजाना चार दिन तक सारे बदन पर लगाने से भी खुजली के मरीज को फायदा होता है। यह एक सस्ता इलाज है।
इसके अलावा डाक्टर खुजली कम करने के लिए भी दवा देते हैं लेकिन जब तक चमड़ी से कुटकी पूरी तरह अलग नहीं होती, तब तक मरीज को पूरी तरह राहत नहीं मिलती।
यह बीमारी सामान्य तौर पर प्रभावित आदमी के छूने या नजदीक रहने से फैलती है। इसी तरह प्रभावित बीमार आदमी के बिस्तर में सोने या इसके कपड़ों के इस्तेमाल से भी यह बीमारी होती है। बच्चों में यह बीमारी खेलने के दौरान फैलती है। कुटकी द्वारा पैदा हुई खुजली की बीमारी 63 फीसदी मामलों में हाथों से कलाइयों में ज्यादा होती है। उंगलियों के बीच में भी संक्रमण होता है। 11 फीसदी मामलों में यह बीमारी कुहनियों, नितंबों पेट के निचले भाग व व पैरों में होती है। छोटे बच्चों की हथेलियां भी बीमारी से प्रभावित होती हैं। औरतों की छाती व मर्दों के अंग भी खुजली से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
बीमारी की पहचान : खुजली की बीमारी के प्रमुख लक्षणों पर इसकी पहचान की जाती है। जैसे : मरीज खुजली की शिकायत करता है जो रात में ज्यादा होती है।
चमड़ी की जांच करने पर प्रभावित जगह पर बहुत छोटे-छोटे दाने दिखाई देते हैं।
कहीं-कहीं संक्रमण की वजह से दाने बड़े होकर पक जाते हैं। उनसे मवाद भी निकलता है।
अक्सर घर के दूसरे सदस्यों में भी इस तरह की शिकायतें और लक्षण मिलते हैं।
कुटकी का माइक्रोस्कोप द्वारा जांच करके भी इलाज किया जाता है।
इसका इलाज :
सबसे पहले तो पूरे परिवार के ओढ़ने-बिछाने और इस्तेमाल के कपड़ों को गरम पानी और सोडा से धोकर धूप में सुखाना चाहिए।
परिवार के सभी सदस्यों को खूब साबुन लगाकर रगड़कर गरम पानी से नहाना चाहिए। उसके बाद 25 फीसदी बेंजिल बेंजोएट का घोल आंखों को बचाकर पूरे बदन पर ब्रश की मदद से लगाना चाहिए। इसे 12 घंटे बाद दोबारा लगाना चाहिए और 12 घंटे बाद नहाना चाहिए।
यह ध्यान रखें कि बेंजिल बेंजोएट का घोल हफ्ते में दो बार से ज्यादा न लगाया जाए वरना चमड़ी की और दिक्कतें पैदा हो सकती हैं।
लिंडेन को नारियल के तेल में मिलाकर या फिर किसी भी वनस्पति तेल में मिलाकर प्रभावित भाग पर लगाते हैं। इसे दो-तीन बाद दोहराते हैं।
5 फीसदी टेटमोसाल घोल को लगाने से भी कुटकी खत्म हो जाती
है।
सल्फर का मरहम 2.5 से 20 फीसदी को रोजाना चार दिन तक सारे बदन पर लगाने से भी खुजली के मरीज को फायदा होता है। यह एक सस्ता इलाज है।
इसके अलावा डाक्टर खुजली कम करने के लिए भी दवा देते हैं लेकिन जब तक चमड़ी से कुटकी पूरी तरह अलग नहीं होती, तब तक मरीज को पूरी तरह राहत नहीं मिलती।
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