हलजन की सिहुली
इस रोग से पीड़ित रोगी के चेहरे पर काले या फिर भूरे रंग के दाग पड़ जाते हैं। हलजन की सिहुली एक चर्म रोग है। इस रोग से पीड़ित रोगी के चेहरे के दाग कभी-कभी बढ़कर पूरे शरीर में फैल जाते हैं।
हलजन की सिहुली रोग होने का कारण-
इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण अनुचित खान-पान (सही तरीके से भोजन न खाना) तथा अनुचित रहन-सहन (ठीक तरीके से जीवन न जीना) है, जिसके कारण खून (रक्त) दूषित (जहरीला) हो जाता है और व्यक्ति के चेहरे पर हलजन की सिहुली रोग हो जाता है।
हलजन की सिहुली रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
•हलजन की सिहुली रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक फलों का सेवन करके उपवास रखना चाहिए। रोगी व्यक्ति को उपवास रखने के साथ-साथ एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इसके साथ-साथ प्रतिदिन 15 मिनट से 30 मिनट तक सुबह तथा शाम के समय में धूपस्नान करना चाहिए। इसके बाद सप्ताह में एक बार पूरे शरीर पर भाप से स्नान (गर्म पानी के भाप को पूरे शरीर पर लगाना) करना चाहिए। इसके बाद महीने में 1-2 बार पेड़ू स्नान (नाभि को पानी से धोना) सुबह तथा शाम के समय में 10 से 15 मिनट तक करना चाहिए।
•हलजन की सिहुली रोग से पीड़ित रोगी को रात को सोने से पहले मिट्टी की गीली पट्टी से अपने पेडू पर लेप करना चाहिए।
•हलजन की सिहुली रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन 1 गिलास गुनगुने पानी में 1-2 कागजी नींबू के रस को मिलाकर पीना चाहिए।
•आसमानी और पीली बोतलों के सूर्यतप्त जल को लगभग 25 ग्राम की मात्रा में समान मात्रा में लेकर एक दिन में 6 बार पीना चाहिए।
•हलजन रोग से पीड़ित रोगी को अपने चेहरे पर हरे रंग की बोतलों का सूर्यतप्त जल कुछ मात्रा में लेकर चेहरे पर मालिश करनी चाहिए।
•हलजन रोग से पीड़ित रोगी को हमेशा शुद्ध, सादा तथा ताजा भोजन करना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी के चेहरे पर काले या फिर भूरे रंग के दाग पड़ जाते हैं। हलजन की सिहुली एक चर्म रोग है। इस रोग से पीड़ित रोगी के चेहरे के दाग कभी-कभी बढ़कर पूरे शरीर में फैल जाते हैं।
हलजन की सिहुली रोग होने का कारण-
इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण अनुचित खान-पान (सही तरीके से भोजन न खाना) तथा अनुचित रहन-सहन (ठीक तरीके से जीवन न जीना) है, जिसके कारण खून (रक्त) दूषित (जहरीला) हो जाता है और व्यक्ति के चेहरे पर हलजन की सिहुली रोग हो जाता है।
हलजन की सिहुली रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
•हलजन की सिहुली रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक फलों का सेवन करके उपवास रखना चाहिए। रोगी व्यक्ति को उपवास रखने के साथ-साथ एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इसके साथ-साथ प्रतिदिन 15 मिनट से 30 मिनट तक सुबह तथा शाम के समय में धूपस्नान करना चाहिए। इसके बाद सप्ताह में एक बार पूरे शरीर पर भाप से स्नान (गर्म पानी के भाप को पूरे शरीर पर लगाना) करना चाहिए। इसके बाद महीने में 1-2 बार पेड़ू स्नान (नाभि को पानी से धोना) सुबह तथा शाम के समय में 10 से 15 मिनट तक करना चाहिए।
•हलजन की सिहुली रोग से पीड़ित रोगी को रात को सोने से पहले मिट्टी की गीली पट्टी से अपने पेडू पर लेप करना चाहिए।
•हलजन की सिहुली रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन 1 गिलास गुनगुने पानी में 1-2 कागजी नींबू के रस को मिलाकर पीना चाहिए।
•आसमानी और पीली बोतलों के सूर्यतप्त जल को लगभग 25 ग्राम की मात्रा में समान मात्रा में लेकर एक दिन में 6 बार पीना चाहिए।
•हलजन रोग से पीड़ित रोगी को अपने चेहरे पर हरे रंग की बोतलों का सूर्यतप्त जल कुछ मात्रा में लेकर चेहरे पर मालिश करनी चाहिए।
•हलजन रोग से पीड़ित रोगी को हमेशा शुद्ध, सादा तथा ताजा भोजन करना चाहिए।
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