वैसे देखा जाए तो तीव्र रोग हमारे मित्र हैं शत्रु नहीं क्योंकि इनसे शरीर की अन्दरूनी सफाई हो जाती है जो कि जीर्ण रोगों से हमें बचाती है।
तीव्र रोग होने के कारण -
यह रोग उन व्यक्तियों को होता है जिन व्यक्तियों के शरीर में दूषित द्रव्य जमा हो जाता है और असाधारण ढंग से शरीर से बाहर निकलने लगता है।
तीव्र रोग होने के लक्षण -
•तीव्र रोग से पीड़ित रोगी को भूख नहीं लगती है और यदि लगती भी है तो बहुत ही कम।
•तीव्र रोग से पीड़ित रोगी के मुंह का स्वाद कड़वा हो जाता है और रोगी व्यक्ति को कुछ भी चीज खानी में अच्छी नहीं लगती है।
•इस रोग से पीड़ित रोगी की जीभ गंदी रहती है।
•तीव्र रोग से पीड़ित रोगी के मुंह में छाले हो जाते हैं।
•इस रोग से पीड़ित रोगी का गला खराब रहता है तथा उसको बोलने में परेशानी होने लगती है।
•तीव्र रोग से पीड़ित रोगी के सिर में दर्द होता रहता है।
तीव्र रोग निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
•बुखार होना
•उल्टी आना
•खांसी हो जाना
•जुकाम होना आदि कई प्रकार के रोग।
तीव्र रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार -
•तीव्र रोग से ग्रस्त रोगी को कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए। इसके बाद रोगी व्यक्ति को एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए ताकि शरीर के अन्दर से दूषित द्रव्य बाहर निकल सकें।
•इन रोगों को दवाइयों से दबाना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने से रोगी व्यक्ति को दूसरे कई रोग भी हो सकते हैं।
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