बुधवार, 24 सितंबर 2014

फाइलेरिया



         फाइलेरिया रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण एक ऐसे कीटाणु का संक्रमण है जो पानी में पनपता है। जो लोग अप्राकृतिक रूप से जीवन व्यतीत करने वाले होते हैं उनके शरीर में विजातीय द्रव्य (दूषित मल) की अधिकता हो जाती है और वे इस रोग  के शिकार हो जाते हैं। यह रोग गरम जलवायु वाले प्रदेशों के लोगों को ज्यादातर होता है।

फाइलेरिया रोग के लक्षण-

•फाइलेरिया रोग में रोगी को दौरे पड़ते हैं।
•फाइलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को रोग के दौरान हर समय 105 डिग्री तक बुखार रहता है।
•फाइलेरिया रोग से पीडित रोगी के अण्डकोषों तथा गुर्दे पर इस रोग का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।
•फाइलेरिया रोग से पीड़ित रोगी के अण्डकोषों में सूजन हो जाती है तथा उनमें दर्द होने लगता है।
फाइलेरिया रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

           फाइलेरिया रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले कुछ दिनों तक सुबह-शाम एनिमा लेकर उपवास रखना चाहिए। फिर इसके एक सप्ताह के बाद रोगी को रसाहार पदार्थों का सेवन करना चाहिए। इसके बाद डेढ़ महीने तक रोगी को कच्ची तथा पकाई हुई सब्जियां, दलिया और चोकरयुक्त आटे की रोटी का सेवन करना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से फाइलेरिया रोग कुछ ही दिनों के अन्दर ठीक हो जाता है।

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