शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

नाड़ी दुर्बलता

नाड़ी दुर्बलता रोग होने का कारण-

•जो व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहता है या जिसे शारीरिक कार्य करने की अधिकता रहती है ऐसे व्यक्ति को यह रोग हो जाता है।
•नशीली पदार्थों तथा अधिक औषधियों का सेवन करने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को रोग हो जाता है।
•भूख से अधिक भोजन करने तथा खान-पान का तरीका सही न होने के कारण भी नाड़ी दुर्बलता का रोग हो जाता है।
•अधिक मैथुन क्रिया करने के कारण तथा हर समय उत्तेजना भरी बातें करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
•शरीर में धातु की कमी होने के कारण भी नाड़ी दुर्बलता का रोग हो सकता है।
•मानसिक तनाव तथा अधिक सोच विचार करने के कारण नाड़ी दुर्बलता का रोग हो जाता है।
नाड़ी दुर्बलता रोग को ठीक के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

•नाड़ी दुर्बलता के रोग को ठीक करने के लिए रोगी को उसकी इच्छाओं के अनुसार खेल तथा मनोरंजन में लगाना चाहिए तथा उसे अधिक से अधिक आराम देना चाहिए।
•रोगी के खाने-पीने की इच्छा को पूरा करना चाहिए तथा उस पर किसी तरह का दबाव नहीं देना चाहिए।
•नाड़ी दुर्बलता के रोग को ठीक करने के लिए रोगी को गाजर तथा खीरे का रस पिलाना चाहिए। इस रोग में नारियल पानी और दूब का रस पीना भी बहुत लाभदायक होता है।
• दूब के रस में मुनक्का को भिगोकर सुबह के समय में खाना चाहिए तथा इसके बाद एक गिलास पानी पीना चाहिए। रोगी को सुबह के समय में उठते ही पानी पीना चाहिए।
•रोगी को चोकर सहित आटे की रोटी खिलानी चाहिए। इसके अलावा अंकुरित चने, मूंगफली, मौसम के अनुसार ताजे फल, कच्चा सलाद आदि भी रोगी को सेवन कराने चाहिए तथा उसे दही का अधिक मात्रा में सेवन कराना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
•नाड़ी दुर्बलता रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी मिठाई तथा भारी भोजन नहीं करना चाहिए।
•नाड़ी दुर्बलता के रोग को ठीक करने के लिए सूर्यतप्त नीली बोतल का पानी रोजाना दिन में 6 बार पीना चाहिए। रोगी को एनिमा क्रिया लेकर अपने पेट को साफ करना चाहिए तथा इसके बाद अपने पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी करनी चाहिए और फिर कटिस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए। रोगी को साप्ताहिक चादर लपेट क्रिया करनी चाहिए और रीढ़ पर गर्म ठंडा स्नान करना चाहिए तथा सिर पर गीला तौलिया रखना चाहिए। यदि रोगी का कहीं घूमने का मन कर रहा हो तो उसे घुमाने के लिए ले जाना चाहिए।
•नाड़ी दुर्बलता रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन तथा योग क्रियाएं हैं जिनको करने से यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है ये आसन तथा योग क्रियाएं इस प्रकार हैं- सर्वांगासन, पवनमुक्तासन, चक्रासन, अर्धमत्स्येन्द्रान तथा उत्तानपादासन, शवासन तथा योगनिद्रा।
जानकारी-

         इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से नाड़ी दुर्बलता का उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

फर्श पर चलते टाइम पैर में दर्द होना



कैलकैनियल रोग से पीड़ित रोगी जब फर्श या किसी अन्य स्थान पर चलता है तो उसे पैर के नीचे तलुवों तथा घुटने में दर्द महसूस होता है और कुछ कदम चलने पर यह दर्द ठीक हो जाता है। यह रोग उन व्यक्तियों को अधिक होता है जिनका वजन ज्यादा होता है।
कैलकैनियल रोग होने का कारण-
          यह रोग शरीर में कैलकैनी अस्थि (होलबोन) के पास कैल्शियम जमा हो जाने के कारण से होता है। रोगी को शरीर में कैल्शियम के जमा हो जाने के कारण ही दर्द महसूस होता है। जब रोगी व्यक्ति थोड़ी दूर चलता है तो जमा हुआ कैल्शियम का बिखराव हो जाता है जिससे दर्द ठीक हो जाता है।
कैलकैनियल रोग होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-  है।
•कैलकैनियल रोग से पीड़ित रोगी का वजन यदि ज्यादा है तो उसे अपना वजन घटाना चाहिए। 
•कैलकैनियल रोग से पीड़ित रोगी को सोने से पहले तथा सुबह के समय में सोकर उठते ही गर्म पानी में इप्सम नमक मिलाकर पैर-स्नान करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
•कैलकैनियल रोग से पीड़ित रोगी को नर्म तथा मुलायम स्लीपर के जूते तथा चप्पल पहनने चाहिए।

गुर्दों का कार्य

गुर्दों का कार्य-
          स्वस्थ मनुष्य 1 दिन में लगभग 1 लीटर मूत्र (पेशाब) का त्याग करता है। गर्मियों के दिनों में पसीना निकलने के कारण पेशाब आने की मात्रा कम हो जाती है। मूत्र का रंग हल्का गेहुंआ होता है। जब कभी शरीर में कोई रोग हो जाता है तो पेशाब का रंग बदल जाता है। जब किसी व्यक्ति को बुखार हो जाता है तो पेशाब का रंग गहरा पीला या लाल हो जाता है। जब कोई मनुष्य स्वस्थ होता है तो उसके पेशाब में न तो प्रोटीन होता है और न ही शक्कर होता है। जब किसी व्यक्ति को मधुमेह रोग हो जाता है तो पेशाब में शक्कर आने लगती है।

          शरीर के सभी अंगों में से जो 2 गुर्दे होते हैं वे बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होते हैं इन गुर्दो के द्वारा ही रक्त शुद्ध होता है और बेकार पदार्थ शरीर से बाहर निकलते हैं।

गुर्दे के रोग कई प्रकार के होते हैं-

•नेफ्राईटिस- इस रोग में रोगी के गुर्दे में सूजन हो जाती है जिसके कारण खून में यूरिया, सिरम क्रीटि नाइन और खून के संचारण की गति बढ़ जाती है।
•नेफ्रोसीस- इस रोग के हो जाने पर गुर्दे के कार्य करने की शक्ति कम हो जाती है जिसके कारण से शरीर में सूजन हो जाती है और पेशाब में एलब्यूमिन की मात्रा बढ़ जाती है।
• पायेनोफ्राइटिस- इस रोग के कारण गुर्दे के पास की उपस्थिति में सूजन आ जाती है।
•गुर्दे का खराब होना- इस रोग के कारण गुर्दे की कार्यक्षमता नष्ट हो जाती है। जिसके कारण से उच्च रक्तचाप का रोग हो जाता है और ब्लड यूरिया सिरम क्रिटीनाईन, सोडियम व पोटाशियम का स्तर खतरनाक ढंग से बढ़ जाता है।
गुर्दे के रोगों के होने का लक्षण-

•जब गुर्दे का रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके चेहरे तथा पैरों पर आंखों के आसपास सूजन हो जाता है।
•गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी को ठण्ड के साथ बुखार भी होता रहता है।
•इस रोग से पीड़ित रोगी के कमर के निचले भाग में दर्द होता है तथा रोगी व्यक्ति को पेशाब करने में दर्द होता है।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को चक्कर आना, बेचैनी, थकावट, ब्लड में यूरिया का बढ़ जाना, पेशाब का रंग गहरा हो जाना तथा रोगी के पेशाब में एल्ब्यूमिन जमा हो जाता है।
गुर्दे के रोग होने का कारण-

•शरीर में विजातीय द्रव्यों का अधिक बढ़ जाने के कारण गुर्दे के रोग हो जाते हैं।
•खान-पान की गलत आदतों के कारण गुर्दे का रोग व्यक्ति को हो सकता है।
•मिर्च-मसाले, नमक, चीनी तथा शराब और अन्य उत्तेजनात्मक पदार्थ का सेवन करने से व्यक्ति को गुर्दे का रोग हो जाता है।
•कब्ज होने के कारण भी गुर्दे का रोग हो सकता है।
•त्वचा के असामान्य ढंग से कार्य करने से भी गुर्दे का रोग हो जाता है।
•कोढ़ जैसे असाध्य रोगों को दवाइयों के द्वारा दबाये जाने से भी गुर्दे का रोग हो जाता है। औषधियों को अधिक सेवन करने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।
•भोजन में विटामिन तथा लवणों की कमी हो जाने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।
•जब कोई व्यक्ति प्रोटीन युक्त भोजन जैसे- मांस, चावल, बिना छिलके की दालें, मछली या अधिक गरिष्ठ भोजन का सेवन करता है तो उसके शरीर में रक्त (खून) में यूरिया अधिक हो जाता है जिसके कारण गुर्दे को काम अधिक करना पड़ता है और फलस्वरूप गुर्दे का कोई रोग व्यक्ति को हो जाता है।
•रक्त को शुद्ध करने के अन्य दो साधनों- त्वचा और फेफड़े आदि में कोई रोग हो जाता है तो वे अपने कार्य सही तरीके से नहीं करते हैं जिसके कारण गुर्दे पर कार्य करने का भार बढ़ जाता है और जिसके कारण गुर्दे में कोई बीमारी हो जाती है।
•शराब आदि का सेवन अधिक करने से गुर्दे में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं।
•चाय का अधिक सेवन करने के कारण व्यक्ति को प्यास कम लगती है जिससे पानी कम पिया जाता है और मूत्र कम आता है और जिसके परिणामस्वरूप गुर्दे का कोई रोग हो जाता है।
गुर्दे के रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

•गुर्दे के रोगों को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए ताकि उसके शरीर से दूषित द्रव्य बाहर हो सके।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को कुछ दिनों तक गाजर, खीरा, पत्तागोभी तथा लौकी के रस पीना चाहिए और इसके साथ-साथ उपवास रखना चाहिए।
•तरबूज तथा आलू का रस भी गुर्दे के रोग को ठीक करने के लिए सही होता है इसलिए गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी को इसके रस का सेवन सुबह शाम करना चाहिए।
•गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी को अपने भोजन में विटामिन `सी` वाले पदार्थों का अधिक सेवन करना चाहिए। विटामिन `सी` वाले पदार्थ जैसे- आंवला, नींबू। रोगी व्यक्ति को फलों का सेवन भी अधिक सेवन करना चाहिए ताकि उसका गुर्दा मजबूत हो सके।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को प्रोटीन खाद्य कम खानी चाहिए।
•गुर्दे के रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को रात के समय में सोते वक्त कुछ मुनक्के को पानी में भिगोने के लिए रखना चाहिए तथा सुबह के समय में मुनक्के को पानी से निकाल कर, इस पानी को पीना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक लगातार करने से गुर्दे का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
•गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी जब तब ठीक न हो जाए तब तक उसे नमक नहीं खानी चाहिए।
•गुर्दे के रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने कमर तथा पीठ पर गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए तथा इसके बाद घर्षणस्नान करना चाहिए और फिर गर्म पानी का एनिमा लेना चाहिए। इसके बाद रोगी व्यक्ति को कटिस्नान, गर्म पाद स्नान (हल्के गुनगुने पानी में पैरों को कुछ समय तक डालना चाहिए) और इसके बाद रोगी व्यक्ति को अपने शरीर पर गीली चादर लपेटनी चाहिए तथा कमर के निचले भाग पर गर्म ठंडा सेंक करना चाहए और रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए। इस प्रकार से चिकित्सा करने से रोगी व्यक्ति कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है।
•ध्यान तथा नाड़ी शोधन प्राणायाम करने से गुर्दे के रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
•ध्यान तथा नाड़ी शोधन प्राणायाम करने के साथ-साथ रोगी व्यक्ति को सूर्यतप्त हरी बोतल का जल भी पीना चाहिए।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी नशीली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि नशीली चीजों का सेवन करने से रोगी के रोग की अवस्था और खराब हो सकती है। रोगी को अपना इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करने से कुछ ही दिनों में उसका गुर्दे का रोग ठीक हो जाता है।
•गुर्दे के रोगों से बचने के लिए कम से कम ढ़ाई किलो पानी सभी व्यक्ति को प्रतिदिन पीना चाहिए।
•पानी में नींबू के रस को निचोड़ कर पीये तो गुर्दे साफ हो जाते हैं और गुर्दे में कोई रोग नहीं होता है।
•रोगी व्यक्ति को गुर्दें के रोग को ठीक करने के लिए ऐसी अवस्था रखनी चाहिए कि शरीर से पसीना अधिक निकले।
•गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी को यदि पेशाब सही से नहीं आता हो तो 250 मिलीलीटर दूध में 600 मिलीलीटर पानी मिलाकर, उस पानी में 2 ग्राम फिटकरी मिला दें। इस दूध को दिन में 3 से 4 बार पीने से पेशाब सही से आने लगता है जिसके फलस्वरूप गुर्दे के रोग ठीक हो जाते हैं।
•हरे धनिये को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है जिसके फलस्वरूप  गुर्दे के रोग ठीक होने लगते हैं।
•गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी जब रात को सोने जा रहा तो तब उसे किसी तांबे के बर्तन में एक लीटर पानी रख देना चाहिए और सुबह उठते ही इस पानी को पीएं। इस प्रकार की क्रिया प्रतिदिन करने से कुछ ही दिनों में गुर्दे का रोग ठीक हो जाता है।

घेंघा


परिचय-
          घेंघा रोग से पीड़ित रोगी के गले के पास एक बड़ी सी सूजन पैदा हो जाती है और गांठ सी पड़ जाती है। यह सूजन गले के नीचे की ओर लटकी रहती है। इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में आयोडीन की कमी होना है।
घेंघा रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
•घेंघा रोग को ठीक करने के लिए रोगी को 2 दिन के लिए उपवास रखना चाहिए और उपवास के समय में केवल फलों का रस पीना चाहिए। रोगी को एनिमा क्रिया द्वारा अपने पेट को साफ रखना चाहिए। इसके बाद उसे प्रतिदिन उदरस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए।
•रोगी को गले में कण्ठ के पास की गांठों पर भापस्नान देकर दिन में 3 बार मिट्टी की पट्टी बांधनी चाहिए और रात के समय में गांठों पर हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए।
•यदि रोगी की गर्दन पर गांठ बनना शुरू हई है तो तुलसी और अरण्डी के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर और पीसकर उसमें थोड़ा-सा नमक मिलाकर गर्म-गर्म ही गांठ पर बांध देने से गांठ अधिक परेशान नहीं करती है और ठीक हो जाती है।
•घेंघा रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 2 भाग तथा लाल रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 1 भाग एक साथ मिला लेना चाहिए। इस जल को लगभग 25 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करना चाहिए तथा गांठों पर लगभग 10 मिनट तक नीला प्रकाश डालना चाहिए और सप्ताह में 1-2 बार एप्सम साल्टबाथ (गर्म पानी में नमक डालकर स्नान करना) भी लेना चाहिए। रोगी को प्रतिदिन नियमित रूप से शरीर और सांस की हल्की कसरतें भी करनी चाहिए।
•इस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को उन चीजों का भोजन में अधिक प्रयोग करना चाहिए जिसमें आयोडीन की अधिक मात्रा हो।
•रोगी व्यक्ति को अपने भोजन में आयोडीन युक्त नमक का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करना चाहिए।
जानकारी-
          इस प्रकार से रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से रोगी का घेंघा रोग ठीक हो जाता है लेकिन इस रोग को ठीक होने में कम से कम 2-3 महीने का समय लग सकता है।

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

एमोबायोसिस अर्थात अमीबा पेचिश



अर्थात अमीबा पेचिश आदमी को पंगु बना देती है। खाया-पीया पचता नहीं। इस वजह से दिन पर दिन कमजोरी आती जाती है। दिन भर सुस्ती बनी रहती है। पेट में मरोड़ के साथ दर्द होता है। पेट में गैस भर जाती है। बार-बार दस्त होते हैं या दस्त की हाजत होती रहती है। इस रोग का एक आसन घरेलू उपचार है-सौंफ, यह किसी भी किराना दूकान पर आसानी से मिल जाती है। सौंफ दो प्रकार की होती है। एक बारीक और एक मोटी। हमें मोटी सौंफ चाहिए। यह कईं प्रकार के उदररोगों में अक्सीर काम करती है। सौ ग्राम मोटी सौंफ ले आइए। इसके दो भाग कर लीजिए। एक भाग को भून लीजिए और शेष भाग को कच्चा रहने दीजिए। अब दोनों को मिला कर मिक्सर में पीस लीजिए। फिर सौ ग्राम मिश्री या शक्कर पीस कर इसमें मिला दीजिए। यह मिक्चर एक डिब्बे में बंद कर रख लीजिए। रोज सुबह शाम दो-दो चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से एमोबायोसिस के अलावा पतले दस्त, दस्त में आंव आना, पेचिश, कोलाइटिस, गैस, एसिडिटी जैसे रोग में भी इससे आराम आता है।
0-बच्चों को अपच होने पर सौंफ का पानी पिलाना चाहिए। इसे तैयार करने के लिए एक कप पानी में एक चम्मच सौंफ डाल कर अच्छी तरह उबाल लें। छान कर ठंडा करें और एक-एक चम्मच पानी दिन में कईं बार पिलाइए ।
0-शिशुओं को दांत निकलते समय बहुत परेशानी होती है। किसी को दस्त लग जाते हैं, कोई चिड़चिड़ करते हैं तो किसी की लार गिरती है। इस वक्त सौंफ आपकी मददगार हो सकती है। गाय के दूध में एक चम्मच मोटी सौंफ उबालकर छान लीजिए। और यह दूध पिलाइए बच्चे के दांत आसानी से निकल ने लगेंगे। जब तक जरूरी हो यह उपचार जारी रख सकते हैं।
0-खुजली में भी सौंफ से आराम मिलता है। सौंफ और खड़ा धनिया समान मात्रा में लेकर कच्चा ही पीस लीजिए। दो गुनी पीसी मिश्री और डेढ़ गुना गाय का घी मिलाकर एक डिब्बे में भर लीजिए। सुबह शाम दो-दो चम्मच नियमित सेवन से सभी तरह की खुजली में आराम मिलता है।

ग्रीन टी की लोकप्रियता

ग्रीन टी की लोकप्रियता इन दिनों काफी बढ़ रही है। यह एंटीआक्सीडेंट है और हृदय के लिए लाभप्रद मानी जाती है। कुछ तत्वों के साथ इसे और उत्प्रेरक बनाया जा सकता है। एक कप पानी में एक चम्मच ग्रीन टी डालिए। इसमें थोड़ा सा अदरक कुचल कर डाल दीजिए और एक टुकड़ा गुड़ भी डाल दीजिए। अच्छी तरह उबलने के बाद इसे छान लीजिए। अब इसमें चंद बूंदे नींबू की और चुटकी भर काला नमक मिलाइए। फिर इसका मजा लीजिए। यह अदरक, नींबू और काला नमक के गुणों से लैस होकर स्वाद और स्वास्थ्य दोनों दृष्टि से श्रेष्ठ बन जाती है। गला साफ करती है, गैस दूर करती है, पाचन में सहायक है और कफनाशक बन जाती है। इसे लेने के बाद आपके मुंह का स्वाद अच्छा हो जाता है। कुछ देर बाद ही भूख खुल कर लगने लगती है।
अब देखिए ग्रीन टी के ग्यारह फायदेः-
1.वजन नियंत्रित करती हैः ग्रीन टी के सेवन से शरीर का मेटाबालिज्म बढ़ जाता है। ग्रीन टी में पाया जाने वाला पोलीफिनाल फेट के आक्सीडेशन के स्तर को बढ़ा देता है। इससे भोजन को कैलरी में बदलने की गति भी बढ़ जाती है। तात्पर्य यह कि इससे शरीर में अनावश्यक चर्बी नहीं जमने पाती।

2.दिल की बीमारी मेंः वैज्ञानिकों का मत है कि यह ब्लड वेसल्स की लाइनिंग पर भी कार्य करती है। रक्त वाहनियों की नमनीयता बनाए रखती है। उनमें रक्त के थक्के नहीं जमने देती। थक्के ही हार्ट अटैक का मूल कारण होते हैं।
3.बुरे कोलेस्ट्रोल को कम कर, अच्छे कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ाती है।
4.कैंसरः यह कैंसर जैसी घातक बीमारी से भी हमारी रक्षा करती है। स्वस्थ टिश्यूज को बगैर हानि पहुंचाए कैंसर की कोशिकाओं पर अटैक करती है। आसोफेगस कैंसर से रक्षा करती है।
5.डायबिटीजः ग्रीन टी ग्लुकोज के स्तर को नियमित करने में भी सहायक होती है। इससे भोजन के बाद ब्लड शुगर बढ़ने नहीं पाती। अर्थात डायबिटीज के खतरे से बचाती है।
6.अलझायमर्स और पार्किन्सन्सः इन रोगों में शरीर को होने वाली क्षति की गति को कम करती है। ब्रेन के डेड सेल्स के पुनर्निर्माण में सहायक होती है।
7.दंत रोगों मेंः इसमें पाया जाने वाला एंटीआक्सीडेंट बैक्टीरिया और वायरस के हमलों से दांतों और गले की रक्षा करता है।
8.रक्तचापः इसके नियमित सेवन से रक्तचाप नियंत्रण में रहता है।
9.इसमें प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला थिएनाइन अमिनो एसिड डिप्रेशन के खतरे से बचाता है।
10.त्वचा की झुर्रियांः ग्रीन टी के नियमति सेवन से त्वचा पर झुर्रियां नहीं पड़ने पाती, यह एक तरह से एंटी एजिंग का काम करती है।
11.एंटी बैक्टीरियलः यह एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल गुणों से भी भरपूर है। अर्थात जीवाणु और विषाणु के हमले से हमारी रक्षा करती है।
सावधानीः सवाल है कि दिन में कितने कप ग्रीन टी पी जाए। कोई कहता है दो कप तो कोई तीन चार कप। हमारी राय है कि हर शरीर की जरूरत जुदा होती है। आप अपने शरीर की जरूरत के अनुसार इसका सेवन करें। अति सर्वत्र वर्ज्यतेः । गर्भवती महिलाओं को इसके सेवन से बचना चाहिए या डाक्टर से पूछ कर ही सेवन करें। कारण यह आयरन और फोलिक एसिड के अवशोषण को कम करती है।

अलसी और सौंफ का योग मिटाए उदर के रोग

अलसी के चमत्कारों पर तो इस ब्लाग में काफी कुछ लिखा जा चुका है। सौंफ के गुणों पर भी पिछले दिनों एमिबायोसिस वाले आलेख में मैंने जिक्र किया था कि यह उदररोगों में बहुत असरकारी है। अलसी और सौंफ के मिश्रण की आज चर्चा करता हूं। तीन भाग अलसी और एक भाग मोटी सौंफ लीजिए। इसमें स्वादअनुसार नींबू और काला नमक मिला लीजिए। फिर इसे थोड़ा सुखा कर धीमी आँच पर कढ़ाई में भून लीजिए। तब तक भूनिए कि अलसी की तड़-तड़ आवाज होने लगे। ठंडा होने पर इसे एयरटाइट डिब्बे में भर कर रख लीजिए। रोज दिन में तीन-चार बार या भोजन के बाद सुबह-शाम एक-एक चम्मच अच्छी तरह चबा-चबा कर खाइए। यह योग कईं तरह के उदररोगों में असरकारी है। कब्ज से भी राहत दिलाता है। गैस आसानी से पास हो जाती है। इससे मुखशुद्धि होती है। मुँह की दुर्गंध दूर कर मुँह का स्वाद ठीक होता है। कच्ची अलसी चबाना मुश्किल होता है, भुनने से यह आसानी से चबाई जा सकती है। यही सौंफ के साथ भी होता है। इसे बच्चे भी बड़े चाव के साथ खाते हैं।

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