शनिवार, 20 सितंबर 2014

जीर्ण रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार





       जब दूषित द्रव्य शरीर के बाहर नहीं निकलता है तो वह शरीर के किसी भाग में जमा होता रहता है और जिस भाग में जमा होता है वहां पर कई प्रकार के रोग हो जाते हैं और रोग के अनुसार ही बीमारियों का नाम दे दिया जाता है जैसे- क्षय (टी.बी.), कैंसर आदि।
जीर्ण रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :-
•रोगी व्यक्ति को जीर्ण रोग होने के कारणों को सबसे पहले दूर करना चाहिए फिर इसके बाद इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए।
•जीर्ण रोगों का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक लगातार फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए तथा इसके बाद कुछ दिनों तक फलों का सेवन करते रहना चाहिए। रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट की सफाई करनी चाहिए ताकि शरीर की गंदगी बाहर निकल सके।
•प्राकृतिक चिकित्सा से सभी प्रकार के जीर्ण रोग ठीक हो सकते हैं, लेकिन रोगी व्यक्ति को उपचार कराने के साथ-साथ कुछ खाने-पीने की चीजों का परहेज भी करना चाहिए तथा उपचार पर विश्वास रखना चाहिए तभी यह रोग ठीक हो सकता है।

तीव्र तथा जीर्ण रोगों का उपचार कराते समय रोगी व्यक्ति को कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए-

•रोगी व्यक्ति को कोई भी ठंडा उपचार करने से पहले अपनी हथेलियों को रगड़-रगड़ कर गर्म कर लेना चाहिए और फिर इसके बाद उपचार करना चाहिए।
•रोगी व्यक्ति को ठंडा उपचार करने के बाद खुली हवा में टहलकर या हल्का व्यायाम करके अपने शरीर को गर्म करना चाहिए।
•रोगी व्यक्ति को गर्म उपचार करने से पहले पानी पीना चाहिए और सिर पर गीला तौलिया रखना चाहिए।
•रोगी व्यक्ति को अधिक लाभ लेने के लिए कभी भी ज्यादा उपचार नहीं कराना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति को हानि पहुंचती है।
•जब रोगी व्यक्ति ठंडे पानी से उपचार कराता है तो उसे आधे घण्टे के बाद स्नान कर लेना चाहिए।
•रोगी व्यक्ति को भोजन करने के कम से कम ढाई घण्टे के बाद ही उपचार करना चाहिए।
•रोगी व्यक्ति को उपचार करने के बाद यदि कुछ खाना है तो उसे कम से कम आधा घण्टा रुककर ही उपचार करना चाहिए।

तृषा रोग के (तेज प्यास) लक्षण

तेज प्यास

    यह एक प्रकार का ऐसा रोग है जिसमें रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक प्यास लगती है। रोगी व्यक्ति जितना भी पानी पीता है उसे ऐसा लगता है कि उसने बहुत ही कम पानी पिया है और वह बार-बार पानी पीता रहता है।
तृषा रोग के (तेज प्यास) लक्षण-
   इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक प्यास लगती है तथा रोगी को अपना गला हर समय सूखा-सूखा सा लगता है।
तृषा रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
•तृषा (तेज प्यास) रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को एनिमा द्वारा अपना पेट साफ करना चाहिए और इसके बाद दिन में 2 बार कटिस्नान करना चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को रात को सोते समय अपनी कमर पर कुछ समय के लिए भीगी पट्टी लगाकर सोना चाहिए। इससे तृषा रोग (तेज प्यास) ठीक हो जाता है।
•तृषा रोग (तेज प्यास) का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करने के लिए सबसे पहले रोगी को कुछ दिनों तक रसाहार तथा फलाहार भोजन करना चाहिए और इसके बाद धीरे-धीरे पानी पीना चाहिए।
•तृषा रोग को ठीक करने के लिए आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल को लगभग 50 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन 8 बार रोगी को सेवन करना चाहिए। इससे रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ही ठीक हो जाता है।

तीव्र रोग होने के कारण




          वैसे देखा जाए तो तीव्र रोग हमारे मित्र हैं शत्रु नहीं क्योंकि इनसे शरीर की अन्दरूनी सफाई हो जाती है जो कि जीर्ण रोगों से हमें बचाती है।
तीव्र रोग होने के कारण -
          यह रोग उन व्यक्तियों को होता है जिन व्यक्तियों के शरीर में दूषित द्रव्य जमा हो जाता है और असाधारण ढंग से शरीर से बाहर निकलने लगता है।
तीव्र रोग होने के लक्षण -
•तीव्र रोग से पीड़ित रोगी को भूख नहीं लगती है और यदि लगती भी है तो बहुत ही कम।
•तीव्र रोग से पीड़ित रोगी के मुंह का स्वाद कड़वा हो जाता है और रोगी व्यक्ति को कुछ भी चीज खानी में अच्छी नहीं लगती है।
•इस रोग से पीड़ित रोगी की जीभ गंदी रहती है।
•तीव्र रोग से पीड़ित रोगी के मुंह में छाले हो जाते हैं।
•इस रोग से पीड़ित रोगी का गला खराब रहता है तथा उसको बोलने में परेशानी होने लगती है।
•तीव्र रोग से पीड़ित रोगी के सिर में दर्द होता रहता है।
तीव्र रोग निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
•बुखार होना
•उल्टी आना
•खांसी हो जाना
•जुकाम होना आदि कई प्रकार के रोग।
तीव्र रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार -
•तीव्र रोग से ग्रस्त रोगी को कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए। इसके बाद रोगी व्यक्ति को एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए ताकि शरीर के अन्दर से दूषित द्रव्य बाहर निकल सकें।
•इन रोगों को दवाइयों से दबाना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने से रोगी व्यक्ति को दूसरे कई रोग भी हो सकते हैं।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

संगीत से रोग भगाये



आजकल संगीत द्वारा बहुत सी बीमारियो का इलाज किया जाने लगा हैं | चिकित्सा विज्ञान भी यह मानने लगा हैं की प्रतिदिन 20 मिनट अपनी पसंद का संगीत सुनने से रोज़मर्रा की होने वाली बहुत सी बीमारियो से निजात पायी जा सकती हैं जिस प्रकार हर रोग का संबंध किसी ना किसी ग्रह विशेष से होता हैं उसी प्रकार संगीत के हर सुर व राग का संबंध किसी ना किसी ग्रह से अवश्य होता हैं यदि किसी जातक को किसी ग्रह विशेष से संबन्धित रोग हो और उसे उस ग्रह से संबन्धित राग,सुर अथवा गीत सुनाये जाये तो जातक विशेष जल्दी ही स्वस्थ हो जाता हैं प्रस्तुत लेख मे हमने इसी विषय को आधार बनाकर ऐसे बहुत से रोगो व उनसे राहत देने वाले रागो के विषय मे जानकारी देने का प्रयास किया हैं जिन शास्त्रीय रागो का उल्लेख किया किया गया हैं उन रागो मे कोई भी गीत,संगीत,भजन या वाद्य यंत्र बजा कर लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं | यहाँ हमने उनसे संबन्धित फिल्मी गीतो के उदाहरण देने का प्रयास भी किया हैं |

1)हृदय रोग –इस रोग मे राग दरबारी व राग सारंग से संबन्धित संगीत सुनना लाभदायक हैं इनसे संबन्धित फिल्मी गीत निम्न हैं- तोरा मन दर्पण कहलाए (काजल),राधिके तूने बंसरी चुराई (बेटी बेटे ),झनक झनक तोरी बाजे पायलिया ( मेरे हुज़ूर ),बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम (साजन),जादूगर साइया छोड़ो मोरी (फाल्गुन),ओ दुनिया के रखवाले (बैजु बावरा ),मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये (मुगले आजम )

2)अनिद्रा –यह रोग हमारे जीवन मे होने वाले सबसे साधारण रोगो मे से एक हैं इस रोग के होने पर राग भैरवी व राग सोहनी सुनना लाभकारी होता हैं जिनके प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं 1)रात भर उनकी याद आती रही(गमन),2)नाचे मन मोरा (कोहिनूर),3)मीठे बोल बोले बोले पायलिया(सितारा),4)तू गंगा की मौज मैं यमुना (बैजु बावरा),5)ऋतु बसंत आई पवन(झनक झनक पायल बाजे),6)सावरे सावरे(अंनुराधा),7)चिंगारी कोई भड़के (अमर प्रेम),छम छम बजे रे पायलिया (घूँघट ),झूमती चली हवा (संगीत सम्राट तानसेन ),कुहु कुहु बोले कोयलिया (सुवर्ण सुंदरी )

3)एसिडिटी –इस रोग के होने पर राग खमाज सुनने से लाभ मिलता हैं इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं 1)ओ रब्बा कोई तो बताए प्यार (संगीत),2)आयो कहाँ से घनश्याम(बुड्ढा मिल गया),3)छूकर मेरे मन को (याराना),4)कैसे बीते दिन कैसे बीती रतिया (ठुमरी-अनुराधा),5)तकदीर का फसाना गाकर किसे सुनाये ( सेहरा ),रहते थे कभी जिनके दिल मे (ममता ),हमने तुमसे प्यार किया हैं इतना (दूल्हा दुल्हन ),तुम कमसिन हो नादां हो (आई मिलन की बेला)

4)कमजोरी –यह रोग शारीरिक शक्तिहीनता से संबन्धित हैं इस रोग से पीड़ित व्यक्ति कुछ भी काम कर पाने मे खुद को असमर्थ महसूस करता हैं इस रोग के होने पर राग जय जयवंती सुनना या गाना लाभदायक होता हैं इस राग के प्रमुख गीत निम्न हैं मनमोहना बड़े झूठे(सीमा),2)बैरन नींद ना आए (चाचा ज़िंदाबाद),3)मोहब्बत की राहों मे चलना संभलके (उड़न खटोला ),4)साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं (चन्द्रगुप्त ),5)ज़िंदगी आज मेरे नाम से शर्माती हैं (दिल दिया दर्द लिया ),तुम्हें जो भी देख लेगा किसी का ना (बीस साल बाद )

5)याददाश्त –जिन लोगो की याददाश्त कम हो या कम हो रही हो उन्हे राग शिवरंजनी सुनने से बहुत लाभ मिलता हैं इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं,ना किसी की आँख का नूर हूँ(लालकिला),2)मेरे नैना(महबूबा),3)दिल के झरोखे मे तुझको(ब्रह्मचारी),4)ओ मरे सनम ओ मरे सनम(संगम ),5)जीता था जिसके (दिलवाले),6)जाने कहाँ गए वो दिन(मेरा नाम जोकर )

6)खून की कमी –इस रोग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का चेहरा निस्तेज व सूखा सा रहता हैं स्वभाव मे भी चिड़चिड़ापन होता हैं ऐसे मे राग पीलू से संबन्धित गीत सुनने से लाभ पाया जा सकता हैं | 1)आज सोचा तो आँसू भर आए (हँसते जख्म),2)नदिया किनारे घिर आए बदरा(अभिमान),3)खाली हाथ शाम आई हैं (इजाजत),4)तेरे बिन सुने नयन हमारे (लता रफी),5)मैंने रंग ली आज चुनरिया (दुल्हन एक रात की),6)मोरे सैयाजी उतरेंगे पार(उड़न खटोला),

7)मनोरोग अथवा डिप्रेसन –इस रोग मे राग बिहाग व राग मधुवंती सुनना लाभदायक होता हैं इन रागो के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं | 1)तुझे देने को मेरे पास कुछ नहीं(कुदरत नई),2)तेरे प्यार मे दिलदार(मेरे महबूब),3)पिया बावरी(खूबसूरत पुरानी),4)दिल जो ना कह सका (भीगी रात),तुम तो प्यार हो(सेहरा),मेरे सुर और तेरे गीत (गूंज उठी शहनाई ),मतवारी नार ठुमक ठुमक चली जाये(आम्रपाली),सखी रे मेरा तन उलझे मन डोले (चित्रलेखा)

8)रक्तचाप-ऊंच रक्तचाप मे धीमी गति और निम्न रक्तचाप मे तीव्र गति का गीत संगीत लाभ देता हैं ऊंच रक्तचाप मे “चल उडजा रे पंछी की अब ये देश ( भाभी ),ज्योति कलश छलके ( भाभी की चूड़ियाँ ),चलो दिलदार चलो ( पाकीजा ),नीले गगन के तले (हमराज़) जैसे गीत व निम्न रक्तचाप मे “ओ नींद ना मुझको आए (पोस्ट बॉक्स न॰ 909),बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दीवाना (जिस देश मे गंगा बहती हैं ),जहां डाल डाल पर ( सिकंदरे आजम ),पंख होती तो उड़  आती रे (सेहरा ) | शास्त्रीय रागो मे राग भूपाली को विलंबित व तीव्र गति से सुना या गाया जा सकता हैं |

9)अस्थमा –इस रोग मे आस्था–भक्ति पर आधारित गीत संगीत सुनने व गाने से लाभ होता हैं राग मालकोंस व राग ललित से संबन्धित गीत इस रोग मे सुने जा सकते हैं जिनमे प्रमुख गीत निम्न हैं तू छुपी हैं कहाँ (नवरंग),तू हैं मेरा प्रेम देवता(कल्पना),एक शहँशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल (लीडर),मन तड़पत हरी दर्शन को आज (बैजु बावरा ),आधा हैं चंद्रमा ( नवरंग )


10)सिरदर्द –इस रोग के होने पर राग भैरव सुनना लाभदायक होता हैं इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से हैं मोहे भूल गए सावरियाँ (बैजु बावरा),राम तेरी गंगा मैली (शीर्षक),पूंछों ना कैसे मैंने रैन बिताई(तेरी सूरत मेरी आँखें),सोलह बरस की बाली उम्र को सलाम (एक दूजे के लिए )

नाड़ी दुर्बलता

नाड़ी दुर्बलता रोग होने का कारण-

•जो व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहता है या जिसे शारीरिक कार्य करने की अधिकता रहती है ऐसे व्यक्ति को यह रोग हो जाता है।
•नशीली पदार्थों तथा अधिक औषधियों का सेवन करने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को रोग हो जाता है।
•भूख से अधिक भोजन करने तथा खान-पान का तरीका सही न होने के कारण भी नाड़ी दुर्बलता का रोग हो जाता है।
•अधिक मैथुन क्रिया करने के कारण तथा हर समय उत्तेजना भरी बातें करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
•शरीर में धातु की कमी होने के कारण भी नाड़ी दुर्बलता का रोग हो सकता है।
•मानसिक तनाव तथा अधिक सोच विचार करने के कारण नाड़ी दुर्बलता का रोग हो जाता है।
नाड़ी दुर्बलता रोग को ठीक के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

•नाड़ी दुर्बलता के रोग को ठीक करने के लिए रोगी को उसकी इच्छाओं के अनुसार खेल तथा मनोरंजन में लगाना चाहिए तथा उसे अधिक से अधिक आराम देना चाहिए।
•रोगी के खाने-पीने की इच्छा को पूरा करना चाहिए तथा उस पर किसी तरह का दबाव नहीं देना चाहिए।
•नाड़ी दुर्बलता के रोग को ठीक करने के लिए रोगी को गाजर तथा खीरे का रस पिलाना चाहिए। इस रोग में नारियल पानी और दूब का रस पीना भी बहुत लाभदायक होता है।
• दूब के रस में मुनक्का को भिगोकर सुबह के समय में खाना चाहिए तथा इसके बाद एक गिलास पानी पीना चाहिए। रोगी को सुबह के समय में उठते ही पानी पीना चाहिए।
•रोगी को चोकर सहित आटे की रोटी खिलानी चाहिए। इसके अलावा अंकुरित चने, मूंगफली, मौसम के अनुसार ताजे फल, कच्चा सलाद आदि भी रोगी को सेवन कराने चाहिए तथा उसे दही का अधिक मात्रा में सेवन कराना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
•नाड़ी दुर्बलता रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी मिठाई तथा भारी भोजन नहीं करना चाहिए।
•नाड़ी दुर्बलता के रोग को ठीक करने के लिए सूर्यतप्त नीली बोतल का पानी रोजाना दिन में 6 बार पीना चाहिए। रोगी को एनिमा क्रिया लेकर अपने पेट को साफ करना चाहिए तथा इसके बाद अपने पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी करनी चाहिए और फिर कटिस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए। रोगी को साप्ताहिक चादर लपेट क्रिया करनी चाहिए और रीढ़ पर गर्म ठंडा स्नान करना चाहिए तथा सिर पर गीला तौलिया रखना चाहिए। यदि रोगी का कहीं घूमने का मन कर रहा हो तो उसे घुमाने के लिए ले जाना चाहिए।
•नाड़ी दुर्बलता रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन तथा योग क्रियाएं हैं जिनको करने से यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है ये आसन तथा योग क्रियाएं इस प्रकार हैं- सर्वांगासन, पवनमुक्तासन, चक्रासन, अर्धमत्स्येन्द्रान तथा उत्तानपादासन, शवासन तथा योगनिद्रा।
जानकारी-

         इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से नाड़ी दुर्बलता का उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

फर्श पर चलते टाइम पैर में दर्द होना



कैलकैनियल रोग से पीड़ित रोगी जब फर्श या किसी अन्य स्थान पर चलता है तो उसे पैर के नीचे तलुवों तथा घुटने में दर्द महसूस होता है और कुछ कदम चलने पर यह दर्द ठीक हो जाता है। यह रोग उन व्यक्तियों को अधिक होता है जिनका वजन ज्यादा होता है।
कैलकैनियल रोग होने का कारण-
          यह रोग शरीर में कैलकैनी अस्थि (होलबोन) के पास कैल्शियम जमा हो जाने के कारण से होता है। रोगी को शरीर में कैल्शियम के जमा हो जाने के कारण ही दर्द महसूस होता है। जब रोगी व्यक्ति थोड़ी दूर चलता है तो जमा हुआ कैल्शियम का बिखराव हो जाता है जिससे दर्द ठीक हो जाता है।
कैलकैनियल रोग होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-  है।
•कैलकैनियल रोग से पीड़ित रोगी का वजन यदि ज्यादा है तो उसे अपना वजन घटाना चाहिए। 
•कैलकैनियल रोग से पीड़ित रोगी को सोने से पहले तथा सुबह के समय में सोकर उठते ही गर्म पानी में इप्सम नमक मिलाकर पैर-स्नान करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
•कैलकैनियल रोग से पीड़ित रोगी को नर्म तथा मुलायम स्लीपर के जूते तथा चप्पल पहनने चाहिए।

गुर्दों का कार्य

गुर्दों का कार्य-
          स्वस्थ मनुष्य 1 दिन में लगभग 1 लीटर मूत्र (पेशाब) का त्याग करता है। गर्मियों के दिनों में पसीना निकलने के कारण पेशाब आने की मात्रा कम हो जाती है। मूत्र का रंग हल्का गेहुंआ होता है। जब कभी शरीर में कोई रोग हो जाता है तो पेशाब का रंग बदल जाता है। जब किसी व्यक्ति को बुखार हो जाता है तो पेशाब का रंग गहरा पीला या लाल हो जाता है। जब कोई मनुष्य स्वस्थ होता है तो उसके पेशाब में न तो प्रोटीन होता है और न ही शक्कर होता है। जब किसी व्यक्ति को मधुमेह रोग हो जाता है तो पेशाब में शक्कर आने लगती है।

          शरीर के सभी अंगों में से जो 2 गुर्दे होते हैं वे बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होते हैं इन गुर्दो के द्वारा ही रक्त शुद्ध होता है और बेकार पदार्थ शरीर से बाहर निकलते हैं।

गुर्दे के रोग कई प्रकार के होते हैं-

•नेफ्राईटिस- इस रोग में रोगी के गुर्दे में सूजन हो जाती है जिसके कारण खून में यूरिया, सिरम क्रीटि नाइन और खून के संचारण की गति बढ़ जाती है।
•नेफ्रोसीस- इस रोग के हो जाने पर गुर्दे के कार्य करने की शक्ति कम हो जाती है जिसके कारण से शरीर में सूजन हो जाती है और पेशाब में एलब्यूमिन की मात्रा बढ़ जाती है।
• पायेनोफ्राइटिस- इस रोग के कारण गुर्दे के पास की उपस्थिति में सूजन आ जाती है।
•गुर्दे का खराब होना- इस रोग के कारण गुर्दे की कार्यक्षमता नष्ट हो जाती है। जिसके कारण से उच्च रक्तचाप का रोग हो जाता है और ब्लड यूरिया सिरम क्रिटीनाईन, सोडियम व पोटाशियम का स्तर खतरनाक ढंग से बढ़ जाता है।
गुर्दे के रोगों के होने का लक्षण-

•जब गुर्दे का रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके चेहरे तथा पैरों पर आंखों के आसपास सूजन हो जाता है।
•गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी को ठण्ड के साथ बुखार भी होता रहता है।
•इस रोग से पीड़ित रोगी के कमर के निचले भाग में दर्द होता है तथा रोगी व्यक्ति को पेशाब करने में दर्द होता है।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को चक्कर आना, बेचैनी, थकावट, ब्लड में यूरिया का बढ़ जाना, पेशाब का रंग गहरा हो जाना तथा रोगी के पेशाब में एल्ब्यूमिन जमा हो जाता है।
गुर्दे के रोग होने का कारण-

•शरीर में विजातीय द्रव्यों का अधिक बढ़ जाने के कारण गुर्दे के रोग हो जाते हैं।
•खान-पान की गलत आदतों के कारण गुर्दे का रोग व्यक्ति को हो सकता है।
•मिर्च-मसाले, नमक, चीनी तथा शराब और अन्य उत्तेजनात्मक पदार्थ का सेवन करने से व्यक्ति को गुर्दे का रोग हो जाता है।
•कब्ज होने के कारण भी गुर्दे का रोग हो सकता है।
•त्वचा के असामान्य ढंग से कार्य करने से भी गुर्दे का रोग हो जाता है।
•कोढ़ जैसे असाध्य रोगों को दवाइयों के द्वारा दबाये जाने से भी गुर्दे का रोग हो जाता है। औषधियों को अधिक सेवन करने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।
•भोजन में विटामिन तथा लवणों की कमी हो जाने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।
•जब कोई व्यक्ति प्रोटीन युक्त भोजन जैसे- मांस, चावल, बिना छिलके की दालें, मछली या अधिक गरिष्ठ भोजन का सेवन करता है तो उसके शरीर में रक्त (खून) में यूरिया अधिक हो जाता है जिसके कारण गुर्दे को काम अधिक करना पड़ता है और फलस्वरूप गुर्दे का कोई रोग व्यक्ति को हो जाता है।
•रक्त को शुद्ध करने के अन्य दो साधनों- त्वचा और फेफड़े आदि में कोई रोग हो जाता है तो वे अपने कार्य सही तरीके से नहीं करते हैं जिसके कारण गुर्दे पर कार्य करने का भार बढ़ जाता है और जिसके कारण गुर्दे में कोई बीमारी हो जाती है।
•शराब आदि का सेवन अधिक करने से गुर्दे में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं।
•चाय का अधिक सेवन करने के कारण व्यक्ति को प्यास कम लगती है जिससे पानी कम पिया जाता है और मूत्र कम आता है और जिसके परिणामस्वरूप गुर्दे का कोई रोग हो जाता है।
गुर्दे के रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

•गुर्दे के रोगों को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए ताकि उसके शरीर से दूषित द्रव्य बाहर हो सके।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को कुछ दिनों तक गाजर, खीरा, पत्तागोभी तथा लौकी के रस पीना चाहिए और इसके साथ-साथ उपवास रखना चाहिए।
•तरबूज तथा आलू का रस भी गुर्दे के रोग को ठीक करने के लिए सही होता है इसलिए गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी को इसके रस का सेवन सुबह शाम करना चाहिए।
•गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी को अपने भोजन में विटामिन `सी` वाले पदार्थों का अधिक सेवन करना चाहिए। विटामिन `सी` वाले पदार्थ जैसे- आंवला, नींबू। रोगी व्यक्ति को फलों का सेवन भी अधिक सेवन करना चाहिए ताकि उसका गुर्दा मजबूत हो सके।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को प्रोटीन खाद्य कम खानी चाहिए।
•गुर्दे के रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को रात के समय में सोते वक्त कुछ मुनक्के को पानी में भिगोने के लिए रखना चाहिए तथा सुबह के समय में मुनक्के को पानी से निकाल कर, इस पानी को पीना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक लगातार करने से गुर्दे का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
•गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी जब तब ठीक न हो जाए तब तक उसे नमक नहीं खानी चाहिए।
•गुर्दे के रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने कमर तथा पीठ पर गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए तथा इसके बाद घर्षणस्नान करना चाहिए और फिर गर्म पानी का एनिमा लेना चाहिए। इसके बाद रोगी व्यक्ति को कटिस्नान, गर्म पाद स्नान (हल्के गुनगुने पानी में पैरों को कुछ समय तक डालना चाहिए) और इसके बाद रोगी व्यक्ति को अपने शरीर पर गीली चादर लपेटनी चाहिए तथा कमर के निचले भाग पर गर्म ठंडा सेंक करना चाहए और रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए। इस प्रकार से चिकित्सा करने से रोगी व्यक्ति कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है।
•ध्यान तथा नाड़ी शोधन प्राणायाम करने से गुर्दे के रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
•ध्यान तथा नाड़ी शोधन प्राणायाम करने के साथ-साथ रोगी व्यक्ति को सूर्यतप्त हरी बोतल का जल भी पीना चाहिए।
•इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी नशीली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि नशीली चीजों का सेवन करने से रोगी के रोग की अवस्था और खराब हो सकती है। रोगी को अपना इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करने से कुछ ही दिनों में उसका गुर्दे का रोग ठीक हो जाता है।
•गुर्दे के रोगों से बचने के लिए कम से कम ढ़ाई किलो पानी सभी व्यक्ति को प्रतिदिन पीना चाहिए।
•पानी में नींबू के रस को निचोड़ कर पीये तो गुर्दे साफ हो जाते हैं और गुर्दे में कोई रोग नहीं होता है।
•रोगी व्यक्ति को गुर्दें के रोग को ठीक करने के लिए ऐसी अवस्था रखनी चाहिए कि शरीर से पसीना अधिक निकले।
•गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी को यदि पेशाब सही से नहीं आता हो तो 250 मिलीलीटर दूध में 600 मिलीलीटर पानी मिलाकर, उस पानी में 2 ग्राम फिटकरी मिला दें। इस दूध को दिन में 3 से 4 बार पीने से पेशाब सही से आने लगता है जिसके फलस्वरूप गुर्दे के रोग ठीक हो जाते हैं।
•हरे धनिये को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है जिसके फलस्वरूप  गुर्दे के रोग ठीक होने लगते हैं।
•गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी जब रात को सोने जा रहा तो तब उसे किसी तांबे के बर्तन में एक लीटर पानी रख देना चाहिए और सुबह उठते ही इस पानी को पीएं। इस प्रकार की क्रिया प्रतिदिन करने से कुछ ही दिनों में गुर्दे का रोग ठीक हो जाता है।

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