मंगलवार, 23 सितंबर 2014

सहजन के फायदे/The advantages of drumstick


इस वृक्ष को विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। यथा बंगाल में 'सजिना', महाराष्ट्र में 'शेगटा', तेलगु में 'मुनग',व हिंदी पट्टी में 'सहजन' के अलावा 'सैजन' व 'मुनग' कहा जाता है। जिसका उपयोग आयुर्वेद में बड़े पैमाने पर होता है।सहजन के तीन मुख्य प्रभेद होते हैं। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक पुष्प भेद से सहजन की प्रजाति पहचानी जाती है। जिसमें लाल, काले एवं श्वेत पुष्प प्रमुख है। हालांकि, श्वेत पुष्प वाली प्रजाति का ही ज्यादा उत्पादन होता है।सहजन, सुजना, सेंजन और मुनगा या मुरुंगा अत्यंत सुंदर वृक्ष तो है ही अनेक पोषक तत्त्वों से भरपूर होने के कारण उपयोगी और स्वास्थ्यवर्धक भी है। मोरिंगा ओलेफेरा वानस्पतिक नाम वाला यह पौधा लगभग १० मीटर उंचाई वाला होता है किन्तु लोग इसे डेढ़-दो मीटर की ऊँचाई से प्रतिवर्ष काट देते हैं ताकि इसके फल-फूल-पत्तियों तक हाथ आसानी से पहुँच सके। सहजन के पौधे में मार्च महीने के आरंभ में फूल लगते हैं व इसी महीने के अंत तक फल भी लग जाते हैं। इसकी कच्ची-हरी फलियाँ सर्वाधिक उपयोग में लायी जातीं हैं।आयुर्वेद में ३०० रोगों का सहजन से उपचार बताया गया है, लेकिन आधुनिक विज्ञान ने इसके पोषक तत्वों की मात्रा खोजकर संसार को चकित कर दिया है। इसकी फली, हरी पत्तियों व सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। एक अध्ययन के अनुसार इसमें दूध की तुलना में ४ गुना कैलशियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है। क्षेत्रीय खाद्य अनुसंधान एवं विश्लेषण केंद्र लखनऊ द्वारा सहजन की फली एवं पत्तियों पर किए गए नए शोध से पता चला है कि प्राकृतिक गुणों से भरपूर सहजन इतने औषधीय गुणों से भरपूर है कि उसकी फली के अचार और चटनी कई बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक हैं। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार इसे दुनिया का सबसे उपयोगी पौधा कहा जा सकता है। यह न सिर्फ कम पानी अवशोषित करता है बल्कि इसके तनों, फूलों और पत्तियों में खाद्य तेल, जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाली खाद और पोषक आहार पाए जाते हैं।इसके फूल, फली व पत्तों में इतने पोषक तत्त्व हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मार्गदर्शन में दक्षिण अफ्रीका के कई देशों में कुपोषण पीडित लोगों के आहार के रूप में सहजन का प्रयोग करने की सलाह दी गई है। एक से तीन साल के बच्चों और गर्भवती व प्रसूता महिलाओं व वृद्धों के शारीरिक पोषण के लिए यह वरदान माना गया है। लोक में भी कैन्सर व पेट आदि शरीर के आभ्यान्तर में उत्पन्न गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। यह भी पाया गया है कि यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ो में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी आदि में लाभकारी है। सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से विषाणु जनित रोग चेचक के होने का खतरा टल जाता है।  दुनिया में करोड़ों लोग भूजल का प्रयोग पेयजल के रूप में करते हैं। इसमें कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं जिसके कारण लोगों को तमाम तरह की जलजनित बीमारियाँ होने की संभावना बनी रहती है। इन बीमारियों के सबसे ज्यादा शिकार कम उम्र के बच्चे होते हैं। ऐसे में सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। क्लीयरिंग हाउस के शोधकर्ता और करंट प्रोटोकाल्स के लेखक माइकल ली का कहना है कि सहजन के पेड़ से पानी को साफ करके दुनिया मे जलजनित बीमारियों से होने वाली मौतों पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।सहजन की पत्ती इसके बीज से बिना लागत के पेय जल को साफ किया जा सकता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है। भारत जैसे देश में इस तकनीक की उपयोगिता असाधारण हो सकती है, जहाँ आम तौर पर ९५ फीसदी आबादी बिना साफ किए हुए पानी का सेवन करती है। दो दशक पूर्व तक सहजन का पौधा प्राय: हर गांव में आसानी से मिल जाता था। लेकिन आज इसके संरक्षण की आवश्यकता का अनुभव किया जा रहा है। इस पौधे के विरल होते जाने का कारण यह है कि इस पर भुली नामक एक कीट रहता है, जिससे अत्यंत ही खतरनाक त्वचा एलर्जी होती है। इसी भयवश ग्रामीण इस पौधे को नष्ट कर देते हैं। एक ओर जहाँ विशेषज्ञ इसे भुली से मुक्ति के उपाय खोजने में लगे हैं वहीं दूसरी ओर सहजन का साल में दो बार फलने वाला वार्षिक प्रभेद तैयार कर लिया गया है, जिससे ज्यादा फल की प्राप्ति होती है।

निम्नलिखित फायदे......
* इसकी फली, हरी पत्तियों व सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
* इसके फूल उदर रोगों व कफ रोगों में, इसकी फली वात व उदरशूल में, पत्ती नेत्ररोग, मोच, शियाटिका,गठिया आदि में उपयोगी है|
* जड़ दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग आदि के लिए उपयोगी है तथा छाल का उपयोग शियाटिका ,गठिया, यकृत आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है|
* सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है|
* सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात, व कफ रोग शांत हो जाते है|
* इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया,शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है|
* शियाटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है,
* मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है |
* सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है|
* इसकी सब्जी खाने से पुराने गठिया , जोड़ों के दर्द, वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है.
* सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है.
* सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है.
* इसकी जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पिने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है.
* इसके पत्तों का रस बच्चों के पेट के किडें निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है.
* इसका रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है.
* इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है.
* इसकी छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है.
* इसके कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है.
* इसकी जड़ का काढे को सेंधा नमक और हिंग के साथ पिने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है.
* इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है.
* सर दर्द में इसके पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे.
* इसमें दूध की तुलना में ४ गुना कैलशियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है।
* सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है।
* कैन्सर व पेट आदि शरीर के आभ्यान्तर में उत्पन्न गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। यह भी पाया गया है कि यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ो में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी आदि में लाभकारी है।
* सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है।
* आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से विषाणु जनित रोग चेचक के होने का खतरा टल जाता है।
* सहजन में हाई मात्रा में ओलिक एसिड होता है जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिये अति आवश्यक है।
* सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शीर के कई रोगों से लड़ता है, खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तो, आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी।
* इसमें कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आइरन, मैग्नीशियम और सीलियम होता है।
* इसका जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है। इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है।
* सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढापा दूर रहता है। इससे आंखों की रौशनी भी अच्छी होती है।
* आप सहजन को सूप के रूप में पी सकते हैं, इससे शरीर का रक्त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्याएं तभी सही होंगी जब खून अंदर से साफ होगा।
* सहजन के फूल उदर रोगों व कफ रोगों में इसकी फली वात व उदरशूल में पत्ती नेत्ररोग, मोच आदि में उपयोगी है।
* सहजन की जड़ दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग आदि के लिए उपयोगी है तथा छाल का उपयोग शियाटिका गठियाए,यकृत आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है।
* सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है
* सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वातए व कफ रोग शांत हो जाते है, ]
* इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है, शियाटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है.
* सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है।
* सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है।
* सहजन की सब्जी खाने से पुराने गठिया ए जोड़ों के दर्दए वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है।
* सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है।
* इसकी  सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है।
* सहजन की जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है।
* सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है।
* सहजन फली का रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है।
* इसकी  पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है।
* सहजन. की छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है।
* सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है।
* सहजन. की जड़ का काढे को सेंधा नमक और हिंग के साथ पिने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है।
* सहजन की पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है।
* सहजन के पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे तो सर दर्द दूर हो जाता है .
* सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
* इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है।
  यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है।
* सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है।
* सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शरीर के कई रोगों से लड़ता है खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तोए आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी।
* सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आयरन , मैग्नीशियम और सीलियम होता है।
* सहजन का जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है। इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है।
* सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढापा दूर रहता है। इससे आंखों की रौशनी भी अच्छी होती है।
* सहजन का सूप पीने से शरीर का रक्त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्याएं तभी सही होंगी जब खून अंदर से साफ होगा।
* सहजन की पत्ती को सुखाकर उसकी चटनी बनाने से उसमें आयरन, फास्फोरस, कैल्शियम प्रचूर मात्रा में पाया जाता है। उन्होंने बताया कि गर्भवती महिलाएँ और बुजुर्ग भी इस चटनी, अचार का प्रयोग कर सकते हैं और कई बीमारियों जैसे रक्त अल्पता तथा आँख की बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं।
* सहजन या सुरजने का समूचा पेड़ ही चिकित्सा के काम आता है। इसे जादू का पेड़ भी कहा जाता है। त्वचा रोग के इलाज में इसका विशेष स्थान है। सहजन के बीज धूप से होने वाले दुष्प्रभावों से रक्षा करते हैं। अक्सर इन्हें पीसकर डे केअर क्रीम में इस्तेमाल किया जाता है। बीजों का दरदरा पेस्ट चेहरे की मृत त्वचा को हटाने के लिए स्क्रब के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। फेस मास्क बनाने के लिए सहजन के बीजों के अलावा कुछ और मसाले भी मिलाना पड़ते हैं।
* सहजन के बीजों का तेल सूखी त्वचा के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह एक ताकतवर मॉश्‍चराइजर है। इसके पेस्ट से खुरदुरी और एलर्जिक त्वचा का बेहतर इलाज किया जा सकता है। सहजन के पेड़ की छाल गोखरू, कील और बिवाइयों के इलाज की अक्सीर दवा मानी जाती है।
* सहजन के बीजों का तेल शिशुओं की मालिश के लिए प्रयोग किया जाता है। त्वचा साफ करने के लिए सहजन के बीजों का सत्व कॉस्मेटिक उद्योगों में बेहद लोकप्रिय है। सत्व के जरिए त्वचा की गहराई में छिपे विषैले तत्व बाहर निकाले जा सकते हैं।
* सहजन के बीजों का पेस्ट त्वचा के रंग और टोन को साफ रखने में मदद करता है।मृत त्वचा के पुनर्जीवन के लिए इससे बेहतर कोई रसायन नहीं है। धूम्रपान के धुएँ और भारी धातुओं के विषैले प्रभावों को दूर करने में सहजन के बीजों के सत्व का प्रयोग सफल साबित हुआ है।

तुलसी/Basil



यदि सुबह, दोपहर और शाम को तुलसी का सेवन किया जाए तो उससे शरीर इतना शुद्ध हो जाता है, जितना अनेक चांद्रायण व्रत के बाद भी नहीं होता।
तुलसी की गंध जितनी दूर तक जाती है, वहां तक का वातावरण और निवास करने वाले जीव निरोगी और पवित्र हो जाते हैं।
तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति है। विशेषकर सर्दी, खांसी व बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है। इसीलिए भारतीय आयुर्वेद के सबसे प्रमुख ग्रंथ चरक संहिता में इसे विशेष महत्व दिया गया है।

                                        हिक्काज विश्वास पाश्र्वमूल विनाशिन:।
                                        पितकृतत्कफवातघ्नसुरसा: पूर्ति: गन्धहा।।

*सुरसा यानी तुलसी हिचकी, खांसी,जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित वायु खत्म होती है। यह दुर्गंध भी दूर करती है।

                                    तुलसी कटु कातिक्ता हद्योषणा दाहिपित्तकृत।
                                      दीपना कृष्टकृच्छ् स्त्रपाश्र्व रूककफवातजित।।

*तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली दिल के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात से संबंधित बीमारियों को भी ठीक करती है।

                                     तुलसी तुरवातिक्ता तीक्ष्णोष्णा कटुपाकिनी।
                                      रुक्षा हृद्या लघु: कटुचौहिषिताग्रि वद्र्धिनी।।

                                    जयेद वात कफ श्वासा कारुहिध्मा बमिकृमनीन।
                                    दौरगन्ध्य पार्वरूक कुष्ट विषकृच्छन स्त्रादृग्गद:।।

*तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली कफ, खांसी, हिचकी, उल्टी, कृमि, दुर्गंध, हर तरह के दर्द, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाभकारी है।
तुलसी को भगवान के प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की भी परंपरा है, ताकि यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही शरीर के अंदर पहुंचे और शरीर में किसी तरह की आंतरिक समस्या पैदा हो रही हो, तो उसे खत्म कर दे।
शरीर में किसी भी तरह के दूषित तत्व के एकत्र हो जाने पर तुलसी सबसे बेहतरीन दवा के रूप में काम करती है। सबसे बड़ा फायदा ये कि इसे खाने से कोई रिएक्शन नहीं होता है।
तुलसी की मुख्यत: दो प्रजातियां अधिकांश घरों में लगाई जाती हैं। इन्हें  रामा और श्यामा कहा जाता है।
*रामा के पत्तों का रंग हल्का होता है। इसलिए इसे गौरी कहा जाता है।
*श्यामा तुलसी के पत्तों का रंग काला होता है। इसमें कफनाशक गुण होते हैं। यही कारण है कि इसे दवा के रूप में अधिक उपयोग में लाया जाता है।
*तुलसी की एक जाति वन तुलसी भी होती है। इसमें जबरदस्त जहरनाशक प्रभाव पाया जाता है, लेकिन इसे घरों में बहुत कम लगाया जाता है। आंखों के रोग, कोढ़ और प्रसव में परेशानी जैसी समस्याओं में यह रामबाण दवा है।
*एक अन्य जाति मरूवक है, जो कम ही पाई जाती है। राजमार्तण्ड ग्रंथ के अनुसार किसी भी तरह का घाव हो जाने पर इसका रस बेहतरीन दवा की तरह काम करता है।
*तुलसी की एक और जाति जो बहुत उपयोगी है, वह है बर्बरी तुलसी। इसके बीजों का प्रयोग वीर्य को गाढ़ा करने वाली दवा के रूप में किया जाता है।
मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी, जैसे मलेरिया में तुलसी एक कारगर औषधि है। तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया जल्दी ठीक हो जाता है। जुकाम के कारण आने वाले बुखार में भी तुलसी के पत्तों के रस का सेवन करना चाहिए।
इससे बुखार में आराम मिलता है। शरीर टूट रहा हो या जब लग रहा हो कि बुखार आने वाला है तो पुदीने का रस और तुलसी का रस बराबर मात्रा में मिलाकर थोड़ा गुड़ डालकर लें, आराम मिलेगा।
*साधारण खांसी में तुलसी के पत्तों और अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से बहुत जल्दी लाभ होता है।
*तुलसी व अदरक का रस बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से खांसी में बहुत जल्दी आराम मिलता है।
*तुलसी के रस में मुलहटी व थोड़ा-सा शहद मिलाकर लेने से खांसी की परेशानी दूर हो जाती है।
*चार-पांच लौंग भूनकर तुलसी के पत्तों के रस में मिलाकर लेने से खांसी में तुरंत लाभ होता है।
*शिवलिंगी के बीजों को तुलसी और गुड़ के साथ पीसकर नि:संतान महिला को खिलाया जाए तो जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है।
*किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ नियमित 6 माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है।
*फ्लू रोग में तुलसी के पत्तों का काढ़ा सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है।
*तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है। इससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है।
*तुलसी के पत्तों को त्वचा पर रगड़ दिया जाए तो त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण में आराम मिलता है।
*तुलसी थकान मिटाने वाली औषधि है। बहुत थकान होने पर तुलसी की पत्तियों और मंजरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है।
*प्रतिदिन 4 से 5 बार तुलसी की 6 से 7 पत्तियों को चबाने से कुछ ही दिनों में माइग्रेन की समस्या में आराम मिलने लगता है।
*तुलसी के पत्तों को तांबे के पानी से भरे बर्तन में डालें। कम से कम एक-सवा घंटे पत्तों को पानी में रखा रहने दें। यह पानी पीने से कई बीमारियां पास नहीं आतीं।
*दिल की बीमारी में यह अमृत है। यह खून में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है। दिल की बीमारी से ग्रस्त लोगों को तुलसी के रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए।

सोमवार, 22 सितंबर 2014

जूस पीने के नियम-


जब भी हम कोई तरल चीज पीते हैं, तो हमें धीरे-धीरे मुंह में घुमा-घुमा कर पीना चाहिये आब  चाहे वह जूस हो या फर पानी ही क्यों न हो। पानी भी धीरे-धीरे ही पीना चाहिये। इस प्रकार  पीने से हमारे मुंह में पैदा होने वाली गर्मी शांत हो जाती है तथा ये ठंडक हमारे पेट तक पहुंचती है। ऐसा करने से रक्त अधिक बनने की क्षमता पैदा होती है तथा रक्त संचार भी ठीक से होता है।
फल तथा सब्जियां सबके गुण-दोष को समझ लेना चाहिये कि हमें कौन सा फल सूट करता है या कौन सी सब्जी,उसी का जूस लें और अधिक जानकारी के लिये डाइटीशियन से भी परामर्श लें। ये रस तथा जूस रोगों के निवारण के साथ-साथ रोगों से बचाव कर शरीर को  भीतर से स्वच्छ भी बनाता है। जब तक अधिक आवश्यक न हो फल एवं सब्जियों का रस अलग-अलग ही पियें।
जूस की आवश्यकता- अति व्यस्तता के कारण हमारे पास सुबह इतना समय नहीं होता कि हम गरिष्ठ या ठोस आहार ले सकें। जिसे चबा-चबा कर खाने के लिए हमारे पास समय नहीं है। ऐसी स्थिति में जूस को हम पोषक आहार के रूप में ले सकते हैं। जूस पीने से, फास्ट फूड तथा दूषित भोजन से होने वाले दोष नष्ट हो जाते हैं। अक्सर बीमारियां दूषित पानी से होती हैं, जो जूस पीते रहने से पानी की कमी तो पूरी होती है साथ दूषित पानी से होने वाली तमाम बीमारियों से बचा भी जा सकता है। इन रसों में होने वाले पोषक तत्व दूषित पानी में होने वाले कीटाणुओं का सफाया करता है।
जूस कैसे पियें-वैसे तो जूस को निकालते साथ ही पीना चाहिये ये सच है, मगर आवश्यकता पड़ने पर इन्हें रखना ही पड़ा तो 35-38 डिग्री फॉरेनहाईट तापमान पर रखें। इससे जूस खराब नहीं होने पाता दूसरे इन्हें कांच की गहरे रंग की बोतल में रखें, जो उबलते पानी से साफ की गई हो। इन सभी चीजों का ध्यान रखते हुए भी रस, जूस तभी निकाल कर रखना चाहिये। जब अति आवश्यक हो वरना जूस निकाल कर तुरंत पीयें।
जूस के गुण –जूस पीने से खून साफ होता है। पेशाब अधिक होकर शरीर का टॉक्सिक बाहर निकलता है। जूस शरीर के क्षतिग्रस्त कोषों को पुनः निर्माण में सहायक होता है। फल हो या सब्जी इनका रस पीने से पाचन तंत्र पर अधिक जोर नहीं पड़ता और अधिक से अधिक पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है।इसके बावजूद जूस को आवश्यकता से अधिक नहीं लेना चाहिये कारण फल के जूस अधिक अम्लीय(खट्टे) होते हैं, जो शरीर की प्राकृतिक अम्लता को बिगाड़ देंगे हैं।बीमारियों को मात दिया जा सकता है। रोगियों को दिये जाने वाले आहार में से रस एक पूरक आहार है। इससे रोगी को जल्दी लाभ मिलता है।

बालों को काला घना बनाने के तरीके


जैसे बालों को धोकर सुखा लें फिर प्याज का रस व एक चौथाई मात्रा में अदरक का रस गर्म नारियल तेल के साथ, आंवला पावडर, शिकाकाई पावडर, मेहंदी बालों को लगा दें। दो घंटे बालों को धो लें। चमत्कारी लाभ होगा। इसके अलावा नारियल तेल, बादाम तेल, जैतुन तैल, तिल का तेल नीम की सूखी पत्ती, आंवला,खसखस, शिकाकाई मिलाकर तेल उबाल लें इस तेल को रख लें। छानकर, इससे पुरानी रूसी जाती है।बाल झड़ने बंद हो जाते हैं। अन्य परेशानियों के लिये डॉक्टर का परामर्श लें।

बाल काले  ,घने करना- प्याज पीसकर बालों पर लेप करें बाल काले उगने लगेंगे।
सिर धोने से पहले सरसों का तेल में एक नींबू का रस मिलाकर सिर धोने से रूसी दूर हो जाती है तथा बालों की जड़ें मजबूत होती है।

रूसी दूर करने के लिये एक कप सिरका पानी मिलाकर लगाया जा सकता है। सप्ताह में एक बार बालों को दही,छाछ, नींबू के रस अथवा आंवले के पावडर से धोना चाहिये। रोयैदार तौलिया में लपेट कर सुखाना चाहिये झटकना नहीं चाहिये।

तेज धूप में न सुखायें। बाल अच्छी तरह सुखने के बाद कोई शुद्ध तेल लगाना चाहिये। हो सके तो नारियल का तेल ही लगायें।

दही से बाल धोने से बाल मुलायम, चमकीले, लम्बे हो जाते हैं। मस्तिष्क को भी बल मिलता है।

नीम व बैर के पत्तों को पानी में उबाल कर उससे सर धोने से झड़ना बंद हो जाते है।

भाप- सप्ताह में एक बार भाप भी देना चाहिये। गरम तौलिये से बाल को लपेट कर रखें।

जैतून तेल की मालिश भी करनी चाहिये। फिर गर्म पानी के तौलिये से भाप देना चाहिये।

नशीली चीजों का सेवन करने से बाल झड़ते हैं।

शैंपू में प्रायः रसायन एवं कैमिकल्स होते है। अतः नियमित प्रयोग से बालों को नुकसान होता है। बार-बार सिर में लगाने वाला, तेल बदलते नहीं रहना चाहिये।

सरसों, नारियल, आंवला तेल बालों के लिये फायदेमंद होता है। खुशबुदार तेल से बचना चाहिये। इससे असमय ही बाल सफेद होने की समस्या देखने में आती है।
दही में चुटकी भर काली मिर्च मिलाकर बाल धोने से बाल काले होते हैं।
आम के कोमल पत्ते और नर्म टहनियों का हरा-हरा पीसकर बालों में लगाने से कुछ ही हफ्तों में बालों का झड़ना पकना रूक जाता है।

मैथी के पत्ती को पीसकर बालों पर लगाएं साथ ही मैथी के बीज का चूर्ण आधा-आधा चम्मच रोज दो बार खाने से बालों के झड़ने पकने में बहुत फायदा होता है।

शिशु को स्तनपान(फीडिंग) कराने का तरीका




बच्चे   को स्तनपान (फीडिंग) कराना शुरू करवाना चाहिये कारण डिलिवरी कनाम  काहारमोन निकलता है जो मां का पहला दूध कहलाता है यह बहुत गाढा होता है शिशु  केलिये बहुत लाभकारी होता है। इम्यून पावर बढाता है तथा तमाक लड़ने की क्षमता  बढाता है।दिन में हर चार घंटे बाद तथा रात में छ: घंटे पर शिशु को दूध पिलाना चाहिये।  लोग शिशु को हर थोडी दिर में दूध पिलाने लगते हैं ये सोचकर कि शायद उसका पेट नहीं    भरा होगा।जल्दी जल्दी दूध पिलाने से बच्चे को भूख लगने का मौका आप  नहीं देते बल्कि  इससे उसका पेट खराब हो सकताहै। पाचन क्रिया बिगड़ सकती है दस्त लग सकते हैं  डिहाईड्रेशन हो सकता है।इतने छोटे शिशु को अलग से पानी  नहीं दिया जाता कारण मां के दूध से सारी जरूरतें पूरी हो जाती है। शिशु को मां के दूध के अलावा और कुछ नहीं देना चाहिये करीब तीन-चार माह तक।जितने दिन तक शिशु मां का दूध पीता है उतने तक मां को कोई ऐसी चीज नहीं खानी चाहिये जिससे मां को गैस या ठंड चढ़ जाये कारण इसका पूरा पूरा असर बच्चे के पेट पर पड़ता है यानि पेट दर्द,दस्त ,पेट में तनाव इत्यादि हो सकता है।कम से एक साल तक।इतने दिन तक मां का दूध अवश्य दें।छ माह पर उपर की चीजें खिलाना जैसे पतली खिचड़ी,साबुदाने का पानी,फल का जूस इत्यादि दें।इसके बाद वेजीटेबल खिचड़ी दे सकते हैं मिक्सी में ग्राइंड करके ताकि गले में न फंसे तथा आसानी से हजम भी हो जाय

नारियल पानी पीने के स्वास्थवर्धक गुण



गर्मियों में नारियल पानी के सेवन से, आपको दिव्य आनंद प्राप्त होगा। यह केवल आपको ताजगी ही नहीं, बल्कि इस में कई सारे स्वास्थवर्धक गुण भी छुपे हैं। नारियल पानी में विटामिन, मिनरल, इलेक्ट्रोलाइट्स, एंजाइमस्, एमिनो एसिड और साइटोकाइन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। आपको यह जान कर हैरानी होगी कि नारियल पानी महिलाओं के स्वािस्य्ना के लिये बहुत ही अच्छाय माना गया है। यदि पेशाब में जलन हो रही हो, डीहाड्रेशन हो गया हो, त्वयचा में निखार चाहिये हो या फिर मोटापा घटाना हो तो नारियल पानी पीजिये। नारियल की तासीर ठंडी होती है इसलिए नारियल का पानी हल्का, प्यास बुझाने वाला, अग्निप्रदीपक, वीर्यवर्धक तथा मूत्र संस्थान के लिए बहुत उपयोगी होता है। इसमें स्वास्थवर्धक गुण तो है ही, साथ ही इसकी ताजगी से भरा स्वाद इसे पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाता है। आइये जानते हैं नारियल पानी के बारे में कुछ स्वागस्य्िश वर्धक बातें।
1. दस्तम मिटाए अगर आप दस्त से परेशान है, तो नारियल पानी का सेवन आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा, यह आपके शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है। नारियल पानी में एमिनो एसिड, एंजाइमस्, डाइटेरी फाइबर, विटामिन सी और कई मिनरल जैसे पोटेशियम, मैग्नीशियम और मैंगनीज पाए जाते हैं। साथ ही, इसका सेवन आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल और क्लोराइड को भी कम करता है।

2.पानी की कमी पूरी करे देश में, आज भी कई ऐसे प्रांत मौजूद है, जहाँ चिकित्सा की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है। यहाँ, हाइड्रेशन के कारण गंभीर रुप से बीमार हुए मरीजों को नारियल पानी पीलाया जाए, तो यह उनके शरीर में पानी की कमी को पूरा करने में लाभदायक साबित होगा।

3.मोटापा न बढाए क्योंकि इस में फैटस की मात्रा बहुत कम है, जिसके कारण यह आपका मोटापा भी कम कर सकता है और तृप्त महसूस कराता है। इसका सेवन, खाना खाने की इच्छा को भी कम करता है।

4. मधुमेह के लिये नारियल पानी का सेवन मधुमेह के रोगियों के लिये बहुत लाभदायक है। इस में मौजूद पोषक तत्व, शरीर में शक्कधर के स्तर को नियंत्रित रखते हैं। जो मधुमेह के रोगियों के लिये बहुत जरुरी है।
5. फ्लू में लाभकारी फ्लू और दाद, दोनों शरीर में वायरल इन्फेक्शन से होने वाली बीमारियाँ हैं। अगर कोई व्यक्ति इन बीमारियों की चपेट में आ गया है, तो नारियल पानी में मौजूद एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरियल गुण इस बीमारी से लडने में मदद करेंगे।

6. हाइपर्टेंशन और स्ट्रोक से बचाए पोटेशियम से भरपूर नारियल पानी आपको सेहतमंद बनाता है। साथ ही, इसका सेवन हाइपर्टेंशन और स्ट्रोक के खतरे को कम करने में मदद करता है।

7. किडनी स्टोनन से बचाए नारियल पानी में मौजूद मिनरल, पोटेशियम और मैग्नीशियम गुर्दे में होने वाली पथरी के खतरे को कम करते हैं।

8. झुर्रियों और मुंहासों के दाग मिटाए अगर आप हर रात, दो से तीन हफ्तों के लिये, अपने मुँहासों, धब्बों, झुर्रियों, स्ट्रैच माक्स, सेल्युलाईट और एक्जिमा पर नारियल पानी लगाएँगे, तो आपकी त्वचा बहुत साफ हो जाएगी।

9. एंटी एजिंग का काम करे कुछ अनुसंधानों अनुसार, नारियल पानी में मौजूद साइटोकिन्स, एंटी ऐजिंग, एंटी कासीनजन और एंटी थौंबौटिक्स से लडने में काफी फायदेमंद साबित हुए हैं।

10. कैंसर से लड़े कई प्रयोगशालाओं में यह भी पाया गया है कि नारियल पानी के कुछ संयुक्त पदार्थ जैसे सेलनियम में एंटी आॉक्सीडेंट गुण मौजूद है, जो कैंसर से लडने में मदद करते हैं।

11. पाचन में मददगार स्वाभाविक रुप से नारियल पानी में कई बायोएक्टिव एन्जाइमस् जैसे एसिड फॉस्फेट, कटालेस, डिहाइड्रोजनेज, डायस्टेज, पेरोक्सडेस, आर एन ए पोलिमेरासेस् आदि पाए जाते हैं। ये एनेजाइमस् पाचन और चयापचय क्रिया में मदद करते हैं।

12. बी कॉम्लयक्स से भरा नारियल पानी में बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन के राइबोफ्लेविन, नियासिन, थियामिन, पैरिडोक्सिन और फोलेट्स जैसे तत्व मौजूद है। मानव शरीर को इन विटामिन की आवश्कता होती है और इन्हें पूरा करने के लिए उसे अन्य पदार्थों पर निर्भर होना पडता है।

13. इलेक्ट्रो लाइट से भरपूर नारियल पानी में भरपूर मात्रा में इलेक्ट्रोलाइट पोटेशियम पाया जाता है। 100 मिलीलीटक नारियल पानी में 250 मिलीग्राम पोटेशियम और 105 मिलीग्राम सोडियम होता है। कुल मिलाकर ये इलेक्ट्रोलाइट्स, दस्त के दौरान शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी को पूरा करने में मदद करते हैं।

14. विटामिन सी ताजे नारियल पानी में कम मात्रा में विटामिन सी (ऐस्कोरबिक एसिड) होती है। इस में 4% या 2.5 मिलीग्राम आर डी ए होता है। विटामिन सी पानी में घुल जाने वाला एटीआॉक्सीडेंट है।

दूध पीने के नियम


सुबह के समय दूध कभी ना पीये+ जर्सी गाय के दूध कभी भी ना पीये

बोर्नविटा , होर्लिक्स के विज्ञापनों के चलते माताओं के मन में यह बैठ जाता है की बच्चों को ये सब डाल के दो कप दूध पिला दिया बस हो गया . चाहे बच्चे दूध पसंद करे ना करे , उलटी करे , वे किसी तरह ये पिला के ही दम लेती है . फिर भी बच्चों में केशियम की कमी , लम्बाई ना बढना , इत्यादि समस्याएँ देखने में आती है .आयुर्वेद के अनुसार दूध पिने के कुछ नियम है ---
- दोपहर में छाछ पीना चाहिए . दही की प्रकृति गर्म होती है ; जबकि छाछ की ठंडी .
- रात में दूध पीना चाहिए पर बिना शकर के ; हो सके तो गाय का घी १- २ चम्मच दाल के ले . दूध की अपनी प्राकृतिक मिठास होती है वो हम शकर डाल देने के कारण अनुभव ही नहीं कर पाते .
- एक बार बच्चें अन्य भोजन लेना शुरू कर दे जैसे रोटी , चावल , सब्जियां तब उन्हें गेंहूँ , चावल और सब्जियों में मौजूद केल्शियम प्राप्त होने लगता है . अब वे केल्शियम के लिए सिर्फ दूध पर निर्भर नहीं .
- बोर्नविटा , कॉम्प्लान या होर्लिक्स किसी भी प्राकृतिक आहार से अच्छे नहीं हो सकते . इनके लुभावने विज्ञापनों का कभी भरोसा मत करिए . बच्चों को खूब चने , दाने , सत्तू , मिक्स्ड आटे के लड्डू खिलाइए
- प्रयत्न करे की देशी गाय का दूध ले .
- जर्सी या दोगली गाय से भैंस का दूध बेहतर है .
- दही अगर खट्टा हो गया हो तो भी दूध और दही ना मिलाये , खीर और कढ़ी एक साथ ना खाए . खीर के साथ नामकी पदार्थ ना खाए .
- अधजमे दही का सेवन ना करे .
- चावल में दूध के साथ नमक ना डाले .
- सूप में ,आटा भिगोने के लिए , दूध इस्तेमाल ना करे .
- द्विदल यानी की दालों के साथ दही का सेवन विरुद्ध आहार माना जाता है . अगर करना ही पड़े तो दही को हिंग जीरा की बघार दे कर उसकी प्रकृति बदल लें .
- रात में दही या छाछ का सेवन ना करे .

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