मंगलवार, 18 अगस्त 2015

कुछ उपयोगी बातें



घी, दूध, मूँग, गेहूँ, लाल साठी चावल, आँवले, हरड़े, शुद्ध शहद, अनार, अंगूर, परवल – ये सभी के लिए हितकर हैं।

अजीर्ण एवं बुखार में उपवास हितकर है।

दही, पनीर, खटाई, अचार, कटहल, कुन्द, मावे की मिठाइयाँ – से सभी के लिए हानिकारक हैं।

अजीर्ण में भोजन एवं नये बुखार में दूध विषतुल्य है। उत्तर भारत में अदरक के साथ गुड़ खाना अच्छा है।

मालवा प्रदेश में सूरन(जमिकंद) को उबालकर काली मिर्च के साथ खाना लाभदायक है।

अत्यंत सूखे प्रदेश जैसे की कच्छ, सौराष्ट्र आदि में भोजन के बाद पतली छाछ पीना हितकर है।

मुंबई, गुजरात में अदरक, नींबू एवं सेंधा नमक का सेवन हितकर है।

दक्षिण गुजरात वाले पुनर्नवा(विषखपरा) की सब्जी का सेवन करें अथवा उसका रस पियें तो अच्छा है।

दही की लस्सी पूर्णतया हानिकारक है। दहीं एवं मावे की मिठाई खाने की आदतवाले पुनर्नवा का सेवन करें एवं नमक की जगह सेंधा नमक का उपयोग करें तो लाभप्रद हैं।

शराब पीने की आदवाले अंगूर एवं अनार खायें तो हितकर है।

आँव होने पर सोंठ का सेवन, लंघन (उपवास) अथवा पतली खिचड़ी और पतली छाछ का सेवन लाभप्रद है।

अत्यंत पतले दस्त में सोंठ एवं अनार का रस लाभदायक है।

आँख के रोगी के लिए घी, दूध, मूँग एवं अंगूर का आहार लाभकारी है।

व्यायाम तथा अति परिश्रम करने वाले के लिए घी और इलायची के साथ केला खाना अच्छा है।

सूजन के रोगी के लिए नमक, खटाई, दही, फल, गरिष्ठ आहार, मिठाई अहितकर है।

यकृत (लीवर) के रोगी के लिए दूध अमृत के समान है एवं नमक, खटाई, दही एवं गरिष्ठ आहार विष के समान हैं।

वात के रोगी के लिए गरम जल, अदरक का रस, लहसुन का सेवन हितकर है। लेकिन आलू, मूँग के सिवाय की दालें एवं वरिष्ठ आहार विषवत् हैं।

कफ के रोगी के लिए सोंठ एवं गुड़ हितकर हैं परंतु दही, फल, मिठाई विषवत् हैं।

पित्त के रोगी के लिए दूध, घी, मिश्री हितकर हैं परंतु मिर्च-मसालेवाले तथा तले हुए पदार्थ एवं खटाई विषवत् हैं।

अन्न, जल और हवा से हमारा शरीर जीवनशक्ति बनाता है। स्वादिष्ट अन्न व स्वादिष्ट व्यंजनों की अपेक्षा साधारण भोजन स्वास्थ्यप्रद होता है। खूब चबा-चबाकर खाने से यह अधिक पुष्टि देता है, व्यक्ति निरोगी व दीर्घजीवी होता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि प्राकृतिक पानी में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के सिवाय जीवनशक्ति भी है। एक प्रयोग के अनुसार हाइड्रोजन व ऑक्सीजन से कृत्रिम पानी बनाया गया जिसमें खास स्वाद न था तथा मछली व जलीय प्राणी उसमें जीवित न रह सके।

बोतलों में रखे हुए पानी की जीवनशक्ति क्षीण हो जाती है। अगर उसे उपयोग में लाना हो तो 8-10 बार एक बर्तन से दूसरे बर्तन में उड़ेलना (फेटना) चाहिए। इससे उसमें स्वाद और जीवनशक्ति दोनों आ जाते हैं। बोतलों में या फ्रिज में रखा हुआ पानी स्वास्थ्य का शत्रु है। पानी जल्दी-जल्दी नहीं पीना चाहिए। चुसकी लेते हुए एक-एक घूँट करके पीना चाहिए जिससे पोषक तत्त्व मिलें।

वायु में भी जीवनशक्ति है। रोज सुबह-शाम खाली पेट, शुद्ध हवा में खड़े होकर या बैठकर लम्बे श्वास लेने चाहिए। श्वास को करीब आधा मिनट रोकें, फिर धीरे-धीरे छोड़ें। कुछ देर बाहर रोकें, फिर लें। इस प्रकार तीन प्राणायाम से शुरुआत करके धीरे-धीरे पंद्रह तक पहुँचे। इससे जीवनशक्ति बढ़ेगी, स्वास्थ्य-लाभ होगा, प्रसन्नता बढ़ेगी।

पूज्य बापू जी सार बात बताते हैं, विस्तार नहीं करते। 93 वर्ष तक स्वस्थ जीवन जीने वाले स्वयं उनके गुरुदेव तथा ऋषि-मुनियों के अनुभवसिद्ध ये प्रयोग अवश्य करने चाहिए।

स्वास्थ्य और शुद्धिः

उदय, अस्त, ग्रहण और मध्याह्न के समय सूर्य की ओर कभी न देखें, जल में भी उसकी परछाई न देखें।

दृष्टि की शुद्धि के लिए सूर्य का दर्शन करें।

उदय और अस्त होते चन्द्र की ओर न देखें।

संध्या के समय जप, ध्यान, प्राणायाम के सिवाय कुछ भी न करें।

साधारण शुद्धि के लिए जल से तीन आचमन करें।

अपवित्र अवस्था में और जूठे मुँह स्वाध्याय, जप न करें।

सूर्य, चन्द्र की ओर मुख करके कुल्ला, पेशाब आदि न करें।

मनुष्य जब तक मल-मूत्र के वेगों को रोक कर रखता है तब तक अशुद्ध रहता है।

सिर पर तेल लगाने के बाद हाथ धो लें।

रजस्वला स्त्री के सामने न देखें।

ध्यानयोगी ठंडे जल से स्नान न करे।

ताड़ासन का चमत्कारिक प्रयोग



ताड़ासन करने से प्राण ऊपर के केन्द्रों में आ जाते हैं जिससे पुरुषों के वीर्यस्राव एवं स्त्रियों के प्रदररोग की तकलीफ में तुरंत ही लाभ होता है।

वीर्यस्राव क्यों होता है ? जब पेट में दबाव (Intro-abdominal pressure) बढ़ता है तब वीर्यस्राव होता है। इस दबाव(प्रेशर) के बढ़ने के कारण इस प्रकार है-

ठूँस-ठूँसकर खाना, बार-बार खाना, कब्जियत, गैस होने पर भी वायु करे ऐसी आलू, गवारफली, भिंडी, तली हुई चीजों का अधिक सेवन एवं अधिक भोजन, लैंगिक (सैक्स सम्बन्धी) विचार, चलचित्र देखने एवं पत्रिकाएँ पढ़ने से।

इस दबाव के बढ़ने से प्राण नीचे के केन्द्रों मे, नाभि से नीचे मूलाधार केन्द्र में आ जाते हैं जिसकी वजह से वीर्यस्राव हो जाता है। इस प्रकार के दबार के कारण हर्निया की बीमारी भी हो जाती है।

ताड़ासन की विधिः

सर्वप्रथम एकदम सीधे खड़े होकर हाथ ऊँचे रखें। फिर पैरों के पंजों के बल पर खड़े होकर रहें एवं दृष्टि ऊपर की ओर रखें। ऐसा दिन में तीन बार (सुबह, दोपहर, शाम) 5-10 मिनट तक करें।

यदि पैरों के पंजों पर खड़े न हो सकें तो जैसे अनुकूल हो वैसे खड़े रहकर भी यह आसन किया जा सकता है।

यह आसन बैठे-बैठे भी किया जा सकता है। जब भी काम(सेक्स) सम्बन्धी विचार आयें तब हाथ ऊँचे करके दृष्टि ऊपर की ओर करनी चाहिए।

अपने हाथ में ही अपना आरोग्य



नाक को रोगरहित रखने के लिये हमेशा नाक में सरसों या तिल आदि तेल की बूँदें डालनी चाहिए। कफ की वृद्धि हो या सुबह के समय पित्त की वृद्धि हो अथवा दोपहर को वायु की वृद्धि हो तब शाम को तेल की बूँदें डालनी चाहिए। नाक में तेल की बूँदे डालने वाले का मुख सुगन्धित रहता है, शरीर पर झुर्रियाँ नहीं पड़तीं, आवाज मधुर होती है, इन्द्रियाँ निर्मल रहती हैं, बाल जल्दी सफेद नहीं होते तथा फुँसियाँ नहीं होतीं।

अंगों को दबवाना, यह माँस, खून और चमड़ी को खूब साफ करता है, प्रीतिकारक होने से निद्रा लाता है, वीर्य बढ़ाता है तथा कफ, वायु एवं परिश्रमजन्य थकान का नाश करता है।

कान में नित्य तेल डालने से कान में रोग या मैल नहीं होती। बहुत ऊँचा सुनना या बहरापन नहीं होता। कान में कोई भी द्रव्य (औषधि) भोजन से पहले डालना चाहिए।

नहाते समय तेल का उपयोग किया हो तो वह तेल रोंगटों के छिद्रों, शिराओं के समूहों तथा धमनियों के द्वारा सम्पूर्ण शरीर को तृप्त करता है तथा बल प्रदान करता है।

शरीर पर उबटन मसलने से कफ मिटता है, मेद कम होता है, वीर्य बढ़ता है, बल प्राप्त होता है, रक्तप्रवाह ठीक होता है, चमड़ी स्वच्छ तथा मुलायम होती है।

दर्पण में देहदर्शन करना यह मंगलरूप, कांतिकारक, पुष्टिदाता है, बल तथा आयुष्य को बढ़ानेवाला है और पाप तथा दारिद्रय का नाश करने वाला है

(भावप्रकाश निघण्टु)

जो मनुष्य सोते समय बिजौरे के पत्तों का चूर्ण शहद के साथ चाटता है वह सुखपूर्वक स सकता है, खर्राटे नहीं लेता।

जो मानव सूर्योदय से पूर्व, रात का रखा हुआ आधा से सवा लीटर पानी पीने का नियम रखता है वह स्वस्थ रहता है।

टॉन्सिल्स



यह रोग बालक, युवा, प्रौढ़ – सभी को होता है किंतु बालकों में विशेष रूप से पाया जाता है। जिन बालकों की कफ-प्रकृति होती है, उनमें यह रोग देखने में आता है। गला कफ का स्थान होता है। बच्चों को मीठे पदार्थ और फल ज्यादा खिलाने से, बच्चों के अधिक सोने से(विशेषकर दिन में) उनके गले में कफ एकत्रित होकर गलतुण्डिका शोथ(टॉन्सिल्स की सूजन) रोग हो जाता है। इससे गले में खाँसी, खुजली एवं दर्द के साथ-साथ सर्दी एवं ज्वर रहता है, जिससे बालकों को खाने-पीने में व नींद में तकलीफ होती है।

बार-बार गलतुण्डिका शोथ होने से शल्यचिकित्सक(सर्जन) तुरंत शल्यक्रिया करने की सलाह देते हैं। अगर यह औषधि से शल्यक्रिया से गलतुण्डिका शोथ दूर होता है, लेकिन उसके कारण दूर नहीं होते। उसके कारण के दूर नहीं होने से छोटी-मोटी तकलीफें मिटती नहीं, बल्कि बढ़ती रहती हैं।

40 वर्ष पहले एक विख्यात डॉक्टर ने रीडर्स डायजेस्ट में एक लेख लिखा था जिसमें गलतुण्डिका शोथ की शल्यक्रिया करवाने को मना किया था।

बालकों ने गलतुण्डिका शोथ की शल्यक्रिया करवाना – यह माँ-बाप के लिए महापाप है क्योंकि ऐसा करने से बालकों की जीवनशक्ति का ह्रास होता है।

निसर्गोपचारक श्री धर्मचन्द्र सरावगी ने लिखा हैः 'मैंने टॉन्सिल्स के सैंकड़ों रोगियों को बिना शल्यक्रिया के ठीक होते देखा है।'

कुछ वर्ष पहले इंग्लैण्ड और आस्ट्रेलिया के पुरुषों ने अनुभव किया कि टॉन्सिल्स की शल्यक्रिया से पुरुषत्व में कमी आ जाती है और स्त्रीत्व के कुछ लक्षण उभरने लगते हैं।

इटालियन कान्सोलेन्ट, मुंबई से प्रकाशित इटालियन कल्चर नामक पत्रिका के अंक नं. 1,2,3 (सन् 1955) में भी लिखा थाः 'बचपन में टॉन्सिल्स की शल्यक्रिया करानेवालों के पुरुषत्व में कमी आ जाती है। बाद में डॉ. नोसेन्ट और गाइडो कीलोरोली ने 1973 में एक कमेटी की स्थापना कर इस पर गहन शोधकार्य किया। 10 विद्वानों ने ग्रेट ब्रिटेन एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के लाखों पुरुषों पर परीक्षण करके उपर्युक्त परिणाम पाया तथा इस खतरे को लोगों के सामने रखा।

शोध का परिणाम जब लोगों को जानने को मिला तो उन्हें आश्चर्य हुआ ! टॉन्सिल्स की शल्यक्रिया से सदा थकान महसूस होती है तथा पुरुषत्व में कमी आने के कारण जातीय सुख में भी कमी हो जाती है और बार-बार बीमारी होती रहती है। जिन-जिन जवानों के टॉन्सिल्स की शल्यक्रिया हुई थी, वे बंदूक चलाने में कमजोर थे, ऐसा युद्ध के समय जानने में आया।

जिन बालकों के टॉन्सिल्स बढ़े हों ऐसे बालकों को बर्फ का गोला, कुल्फी, आइसक्रीम, बर्फ का पानी, फ्रिज का पानी, चीनी, गुड़, दही, केला, टमाटर, उड़द, ठंडा पानी, खट्टे-मीठे पदार्थ, फल, मिठाई, पिपरमिंट, बिस्कुट, चॉकलेट ये सब चीजें खाने को न दें। जो आहार ठंडा, चिकना, भारी, मीठा, खट्टा और बासी हो, वह उन्हें न दें।

दूध भी थोड़ा सा और वह भी डालकर दें। पानी उबला हुआ पिलायें।

उपचार

टान्सिल्स के उपचार के लिए हल्दी सर्वश्रेष्ठ औषधि है। इसका ताजा चूर्ण टॉन्सिल्स पर दबायें, गरम पानी से कुल्ले करवायें और गले के बाहरी भाग पर इसका लेप करें तथा इसका आधा-आधा ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर बार-बार चटाते रहें।

दालचीनी के आधे ग्राम से 2 ग्राम महीन पाऊडर को 20 से 30 ग्राम शहद में मिलाकर चटायें।

टॉन्सिल्स के रोगी को अगर कब्ज हो तो उसे हरड़ दे। मुलहठी चबाने को दें। 8 से 20 गोली खदिरादिवटी या यष्टिमधु धनवटी या लवंगादिवटी चबाने को दें।

कांचनार गूगल का 1 से 2 ग्राम चूर्ण शहद के साथ चटायें।

कफकेतु रस या त्रिभुवन कीर्तिरस या लक्ष्मीविलास रस(नारदीय) 1 से 2 गोली देवें।

आधे से 2 चम्मच अदरक का रस शहद में मिलाकर देवें।

त्रिफला या रीठा या नमक या फिटकरी के पानी से बार-बार कुल्ले करवायें।

सावधानी

गले में मफलर या पट्टी लपेटकर रखनी चाहिए।

सुखमय जीवन की कुंजियाँ



सनातन संस्कृति का महाभारत जैसा ग्रन्थ भी ईश्वरीय ज्ञान के साथ शरीर-स्वास्थ्य की कुंजियाँ धर्मराज युधिष्ठिर को पितामह भीष्म के द्वारा दिये गये उपदेशों के माध्यम से हम तक पहुँचता है। जीवन को सम्पूर्ण रूप से सुखमय बनाने का उन्नत ज्ञान सँजोये रखा है हमारे शास्त्रों नेः

सदाचार से मनुष्य को आयु, लक्ष्मी तथा इस लोक और परलोक में कीर्ति की प्राप्ति होती है। दुराचारी मनुष्य इस संसार में लम्बी आयु नहीं पाता, अतः मनुष्य यदि अपना कल्याण करना चाहता हो तो क्यों न हो, सदाचार उसकी बुरी प्रवृत्तियों को दबा देता है। सदाचार धर्मनिष्ठ तथा सच्चरित्र पुरुषों का लक्षण है।

सदाचार ही कल्याण का जनक और कीर्ति को बढ़ानेवाला है, इसी से आयु की वृद्धि होती है और यही बुरे लक्षणों का नाश करता है। सम्पूर्ण आगमों में सदाचार ही श्रेष्ठ बतलाया गया है। सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है और धर्म के प्रभाव से आयु की वृद्धि होती है।

जो मनुष्य धर्म का आचरण करते हैं और लोक कल्याणकारी कार्यों में लगे रहते हैं, उनके दर्शन न हुए हों तो भी केवल नाम सुनकर मानव-समुदाय उनमें प्रेम करने लगता है। जो मनुष्य नास्तिक, क्रियाहीन, गुरु और शास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन करने वाले, धर्म को न जानने वाले, दुराचारी, शीलहीन, धर्म की मर्यादा को भंग करने वाले तथा दूसरे वर्ण की स्त्रियों से संपर्क रखने वाले हैं, वे इस लोक में अल्पायु होते हैं और मरने के बाद नरक में पड़ते हैं। जो सदैव अशुद्ध व चंचल रहता है, नख चबाता है, उसे दीर्घायु नहीं प्राप्त होती। ईर्ष्या करने से, सूर्योदय के समय और दिन में सोने से आयु क्षीण होती है। जो सदाचारी, श्रद्धालु, ईर्ष्यारहित, क्रोधहीन, सत्यवादी, हिंसा न करने वाला, दोषदृष्टि से रहित और कपटशून्य है, उसे दीर्घायु प्राप्त होती है।

प्रतिदिन सूर्योदय से एक घंटा पहले जागकर धर्म और अर्थ के विषय में विचार करे। मौन रहकर दंतधावन करे। दंतधावन किये बिना देव पूजा व संध्या न करे। देवपूजा व संध्या किये बिना गुरु, वृद्ध, धार्मिक, विद्वान पुरुष को छोड़कर दूसरे किसी के पास न जाय। सुबह सोकर उठने के बाद पहले माता-पिता, आचार्य तथा गुरुजनों को प्रणाम करना चाहिए।

सूर्योदय होने तक कभी न सोये, यदि किसी दिन ऐसा हो जाय तो प्रायश्चित करे, गायत्री मंत्र का जप करे, उपवास करे या फलादि पर ही रहे।

स्नानादि से निवृत्त होकर प्रातःकालीन संध्या करे। जो प्रातःकाल की संध्या करके सूर्य के सम्मुख खड़ा होता है, उसे समस्त तीर्थों में स्नान का फल मिलता है और वह सब पापों से छुटकारा पा जाता है।

सूर्योदय के समय ताँबे के लोटे में सूर्य भगवान को जल(अर्घ्य) देना चाहिए। इस समय आँखें बन्द करके भ्रूमध्य में सूर्य की भावना करनी चाहिए। सूर्यास्त के समय भी मौन होकर संध्योपासना करनी चाहिए। संध्योपासना के अंतर्गत शुद्ध व स्वच्छ वातावरण में प्राणायाम व जप किये जाते हैं।

नियमित त्रिकाल संध्या करने वाले को रोजी रोटी के लिए कभी हाथ नहीं फैलाना पड़ता ऐसा शास्त्रवचन है। ऋषिलोग प्रतिदिन संध्योपासना से ही दीर्घजीवी हुए हैं।

वृद्ध पुरुषों के आने पर तरुण पुरुष के प्राण ऊपर की ओर उठने लगते हैं। ऐसी दशा में वह खड़ा होकर स्वागत और प्रणाम करता है तो वे प्राण पुनः पूर्वावस्था में आ जाते हैं।

किसी भी वर्ण के पुरुष को परायी स्त्री से संसर्ग नहीं करना चाहिए। परस्त्री सेवन से मनुष्य की आयु जल्दी ही समाप्त हो जाती है। इसके समान आयु को नष्ट करने वाला संसार में दूसरा कोई कार्य नहीं है। स्त्रियों के शरीर में जितने रोमकूप होते हैं उतने ही हजार वर्षों तक व्यभिचारी पुरुषों को नरक में रहना पड़ता है। रजस्वला स्त्री के साथ कभी बातचीत न करे।

अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी और अष्टमी तिथि को स्त्री-समागम न करे। अपनी पत्नी के साथ भी दिन में तथा ऋतुकाल के अतिरिक्त समय में समागम न करे। इससे आयु की वृद्धि होती है। सभी पर्वों के समय ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है। यदि पत्नी रजस्वला हो तो उसके पास न जाय तथा उसे भी अपने निकट न बुलाये। शास्त्र की अवज्ञा करने से जीवन दुःखमय बनता है।

दूसरों की निंदा, बदनामी और चुगली न करें, औरों को नीचा न दिखाये। निंदा करना अधर्म बताया गया है, इसलिए दूसरों की और अपनी भी निंदा नहीं करनी चाहिए। क्रूरताभरी बात न बोले। जिसके कहने से दूसरों को उद्वेग होता हो, वह रूखाई से भरी हुई बात नरक में ले जाने वाली होती है, उसे कभी मुँह से न निकाले। बाणों से बिंधा हुआ फरसे से काटा हुआ वन पुनः अंकुरित हो जाता है, किंतु दुर्वचनरूपी शस्त्र से किया हुआ भयंकर घाव कभी नहीं भरता।

हीनांग(अंधे, काने आदि), अधिकांग(छाँगुर आदि), अनपढ़, निंदित, कुरुप, धनहीन और असत्यवादी मनुष्यों की खिल्ली नहीं उड़ानी चाहिए।

नास्तिकता, वेदों की निंदा, देवताओं के प्रति अनुचित आक्षेप, द्वेष, उद्दण्डता और कठोरता – इन दुर्गुणों का त्याग कर देना चाहिए।

मल-मूत्र त्यागने व रास्ता चलने के बाद तथा स्वाध्याय व भोजन करने से पहले पैर धो लेने चाहिए। भीगे पैर भोजन तो करे, शयन न करे। भीगे पैर भोजन करने वाला मनुष्य लम्बे समय तक जीवन धारण करता है।

परोसे हुए अन्न की निंदा नहीं करनी चाहिए। मौन होकर एकाग्रचित्त से भोजन करना चाहिए। भोजनकाल में यह अन्न पचेगा या नहीं, इस प्रकार की शंका नहीं करनी चाहिए। भोजन के बाद मन-ही-मन अग्नि का ध्यान करना चाहिए। भोजन में दही नहीं, मट्ठा पीना चाहिए तथा एक हाथ से दाहिने पैर के अँगूठे पर जल छोड़ ले फिर जल से आँख, नाक, कान व नाभि का स्पर्श करे।

पूर्व की ओर मुख करके भोजन करने से दीर्घायु और उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से सत्य की प्राप्ति होती है। भूमि पर बैठकर ही भोजन करे, चलते-फिरते भोजन कभी न करे। किसी दूसरे के साथ एक पात्र में भोजन करना निषिद्ध है।

जिसको रजस्वला स्त्री ने छू दिया हो तथा जिसमें से सार निकाल लिया गया हो, ऐसा अन्न कदापि न खाय। जैसे – तिलों का तेल निकाल कर बनाया हुआ गजक, क्रीम निकाला हुआ दूध, रोगन(तेल) निकाला हुआ बादाम(अमेरिकन बादाम) आदि।

किसी अपवित्र मनुष्य के निकट या सत्पुरुषों के सामने बैठकर भोजन न करे। सावधानी के साथ केवल सवेरे और शाम को ही भोजन करे, बीच में कुछ भी खाना उचित नहीं है। भोजन के समय मौन रहना और  आसन पर बैठना उचित है। निषिद्ध पदार्थ न खाये।

रात्रि के समय खूब डटकर भोजन न करें, दिन में भी उचित मात्रा में सेवन करे। तिल की चिक्की, गजक और तिल के बने पदार्थ भारी होते हैं। इनको पचाने में जीवनशक्ति अधिक खर्च होती है इसलिए इनका सेवन स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है।

जूठे मुँह पढ़ना-पढ़ाना, शयन करना, मस्तक का स्पर्श करना कदापि उचित नहीं है।

यमराज कहते हैं- '' जो मनुष्य जूठे मुँह उठकर दौड़ता और स्वाध्याय करता है, मैं उसकी आयु नष्ट कर देता हूँ। उसकी संतानों को भी उससे छीन लेता हूँ। जो संध्या आदि अनध्याय के समय भी अध्ययन करता है उसके वैदिक ज्ञान और आयु का नाश हो जाता है।" भोजन करके हाथ-मुँह धोये बिना सूर्य-चन्द्र-नक्षत्र इन त्रिविध तेजों की कभी दृष्टि नहीं डालनी चाहिए।

मलिन दर्पम में मुँह न देखे। उत्तर व पश्चिम की ओर सिर करके कभी न सोये, पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर ही सिर करके सोये।

नास्तिक मनुष्यों के साथ कोई प्रतिज्ञा न करे। आसन को पैर से खींचकर या फटे हुए आसन पर न बैठे। रात्रि में स्नान न करे। स्नान के पश्चात तेल आदि की मालिश न करे। भीगे कपड़े न पहने।

गुरु के साथ कभी हठ नहीं ठानना चाहिए। गुरु प्रतिकूल बर्ताव करते हों तो भी उनके प्रति अच्छा बर्ताव करना ही उचित है। गुरु की निंदा मनुष्यों की आयु नष्ट कर देती है। महात्माओं की निंदा से मनुष्य का अकल्याण होता है।

सिर के बाल पकड़कर खींचना और मस्तक पर प्रहार करना वर्जित है। दोनों हाथ सटाकर उनसे अपना सिर न खुजलाये।

बारंबार मस्तक पर पानी न डाले। सिर पर तेल लगाने के बाद उसी हाथ से दूसरे अंगों का स्पर्श नहीं करना चाहिए। दूसरे के पहने हुए कपड़े, जूते आदि न पहने।

शयन, भ्रमण तथा पूजा के लिए अलग-अलग वस्त्र रखें। सोने की माला कभी भी पहनने से अशुद्ध नहीं होती।

संध्याकाल में नींद, स्नान, अध्ययन और भोजन करना निषिद्ध है। पूर्व या उत्तर की मुँह करके हजामत बनवानी चाहिए। इससे आयु की वृद्धि होती है। हजामत बनवाकर बिना नहाय रहना आयु की हानि करने वाला है।

जिसके गोत्र और प्रवर अपने ही समान हो तथा जो नाना के कुल में उत्पन्न हुई हो, जिसके कुल का पता न हो, उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिए। अपने से श्रेष्ठ या समान कुल में विवाह करना चाहिए।

तुम सदा उद्योगी बने रहो, क्योंकि उद्योगी मनुष्य ही सुखी और उन्नतशील होता है। प्रतिदिन पुराण, इतिहास, उपाख्यान तथा महात्माओं के जीवनचरित्र का श्रवण करना चाहिए। इन सब बातों का पालन करने से मनुष्य दीर्घजीवी होता है।

पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने सब वर्ण के लोगों पर दया करके यह उपदेश दिया था। यह यश, आयु और स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाला तथा परम कल्याण का आधार है।

रविवार, 12 जुलाई 2015

गंजेपन का सफल इलाज:-


 दिनों से देख रहा हूँ के लोग बालो कि समसया से काफ़ी परेशान हैं. जैसे की बाल झड़ना या बाल रहना ही ना.... तो उन सबके लिए एक बहुत ही आसान सा उपाय बता रहा हूँ कृपया लाभ उठायें...... 


कनेर के 60-70 ग्राम पत्ते (लाल या पीली दोनों में से कोई भी या दोनों ही एक साथ ) ले के उन्हें पहले अच्छे से सूखे कपडे से साफ़ कर लें ताकि उनपे जो मिटटी है वो निकल जाये.,. अब एक लीटर सरसों का तेल या नारियल का तेल या जेतून का तेल ले के उसमे पत्ते काट काट के डाल दें. अब तेल को गरम करने के लिए रख दें. जब सारे पत्ते जल कर काले पड़ जाएँ तो उन्हें निकाल कर फेंक दें और तेल को ठण्डा कर के छान लें और किसी बोटल में भर के रख लें.....
पर्योग विधि :- रोज़ जहाँ जहाँ पर भी बाल नहीं हैं वहां वहां थोडा सा तेल ले के बस 2 मिनट मालिश करनी है और बस फिर भूल जाएँ अगले दिन तक. ये आप रात को सोते हुए भी लगा सकते हैं और दिन में काम पे जाने से पहले भी... बस एक महीने में आपको असर दिखना शुरू हो जायेगा.. सिर्फ 10 दिन के अन्दर अन्दर बाल झड़ने बंद हो जायेंगे या बहुत ही कम... और नए बाल भी एक महीने तक आने शुरू हो जायेंगे......
नोट : ये उपाय पूरी तरह से tested है.. हमने कम से कम भी 10 लोगो पे इसका सफल परीक्षण किया है. एक औरत के 14 साल से बाल झड़ने बंद नहीं हो रहे थे. इस तेल से मात्र 6 दिन में बाल झड़ने बंद हो गये.

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

डायबिटीज, कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों से बचाती हैं ये सब्जियां


 खाने में लापरवाही और बेवक्त का खान-पान शरीर में कई सारी बीमारियों को पनाह देता है, इसलिए किसी भी बीमारी के होने पर डॉक्टर सबसे पहले खाने में सावधानी बरतने की सलाह देते हैं। अगर हेल्दी रहने के साथ-साथ डॉक्टर के क्लिनिक के चक्करों से बचना चाहते हैं, तो अपनी डेली डाइट में सिर्फ कुछ सब्जियों को शामिल करके कई प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता है। कुछ ऐसी ही सब्जियों के बारे में जानिए और कोशिश करके हफ्ते में दो से तीन बार इन्हें जरूर खाएं।
मटर कोलेस्ट्रॉल संतुलित करता है
हरे मटर खाने से कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता और साथ ही शरीर में इसका संतुलन भी बना रहता है। इसमें बॉडी में ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर को कम करने का गुण होता है। हरे मटर में ऐसे विटामिन होते हैं जो ऑस्टियोपोरोसिस से बचाते हैं। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कैंसर ने एक स्टडी में बताया कि मटर खाने से पेट के कैंसर होने का खतरा कम होता है। मटर में एंटी-इंफ्लेमेटरी कंपाउंड्स होते हैं और इसमें प्रचुर मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट्स भी पाए जाते हैं। ये आपको दिल की बीमारियों से भी बचाते हैं।
Other Vegetable and benefits: पालक आंखों के लिए फायदेमंद है, भिंडी डायबिटीज के रोगियों के लिए अच्छी है, चुकंदर कैंसर को रोकता है, करेला ब्लड शुगर कम करता है, लौकी मोटापा रोकने में कारगर है।

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इस फ़ार्मूले के हिसाब से पता कर सकती हैं अपनी शुभ दिशाऐं

महिलाएँ ...इस फ़ार्मूले के हिसाब से पता कर सकती हैं अपनी शुभ दिशाऐं।   तो ये है इस फ़ार्मूले का राज... 👇 जन्म वर्ष के केवल आख़री दो अंकों क...